पश्चिमी राजस्थान एक और महामारी की चपेट में :
पश्चिमी राजस्थान के हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, चूरू, बीकानेर, नागौर, जोधपुर, पाली, जैसलमेर और बाड़मेर जिलों के लगभग दो करोड़ लोगों द्वारा "इंदिरा गांधी नहर का पानी" पेयजल के रूप में काम लिया जाता है। थार की जीवनदायिनी कही जाने वाली "इंदिरा गांधी नहर" शायद अब थार के लोगों के लिए कोरोना से भी बड़ा खतरा बन गई है! इस जल का उपयोग करने वाला परिवार दरअसल पानी नहीं बल्कि अनजाने में कैंसर का प्रसाद ग्रहण करता है। उन्हे पता ही नहीं कि कब नहर के प्रदुषित पानी ने उसके परिवार में मौत बनकर दस्तक दी है।
हकीकत तो यह है, कि प्रतिवर्ष नहरबंदी के बाद जब-जब इंदिरा गांधी नहर में पानी छोड़ा जाता है, वो मंजर यदि कोई व्यक्ति अपनी आंखों से देख ले तो वह जिंदगी भर इस नहर का पानी पीना छोड़ दे। लेकिन क्या करें ? अब ये हमारी मजबूरी यह है! क्योंकि हमने ही अपने परंपरागत जल स्रोतों को अपने हाथों से बर्बाद किया है। और पूरे पश्चिमी राजस्थान के पास पेयजल की आपूर्ति के लिए अन्य कोई विकल्प नहीं है।
हमारे केंद्र और पंजाब और राजस्थान के "प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड" और सिंचाई विभागों के आला अधिकारी व संबंधित मंत्री, स्थानीय नेता कभी भी इस मुद्दे पर गंभीरता नहीं दिखाते। सरकारों द्वारा जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए अत्यंत कड़े कानून बनाए गए हैं, तो फिर उन कानूनों की पालना नहीं होती । ऐसे अधिकारी, जो इस नहर में औद्योगिक प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों को प्रदूषण नियंत्रण के "वार्षिक प्रमाण पत्र" जारी करते हैं, उनके खिलाफ कार्यवाही करनी चहिए। स्थानीय प्रशासन और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ इस इस घिनोन अपराध हेतु "आपराधिक मुकदमे" दर्ज होने चाहिए! या भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो गई ? कि करोड़ों लोगों के जीवन को भी अनदेखा किया जाए! हालांकि लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करना सरकारों के लिए नई बात नहीं है! यह हमने "कोरोना काल" में बहुत अच्छे से देखा है, ऑक्सीजन की कमी, थी को की बर्बादी, आरोप- प्रत्यारोप की राजनीति करना आम बात है।
"इंदिरा गांधी नहर" का नाम जिस महान और कर्मठ राजनेता के नाम से रखा गया है, कम से कम उस नाम की तो लाज रख ले संभाग के राजनेता। लेकिन आज तक इतने गंभीर मसले पर पंजाब और राजस्थान की सरकारों ने कोइ ठोस क़दम नहीं उठाए ओर ना ही केंद्र सरकार ने इसका संज्ञान लिया! पेयजल के रूप में दिए जाने वाले पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश सरकार गंभीर कदम उठाने चाहिए। शायद व्यवस्था में बैठे लोगों को "उग्र आंदोलनों" के अलावा इस तरह की समस्या नजर ही नहीं आ रही!
वर्तमान परिस्थितियों को देखकर लगता है कि, यह प्रदूषित पानी एक बार फिर इलाके के जागरूक लोगों के दिलो-दिमाग में आग लगाएगा कुछ प्रेस और सोशल मीडिया में लिखा जाएगा। और जो इस विषय और समस्या पर जानकारी रखते हैं, वह अपनी अपनी राजनेतिक पृष्ठभूमि, चाटुकारिता और किसी राजनीतिक पद की उम्मीद में मोन बैठे रहेंगे! और नतिजा व्यवस्था में बैठे जिम्मेदार लोगों के कान पर जूं तक नहीं रेंगेगी, और समस्या आने वाले सालों में भी जस की तस बनी रहेगी!
- डॉ. अनिल कुमार छंगाणी, D.Sc.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.