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रविवार, 20 नवंबर 2022

 बांस का चावल 100 साल में सिर्फ 1-2 बार ही पैदा होता है, पौष्टिक गुणों के चलते अच्छी कमाई होती है

 बांस का चावल 100 साल में सिर्फ 1-2 बार ही पैदा होता है, पौष्टिक गुणों के चलते अच्छी कमाई होती है

Jabalpur: भारत में चावल (Rice) को बहुत चाव से खाया जाता है। इसकी गिनती स्टेपल फ़ूड (Special Food) में की जाती है। गांव ही नही पूरे देश में ही चावल को पसंद किया जाता है। आज के समय में शायद ही ऐसा कोई भारतीय परिवार का घर होगा, जहां दिन में कम से कम एक बार चावल ना बनता हो। फिर चाहे वह पूर्वी भारतीय परिवार हो या दक्षिण भारतीय परिवार का घर।बहुत से लोगों के साथ, तो यह भी होता है कि चावल ना खाएं, तो पेट ही नहीं भरता है। मन मे चावल की ललक ही बनी रहती है, जब तक चावल खाने ना मिले तब तक पेट को संतुष्टि नही मिलती, दाल चावल, राजमा चावल, कढ़ी चावल और खिचड़ी सभी का पसंदीदा खाना है। चावल के अपने फायदे और हानिकारक हैं।ऐसे में लोग अपनी आवश्यकता के हिसाब से ही चावल खाते हैं। आपने आजतक केवल व्हाइट और ब्राउन चावल के बारे में सुना होगा। फिटनेस को देखते हुए, लोग अधिकतर सफ़ेद की जगह ब्राउन चावल ही खाना पसन्द करते हैं। क्या आप जानते है कि एक चावल ऐसा भी जिसके बारे में कम ही लोग जानते है, जिसे बांस के चावल के नाम से जानते है। बांस का चावल को मुलयरी (Mulayari) कहा जाता है।बांस के चावल बहुत फायदेमंद होते हैं। इसमें ऐसे-ऐसे गुण हैं, जिसके बारे में जानने के बाद आप भी बांस के चावल (Bamboo Rice) खाना स्टार्ट कर देंगे। आपने अधिकतर सफेद या फिर ब्राउन रंग के चावलों का सेवन तो बहुत किया होगा, लेकिन कभी बैंबू या बांस के चावल का सेवन नही किया होगा, हो सकता है यह चीज आपके लिए काफी नई हो, लेकिन यह चावल काफी फायेदमंद होता हैं।यह रियल में चावल न हो कर बैंबू का बीज (Bamboo seed) होता है, जिसे कई जन-जातियों में पाकर खाया और बनाया जाता है। यह तब उत्पादित होता है, जब एक बैंबू का पेड़ (Bamboo Tree) अपने अंतिम समय में होता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा बहुत होती है और यह सभी चावल और गेंहू से भी ज्यादा पौष्टिक होता है।अपने घर में दाल चावल हो या फिर पुलाव या बिरयानी, सभी अलग-अलग पकवान बनाने के लिए अलग-अलग चावल की किस्म का इस्तेमाल करते है। यह आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में चावल की करीब 6000 से अधिक किस्म उपलब्ध हैं, उन्हीं में से एक है बांस का चावल है। जो बहुत ही फायदेमंद होता है।बांस का चावल में अन्य सभी चावल की अपेक्षा ज्यादा पौष्टिक तत्व उपलब्ध होते हैं। इसका कुछ कुछ टेस्ट गेहूं जैसा होता है, इसका कलर बांस के रंग जैसा हरा होता है। इसको खाने से शुगर के पेशेंट को फायदा मिलता है और इसमें प्रोटीन (Protein) की मात्रा पाई जाती है, इस चावल की एक खास बात यह होती है, जो उसे सबसे अलग रखती है इसमें फैट नहीं होता।

बांस के चावल में बहुत गुण होते हैं

फिलहाल वर्तमान समय में इस चावल की बाजार में ज्यादा प्रचलन नहीं है और सप्लाई भी काफी कम होती है, ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी खेती करने में बहुत अधिक वक्त लगता है। चेन्नई में इसकी कीमत सिर्फ 100 से 120 प्रति किलो रुपए से स्टार्ट होती है। बांस के चावल का सेवन जोड़ों के दर्द, कमर दर्द और आमवाती दर्द में भी राहत देता है।इसके सेवन से कोलेस्ट्रॉल लेवल की मात्रा भी अधिक नही होती है। साथ ही इस चावल का सेवन आपको अधिक वक्त तक पेट भरा रहने का अहसास दिलाता है। बैम्बू राइस खाने से पुरुषों की प्रजनन क्षमता में भी इजाफा होता है। इसके सेवन से मर्दों में स्पर्म काउंट की मात्रा भी बढ़ती है, जिसके कारण से प्रजनन क्षमता बूस्ट होती है। ना सिर्फ पुरुषों के ऊपर बल्कि औरतो के लिए भी ये चावल फायदेमंद है।बांस के चावल (बैम्बू राइस), जो मुलयारी के नाम से भी प्रचलित है, वास्तव में यह एक मरने वाले बाँस की गोली का बीज है, जो इसके जीवन काल के 60 साल में जा कर पैदा होता है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यह जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के लिए आय का एक मुख्य साधन है।यह चावल बाजारों में आमतौर पर नही मिलता है, लेकिन इसकी ऑनलाइन बिक्री (Online Selling) बहुत मात्रा में होती है। इसमें एक पौधे को फूल बनने में कई वर्ष लग जाते हैं, जिसमें से इस छोटे अनाज वाले राइस को निकाला जाता है।जब इसे बनाने की बात आती है, तो इसे किसी भी अन्य वेरायटी के चावल की तरह बनाया जाता है और इसका स्वाद खाने में अधिक मीठा होता है। एक बार पकने पर इसकी बनावट में अंतर साफ दिखाई देता है। अधिकतर इसका इस्तेमाल खिचड़ी बनाने के लिए किया जाता है।

मरते बांस के दीपवृक्ष की आखिरी निशानी

बांस की दीपवृक्ष में अगर फूल आ जाए, तो इसका अर्थ है कि वह पेड़ अपने अंतिम दिन में है। बैम्बू राइस या बांस का चावल मरती बांस के दीप वृक्ष की अंतिम निशानी होता है। बांस के फूल से एक बहुत ही दुर्लभ प्रजाति का चावल आता है और यही चावल बांस का चावल कहलाता है।यदि आप आदिवासी इलाके में जाते हैं तो कई महिलाएं और बच्चे बांस के चावल (Bans Ka Chawal) एकत्रित करते हुए बेचते हुए नजर आते है। एक शोधकर्ताओं से मिली जानकारी के मुताबिक केरल की वायानाड सेंचुरी के आदिवासियों के लिए यह चावल ना सिर्फ खाने का नही बल्कि आय का भी महत्वपूर्ण साधन है।

बांस के चावल की कटाई

बांस की झाड़ में फूल लगाए नहीं जाते यह खुद स्वयं उग जाते हैं। बांस की झाड़ में ऐसे चावल वाले फूल सिर्फ 50 वर्षों में एक बार ही आते हैं। इसका मतलब यह है कि 100 सालों में केवल दो बार आते हैं।

SPKHATRI☀

चावल को एकत्रित करने के लिए बांस के फूल के आसपास की सफाई की जाती है और फूल पर मिट्टी को लपेटा जाता है और जब वह मिट्टी सूख जाती है, तो उसमें से चावल के दानों को निकाला जाता है। इसके बाद इसका बाजार में या स्वयं खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह चावल पौष्टिक गुणो से भरपूर होता है।

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