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शुक्रवार, 27 मई 2022

#इतिहासकीपोल_खोल - #मुगल काल के अय्याश राजकुमार शाहजहाँ

 #मुगलकालकेअय्यासराजकुमारशाहजहाँ...



इतिहासकार वी.स्मिथ ने लिखा है, ”शाहजहाँ के हरम में 8000 रखैलें थीं जो उसे उसके पिता जहाँगीर से विरासत में मिली थी। उसने बाप की सम्पत्ति को और बढ़ाया। उसने हरम की महिलाओं की व्यापक छाँट की तथा बुढ़ियाओं को भगा कर और अन्य हिन्दू परिवारों से बलात लाकर हरम को बढ़ाता ही रहा।” (अकबर दी ग्रेट मुगल: वी स्मिथ, पृष्ठ 359) कहते हैं कि उन्हीं भगायी गयी महिलाओं से दिल्ली का रेडलाइट एरिया जी.बी. रोड गुलजार हुआ था, और वहाँ इस धंधे की शुरूआत हुई थी। जबरन अगवा की हुई हिन्दू महिलाओं की यौन-गुलामी और यौन व्यापार को शाहजहाँ प्रश्रय देता था, और अक्सर अपने मंत्रियों और सम्बन्धियों को पुरस्कार स्वरूप अनेकों हिन्दू महिलाओं को उपहार में दिया करता था।


यह नर पशु, यौनाचार के प्रति इतना आकर्षित और उत्साही था, कि हिन्दू महिलाओं का मीना बाजार लगाया करता था, यहाँ तक कि अपने महल में भी। सुप्रसिद्ध यूरोपीय यात्री फ्रांकोइस बर्नियर ने इस विषय में टिप्पणी की थी कि, ”महल में बार- बार लगने वाले मीना बाजार, जहाँ अगवा कर लाई हुई सैकड़ों हिन्दू महिलाओं का, क्रय- विक्रय हुआ करता था, राज्य द्वारा बड़ी संख्या में नाचने वाली लड़कियों की व्यवस्था, और नपुसंक बनाये गये सैकड़ों लड़कों की हरमों में उपस्थिती, शाहजहाँ की अनंत वासना के समाधान के लिए ही थी। (टे्रविल्स इन दी मुगल ऐम्पायर- फ्रान्कोइस बर्नियर :पुनः लिखित वी. स्मिथ, ऑक्‍सफोर्ड, 1934) शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए, आठ हजार औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार ही कहा जाएगा। आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे कि मुमताज का नाम मुमताज महल था ही नहीं बल्कि उसका असली नाम “अर्जुमंद- बानो- बेगम” था। और तो और जिस शाहजहाँ और मुमताज के प्यार की इतनी डींगे हांकी जाती है वो शाहजहाँ की ना तो पहली पत्नी थी ना ही आखिरी।

मुमताज शाहजहाँ की सात बीबियों में चौथी थी। इसका मतलब है कि शाहजहाँ ने मुमताज से पहले 3 शादियाँ कर रखी थी और, मुमताज से शादी करने के बाद भी उसका मन नहीं भरा तथा उसके बाद भी उसने 3 शादियाँ और की यहाँ तक कि मुमताज के मरने के एक हफ्ते के अन्दर ही उसकी बहन फरजाना से शादी कर ली थी। जिसे उसने रखैल बना कर रखा था जिससे शादी करने से पहले ही शाहजहाँ को एक बेटा भी था। अगर शाहजहाँ को मुमताज से इतना ही प्यार था तो मुमताज से शादी के बाद भी शाहजहाँ ने 3 और शादियाँ क्यों की? शाहजहाँ की सातों बीबियों में सबसे सुन्दर मुमताज नहीं बल्कि इशरत बानो थी जो कि उसकी पहली पत्नी थी। शाहजहाँ से शादी करते समय मुमताज कोई कुंवारी लड़की नहीं थी बल्कि वो भी शादीशुदा थी और उसका पति शाहजहाँ की सेना में सूबेदार था जिसका नाम “शेर अफगान खान” था। शाहजहाँ ने शेर अफगान खान की हत्या कर मुमताज से शादी की थी।

गौर करने लायक बात यह भी है कि 38 वर्षीय मुमताज की मौत कोई बीमारी या एक्सीडेंट से नहीं बल्कि चौदहवें बच्चे को जन्म देने के दौरान अत्यधिक कमजोरी के कारण हुई थी। यानी शाहजहाँ ने उसे बच्चे पैदा करने की मशीन ही नहीं बल्कि फैक्ट्री बनाकर मार डाला था।शाहजहाँ कामुकता के लिए इतना कुख्यात था, की कई इतिहासकारों ने उसे उसकी अपनी सगी बेटी जहाँआरा के साथ सम्भोग करने का दोषी तक कहा है। शाहजहाँ और मुमताज महल की बड़ी बेटी जहाँआरा बिल्कुल अपनी माँ की तरह लगती थी। इसीलिए मुमताज की मृत्यु के बाद उसकी याद में शाहजहाँ ने अपनी ही बेटी जहाँआरा को भोगना शुरु कर दिया था। जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार करता था कि उसने उसका निकाह तक होने न दिया। बाप-बेटी के इस प्यार को देखकर जब महल में चर्चा शुरू हुई, तो मुल्ला-मौलवियों की एक बैठक बुलाई गयी और उन्होंने इस पाप को जायज ठहराने के लिए एक हदीस का उद्धरण दिया और कहा कि “माली को अपने द्वारा लगाये पेड़ का फल खाने का हक़ है।”

इतना ही नहीं जहाँआरा के किसी भी आशिक को वह उसके पास फटकने नहीं देता था। कहा जाता है कि एकबार जहाँआरा जब अपने एक आशिक के साथ इश्क लड़ा रही थी तो शाहजहाँ आ गया जिससे डरकर वह हरम के तंदूर में छिप गया, शाहजहाँ ने तंदूर में आग लगवा दी और उसे जिन्दा जला दिया। दरअसल अकबर ने यह नियम बना दिया था कि मुगल खानदान की बेटियों की शादी नहीं होगी। इतिहासकार इसके लिए कई कारण बताते हैं। इसका परिणाम यह होता था कि मुग़ल खानदान की लड़कियां अपने जिस्मानी भूख मिटाने के लिए अवैध तरीके से दरबारी, नौकर के साथ साथ, रिश्तेदार यहाँ तक की सगे सम्बन्धियों का भी सहारा लेती थी। कहा जाता है कि जहाँआरा अपने बाप के लिए लड़कियाँ भी फंसाकर लाती थी। जहाँआरा की मदद से शाहजहाँ ने मुमताज के भाई शाइस्ता खान की बीबी से कई बार बलात्कार किया था। शाहजहाँ के राज ज्योतिष की 13 वर्षीय ब्राह्मण लडकी को जहाँआरा ने अपने महल में बुलाकर धोखे से नशा देकर बाप के हवाले कर दिया था, जिससे शाहजहाँ ने अपनी उम्र के 58 वें वर्ष में उस 13 बर्ष की ब्राह्मण कन्या से निकाह किया था। बाद में इसी ब्राहम्ण कन्या ने शाहजहाँ के कैद होने के बाद औरंगजेब से बचने और एक बार फिर से हवस की सामग्री बनने से खुद को बचाने के लिए अपने ही हाथों अपने चेहरे पर तेजाब डाल लिया था।

शाहजहाँ को प्यार नहीं हैवानियत की हवस थी। उसने अपने अहंकार और शरीर में जलती हवस की ज्वाला को शांत करने के लिए मुमताज से विवाह किया था, ना कि उसकी सुंदरता से। जिसने कभी औरतों की इज्जत ना की हो, वो प्यार की ईबादत को क्या समझेगा। इसलिए ताजमहल को मुमताज की याद का मकबरा कहना गलत होगा।

दरअसल, ताजमहल और प्यार की कहानी इसीलिए गढ़ी गई है कि लोगों को गुमराह किया जा सके और लोगों खास कर हिन्दुओं से छुपाई जा सके कि ताजमहल कोई प्यार की निशानी नहीं बल्कि महाराज जय सिंह द्वारा बनवाया गया भगवान शिव का मंदिर तेजो महालय है। इतिहासकार पीएन ओक ने पुरातात्विक साक्ष्यों के जरिए बकायदा इसे साबित किया है और इस पर पुस्तकें भी लिखी हैं।

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि शाहजहां (1627-1658) ने जो कारनामा तेजोमहल के साथ किया वही कारनामा लाल कोट के साथ। लाल किला पहले लाल कोट कहलाता था। दिल्ली का लाल किला शाहजहां के जन्म से सैकड़ों साल पहले 'महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय' द्वारा दिल्ली को बसाने के क्रम में ही बनाया गया था। असलियत में मुगल इस देश में धर्मान्तरण,लूट-खसोट और अय्याशी ही करते रहे परन्तु नेहरू के आदेश पर हमारे वामपंथी इतिहासकारों नें इन्हें जबरदस्ती महान बनाया और ये सब हुआ झूठी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर।

शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही 22 जनवरी 1666 ईस्वी में 74 साल की उम्र में आगरे के किले में हुई। ‘द हिस्ट्री चैनल’ के अनुसार अत्यधिक कमोत्तेजक दवाएँ खा लेने का कारण उसकी मौत हुई थी। यानी जिन्दगी के आखिरी वक्त तक वो अय्याशी ही करता रहा था।अब आप खुद ही सोचें कि क्यों ऐसे बदचलन और दुश्चरित्र इंसान को प्यार की निशानी समझा कर महान बताया जाता है।

#इतिहासकीपोल_खोल की श्रृंखला यूँ ही चलती रहेगी, अगली कड़ी मे "टोपियां सिलकर जीवन व्यतीत करने वाले उदार हृदय औरंगजेब" की बनी नैरेटिव की पोल खोली जाएगी।

राजस्थान की सबसे बड़ी क्रिकेट प्रतियोगिता हिन्दू प्रिमियर लीग के शुभारंभ


 खेल में माध्यम से हिन्दू समाज मे जागृति के भाव को जगा कर एकजुटता लाने के उद्देश्य से होने वाली राजस्थान की सबसे बड़ी क्रिकेट प्रतियोगिता हिन्दू प्रिमियर लीग के शुभारंभ पर शनिवार सुबह आप सभी सादर आमंत्रित है ।
Saturday  28 May- 2022
TIME : -  8.30 AM
VANUE- RAILWAY CRICKET GROUND



निवेदक - हिन्दू क्रिकेट प्रीमियर लीग आयोजन समिति जोधपुर ।
SUKHDEV SINGH DEWAL 

9828384442

गुरुवार, 26 मई 2022

असली अघोरी साधु की पहचान


 

असली अघोर शब्द का अर्थ है अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर अघोर जो घोर ना हों जो भयावह से मुक्त हों। अघोर साधू की पहचान जानिये विस्तार से -

अघोरी बाबा सुनते ही नसों में एक वीभत्स घिनौना सा रूप आ जाता है. भस्म का स्नान, मनुष्य मांस का भक्षण करने वाला, तंत्र मंत्र से सीधा जोड़कर देखा जाता है। अघोरी शब्द का संस्कृत भाषा में तात्पर्य है 'अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर। साथ ही इस शब्द को पवित्रता और सभी बुराइयों से मुक्त, शुद्धता भी समझा जाता है. किंतु अघोरियों का रहन-सहन और शुद्धता के एकदम विरुद्ध ही दिखते हैं. अघोरियों की इस रहस्यमयी दुनिया से जुड़े कुछ नवीनतम पक्ष लेकर आई हूँ। आप भी इस बेहद ही महत्वपूर्ण चर्चा में सम्मिलित होइये - - - - -

‌1. कठोर जीवन - इनका जीवन अत्यंत कठोर होता है। ये 24 घंटे तक खड़े होकर शिव गायत्री मंत्र का जाप करते हैं। ऐसा करने के पश्चात ये स्वयं का श्राद्ध कर्म करते हैं। वर्षो तक धूप, वर्षा ठंड से स्वयं को तपाते हैं। हठ योग करते हैं। जैसे - कुंभ के मेले में ये प्रण लेते हैं कि एक पैर पर खड़े रहना है जब तक कुंभ का मेला है। यदि उस बीच ये पैर को जमीन में रख देते हैं तो इसका अर्थ है कि ये अगले कुंभ मेले तक एक पैर में ही खड़े रहेंगे।

‌इस प्रकार इनका जीवन बहुत कठिन कठोर तपस्या से भरा होता है। ये किसी से कुछ नहीं मांगते।

‌जो भी मिल जाता है पशु मे कुत्ते के साथ मिलकर इक ही पात्र में खाते हैं।

2.. इंसानों का कच्चा मांस खाते हैं: इस बात से लगभग सभी अवगत ही होंगे कि अघोरी कच्चा मांस खाते हैं। ये अघोरी सदैव रात्री के समय श्मशान घाट में ही रहते हैं और अधजली शवों को निकालकर उनका कच्चा पक्का मांस खाते हैं, शरीर से प्रवाहित होने वाले द्रव्य अर्थात जब शरीर डिकंपोज होती है तो शरीर का रक्त पानी की तरह बहने लगता है उसी का ये सेवन करते हैं। जो असहनीय गंध से भरा होता है। इसके पीछे उनकी मान्यता है कि ऐसा करने से उनकी तंत्र करने की शक्ति में प्रबलता होती है. वहीं जो बातें आम जनमानस को वीभत्स लगती हैं, अघोरियों के लिए वो उनकी साधना का एक महत्वपूर्ण भाग है।

‌3. शिव और शव के उपासक: अघोरी खुद को पूरी तरह से शिव में तल्लीन करना चाहते हैं. शिव के पंच रूपों में से एक रूप 'अघोर' है. शिव की उपासना करने के मध्य ये अघोरी शव के ऊपर बैठकर साधना करते हैं. 'शव से शिव की प्राप्ति' का यह रास्ता अघोर पंथ की निशानी है. ये अघोरी 3 तरह की साधनाएं करते हैं, शव साधना, जिसमें शव को मांस और मदिरा का भोग लगाया जाता है. शिव साधना, जिसमें शव पर एक पैर पर खड़े होकर शिव की साधना की जाती है जैसे मां काली शिव पर पैर रखी थीं। और श्मशान साधना, जहां हवन यज्ञ किया जाता है। साथ ही ये साधना में सदैव किसी मज़बूत शरीर का ही उपयोग करते हैं। ना कि किसी बालक का।

4. शिव की वजह से ही धारण करते हैं नरमुंड: शरीर का श्रृंगार ये भस्म से करते हैं। क्योंकि शरीर ही इनका वस्त्र अगर आपने अघोरियों चित्र देखी होंगी तो यह जरूर पाया होगा कि उनके पास हमेशा एक इंसानी खोपड़ी, त्रिशूल जरूर रहती है। अघोरी बाबा मानव खोपड़ियों को भोजन के पात्र के रूप में प्रयोग करते हैं, जिस कारण इन्हें कापालिक कहा जाता है. कहा जाता है कि यह प्रेरणा उन्हें शिव से ही मिली. किवदंतियों के अनुसार एक बार शिव ने ब्रह्मा का मस्तक अहंकार उत्पन्न होने के कारण खंडित कर दिया था और उनका सिर लेकर उन्होंने पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगाए थे. शिव के इसी रूप के अनुयायी होने के कारण अघोरी भी अपने साथ नरमुंड रखते हैं।

5. स्वभाव से रुखे, किन्तु सबसे बड़े दानी - अघोरी भले ही स्वभाव से रुखे होते हैं किन्तु अपने पुण्य फल को देने में एक क्षण की भी प्रतीक्षा नहीं करते। ये जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर कार्य करते हैं। इनकी आंखों में बहुत क्रोध दिखता है किंतु मन से ये बहुत ही शांत होते हैं।

6. बालक की तरह अबोध - ये बालक की तरह अबोध भी हैं। जैसे एक बालक मल - मूत्र गंध दुर्गंध सुगंध से मुक्त रहते हैं ठीक वैसे ही अघोरी भी घृणा से मुक्त होकर स्वयं में मस्त मौला बनकर जीते हैं।

कुछ अजर अमर जीव जंतु के बारे में जानकारी

कुछ अजर अमर जीव जंतु के बारे में जानकारी

1.प्लैनरियन फ्लैटवर्म : यह प्राणी अजर अमर है आप इसके लगभग 200 टुकड़े कर सकते हैं। आश्चर्य की हर टूकड़े फिर से एक जीव बन जाएगा।

2.हाइड्रा — आप बहुत सिरों वाला सांप या जलव्याल समझ सकते हैं। इसकी कभी भी प्राकृतिक मृत्यु नहीं होती। हाइड्रा अपने शरीर को अनेक भाग में विभाजित करके प्रत्येक भाग से ग्रोथ करके नए हाइड्रा में विकसित हो जाता है। देखने में यह शायद आपको ऑक्टोपस जैसा लगे।

3.जेलिफ़िश - जेलीफिश के बारे में तो सभी जानते ही होंगे। यह अपने ही सेल्स को बदल कर फिर से युवा अवस्था में पहुंच जाती है और यह चक्र चलता ही रहता है।

4.टार्डीग्रेड-पानी में रहने वाला आठ पैरों वाला और 4 mm लंबा यह जीव 30 वर्षों तक बिना खाए पीए रह सकता है और इसमें अंतरिक्ष के व्योम में भी जिंदा करने की योग्यता है। यह किसी भी प्रकार के वातावरण में जिंदा रह सकता है। टार्डीग्रेड माइनस 272 डीग्री में बिना किसी परेशानी के रह सकता है और यह लगभग 150 डीग्री की गर्मी भी आराम से सह लेता है। टार्डीग्रेड पृथ्वी पर पर्वतों से लेकर गहरे महासागरों तक और वर्षावनों से लेकर अंटार्कटिका तक लगभग हर जगह रहते हैं। मानवों की तुलन में यह सैंकड़ों अधिक गुना तक जिंदा रह सकते हैं। संभवत: उससे भी ज्यादा यदि इन्हें मारा न जाए तो। यह प्राणी धरती पर लगभग 60 करोड़ साल है। इस जंतु को धरती का प्राणी नहीं माना जाता है।

5.अलास्कन वुड फ्रॉग (Alaskan wood frog) : यह मेंढक भी अजर अमर है। अलास्का में जब तापमान - 20°c गिर जाता है तब इस मेढक का शरीर लगभग फ्रीज हो जाता है और यह सीतनिद्रा (hibernation) में सो जाता है। तब यह लगभग 80% तक बर्फ में जम जाता है। इस दौरान उसका सांस लेना भी बंद हो जाता है। दिल की धड़कन भी बंद हो जाती है। अगर डॉक्टरी भाषा में कहें तो यह मर चुका होता है लेकिन जब वसंत की शुरुआत होती है और इसके ऊपर से बर्फ हटती है तो इसके दिल में अचानक से इलेक्ट्रिक चार्ज उत्पन्न होता है और उसका दिल फिर से धड़कने लगता है। मतलब यह कि यह फिर से जिंदा होकर अपने काम पर लग जाता है। इसे फ्रोजन फ्रॉग भी कहते हैं।

6.लंग फिश (Lung Fish) : इस मछली के बारे में कहा जाता है कि यह पांच साल तक बिना कुछ खाए पीए जिंदा रह सकती है। अफ्रीका में पाई जाने वाली यह मछली सूखा पड़ने पर खुद को जमीन में दफन कर लेती है। सूखे के मौसम के दौरान जब यह जमीन के अंदर होती है तो अपने शरीर के मेटाबोलिज्म को 60 गुना तक कम कर लेती है।

स्रोत गूगल

सर्जरी के आविष्कारक - महर्षि सुश्रुत

 

महर्षि सुश्रुत सर्जरी के आविष्कारक माने जाते हैं...

आज से 2600 साल पहले उन्होंने अपने समय के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, पथरी का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह की जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए।

आधुनिक विज्ञान केवल 400 वर्ष पूर्व ही शल्य क्रिया करने लगा है, लेकिन सुश्रुत ने 2600 वर्ष पर यह कार्य करके दिखा दिया था। सुश्रुत के पास अपने बनाए उपकरण थे जिन्हें वे उबालकर प्रयोग करते थे।

महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखित ‘सुश्रुत संहिता' ग्रंथ में शल्य चिकित्सा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इस ग्रंथ में चाकू, सुइयां, चिमटे इत्यादि सहित 125 से भी अधिक शल्य चिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरणों के नाम मिलते हैं और इस ग्रंथ में लगभग 300 प्रकार की सर्जरियों का उल्लेख मिलता है।

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