" अक्षय तृतीया को हुआ था मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण "
अक्षय तृतीया 03 मई दिन मंगलवार को मनाई जाएगी।अक्षय तृतीया का महत्व मां गंगा से भी जुड़ा है । धार्मिक शास्त्रों में यह मान्यता है कि इस तिथि को ही मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। अक्षय तृतीया से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं हैं। इस दिन अबूझ मुहूर्त होता है, इसलिए आप इस दिन किसी भी समय कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं। इस दिन भगवान नर-नारायण सहित परशुराम और हय ग्रीव का अवतार हुआ था। इसके अलावा, ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी इसी दिन हुआ था। बद्रीनारायण के कपाट भी इसी दिन खुलते हैं। मां गंगा का अवतरण भी इसी दिन हुआ था। इसी दिन सतयुग और त्रैतायुग का प्रारंभ हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ। अक्षय तृतीया के दिन से ही वेद व्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ लिखना शुरू किया था। इसी दिन महाभारत की लड़ाई खत्म हुई। सुदामा भगवान कृष्ण से मिलने पहुंचे थे। अक्षय तृतीया (अखातीज) को अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक कहा जाता है। जो कभी क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं।
अक्षय तृतीया का अर्थ है वह तृतीया तिथि जिसका क्षय न हो। इस दिन प्राप्त किए गए पुण्य और फल का क्षय नहीं होता है, वह कभी नष्ट नहीं होता है ।
अक्षय तृतीया का महत्व मां गंगा से भी जुड़ा है। इस तिथि को ही मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। पौराणिक कथा के अनुसार, कपिल मुनि के श्राप से महाराज सगर के 60 हजार पुत्र भस्म हो गए थे। उन लोगों ने कपिल मुनि पर यज्ञ का घोड़ा चोरी करने का आरोप लगाया था । अब समस्या यह थी कि महाराज सगर के उन सभी पुत्रों का उद्धार कैसे हो? तब महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने उनके उद्धार के लिए कठिन तपस्या करके ब्रह्म देव को प्रसन्न किया। ब्रह्म देव ने भगीरथ से वरदान मांगने के लिए कहा, तो उन्होंने मां गंगा को पृथ्वी पर लाने की बात कही । तब ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि गंगा का वेग अधिक है, क्या पृथ्वी उसके वेग और भार को सहन कर सकती हैं? उनके वेग और भार को सहन करने की क्षमता सिर्फ भगवान शिव में है । तुम भगवान शिव को इसके लिए प्रसन्न करो।
ब्रह्म देव की आज्ञा पाकर भगीरथ ने अपने कठोर तप से भगवान शिव को प्रसन्न कर दिया और उनसे अपनी जटाओं में मां गंगा को अवतरित होने का वरदान मांगा। भगवान शिव मान गए। ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से गंगा को शिव जी की जटाओं में छोड़ दिया। तब भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में बांध लिया, लेकिन गंगा जटाओं से बाहर नहीं निकल पाईं।
तब भगीरथ ने फिर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया और शिव जी को प्रसन्न करके गंगा को पृथ्वी पर अवतरित करने का वरदान प्राप्त किया। इसके बाद ही मां गंगा शंकर जी की जटाओं से होते हुए पृथ्वी पर अवतरित हुईं और महाराज सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ।
आइए हम सभी संकल्प लें कि सनातनी संस्कृति की संवाहिका मां गंगा का संरक्षण करेंगे । गंगा को मैला नहीं होने देंगे ।
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