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गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

गठिया या संधिबात की सबसे अछि दवा

निचे दिए गए लिंक पे जाके विडियो देखे नही तो पूरा पोस्ट पड़े :

http://www.youtube.com/watch?v=zfPzzNoWYyc

गठिया या संधिबात का की सबसे अछि दावा है मेथी, हल्दी और सुखा हुआ अदरक माने सोंठ , इन तीनो को बराबर मात्रा में पिस कर, इनका पावडर बनाके एक चम्मच लेना गरम पानी के साथ सुभाह खाली पेट तो इससे घुटनों का दर्द ठीक होता है, कमर का दर्द ठीक होता है, देड़ दो महिना ले सकता है ।

और एक अछि दवा है , एक पेड़ होता है उसे हिंदी में हाड़सिंगार कहते है, संस्कृत पे पारिजात कहते है, बंगला में शिउली कहते है , उस पेड़ पर छोटे छोटे सफ़ेद फूल आते है, और्फूल की डंडी नारंगी रंग की होती है, और उसमे खुसबू बहुत आती है, रात को फूल खिलते है और सुबह जमीन में गिर जाते है । इस पेड़ के पांच पत्ते तोड़ के पत्थर में पिस के चटनी बनाइये और एक ग्लास पानी में इतना गरम करो के पानी आधा हो जाये फिर इसको ठंडा करके पियो तो बीस बीस साल पुराना गठिया का दर्द इससे ठीक हो जाता है । और येही पत्ते को पिस के गरम पानी में डाल के पियो तो बुखार ठीक कर देता है और जो बुखार किसी दावा से ठीक नही होता वो इससे ठीक होता है ; जैसे चिकनगुनिया का बुखार, डेंगू फीवर, Encephalitis , ब्रेन मलेरिया, ये सभी ठीक होते है ।

बुखार की और एक अछि दावा है अपने घर में तुलसी पत्ता ; दस पन्दरा तुलसी पत्ता तोड़ो, तिन चार काली मिर्च ले लो पत्थर में पिस के एक ग्लास गरम पानी में मिलके पी लो .. इससे भी बुखार ठीक होता है ।

बुखार की एक और दावा है नीम की गिलोय, अमृता भी कहते है, उडूनची भी कहते है, इसको थोडासा चाकू से काट लो , पत्थर में कुचल के पानी में उबाल लो फिर वो पानी पी लेना तो ख़राब से ख़राब बुखार ठीक हो जाता है तिन दिन में । कभी कभी बुखार जब बहुत जादा हो जाते है तब खून में सेत रक्त कनिकाएं , प्लेटलेट्स बहुत कम हो जाते है तब उसमे सबसे जादा काम आती है ये गिलोय ।

हल्दी है इन दो जानलेवा बीमारियों की गजब की दवा------------

हल्दी है इन दो जानलेवा बीमारियों की गजब की दवा-----------
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हल्दी के गुणों से तो हम और आप तो वर्षों से परिचित रहे हैं और दुनिया के वैज्ञानिक भी इसके नए- नए गुणों के पन्ने जोड़ते चले जा रहे हैं। अब हाल के ही एक शोध को ले लीजिये ,हल्दी मैं पाए जानेवाले तत्व कुर्कुमिन को कैंसर को फैलानेवाली अवस्था जिसे मेटास्टेसिस के नाम से जाना जाता है ,इसे रोकने में मद
दगार पाया गया है। पश्चिमी देशों में प्रोस्टेट कैंसर सबसे खतरनाक माना जाता रहा है और अधिकांश में इसका पता तब चलता है ,जब इसका ट्यूमर शरीर के कई अंगों में फैल चुका होता है। तीन प्रतिशत रोगियों में यह फैलाव घातक होता है। म्यूनिक स्थित एल.एम् .यू.के डॉ बेट्रिक बेक्मिरर की मानें तो हल्दी के सकिय तत्व करक्यूमिन को मेटास्टेसिसरोधी गुणों से युक्त पाया गया है। इन वैज्ञानिकों की टीम ने करक्यूमिन को कैंसर से बचाव सहित दूसरे अंगों में फैलने से रोकने वाले गुणों से युक्त पाया गया है। इससे पूर्व भी इन्हें वैज्ञानिकों ने करक्यूमिन को फेफेड़ों और स्तन के मेटास्टेसिस को रोकने वाले गुणों से युक्त पाया था,वैज्ञानिकों ने करक्यूमिन में कैंसर के फैलने के लिए जिम्मेदार दो प्रोटीन के निर्माण को कम कर देने वाले गुणों से युक्त पाया है।

करक्यूमिन के इस प्रभाव के कारण ट्यूमर कोशिकाएं कम मात्रा में साइटोकाईनिन को पैदा कर पाती हैं,जो मूलत: कैंसर के फैलाव यानी मेटास्टेसिस के लिए जिम्मेदार होता है। डॉ.बेक्मिरर का तो यहाँ तक कहना है की हल्दी में पाया जानेवाला तत्व करक्यूमिन केवल कैंसर के फैलाव को ही कम नहीं करता है ,अपितु इसके नियमित सेवन से स्तन और प्रोस्टेट के कैंसर से भी बचा जा सकता है। वैज्ञानिकों ने प्रतिदिन आठ ग्राम तक करक्यूमिन की मात्रा को मानव शरीर के लिए सुरक्षित माना है। हल्दी के गुणों का आयुर्वेद के जानकार सदियों से चिकित्सा में प्रयोग कराते आ रहे हैं । भारतीय व्यंजन हल्दी के श्रृंगार के बगैर अधूरी ही मानी गई है। वैज्ञानिकों का यह मानना है की बी.एच .पी .(बीनाइन प्रोस्टेटिक हायपरप्लेसीया ) एवं महिलाएं जिनका पारिवारिक स्तन कैंसर का इतिहास रहा हो उनमें करक्यूमिन का सेवन कैंसर से बचाव की महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकता है।
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@भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है|

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