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बुधवार, 23 नवंबर 2022

कमर दर्द, गठिया और जोड़ों के दर्द से परेशान हैं तो ठंड में मैथी के लड्डू का करें सेवन, पढ़ें सरल विधि

*कमर दर्द, गठिया और जोड़ों के दर्द से परेशान हैं तो ठंड में मैथी के लड्डू का करें सेवन, पढ़ें सरल विधि* 
 
सामग्री :
500 ग्राम मोटा पिसा गेहूं का आटा, 500 ग्राम मैथी दाना, 100 ग्राम खाने वाला गोंद बारीक किया हुआ, एक किलो गुड़, 250 ग्राम शकर का बूरा (पिसी शकर), 100 ग्राम पिसी छनी बारीक सोंठ, 1 किलो के करीब शुद्ध घी, 100 ग्राम खसखस, 250 ग्राम बारीक कटा मेवा, 10 ग्राम इलायची पावडर।

विधि :

सबसे पहले मैथी दाने को साफ करके दो दिन पानी बदलकर भिगोएं। ताजे पानी से धोकर बारीक पीस लें। मोटे तले की फ्राइंगपेन में एक बड़ा चम्मच घी डालकर धीमी आंच में भूनें। घी की जरूरत लगने पर थोड़ा-थोड़ा डालकर चलाते हुए भूनते रहें। ब्राउन होने और खुशबू आने पर उतार लें। आटे को छानकर घी के साथ अलग से इसी तरह भून लें।

गोंद को घी में फुलाकर हल्का-सा कुचल लें। कम गरम घी में सोंठ और खसखस को डालकर निकाल लें। गुड़ को बारीक करके घी के साथ चलाएं। जब गुड़ घी में अच्छी तरह से मिल जाए तो उतार लें। इसमें तैयार की हुई सारी सामग्री, कटे मेवे, इलायची पावडर मिला दें। आधा बूरा भी मिला दें।
घी कम लगे तो इसमें आवश्यकता नुसार गरम घी मिला लें। अब थोड़ा गरम रहते ही मिश्रण को हथेलियों से रगड़ें और एक साइज के लड्डू बना लें।

सर्दी के दिनों में सुबह नाश्ते में यह लड्डू खाने से कमर दर्द, गठिया तथा जोड़ों का दर्द और वात रोग में लाभ मिलता है तथा स्फूर्ति बनी रहती है। ठंड के दिनों में इन लड्‍डुओं का सेवन करने से आप कई तरह की बीमारियों से बचे रहेंगे।

ऐसे हिन्दू योद्धाओं का संदर्भ हमें हमारे इतिहास में तत्कालीन नेहरू-गाँधी सरकार के शासन काल में कभी नहीं पढ़ाया गया!

*शर्त ये है कि इसको पढ़ कर अपने ग्रुप में फारवर्ड जरूर करें:
 *खोयी हुई, या गायब की हुई इतिहास की एक झलक 

*622 ई से लेकर 634 ई तक मात्र 12 वर्ष में अरब के सभी मूर्तिपूजकों को मुहम्मद ने  तलवार से जबरदस्ती मुसलमान बना दिया! (मक्का में महादेव काबळेश्वर (काबा) को छोड कर!)*

*634 ईस्वी से लेकर 651 तक, यानी मात्र 16 वर्ष में सभी पारसियों को तलवार की नोंक पर जबरदस्ती मुसलमान बना दिया!*

*640 में मिस्र में पहली बार इस्लाम ने पांँव रखे, और देखते ही देखते मात्र 15 वर्ष में, 655 तक इजिप्ट के लगभग सभी लोग जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*नार्थ अफ्रीकन देश जैसे अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को आदि देशों को 640 से 711 ई तक पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म में जबरदस्ती बदल दिया गया!*

*3 देशों का सम्पूर्ण सुख चैन जबरदस्ती छीन लेने में मुसलमानो ने मात्र 71 वर्ष लगाए!*

*711 ईस्वी में स्पेन पर आक्रमण हुआ, 730 ईस्वी तक स्पेन की 70% आबादी मुसलमान थी!*

*मात्र 19 वर्ष में तुर्क थोड़े से वीर निकले, तुर्कों के विरुद्ध जिहाद 651 ईस्वी में आरंभ हुआ, और 751 ईस्वी तक सारे तुर्क जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*इण्डोनेशिया के विरुद्ध जिहाद मात्र 40 वर्ष में पूरा हुआ! सन 1260 में मुसलमानों ने इण्डोनेशिया में मारकाट मचाई, और 1300 ईस्वी तक सारे इण्डोनेशियाई जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान, जॉर्डन आदि देशों को 634 से 650 के बीच जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*सीरिया की कहानी तो और दर्दनाक है! मुसलमानों ने इसाई सैनिकों के आगे अपनी महिलाओ को कर दिया! मुसलमान महिलाये गयीं इसाइयों के पास, कि मुसलमानों से हमारी रक्षा करो! बेचारे मूर्ख इसाइयों ने इन धूर्तो की बातों में आकर उन्हें शरण दे दी! फिर क्या था, सारी "सूर्पनखा" के रूप में आकर, सबने मिलकर रातों रात सभी सैनिकों को हलाल करवा दिया!*

*अब आप भारत की स्थिति देखिये!*

*उसके बाद 700 ईस्वी में भारत के विरुद्ध जिहाद आरंभ हुआ! वह अब तक चल रहा है!*

*जिस समय आक्रमणकारी ईरान तक पहुँचकर अपना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर चुके थे, उस समय उनकी हिम्मत नहीं थी कि भारत के राजपूत साम्राज्य की ओर आंँख उठाकर भी देख सकें!*

*636 ईस्वी में खलीफा ने भारत पर पहला हमला बोला! एक भी आक्रान्ता जीवित वापस नहीं जा पाया!*

*कुछ वर्ष तक तो मुस्लिम आक्रान्ताओं की हिम्मत तक नहीं हुई भारत की ओर मुँह करके सोया भी जाए! लेकिन कुछ ही वर्षो में गिद्धों ने अपनी जात दिखा ही दी! दुबारा आक्रमण हुआ! इस समय खलीफा की गद्दी पर उस्मान आ चुका था! उसने हाकिम नाम के सेनापति के साथ विशाल इस्लामी टिड्डिदल भारत भेजा!*

*सेना का पूर्णतः सफाया हो गया, और सेनापति हाकिम बन्दी बना लिया गया! हाकिम को भारतीय राजपूतों ने मार भगाया और बड़ा बुरा हाल करके वापस अरब भेजा, जिससे उनकी सेना की दुर्गति का हाल, उस्मान तक पहुंँच जाए!*

*यह सिलसिला लगभग 700 ईस्वी तक चलता रहा! जितने भी मुसलमानों ने भारत की तरफ मुँह किया, राजपूत शासकों ने उनका सिर कन्धे से नीचे उतार दिया!*

*उसके बाद भी भारत के वीर जवानों ने पराजय नही मानी! जब 7 वीं सदी इस्लाम की आरंभ हुई, जिस समय अरब से लेकर अफ्रीका, ईरान, यूरोप, सीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया, तुर्की यह बड़े बड़े देश जब मुसलमान बन गए, भारत में महाराणा प्रताप के पूर्वज बप्पा रावल का जन्म हो चुका था!*

*वे अद्भुत योद्धा थे, इस्लाम के पञ्जे में जकड़ कर अफगानिस्तान तक से मुसलमानों को उस वीर ने मार भगाया! केवल यही नहीं, वह लड़ते लड़ते खलीफा की गद्दी तक जा पहुंँचे! जहाँ स्वयं खलीफा को अपनी प्राणों की भिक्षा माँगनी पड़ी!*

*उसके बाद भी यह सिलसिला रुका नहीं! नागभट्ट प्रतिहार द्वितीय जैसे योद्धा भारत को मिले! जिन्होंने अपने पूरे जीवन में राजपूती धर्म का पालन करते हुए, पूरे भारत की न केवल रक्षा की, बल्कि हमारी शक्ति का डङ्का विश्व में बजाए रखा!*

*पहले बप्पा रावल ने पुरवार किया था, कि अरब अपराजित नहीं है! लेकिन 836 ई के समय भारत में वह हुआ, कि जिससे विश्वविजेता मुसलमान थर्रा गए!*

*सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने मुसलमानों को केवल 5 गुफाओं तक सीमित कर दिया! यह वही समय था, जिस समय मुसलमान किसी युद्ध में केवल विजय हासिल करते थे, और वहाँ की प्रजा को मुसलमान बना देते!*

*भारत वीर राजपूत मिहिरभोज ने इन आक्रांताओ को अरब तक थर्रा दिया!*

*पृथ्वीराज चौहान तक इस्लाम के उत्कर्ष के 400 वर्ष बाद तक राजपूतों ने इस्लाम नाम की बीमारी भारत को नहीं लगने दी! उस युद्ध काल में भी भारत की अर्थव्यवस्था अपने उत्कृष्ट स्थान पर थी! उसके बाद मुसलमान विजयी भी हुए, लेकिन राजपूतों ने सत्ता गंवाकर भी पराजय नही मानी, एक दिन भी वे चैन से नहीं बैठे!*

*अन्तिम वीर दुर्गादास जी राठौड़ ने दिल्ली को झुकाकर, जोधपुर का किला मुगलों के हाथो ने निकाल कर हिन्दू धर्म की गरिमा, को चार चाँद लगा दिए!*

*किसी भी देश को मुसलमान बनाने में मुसलमानों ने 20 वर्ष नहीं लिए, और भारत में 800 वर्ष राज करने के बाद भी मेवाड़ के शेर महाराणा राजसिंह ने अपने घोड़े पर भी इस्लाम की मुहर नहीं लगने दी!*

*महाराणा प्रताप, दुर्गादास राठौड़, मिहिरभोज, रानी दुर्गावती, अपनी मातृभूमि के लिए जान पर खेल गए!*

*एक समय ऐसा आ गया था, लड़ते लड़ते राजपूत केवल 2% पर आकर ठहर गए! एक बार पूरा विश्व देखें, और आज अपना वर्तमान देखें! जिन मुसलमानों ने 20 वर्ष में विश्व की आधी जनसंख्या को मुसलमान बना दिया, वह भारत में केवल पाकिस्तान बाङ्ग्लादेश तक सिमट कर ही क्यों रह गए?*

*राजा भोज, विक्रमादित्य, नागभट्ट प्रथम और नागभट्ट द्वितीय, चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, समुद्रगुप्त, स्कन्द गुप्त, छत्रसाल बुन्देला, आल्हा उदल, राजा भाटी, भूपत भाटी, चाचादेव भाटी, सिद्ध श्री देवराज भाटी, कानड़ देव चौहान, वीरमदेव चौहान, हठी हम्मीर देव चौहान, विग्रह राज चौहान, मालदेव सिंह राठौड़, विजय राव लाँझा भाटी, भोजदेव भाटी, चूहड़ विजयराव भाटी, बलराज भाटी, घड़सी, रतनसिंह, राणा हमीर सिंह और अमर सिंह, अमर सिंह राठौड़, दुर्गादास राठौड़, जसवन्त सिंह राठौड़, मिर्जा राजा जयसिंह, राजा जयचंद, भीमदेव सोलङ्की, सिद्ध श्री राजा जय सिंह सोलङ्की, पुलकेशिन द्वितीय सोलङ्की, रानी दुर्गावती, रानी कर्णावती, राजकुमारी रतनबाई, रानी रुद्रा देवी, हाड़ी रानी, रानी पद्मावती, जैसी अनेको रानियों ने लड़ते-लड़ते अपने राज्य की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए!*
*अन्य योद्धा तोगा जी वीरवर कल्लाजी जयमल जी जेता कुपा, गोरा बादल राणा रतन सिंह, पजबन राय जी कच्छावा, मोहन सिंह मँढाड़, राजा पोरस, हर्षवर्धन बेस, सुहेलदेव बेस, राव शेखाजी, राव चन्द्रसेन जी दोड़, राव चन्द्र सिंह जी राठौड़, कृष्ण कुमार सोलङ्की, ललितादित्य मुक्तापीड़, जनरल जोरावर सिंह कालुवारिया, धीर सिंह पुण्डीर, बल्लू जी चम्पावत, भीष्म रावत चुण्डा जी, रामसाह सिंह तोमर और उनका वंश, झाला राजा मान, महाराजा अनङ्गपाल सिंह तोमर, स्वतंत्रता सेनानी राव बख्तावर सिंह, अमझेरा वजीर सिंह पठानिया, राव राजा राम बक्श सिंह, व्हाट ठाकुर कुशाल सिंह, ठाकुर रोशन सिंह, ठाकुर महावीर सिंह, राव बेनी माधव सिंह, डूङ्गजी, भुरजी, बलजी, जवाहर जी, छत्रपति शिवाजी!*

*ऐसे हिन्दू योद्धाओं का संदर्भ हमें हमारे इतिहास में तत्कालीन नेहरू-गाँधी सरकार के शासन काल में कभी नहीं पढ़ाया गया! पढ़ाया ये गया, कि अकबर महान बादशाह था! फिर हुमायूँ, बाबर, औरङ्गजेब, ताजमहल, कुतुब मीनार, चारमीनार आदि के बारे में ही पढ़ाया गया!*

*अगर हिन्दू सङ्गठित नहीं रहते, तो आज ये देश भी पूरी तरह सीरिया और अन्य देशों की तरह पूर्णतया मुस्लिम देश बन चुका होता!*

*ये सुंदर विश्लेषण जानकारी हिंदू समाज तक पहुंचना अनिवार्य है! हर वर्ग और समाज में वीरों की गाथाओं को बताकर उन्हें गर्व की अनुभूति करानी चाहिए!*
  

*कम से कम पांच ग्रुप मैं जरूर भेजे*
*कुछ लोग नही भेजेंगे*
*लेकिन मुझे भरोसा है,  आप जरूर भेजेंगे*🕉️🔱🚩

रविवार, 20 नवंबर 2022

जिनकी शादी कॉन्ट्रैक्ट भर है, वो कॉन्ट्रैक्ट टूटने की खुशियाँ मनाएं। इसे “विवाह-विच्छेद” का उत्सव क्यों बनाना? शादी टूटने का, मैरिज टूटने, तलाक का डाइवोर्स का बनाओ उत्सव

ये पहले ही तय है कि हिन्दुओं के महाकाव्यों के लक्षण क्या होंगे | उसमें चारों पुरुषार्थों का जिक्र होना चाहिए | सिर्फ धर्म की बात नहीं होगी, सिर्फ़ मोक्ष का जिक्र नहीं होगा | वहां धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों होंगे | इसलिए जब आप रामायण या महाभारत पढ़ रहे हैं, सुन रहे हैं और सिर्फ़ आह-वाह करके भावविभोर हो रहे हैं तो आपने आधा ही पढ़ा है | ये भी एक वजह है कि आपको ऐसे ग्रन्थ बार बार पढ़ने पड़ते हैं | अगर आप महाभारत का आखरी हिस्सा यानि स्वर्गारोहण वाला हिस्सा देखेंगे तो धर्म-मोक्ष से अलग एक ऐसा ही सवाल आपके मन में उठेगा |

यहाँ जब पांचो पांडव और द्रौपदी हस्तिनापुर छोड़कर निकलते हैं तो एक रेगिस्तान जैसे इलाके में से गुजर रहे होते हैं | यहाँ ना कोई पेड़ पौधा है ना कोई जीव जन्तु | एक एक कर के सभी गिरने लगते हैं और अकेले युधिष्ठिर ही आगे एक कुत्ते के साथ बढ़ते रह जाते हैं | सबसे पहले द्रौपदी गिरती है | उसके गिरने पर भी जब सभी आगे बढ़ते रहते हैं तो भीम पूछते हैं कि द्रौपदी क्यों गिरी ? युधिष्ठिर बताते हैं कि द्रौपदी पाँचों भाइयों में अर्जुन से ज्यादा प्रेम करती थी, बाकी सब से कम | इसलिए वो सबसे पहले गिरी |

द्रौपदी गिरी थी, मृत नहीं थी | युधिष्ठिर का जवाब उसने भी सुना होगा | सवाल है कि ये सुनने के बाद द्रौपदी ने क्या सोचा होगा ?

स्वयंवर में उसकी शर्तों को सिर्फ अर्जुन ने पूरा किया था | ऐसे में उसके मन में केवल अर्जुन के लिए ही भाव जागे थे तो गलत क्या था ? आगे जब स्वयंवर के बाद का महाभारत भी देखते हैं तो एक और चीज़ पर ध्यान जाएगा | एक प्रेमिका, एक पत्नी की तरह द्रौपदी को सिर्फ भीम स्थान देते हैं | कभी उसके पसंद के फूल लाने गए भीम राक्षसों और मुश्किलों का सामना कर के फूल लाते हैं | कभी जुए में द्रौपदी को दाँव पर लगाने वाले युधिष्ठिर पर चढ़ बैठते हैं | युधिष्ठिर को कह देते हैं कि ये पासे फेंकने वाले तुम्हारे हाथ जल क्यों नहीं जाते ? बड़ी मुश्किल से अर्जुन पकड़ कर सभा में, भीम को रोकते हैं |

महाभारत में द्रौपदी की स्थिति को पांच पतियों वाली विधवा जैसा दर्शाया गया है | पांच पतियों के होते हुए भी जुए वाली सभा में उसे बचाने उसके पति नहीं आये थे | सिर्फ भीम लड़ने को तैयार थे, जिन्हें बाकी भाइयों ने रोका | आगे वनवास में द्रौपदी पर नजर जमाये जयद्रथ को भी भीम का सामना करना पड़ता है | अज्ञातवास के दौरान जब कीचक की कुदृष्टि द्रौपदी पर थी तब भी उसे भीम ने ही मारा | कैसे देखें इसे, एकतरफा प्रेम जैसा ?

प्रश्न है कि प्रेम या विवाह किया कैसे जाना चाहिए ? जिसे आप पसंद करते हैं उस से, या जो आपको पसंद करता है उस से ? जैसे द्रौपदी को अर्जुन पसंद था वैसे, जैसे भीम को द्रौपदी पसंद थी वैसे, या फिर जैसे अर्जुन ने किया था ? उसने सुभद्रा से शादी की थी, जो उसका हरण कर के ले गई थी | अर्जुन ने उलूपी से शादी की थी वो भी अर्जुन का हरण कर के ले गई थी | अर्जुन ने चित्रांगदा से भी शादी की थी, जिसने उसे अपने घर में ही रख लिया था | संबंधों के मामले में अर्जुन शायद द्रौपदी से ज्यादा सुखी रहा |

हिन्दुओं के महाकाव्यों में प्रश्न अपने आप आते हैं | उत्तर आपको खुद भी पता है, किसी और से सुनने की जरूरत भी नहीं | ज्यादातर बार उत्तर, प्रश्न से पहले ही बता दिए गए होते हैं | बिलकुल आपके स्कूल की किताबों जैसा है | पहले चैप्टर ख़त्म होता है, फिर अंत में एक्सरसाइज और क्वेश्चन होते हैं | प्रश्नों के उत्तर पीछे के अध्याय में ही कहीं हैं, आपको पीछे जाकर ढूंढना होता है |

बाकी ये सूचना क्रांति का युग है | आपकी जानकारी जितनी ज्यादा है आप उतने ज्यादा शक्तिशाली होते हैं | ऐसे में अगर आपका विरोधी आपको किसी किताब की बुराई गिना रहा हो तो याद रखिये कि उसमें ऐसी कोई ना कोई जानकारी है जो आपको विरोधी से ज्यादा जानकार, ज्यादा शक्तिशाली बनाती होगी | आह-वाह करने के बदले ग्रन्थ उठा कर पढ़ लीजिये |

ये कथा है ऋषि शमीक की, जो कहीं से अपने आश्रम की ओर लौटते हुए कुरुक्षेत्र के मार्ग से अपने आश्रम की ओर लौट रहे थे। ये तब की घटना थी जब महाभारत का युद्ध बीते कुछ ही समय हुआ था। ऋषि को वहीँ कहीं से पक्षियों के चहकने की ध्वनि सुनाई दी। उन्होंने इधर उधर देखा, क्योंकि आस पास कोई पेड़ या ऐसा कुछ नहीं था जिसपर घोंसला होने और छोटे पक्षियों के होने की संभावना होती। सामने एक हाथी के गले में टांगने वाला बड़ा सा घंटा धरती में धंसा सा पड़ा था। ऋषि शमीक ने उसे उखाड़ा तो पाया कि उसके अन्दर चार छोटे-छोटे पक्षी के बच्चे हैं और वही चहचहा रहे थे!

वो घंटे के अन्दर कैसे पहुंचे? महाभारत के युद्ध में अर्जुन जब भगदत्त से लड़ रहे थे उसी वक्त एक चिड़िया उधर से उड़कर जा रही थी। अर्जुन का एक बाण चिड़िया का पेट चीरता हुआ निकल गया। चिड़िया तो मारी गयी किन्तु उसके अंडे जमीन पर आ गिरे। हाथियों-रथों से अंडे कुचले जाते, मगर भाग्य से एक हाथी का घंटा किसी प्रहार से टूटा और जब वो गिरा तो अण्डों को ढकता हुआ भूमि में थोड़ा धंस गया। धातु धूप से गर्म होती तो अण्डों को भी गर्मी मिल जाती, इस तरह अंडे फूटे और उसमें से चिड़िया के बच्चे निकल आये थे! ऋषि पक्षी शावकों को साथ ले गए और अपने शिष्यों से उनकी देखभाल करने कहा क्योंकि उनका मानना था कि संसार में दैव का ऐसा अनुकूल होना भी पूर्व जन्म के पुण्यों का फल होगा।

इन पक्षियों के पूर्व जन्म की कथा भी उतनी ही विचित्र है। ये किसी तपस्वी की संतान थे जिनकी परीक्षा लेने इंद्र एक वृद्ध पक्षी का रूप धारण करके आये। उन्होंने तपस्वी से कहा कि उन्हें भूख लगी है। जब तपस्वी ने उन्हें भोजन देना स्वीकार लिया, तब पक्षी ने कहा कि उसे तो मानव मांस प्रिय है! अब तपस्वी ने अपने चारों पुत्रों को बुलाकर अपने मांस से पक्षी को तृप्त करने कहा। जब चारों ऐसे कठिन कार्य के लिए तैयार नहीं हुए तो तपस्वी ने अपने पुत्रों को अगले जन्म में पक्षी होने का शाप दिया और स्वयं अपना मांस देने प्रस्तुत हुआ। तपस्वी के वो चारों पुत्र ही ये पक्षी थे! थोड़े बड़े होते ही पक्षी मनुष्यों की भांति बात करने लगे फिर ऋषि शमीक से आज्ञा लेकर विन्ध्यगिरी पर्वत पर निवास करने चले गए।

ये वो कथा है जिससे मार्कंडेय पुराण की करीब-करीब शुरुआत होती है। करीब-करीब शुरुआत इसलिए क्योंकि इन पक्षियों की कथा मार्कंडेय जी महर्षि जैमिनी को सुना रहे होते हैं। महाभारत से सम्बंधित प्रश्नों के उत्तर लेने के लिए मार्कंडेय जी ने महर्षि जैमिनी को इन्हीं पक्षियों के पास भेजा था। मार्कंडेय पुराण की बात क्यों? ऐसा सोच सकते हैं कि शायद दुर्गा पूजा नजदीक ही है। उस दौरान जिस दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है, वो मार्कंडेय पुराण का हिस्सा है, शायद इसलिए। ये पूरा सच नहीं होगा। ये पुराण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ऋतध्वज और उनकी पत्नी मदालसा का आख्यान आता है। मदालसा ने अपने चौथे पुत्र अलर्क को राजनीति, धर्म और अध्यात्म का जो उपदेश दिया था वो अलर्कोपख्यान के नाम से प्रसिद्ध है।

जो पहली लोरी थी, वो भी संभवतः संस्कृत की ही रही होगी। मदालसा का ये भाग “स्त्री को देवी मत बनाओ”, “स्त्री को स्त्री ही रहने दो”, वाले तथाकथित नैरेटिव को भी तोड़ देता है। सामान्य स्थिति में वो कैसे गुरु भी होती है, या कहिये कि पहली गुरु स्त्री ही होगी, इस हिन्दू सत्य को स्थापित करने में ये काम आ सकता है। दुर्गा सप्तशती मार्कंडेय पुराण के सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अंतर्गत आती है। यानि मन्वंतरों और 14 मनुओं की बात इस पुराण में होगी, इतना तो समझ में आता है। जब दूसरे मनु औत्तम की बात हो रही होती है तब ये बात होती है पत्नी-त्याग अपराध है। जिस प्रकार पत्नी अपने पति का त्याग नहीं कर सकती उसी प्रकार पति भी पत्नी का त्याग नहीं कर सकता।

आज एक “विवाह-विच्छेद” के आयोजन के पोस्टर पर हंगामा रहा। शुरू में कुछ लोग समर्थन में दिखे, उसके बाद कुछ लोगों ने कहा कि जिनकी शादी कॉन्ट्रैक्ट भर है, वो कॉन्ट्रैक्ट टूटने की खुशियाँ मनाएं। इसे “विवाह-विच्छेद” का उत्सव क्यों बनाना? शादी टूटने का, मैरिज टूटने, तलाक का डाइवोर्स का बनाओ उत्सव। फिर पता चला आयोजक समुदाय विशेष के हैं। अब हो सकता है कि कुछ लोग सवाल करें। कोई धूप में बाल पकाए बैठे कूढ़मगज चीर-युवा जबरन सवाल करे, या कुछ सचमुच के युवा अपनी जिज्ञासा में पूछें कि बताओ कहाँ लिखा है कि हिन्दुओं को पति का या पत्नी का त्याग नहीं करना चाहिए? ऐसी स्थितियों के लिए याद रखियेगा।

जैसे मार्कंडेय पुराण में सावर्णि नाम के मनु की कथा में दुर्गा सप्तशती आती है, वैसे ही औत्तम नाम के मनु की कथा में पति-पत्नी के त्याग को अपराध बताया गया है।
✍🏻आनन्द कुमार जी की पोस्टों से संग्रहित

दुनिया की सबसे बेकार मुद्रा ?

 दुनिया की सबसे बेकार मुद्रा कौन सी है?

सोमालिया की मुद्रा इतनी बेकार हो गई है, कि एक साधारण स्मार्टफोन खरीदने के लिए आपको पैसे को एक ठेला में ले जाना पड़ता है 🤔

आप भी देखिए

मुद्रा का इतना अवमूल्यन हो गया है कि लोग अपने थैलों में कागज के नोटों की गड्डी लेकर बाजारों में घूमते हैं।

बैंकनोटों के ढेर को एक गली से दूसरी गली में ले जाने के लिए अक्सर व्हीलबारो, ट्रॉलियों का इस्तेमाल किया जाता है। महिलाओं को बाजार/खरीदारी करने के लिए पैसे को व्हीलबारो में ले जाना पड़ता है।

इस देश में माल के आदान-प्रदान/हस्तांतरण की तुलना में धन का परिवहन अधिक कठिन है।

तस्वीर इंटरनेट

 बांस का चावल 100 साल में सिर्फ 1-2 बार ही पैदा होता है, पौष्टिक गुणों के चलते अच्छी कमाई होती है

 बांस का चावल 100 साल में सिर्फ 1-2 बार ही पैदा होता है, पौष्टिक गुणों के चलते अच्छी कमाई होती है

Jabalpur: भारत में चावल (Rice) को बहुत चाव से खाया जाता है। इसकी गिनती स्टेपल फ़ूड (Special Food) में की जाती है। गांव ही नही पूरे देश में ही चावल को पसंद किया जाता है। आज के समय में शायद ही ऐसा कोई भारतीय परिवार का घर होगा, जहां दिन में कम से कम एक बार चावल ना बनता हो। फिर चाहे वह पूर्वी भारतीय परिवार हो या दक्षिण भारतीय परिवार का घर।बहुत से लोगों के साथ, तो यह भी होता है कि चावल ना खाएं, तो पेट ही नहीं भरता है। मन मे चावल की ललक ही बनी रहती है, जब तक चावल खाने ना मिले तब तक पेट को संतुष्टि नही मिलती, दाल चावल, राजमा चावल, कढ़ी चावल और खिचड़ी सभी का पसंदीदा खाना है। चावल के अपने फायदे और हानिकारक हैं।ऐसे में लोग अपनी आवश्यकता के हिसाब से ही चावल खाते हैं। आपने आजतक केवल व्हाइट और ब्राउन चावल के बारे में सुना होगा। फिटनेस को देखते हुए, लोग अधिकतर सफ़ेद की जगह ब्राउन चावल ही खाना पसन्द करते हैं। क्या आप जानते है कि एक चावल ऐसा भी जिसके बारे में कम ही लोग जानते है, जिसे बांस के चावल के नाम से जानते है। बांस का चावल को मुलयरी (Mulayari) कहा जाता है।बांस के चावल बहुत फायदेमंद होते हैं। इसमें ऐसे-ऐसे गुण हैं, जिसके बारे में जानने के बाद आप भी बांस के चावल (Bamboo Rice) खाना स्टार्ट कर देंगे। आपने अधिकतर सफेद या फिर ब्राउन रंग के चावलों का सेवन तो बहुत किया होगा, लेकिन कभी बैंबू या बांस के चावल का सेवन नही किया होगा, हो सकता है यह चीज आपके लिए काफी नई हो, लेकिन यह चावल काफी फायेदमंद होता हैं।यह रियल में चावल न हो कर बैंबू का बीज (Bamboo seed) होता है, जिसे कई जन-जातियों में पाकर खाया और बनाया जाता है। यह तब उत्पादित होता है, जब एक बैंबू का पेड़ (Bamboo Tree) अपने अंतिम समय में होता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा बहुत होती है और यह सभी चावल और गेंहू से भी ज्यादा पौष्टिक होता है।अपने घर में दाल चावल हो या फिर पुलाव या बिरयानी, सभी अलग-अलग पकवान बनाने के लिए अलग-अलग चावल की किस्म का इस्तेमाल करते है। यह आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में चावल की करीब 6000 से अधिक किस्म उपलब्ध हैं, उन्हीं में से एक है बांस का चावल है। जो बहुत ही फायदेमंद होता है।बांस का चावल में अन्य सभी चावल की अपेक्षा ज्यादा पौष्टिक तत्व उपलब्ध होते हैं। इसका कुछ कुछ टेस्ट गेहूं जैसा होता है, इसका कलर बांस के रंग जैसा हरा होता है। इसको खाने से शुगर के पेशेंट को फायदा मिलता है और इसमें प्रोटीन (Protein) की मात्रा पाई जाती है, इस चावल की एक खास बात यह होती है, जो उसे सबसे अलग रखती है इसमें फैट नहीं होता।

बांस के चावल में बहुत गुण होते हैं

फिलहाल वर्तमान समय में इस चावल की बाजार में ज्यादा प्रचलन नहीं है और सप्लाई भी काफी कम होती है, ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी खेती करने में बहुत अधिक वक्त लगता है। चेन्नई में इसकी कीमत सिर्फ 100 से 120 प्रति किलो रुपए से स्टार्ट होती है। बांस के चावल का सेवन जोड़ों के दर्द, कमर दर्द और आमवाती दर्द में भी राहत देता है।इसके सेवन से कोलेस्ट्रॉल लेवल की मात्रा भी अधिक नही होती है। साथ ही इस चावल का सेवन आपको अधिक वक्त तक पेट भरा रहने का अहसास दिलाता है। बैम्बू राइस खाने से पुरुषों की प्रजनन क्षमता में भी इजाफा होता है। इसके सेवन से मर्दों में स्पर्म काउंट की मात्रा भी बढ़ती है, जिसके कारण से प्रजनन क्षमता बूस्ट होती है। ना सिर्फ पुरुषों के ऊपर बल्कि औरतो के लिए भी ये चावल फायदेमंद है।बांस के चावल (बैम्बू राइस), जो मुलयारी के नाम से भी प्रचलित है, वास्तव में यह एक मरने वाले बाँस की गोली का बीज है, जो इसके जीवन काल के 60 साल में जा कर पैदा होता है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यह जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के लिए आय का एक मुख्य साधन है।यह चावल बाजारों में आमतौर पर नही मिलता है, लेकिन इसकी ऑनलाइन बिक्री (Online Selling) बहुत मात्रा में होती है। इसमें एक पौधे को फूल बनने में कई वर्ष लग जाते हैं, जिसमें से इस छोटे अनाज वाले राइस को निकाला जाता है।जब इसे बनाने की बात आती है, तो इसे किसी भी अन्य वेरायटी के चावल की तरह बनाया जाता है और इसका स्वाद खाने में अधिक मीठा होता है। एक बार पकने पर इसकी बनावट में अंतर साफ दिखाई देता है। अधिकतर इसका इस्तेमाल खिचड़ी बनाने के लिए किया जाता है।

मरते बांस के दीपवृक्ष की आखिरी निशानी

बांस की दीपवृक्ष में अगर फूल आ जाए, तो इसका अर्थ है कि वह पेड़ अपने अंतिम दिन में है। बैम्बू राइस या बांस का चावल मरती बांस के दीप वृक्ष की अंतिम निशानी होता है। बांस के फूल से एक बहुत ही दुर्लभ प्रजाति का चावल आता है और यही चावल बांस का चावल कहलाता है।यदि आप आदिवासी इलाके में जाते हैं तो कई महिलाएं और बच्चे बांस के चावल (Bans Ka Chawal) एकत्रित करते हुए बेचते हुए नजर आते है। एक शोधकर्ताओं से मिली जानकारी के मुताबिक केरल की वायानाड सेंचुरी के आदिवासियों के लिए यह चावल ना सिर्फ खाने का नही बल्कि आय का भी महत्वपूर्ण साधन है।

बांस के चावल की कटाई

बांस की झाड़ में फूल लगाए नहीं जाते यह खुद स्वयं उग जाते हैं। बांस की झाड़ में ऐसे चावल वाले फूल सिर्फ 50 वर्षों में एक बार ही आते हैं। इसका मतलब यह है कि 100 सालों में केवल दो बार आते हैं।

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चावल को एकत्रित करने के लिए बांस के फूल के आसपास की सफाई की जाती है और फूल पर मिट्टी को लपेटा जाता है और जब वह मिट्टी सूख जाती है, तो उसमें से चावल के दानों को निकाला जाता है। इसके बाद इसका बाजार में या स्वयं खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह चावल पौष्टिक गुणो से भरपूर होता है।

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