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गुरुवार, 10 जून 2021

किसी भी एलपीजी गैस डिस्ट्रीब्यूटर से गैस भरवा सकेंगे

 LPG Refill Booking Portability: सरकार ने LPG रीफिल की पोर्टेबिलिटी को मंजूरी दे दी है. यानी अब आप अपना LPG सिलेंडर किसी भी डिस्ट्रीब्यूटर से रीफिल करवा सकेंगे. मतलब अगर आप अपनी तेल मार्केटिंग कंपनी के मौजूदा LPG डिस्ट्रीब्यूटर से खुश नहीं हैं तो आप उसकी जगह कोई दूसरा डिस्ट्रीब्यूटर चुन सकते हैं. काफी समय से इस मुद्दे पर चर्चा हो रही थी, अब इसे मंजूरी दे दी गई है.



LPG रीफिल के लिए बदल सकेंगे डिस्ट्रीब्यूटर

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ओर इस फैसले पर कहा गया है कि LPG ग्राहकों को यह निर्णय लेने की अनुमति दी जाए कि वे किस डिस्ट्रीब्यूटर से LPG रीफिल करवाना चाहते हैं.

ग्राहक अपनी तेल मार्केटिंग कंपनी के तहत अपने पते पर डिस्ट्रीब्यूटर्स की लिस्ट से अपना “डिलीवरी डिस्ट्रीब्यूटर” चुन सकेंगे. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसको चंडीगढ़, कोयंबटूर गुड़गांव, पुणे और रांची में लॉन्च किया जाएगा.

पोर्टल पर मिलेगी डिस्ट्रीब्यूटर्स की लिस्ट

जब ग्राहक LPG रीफिक करने के लिए मोबाइल ऐप/कस्मटमर पोर्टल खोलेगा और लॉग-इन करेगा तो उसे डिलीवरी डिस्ट्रीब्यूटर्स की पूरी लिस्ट दिखाई देगी साथ उनकी परफॉर्मेंस के आधार पर रेटिंग भी होगी. जिससे ग्राहक को अच्छा डिस्ट्रीब्यूटर्स चुनने में मदद मिले. इससे डिस्ट्रीब्यूटर्स पर भी अपनी परफॉर्मेंस सुधारने का दबाव बनेगा.

IOC – https://cx.indianoil.in
Bharat Gas – https://my.ebharatgas.com
HPGas – https://myhpgas.in


इस लिस्ट से किसी भी डिस्ट्रीब्यूटर को चुन सकता है, जो उसके एरिया में उपलब्ध होगा और LPG रीफिल की डिलीवरी करेगा. इससे न सिर्फ कस्टमर्स को बेहतर सेवा मिलेगी बल्कि डिस्ट्रीब्यूटर्स के बीच भी ग्राहकों को अच्छी सुविधाएं देने की एक स्वस्थ परंपरा भी शुरू होगी, जिससे उनकी रेटिंग में सुधार होगा.

पोर्टल पर ही ऑनलाइन ट्रांसफर की सुविधा

उसी क्षेत्र में सर्विस दे रहे दूसरे डिस्ट्रीब्यूटर्स को एलपीजी कनेक्शन के ऑनलाइन ट्रांसफर की सुविधा एलपीजी ग्राहकों को संबंधित तेल मार्केटिंग कंपनियों के वेब-पोर्टल के साथ-साथ उनके मोबाइल ऐप के जरिए दी गई है. अपने रजिस्टर्ड लॉग-इन का इस्तेमाल करते हुए ग्राहक अपने क्षेत्र में सेवारत डिस्ट्रीब्यूटर्स की लिस्ट से अपने OMC के डिस्ट्रीब्यूटर को को चुन सकते हैं और अपने LPG कनेक्शन की पोर्टिंग का विकल्प चुन सकते हैं.

ग्राहक को मना सकेंगे डिस्ट्रीब्यूटर

स्रोत वितरक के पास ग्राहक से संपर्क करने और उसे मनाने का विकल्प होता है, अगर ग्राहक आश्वस्त है, तो वह 3 दिनों के निर्धारित समय के भीतर पोर्टेबिलिटी अनुरोध को वापस ले सकता है नहीं तो कनेक्शन ऑटोमैटिक रूप से लक्षित वितरक को ट्रांसफर हो जाता है. इसलिए, ग्राहक डिस्ट्रीब्यूटरशिप पर आए बिना उसी बाजार में काम कर रही उसी कंपनी के किसी अन्य वितरक को ऑनलाइन पोर्टेबिलिटी का लाभ उठा सकता है. यह सुविधा बिल्कुल फ्री होगी. मई 2021 में OMCs ने 55759 पोर्टेबिलिटी अनुरोधों को सफलतापूर्वक पूरा किया है.

कॉन्टैक्टलेस ट्रांजैक्शन को बढ़ावा

इसके अलावा डिजिटल इंडिया मिशन को आगे बढ़ाते हुए, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत ऑयल मार्केटिंग कंपनियां ग्राहकों को एक सहज डिजिटल अनुभव देने के लिए लगातार अपनी सुविधाओं में सुधार कर रही हैं. COVID-19 के कारण लगाए गए प्रतिबंधों को देखते हुए कॉन्टैक्टलेस ट्रांजैक्शन को बढ़ावा दिया गया है. तेल कंपनियों ने डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से ग्राहकों को LPG रीफिल बुक करने और भुगतान करने में मदद करने के लिए कई डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को अपनाया है. ग्राहक IVRS, SMS, WhatsApp, Portal और Mobile App के अलावा UMANG ऐप से भी गैस की बुकिंग कर सकते हैं. इसके अलावा Bharat Bill Pay System ऐप्स से भी बुकिंग की जा सकती है. इसके अलावा ग्राहक ई-कॉमर्स वेबसाइट्स Amazon और Paytm से गैस की बुकिंग और भुगतान कर सकते हैं

वेद और शास्त्रों में लिखा है

(1). पंचोपचार _गन्ध , पुष्प , धूप , दीप तथा नेवैद्य द्वारा पूजन करने को ‘पंचोपचार’ कहते हैं।

(2). पंचामृत – दूध ,दही , घृत, मधु { शहद } तथा मिश्री [ शक्कर ] इनके मिश्रण को ‘पंचामृत’ कहते हैं।

(3). पंचगव्य – गाय के दूध ,दही,घृत , मूत्र तथा गोबर इन्हें सम्मिलित रूप में ‘पंचगव्य’ कहते हैं।

(4). षोडशोपचार – आवाहन् , आसन , पाध्य , अर्घ्य , आचमन , स्नान , वस्त्र , अलंकार , सुगंध , पुष्प , धूप , दीप , नैवैध्य , अक्षत , ताम्बुल तथा दक्षिणा इन सबके द्वारा पूजन करने की विधि को ‘षोडशोपचार’ कहते हैं।

(5). दशोपचार – पाध्य , अर्घ्य , आचमनीय , मधुपक्र , आचमन , गंध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने की विधि को ‘दशोपचार’ कहते हैं।

(6). त्रिधातु –सोना , चांदी और लोहा कुछ आचार्य सोना ,चांदी , तांबा इनके मिश्रण को भी ‘त्रिधातु’ कहते हैं।

(7). पंचधातु – सोना , चांदी , लोहा , तांबा और जस्ता।

(8). अष्टधातु – सोना , चांदी, लोहा , तांबा , जस्ता , रांगा ,कांसा और पारा।

(9). नैवैध्य –खीर , मिष्ठान आदि मीठी वस्तुएं।

(10). नवग्रह –सूर्य , चन्द्र , मंगल , बुध , गुरु , शुक्र , शनि , राहु और केतु।

(11). नवरत्न – माणिक्य , मोती ,मूंगा , पन्ना , पुखराज , हीरा , नीलम , गोमेद , और वैदूर्य।

(12). अष्टगंध – अगर , तगर , गोरोचन , केसर , कस्तूरी ,,श्वेत चन्दन , लाल चन्दन और सिन्दूर { देवपूजन हेतु }
      अगर , लाल चन्दन , हल्दी , कुमकुम , गोरोचन , जटामासी , शिलाजीत और कपूर [ देवी पूजन हेतु ]

(13). गंधत्रय – सिन्दूर , हल्दी , कुमकुम।

(14). पञ्चांग – किसी वनस्पति के पुष्प , पत्र , फल , छाल ,और जड़।

(15). दशांश – दसवां भाग। 1/10

(16). सम्पुट –मिट्टी के दो शकोरों को एक-दुसरे के मुंह से मिला कर बंद करना।

(17). भोजपत्र – एक वृक्ष की छाल
मन्त्र प्रयोग के लिए भोजपत्र का ऐसा टुकडा लेना चाहिए ,जो कटा-फटा न हो।

(18). मन्त्र धारण –किसी भी मन्त्र को स्त्री पुरुष दोनों ही कंठ में धारण कर सकते हैं ,परन्तु यदि भुजा में धारण करना चाहें तो पुरुष को अपनी दायीं भुजा में और स्त्री को बायीं भुजा में धारण
करना चाहिए।

(19). मुद्राएँ –हाथों की अँगुलियों को किसी विशेष स्तिथि में लेने कि क्रिया को ‘मुद्रा’ कहा जाता है। मुद्राएँ अनेक प्रकार की होती हैं।

(20). स्नान –यह दो प्रकार का होता है।बाह्य तथा आतंरिक,बाह्य स्नान जल से तथा आन्तरिक स्नान जप द्वारा होता है।

(21). तर्पण –नदी , सरोवर आदि के जल में घुटनों तक पानी में खड़े होकर , हाथ की अंजुली द्वारा जल गिराने की क्रिया को ‘तर्पण’ कहा जाता है। जहाँ नदी , सरोवर आदि न हो , वहां किसी पात्र में पानी भरकर भी ‘तर्पण’ की क्रिया संपन्न कर ली जाती है।

(22). आचमन – हाथ में जल लेकर उसे अपने मुंह में डालने की क्रिया को आचमन कहते हैं।

(23). करन्यास –अंगूठा , अंगुली , करतल तथा करपृष्ठ पर मन्त्र जपने को ‘करन्यास’ कहा जाता है।

(24). हृद्याविन्यास –ह्रदय आदि अंगों को स्पर्श करते हुए मंत्रोच्चारण को ‘हृदय्विन्यास’ कहते हैं।

(25). अंगन्यास – ह्रदय ,शिर , शिखा , कवच , नेत्र एवं करतल – इन 6 अंगों से मन्त्र का न्यास करने की क्रिया को ‘अंगन्यास’ कहते हैं।

(26). अर्घ्य – शंख , अंजलि आदि द्वारा जल छोड़ने को अर्घ्य देना कहा जाता है घड़ा या कलश में पानी भरकर रखने को अर्घ्य-स्थापन कहते हैं।अर्घ्य पात्र में दूध ,तिल , कुशा के टुकड़े , सरसों , जौ , पुष्प , चावल एवं कुमकुम इन सबको डाला जाता है।

(27). पंचायतन पूजा – इसमें पांच देवताओं – विष्णु , गणेश ,सूर्य , शक्ति तथा शिव का पूजन किया जाता है।

(28). काण्डानुसमय – एक देवता के पूजाकाण्ड को समाप्त कर ,अन्य देवता की पूजा करने को ‘काण्डानुसमय’ कहते हैं।

(29). उद्धर्तन – उबटन।

(30). अभिषेक – मन्त्रोच्चारण करते हुए शंख से सुगन्धित जल छोड़ने को ‘अभिषेक’ कहते हैं।

(31). उत्तरीय – वस्त्र।

(32). उपवीत – यज्ञोपवीत [ जनेऊ ]।

(33). समिधा – जिन लकड़ियों को अग्नि में प्रज्जवलित कर होम किया जाता है उन्हें समिधा कहते हैं।समिधा के लिए आक ,पलाश , खदिर , अपामार्ग , पीपल ,उदुम्बर ,शमी , कुषा तथा आम की लकड़ियों को ग्राह्य माना गया है।

(34). प्रणव –ॐ।

(35). मन्त्र ऋषि – जिस व्यक्ति ने सर्वप्रथम शिवजी के मुख से मन्त्र सुनकर उसे विधिवत सिद्ध किया था ,वह उस मंत्र का ऋषि कहलाता है। उस ऋषि को मन्त्र का आदि गुरु मानकर श्रद्धापूर्वक उसका मस्तक में न्यास किया जाता है।

(36). छन्द – मंत्र को सर्वतोभावेन आच्छादित करने की विधि को ‘छन्द’ कहते हैं। यह अक्षरों अथवा पदों से बनता है। मंत्र का उच्चारण चूँकि मुख से होता है अतः छन्द का मुख से न्यास किया जाता है।

(37). देवता – जीव मात्र के समस्त क्रिया- कलापों को प्रेरित , संचालित एवं नियंत्रित करने वाली प्राणशक्ति को देवता कहते हैं यह शक्ति मनुष्य के हृदय में स्थित होती है ,अतः देवता का न्यास हृदय में किया जाता है।

(38). बीज– मन्त्र शक्ति को उद्भावित करने वाले तत्व को बीज कहते हैं। इसका न्यास गुह्यांग में किया जाता है।

(39). शक्ति – जिसकी सहायता से
बीज मन्त्र बन जाता है वह तत्व ‘शक्ति’
कहलाता है। उसका न्यास पाद स्थान में करते है।

(40). विनियोग– मन्त्र को फल की दिशा का निर्देश देना विनियोग कहलाता है।

(41). उपांशु जप – जिह्वा एवं होठों को हिलाते हुए केवल स्वयं को सुनाई पड़ने योग्य मंत्रोच्चारण को ‘उपांशुजप’ कहते हैं।

(42). मानस जप – मन्त्र , मंत्रार्थ एवं देवता में मन लगाकर मन ही मन मन्त्र
का उच्चारण करने को ‘मानसजप’ कहते हैं।

(43). अग्नि की जिह्वाएँ – अग्नि की 7 जिह्वाएँ मानी गयी हैं , उनके नाम हैं –
   1. हिरण्या 2. गगना 3. रक्ता 4. कृष्णा 
   5. सुप्रभा 6.बहुरूपा एवं 7. अतिरिक्ता।

(44). 1. काली 2.कराली 3. मनोभवा 4. सुलोहिता 5. धूम्रवर्णा 6.स्फुलिंगिनी एवं 7. विश्वरूचि।

(45). प्रदक्षिणा –देवता को साष्टांग दंडवत करने के पश्चात इष्ट देव की परिक्रमा करने को ‘प्रदक्षिणा’ कहते हैं।

विष्णु , शिव , शक्ति , गणेश और सूर्य आदि देवताओं की  क्रमशः 4, 1, 2 , 1, 3, अथवा 7 परिक्रमाऐं करनी चाहियें।

(46). साधना – साधना 5 प्रकार
की होती है – 
     1.अभाविनी 2. त्रासी 3. दोवोर्धी
     4. सौतकी 5.आतुरी।

     [1] अभाविनी – पूजा के साधन
तथा उपकरणों के अभाव से , मन से अथवा जल मात्र से जो पूजा साधना की जाती है , उसे‘अभाविनी’ कहा जाता है।
     [2] त्रासी –जो त्रस्त व्यक्ति तत्काल अथवा उपलब्ध उपचारों से अथवा मान्सोपचारों से पूजन करता है , उसे ‘त्रासी’कहते हैं। यह साधना समस्त सिद्धियाँ देती है।
     [3] दोवोर्धी – बालक , वृद्ध , स्त्री ,
मूर्ख अथवा ज्ञानी व्यक्ति द्वारा बिना जानकारी के की जाने वाली पूजा‘दोर्वोधी’ कहलाती है।

[4] सौतकी -- सूतक में व्यक्ति मानसिक संध्या करा कामना होने पर मानसिक पूजन तथा निष्काम होने पर सब कार्य करें। ऐसी साधना को ‘सौतकी’ कहा जाता है।

[5] आतुरी --रोगी व्यक्ति स्नान एवं पूजन न करें 
देवमूर्ति अथवा सूर्यमंडल की ओर देखकर, एक बार मूल मन्त्र का जप कर उस पर पुष्प चढ़ाएं फिर रोग की समाप्ति पर स्नान करके गुरु तथा ब्राह्मणों की पूजा करके, पूजा विच्छेद का दोष मुझे न लगे – ऐसी प्रार्थना करके विधि पूर्वक इष्ट देव का पूजनकरे तो इस पूजा को ‘आतुरी’ कहा जाएगा।

(47). अपने श्रम का महत्व –पूजा की वस्तुएं स्वयं लाकर तन्मय भाव से पूजन करने से पूर्ण फल प्राप्त होता है।अन्य व्यक्ति द्वारा दिए गये साधनों से पूजा करने पर आधा फल मिलता है।

(48). वर्जित पुष्पादि –
     [1] पीले रंग की कट सरैया , नाग चंपा तथा दोनों प्रकार की वृहती के फूल पूजा में नही चढाये जाते।
     [2] सूखे ,बासी , मलिन , दूषित तथा उग्र गंध वाले पुष्प देवता पर नही चढाये जाते।
     [3] विष्णु पर अक्षत , आक तथा धतूरा नही चढाये जाते।
     [4] शिव पर केतकी , बन्धुक { दुपहरिया } , कुंद , मौलश्री , कोरैया , जयपर्ण , मालती और
जूही के पुष्प नही चढाये जाते।
     [5]दुर्गा पर दूब , आक , हरसिंगार , बेल तथा तगर नही चढाये जाते।
     [6] सूर्य तथा गणेश पर तुलसी नही चढाई जाती।
     [7] चंपा तथा कमल की कलियों के अतिरिक्त अन्य पुष्पों की कलियाँ नही चढाई जाती।

(49). ग्राह्यपुष्प – 
    ~विष्णु पर श्वेत तथा पीले पुष्प , तुलसी
    ~ सूर्य , गणेश पर लाल रंग के पुष्प , 
    ~लक्ष्मी पर कमल,
    ~शिव के ऊपर आक , धतूरा , बिल्वपत्र तथा कनेर के पुष्प विशेष रूप से चढाये जाते हैं। 
    ~अमलतास के पुष्प तथा तुलसी को निर्माल्य नही माना जाता।

(50). ग्राह्य पत्र- – तुलसी , मौलश्री ,
चंपा , कमलिनी , बेल ,श्वेत कमल , अशोक ,
मैनफल , कुषा , दूर्वा , नागवल्ली , अपामार्ग ,
विष्णुक्रान्ता , अगस्त्य तथा आंवला इनके पत्ते देव पूजन में ग्राह्य हैं।

(51). ग्राह्य फल – जामुन , अनार , नींबू  , इमली , बिजौरा , केला , आंवला , बेर , आम तथा कटहल ये फल देवपूजन में ग्राह्य हैं।

(52). धूप – अगर एवं गुग्गुल की धूप विशेष
रूप से ग्राह्य है ,यों चन्दन-चूरा , बालछड़ आदि का प्रयोग भी धूप के रूप में किया जाता है।

(53). दीपक की बत्तियां – यदि दीपक में अनेक
बत्तियां हों तो उनकी संख्या विषम रखनी चाहिए ।
   दायीं ओर के दीपक में सफ़ेद रंग की बत्ती तथा 
बायीं ओर के दीपक में लाल रंग की बत्ती डालनी चाहिए।
                    🙏 सनातन धर्म की जय 🙏
                           वेद भगवान की जय

सारी पृथिवी के सभी मनुष्य एक साथ रोगी और भोगी कैसे हो गए?

सारी पृथिवी के सभी मनुष्य एक साथ रोगी और भोगी कैसे हो गए?

 *अठारहों पुराणों में कलियुग के स्त्री और पुरुषों की आयु का वर्णन मिलता है । उनकी बुद्धि और मन कैसे होंगें , ये भी लिखा है ।* 

हम सोचते थे कि अचानक सभी लोग एक जैसे कैसे हो जाएंगे ?  सभी रोगी कैसे हो जाएंगे ? सभी एकसाथ दुष्ट और बेईमान कैसे हो जाएंगे ?  

धरती के सभी स्त्री पुरषों में एक जैसी सोच कैसे हो जाएगी ? हजारों किलोमीटर दूर रहनेवाले लोग , जो कभी भी एक दूसरे नहीं मिले हैं ,तो भी दोनों के आचरण और विचार एक जैसे कैसे हो जाएंगे ?  

यही प्रश्न बार बार मन में आ जाता था । लेकिन  जब मोबाइल और लैफ्टोप आदि का निर्माण हुआ , और पूरे संसार में फैल गया तो ,तब पुराणों कीं बातें समझ में आईं , कि भगवान का विधान अद्भुत है । 

भगवान ने दो चार ऐसे मनुष्यों को उत्पन्न किया कि उन्होंने सारी पृथिवी के सभी स्त्री पुरुषों के मन और बुद्धि को एकजैसा बना दिया ।  

सभी स्त्री और पुरुषों को रातदिन देखने , सुनने , खाने पीने , और जगने की आदत ऐसी बन गई कि सभी लोग अनेक रोगों से ग्रस्त हो गए । 

रोगी शरीर की शक्ति बहुत दिनों तक स्थिर नहीं हो सकती है , इसलिए आयु भी कम हो गई । लोग जलदी मरने लगे । 

रोगी व्यक्ति को स्वस्थ रहने की लालसा ने डाक्टरों का दास बना दिया । 

*डाक्टर भी भगवान ने ऐसे बना दिए कि जिसके खाने पीने से शरीर में शक्ति आती है , उसी घी दूध को वे मना करने लगे ।*

*दवाई खिलाते हैं लेकिन घी दूध को मना कर दिया जाता है । अब सब मेरे समझ में आ गया है कि "  किस विधि से युग के अनुसार भगवान परिवर्तन करते हैं ।* 

ऐसे लोगों को समाज में उतारा है भगवान ने कि सभी लोग इनका ही विश्वास करेंगे । तथा इनकी बुद्धि भी ऐसी बदली है कि डाक्टर , नेता , वकील जज आदि ऐसी सलाह देंगे कि सभी स्त्री पुरुषों को जो अच्छा है , वह बुरा दिखाई देने लगेगा ,और जो बुरा है वह सही और अच्छा दिखाई देने लगेगा । 

वाह प्रभो ! आप जब चाहें , जो चाहें. वह सब कुछ कर सकते हैं । अब देखिए कि भारत के सभी  स्त्री पुरुष योग को *"योगा"* कहने लगे । अंग्रेजी का ज्ञान नहीं है , फिर भी योग को योगा कहते हैं ।  

उसमें भी ये भी ज्ञान नहीं है कि *"योग क्या है और व्यायाम क्या है ?*  व्यायाम को योगा कहला दिया है किसी ने , तो भी ठीक है । 

स्वस्थ आदमी को व्यायाम करना चाहिए , योग करना चाहिए , तो ऐसे लोग हैं कि बीमार लोग योग व्यायाम करने लगे हैं । खैर , छोड़िए ।     

अब देखते हैं कि भगवान श्री कृष्ण किसको योग कहते हैं । तथा कौन सा योग दुख को नष्ट करता है । 

*🌹🚩🌷" गीता के छठवें अध्याय के 17 वें श्लोक में भगवान ने अर्जुन से कहा है कि* 

*🌹🌷"युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।*
*युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा " ।।🌷🌹*

हे अर्जुन !  इन तीन कर्मों को शक्ति के अनुसार तथा समय के अनुसार करने का नाम ही" योग " है । यह योग करनेवाले मनुष्य के सभी शारीरिक और मानसिक दुख स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं ।             

*🌹(1)  युक्ताहारविहारस्य  --* सुपाच्य और ऋतु के अनुसार भूख के अनुसार एक निश्चित समय में भोजन करना , तथा एक निश्चित समय में ही विहार ,अर्थात स्त्री पुरुष का संयोग करना ही योग है । न बासा खाना , और न ही भोजन के अतिरिक्त तीखा , चटपटा आदि खाना ।                          

*🌹(2) युक्तचेष्टस्य कर्मसु --*  शरीर से किया जानेवाला कर्म ( मेहनत ) तथा बुद्धि से किया जानेवाला कर्म (मेहनत)  एक निश्चित समय से निश्चित समय तक ही शक्ति के अनुसार करना चाहिए । यही योग है । शरीर से तथा बुद्धि से उतना ही करना चाहिए , जितना करना आवश्यक है ।        

*🌹(3) युक्तस्वप्नावबोधस्य --* एक निश्चित समय में सोना चाहिए तथा एक निश्चित समय में ही जगना चाहिए ।  "योगो भवति दुःखहा" सबकुछ समय पर ही करनेवाले मनुष्य का योग ही सभी शारीरिक रोगों से मुक्त रखेगा । शरीर निरोग रहेगा तो मन भी प्रसन्न रहेगा । 

निरोगी शरीर से ही आप किसी की सहायता सेवा कर सकते हैं ।  *अर्थात संयम ही योग है । असंयम ही रोग है ।*

  जिसके सोने का समय निश्चित नहीं है और जागने का समय प्रातःकाल निश्चित नहीं है ।  उन स्त्री पुरुषों को 40 वर्ष के बाद डायविटीज , वी. पी. आदि रोग निश्चित होना है ।  

40 के बाद के रोगी होने से लेकर मृत्यु तक न तो कोई प्रसन्नता होगी और न ही उत्साह और सुख मिलेगा ।  रोगी शरीर से न तो अनुलोम विलोम ,प्राणायाम होंगे और न ही कोई रोग नष्ट होंगे । 

जिन्होंने जब चाहे जो कुछ भी खाया है , उनके  बीसों साल खाने के लिए तरसते हुए बीतेंगे । जिसने मोबाइल चलाकर बहुत देखा है , उसका आधे से अधिक आयु अंधे होकर ही बीतनी है । देखने के लिए वर्षों तक तड़पता रहेगा । 

*आपका असंयम ही आपके लिए जीते जी  नरक तैयार करेगा ।* 

*इसलिए जलदी सोना चाहिए और जलदी उठना चाहिए । बाजार के बने समोसा चाट आदि नहीं खाना चाहिए । जीभ को सम्हालिए , नहीं तो बहुत छोटी उमर में ही वृद्धावस्था आ जाएगी ।*

राधे राधे ।

उत्तराखंड से 2,00,000 मुस्लिम बच्चे रातों-रात हो गए गायब

उत्तराखंड से 200000 मुस्लिम बच्चे रातों-रात हो गए गायब, फिर सामने आयी वो खौफनाक सच्चाई, जिसे देख मोदी जी भी रह गए हैरान


 नई दिल्ली : अभी हाल ही में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा था कि देश के मुस्लिमों में बेचैनी का अहसास और असुरक्षा की भावना है. अभी-अभी आ रही एक बेहद सनसनीखेज खबर से साबित हो गया है कि आखिर हामिद अंसारी जैसे लोगों में असुरक्षा की भावना क्यों पनप रही है. खबर है कि उत्तराखंड में मदरसों में पढ़ने वाले करीब 2 लाख मुस्लिम बच्चे रातों-रात गायब हो गए हैं. पूरी खबर जान कर आपके पैरों तले भी जमीन खिसक जायेगी.

दरअसल मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को पिछले कई दशकों से हर महीने सरकार की ओर से वजीफा यानी स्कॉलरशिप दी जा रही थी. लेकिन जैसे ही उत्तराखंड सरकार ने इन बच्चों के बैंक खातों को आधार नंबर से लिंक करने को कहा, तो एक साथ 1 लाख 95 हजार 360 बच्चे गायब हो गए. गायब हुए इन छात्रों के नाम पर अभी तक सरकार हर साल करीब साढ़े 14 करोड़ रुपये छात्रवृत्ति बांट रही थीं. जो कि अब घट कर केवल 2 करोड़ रह गयी है.

जानिये क्या है पूरा माजरा !

दरअसल गायब हुए ये बच्चे कभी थे ही नहीं, बच्चो के झूठे नामों के आधार पर मदरसों द्वारा सरकार से पैसे लिए जा रहे थे. कांग्रेस की सरकार थी, तो जाहिर है कि लूट का माल नीचे से ऊपर तक बांटा जाता होगा वरना ऐसा कैसे हो सकता है कि कांग्रेस सरकार को इस घोटाले की भनक तक नहीं लगी और बीजेपी ने आते ही पता लगा लिया.

तो इसलिए असुरक्षित हैं मुसलमान?

ये तो अकेले उत्तराखंड का मामला है, अब आप खुद ही समझ सकते हैं कि जब मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी ने उत्तर प्रदेश में मदरसों को अपना रजिस्ट्रेशन करवाने को कहा तो क्यों इतना हंगामा खड़ा कर दिया गया. इस बात से साबित हो गया है कि बीजेपी की सरकार आने के बाद से मुस्लिम खुद को क्यों असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.

2014-15 तक केवल उत्तराखंड में 2 लाख 21 हजार आठ सौ मुस्लिम छात्र सरकारी स्कॉलरशिप पा रहे थे. आधार से लिंक होते ही इनकी संख्या गिरकर केवल 26 हजार 440 रह गई. यानी लगभग 88 फीसदी मुस्लिम छात्रों की संख्या कम हो गई. ये वो स्कॉलरशिप है जो बीपीएल यानि बेहद गरीब परिवारों के छात्रों को दी जाती है. सरकार उन छात्रों के लिए भी प्रावधान लायी, जिनके पास आधार नहीं है. ऐसे छात्रों को भी स्कॉलरशिप का फायदा मिल रहा है, लेकिन इसके लिए उन्हें जिलाधिकारी से सत्यापन करवाना जरूरी है. लेकिन सत्यापन हो कैसे, जब वो छात्र हैं ही नहीं.

फर्जी मदरसे, फर्जी छात्र, और सरकारी पैसों की लूट !

फर्जी नामों के आधार पर बरसों से जनता के पैसों की लूट हो रही थी. ये तो कुछ भी नहीं, और सुनिए. छात्र तो छोड़िये, यहाँ तो कई मदरसे भी केवल कागजों पर चल रहे थे. असलियत में कई मदरसे थे ही नहीं और ना ही इनमे कोई छात्र पढ़ते थे. बस केवल फर्जी छात्रों के नाम भेजकर आराम से सरकारी फंड हासिल कर रहे थे.

हैरत की बात तो ये है कि उत्तराखंड के 13 जिलों में से 6 जिलों में तो एक भी मुसलमान छात्र स्कॉलरशिप लेने नहीं आया. सबसे ज्यादा लूट हरिद्वार जिले में चल रही थी. इसके बाद ऊधमसिंहनगर, देहरादून और नैनीताल जिलों के नंबर आते हैं.

जिले की आबादी से भी ज्यादा बच्चे ?

अभी और सुनिए, कुछ जिलों में अब तक *जितने मुस्लिम छात्रों को स्कॉलरशिप दी जा रही थी, उतनी तो उन जिलों की कुल आबादी भी नहीं है.* जितनी आबादी नहीं है, उससे भी ज्यादा छात्रों के नाम पर मदरसे वर्षों से जनता के पैसों की लूट कर रहे थे. *कांग्रेस तुष्टिकरण के चलते ये सब होने दे रही थी और शायद अपना कमीशन भी लेती हो.

बीजेपी सरकार आने के बाद इस घोटाले पर नकेल कसनी शुरू कर दी गई, तो एकदम से हामिद अंसारी जैसों को असुरक्षित महसूस होने लगा. बहरहाल अब जिला प्रशासन को इस घोटाले के दोषियों की लिस्ट तैयार करने और उन पर कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं. मदरसे के लुटेरों की धर-पकड़ शुरू हो गयी है, अंदेशा है कि इन्हे सजा तो होगी ही, साथ ही इनसे लूटा हुआ पैसा भी निकलवाया जाएगा.

यूपी में भी इसीलिए है सारी दिक्कत

उत्तर प्रदेश में तो और भी काफी कुछ चल रहा है. सरकारी पैसों की लूट वहां भी ऐसे ही की जा रही है, साथ ही खुफिया एजेंसियों ने ये भी अलर्ट दिया है कि कई मदरसों में बच्चों को कट्टरपंथी शिक्षा भी दी जा रही है. इस तरह की गड़बड़ियों को देखते हुए मुख्यमंत्री श्री योगी जी ने सभी मदरसों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है. राज्य में कई मदरसे बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं, उन्हें फंड कहाँ से आता है, इसकी किसी को कोई जानकारी तक नहीं है.

इन मदरसों में क्या पढ़ाया जा रहा है, इस पर भी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता. जबकि ऐसे छात्रों को लगातार अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं के तहत तमाम फायदे मिलते रहते हैं. *उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में चल रहे लगभग 800 मदरसों पर प्रतिवर्ष 4000करोड़ रुपये खर्च करती है.* मगर हैरत की बात है कि इसका एक बड़ा हिस्सा छात्रों तक पहुंचने की जगह उन लोगों की जेब में जा रहा है, जिन्हें लेकर *हामिद अंसारी जैसे लोग परेशान हो रहे हैं.*ડ

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पश्चिमी राजस्थान एक और महामारी की चपेट में : पानी नहीं बल्कि अनजाने में कैंसर का प्रसाद

पश्चिमी राजस्थान एक और महामारी की चपेट में :

पश्चिमी राजस्थान के हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, चूरू, बीकानेर, नागौर, जोधपुर, पाली, जैसलमेर और बाड़मेर जिलों के लगभग दो करोड़ लोगों द्वारा "इंदिरा गांधी नहर का पानी" पेयजल के रूप में काम लिया जाता है। थार की जीवनदायिनी कही जाने वाली "इंदिरा गांधी नहर" शायद अब थार के लोगों के लिए कोरोना से भी बड़ा खतरा बन गई है! इस जल का उपयोग करने वाला परिवार दरअसल पानी नहीं बल्कि अनजाने में कैंसर का प्रसाद ग्रहण करता है। उन्हे पता ही नहीं कि कब नहर के प्रदुषित पानी ने उसके परिवार में मौत बनकर दस्तक दी है।
हकीकत तो यह है, कि प्रतिवर्ष नहरबंदी के बाद जब-जब इंदिरा गांधी नहर में पानी छोड़ा जाता है, वो मंजर यदि कोई व्यक्ति अपनी आंखों से देख ले तो वह जिंदगी भर इस नहर का पानी पीना छोड़ दे। लेकिन क्या करें ? अब ये हमारी मजबूरी यह है! क्योंकि हमने ही अपने परंपरागत जल स्रोतों को अपने हाथों से बर्बाद किया है।  और पूरे पश्चिमी राजस्थान के पास पेयजल की आपूर्ति के लिए अन्य कोई विकल्प नहीं है।
हमारे केंद्र और पंजाब और राजस्थान के "प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड" और सिंचाई विभागों के आला अधिकारी व संबंधित मंत्री, स्थानीय नेता कभी भी इस मुद्दे पर गंभीरता नहीं दिखाते।  सरकारों द्वारा जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए अत्यंत कड़े कानून बनाए गए हैं, तो फिर उन कानूनों की पालना नहीं होती । ऐसे अधिकारी, जो इस नहर में औद्योगिक प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों को प्रदूषण नियंत्रण के "वार्षिक प्रमाण पत्र" जारी करते हैं, उनके खिलाफ कार्यवाही करनी चहिए। स्थानीय प्रशासन और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ इस इस घिनोन अपराध हेतु "आपराधिक मुकदमे" दर्ज होने चाहिए! या भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो गई ? कि करोड़ों लोगों के जीवन को भी अनदेखा किया जाए! हालांकि लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करना सरकारों के लिए नई बात नहीं है! यह हमने "कोरोना काल" में बहुत अच्छे से देखा है, ऑक्सीजन की कमी, थी को की बर्बादी, आरोप- प्रत्यारोप की राजनीति करना आम बात है। 
 
"इंदिरा गांधी नहर" का नाम जिस महान और कर्मठ राजनेता के नाम से रखा गया है, कम से कम उस नाम की तो लाज रख ले संभाग के राजनेता। लेकिन आज तक इतने गंभीर मसले पर पंजाब और राजस्थान की सरकारों ने कोइ ठोस क़दम नहीं उठाए ओर ना ही केंद्र सरकार ने इसका संज्ञान लिया! पेयजल के रूप में दिए जाने वाले पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश सरकार गंभीर कदम उठाने चाहिए। शायद व्यवस्था में बैठे लोगों को "उग्र आंदोलनों" के अलावा इस तरह की समस्या नजर ही नहीं आ रही!
वर्तमान परिस्थितियों को देखकर लगता है कि, यह प्रदूषित पानी एक बार फिर इलाके के जागरूक लोगों के दिलो-दिमाग में आग लगाएगा कुछ प्रेस और सोशल मीडिया में लिखा जाएगा। और जो इस विषय और समस्या पर जानकारी रखते हैं, वह अपनी अपनी राजनेतिक पृष्ठभूमि, चाटुकारिता और किसी राजनीतिक पद की उम्मीद में मोन बैठे रहेंगे! और नतिजा व्यवस्था में बैठे जिम्मेदार लोगों के कान पर जूं तक नहीं रेंगेगी, और समस्या आने वाले सालों में भी जस की तस बनी रहेगी!
- डॉ. अनिल कुमार छंगाणी, D.Sc.

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