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शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

कमल गट्टे से धन. कमलगट्टे की माला

कमल गट्टे से धन. कमलगट्टे की माला
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धन प्राप्ति के लिए किए जाने वाले तंत्र प्रयोगों में कई वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, कमल गट्टा भी उन्हीं में से एक है। शत्रुजन्य कष्टों से बचाव हेतु मंत्र जप भी कमल गट्टे की माला से किया जाता है। लक्ष्मीजी के लिए मंत्रोच्चार द्वारा किये जाने वाले हवन में कमलगट्टे के बीजों से आहुति दी जाती है कमल गट्टा कमल के पौधे में से निकलते हैं व काले रंग के होते हैं। यह बाजार में आसानी से मिल जाते हैं। मंत्र जप के लिए इसकी माला भी बनती है।मंत्र जप में जप माला देव शक्ति स्वरूप व जाग्रत मानी जाती है। जिसके लिए अलग-अलग मंत्र जप माला अलग-अलग देव कृपा के लिए प्रभावी मानी गई है। लक्ष्मी जी के मंत्रों एवं धनदायक मंत्रों के जप कमलगट्टे की माला से करते हैं।
ऐश्वर्य की देवी महालक्ष्मी की पूजा न केवल धनवान व समृद्ध बनाती है, बल्कि यश, प्रतिष्ठा के साथ शांति, पवित्रता, शक्ति व बुद्धि भी देने वाली मानी गई है।शुक्रवार को देवी लक्ष्मी की सुबह और शाम दोनों ही वक्त स्नान के बाद यथासंभव लाल वस्त्र पहन लाल पूजा सामग्रियों से पूजा करें। देवी की चांदी या किसी भी धातु की बनी प्रतिमा को दूध, दही, घी, शकर और शहद से बने पंचामृत व पवित्र जल से स्नान कराने के बाद लाल चंदन, कुंकुम, लाल अक्षत, कमल गुलाब या गुड़हल का फूल चढ़ाकर घर में बनी दूध की खीर का भोग लगाएं। पूजा के बाद नीचे लिखे लक्ष्मी मंत्रों में किसी भी एक या दोनों का लाल आसन पर कमलगट्टे की माला से कम से कम 108 बार जप करें-
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं
ॐ ह्रीं श्रीं सौं:
श्रीं ह्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नम:
ॐ महालक्ष्म्यै नमः
- पूजा व मंत्र जप के बाद माता लक्ष्मी की आरती करें, प्रसाद ग्रहण करें व माता को चढ़ाया थोड़ा-सा कुंकुम कागज में बांध तिजोरी मे रखें।

उपाय
1- यदि रोज 108 कमल के बीजों से आहुति दें और ऐसा 21 दिन तक करें तो आने वाली कई पीढिय़ां सम्पन्न बनी रहती हैं।
2- यदि दुकान में कमल गट्टे की माला बिछा कर उसके ऊपर लक्ष्मी का चित्र स्थापित किया जाए व्यापार निरंतर उन्नति की ओर अग्रसर होता है।
3- कमल गट्टे की माला लक्ष्मी के चित्र पर पहना कर किसी नदी या तालाब में विसर्जित करें तो उसके घर में निरंतर लक्ष्मी का आगमन बना रहता है।
4- जो व्यक्ति प्रत्येक बुधवार को 108 कमलगटटे के बीज लेकर घी के साथ एक-एक करके अग्नि में 108 आहुतियां देता है। उसके घर से दरिद्रता हमेशा के लिए चली जाती है।
5- जो व्यक्ति पूजा-पाठ के दौरान की माला अपने गले में धारण करता है उस पर लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।
6- शुक्रवार, दीपावली, नवरात्रि या किसी देवी उपासना के विशेष दिन कमलगट्टे की माला से अलग-अलग रूपों में लक्ष्मी मंत्र जप देवी लक्ष्मी की कृपा से धन, ऐश्वर्य व यश पाने, कामनासिद्धि व मंत्र सिद्धि का अचूक उपाय माना गया है

धनतेरस के दिन अवश्य खरीदे पीतल के वर्तन

धनतेरस के दिन अवश्य खरीदे पीतल के वर्तन
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धनतेरस के दिन अवश्य खरीदे पीतल के वर्तनसुख.समृद्धि, यश और वैभव का पर्व धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर और मृत्यु के देवता सुर्यपुत्र यमराज की पूजा का बड़ा महत्व है, हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के त्रयोदशी तिथि को मनाए जाने वाले इस महापर्व के बारे में पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन देवताओं के वैद्य धनवंतरी ऋषि अमृत कलश सहित सागर मंथन से प्रकट हुए थे, जिस कारण इस दिन धनतेरस के साथ.साथ धनवंतरी जयंती भी मनाया जाता है। चूंकि पीतल भगवान धनवंतरी की धातु मानी जाती है, इसलिए इस दिन पीतल खरीदना भी शुभ माना जाता है,

नई चीजों के शुभ कदम के इस पर्व में मुख्य रूप से नए बर्तन या सोना.चांदी खरीदने की परंपरा है, आस्थावान भक्तों के अनुसार चूंकि जन्म के समय धनवंतरी के हाथों में अमृत का कलश था, इसलिए इस दिन बर्तन खरीदना अति शुभ होता है। इस दिन घरों को साफ़.सफाई, लीप.पोत कर स्वच्छ और पवित्र बनाया जाता है। शाम के समय रंगोली बना दीपक जलाकर धन और वैभव की देवी मां लक्ष्मी का आवाहन किया जाता है

कहा जाता है कि इसी दिन यमराज से राजा हिम के पुत्र की रक्षा उसकी पत्नी ने किया था। जिस कारण दीपावली से दो दिन पहले मनाए जाने वाले ऐश्वर्य का त्यौहार धनतेरस पर सांयकाल को यमदेव के निमित्त दीपदान किया जाता है, इस दिन को यमदीप दान भी कहा जाता है,

मान्यता है कि ऐसा करने से यमराज के कोप से सुरक्षा मिलती है और पूरा परिवार स्वस्थ रहता है

धनतेरस पूजा विधि और मुहूर्त


धनतेरस 2018 – धनतेरस पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

दिवाली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। दिवाली पर्व का आरंभ धनतेरस से होता है। पांच दिनों तक चलने वाले इस पर्व के पहले दिन धन तेरस मनाया जाता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी क्योकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है।  साल 2018 में धनतरेस  5 नवंबर को है। धन तेरस के दिन धन के देवता कुबेर और मृत्यदेव यमराज की पूजा-अर्चना को विशेष महत्त्व दिया जाता है। इस दिन को धनवंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है।


धनतेरस की पौराणिक कथा

यह तिथि विशेष रूप से व्यापारियों के लिए अति शुभ माना जाता है। महर्षि धन्वंतरि को स्वास्थ्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सागर मंथन के समय महर्षि धन्वंतरि अमृत कलश लेकर अवतरित हुए थे। इसीलिए इस दिन बर्तन खरीदने की प्रथा प्रचलित हुई। यह भी माना जाता है कि धनतेरस के शुभावसर पर चल या अचल संपत्ति खरीदने से धन में तेरह गुणा वृद्धि होती है।
एक और कथा के अनुसार एक समय भगवान विष्णु द्वारा श्राप दिए जाने के कारण देवी लक्ष्मी को तेरह वर्षों तक एक किसान के घर पर रहना था। माँ लक्ष्मी के उस किसान के रहने से उसका घर धन-समाप्ति से भरपूर हो गया। तेरह वर्षों उपरान्त जब भगवान विष्णु माँ लक्ष्मी को लेने आए तो किसान ने माँ लक्ष्मी से वहीँ रुक जाने का आग्रह किया। इस पर देवी लक्ष्मी ने कहा किसान से कहा कि कल त्रयोदशी है और अगर वह साफ़-सफाई कर, दीप प्रज्वलित करके उनका आह्वान करेगा तो किसान को धन-वैभव की प्राप्ति होगी। जैसा माँ लक्ष्मी ने कहा, वैसा किसान ने किया और उसे धन-वैभव की प्राप्ति हुई। तब से ही धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजन की प्रथा प्रचलित हुई।


धनतेरस पूजा की विधि

धनतेरस की संध्या में यमदेव निमित्त दीपदान किया जाता है। फलस्वरूप उपासक और उसके परिवार को मृत्युदेव यमराज के कोप से सुरक्षा मिलती है। विशेषरूप से यदि गृहलक्ष्मी इस दिन दीपदान करें तो पूरा परिवार स्वस्थ रहता है।
बर्तन खरीदने की परंपरा को पूर्ण अवश्य किया जाना चाहिए। विशेषकर पीतल और चाँदी के बर्तन खरीदे क्योंकि पीतल महर्षि धन्वंतरी का अहम धातु है। इससे घर में आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है। व्यापारी इस विशेष दिन में नए बही-खाते खरीदते हैं जिनका पूजन वे दीवाली पर करते हैं।
धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी विशेष परंपरा है। चन्द्रमा का प्रतीक चाँदी मनुष्य को जीवन में शीतलता प्रदान करता है। चूंकि चाँदी कुबेर की धातु है, धनतेरस पर चाँदी खरीदने से घर में यश, कीर्ति, ऐश्वर्य और संपदा की वृद्धि होती है।
संध्या में घर मुख्य द्वार पर और आँगन में दीप प्रज्वलित किए जाते हैं और दीवाली का शुभारंभ होता है।


धनतेरस 2018 क्या है शुभ मुहूर्त



धन तेरस तिथि - 5 नवंबर 2018, सोमवार
धनतेरस पूजन मुर्हुत - 18:05 बजे से 20:01 बजे तक
प्रदोष काल - 17:29 से 20:07 बजे तक
वृषभ काल - 18:05 से 20:01 बजे तक
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ - 01:24 बजे, 5 नवंबर 2018
त्रयोदशी तिथि समाप्त - 23:46 बजे, 5 नवंबर 2018

धनतेरस कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी यानि तेरस के दिन मनाया जाने वाला बहुत ही खास त्यौहार है दरअसल इस दिन से ही दिवाली के त्यौहारों की शुरुआत होती है। भगवान धन्वंतरि को इस त्यौहार का देवता मानते हैं क्योंकि वह इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे जिसका पान कर देवता अमर हुए। लेकिन इस दिन धनादि देव कुबेर और समृद्धि प्रदान करने वाली माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है। माता लक्ष्मी की पूजा क्यों की जाती है इस बारे में एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है।

पौराणिक कथा

माता लक्ष्मी की विशेष पूजा तो वैसे दिवाली के दिन की जाती है लेकिन धनतेरस पर माता लक्ष्मी की पूजा करने के पिछे भी एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा कुछ यूं है कि एक बार भगवान विष्णु मृत्युलोक यानि भूलोक में गमन करने के लिये निकल पड़े। माता लक्ष्मी ने भी निवेदन किया कि वह भी उनके साथ आना चाहती हैं। भगवान विष्णु उनके स्वभाव से परिचित थे इसलिये पहले ही उन्हें आगाह किया कि मैं आपको एक ही शर्त पर साथ लेकर चल सकता हूं। माता लक्ष्मी मन ही मन बहुत खुश हुई कि चलो सशर्त ही सही भगवन साथ ले जाने के लिये तो माने। माता फटाक से बोली मुझे सारी शर्तें मंजूर हैं। भगवान विष्णु ने कहा जो मैं कहूं जैसा मैं कहूं आपको वैसा ही करना होगा। माता बोली ठीक है आप जैसा कहेंगें मैं वैसा ही करूंगी। दोनों भू लोक पर आकर विचरण करने लगे। एक जगह रुककर श्री हरि ने माता से कहा कि मैं दक्षिण दिशा की तरफ जा रहा हूं। आपको यहीं पर मेरा इंतजार करना होगा। यह कहकर भगवान विष्णु दक्षिण दिशा की तरफ बढ़ गये। अब माता को जिज्ञासा हुई कि दक्षिण दिशा में ऐसा क्या है जो भगवान मुझे वहां नहीं ले जाना चाहते। माता का स्वभाव तो वैसे भी चंचल ही माना जाता है। उनसे वहां पर ज्यादा देर नहीं रुका गया और वे भगवान विष्णु की तरफ ही बढ़ने लगी। आगे जाकर माता को सरसों का खेत दिखाई देता है। उसकी सुंदरता ने माता का मन मोह लिया। वे फूलों को तोड़कर अपना श्रृंगार करने लगीं। इसके बाद वे कुछ ही दूर आगे बढ़ी थी कि गन्ने के खेत उन्हें दिखाई दिये। उन्हें गन्ना चूसने की इच्छा हुई तो गन्ने तोड़कर उन्हें चूसने लगीं ही थी कि भगवान विष्णु वापस आते हुए दिखाई दे जाते हैं। सरसों के फूलों से सजी माता लक्ष्मी को गन्ना चूसते हुए देखकर भगवान विष्णु उन पर क्रोधित हो गये। भगवान ने कहा कि आपने शर्त का उल्लंघन किया है। मैनें आपको वहां रूकने के लिये कहा था लेकिन आप नहीं रूकी और यहां किसान के खेतों से फूल व गन्ने तोड़कर आपने अपराध किया है। इसकी सजा आपको मिलेगी। भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को 12 वर्ष तक किसान की सेवा करने का शाप दे दिया और स्वंय क्षीरसागर गमन कर गये।
अब विवश माता लक्ष्मी को किसान के घर रहना पड़ा। एक दिन माता लक्ष्मी ने किसान की पत्नी को देवी लक्ष्मी की प्रतिमा की पूजा करने की कही और कहा इससे तुम जो भी मांगोगी तुम्हें मिलेगा। कृषक की पत्नी ने वैसा ही किया। कुछ ही दिनों में उनका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। हंसी खुशी समृद्धि में 12 साल का समय बीत गया। जब भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को लेने के लिये आये तो किसान ने माता को न जाने देने का हठ किया। इस पर माता लक्ष्मी ने कहा कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की तेरस की दिन यदि वह विधिपूर्वक मेरी पूजा करे तो वह उसके घर से नहीं जायेंगी। लेकिन वह इस दौरान उन्हें दिखाई नहीं देंगी। वह एक कलश की स्थापना करे और उसमें कुछ धन रखे वह धन उन्हीं यानि लक्ष्मी का रूप ही होगा। इस प्रकार तेरस के दिन किसान ने माता के बताये अनुसार ही पूजा कर कलश स्थापना की और किसान का घर धन-धान्य से पूर्ण रहने लगा। तब से लेकर आज तक धनतेरस पर माता लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा भी चली आ रही है।
आप पर भी मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे आप सबको धनतेरस के त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएं

गुरुवार, 1 नवंबर 2018

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