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शनिवार, 12 जनवरी 2013

आज स्वामी विवेकानन्द का 150 वां जन्मदिवस है।

दोस्तों आज स्वामी विवेकानन्द का 150 वां जन्मदिवस है। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 में हुआ था। उन्होनें पुरे विश्व में भारतीय संस्कृति को पहचान दिलाइ।


उन्होने कहा था-
① उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक तुम अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते।
② जब मृत्यु निश्चत है तो सच्चे और ईमानदार उद्देश्य के लिए देह त्याग करना ही बेहतर है।
③ सत्य मेरा ईश्वर है, सनग्र जगत मेरा देश है।
④ मैं कायरता से घृणा करता हुँ।
⑤ संसार में स्वार्थशुन्य सहानुभूति विरल है।
⑥ मैं मन-कर्म-वचन से पवित्र, निस्वार्थ और निश्चल हो सकुं।
⑦ सांसारिक उन्नति के लिए मधूरभाषी होना कितना अच्छा होता है, यह मैं बखुबी जानता हूँ।
⑧ अच्छा काम बिना बाधा के संपन्न नहीं होता।
⑨ अनुभव ही एक मात्र शिक्षक है।
⑩ जो मैं नहीं हुँ, वह होने का नाटक मैंनें कभी नहीं किया।
“आप को अपने भीतर से ही विकास करना होता है। कोई आपको सीखा नहीं सकता, कोई आपको आध्यात्मिक नहीं बना सकता। आपको सिखाने वाला और कोई नहीं, सिर्फ आपकी आत्मा ही है।”
- स्वामी विवेकानंद

क्या यह सत्य है और क्या श्री कृष्ण द्वारा ऐसा करना उचित था ?

भगवान श्री कृष्ण जी की आठ पटरानियों के अतिरिक्त सोलह हजार रानियाँ भी थीं ,

क्या यह सत्य है और क्या श्री कृष्ण द्वारा ऐसा करना उचित था ?



आज एक ने इस तरह का प्रश्न किया...... और कई जगहों पर इस तरह की पोस्ट दिखाई दे जाती हैं जो हमारे श्री कृष्ण का अपमान करती हैं ... उन सभी के लिए एक पोस्ट प्रस्तुत कर रहा हूँ

श्री कृष्ण के बारे में स्पष्टीकरण देने की हमारी सीमा नहीं है क्योंकि जो सबका रक्षक है उसकी रक्षा करने की बात करना सूरज को दिया दिखाने के सामान है !!

श्रीमद भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध, अध्याय 69 , श्लोक 33 से 42 में वेदव्यास जी ने हजारों वर्ष पूर्व ,
इस प्रसंग का वर्णन पूरे विस्तार के साथ किया है ,

इसके अनुसार :-
भगवान श्री कृष्ण ने विलासी राजा नरकासुर (भौमासुर) को मार कर जब उसके वैभवशाली महल में प्रवेश किया तो देखा कि भौमासुर ने देश के विभिन्न राज्यों से सोलह हजार राजकुमारियों को लाकर बंदी बना रखा है !

भौमासुर की मृत्यु के उपरांत इन राजकुमारियों को पुनः उनके अपने परिवारों में लौट पाना असंभव लगा, अतः राजकुमारियों ने अपना शरीर त्यागने का फैसला किया!

अस्तु , अन्तःपुर में पधारे,
नर श्रेष्ठ भगवान श्री कृष्ण को देखते ही उन्होंने उनसे अपने जीवन एवं मान सम्मान रक्षा के लिए प्रार्थना की!

श्री कृष्ण का रूप देख कर उन राजकुमारियों ने श्री कृष्ण से विवाह करने की प्रार्थना की
(श्लोक 31,32,33) !

श्री कृष्ण ने भी उन कन्याओं की जीवन रक्षा के लिए एवं समाज में उन्हें उचित सम्मान दिलाने के लिए स्वीकार कर लिया !
तदनन्तर भगवान श्री कृष्ण ने एक ही मुहूर्त में विभिन्न महलों में ,
अलग अलग रूप धारण कर के, एक ही साथ , उन 16000 राजकुमारियों के साथ विधिवत विवाह (पाणिग्रहण) किया !

सर्वशक्तिमान अविनाशी भगवान के लिए इसमें आश्चर्य क़ी कौन सी बात है ? "

जब देवर्षि नारद ने श्रीकृष्ण क़ी इन 16000 रानियों के विषय में जाना तो उन्हें वैसी ह़ी शंका हुई जैसी की मुल्लों और ईसाईयों को या अनेक हिन्दू धर्म के विरोधी लोगों को होती होगी!

वे सोचने लगे कि यह कितने आश्चर्य की बात है क़ी श्रीकृष्ण एक ही शरीर से,
एक ह़ी समय , एक साथ इतनी कुमारियों से ब्याह रचा सके!

अब द्वारका में 16108 रानियों के साथ उनका वैवाहिक जीवन कितना दुखद अथवा सुखद है यह जानने की उत्सुकता लिए नारदजी भगवान कृष्ण की गृहस्थी का दर्शन करने स्वयं द्वारका पहुँच गये! "

द्वारका में जो नारद जी ने देखा, उससे उनकी आँखें खुली क़ी खुली रह गयीं !

उन्होंने देखाकि भगवान श्री कृष्ण अपनी सभी रानियों के साथ गृहस्थों को पवित्र करने वाले श्रेष्ठ धर्मों का आचरणकर रहे हैं !

यद्यपि वह एक ह़ी थे पर नारदजी ने उन्हें उनकी प्रत्येक रानी के साथ अलग अलग देखा!
उन्होंने श्रीकृष्ण की योगमाया का परम ऐश्वर्य बार बार देखा और उनकी व्यापकता का अनुभव किया !

यह सब देखसुन कर नारदजी के विस्मय और कौतूहल की सीमा नहीं रही !
क्या मोम्मद और जीसस में ऐसी शक्तियां थी की एक समय में १६००० जगहों पर प्रकट हो सकें ??

रामावतार में मर्यादा का अत्याधिक पालन करने वाले भगवान ने जहाँ एक पत्नीव्रत धर्म का पालन किया था वहाँ कृष्णावतार में उन्होंने वैसा नहीं किया !

श्री कृष्ण जी ने 16108 देविओं से विधिपूर्वक विवाह किया !
इसका दूसरा कारण यह भी है की कुछ विद्वानों का मत है कि , गृहस्थाश्रम धर्म का वर्णन करने वालीं, वेद की 16000 ऋचाएं , कृष्णावतार के समय, प्रभु सेवा की भावना से राजकुमारियां बनी और अंततः श्री कृष्ण की विवाहिता पत्नियाँ हुईं !

श्रीकृष्ण जी की महिमा को पूर्णतया माँ सरस्वती या वेद भी नहीं जानते फिर नर मनुष्यों की तो बात ही क्या है प्रिय पाठकों इसलिए बेहतर होगा की आप या हम श्रीमद भगवत गीता के दसवें अध्याय को पढ़ें...........

क्यूंकि श्री कृष्ण भगवान जी के बारे में सिर्फ श्री कृष्ण जी ही बता सकते हैं और वो भी तब जब उन्हें अर्जुन जैसा शिष्य मिले........

किसी भी जातिवादी,धर्म विरोधी के कहने मात्र से अगर आपका विश्वास अपने धर्म से हट गया तो आप से बड़ा अभागा और कोई नहीं हो सकता !!

जय श्री कृष्ण _/\

आप हाथी नहीं इंसान हैं !

आप हाथी नहीं इंसान हैं !

एक आदमी कहीं से गुजर रहा था, तभी उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा, और अचानक रुक गया. उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है, उसे इस बात का बड़ा अचरज हुआ की हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं!!! ये स्पष्ठ था कि हाथी जब चाहते तब अपने बंधन तोड़ कर कहीं भी जा सकते थे, पर किसी वजह से वो ऐसा नहीं कर रहे थे.
उसने पास खड़े महावत से पूछा कि भला ये हाथी किस प्रकार इतनी शांति से खड़े हैं और भागने का प्रयास नही कर रहे हैं ? तब महावत ने कहा, ” इन हाथियों को छोटे पर से ही इन रस्सियों से बाँधा जाता है, उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती की इस बंधन को तोड़ सकें. बार-बार प्रयास करने पर भी रस्सी ना तोड़ पाने के कारण उन्हें धीरे-धीरे यकीन होता जाता है कि वो इन रस्सियों नहीं तोड़ सकते,और बड़े होने पर भी उनका ये यकीन बना रहता है, इसलिए वो कभी इसे तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते.”
आदमी आश्चर्य में पड़ गया कि ये ताकतवर जानवर सिर्फ इसलिए अपना बंधन नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात में यकीन करते हैं!!
इन हाथियों की तरह ही हममें से कितने लोग सिर्फ पहले मिली असफलता के कारण ये मान बैठते हैं कि अब हमसे ये काम हो ही नहीं सकता और अपनी ही बनायीं हुई मानसिक जंजीरों में जकड़े-जकड़े पूरा जीवन गुजार देते हैं.
याद रखिये असफलता जीवन का एक हिस्सा है ,और निरंतर प्रयास करने से ही सफलता मिलती है. यदि आप भी ऐसे किसी बंधन में बंधें हैं जो आपको अपने सपने सच करने से रोक रहा है तो उसे तोड़ डालिए….. आप हाथी नहीं इंसान हैं.

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Old Post from Sanwariya