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मंगलवार, 3 मई 2022

बेडशीट अगर आप इतने दिनों में बदलते हैं तो हो जाएं सावधान

बेडशीट अगर आप इतने दिनों में बदलते हैं तो हो जाएं सावधान

किसी को अपनी बेडशीट कितने दिनों पर बदलनी या धोनी चाहिए? इस सवाल को कई लोग बचकाना मान सकते हैं. कई लोग यह भी कह सकते हैं कि इस विषय पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं होनी चाहिए.

लेकिन यह एक ऐसा विषय है जो हर इंसान को प्रभावित करता है. हाल में ब्रिटेन के 2,250 वयस्क लोगों के बीच किए गए एक सर्वेक्षण में पता चला कि इस पर लोगों की एक राय नहीं है.

दिलचस्प बात मालूम चली कि लगभग आधे अविवाहित पुरुषों ने बताया कि वे क़रीब चार महीने तक अपनी बेडशीट नहीं धोते.

वहीं 12 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि वे इसे तभी धोते हैं जब उन्हें इस पर ध्यान जाता है. इन मामलों में समय का यह अंतराल और भी लंबा हो सकता है.

बेडशीट बदलना ज़रूरी क्यों?
एक कंपनी के अनुसार, अकेले रहने वाली महिलाएं ज़्यादा बार बेडशीट बदलती हैं. उसके आँकड़ों के अनुसार, 62 फ़ीसदी ऐसी महिलाएं हर दो हफ़्ते में अपनी बेडशीट धोती हैं. वहीं दंपतियों के मामले में यह अंतराल तीन हफ़्तों का होता है.

डॉ ब्राउनिंग के अनुसार, हमें एक या दो सप्ताह में अपनी बेडशीट बदल लेनी चाहिए. साफ़ सफ़ाई इसकी मुख्य वजह है. हर इंसान के शरीर से पसीना निकलता है, जो बेडशीट पर लगता है. गर्मी में जब आप सोते हैं तो शरीर से निकलने वाले पसीने से बेडशीट भींग सकती है.

डॉ ब्राउनिंग बताती हैं कि पसीना बेडशीट में जब जाता है, तो उससे बदबू निकलती है. वो कहती हैं कि अच्छी नींद के लिए सोते समय हमें ठंडक महसूस होनी चाहिए, जिसके लिए हवा की ज़रूरत होती है. नींद के दौरान हमारे शरीर से केवल पसीना ही नहीं बल्कि हमारी त्वचा की मरी हुई कोशिकाएं भी मुक्त होती हैं, जिसके बारे में हमें सोचना चाहिए.

वे कहती हैं, "यदि आप अपनी बेडशीट को बार बार नहीं धोते, तो आपकी मरी हुई कोशिकाएं बेडशीट में विकसित होती हैं."

सुनने में भले डरावना लगे लेकिन असलियत इससे भी ख़राब हो सकती है. घुन जैसे कुछ छोटे जीव उन मरी हुई कोशिकाओं को खा सकते हैं. उससे हमें परेशानी हो सकती है और हमारी त्वचा पर चकत्ते उभर सकते हैं.

वे कहते हैं, "आप न केवल पसीने और चमड़ी की मरी हुए कोशिकाएं बल्कि घुन के साथ भी सो रहे होंगे."


क्या मौसम मायने रखता है?

डॉ ब्राउनिंग कहती हैं, "सर्दियों में हम थोड़ी छूट ले सकते हैं, लेकिन सप्ताह में एक बार बदलना आदर्श स्थिति होगी.''

यदि बेडशीट बदलने में आप दो हफ़्ते से ज़्यादा का वक़्त ले रहे हैं तो फिर दिक़्क़त है.

वे कहती हैं कि सर्दियों में भले हमारे शरीर से कम पसीना बहता है, लेकिन उस वक़्त भी मरी हुई त्वचा कोशिकाएं मुक्त हो रही होती हैं.

सर्वेक्षण में, शामिल 18 प्रतिशत लोगों ने बताया कि वे बेडशीट देर से इसलिए बदलते हैं कि सोने से पहले वे नहाते हैं, ताकि बेडशीट गंदी न हों.

डॉ ब्राउनिंग कहती हैं कि गर्मी के दिनों में हवा में धूल कण और फूलों के पराग कण भी​ फैले होते हैं.

वे कहती हैं कि वास्तव में नियमित तौर पर बेडशीट धोना बेहद अहम है, क्योंकि उससे एलर्जी भी हो सकती है. इससे हमें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

पिज़ुना लिनेन के इस सर्वे में शामिल 67 प्रतिशत लोगों ने याद न रहने को बेडशीट न बदलने की वजह बताई. वहीं 35 प्रतिशत लोगों ने लापरवाही और 22 प्रतिशत ने कोई दूसरा साफ़-सुथरा बेडशीट न मिलने को इसका कारण बताया.

वहीं 38 प्रतिशत का कहना था कि वे नहीं मानते कि बेडशीट को बार बार धोने की ज़रूरत नहीं होती है.

डॉ ब्राउनिंग का कहना है कि नींद के लिए हमारा बेडरूम "अभयारण्य" होना चाहिए. वो जगह ऐसी हो जो "अद्भुत और आरामदायक हो, जहां हम ख़ुश महसूस कर सकें."

उनके पास ऐसे मरीज़ भी आते हैं, जिन्हें नींद न आने की बीमारी होती है. वे कहती हैं, "यदि आपकी बेडशीट नियमित तौर पर नहीं धोयी जाती, वे गंदी दिखे और उसमें से बदबू निकले, तो आपकी वो धारणा मजबूत हो सकती है कि आप अपने बेड पर नहीं रहना चाहते."

वे कहती हैं, "य​दि हम बेड पर लेटें तो हमें शांति, आराम और ख़ुशी मिलना चाहिए. साफ़ बेडशीट की गंध हमें शांत और ख़ुश होने में मदद मिलती है."

सोमवार, 2 मई 2022

समारोहों, जन्मदिनों आदि के दौरान रिटर्न गिफ्ट के रूप में पौधे वितरित करें।

कुछ भारतीय शहरों में अधिकतम तापमान दर्ज किया गया: 
लखनऊ 47 डिग्र
 दिल्ली 47 डिग्री 
आगरा 45 डिग्री 
नागपुर 49 डिग्री 
कोटा 48 डिग्री
 हैदराबाद 45 डिग्री 
पुणे 42 डिग्री 
अहमदाबाद 46 डिग्री 
☀मुंबई 42 डिग्री 
☀ नासिक 40 डिग्री 
बैंगलोर 40 डिग्री 
☀ चेन्नई 45 डिग्री 
राजकोट 45 डिग्री 

अगले साल ये शहर 50 डिग्री को पार कर जाएंगे। गर्मी में एसी या पंखा भी नहीं बचाएगा.. इतनी गर्मी क्यों है??? पिछले 10 वर्षों में सड़कों और राजमार्गों को चौड़ा करने के लिए 10 करोड़ से अधिक पेड़ काटे गए। लेकिन सरकार द्वारा एक लाख से अधिक पेड़ नहीं लगाए गए हैं। या सार्वजनिक। भारत को कूल कैसे बनाये ??? कृपया पेड़ लगाने के लिए सरकार की प्रतीक्षा न करें। बीज बोने या पेड़ लगाने में ज्यादा खर्च नहीं आता है। बस शतावरी, बेल, पीपल, तुलसी, आम, नींबू, जामुन, नीम, कस्टर्ड सेब, कटहल आदि के बीज एकत्र करें। फिर खुली जगह, सड़क किनारे, फुटपाथ, हाईवे, बगीचों और अपनी सोसायटी या बंगले में भी दो-तीन इंच का गड्ढा खोदें। इन बीजों को प्रत्येक छेद में मिट्टी के साथ गाड़ दें और फिर गर्मियों में हर दो दिन में पानी दें। बरसात के मौसम में उन्हें पानी देने की जरूरत नहीं होती है। 15 से 30 दिनों के बाद छोटे पौधे पैदा होंगे। आइए हम इसे एक राष्ट्रीय आंदोलन बनाएं और पूरे भारत में 10 करोड़ पेड़ लगाएं। हमें तापमान को 50 डिग्री के पार जाने से रोकना चाहिए..... कृपया अधिक से अधिक पेड़ लगाएं और इस संदेश को सभी तक पहुंचाएं। आइए समारोहों, जन्मदिनों आदि के दौरान रिटर्न गिफ्ट के रूप में पौधे वितरित करें। *- 
*1 व्हाट्सएप व्यक्ति - 1 पौधा -* हम आसानी से 10 करोड़ पौधों तक पहुंच जाएंगे।

अक्षय तृतीया को हुआ था मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण

" अक्षय तृतीया को हुआ था मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण " 

अक्षय तृतीया 03 मई दिन मंगलवार को मनाई जाएगी।अक्षय तृतीया का महत्व मां गंगा से भी जुड़ा है । धार्मिक शास्त्रों में यह मान्यता है कि इस तिथि को ही मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। अक्षय तृतीया से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं हैं। इस दिन अबूझ मुहूर्त होता है, इसलिए आप इस दिन किसी भी समय कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं। इस दिन भगवान नर-नारायण सहित परशुराम और हय ग्रीव का अवतार हुआ था। इसके अलावा, ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी इसी दिन हुआ था। बद्रीनारायण के कपाट भी इसी दिन खुलते हैं। मां गंगा का अवतरण भी इसी दिन हुआ था। इसी दिन सतयुग और त्रैतायुग का प्रारंभ हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ। अक्षय तृतीया के दिन से ही वेद व्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ लिखना शुरू किया था। इसी दिन महाभारत की लड़ाई खत्म हुई। सुदामा भगवान कृष्ण से मिलने पहुंचे थे। अक्षय तृतीया (अखातीज) को अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक कहा जाता है। जो कभी क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं।
 अक्षय तृतीया का अर्थ है वह तृती​या तिथि जिसका क्षय न हो। इस दिन प्राप्त किए गए पुण्य और फल का क्षय नहीं होता है, वह कभी नष्ट नहीं होता है । 

अक्षय तृतीया का महत्व मां गंगा से भी जुड़ा है। इस तिथि को ही मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं।  पौराणिक कथा के अनुसार, कपिल मुनि के श्राप से महाराज सगर के 60 हजार पुत्र भस्म हो गए थे। उन लोगों ने कपिल मुनि पर यज्ञ का घोड़ा चोरी करने का आरोप लगाया था । अब समस्या यह थी कि महाराज सगर के उन सभी पुत्रों का उद्धार कैसे हो? तब महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने उनके उद्धार के लिए कठिन तपस्या करके ब्रह्म देव को प्रसन्न किया। ब्रह्म देव ने भगीरथ से वरदान मांगने के लिए कहा, तो उन्होंने मां गंगा को पृथ्वी पर लाने की बात कही । तब ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि गंगा का वेग अधिक है, क्या पृथ्वी उसके वेग और भार को सहन कर सकती हैं? उनके वेग और भार को स​हन करने की क्षमता सिर्फ भगवान शिव में है । तुम भगवान शिव को इसके लिए प्रसन्न करो।

ब्रह्म देव की आज्ञा पाकर भगीरथ ने अपने कठोर तप से भगवान शिव को प्रसन्न कर दिया और उनसे अपनी जटाओं में मां गंगा को अवतरित होने का वरदान मांगा। भगवान शिव मान गए। ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से गंगा को शिव जी की जटाओं में छोड़ दिया। तब भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में बांध लिया, लेकिन गंगा जटाओं से बाहर नहीं निकल पाईं।

तब भगीरथ ने फिर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया और शिव जी को प्रसन्न करके गंगा को पृथ्वी पर अवतरित करने का वरदान प्राप्त किया। इसके बाद ही मां गंगा शंकर जी की जटाओं से होते हुए पृथ्वी पर अवतरित हुईं और महाराज सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ।

आइए हम सभी संकल्प लें कि सनातनी संस्कृति की संवाहिका मां गंगा का संरक्षण करेंगे । गंगा को मैला नहीं होने देंगे । 

भगवान परशुरामजी वैशाख शुक्ल तृतीया/ प्रकटोत्सव

************ *भगवान परशुरामजी* ************
           *(वैशाख शुक्ल तृतीया/ प्रकटोत्सव)*
                  भगवान परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के यहां जन्मे थे। जो भगवान विष्णु के छठा अवतार हैं। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश के इंदौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में हुआ। 
                   वे भगवान विष्णु के आवेशावतार हैं। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम कहलाए। वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शार्ङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ।
                   तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।
                 वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होनें कर्ण को श्राप भी दिया था। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त *शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र* भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है- *ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नः परशुराम: प्रचोदयात्।* वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। 
                  उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है। भगवान परशुराम जी को चिरंजीवी होने का वरदान भी प्राप्त है।
                  परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। वे अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार करने के लिए प्रसिद्ध हैं। वे धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे। कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये। जिस मे कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है। 
                  पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तिर चला कर गुजरात से लेकर केरला तक समुद्र को पिछे धकेल ते हुए नई भूमि का निर्माण किया। और इसी कारण कोंकण, गोवा और केरला मे भगवान परशुराम वंदनीय है। वे भार्गव गोत्र की सबसे आज्ञाकारी सन्तानों में से एक थे, जो सदैव अपने गुरुजनों और माता पिता की आज्ञा का पालन करते थे। वे सदा बड़ों का सम्मान करते थे और कभी भी उनकी अवहेलना नहीं करते थे। 
                  उनका भाव इस जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवन्त बनाये रखना था। वे चाहते थे कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियों, वृक्षों, फल फूल औए समूची प्रकृति के लिए जीवन्त रहे। उनका कहना था कि राजा का धर्म वैदिक जीवन का प्रसार करना है नाकि अपनी प्रजा से आज्ञापालन करवाना। वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्में अवश्य थे लेकिन कर्म से एक क्षत्रिय थे। उन्हें भार्गव के नाम से भी जाना जाता है।
                  यह भी ज्ञात है कि परशुराम ने अधिकांश विद्याएँ अपनी बाल्यावस्था में ही अपनी माता की शिक्षाओं से सीख ली थीँ (वह शिक्षा जो 8 वर्ष से कम आयु वाले बालको को दी जाती है)। वे पशु-पक्षियों तक की भाषा समझते थे और उनसे बात कर सकते थे। यहाँ तक कि कई खूँख्वार वनैले पशु भी उनके स्पर्श मात्र से ही उनके मित्र बन जाते थे।
                  उन्होंने सैन्यशिक्षा केवल ब्राह्मणों को ही दी। लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हैं जैसे भीष्म, कर्ण *गुरु द्रोण*, कौरव-पाण्डवों के गुरु व अश्वत्थामा के पिता।
                  कर्ण को यह ज्ञात नहीं था कि वह जन्म से क्षत्रिय है। वह सदैव ही स्वयं को शुद्र समझता रहा लेकिन उसका सामर्थ्य छुपा न रह सका। उन्होंने परशु राम को यह बात नहीं बताई की वह शुद्र वर्ण के है। और भगवान परशुराम से शिक्षा प्राप्त कर ली। 
                     किन्तु जब परशुराम को इसका ज्ञान हुआ तो उन्होंने कर्ण को यह श्राप दिया की उनका सिखाया हुआ सारा ज्ञान उसके किसी काम नहीं आएगा जब उसे उसकी सर्वाधिक आवश्यकता होगी। इसलिए जब कुरुक्षेत्र के युद्ध में कर्ण और अर्जुन आमने सामने होते है तब वह अर्जुन द्वारा मार दिया जाता है क्योंकि उस समय कर्ण को ब्रह्मास्त्र चलाने का ज्ञान ध्यान में ही नहीं रहा।

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