जब आप औरंगाबाद के पास दौलताबाद से 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस भव्य ज्योतिर्लिंग जिसे घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है यहां जाएंगे तब ज्योतिर्लिंग के ठीक सामने यह मस्जिद जैसी गुंबद वाली एक संरचना आपको देखने को मिलेगी
जब मैंने इस संरचना के बारे में वहां के एक स्थानीय इतिहासकार से पूछा तब उन्होंने बताया कि जब औरंगजेब ने दक्षिण यानी डक्कन पर विजय प्राप्त किया और औरंगाबाद शहर का नाम जो जिसे उस वक्त खिरकी कहा जाता था अपने नाम पर औरंगाबाद रखा और यहां पर अपना एक सूबेदार नियुक्त किया तो पहले औरंगजेब ने इस ज्योतिर्लिंग को तोड़ने का आदेश जारी किया
लेकिन वह सूबेदार समझता था कि यदि इस प्राचीन ज्योतिर्लिंग को तोड़ा गया तब मराठे और भड़क जाएंगे मराठों को आम जनता का और सहयोग मिलेगा और डेक्कन की राह इतनी आसान नहीं होगी
तब औरंगजेब ने कहा कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं से तुम पैसे वसूलो
और फिर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के ठीक दरवाजे पर यह जो गुंबद जैसी संरचना है यहां पर औरंगजेब द्वारा नियुक्त एक मुगल अधिकारी बैठता था जो यहां दर्शन के लिए आने वाले हिंदू श्रद्धालुओं से 1.50 आना फीस या जजिया कर लेता था उसके बाद उन्हें ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने जाने देता था
धूर्त वामपंथी इतिहासकारों ने हमें इतिहास की हमें इतिहास की खासकर दरिंदे मुगलों के इतिहास की बहुत सी बातें नहीं बताई हैं
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