सारी पृथिवी के सभी मनुष्य एक साथ रोगी और भोगी कैसे हो गए?
*अठारहों पुराणों में कलियुग के स्त्री और पुरुषों की आयु का वर्णन मिलता है । उनकी बुद्धि और मन कैसे होंगें , ये भी लिखा है ।*
हम सोचते थे कि अचानक सभी लोग एक जैसे कैसे हो जाएंगे ? सभी रोगी कैसे हो जाएंगे ? सभी एकसाथ दुष्ट और बेईमान कैसे हो जाएंगे ?
धरती के सभी स्त्री पुरषों में एक जैसी सोच कैसे हो जाएगी ? हजारों किलोमीटर दूर रहनेवाले लोग , जो कभी भी एक दूसरे नहीं मिले हैं ,तो भी दोनों के आचरण और विचार एक जैसे कैसे हो जाएंगे ?
यही प्रश्न बार बार मन में आ जाता था । लेकिन जब मोबाइल और लैफ्टोप आदि का निर्माण हुआ , और पूरे संसार में फैल गया तो ,तब पुराणों कीं बातें समझ में आईं , कि भगवान का विधान अद्भुत है ।
भगवान ने दो चार ऐसे मनुष्यों को उत्पन्न किया कि उन्होंने सारी पृथिवी के सभी स्त्री पुरुषों के मन और बुद्धि को एकजैसा बना दिया ।
सभी स्त्री और पुरुषों को रातदिन देखने , सुनने , खाने पीने , और जगने की आदत ऐसी बन गई कि सभी लोग अनेक रोगों से ग्रस्त हो गए ।
रोगी शरीर की शक्ति बहुत दिनों तक स्थिर नहीं हो सकती है , इसलिए आयु भी कम हो गई । लोग जलदी मरने लगे ।
रोगी व्यक्ति को स्वस्थ रहने की लालसा ने डाक्टरों का दास बना दिया ।
*डाक्टर भी भगवान ने ऐसे बना दिए कि जिसके खाने पीने से शरीर में शक्ति आती है , उसी घी दूध को वे मना करने लगे ।*
*दवाई खिलाते हैं लेकिन घी दूध को मना कर दिया जाता है । अब सब मेरे समझ में आ गया है कि " किस विधि से युग के अनुसार भगवान परिवर्तन करते हैं ।*
ऐसे लोगों को समाज में उतारा है भगवान ने कि सभी लोग इनका ही विश्वास करेंगे । तथा इनकी बुद्धि भी ऐसी बदली है कि डाक्टर , नेता , वकील जज आदि ऐसी सलाह देंगे कि सभी स्त्री पुरुषों को जो अच्छा है , वह बुरा दिखाई देने लगेगा ,और जो बुरा है वह सही और अच्छा दिखाई देने लगेगा ।
वाह प्रभो ! आप जब चाहें , जो चाहें. वह सब कुछ कर सकते हैं । अब देखिए कि भारत के सभी स्त्री पुरुष योग को *"योगा"* कहने लगे । अंग्रेजी का ज्ञान नहीं है , फिर भी योग को योगा कहते हैं ।
उसमें भी ये भी ज्ञान नहीं है कि *"योग क्या है और व्यायाम क्या है ?* व्यायाम को योगा कहला दिया है किसी ने , तो भी ठीक है ।
स्वस्थ आदमी को व्यायाम करना चाहिए , योग करना चाहिए , तो ऐसे लोग हैं कि बीमार लोग योग व्यायाम करने लगे हैं । खैर , छोड़िए ।
अब देखते हैं कि भगवान श्री कृष्ण किसको योग कहते हैं । तथा कौन सा योग दुख को नष्ट करता है ।
*🌹🚩🌷" गीता के छठवें अध्याय के 17 वें श्लोक में भगवान ने अर्जुन से कहा है कि*
*🌹🌷"युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।*
*युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा " ।।🌷🌹*
हे अर्जुन ! इन तीन कर्मों को शक्ति के अनुसार तथा समय के अनुसार करने का नाम ही" योग " है । यह योग करनेवाले मनुष्य के सभी शारीरिक और मानसिक दुख स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं ।
*🌹(1) युक्ताहारविहारस्य --* सुपाच्य और ऋतु के अनुसार भूख के अनुसार एक निश्चित समय में भोजन करना , तथा एक निश्चित समय में ही विहार ,अर्थात स्त्री पुरुष का संयोग करना ही योग है । न बासा खाना , और न ही भोजन के अतिरिक्त तीखा , चटपटा आदि खाना ।
*🌹(2) युक्तचेष्टस्य कर्मसु --* शरीर से किया जानेवाला कर्म ( मेहनत ) तथा बुद्धि से किया जानेवाला कर्म (मेहनत) एक निश्चित समय से निश्चित समय तक ही शक्ति के अनुसार करना चाहिए । यही योग है । शरीर से तथा बुद्धि से उतना ही करना चाहिए , जितना करना आवश्यक है ।
*🌹(3) युक्तस्वप्नावबोधस्य --* एक निश्चित समय में सोना चाहिए तथा एक निश्चित समय में ही जगना चाहिए । "योगो भवति दुःखहा" सबकुछ समय पर ही करनेवाले मनुष्य का योग ही सभी शारीरिक रोगों से मुक्त रखेगा । शरीर निरोग रहेगा तो मन भी प्रसन्न रहेगा ।
निरोगी शरीर से ही आप किसी की सहायता सेवा कर सकते हैं । *अर्थात संयम ही योग है । असंयम ही रोग है ।*
जिसके सोने का समय निश्चित नहीं है और जागने का समय प्रातःकाल निश्चित नहीं है । उन स्त्री पुरुषों को 40 वर्ष के बाद डायविटीज , वी. पी. आदि रोग निश्चित होना है ।
40 के बाद के रोगी होने से लेकर मृत्यु तक न तो कोई प्रसन्नता होगी और न ही उत्साह और सुख मिलेगा । रोगी शरीर से न तो अनुलोम विलोम ,प्राणायाम होंगे और न ही कोई रोग नष्ट होंगे ।
जिन्होंने जब चाहे जो कुछ भी खाया है , उनके बीसों साल खाने के लिए तरसते हुए बीतेंगे । जिसने मोबाइल चलाकर बहुत देखा है , उसका आधे से अधिक आयु अंधे होकर ही बीतनी है । देखने के लिए वर्षों तक तड़पता रहेगा ।
*आपका असंयम ही आपके लिए जीते जी नरक तैयार करेगा ।*
*इसलिए जलदी सोना चाहिए और जलदी उठना चाहिए । बाजार के बने समोसा चाट आदि नहीं खाना चाहिए । जीभ को सम्हालिए , नहीं तो बहुत छोटी उमर में ही वृद्धावस्था आ जाएगी ।*
राधे राधे ।
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