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शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

श्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार - वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि


भारतवर्ष में रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा पुरातन काल से चली आ रही है।
यह सिर्फ भाई बहन का ही त्योहार नही जो बल्कि जो जिससे रक्षा अपेक्षा या याचना अपेक्षा रखता उसे रक्षा सूत्र बांध सकता है। अपने आराध्य को भी रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा है ।
सर्वप्रथम इंद्र की पत्नी सचि (इंद्राणी) ने युद्ध में विजय की कामना से इंद्र को रक्षा सूत्र बांधा था। अनन्तर भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था। गुरु शुक्राचार्य के रोकने के पर भी दान धर्म लिए दृढ़ राजा बलि ने भगवन वामन को वचन दिया और  अटलता लिए रक्षा सूत्रबाँधा।
 इसी तरह कथा में विष्णु को सुतल से लाने लक्ष्मी ने बलि को रक्षा सूत्र बांध वर में भगवान विष्णु को पुनः प्राप्त किया ।

प्राचीन काल में रक्षा बंधन भाई बहन का त्योहार था ही नही शास्त्रो में इसका कोई मन्त्र कथा नही है ।  मुगल काल मे जेहादी तालिबान से अपनी बहनों की रक्षा लिए यह प्रथा प्राम्भ हुई ।

 रक्षा सूत्र बांधने का जो प्रचलित मंत्र है उसमें भी इसी घटना का उल्लेख है। आइए जानते हैं क्या है रक्षा सूत्र बांधने का मंत्र…

प्राचीन समय में पुरोहित अपने यजमान के कल्याण हेतु उसके दाहिने हाथ में एक पवित्र धागा (सूत्र) बांधते थे जिसे रक्षा सूत्र कहा जाता था। युद्ध से पूर्व रक्षासूत्र रूप में एक राजा अन्य राजा को भी रक्षा सूत्र और पाती भेजते थे जो कि हाथ मे बांध युद्ध में साथ देने लिए आते। यह एक दुसरे की रक्षा भाव की समृद्ध परंपरा आज भी उसी रूप में चली आ रही है। पुरोहित और यजमान भी एक दूजे को रक्षा सूत्र बांध सकते है ।
गुरु-शिष्य और मित्र के द्वारा भी अपने शिष्य व मित्र को रक्षा सूत्र बाँधने की परंपरा है। संघ की शाखाओ में स्मययं सेवक परम् गुरु स्वरूप ध्वज को और सहसंघी स्वयं सेवक स्वयं सेवको को रक्षा सूत्र बांधते है। इसी तरह
अपने ईष्ट को भी रक्षा सूत्र का महत्व है। कई जगह पुजारी व पुरुष भी दुर्गा देवी के रूप को रक्षा सूत्र बांधते है। मन्दिरो में अपने आराध्य को भी रक्षा सुत्र बंधने की परंपरा चली आ रही है।

रक्षा सूत्र बांधने का मंत्र
रक्षा सूत्र बाँधते समय पुरोहित एक विशेष मंत्र का उच्चारण करते हैं जो इस प्रकार है-
 
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
 
रक्षा सूत्र के इस पवित्र मंत्र का अर्थ
दानवीर, महाबली राजा बलि जिस (रक्षा सूत्र) से बंध गए थे उसी से मैं तुम्हें भी बाँधता हूँ। फिर रक्षा सूत्र को संबोधित करते हुए- हे रक्षा! तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना।
 
अर्थात् जिस प्रकार भगवान वामन ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था उसी प्रकार मैं तुम्हें भी इस रक्षासूत्र रूपी धर्म-बंधन में बाँधता हूँ। हे रक्षा! तुम स्थिर रहो।
 
सारत: इस मंत्र का भाव यही है कि जिस व्यक्ति को रक्षा सूत्र बाँधा जा रहा है वह अपने धर्म में स्थिर रहे और दैवी शक्तियाँ उसकी रक्षा करें।
 
रक्षाबंधन के अवसर पर बहनें अपने भाई की कलाई में रक्षासूत्र (राखी) बांधती हैं। समान्यतः ऐसा माना जाता है कि भाई को रक्षासूत्र बांधकर बहनें अपनी रक्षा का वचन लेती हैं।
यह बात तो निश्चय ही सत्य है किंतु इसके साथ हम रक्षासूत्र के इतिहास पर दृष्टि डालें तो रक्षाबंधन का एक उद्देश्य यह भी ज्ञात होता है कि बहन रक्षा सूत्र बाँधकर भाई को कर्त्तव्यपालन की याद दिलाती हैं तथा उसके सुख, शांति, दीर्घायु व कल्याण की कामना करती हैं।
 
गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी में भी रक्षाबंधन का प्रचलन अनेक स्थानों पर है। पत्नी अपने पति के हाथ में रक्षा सूत्र बाँधकर उनके धर्मपथ पर चलने की कामना करती है और पति अपने गर्हस्थ के सम्यक् निर्वहन का वचन देता है।
पुराण शास्त्रो में
सर्वप्रथम इंद्र की पत्नी सचि (इंद्राणी) ने युद्ध में विजय की कामना से इंद्र को रक्षा सूत्र बांधा था।
भागवत, देवी भावत, भविष्य पुराण आदि में इस सम्बंध में कथा है कि
12 वर्ष तक देव दानव युद्ध चलता रहा लेकिन देवता विजयी नही हो रहे थे । हार के डर से घबराए इंद्र पहुंचे देवगुरु बृहस्पति से सलाह लेने। तब गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधिविधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किरे और देव राज इंद्र को रक्षा सूत्र बांध दिए।
इंद्राणी शचि ने जिस दिन इंद्र की कलाई में रक्षासूत्र बांधा था उस दिन श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि थी। इसके बाद देवराज इंद्र ने वृत्रासुर का वध कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। इस पौराणिक कथा के अनुसार, एक पत्नी अपने सुहाग की रक्षा के लिए श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के दिन अपने पति की कलाई में रक्षासूत्र बांध सकती है।

इसीतरह वामन अवतार और राजा बलि की कथा है
भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था। गुरु शुक्राचार्य के रोकने  पर भी दान धर्म लिए दृढ़ राजा बलि ने भगवन वामन को वचन दिया और  अटलता लिए रक्षा सूत्रबाँधा।
भगवान वामन ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहां रखे, इस बात को लेकर बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। अगर वह अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होता। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के सामने कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया।
पैर रखते ही बलि सुतल लोक में पहुंच गया। बलि की उदारता से भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे सुतल लोक का राज्य प्रदान किया। बलि ने वर मांगा कि भगवान विष्णु उसके द्वारपाल बनें। तब भगवान को उसे यह वर भी प्रदान करना पड़ा। पर इससे लक्ष्मीजी संकट में आ गईं। वे चिंता में पड़ गईं कि अगर स्वामी सुतल लोक में द्वारपाल बन कर रहेंगे तब बैकुंठ लोक का क्या होगा?
तब देवर्षि नारद ने उपाय बताया कि बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध दो और उससे भाई बना कर भगवान विष्णु को वरदान में वापस ले लेवे। लक्ष्मीजी ने ऐसा ही किया। उन्होंने बलि की कलाई पर राखी (रक्षासूत्र) बांधी। बलि ने लक्ष्मीजी से वर मांगने को कहा। तब उन्होंने अपने विष्णु को मांग लिया। रक्षासूत्र से देवी लक्ष्मी को अपने स्वामी पुन: मिल गए।
 
रक्षासूत्र (कलावा) पुरुषों के दाहिने हाथ में, महिलाओं के बाएँ हाथ में तथा अविवाहित बालिकाओं के भी दाहिने हाथ में बांधने का विधान है। कहीं-कहीं इसे गले और कमर में बाँधने की परंपरा है।
रक्षा सूत्र लिए किसी विशेष राखी का भी प्रावधान नही है । एक सुत का धागा भी काफी है किंतु भाव पूर्ण हो । सूती धागे की बनी मोली भी उत्तम मानी गई है।
 
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत्।
स सर्वदोष रहित सुखी सम्वत्सरे भवेत्॥
अर्थात् जो लोग इस प्रकार विधिपूर्वक रक्षाबंधन का आयोजन करते हैं वे संवत्सर पर्यन्त सभी दोषों से रहित होकर सुखी होते हैं।
 
इस वर्ष 2021 का रक्षाबन्धन रविवार 22 अगस्त को है

जैसा की आप सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म के अनुसार  प्रतिवर्ष श्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार होता है, इस बार 22 अगस्त 2021 रविवार के दिन है। इस दिन बहनें अपने भाई को रक्षा-सूत्र बांधती हैं । यदि यह रक्षा सूत्र यदि वैदिक रीति से बनाई जाए तो शास्त्रों में उसका बड़ा महत्व है ।
आइए हम आपको बताते हैं वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि ।
वैदिक रक्षा सूत्र बनाने के लिए ५ वस्तुओं की आवश्यकता होती है -
(१) दूर्वा (घास) 
(२) अक्षत (चावल) 
(३) केसर 
(४) चन्दन 
(५) सरसों के दाने ।

इन ५ वस्तुओं को रेशम के कपड़े में लेकर उसे बांध दें या सिलाई कर दें, फिर उसे कलावा में पिरो दें, इस प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी ।

अब आप सभी के मन में यह प्रश्न स्वभाविक है कि इन पांच वस्तुओं का महत्त्व क्या है। 

आइए जानते हैं एक एक सामग्री की विशेषता से। 

(१) दूर्वा - जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेज़ी से फैलता है और हज़ारों की संख्या में उग जाता है, उसी प्रकार मेरे भाई का वंश और उसमे सदगुणों का विकास तेज़ी से हो । सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बढ़ता जाए । दूर्वा गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में विघ्नों का नाश हो जाए।

(२) अक्षत - हमारी गुरुदेव के प्रति श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत ना हो सदा अक्षत रहे ।

(३) केसर - केसर की प्रकृति तेज़ होती है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, वह तेजस्वी हो । उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो।

(४) चन्दन - चन्दन की प्रकृति तेज होती है और यह सुगंध देता है । उसी प्रकार उनके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो । साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे ।

(५) सरसों के दाने - सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है अर्थात इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें ।
इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम गुरुदेव के श्री-चित्र पर अर्पित करें । फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे ।

महाभारत में यह रक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बाँधी थी । माना जाता है कि जबतक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकी रक्षा हुई, धागा टूटने पर अभिमन्यु की मृत्यु हुई ।
जो भी बंधुजन इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं वे सभी जन  पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्ष भर सुखी रहते हैं ।

रक्षा सूत्र बांधते समय ये श्लोक बोलें।
 येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वाम रक्ष बध्नामि, रक्षे माचल माचल: ।

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🚩जय श्रीहरि 🚩

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