यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

श्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार - वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि


भारतवर्ष में रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा पुरातन काल से चली आ रही है।
यह सिर्फ भाई बहन का ही त्योहार नही जो बल्कि जो जिससे रक्षा अपेक्षा या याचना अपेक्षा रखता उसे रक्षा सूत्र बांध सकता है। अपने आराध्य को भी रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा है ।
सर्वप्रथम इंद्र की पत्नी सचि (इंद्राणी) ने युद्ध में विजय की कामना से इंद्र को रक्षा सूत्र बांधा था। अनन्तर भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था। गुरु शुक्राचार्य के रोकने के पर भी दान धर्म लिए दृढ़ राजा बलि ने भगवन वामन को वचन दिया और  अटलता लिए रक्षा सूत्रबाँधा।
 इसी तरह कथा में विष्णु को सुतल से लाने लक्ष्मी ने बलि को रक्षा सूत्र बांध वर में भगवान विष्णु को पुनः प्राप्त किया ।

प्राचीन काल में रक्षा बंधन भाई बहन का त्योहार था ही नही शास्त्रो में इसका कोई मन्त्र कथा नही है ।  मुगल काल मे जेहादी तालिबान से अपनी बहनों की रक्षा लिए यह प्रथा प्राम्भ हुई ।

 रक्षा सूत्र बांधने का जो प्रचलित मंत्र है उसमें भी इसी घटना का उल्लेख है। आइए जानते हैं क्या है रक्षा सूत्र बांधने का मंत्र…

प्राचीन समय में पुरोहित अपने यजमान के कल्याण हेतु उसके दाहिने हाथ में एक पवित्र धागा (सूत्र) बांधते थे जिसे रक्षा सूत्र कहा जाता था। युद्ध से पूर्व रक्षासूत्र रूप में एक राजा अन्य राजा को भी रक्षा सूत्र और पाती भेजते थे जो कि हाथ मे बांध युद्ध में साथ देने लिए आते। यह एक दुसरे की रक्षा भाव की समृद्ध परंपरा आज भी उसी रूप में चली आ रही है। पुरोहित और यजमान भी एक दूजे को रक्षा सूत्र बांध सकते है ।
गुरु-शिष्य और मित्र के द्वारा भी अपने शिष्य व मित्र को रक्षा सूत्र बाँधने की परंपरा है। संघ की शाखाओ में स्मययं सेवक परम् गुरु स्वरूप ध्वज को और सहसंघी स्वयं सेवक स्वयं सेवको को रक्षा सूत्र बांधते है। इसी तरह
अपने ईष्ट को भी रक्षा सूत्र का महत्व है। कई जगह पुजारी व पुरुष भी दुर्गा देवी के रूप को रक्षा सूत्र बांधते है। मन्दिरो में अपने आराध्य को भी रक्षा सुत्र बंधने की परंपरा चली आ रही है।

रक्षा सूत्र बांधने का मंत्र
रक्षा सूत्र बाँधते समय पुरोहित एक विशेष मंत्र का उच्चारण करते हैं जो इस प्रकार है-
 
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
 
रक्षा सूत्र के इस पवित्र मंत्र का अर्थ
दानवीर, महाबली राजा बलि जिस (रक्षा सूत्र) से बंध गए थे उसी से मैं तुम्हें भी बाँधता हूँ। फिर रक्षा सूत्र को संबोधित करते हुए- हे रक्षा! तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना।
 
अर्थात् जिस प्रकार भगवान वामन ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था उसी प्रकार मैं तुम्हें भी इस रक्षासूत्र रूपी धर्म-बंधन में बाँधता हूँ। हे रक्षा! तुम स्थिर रहो।
 
सारत: इस मंत्र का भाव यही है कि जिस व्यक्ति को रक्षा सूत्र बाँधा जा रहा है वह अपने धर्म में स्थिर रहे और दैवी शक्तियाँ उसकी रक्षा करें।
 
रक्षाबंधन के अवसर पर बहनें अपने भाई की कलाई में रक्षासूत्र (राखी) बांधती हैं। समान्यतः ऐसा माना जाता है कि भाई को रक्षासूत्र बांधकर बहनें अपनी रक्षा का वचन लेती हैं।
यह बात तो निश्चय ही सत्य है किंतु इसके साथ हम रक्षासूत्र के इतिहास पर दृष्टि डालें तो रक्षाबंधन का एक उद्देश्य यह भी ज्ञात होता है कि बहन रक्षा सूत्र बाँधकर भाई को कर्त्तव्यपालन की याद दिलाती हैं तथा उसके सुख, शांति, दीर्घायु व कल्याण की कामना करती हैं।
 
गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी में भी रक्षाबंधन का प्रचलन अनेक स्थानों पर है। पत्नी अपने पति के हाथ में रक्षा सूत्र बाँधकर उनके धर्मपथ पर चलने की कामना करती है और पति अपने गर्हस्थ के सम्यक् निर्वहन का वचन देता है।
पुराण शास्त्रो में
सर्वप्रथम इंद्र की पत्नी सचि (इंद्राणी) ने युद्ध में विजय की कामना से इंद्र को रक्षा सूत्र बांधा था।
भागवत, देवी भावत, भविष्य पुराण आदि में इस सम्बंध में कथा है कि
12 वर्ष तक देव दानव युद्ध चलता रहा लेकिन देवता विजयी नही हो रहे थे । हार के डर से घबराए इंद्र पहुंचे देवगुरु बृहस्पति से सलाह लेने। तब गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधिविधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किरे और देव राज इंद्र को रक्षा सूत्र बांध दिए।
इंद्राणी शचि ने जिस दिन इंद्र की कलाई में रक्षासूत्र बांधा था उस दिन श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि थी। इसके बाद देवराज इंद्र ने वृत्रासुर का वध कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। इस पौराणिक कथा के अनुसार, एक पत्नी अपने सुहाग की रक्षा के लिए श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के दिन अपने पति की कलाई में रक्षासूत्र बांध सकती है।

इसीतरह वामन अवतार और राजा बलि की कथा है
भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था। गुरु शुक्राचार्य के रोकने  पर भी दान धर्म लिए दृढ़ राजा बलि ने भगवन वामन को वचन दिया और  अटलता लिए रक्षा सूत्रबाँधा।
भगवान वामन ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहां रखे, इस बात को लेकर बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। अगर वह अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होता। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के सामने कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया।
पैर रखते ही बलि सुतल लोक में पहुंच गया। बलि की उदारता से भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे सुतल लोक का राज्य प्रदान किया। बलि ने वर मांगा कि भगवान विष्णु उसके द्वारपाल बनें। तब भगवान को उसे यह वर भी प्रदान करना पड़ा। पर इससे लक्ष्मीजी संकट में आ गईं। वे चिंता में पड़ गईं कि अगर स्वामी सुतल लोक में द्वारपाल बन कर रहेंगे तब बैकुंठ लोक का क्या होगा?
तब देवर्षि नारद ने उपाय बताया कि बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध दो और उससे भाई बना कर भगवान विष्णु को वरदान में वापस ले लेवे। लक्ष्मीजी ने ऐसा ही किया। उन्होंने बलि की कलाई पर राखी (रक्षासूत्र) बांधी। बलि ने लक्ष्मीजी से वर मांगने को कहा। तब उन्होंने अपने विष्णु को मांग लिया। रक्षासूत्र से देवी लक्ष्मी को अपने स्वामी पुन: मिल गए।
 
रक्षासूत्र (कलावा) पुरुषों के दाहिने हाथ में, महिलाओं के बाएँ हाथ में तथा अविवाहित बालिकाओं के भी दाहिने हाथ में बांधने का विधान है। कहीं-कहीं इसे गले और कमर में बाँधने की परंपरा है।
रक्षा सूत्र लिए किसी विशेष राखी का भी प्रावधान नही है । एक सुत का धागा भी काफी है किंतु भाव पूर्ण हो । सूती धागे की बनी मोली भी उत्तम मानी गई है।
 
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत्।
स सर्वदोष रहित सुखी सम्वत्सरे भवेत्॥
अर्थात् जो लोग इस प्रकार विधिपूर्वक रक्षाबंधन का आयोजन करते हैं वे संवत्सर पर्यन्त सभी दोषों से रहित होकर सुखी होते हैं।
 
इस वर्ष 2021 का रक्षाबन्धन रविवार 22 अगस्त को है

जैसा की आप सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म के अनुसार  प्रतिवर्ष श्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार होता है, इस बार 22 अगस्त 2021 रविवार के दिन है। इस दिन बहनें अपने भाई को रक्षा-सूत्र बांधती हैं । यदि यह रक्षा सूत्र यदि वैदिक रीति से बनाई जाए तो शास्त्रों में उसका बड़ा महत्व है ।
आइए हम आपको बताते हैं वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि ।
वैदिक रक्षा सूत्र बनाने के लिए ५ वस्तुओं की आवश्यकता होती है -
(१) दूर्वा (घास) 
(२) अक्षत (चावल) 
(३) केसर 
(४) चन्दन 
(५) सरसों के दाने ।

इन ५ वस्तुओं को रेशम के कपड़े में लेकर उसे बांध दें या सिलाई कर दें, फिर उसे कलावा में पिरो दें, इस प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी ।

अब आप सभी के मन में यह प्रश्न स्वभाविक है कि इन पांच वस्तुओं का महत्त्व क्या है। 

आइए जानते हैं एक एक सामग्री की विशेषता से। 

(१) दूर्वा - जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेज़ी से फैलता है और हज़ारों की संख्या में उग जाता है, उसी प्रकार मेरे भाई का वंश और उसमे सदगुणों का विकास तेज़ी से हो । सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बढ़ता जाए । दूर्वा गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में विघ्नों का नाश हो जाए।

(२) अक्षत - हमारी गुरुदेव के प्रति श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत ना हो सदा अक्षत रहे ।

(३) केसर - केसर की प्रकृति तेज़ होती है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, वह तेजस्वी हो । उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो।

(४) चन्दन - चन्दन की प्रकृति तेज होती है और यह सुगंध देता है । उसी प्रकार उनके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो । साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे ।

(५) सरसों के दाने - सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है अर्थात इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें ।
इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम गुरुदेव के श्री-चित्र पर अर्पित करें । फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे ।

महाभारत में यह रक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बाँधी थी । माना जाता है कि जबतक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकी रक्षा हुई, धागा टूटने पर अभिमन्यु की मृत्यु हुई ।
जो भी बंधुजन इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं वे सभी जन  पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्ष भर सुखी रहते हैं ।

रक्षा सूत्र बांधते समय ये श्लोक बोलें।
 येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वाम रक्ष बध्नामि, रक्षे माचल माचल: ।

यदि आपको यह लेख ज्ञानवर्धक और रुचिकर लगा हो तो अपने मित्रों और बंधुजनो के साथ शेयर अवश्य करें साथ ही अपना फीडबैक कमैंट बाक्स में लिख कर अवश्य बताएं। 

🚩जय श्रीहरि 🚩

गुरुवार, 19 अगस्त 2021

कपालभाति के कई विशेष लाभ भी हैं


कपालभाती यह केवल एक प्राणायाम ही नही, बल्कि एक शुद्धी क्रिया भी है, 


*कपालभाती को बीमारी दूर करनेवाले प्राणायाम के रूप में देखा जाता है। मैने ऐसे पेशंट्स को देखा है जो बिना बैसाखी के चल नही पाते थे लेकिन नियमित कपालभाती करने के बाद उनकी बैसाखी छूट गई और वे ना सिर्फ चलने, बल्कि दौड़ने भी लगे.....!*

*1* -  _कपालभाती करने वाला साधक आत्मनिर्भर और स्वयंपूर्ण हो जाता है, कपालभाती से हार्ट के ब्लॉकेजेस् पहले ही दिन से खुलने लगते हैं और 15 दिन में बिना किसी दवाई के वे पूरी तरह खुल जाते है !_

*2* -  _कपालभाती करने वालों के हृदय की कार्यक्षमता बढ़ती है, जबकि हृदय की कार्यक्षमता बढ़ाने वाली कोई भी दवा उपलब्ध नही है !_

*3* -  _कपालभाती करने वालों का हृदय कभी भी अचानक काम करना बंद नही करता, जबकि आजकल बड़ी संख्या में लोग अचानक हृदय बंद होने से मर जाते हैं !_
     
*4* -  _कपालभाती करने से  शरीरांतर्गत और शरीर के ऊपर की किसी भी तरह की गाँठ गल जाती है, क्योंकि कपालभाती से शरीर में जबर्दस्त उर्जा निर्माण होती है जो गाँठ को गला देती है, फिर वह गाँठ चाहे ब्रेस्ट की हो अथवा अन्य कही की। ब्रेन ट्यूमर हो अथवा ओव्हरी की सिस्ट हो या यूटेरस के अंदर फाइब्रॉईड हो, क्योंकि सबके नाम भले ही अलग हो लेकिन गाँठ बनने की प्रक्रिया एक ही होती है  !_

*5* -  _कपालभाती से बढा हुआ कोलेस्टेरोल कम होता है। खास बात यह है कि मैं कपालभाती शुरू करने के प्रथम दिन से ही मरीज की कोलेस्टेरॉल की गोली बंद करवाता हूँ !_
    
*6* -  _कपालभाती से बढा हुआ इएसआर, युरिक एसिड, एसजीओ, एसजीपीटी, क्रिएटिनाईन, टीएसएच, हार्मोन्स, प्रोलेक्टीन आदि सामान्य स्तर पर आ जाते है !_

*7* -  _कपालभाती करने से हिमोग्लोबिन एक महीने में 12 तक पहुँच जाता है, जबकि हिमोग्लोबिन की एलोपॅथीक गोलियाँ खाकर कभी भी किसी का हिमोग्लोबिन इतना बढ़ नही पाता है। कपालभाती से हीमोग्लोबिन एक वर्ष में 16 से 18 तक हो जाता है। महिलाओं में हिमोग्लोबिन 16 और पुरुषों में 18 होना उत्तम माना जाता है !_

*8* -  _कपालभाती से महिलाओं के मासिक धर्म की सभी शिकायतें एक महीने में सामान्य हो जाती है  !_

*9* -  _कपालभाती से थायरॉईड की बीमारी एक महीने में ठीक हो जाती है, इसकी गोलियाँ भी पहले दिन से बंद की जा सकती है !_

*10* -  _इतना ही नही बल्कि कपालभाती करने वाला साधक 5 मिनिट में मन के परे पहुँच जाता है। गुड़ हार्मोन्स का सीक्रेशन होने लगता है। स्ट्रेस हार्मोन्स गायब हो जाते है, मानसिक व शारीरिक थकान नष्ट हो जाती है। इससे मन की एकाग्रता भी आती है  !_

    *_कपालभाति के कई विशेष लाभ भी हैं ।_* 

*(A)*  -  _कपालभाती से खून में प्लेटलेट्स बढ़ते हैं। व्हाइट ब्लड सेल्स या रेड ब्लड सेल्स यदि कम या अधिक हुए हो तो वे निर्धारित मात्रा में आकर संतुलित हो जाते हैं। कपालभाती से सभी कुछ संतुलित हो जाता है, ना तो कोई अंडरवेट रहता है, ना ही कोई ओव्हरवेट रहता है। अंडरवेट या ओव्हरवेट होना दोनों ही बीमारियाँ है !_
     
*(B)*  -  _कपालभाती से कोलायटीस, अल्सरीटिव्ह कोलायटीस, अपच, मंदाग्नी, संग्रहणी, जीर्ण संग्रहणी, आँव जैसी बीमारियाँ ठीक होती है। काँस्टीपेशन, गैसेस, एसिडिटी भी ठीक हो जाती है। पेट की समस्त बीमारियाँ ठीक हो जाती है !_

*(C)*  -  _कपालभाती से सफेद दाग, सोरायसिस, एक्झिमा, ल्युकोडर्मा, स्कियोडर्मा जैसे त्वचारोग ठीक होते हैं। स्कियोडर्मा पर कोई दवाई उपलब्ध नही है लेकिन यह कपालभाती से ठीक हो जाता है। अधिकतर त्वचा रोग पेट की खराबी से होते है, जैसे जैसे पेट ठीक होता है ये रोग भी ठीक होने लगते हैं !_

*(D)*  -  _कपालभाती से छोटी आँत को शक्ति प्राप्त होती है जिससे पाचन क्रिया सुधर जाती है। पाचन ठीक होने से शरीर को कैल्शियम, मैग्नेशियम, फॉस्फरस, प्रोटीन्स इत्यादि उपलब्ध होने से कुशन्स, लिगैमेंट्स, हड्डियाँ ठीक होने लगती हैं और 3 से 9 महिनों में अर्थ्राइटीस, एस्ट्रो अर्थ्राइटीस, एस्ट्रो पोरोसिस जैसे हड्डियों के रोग हमेशा के लिए ठीक हो जाते हैं !_

*ध्यान रखिये की कैल्शियम, प्रोटीन्स, हिमोग्लोबिन, व्हिटैमिन्स आदि को शरीर बिना पचाए बाहर निकाल देता है क्योंकि केमिकल्स से बनाई हुई इस प्रकार की औषधियों को शरीर द्वारा सोखे जाने की प्रक्रिया हमारे शरीर के प्रकृति में ही नही है !*

_हमारे शरीर में रोज 10 % बोनमास चेंज होता रहता है, यह प्रक्रिया जन्म से मृत्यु तक निरंतर चलती रहती है अगर किसी कारणवश यह बंद हुई, तो हड्डियों के विकार हो जाते हैं.... कपालभाती इस प्रक्रिया को निरंतर चालू रखती है इसीलिए कपालभाती नियमित रूप से करना आवश्यक है !_

*सोचिए, यह सिर्फ एक क्रिया कितनी लाभकारी है इसीलिए नियमित रूप से कपालभाति करना एक उत्तम व्यायाम प्रक्रिया है !!*




        🌹🙏

कुदरती खेती के लिए कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ


कुदरती खेती के लिए कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ 

1. खेत के बांध पर खाली जगह पर तथा एक एकड भुमी  में  आम, कटहल, इमली,रामफल ,सिताफल ,जांबूण,बैर, चीकू, नारियल, पपीता, केला व पिपल, बरगद,उंबर सागौन आदि ऐसे पेड़ जो खेत की उर्वरता बढ़ाने में मदद करते हैं, को अवश्य लगाने चाहिए।मधुमख्यिया इनपर छत्ता बनाकर परागिकरन करती है। इन वृक्षों पर बैठने वाले पंछी कीटों को खाकर फसलों को बचाने का काम करते हैं साथ ही खेत में खाद भी देते हैं। पंछी अनाज कम व फसल को नुकसान पहुँचाने वाले कीड़ों को अधिक खाते हैं। एक चिड़िया दिन में लगभग 250 सूंडी खा लेती है। पेड़ों से 10-20 साल में किसानों को अतिरिक्त आर्थिक लाभ मिलता है। जाटी आदि से पशुओं को आहार्। रसोई के लिए लकड़ी तथा परिवार के लिए फल मिलते हैं। पेड़ों के साथ गिलोय व काली मिर्च आदि लगाकर और अcधिक आर्थिक लाभ कमा सकते हैं।

2. एक ग्राम मिट्टी में लगभग 3 करोड़ सूक्ष्म जीव होते हैं। खेत के पत्तों, धान व अन्य प्रकार के चारे में आग लगाने एवं जहरीली खाद व कीटनाशकों को डालने, ट्रैक्टर से खेत जोतने पर ये सूक्ष्म जीव मरते हैं और धरती धीरे-धीरे बंजर बन जाती है।

3. अधिक पानी जमीन का शत्रु, नई जमीन का मित्र तथा फसलों व गोभी आदि सब्जियों का कचरा भूमि माता के वस्त्रों का काम करते हैं, जो जमीन को सर्दी गर्मी से बचाते हैं, तापमान को नियन्त्रित रखते हैं तथा जमीन की नमी को भी बरकरार रखते हैं। अत: भूमि की मल्चिंग के लिए फसलों का कचरा खेत के लिए खतरा नहीं उसकी ताकत है।

4. लगभग एक एकड़ भूमि में 90 हजार केंचुएँ होते हैं। एक केंचुवा खेत में हजारों किलोमीटर खुदाई करने की क्षमता रखता है। जो भूमि जैविक कृषि द्वारा पोषित होती है और जहाँ केचुँए संरक्षित किये जाते हैं उस भूमि की कीचड़ वर्षों में –
(क) 5 गुणा नाईट्रोजन की ताकत बढ़ जाती है।
(ख) 7 गुणा फास्फोरस की ताकत बढ़ जाती है।
(ग) 11 गुणा पोटास की ताकत बढ़ जाती है।
(घ) 2.5 गुणा मैग्नीशियम की ताकत बढ़ जाती है।
अत: प्राकृतिक खेती में कृत्रिम रासायनिक खाद, यूरिया, व डी.ए.पी. की जरूरत नहीं पड़ती है। गोबर, गोमूत्र व पेड़ के पत्तों से भूमि को ये पोषण तत्व स्वयं ही मिलते रहते हैं।

बुधवार, 18 अगस्त 2021

अफगानिस्तान में टाइम वेल में फंसा मिला महाभारत कालीन विमान ?


जल्दी गूगल करो
अफगानिस्तान में टाइम वेल में फंसा मिला महाभारत कालीन विमान ?महाभारत कल्पना नहीं, एक हकीकत लंबे समय से रामायण, महाभारत काल को केवल एक काल्पनिक गाथा के रुप में माना जा रहा था। परंतु यह सत्य नहीं है। जो लोग इस काल को काल्पनिक मान रहे हैं, उन्हें अब यह स्वीकार करना होगा कि महाभारत और रामायण काल भारत का गौरवमयी इतिहास था। जिसे कोरी कल्पना मानना एक भूल थी। अफगानिस्तान की विशाल गुफा में टाइम वेल में 5000 साल पुरान महाभारत कालीन विमान के फंसे होने की पुष्टि हुई है। इस विमान के मिलने का खुलासा वायर्ड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में किया गया है।
अफगानिस्तान में सदियों पहले था आर्यों का राज
मौजूदा अफगानिस्तानन में हिंदू कुश नाम का एक पहाड़ी क्षेत्र है ।जिसके उस पार कजाकिस्तान, रूस और चीन देश हैं। ईसा के 700 साल पूर्व तक यहां पर आर्यों का साम्राज्य था। इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था। जिसके बारे में महाभारत के अलावा कई अन्य ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। अफगानिस्तान की सबसे बड़ी होटलों की श्रृंखला का नाम आर्याना था। इतना ही नहीं हवाई कंपनी भी आर्याना के नाम से जानी जाती थी। इस्लाम धर्म से पहले मौजूदा अफगानिस्तान को आर्याना, आर्यानुम्र वीजू, पख्तिया, खुरासान, पश्तूनख्वाह और रोह नामों से पुकारा जाता था। वहीं पारसी मत के प्रवर्तक जरथ्रुष्ट द्वारा रचित ग्रंथ जिंदावेस्ता में इस भूखंड को ऐरीन-वीजो या आर्यानुम्र वीजो कहा गया है। सबसे खास बात यह है कि मौजूदा अफगानिस्तान के गांवों में बच्चों के नाम कनिष्क, आर्यन, वेद हैं। जो इस बात को प्रमाणित करता है कि यहां पर कभी आर्यों का राज था

अफगानिस्तान की गुफा में मौजूद है 5000 साल पुराना विमान
मौजूदा अफगानिस्तान में 5000 साल पुराने महाभारत कालीन एक विमान मिला है। यह विमान महाभारत काल का माना जा रहा है। इसका खुलासा वायर्ड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में किया गया है। अफगानिस्तान की एक प्राचीन गुफा में महाभारत काल का यह विमान टाइम वेल में फंसा हुआ है। इसी कारण यह आज तक सुरक्षित बना हुआ है। जो विमान मिला है, इसके आकार प्रकार का पूर्ण विवरण महाभारत व अन्य प्राचीन ग्रंथों में मौजूद है। वायर्ड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में किए गए खुलासे अनुसार प्राचीन भारत के पांच हजार वर्ष पुराने इस विमान को बाहर निकालने की सभी कोशिशें नकाम हो चुकी है। अमेरिका नेवी के आठ कमांडो इस विमान के पास पहुंचने में कामयाब भी हुए। परंतु टाइम वेल सक्रिय होने पर यह सभी गायब हो गए। अमेरिकी, रुस राष्ट्रपति सहित ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के राष्ट्राध्यक्षों के साथ मिलकर इस साइट का अतिगोपनीय दौरा भी किया जा चुका है।
क्या होता है टाइम वेल
टाइम वेल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक शॉकवेव्स से सुरक्षित क्षेत्र होता है। इस कारण इस क्षेत्र में मौजूद सामान सुरक्षित रहता है। यही कारण है कि इस विमान के पास जाने की चेष्टा करने वाला कोई भी व्यक्ति इसके प्रभाव के कारण गायब या अदृश्य हो जाता ह

विमान की क्या है खासियत
रशियन फॉरेन इंटेलिजेंस सर्विज की रिपोर्ट अनुसार इस 5000 साल पुराने विमान का जब इंजन शुरू होता है। जिसमें से बहुत तेज रोशनी ‍निकलती है। इस विमान के चार पहिए है। इसमें कई तरह के हथियार भी लगे हुए हैं। यह सभी हथियार प्रज्जवलन शील है। इन्हें किसी लक्ष्य पर केन्द्रित किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह टाइम वेल सर्पाकार है। इसके संपर्क में आते ही सभी जीवित प्राणियों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। इस सर्पाकार टाइम वेल की थ्योरी समझने के लिए वैज्ञानित प्रयासरत हैं। फिलहाल तक इस टाइम वेल का समाधान नहीं निकाला जा सका है।

मंगलवार, 17 अगस्त 2021

साईं शब्द की उत्पत्ति फ़ारसी से है, जिसका अर्थ फ़कीर होता है।


साईं शब्द की उत्पत्ति फ़ारसी से है, जिसका अर्थ फ़कीर होता है।

साईं के पिता का नाम बहरुद्दीन था, जो कि अफगान का एक पिंडारी मुसलमान था। पिंडारियों का काम भारत में लूटपाट करना, और राहगीरों को धोखे से ठग कर उनकी निर्मम हत्या कर देना था। इन्हीं पिंडारियों के महिमा वर्णन का काम सलमान खान एंड गैंग ने फिल्म 'वीर' में किया था। जिनको पिंडारियों की असलियत न पता हो, वे अंग्रेजों द्वारा इनके समूलनाश की हठ ठानने वाले इतिहास को पढ़ें, जिसको कि मैं अंग्रेजों द्वारा कुछेक अच्छे कार्यों जैसे कि रेल, टेलीफोन आदि में योगदान है मानता हूँ।
           हिन्दुओं इतिहास की पुस्तकें उठाओ और उन्हें पढ़ो, सब अंकित है वहाँ।

स्वामी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती (सोचिये कि हिन्दुओं के इतने बड़े शंकराचार्य) ने साईं के बारे बताया है कि उसका पिता अहमदनगर में एक वेश्या के पास जाता था, उसी वेश्या से चाँद मियाँ पैदा हुआ। इसको इसके पिता ने दस वर्ष की उम्र में पहले हिन्दू मुहल्लों में हरी चादर घुमा कर पैसा कमाने का काम सौंपा, जिससे यह आसानी से धनी घरों की रेकी कर उन्हें चिन्हित कर लेता था, तथा बाद में उसका पिता अपने लुटेरे साथियों के साथ लूट कर उन घरों के निवासियों को क्रूरता से मार देता था।

अंग्रेजों ने चाँद मियाँ को गिरफ्तार कर लिया और वह 8-10 साल तक जेल में रहा। उसको छुड़ाने की जब सारी कोशिशें बेकार हो गयीं तो थक हार कर बहरुद्दीन अंग्रेजों के साथ मिल गया और अंग्रेजों के लिए जासूसी करना स्वीकार कर लिया। अंग्रेजों ने उसको कहा कि, "हमें झाँसी चाहिए"। तो वो अपने सिपाहियों सहित जाकर किसी तरह झाँसी की सेना में शामिल हो गया। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए झाँसी को भी सेना चाहिए ही थी, इसलिए यह धोखा देना कतिपय आसान रहा। फिर जब अंग्रेजों ने लक्ष्मीबाई पर आक्रमण किया तब इन पिंडारियों ने रात में चुपके से किले का द्वार खोल दिया, जिससे अंग्रेजी सेना आसानी से किले में घुस गई और रानी को किला छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। बाद में अंग्रेजों द्वारा पीछा करने में 5 पिंडारी सैनिक भी अंग्रेजों के साथ थे।

उसके बाद बहरुद्दीन मर गया। कैसे और कब मरा यह मुझे ज्ञात नहीं है। 

लेकिन फिर चाँद मियाँ को अंग्रेजों ने बालगंगाधर तिलक के स्वराज अभियान में शामिल होकर जासूसी करने को कहा। तिलक पहचान गए उसको, और वहीं बम्बई की सड़कों पर इसको पटक पटक कर अपने जूतों से पीटा था। उसके बाद वह वहाँ से भागा और शिरडी गाँव पहुँच गया। वह संत ज्ञानेश्वर की पवित्र भूमि थी, जनता बहुत भोली तथा धार्मिक थी। वहाँ इसने फ़कीर का चोला पहना और साईं बन गया।

आगे की कहानी, खुद साईं ट्रस्ट द्वारा लिखी हुई "साईं सच्चरित" नामक पुस्तक से, ( इन्टरनेट में उपलब्ध है-)

-साईं ने यह कभी नहीं कहा कि "सबका मालिक एक"। साईं सच्चरित्र के अध्याय 4, 5, 7 में इस बात का उल्लेख है कि वो जीवनभर सिर्फ "अल्लाह मालिक है" यही बोलता रहा। कुछ लोगों ने उसको हिन्दू संत बनाने के लिए यह झूठ प्रचारित किया कि वे "सबका मालिक एक है" भी बोलते थे।

-कोई हिन्दू संत सिर पर कफन जैसा नहीं बांधता, ऐसा सिर्फ मुस्लिम फकीर ही बांधते हैं। जो पहनावा साईं का था, वह एक मुस्लिम फकीर का ही हो सकता है। हिन्दू धर्म में सिर पर सफेद कफन जैसा बांधना वर्जित है या तो पगड़ी या जटा रखी जाती है या किसी भी प्रकार से सिर पर बाल नहीं होते।

-साईं बाबा ने रहने के लिए मस्जिद का ही चयन क्यों किया? वहाँ और भी स्थान थे, लेकिन वह जिंदगी भर मस्जिद में ही रहा।

-मस्जिद से बर्तन मंगवाकर वह मौलवी से फातिहा पढ़ने के लिए कहता था। इसके बाद ही भोजन की शुरुआत होती थी।

-साईं का जन्म 1830 में हुआ, पर इसने आजादी की लड़ाई में भारतीयों की मदद करना जरूरी नहीं समझा, क्योंकि यह भारतीय था ही नहीं।                                                                                                1918 में मरा अगर यह देशभक्त होता तो 1811 में बंग भंग आंदोलन मे सम्मिलित होता जो बांग्लादेश 1947 मैं अलग हुआ उसे अंग्रेजों के समय में 1911 में ही अलग करने की मुहिम चल रही थी इस्लामी कट्टरपंथ की तरफ से देश के बड़े से बड़े क्रांतिकारी लोग भाग लिए थे जिसमें लोकमान्य तिलक वीर सावरकर आदि                                                                         साईं उर्फ चांद मोहम्मद मरने से पहले उसके हाथ में मार चोट लगने पर हाथ टूट गया तो लकड़ी की पट्टी के द्वारा हाथ पर प्लास्टर लगा था साईं सच्चरित्र बुक में इसका जिक्र है इतना बड़ा तांत्रिक विद्या इसके पास थी तो ठीक क्यों नहीं कर लिया

-"साईं भक्त साठे ने शिवरात्रि के अवसर पर बाबा से पूछा कि वे बाबा की पूजा महादेव या शिव की तरह कर सकते हैं? तो बाबा ने साफ इंकार कर दिया, क्योंकि वे मस्जिद में किसी भी तरह के हिन्दू तौर-तरीके का विरोध करते थे। फिर भी साठे साहेब और मेघा रात में फूल, बेलपत्र, चंदन लेकर मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठकर चुपचाप पूजा करने लगे। तब तात्या पाटिल ने उन्हें देखा तो पूजा करने के लिए मना किया। उसी वक्त साईं की नींद खुल गई और उन्होंने जोर-जोर से चिल्लाना और गालियां देना शुरू कर दिया।" फिर भी  मूर्ख हिन्दू उसके पहनावे से भ्रमित होते रहे।

-वह बाजार से खाद्य सामग्री में आटा, दाल, चावल, मिर्च, मसाला, मटन आदि सब मंगाता था। भिक्षा मांगना तो उसका ढोंग था। इसके पास घोड़ा भी था। शिर्डी के अमीर हिन्दुओं ने उसके लिए सभी तरह की सुविधाएं जुटा दी थीं।

-साईं अपने शिष्य मेघा की ओर देखकर कहने लगा, 'तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैं बस निम्न जाति का यवन (मुसलमान) इसलिए तुम्हारी जाति भ्रष्ट हो जाएगी इसलिए तुम यहां से बाहर निकलो। -साई सच्चरित्र।-(अध्याय 28)

-एक एकादशी को उसने पैसे देकर केलकर (ब्राह्मण) को मांस खरीद लाने को कहा और उस साईं ने उसी भक्त तथा ब्राह्मण केलकर को बलपूर्वक बिरयानी चखने को कहा।। -साईं सच्चरित्र (अध्याय 38)

-साईं सच्चरित्र अनुसार साईं जब गुस्से में आता था तब अपने ही भक्तों को गन्दी गन्दी गालियाँ बकता था। ज्यादा क्रोधित होने पर वह अपने भक्तों को पीट भी देता था। कभी पत्‍थर और कभी गालियां। -पढ़ें 6, 10, 23 और 41 साईं सच्चरित्र अध्याय।

-इसने स्वयं कभी उपवास नहीं किया और न ही किसी को करने दिया। साईं सच्चरित्र (अध्याय 32)

"मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैं तो एक फकीर हूं, मुझे गंगाजल से क्या प्रयोजन?"- साई सच्चरित्र (अध्याय 28)
______________________________

साईं को भगवान् बनाने का यह सारा प्रपंच शुरू होता है 1971 के पहले खुर्द क़ब्र मज़ार होता था उसे पक्का करके समाधि बनाया गया मार्केटिंग शुरू किया 1977 में आई महानालायक की फिल्म "अमर अकबर एंथोनी" के गाने "शिरडी वाले साईं बाबा" से। जरा सोचिये कि फिल्म के केवल एक गीत ने पूरे भारत की मानसिकता पर क्या असर डाला! उसके पहले कहीं किसी पुस्तक, धर्म, शास्त्र आदि में इसका कहीं भी विवरण आया? हाँ, पर्चे में विवरण अवश्य आया कि साईं के नाम का 100 पर्चा छपवाओ, नहीं तो बहुत नुकसान होगा, और कुछ डरपोक हिन्दुओं ने छपवा डाला।

"मार्केट में कोई नया भगवान नहीं आया है बहुत समय से" क्या आपको फिल्म OMG का वह डायलॉग याद है?

हम आप "बस एक मनोरंजक फिल्म ही तो है" कहकर हँस देते हैं, लेकिन देखिये कि हमारी जड़ों में मट्ठा किस तरह चुपके से डाल दिया जाता है। आप में थोड़ी बहुत अभी चेतना बाकी है, तो आप बच जायेंगे लेकिन आपकी जो नई पीढ़ी आ रही है, उसको कैसे बचायेंगे?

जरा सोचिये, कि जिस साईं को हिन्दू मुसलमान एकता के नाम पर प्रायोजित किया जाता है, उस ट्रस्ट में सबसे ज्यादा पैसा किसका जा रहा है..? 99 प्रतिशत हिन्दुओं का। दुनिया भर के हिन्दू संस्थानों ने राम मंदिर के लिए चंदा दिया, लेकिन भारत के सर्वाधिक अमीर ट्रस्टों में शुमार इस शिरडी संस्थान ने " राम मंदिर" के लिए एक फूटी कौड़ी भी देने से इनकार कर दिया है। और आप इसको साईं राम, साईं कृष्ण, साईं शिव बनाकर पूज रहे हैं? इसको आरम्भ में प्रायोजित करने का सारा फंड इंडोनेशिया मुस्लिम जैसे देशों से आया है। अब जब इसकी चाँदी ही चाँदी है तो सोचिये कि सारा पैसा कहाँ जा रहा है और किसलिए खर्च किया जा रहा होगा।

आज कुछ लालची पुजारियों को खरीद कर हिन्दू मंदिरों में अन्य देवी देवताओं के साथ साईं की मूर्ति भी बिठवा दी जा रही है। शुरुआत होती है कोने में छोटी मूर्ति बिठाने से, और फिर धीरे धीरे यह मूर्ति बड़ी होती जाती है तथा हमारे आराध्य हनुमान जी इस मूर्ति के चरणों में हाथ जोड़े बिठा दिए जाते हैं।

क्या आपने किसी भी जैन, बौद्ध सिख आदि के मठों में इसकी मूर्ति देखी? आपने गिरजाघरों या मस्जिदों में इसका एक कैलेंडर तक टंगे देखा? कोई मुसलमान यदि साईं नाम का उपयोग भी करता है, तो वह बस हिन्दुओं को मूर्ख बनाकर चंदे के रूप में ठगने के लिए।

"साईं को मानने वालों में सर्वाधिक प्रतिशत पढ़े लिखे लोगों का है, जो अपने आपको तार्किक और आधुनिक समझते हैं। ये वही धिम्मी, कायर, तथा मूर्ख हिन्दू हैं जो मक्कारों के बहकावे "सबका मालिक एक है" में आकर अपने ही देवी-देवताओं, त्यौहारों, प्रतीकों का तो उपहास उड़ाते हैं, उसमें इन्हें जड़ता तथा अन्धविश्वास की बू आती है, लेकिन इस मांसाहारी व्यभिचारी साईं के लिए इनका सर श्रद्धा से झुक जाता है। मन्दिरों की दान पेटिका में एक सिक्का डालने पर भी इनका कलेजा धधकने लगता है और सारे पुजारी धन के लोभी लगने लगते हैं। लेकिन साईं ट्रस्ट के लिए हज़ारों रुपये की चैरिटी करने में इन्हें रत्ती भर भी परेशानी नहीं होती।

वैसे लाख आप साईं को दोषी मान लें, इसे भारत में प्रतिष्ठित कराने में बाहरी षड़यन्त्रकारियों को गरिया लें, लेकिन इन सबसे भी अधिक घृणा के पात्र यही "दोहरे, कायर,  हिन्दू" हैं, जिन्होंने अपनी मूर्खता  से अपने ही धर्म की जड़ें खोदने का दुस्साहस किया है।" मांसाहारी, व्यभिचारी, मदिरापान करने वाला इनका भगवान्! "ऐसे म्लेच्छ को अपने देवालयों में स्थापित करने का महापाप किया है इन मूर्ख हिन्दुओं ने, जिसका प्रायश्चित शायद ही हो पाएगा।

चलते चलते,... गीता के नवें अध्याय के 25वें श्लोक में प्रभु कृष्ण कहतें हैं....

यान्ति देवव्रता देवान्, पितृन्यान्ति पितृव्रता:।
भूतानि यान्ति भूतेज्या, यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।।

(देवताओं को पूजने वाले देवताओ को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं, और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। इसीलिये मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता।)
 "जय हिंद..!!"

function disabled

Old Post from Sanwariya