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मंगलवार, 5 मार्च 2024

घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के ठीक सामने यह मस्जिद जैसी गुंबद वाली एक संरचना आपको देखने को मिलेगी

 

जब आप औरंगाबाद के पास दौलताबाद से 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस भव्य ज्योतिर्लिंग जिसे घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है यहां जाएंगे तब ज्योतिर्लिंग के ठीक सामने यह मस्जिद जैसी गुंबद वाली एक संरचना आपको देखने को मिलेगी

जब मैंने इस संरचना के बारे में वहां के एक स्थानीय इतिहासकार से पूछा तब उन्होंने बताया कि जब औरंगजेब ने दक्षिण यानी डक्कन पर विजय प्राप्त किया और औरंगाबाद शहर का नाम जो जिसे उस वक्त खिरकी कहा जाता था अपने नाम पर औरंगाबाद रखा और यहां पर अपना एक सूबेदार नियुक्त किया तो पहले औरंगजेब ने इस ज्योतिर्लिंग को तोड़ने का आदेश जारी किया

लेकिन वह सूबेदार समझता था कि यदि इस प्राचीन ज्योतिर्लिंग को तोड़ा गया तब मराठे और भड़क जाएंगे मराठों को आम जनता का और सहयोग मिलेगा और डेक्कन की राह इतनी आसान नहीं होगी

तब औरंगजेब ने कहा कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं से तुम पैसे वसूलो

और फिर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के ठीक दरवाजे पर यह जो गुंबद जैसी संरचना है यहां पर औरंगजेब द्वारा नियुक्त एक मुगल अधिकारी बैठता था जो यहां दर्शन के लिए आने वाले हिंदू श्रद्धालुओं से 1.50 आना फीस या जजिया कर लेता था उसके बाद उन्हें ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने जाने देता था

धूर्त वामपंथी इतिहासकारों ने हमें इतिहास की हमें इतिहास की खासकर दरिंदे मुगलों के इतिहास की बहुत सी बातें नहीं बताई हैं


1911 में ब्रिटेन के महाराजा और महारानी भारत आए थे और दिल्ली में एक विशाल दरबार लगा था जिसे दिल्ली दरबार के नाम से जाना जाता है

 

1911 में ब्रिटेन के महाराजा और महारानी भारत आए थे और दिल्ली में एक विशाल दरबार लगा था जिसे दिल्ली दरबार के नाम से जाना जाता है

इस दिल्ली दरबार में भारत के तमाम रियासतों के राजा नबाब और कुछ बड़े लोगों ने ब्रिटेन के राजा के आगे झुक कर उनके तरफ वफादार रहने की शपथ खाई थी

यह तीन फोटो है

पहली फोटो में हैदराबाद का निजाम ब्रिटेन के राजा के आगे झुक कर वफादारी की कसम खा रहा है दूसरी फोटो में उस जमाने के जाने-माने वकील मोतीलाल नेहरू अंग्रेजी वेशभूषा में गए थे और उन्होंने भी ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादारी की कसम खाई और तीसरी फोटो में भोपाल की महिला नवाब है उन्होंने भी ब्रिटिश साम्राज्य की वफादारी की कसम खाई

इसी तरह के रामपुर के नवाब अवध के नवाब बरेली के नवाब, बहावलपुर जो अब पाकिस्तान में है वहां के नवाब लरकाना के नवाब सहित तमाम मुस्लिम नवाबों ने अंग्रेजों के सामने झुक कर वफादारी की कसम खाई

लेकिन कोई इन्हें गद्दार नहीं कहता

भारत के किसी भी पुलिस स्टेशन में जाएंगे तो वहां हजारों गाड़ियां सड़ती हुई आपको दिख जाएंगी।

 

भारत के किसी भी पुलिस स्टेशन में जाएंगे तो वहां हजारों गाड़ियां सड़ती हुई आपको दिख जाएंगी।




यह गाड़ियां पूरी तरह से सड़ जाती हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत को हर साल इससे लगभग 20,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो जाता है।

ब्रिटिश पार्लियामेंट में 1872 में ब्रिटिश एविडेंस एक्ट 1872 पारित किया था। इसके अनुसार अपराधी के पास बरामद सारी चीजें एविडेंस के तौर पर पेश की जाएंगी। उन्हें सुरक्षित रखा जाएगा और अदालत में पेश किया जाएगा।

1872 में साइकिल का भी आविष्कार नहीं हुआ था। फिर जब यही कानून ब्रिटिश सरकार ने भारत पर लागू कर दिया तो यह भारतीय एविडेंस एक्ट 1872 बन गया।

यानी कि कोई अपराधी यदि पकड़ा जाता है तो वो जिस गाड़ी में होगा उस गाड़ी को भी एविडेंस बना लिया जाता है। किसी गाड़ी में अपराध हुआ है तो उसे भी एविडेंस एक्ट के तहत जप्त कर लिया जाता है। या फिर दो गाड़ियों का एक्सीडेंट हुआ है तब दोनों गाड़ियों को एविडेंस एक्ट में जप्त कर लिया जाता है।

मुझे आश्चर्य होता है कि सरकारी वाहनों को इनसे मुक्त क्यों रखा गया है ? अगर ट्रेन में अपराध होता है तो मैंने आज तक नहीं देखा कि पुलिस पूरी ट्रेन को जप्त कर के थाने में खड़ी की हो या किसी सरकारी बस में कोई अपराध हुआ हो या सरकारी बस या विमान में कोई मुजरिम पकड़ा गया हो तो पुलिस ने एविडेंस एक्ट के तहत सरकारी बस या विमान को उठाकर थाने में रखा हो ?

जितने भी वाहन पकड़े जाते हैं, यह जब तक केस का फाइनल फैसला नहीं आ जाता तब तक थाने में पड़े रहते हैं। गर्मी बारिश सब झेलते हैं।

और आपको तो पता ही है कि भारत में 50 से 60 साल मुकदमे की सुनवाई में लग जाते हैं। तब तक यह वाहन पूरी तरह से सड़ जाते हैं। जब केस का निपटारा होता है तब यह वाहन कबाड़ तो छोड़िए, सड़कर खाद बन चुके होते हैं।

मोदी जी ने एक बार कहा था कि हमने ब्रिटिश जमाने से चले आ रहे बहुत से कानूनों में बदलाव किया है,,, लेकिन अब इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 में भी बदलाव करने की जरूरत है।

सोचिए कि एक वाहन बनाने में कितने घंटे की मजदूरी कितनी पावर कितना कच्चा माल लगा होगा,, और वह सब कुछ सड़ जाता है किसी के काम नहीं आता।

रोगानुसार गाय के घी के उपयोग

   रोगानुसार गाय के घी के उपयोग
१. गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है ।
२. गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है
३. गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।
४. 20-25 ग्राम गाय का घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांजे का नशा कम हो जाता है ।
५. गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है ।
६. नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाता है ।
७. गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है
८. गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है ।
९. गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है ।
१०. हाथ-पॉँव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है ।
११. हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी ।
१२. गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है ।

१३. गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है ।
१४. गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है ।
१५. अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें ।
१६. हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा ।
१७. गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है ।
१८. जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाई खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, इससे ह्रदय मज़बूत होता है ।
१९. देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है ।
२०. गाय का घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर या बूरा या देसी खाण्ड, तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें । प्रतिदिन प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है ।

२१. फफोलों पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है ।
२२. गाय के घी की छाती पर मालिश करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायता मिलती है ।
२३. सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम गाय का घी पिलायें, उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें, जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष भी कम हो जायेगा ।
२४. दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है ।
२५. सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, इससे सिरदर्द दर्द ठीक हो जायेगा ।
२६. यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है । वजन भी नही बढ़ता, बल्कि यह वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है तथा मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है ।
२७. एक चम्मच गाय के शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है ।

२८. गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें । इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक कि तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं । यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है ।
२९. गाय का घी एक अच्छा (LDL) कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए । यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है ।
३०. अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को सन्तुलित करता है।
बताए गए रोगों पर गौ घृत जब  ही कारगर सिद्ध होगा जब वह 100 प्रतिशत शुद्ध भारतीय गो नस्ल के दूध से निर्मित हो और उसे बनाने के लिए सिर्फ वैदिक पद्धति का ही प्रयोग किया गया हो वैदिक पद्धति का तात्पर्य है की दूध सिर्फ गौ माता के दो थन से निकला हो और दो थन का दूध बछड़े को मिला हो तो ही वह दूध हिंसक ना होकर अहिंसक रहता है।
दूध को मिट्टी के पात्रों में ही गर्म करना है गोबर के कंडे की ही अग्नि लगानी है जिससे वह धीमी आंच पर ही गर्म हो और अन्य कई प्रकार की दूषित गैसों से दूध प्रभावित ना हो गर्म होने के बाद उसे मिट्टी के पात्रों में ही दही के लिए रखना है।

कम से कम 48 घंटे के बाद ही उसे बिलोना करने के लिए  उपयोग करना है बिलोना सिर्फ हाथ से ही करना है उसके लिए किसी भी मशीन का उपयोग नहीं करना है मशीन के उपयोग से विद्युत रेडिएशन से दही के गुण नष्ट हो जाते हैं जिससे व उपयोगी सिद्ध नहीं होता।
मक्खन को कम से कम 5 बार पानी में धोना है जिससे उसमें छाछ का भाग एक दम निकल जाए।
मक्खन को चांदी के पात्र मिट्टी के पात्र में ही गर्म करना है और उसे धीमी धीमी आंच पर गाय के गोबर से बने कंडो  पर ही गर्म करना है ।
मक्खन पूर्ण रूप से पिघलने के बाद घी में परिवर्तित होने के बाद उसे 6 घंटे तक पड़ा रहने देवे और उसके बाद उसे कांच की बोतल में कपड़े से चांन कर भरें वही घृत मनुष्य के शरीर में उत्पन्न हुए रोगों पर कारगर सिद्ध होता है।

दाद-खाज निवारण स्कीन से जुड़ी बीमारियां भी कई बार गंभीर समस्या बन जाती है।

 🌹🚩दाद-खाज निवारण

स्कीन से जुड़ी बीमारियां भी कई बार गंभीर समस्या बन जाती है। ऐसी ही एक समस्या है एक्जीमा या दाद पर होने वाली खुजली और जलन दाद से पीडि़त व्यक्ति का जीना मुश्किल कर देती है। अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा ही है तो अपनाएं ये आयुर्वेदिक टिप्स

- दाद पर अनार के पत्तों को पीसकर लगाने से लाभ होता है।

- दाद को खुजला कर दिन में चार बार नींबू का रस लगाने से दाद ठीक हो जाते हैं।

- केले के गुदे में नींबू का रस लगाने से दाद ठीक हो जाता है।

- चर्म रोग में रोज बथुआ उबालकर निचोड़कर इसका रस पीएं और सब्जी खाएं।

- गाजर का बुरादा बारीक टुकड़े कर लें। इसमें सेंधा नमक डालकर सेंके और फिर गर्म-गर्म दाद पर डाल दें।

- कच्चे आलू का रस पीएं इससे दाद ठीक हो जाते हैं।

- नींबू के रस में सूखे सिंघाड़े को घिस कर लगाएं। पहले तो कुछ जलन होगी फिर ठंडक मिल जाएगी, कुछ दिन बाद इसे लगाने से दाद ठीक हो जाता है।

- हल्दी तीन बार दिन में एक बार रात को सोते समय हल्दी का लेप करते रहने से दाद ठीक हो जाता है।

- दाद होने पर गर्म पानी में अजवाइन पीसकर लेप करें। एक सप्ताह में ठीक हो जाएगा।

- अजवाइन को पानी में मिलाकर दाद धोएं।

- दाद में नीम के पत्तों का १२ ग्राम रोज पीना चाहिए।

- दाद होने पर गुलकंद और दूध पीने से फायदा होगा।

- नीम के पत्ती को दही के साथ पीसकर लगाने से दाद जड़ से साफ हो जाते है।🙏🙏🙏

बच्चों का नाम रखने के बिषय में समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को न जाने हो क्या गया है? लगता है जैसे समाज पथभ्रष्ट एवं दिग्भ्रमित हो गया है.



बच्चों का नाम रखने के बिषय में समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को न जाने हो क्या गया है? लगता है जैसे समाज पथभ्रष्ट एवं दिग्भ्रमित हो गया है. 
एक सज्जन ने अपने बच्चों से परिचय कराया, और बताया की पोती का नाम *अवीरा* रखा है, बड़ा ही यूनिक_नाम रखा है। 
यह पूछने पर कि इसका अर्थ क्या है, बे बोले कि बहादुर, ब्रेव, कॉन्फिडेंशियल। 

सुनते ही मेरा दिमाग चकरा गया। फिर बोले कृपा करके बताएं आपको कैसा लगा?  

मैंने कहा बन्धु अवीरा तो बहुत ही अशोभनीय नाम है नहीं रखना चाहिए.
उनको बताया कि..
1. जिस स्त्री के पुत्र और पति न हों. पुत्र और पतिरहित (स्त्री) 

2. स्वतंत्र (स्त्री), उसका नाम होता है अवीरा. जिसके बारे में शास्त्रों में लिखा गया है कि..
 *नास्ति वीरः पुत्त्रादिर्यस्याः सा अवीरा* 

उन्होंने बच्ची के नाम का अर्थ सुना तो बेचारे मायूस हो गए, बोले महोदय क्या करें अब तो स्कूल में भी यही नाम हैं बर्थ सर्टिफिकेट में भी यही नाम है। क्या करें?

आजकल लोग कुछ नया करने की ट्रेंड में कुछ भी अनर्गल करने लग गए हैं *जैसे कि* ...
--लड़की हो तो मियारा, शियारा, कियारा, नयारा, मायरा तो अल्मायरा आदि.. 
--लड़का हो तो वियान, कियान, गियान, केयांश, रेयांश आदि...

और तो और इन शब्दों के जब अर्थ पूछो तो  
दे गूगल ... दे याहू ...

और उत्तर आएगा "इट मीन्स रे ऑफ लाइट" "इट मीन्स गॉड्स फेवरेट" "इट मीन्स ब्ला ब्ला"
नाम को यूनीक रखने के फैशन के दौर में एक सज्जन ने अपनी गुड़िया का नाम रखा " *श्लेष्मा* ".

स्वभाविक था कि नाम सुनकर मैं सदमें जैसी अवस्था में था. 

सदमे से बाहर आने के लिए मन में विचार किया कि हो सकता है इन्होंने कुछ और बोला हो या इनको इस शब्द का अर्थ पता नहीं होगा तो मैं पूछ बैठा "अच्छा? श्लेष्मा! इसका अर्थ क्या होता है? 

तो महानुभाव नें बड़े ही कॉन्फिडेंस के साथ उत्तर दिया "श्लेष्मा" का अर्थ होता है "जिस पर मां की कृपा हो" मैं सर पकड़ कर 10 मिनट मौन बैठा रहा ! 

मेरे भाव देख कर उनको यह लग चुका था कि कुछ तो गड़बड़ कह दिया है तो पूछ बैठे. 

क्या हुआ मैंने कुछ ग़लत तो नहीं कह दिया? 

मैंने कहा बन्धु तुंरत प्रभाव से बच्ची का नाम बदलो क्योंकि श्लेष्मा का अर्थ होता है "नाक का कचरा" उसके बाद जो होना था सो हुआ.

यही हालात है समाज के एक बहुत बड़े वर्ग का। 

फैशन के दौर में फैंसी,फटे और अधनंगे कपड़े पहनते पहनते अर्थहीन, अनर्थकारी, बेढंगे शब्द समुच्चयों का प्रयोग समाज अपने कुलदीपकों के नामकरण हेतु करने लगा है
अशास्त्रीय नाम न केवल सुनने में विचित्र लगता है, बालकों के व्यक्तित्व पर भी अपना विचित्र प्रभाव डालकर व्यक्तित्व को लुंज पुंज करता है - जो इसके तात्कालिक कुप्रभाव हैं.भाषा की संकरता और दरिद्रता इसका दूरस्थ कुप्रभाव है.

परंपरागत रूप से ,नाम रखनेकाअधिकार,दादा-दादी, बुआ, तथा गुरुओं का होता था या है. यह कर्म उनके लिए ही छोड़ देना हितकर है.

आप जब दादा दादी बनेंगे या बन गए है तब यह कर्तव्य ठीक प्रकार से निभा पाएँ उसके लिए आप अपनी मातृभाषा पर कितनी पकड़ रखते हैं अथवा उसपर पकड़ बनाने के लिए क्या कर रहे हैं, विचार अवश्य करें.
अन्यथा आने वाली पीढ़ियों में आपके परिवार में भी कोई "श्लेष्मा" हो सकती है, कोई भी अवीरा हो सकती है।

 *शास्त्रों में लिखा है* कि व्यक्ति का जैसा नाम है समाज में उसी प्रकार उसका सम्मान और उसका यश कीर्ति बढ़ाने में महत्वपूर्ण कारक होता है. जैसे...

 *नामाखिलस्य व्यवहारहेतु: शुभावहं कर्मसु भाग्यहेतु:।* 
 *नाम्नैव कीर्तिं लभते मनुष्य-स्तत: प्रशस्तं खलु नामकर्म।* 
--{संदर्भ-वीरमित्रोदय-संस्कार प्रकाश}

 *स्मृति संग्रह में* बताया गया है कि व्यवहार की सिद्धि आयु एवं ओज की वृद्धि के लिए श्रेष्ठ नाम होना चाहिए.
 *आयुर्वर्चो sभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहृतेस्तथा ।* 
 *नामकर्मफलं त्वेतत् समुद्दिष्टं मनीषिभि:।* 

--नाम कैसा हो,
नाम की संरचना कैसी हो इस विषय में ग्रह्यसूत्रों एवं स्मृतियों में विस्तार से प्रकाश डाला गया है पारस्करगृह्यसूत्र 1/7/23 में बताया गया है-
 *द्व्यक्षरं चतुरक्षरं वा घोषवदाद्यंतरस्थं।* 
 *दीर्घाभिनिष्ठानं कृतं कुर्यान्न तद्धितम्।।* *अयुजाक्षरमाकारान्तम् स्त्रियै तद्धितम् ।।* 

इसका तात्पर्य यह है कि..
बालक का नाम दो या चारअक्षरयुक्त, पहला अक्षर घोष वर्ण युक्त, 
वर्ग का तीसरा चौथा पांचवा वर्ण, 
मध्य में अंतस्थ वर्ण, य र ल व आदिऔर नाम का अंतिम वर्ण दीर्घ एवं कृदन्त हो तद्धितान्त न हो।
तथा..
कन्या का नाम विषमवर्णी तीन या पांच अक्षर युक्त, दीर्घ आकारांत एवं तद्धितान्त होना चाहिए

 *धर्मसिंधु में चार प्रकार के नाम बताए गए हैं* ..

१ देवनाम
२ मासनाम 
३ नक्षत्रनाम 
४ व्यावहारिक नाम 

उनमें ऐसा भी जोर देकर कहा गया है कि कुंडली के नाम को व्यवहार में बोलता नाम नहीं रखना चाहिए क्योंकि जो नक्षत्र नाम होता है उसको गुप्त रखना चाहिए क्योकि
यदि कोई हमारे ऊपर अभिचार कर्म मारण, मोहन, वशीकरण इत्यादि दुर्भावना से कार्य करना चाहता है तो उसके लिए नक्षत्र नाम की,यानी जन्म के समय के नक्षत्र अनुसार नाम की आवश्यकता होती है,जबकि व्यवहार नाम पर तंत्र का असर नहीं होता इसीलिए कुंडली का जन्म नाम गुप्त होना चाहिए।

हमारे शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि बच्चे का नाम मंगल सूचक, आनंद सूचक, 
बल रक्षा और शासन क्षमता का सूचक ,ऐश्वर्य सूचक, पुष्टि युक्त अथवा सेवा आदि गुणों से युक्त होना चाहिए।

शास्त्रीय नाम की हमारे सनातन धर्म में बहुत उपयोगिता है मनुष्य का जैसा नाम होता है वैसे ही गुण उसमें विद्यमान होते हैं या विकसित होने की संभावना प्रबल होती है. 

बच्चों का नाम लेकर पुकारने से उनके मन पर उस नाम का बहुत असर पड़ता है और प्रायः उसी के अनुरूप चलने का प्रयास भी होने लगता है 

इसीलिए नाम में यदि उदात्त भावना होती है तो बालकों में यश एवं भाग्य का अवश्य ही उदय संभव है।

हमारे धर्म में अधिकांश लोग अपने पुत्र पुत्रियों का नाम भगवान के नाम पर रखना शुभ समझते हैं ताकि इसी बहाने प्रभु नाम का उच्चारण भगवान के नाम का उच्चारण हो जाए।
 *भायं कुभायं अनख आलसहूं।* 
 *नाम जपत मंगल दिसि दसहूं॥* 

विडंबना यह है की आज पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण में नाम रखने का संस्कार मूल रूप से प्रायः समाप्त होता जा रहा है. सयुंक्त परिवार में रहने कि प्रथा अब लगभग अंतिम साँसे ले रही है अन्यथा मुझे याद है कि घरों में नाम रखे जाने की भी एक खास रश्म होती थी जिसमे घर में दादा,दादी, बुआ अथवा उनकी अनुपस्थिति में घर का अन्य कोई वरिष्ठ, बच्चे को गोद में लेकर, श्री गणेश का स्मरण करते हुए, छोटी घंटी बजाते हुए,बच्चे के कान के पास अपना मुंह ले जाकर,उसका निर्धारित किया हुआ नाम पुकारते थे ताकि अपने नाम का पहला श्रोता बो बच्चा खुद रहे ( यह S.O.P. थोड़ी बहुत +/- के साथ लगभग सभी समाज में थी)
अब चूंकि घर में वरिष्ठों की उपस्थिति या दखलंदाज़ी ना के बराबर है और अगर है भी, तो भी, उनका सुझाया हुआ नाम, या मार्ग दर्शन को सुनता कौन है......

फिर भी अगर नई पीढ़ी में कोई आपकी सुन रहा है तो उसे ज़रूर बताएं कि नाम ऐसा रखना ठीक होता है जो सकारात्मक और अर्थपूर्ण हो,उल्ल्हास मय हो, आसानी से उच्चारित और लिखा जा सके,

ईश्वर और प्रकृति के विभिन्न सुंदर भावों का समावेश या प्रतिनिधित्व करने बाला हो आदि आदि..
इसी में भलाई है, इसी में कल्याण है।


 जय श्रीभारत ⚘️🚩

आखिर क्यों मोदी को समंदर में डुबकी लगाकर द्वारका जी के दर्शन करने जाना पड़ा.?

*आखिर क्यों मोदी को समंदर में डुबकी लगाकर द्वारका जी के दर्शन करने जाना पड़ा.?

गुजरात हाई कोर्ट ने Bet Dwarka के 2 द्वीपों पर कब्जा जमाने के सुन्नी वक्फ बोर्ड के सपने को चकनाचूर कर दिया है।।
इस समय गुजरात का यह विषय बहुत चर्चा में है।। सोशल मीडिया के माध्यम से  हम लोगों को मालूम पड़ गया वरना पता ही नहीं चलता। 
@कैसे पलायन होता है @और कैसे कब्जा होता है, @ लैंड जिहाद क्या होता है वह समझने के लिए _आप बस बेट द्वारिका टापू का अध्ययन करलें तो सब प्रक्रिया समझ आ जायेगी।_

@कुछ साल पहले तक यहाँ कि लगभग पूरी आबादी हिन्दू थी।

यह ओखा नगरपालिका के अन्तर्गत आने वाला क्षेत्र है जहाँ जाने का एकमात्र रास्ता पानी से होकर जाता है।
इसलिए बेट द्वारिका से बाहर जाने के लिए लोग नाव का प्रयोग करते हैं।।

यहाँ द्वारिकाधीश का प्राचीन मंदिर स्थित है।
कहते हैं कि 5 हजार साल पहले यहाँ रुक्मिणी ने मूर्ति स्थापना करी थी।
>समुद्र से घिरा यह टापू बड़ा शांत रहता था।

>लोगो का मुख्य पेशा मछली पकड़ना था।
> _धीरे धीरे यहाँ बाहर से मछली पकड़ने वाले मुस्लिम आने लगे।_

> _दयालु हिन्दू आबादी ने इन्हें वहाँ रहकर मछली पकड़ने की अनुमति दे दी।_

>धीरे धीरे मछली पकडने के पूरे कारोबार पर मुस्लिमों का कब्जा हो गया।

>> *बाहर से फंडिंग के चलते इन्होंने बाजार में सस्ती मछली बेची जिससे सब हिन्दू मछुआरे बेरोजगार हो गये*।
>अब हिन्दू आबादी ने रोजगार के लिए टापू से बाहर जाना शुरू किया।

लेकिन यहां एक और चमत्कार / प्रयोग हुआ ।

बेट द्वारिका से ओखा तक जाने के लिए नाव में 8 रुपये किराया लगता था।

*अब क्योंकि सब नावों पर मुस्लिमों का कब्जा हो गया था तो उन्होंने किराये का नया नियम बनाया।*
_जो हिन्दू नाव से ओखा जायेगा वह किराये के 100 रुपये देगा और मुस्लिम वही 8 रुपये देगा।_

अब कोई दिहाड़ी हिन्दू केवल आवाजाही के 200 रुपये देगा तो वह बचायेगा क्या ?
@ _इसलिए रोजगार के लिए हिन्दुओ ने वहाँ से पलायन शुरू कर दिया।_
@ *अब वहाँ केवल 15 प्रतिशत हिन्दू आबादी रहती है।*

आपने पलायन का पहला कारण यहाँ पढ़ा।

>> _रोजगार के 2 मुख्य साधन मछली पकड़ने का काम और ट्रांसपोर्ट दोनो हिन्दुओ से छीन लिया गया।_ 
जैसे बाकी सब जगह राज मिस्त्री,कारपेंटर, इलेक्ट्रॉनिक मिस्त्री , ड्राइवर ,नाई व अन्य हाथ के काम 90% तक हिन्दुओ ने उनके हवाले कर दिये हैं। 

अब बेट द्वारिका में तो 5 हजार साल पुराना मंदिर है जिसके दर्शन के लिए हिन्दू जाते थे तो इसमें वहां के जिहादियों ने नया तरीका निकाला।

@ क्योंकि *आवाजाही के साधनों पर उनका कब्जा हो चुका था* तो उन्होंने आने वाले _श्रद्धालुओं से केवल 20-30 मिनट की जल यात्रा के 4 हजार से 5 हजार रुपये मांगने शुरू कर दिये।_

@ इतना महंगा किराया आम व्यक्ति कैसे चुका पायेगा इसलिए लोगो ने वहां जाना बंद कर दिया।

>>> अब जब वहाँ पूर्ण रूप से जिहादियों की पकड़ हो गई  तो उन्होंने जगह जगह मकान बनाने शुरू किये, देखते ही देखते प्राचीन मंदिर चारों तरफ से  *मजारों* से घेर दिया गया। 

वहाँ की बची खुची हिन्दू आबादी सरकार को अपनी बात कहते कहते हार चुकी थी, फिर कुछ हिन्दू समाजसेवियों ने इसका संज्ञान लिया और सरकार को चेताया।

सरकार ने ओखा से बेट द्वारिका तक सिग्नेचर ब्रिज बनाने का काम शुरू करवाया। 
बाकी विषयो की जांच शुरू हुई तो जांच एजेंसी चौंक गई।

*गुजरात में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका स्थित बेट द्वारिका के दो टापू पर अपना दावा ठोका है।*
 
वक्फ बोर्ड ने अपने आवेदन 
में दावा किया है कि बेट द्वारका टापू पर दो द्वीपों का स्वामित्व वक्फ बोर्ड का है। 

 गुजरात उच्च न्यायालय ने इस पर आश्चर्य जताते हुए पूछा कि कृष्ण नगरी पर आप कैसे दावा कर सकते हैं और इसके बाद गुजरात उच्च न्यायालय ने इस याचिका को भी खारिज कर दिया।

> बेट द्वारका में करीब आठ टापू है, जिनमें से दो पर भगवान कृष्ण के मंदिर बने हुए हैं। 
प्राचीन कहानियां बताती हैं कि भगवान कृष्ण की आराधना करते हुए मीरा यहीं पर उनकी मूर्ति में समा गई थी। 

*बेट द्वारका के इन दो टापू पर करीब 7000 परिवार रहते हैं, इनमें से करीब 6000 परिवार मुस्लिम हैं।*
 यह द्वारका के तट पर एक छोटा सा द्वीप है और ओखा से कुछ ही दूरी पर स्थित है।

 वक्फ बोर्ड इसी के आधार पर इन दो टापू पर अपना दावा जताता है।

यहां अभी इस साजिश का शुरुआती चरण ही है कि इसका खुलासा हो गया.

 सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक इस चरण में कुछ लोग, ऐसी जमीनों पर कब्जा करके अवैध निर्माण बना रहे थे, जो रणनीतिक रूप से, भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता था.

अब जाकर सब अवैध कब्जे व मजारें तोड़ी जा रही हैं।
माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी की कृपा से अब सी लिंक का उद्घाटन होने वाला है, मुसलमानों के नौका/छोटे पानी के जहाज से यात्रा करवाने का धंधा भी चौपट होने जा रहा है, 
जय हो, 
मोदी है तो मुमकिन है।

*बेट द्वारिका में आने वाला कोई भी मुसलमान वहाँ का स्थानीय नहीं है सब बाहर के हैं।*

फिर भी उन्होंने धीरे धीरे कुछ ही वर्षों में वहां के हिन्दुओ से सब कुछ छीन लिया और भारत के गुजरात जैसे एक राज्य का टापू *सीरिया* बन गया।

*सावधान व सजग रहना अत्यंत आवश्यक है ।।*
*कम से कम पांच ग्रुप में जरूर भेजे*

*कुछ लोग नही भेजेंगे*
*लेकिन मुझे उम्मीद है आप जरूर भेजेंगे...!*
*जागो हिन्दू जागो 🙏🚩🚩🚩🚩🚩राम-राम सा*🚩🚩🚩

सोमवार, 4 मार्च 2024

भगवान की गोद में सिर

भगवान की गोद में सिर


       एक लड़की ने, एक सन्त जी  को बताया कि मेरे पिता बहुत बीमार हैं और अपने पलंग से उठ भी नहीं सकते क्या आप उनसे मिलने हमारे घर पे आ सकते हैं। सन्त जी ने कहा, हां बेटी! मैं जरूर  जाऊँगा । संत जब उनसे मिलने उसके घर पर गए तो देखा कि एक बूढ़ा और बीमार आदमी पलँग पर दो तकियों पर सिर रख कर लेटा हुआ है।  लेकिन एक खाली कुर्सी उसके पलँग के सामने पड़ी थी।   सन्त जी ने उस बूढ़े और बीमार आदमी से पूछा, कि मुझे लगता है कि शायद आप मेरे ही आने की उम्मीद कर रहे थे।  उस वृद्ध आदमी ने कहा, जी नहीं, आप कौन हैं?……सन्त जी ने अपना परिचय दिया और फिर कहा मुझे ये खाली कुर्सी देखकर लगा कि आप को मेरे आने का आभास हो गया है।  वो आदमी बोला, सन्त जी, अगर आपको अगर बुरा न लगे तो कृपया कमरे का दरवाज़ा बंद कर दीजिये। संत जी को थोड़ी हैरानी तो हुई, फिर भी सन्त जी ने दरवाज़ा बंद कर दिया।

वो बीमार आदमी बोला कि दरअसल इस खाली कुर्सी का राज़ मैंने आजतक भी किसी को नहीं बताया। अपनी बेटी को भी नहीं, दरअसल अपनी पूरी ज़िंदगी में मैं ये जान नहीं सका कि प्रार्थना कैसे की जाती है। लेकिन मैं हर.रोज मंदिर जाता ज़रूर था लेकिन कुछ समझ नहीं आता था। लगभग चार साल पहले मेरा एक दोस्त मुझे मिलने आया, उसने मुझे बताया, कि हर प्रार्थना भगवान से सीधे ही हो सकती है। उसी ने मुझे सलाह दी कि एक खाली कुर्सी अपने सामने रखो और ये विश्वास करो कि भगवान खुद इस कुर्सी पर तुम्हारे सामने बैठे हैं, फिर भगवान से ठीक वैसे ही बातें करना शुरू करो, जैसे कि अभी तुम मुझसे कर रहे हो!,वो हमारी हर फरियाद सुनता है, और जब मैंने ऐसा ही करके देखा मुझे बहुत अच्छा लगा। फिर तो मैं रोज़ दो-दो घंटे तक ऐसे ही भगवान से बातें करने लगा।  लेकिन मैं इस बात का ख़ास ध्यान रखता था कि मेरी बेटी कभी मुझे ऐसा करते न देख ले। अगर वो देख लेती तो उसे लगता कि मैं पागल हो गया हूँ।

  ये सुनकर सन्त जी की आँखों में, प्रेम और भाव से आँसू बहने लगे, सन्त जी ने उस बुजुर्ग से कहा कि आप सबसे ऊँची भक्ति कर रहे हो, फिर उस बीमार आदमी के सिर पर पर हाथ रखा और कहा अपनी सच्ची प्रेम भक्ति को ज़ारी रखो।

सन्त जी, अपने आश्रम में लौट गये, लेकिन पाँच दिन बाद वही बेटी सन्त जी से मिलने आई और उन्हें बताया कि जिस दिन आप मेरे पिता जी से मिले थे, वो बेहद खुश थे, लेकिन कल सुबह चार बजे मेरे पिता जी ने प्राण त्याग दिये हैं। बेटी ने बताया, कि मैं जब घर से अपने काम पर जा रही थी तो उन्होंने मुझे बुलाया मेरा माथा प्यार से चूमा, उनके चेहरे पर बहुत शांति थी, उनकी आँखे आँसुओं से भरी हुई थीं, लेकिन वापिस लौटकर  मैंने एक अजीब सी चीज़ भी देखी वो ऐसी मुद्रा में अपने बिस्तर पर बैठे थे जैसे खाली कुर्सी पर उन्होंने ने किसी की गोद में अपना सिर झुका रखा हो, जबकि कुर्सी तो हमेशा की तरह ख़ाली थी।

सन्त जी, मेरे पिता जी ने ख़ाली कुर्सी के आगे सिर क्यों झुका रखा था?….बेटी से पिता का ये हाल सुन कर सन्त जी फूटफूट कर रोने लगे और मालिक के आगे फरियाद करने लगे, हे मालिक, मैं भी,जब इस दुनिया से जाऊं तो ऐसे ही जाऊं, मुझ पर भी ऐसी ही कृपा करना। यदि हम भी इसी तरह अपने इष्ट देव की गोद में बैठकर, यहाँ से जाना चाहते हैं तो हर पल अपने इष्टदेव की हाज़री को हर जगह महसूस करेगें, एक दिन हमारी अवस्था भी ज़रूर बदलेगी

जय श्रीराम

सूर्यदेव और ग्रहण स्वर्भानु था राहु केतु का वास्तविक नाम

सूर्यदेव और ग्रहण 
स्वर्भानु था राहु केतु का वास्तविक नाम 
स्वर्भानु का नाम शायद आपने पहली बार सुना हो किन्तु मुझे विश्वास है कि उसका दूसरा नाम आप सभी जानते होंगे। कुछ लोग स्वर्भानु नाम को शायद ना जानते हों किन्तु उसका दूसरा नाम हिन्दू धर्म के सबसे प्रसिद्द पात्रों में से एक है और हम सभी उससे परिचित हैं। हम उसे राहु एवं केतु के नाम से जानते हैं। अधिकतर धर्मग्रंथों में केवल राहु का विवरण ही मिलता है जिससे बाद में केतु अलग होता है किन्तु उसका वास्तविक नाम स्वर्भानु था। स्वर्भानु दैत्यराज बलि का एक महत्वपूर्ण सेनानायक था। समुद्र मंथन के समय जब अंत में अमृत की उत्पत्ति हुई तो देवों और दैत्यों में उसे पाने के लिए प्रतिस्पर्धा आरम्भ हो गयी।

अमृत दैत्यों के हाथों में ना चला जाये इस कारण भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धरा जिसे देखकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए और सम्मोहित हो मोहिनी रुपी भगवान विष्णु का अनुसरण करने लगे। मोहिनी ने कहा कि देव और दैत्य दोनों अपनी-अपनी पंक्तियों में बैठ जाएँ ताकि वो सभी को अमृत-पान करा सके। बलि के नेतृत्व में दैत्य और इंद्र के नेतृत्व में देवता अपनी-अपनी पंक्तियों में बैठ गए और मोहिनी उन्हें अमृत पिलाने को आयी। मोहिनी दैत्यों को केवल अमृत पिलाने का अभिनय करती किन्तु देवों को वास्तव में अमृतपान करवाती। ऐसा करते-करते सभी देव अमर हो गए किन्तु किसी भी दैत्य को अमृत की एक बूँद भी नहीं मिली। 

दैत्यों में बैठा स्वर्भानु मोहिनी के इस छल को समझ गया और देव का रूप बना कर उन्ही के मध्य सूर्यदेव एवं चंद्रदेव के बीच में जाकर बैठ गया। जब मोहिनी ने उसे अमृत दिया तो उसने उसका पान करना चाहा। उसी समय सूर्य एवं चंद्र ने उसे पहचान लिया और मोहिनी रुपी भगवान विष्णु को सचेत कर दिया। ये देख कर कि उसका भेद खुल गया है, स्वर्भानु ने तुरंत अमृत का पान कर लिया किन्तु इससे पहले कि अमृत उसके कंठ से नीचे उतरता, भगवान नारायण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका मस्तक काट लिया। स्वर्भानु का सर राहु कहलाया और धड़ केतु। चूँकि अमृत स्वर्भानु के कंठ तक पहुँच चुका था इसी कारण राहु भी देवों की तरह अमर हो गया। अपने साथ हुआ ये छल देखकर राहु एवं केतु बड़े क्रोधित हुए। चूँकि सूर्य एवं चंद्र ने ही उसका भेद खोला था इसीलिए दोनों ने प्रतिज्ञा की कि वे समय आने पर दोनों को ग्रसेगे। तब से वर्ष में एक बार राहु सूर्य को एवं केतु को चंद्र को ग्रसते हैं जिससे सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण लगता है। ग्रहण समाप्त होने के बाद सूर्य राहु के और चंद्र केतु के कंठ के मार्ग से बाहर निकल जाते हैं। 

पद्म पुराण के अनुसार इंद्र की पत्नी शची कश्यप पुत्र दैत्य पौलोमी की पुत्री थी। पौलमी का वध इंद्र ने किया क्यूंकि उसने इन्द्रपद प्राप्त कर लिया था। उसके बाद पौलोमी के छोटे भाई विप्रचित्ति ने हिरण्यकशिपु की बहन होलिका और सिंहिका से विवाह किया जिससे राहु या स्वर्भानु का जन्म हुआ जो प्रह्लाद के पुत्र पुरोचन और उसके पश्चात उसके पुत्र बलि का सहायक बना। विप्रचित्ति ने उसके पश्चात इंद्र पद भी प्राप्त किया हालाँकि वो उसपर अधिक समय तक नहीं रह सका। होलिका प्रह्लाद को मरने के प्रयास में मृत्यु को प्राप्त हुई और सिंहिका का वध हनुमान ने समुद्र लंघन के समय किया। अमृत के स्पर्श के कारण राहु एवं केतु को नवग्रह में स्थान मिला है। आम तौर पर राहु को अशुभ ही माना जाता है वही केतु अधिकतर शुभ परिणाम देता है। 

एक दिन के २४ घंटों में २४ मिनट राहुकाल कहलाता है जो कि अशुभ माना जाता है। राहु और केतु को उत्तर एवं दक्षिण ध्रुव को जोड़ने वाली रेखा के रूप में भी देखा जाता है जहाँ राहु उत्तर आसंधि एवं केतु दक्षिण आसंधि कहलाता है। राहु हुए केतु चूंकि कोई वास्तविक ग्रह नहीं है इसीलिए छाया ग्रह भी कहा जाता है जहाँ राहु को ड्रैगन और केतु को एक विशाल सर्प के रूप में दिखाया जाता है जो राहु के संयोग से किसी व्यक्ति के जीवन में कालसर्प योग बनता है।

रविवार, 3 मार्च 2024

सीता अष्टमी आज

सीता अष्टमी आज

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फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि को माता सीता का प्राकट्य हुआ था, हालांकि कुछ जगहों पर वैशाख मास की नवमी तिथि को जानकी नवमी के दिन माता सीता की सही जन्म तिथि मानते हैं। 

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माता सीता पृथ्वी पर प्रकट हुई थीं। इस बार यह शुभ तिथि 04 मार्च के दिन है। इस तिथि को जानकी जंयती या सीता अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। वहीं कई जगहों पर वैशाख मास की नवमी तिथि को देवी सीता की जन्मतिथि मानते हैं, जिसे जानकी नवमी या सीता नवमी के नाम से जाना जाता है। माता सीता के कारण ही भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम बने थे। माता सीता मिथिला के राजा जनक की पुत्री थीं इसलिए उनको जानकी भी कहा जाता है। इसलिए रामायण में माता सीता को जानकी कहकर संबोधित किया गया है। 

सीता अष्टमी का महत्व 
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गुरु वशिष्ठजी के कहने पर भगवान राम ने समुद्र तट की तपोमय भूमि पर बैठकर यह व्रत किया था। यह व्रत अभीष्ट सिद्धि के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से माता सीता के साथ भगवान राम का आशीर्वाद मिलता है और सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। माता सीता को माता लक्ष्मी का अवतार माना गया है, जिनका विवाह विष्णु अवतार भगवान राम से हुआ था। सीता जयंती पर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मी स्वरूपा देवी सीता की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

सीता अष्टमी की पूजा विधि 
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सीता अष्टमी के व्रत में माता सीता के साथ भगवान राम की भी पूजा की जाती है और उनका ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प किया जाता है। पूजा से भगवान गणेश और माता दुर्गा की पूजा करें। इसके बाद लाल चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माता सीता के साथ भगवान राम की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद माता सीता को सिंदूर, अक्षत, फूल, फल आदि समेत सुहाग का सामान अर्पित किया जाता है। माता सीता का लाल या पीले रंग की चीजें अर्पित की जाती हैं। इसके बाद माता देवी सीता की आरती उतारें। फिर इस मंत्र 'ॐ जनकनंदिन्यै विद्महे, भुमिजायै धीमहि, तन्नो सीता: प्रचोदयात्' का 108 बार जप करें। सीता जंयती की पूजा में सर्व धान्य (जौ-चावल आदि) समेत हवन किया जाता है और खीर, पुए और गुड़ से बने पारंपरिक व्यंजनों का नैवेघ अर्पण किया जाता है। माता सीता की पूजा करने के बाद सुहाग के सामान को किसी सुहागिन महिला को दान में दे दें। फिर शाम के समय पूजा करने के बाद माता सीता को चढ़ाए गई चीजों से व्रत खोलें।

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