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रविवार, 5 मई 2024

सिर्फ नेहरू-गांधी व वंशवादीपरिवार का चरण वंदना करना ही रोजगार कहलाता है ??

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग देश बन गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भारत चीनी उत्पादन में विश्व में नंबर एक बन गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 55 हजार किलोमीटर से अधिक हाईवे सड़कों का निर्माण हो गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में चेनानी नाशरी सुरंग, जोजिला सुरंग का निर्माण हो गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 75 नए हवाई अड्डे खोले गए ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में देश की विमानन कंपनियों ने 1000 हवाई जहाज़ों का ऑर्डर दिया है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में पिछली सरकार के मुकाबले कई गुना तेजी से चहुंमुखी विकास किया गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में दशकों से लंबित लगभग 10 लाख करोड़ की परियोजनाओं को पूरा किया गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 895 किलोमीटर मेट्रो का विस्तार हो गया और देशभर के कई शहरों में 986 किलोमीटर से अधिक मेट्रो रूट का विस्तार किया जा रहा है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 20 शहरों में मेट्रो चलने लगी ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भारत तेजी से गरीबी मिटाने वाला देश बन गया और 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में चार धाम को रेल, रोड, और हवाई कनेक्टिविटी से जोड़ा जा रहा है, काशी विश्वनाथ कारीडोर, विंध्य कॉरिडोर, महाकाल लोक इत्यादि धार्मिक तीर्थस्थल का निर्माण किया गया है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में इलेक्ट्रॉनिक निर्यात 22.7 अरब डॉलर हो गया?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 1.1 लाख से अधिक स्टार्ट अप खुले?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 60 हजार किलोमीटर से अधिक रेल्वे लाइन का विद्युतीकरण किया गया?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भारत की कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता 429 गीगावाट हो गई है?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता 181 गीगावाट हो गई है?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में मेडिकल कॉलेज की संख्या 706 हो गई है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में मेडिकल सीट की संख्या 1 लाख से अधिक हो गई है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में यूनिवर्सिटी की संख्या 1168 से अधिक हो गई है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 22 नए एम्स खोले गए है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 10 करोड़ से अधिक घरों में नल से जल पहुंचाया गया है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा Aviation मार्केट बन गया है ?

 💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 1.82 लाख सर्किट किलोमीटर से अधिक ट्रांसमिशन लाइन बिछायी गई है ?

🤷‍♂️ क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 5.3 लाख किसानो को सोलर पम्प दिए गए है?


Qमेरी समझ में नहीं आता कि
कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल
बेरोज़गारी कहते किसे हैं ?

सिर्फ नेहरू-गांधी व वंशवादी
परिवार का चरण वंदना करना ही
रोजगार कहलाता है ??

सोमवार, 29 अप्रैल 2024

पिता के हाथ के निशान

पिता के हाथ के निशान
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पिता जी बूढ़े हो गए थे और चलते समय दीवार का सहारा लेते थे। नतीजतन, दीवारें जहाँ भी छूती थीं, वहाँ रंग उड़ जाता था और दीवारों पर उनके उंगलियों के निशान पड़ जाते थे।

मेरी पत्नी ने यह देखा और अक्सर गंदी दिखने वाली दीवारों के बारे में शिकायत करती थी।

एक दिन, उन्हें सिरदर्द हो रहा था, इसलिए उन्होंने अपने सिर पर थोड़ा तेल मालिश किया। इसलिए चलते समय दीवारों पर तेल के दाग बन गए।

मेरी पत्नी यह देखकर मुझ पर चिल्लाई। और मैंने भी अपने पिता पर चिल्लाया और उनसे बदतमीजी से बात की, उन्हें सलाह दी कि वे चलते समय दीवारों को न छुएँ।

वे दुखी लग रहे थे। मुझे भी अपने व्यवहार पर शर्म आ रही थी, लेकिन मैंने उनसे कुछ नहीं कहा।

पिता जी ने चलते समय दीवार को पकड़ना बंद कर दिया। और एक दिन गिर पड़े। वे बिस्तर पर पड़ गए और कुछ ही समय में हमें छोड़कर चले गए। मुझे अपने दिल में अपराधबोध महसूस हुआ और मैं उनके भावों को कभी नहीं भूल पाया और कुछ ही समय बाद उनके निधन के लिए खुद को माफ़ नहीं कर पाया।

कुछ समय बाद, हम अपने घर की पेंटिंग करवाना चाहते थे। जब पेंटर आए, तो मेरे बेटे ने, जो अपने दादा को बहुत प्यार करता था, पेंटर को पिता के फिंगरप्रिंट साफ करने और उन जगहों पर पेंट करने की अनुमति नहीं दी।

पेंटर बहुत अच्छे और नए थे। उन्होंने उसे भरोसा दिलाया कि वे मेरे पिता के फिंगरप्रिंट/हाथ के निशान नहीं मिटाएंगे, बल्कि इन निशानों के चारों ओर एक सुंदर घेरा बनाकर एक अनूठी डिजाइन बनाएंगे।

इसके बाद यह सिलसिला चलता रहा और वे निशान हमारे घर का हिस्सा बन गए। हमारे घर आने वाला हर व्यक्ति हमारे अनोखे डिजाइन की प्रशंसा करता था।

समय के साथ, मैं भी बूढ़ा हो गया।

अब मुझे चलने के लिए दीवार के सहारे की जरूरत थी। एक दिन चलते समय, मुझे अपने पिता से कहे गए शब्द याद आ गए और मैंने बिना सहारे के चलने की कोशिश की। मेरे बेटे ने यह देखा और तुरंत मेरे पास आया और मुझे दीवार का सहारा लेने के लिए कहा, चिंता व्यक्त करते हुए कि मैं बिना सहारे के गिर जाऊंगा, मैंने महसूस किया कि मेरा बेटा मुझे पकड़ रहा था।

मेरी पोती तुरंत आगे आई और प्यार से, मुझे सहारा देने के लिए अपना हाथ उसके कंधे पर रखने के लिए कहा। मैं लगभग चुपचाप रोने लगा। अगर मैंने अपने पिता के लिए भी ऐसा ही किया होता, तो वे लंबे समय तक जीवित रहते।

 मेरी पोती मुझे साथ ले गई और सोफे पर बैठा दिया।
फिर उसने मुझे दिखाने के लिए अपनी ड्राइंग बुक निकाली।
उसकी शिक्षिका ने उसकी ड्राइंग की प्रशंसा की और उसे बेहतरीन टिप्पणियाँ दीं।
स्केच दीवारों पर मेरे पिता के हाथ के निशान का था।
स्केच के नीचे शीर्षक लिखा था..
“काश हर बच्चा बड़ों से इसी तरह प्यार करता”।

मैं अपने कमरे में वापस आ गया और अपने पिता से माफ़ी मांगते हुए फूट-फूट कर रोने लगा, जो अब इस दुनिया में नहीं थे।

हम भी समय के साथ बूढ़े हो जाते हैं। आइए अपने बड़ों का ख्याल रखें।
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वैशाख मास-महात्मय (चतुर्थ अध्याय)

वैशाख मास-महात्मय (चतुर्थ अध्याय) 
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इस अध्याय में महर्षि वसिष्ठ के उपदेश से राजा कीर्तिमान् का अपने राज्य में वैशाख मास के धर्म का पालन कराना और यमराज का ब्रह्माजी से राजा के लिये शिकायत करने सम्बंधित वर्णन किया गया है।

मिथिलापति ने पूछा 👉 ब्रह्मन् ! जब वैशाख मास के धर्म अतिशय सुलभ, पुण्यराशि प्रदान करने वाले, भगवान् विष्णु के लिये प्रीतिकारक, चारों पुरुषार्थों की तत्काल सिद्धि करने वाले, सनातन और वेदोक्त हैं तब संसार में उनकी प्रसिद्धि कैसे नहीं हुई ?

          श्रुतदेवजी ने कहा-राजन्! इस पृथ्वी पर लौकिक कामना रखने वाले ही मनुष्य अधिक हैं। उनमें से कुछ राजस और कुछ तामस हैं। वे लोग इस संसार के भोगों तथा पुत्र- पौत्रादि सम्पदाओं की ही अभिलाषा रखते हैं। कहीं किसी प्रकार कभी बड़ी कठिनाई से कोई एक मनुष्य ऐसा मिलता है, जो स्वर्गलोक के लिये प्रयत्न करता है और इसीलिये वह यज्ञ आदि पुण्यकर्मों का अनुष्ठान बड़े प्रयत्न से करता है; परंतु मोक्ष की उपासना प्राय: कोई नहीं करता। तुच्छ आशाएँ लेकर बहुत-से कर्मो का आयोजन करने वाले लोग प्रायः काम्य-कर्मो के ही उपासक हैं। यही कारण है। कि संसार में राजस और तामस धर्म अधिक विख्यात हो गये, परंतु सात्त्विक धर्मो की प्रसिद्धि नहीं हुई। ये सात्त्विक धर्म भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने वाले हैं, निष्काम भाव से किये जाते हैं और इहलोक तथा परलोक में सुख प्रदान करते हैं। देवमाया से मोहित होने के कारण मूढ़ मनुष्य इन धर्मो को जानते ही नहीं हैं ।

          पूर्वकाल की बात है, काशीपुरी में कीर्तिमान् नाम से विख्यात एक चक्रवर्ती राजा थे। वे इक्ष्वाकुवंश के भूषण तथा महाराज नृग के पुत्र थे। संसार में उनका बड़ा यश था। वे अपनी इन्द्रियों पर और क्रोध पर विजय पा चुके थे ब्राह्मणों के प्रति उनके मन में बड़ी भक्ति थी । राजाओं में उनका स्थान बहुत ऊँचा था। एक दिन वे मृगया में आसक्त होकर महर्षि वसिष्ठ के आश्रम पर आये। वैशाख की चिलचिलाती हुई धूप में यात्रा करते हुए राजा ने मार्ग में देखा, महात्मा वसिष्ठ के शिष्य जगह-जगह अनेक प्रकार के कार्यों में विशेष तत्परता के साथ संलग्न थे। वे कहीं पौंसला बनाते थे और कहीं छायामण्डप। किनारे पर झरनों के जल को रोककर स्वच्छ बावली बनाते थे। कहीं वृक्षों के नीचे बैठे हुए लोगों को वे पंखा डुलाकर हवा करते थे, कहीं ऊख देते, कहीं सुगन्धित पदार्थ भेंट करते और कहीं फल देते थे। दोपहरी में लोगों को छाता देते और सन्ध्या के समय शर्वत। कोई शिष्य घनी छाया वाले वन में झाड़ बुहारकर साफ किये हुए आश्रम के प्रांगणों में हितकारक बालुका बिछाते थे और कुछ लोग वृक्षों की शाखा में झूला लटकाते थे। उन्हें देखकर राजा ने पूछा- 'आप लोग कौन हैं?' उन्होंने उत्तर दिया-'हम लोग महर्षि वसिष्ठ के शिष्य हैं।' राजा ने पूछा- 'यह सब क्या हो रहा है?' वे बोले-'ये वैशाख मास में कर्तव्य रूप से बताये गये धर्म हैं, 'जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष - चारों पुरुषार्थों के साधक हैं। हम लोग गुरुदेव वसिष्ठ की आज्ञा से इन धर्मोका पालन करते हैं । राजा ने पुन: पूछा-'इनके अनुष्ठान से मनुष्यों को कौन-सा फल मिलता है? किस देवता की प्रसन्नता होती है?' उन्होंने उत्तर दिया- ' हमें इस समय यह बताने के लिये अवकाश नहीं है, आप गुरुजी से ही यथोचित प्रश्न कीजिये वे महायशस्वी महर्षि इन धर्मो को यथार्थ रूप से जानते हैं।'
         
शिष्यों से ऐसा उत्तर पाकर राजा शीघ्र ही महर्षि वसिष्ठ के पवित्र आश्रम पर जो विद्या और योग शक्ति से सम्पन्न था, गये राजा को आते देख महर्षि वसिष्ठ मन-ही-मन बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सेवकों सहित महात्मा राजा का विधिपूर्वक आतिथ्य-सत्कार किया। जब वे आराम से बैठ गये, तब गुरु वसिष्ठ से प्रसन्नता पूर्वक बोले- 'भगवन् ! मैंने मार्ग में आपके शिष्यों द्वारा परम आश्चर्यमय शुभ कर्मो का अनुष्टान होते देखा है; किंतु उसके सम्बन्ध में जब प्रश्न किया, तब उन्होंने दूसरी कोई बात न बताकर आपके पास जाने की आज्ञा दी उनकी आज्ञा के अनुसार मैं इस समय आपके समीप आया हूँ। मेरे मन में उन धर्मो को सुनने की बड़ी इच्छा है। अत: आप मुझसे उनका वर्णन करें।
         
तब महायशस्वी वसिष्ठजी ने प्रसन्नतापूर्वक कहा-राजन् ! तुम्हारी बुद्धि को उत्तम शिक्षा मिली है। अत: उसने यह उत्तम निश्चय किया है। भगवान् विष्णु की कथा के श्रवण और भगवद्धर्मो के अनुष्ठान में जो तुम्हारी बुद्धि की आत्यन्तिक प्रवृत्त हुई है, यह तुम्हारे किसी पुण्य का ही फल है। जिसने वैशाख मास में बताये हुए महाधर्मो के द्वारा भगवान् श्रीहरि की आराधना की है, उसके उन धर्मो से भगवान् बहुत सन्तुष्ट होते और उसे मनोवांछित वस्तु प्रदान करते हैं। सम्पूर्ण जगत् के स्वामी भगवान् लक्ष्मीपति समस्त पापराशि का विनाश करने वाले हैं। वे सूक्ष्म धर्मो से प्रसन्न होते हैं, केवल परिश्रम और धन से नहीं। भगवान् विष्णु भक्ति से पूजित होने पर अभीष्ट वस्तु प्रदान करते हैं; इसलिये सदा भगवान् विष्णु की भक्ति करनी चाहिये। जगदीश्वर श्रीहरि जल से भी पूजा करने पर अशेष क्लेश का नाश करते और शीघ्र प्रसन्न होते हैं। वैशाख मास में बताये हुए ये धर्म थोड़े-से परिश्रम द्वारा साध्य होने पर भी भगवान् विष्णु के लिये प्रीतिकारक एवं शुभ होने के कारण अधिक व्यय से सिद्ध होने वाले बड़े-बड़े यज्ञादि कर्मो का भी तिरस्कार करने वाले हैं। अत: भृपाल ! तुम भी वैशाख मास में बताये हुए धर्मो का पालन करो और तुम्हारे राज्य में निवास करने वाले अन्य सब लोगों से भी उन कल्याणकारी धर्मो का पालन कराओ।
         
इस प्रकार से वैशाख-धर्म के पालन की आवश्यकता को शास्त्रों और युक्तियों से भली-भाँति सिद्ध करके वसिष्ठजी ने वैशाख मास के सब धर्मो का राजा के समक्ष वर्णन किया। उन सब धर्मो को सुनकर राजा ने गुरु का भक्ति भाव से पूजन किया और घर आकर वे सब धर्मो का विधिपूर्वक पालन करने लगे। देवाधिदेव भगवान् विष्णु में भक्ति रखते हुए राजा कीर्तिमान् देवेश्वर पद्मनाभ के अतिरिक्त और किसी देवता को नहीं देखते थे। उन्होंने हाथी की पीठ पर नगाड़ा रखकर सिपाहियों से अपने राज्य भर में डंके की चोट यह घोषणा करा दी कि मेरे राज्य में जो आठ वर्ष से अधिक की आयु वाला मनुष्य है, उसकी आयु जब तक अस्सी वर्ष की न हो जाय, तब तक मेष राशि में सूर्य के स्थित होने पर यदि वह प्रात:काल स्नान नहीं करेगा तो मेरे द्वारा दण्डनीय, वध्य तथा राज्य से निकाल देने योग्य समझा जायगा यह मेरा निश्चित आदेश है। पिता, पुत्र, अथवा सुहृद्-जो कोई भी वैशाख धर्म का पालन नहीं करेगा, वह चोर की भाँति दण्ड का पात्र समझा जायगा। प्रात:काल शुभ जल में स्नान करके श्रेष्ठ ब्राह्मणों को दान करना चाहिये। तुम सब लोग अपनी शक्ति के अनुसार पौंसला और दान आदि धर्मो का आचारण करो।'
         
राजा कीर्तिमान् ने प्रत्येक ग्राम में धर्म का उपदेश करने वाले एक-एक ब्राह्मण को बसाया। पाँच-पाँच गाँवों पर एक-एक ऐसे अधिकारी की नियुक्ति की, जो धर्म का त्याग करने वाले लोगों को दण्ड दे सके। उस अधिकारी की सेवा में दस-दस घुड़सवार रहते थे। इस प्रकार चक्रवर्ती नरेश के शासन से सर्वत्र और सब देशों में यह धर्म का पौधा प्रारम्भ हुआ और आगे चलकर खूब बढ़े हुए वृक्ष के रूप में परिणत हो गया उस राजा के राज्य में जो लोग मर जाते थे, वे भगवान् विष्णु के धाम में जाते थे। वहाँ के मनुष्यों को विष्णु लोक की प्राप्ति निश्चित थी। एक बार भी वैशाख स्नान कर लेने से मनुष्य यमराज के पास नहीं जाता। अपने धर्मानुकूल कर्म में स्थित हुए सब लोगों के विष्णुलोक में चले जाने से यमपुरी के सब नरक खाली हो गये। वहाँ एक भी पापी प्राणी नहीं रह गया वैशाख मास के प्रभाव से यमपुरी के मार्ग की यात्रा ही बंद हो गयी। सब मनुष्य दिव्य आकृति धारण करके भगवान् के धाम में जाने लगे। देवताओं के जो लोक हैं, वे सब भी शून्य हो गये। स्वर्ग और नरक दोनों के शून्य हो जाने पर एक दिन नारदजी ने धर्मराज के पास जाकर कहा-'धर्मराज ! आपके इस नरक में पहले-जैसा कोलाहल नहीं सुनायी पड़ता, पहले की भाँति पाप - कर्मो का लेखा भी नहीं लिखा जा रहा है। चित्रगुप्तजी तो ऐसे मौन भाव से बैठे हुए हैं, जैसे कोई मुनि हों। महाराज ! इसका कारण तो बताइये?
         
महात्मा नारद के ऐसा कहने पर राजा यम ने कुछ दीनता के स्वर में कहा-नारद! इस समय पृथ्वी पर जो यह राजा राज्य करता है, वह पुराणपुरुषोत्तम भगवान् विष्णु का बड़ा भक्त है। उसके भय से कोई भी मनुष्य कभी वैशाख मास का उल्लंघन नहीं करता। उस पुण्य कर्म के प्रभाव से सभी भगवान् विष्णु के परम धाम में चले जाते हैं। मुनिश्रेष्ठ ! उस राजा ने इस समय मेरे लोक का मार्ग लुप्त-सा कर रखा है। स्वर्ग और नरक दोनों को शून्य बना दिया है। अत: ब्रह्माजी के समीप जाकर यह सब समाचार उनसे निवेदन करके तभी मैं स्वस्थ होऊँगा। ऐसा निश्चय करके यमराज ब्रह्माजी के लोक में गये और वहाँ बैठे हुए उन ब्रह्माजी का दर्शन किया, जिनका आश्रय ध्रुव है, जो इस जगत् के बीज तथा सब लोकों के पितामह हैं और समस्त लोकपाल, दिक्पाल तथा देवता जिनकी उपासना करते हैं।
         
ब्रह्माजी ने यमराज को देखा और यमराज ब्रह्माजी के आगे पृथ्वी पर गिर पड़े। फिर यमराजने कहा- कमलासन! काम में लगाया हुआ जो पुरुष स्वामी की आज्ञा का ठीक-ठीक पालन नहीं करता और उसका धन लेकर भोगता है, वह काठ का कीड़ा होता है। जो बुद्धिमान् मनुष्य लोभवश स्वामी के धन का उपभोग करता है, वह तीन सौ कल्पों तक तिर्यग्-योनिरूप नरक में जाता है। जो कार्य में नियुक्त हुआ पुरुष कार्य करने में समर्थ होकर भी अपने घर में ही बैठा रहता है, वह बिलाव होता है। देव! मैं आपकी आज्ञा से धर्म पूर्वक प्रजा का शासन करता आ रहा हूँ। मैं अब तक मुनियों और धर्मशास्त्रों के कथनानुसार पुण्यात्मा को पुण्य के फल से और पापात्मा को पाप के फल से संयुक्त किया करता था, परंतु अब आपकी आज्ञा का पालन करने में असमर्थ हो गया हूँ। कीर्तितमान् के राज्य में सब लोग वैशाखमासोक्त पुण्य कर्मो का अनुष्ठान करके पितरों और पितामहों के साथ वैकुण्ठधाम में चले जाते हैं। उनके मरे हुए पितर और मातामह आदि भी विष्णुलोक में चले जाते हैं। इतना ही नहीं, पत्नी के पिता- श्वशुर आदि भी मेरे लेख को मिटाकर विष्णुलोक में चले जाते हैं। देव! बड़े-बड़े यज्ञों द्वारा भी मनुष्य वैसी गति नहीं पाता है, जैसी वैशाख मास में मिल रही है। सम्पूर्ण तीर्थों से, दान आदि से, तपस्याओं से, व्रतों से अथवा सम्पूर्ण धर्मो से युक्त मनुष्य भी उस गति को नहीं पाता, जो वैशाख धर्म तत्पर हुए मनुष्य को प्राप्त हो रही है। वैशाख में प्रात:काल स्नान करके देवपूजन, मास-माहात्म्य की कथाका श्रवण तथा भगवान् विष्णु को प्रिय लगने वाले तदनुकृूल धर्म का पालन करने वाला मनुष्य एकमात्र विष्णु लोक का स्वामी होता है और जगत् पति भगवान् विष्णु के लोक की तो मेरी समझ में कोई सीमा ही नहीं है; क्योंकि सब ओर से कोटि-कोटि प्राणियों का समुदाय वहाँ पहुँच रहा है तो भी वह भरता नहीं है। इस संसार में पवित्र और अपवित्र सभी लोग राजा की आज्ञा से वैशाख मास के धर्म का पालन करके विष्णुलोक को जा रहे हैं। लोकनाथ! उसकी प्रेरणा से संस्कारहीन मनुष्य भी वैशाख-स्नान मात्र से वैकुण्ठधाम में चले जाते हैं। वह केवल भगवान् विष्णु के चरणों की शरण लेने वाला है जान पड़ता है, वह समस्त संसार को विष्णुलोक में पहुँचा देगा। जो पुत्र धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतिकृूल चलता हो, वह पृथ्वी पर माता के पेट से पैदा हुआ रोग है। वह अधम पुरुष अपनी माता का घात करने वाला कहा जाता है; किंतु राजा कीर्तिमान् की माता और उसकी पत्नी का पुण्य संसारमें विख्यात है। उसकी माता एकमात्र वीरजननी है और वह राजा निश्चय ही संसार में बहुत बड़ा वीर है। जिस प्रकार कीर्तिमान् मेरी लिपि को मिटाने में उद्यत हुआ है, ऐसा उद्योग पुराणों में और किसी का नहीं सुना गया है। भगवान् विष्णु की भक्ति में तत्पर हुए राजा कीर्तिमान् के सिवा दूसरे ऐसे किसी को मैं नहीं जानता, जो डंका बजाकर घोषणा करते हुए लोगों को ऐसी प्रेरणा देता हो और मेरे लोक के मार्ग को विलुप्त करने की चेष्टा करता रहा हो।'
  
"जय जय श्री हरि"
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ब्रह्म मुहूर्त का महत्त्व एवं समय

ब्रह्म मुहूर्त का महत्त्व एवं समय
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वैसे तो सूर्य हमेशा आपके सिर के ऊपर ही होता है, लेकिन जब मैं कहता हूं कि सूर्य ठीक आपके सिर पर है तो इसका मतलब है उस समय वह आपके सिर पर लंबवत है। उस समय यह एक विशेष तरीके से काम करता है। यह समय होता है सुबह ३:४५ से लेकर अगले १२ से २० मिनट तक।
अब सवाल आता है कि इस समय में हम क्या करें? इस समय में हम ध्यान करें या क्रिया करें? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या करें। इस समय में आपको वही करना चाहिए, जिसमें आपको दीक्षित किया गया है। दरअसल, दीक्षा का मतलब यह नहीं है कि आपको कोई क्रिया सिखाई गई है, इसका मतलब है कि इस क्रिया से आपके सिस्टम को परिचित करा कर आपके सिस्टम में इसे बाकायदा स्थापित किया गया है।
अगर आपके सिस्टम में एक जीवंत बीज पड़ चुका है और अगर आप ब्रह्म मुहूर्त में जागकर कोई भी अभ्यास करने बैठते हैं तो यह बीज आपको सबसे ज्यादा फल देगा। उसकी वजह है कि इस समय धरती आपके सिस्टम के अनुसार काम करती है। अगर आप खास तरीके से जागरूक हो जाते हैं, आपके भीतर एक खास स्तर की जागरूकता आ जाती है तो आपको इस समय का सहज रूप से अहसास हो जाता है। अगर आप सही वक्त पर सोने चले जाते हैं तो आपको उठने के लिए घड़ी देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आपको हमेशा पता चल जाएगा कि कब ३:४५ का वक्त हो गया है, क्योंकि यह वक्त होते ही आपका शरीर एक अलग तरीके से व्यवहार करने लगेगा।

ब्रह्म मुहूर्त का महत्त्व
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आप जिस भी क्रिया में दीक्षित हुए हैं, अगर इस समय वह करना शुरू कर देंगे, तो आपको इसका सर्वश्रेष्ठ फल मिलेगा। हां, यह समय किताब पढ़ कर सीखी हुई क्रिया करने का नहीं है। आपके भीतर पड़ा वह बीज इस समय विशेष सहयोग मिलने से अकुंरित होने लगेगा या दूसरे समय की अपेक्षा ज्यादा तेजी से फूटेगा। यह समय सिर्फ दीक्षित हुए लोगों के लिए ही अनुकूल है। अगर आप दीक्षित नहीं है तो फिर ३:४५ हो या ६:४५ या फिर ७:४५ कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। ऐसे लोगों के लिए संध्या काल ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। यह एक तरह का संधि काल होता है।
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राम' नाम का प्रताप

(((( 'राम' नाम का प्रताप ))))
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एक बार महाराज दशरथ राम आदि के साथ गंगा स्नान के लिये जा रहे थे। मार्ग में देवर्षि नारद जी से उनकी भेंट हो गयी। 
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महाराज दशरथ आदि सभी ने देवर्षि को प्रणाम किया।
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तदनन्तर नारद जी ने उनसे कहा, महाराज ! अपने पुत्रों तथा सेना आदि के साथ आप कहां जा रहे हैं ? 
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इस पर बड़े ही विनम्र भाव से राजा दशरथ ने बताया.. भगवन ! हम सभी गंगा स्नान की अभिलाषा से जा रहे है।
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इस पर मुनि ने उनसे कहा.. महाराज ! निस्संदेह आप बड़े अज्ञानी प्रतीत होते है.. 
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क्योकि पतित पावनी भगवती गंगा जिनके चरण कमलों से प्रकट हुई है, वे ही नारायण श्री राम आपके पुत्ररूप में अवतरित होकर आपके साथ में रह रहे है। 
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उनके चरणों की सेवा और उनका दर्शन ही दान, पुण्य और गंगा स्नान है, फिर हे राजन् ! आप उनकी सेवा न करके अन्यत्र कहाँ जा रहे है। 
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पुत्र भाव से अपने भगवान् का ही दर्शन करे। श्री राम के मुख कमल के दर्शन के बाद कौन कर्म करना शेष बच जाता है ?
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पतितपावनी गंगा अवनीमण्डले।
सेइ गंगा जन्मिलेन यार पदतले।।
सेइ दान सेइ पुण्य सेइ गंगास्नान।
पुत्रभावे देख तुमि प्रभु भगवान्।।
(मानस, बालकाण्ड)
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नारदजी के कहने पर महाराज दशरथ ने वापस घर लौटने का निश्चय किया.. किंतु भगवान् श्रीराम ने गंगा जी की महिमा का प्रतिपादन करके गंगा स्नान के लिए ही पिता जी को सलाह दी। 
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तदनुसार महाराज दशरथ पुन: गंगा स्नान के लिये आगे बढ़े। 
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मार्ग में तीन करोड़ सैनिकों के द्वारा गुहराज ने उनका मार्ग रोक लिया। 
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गुहराज़ ने कहा, मेरे मार्ग को छोड़कर यात्रा करे, यदि इसी मार्ग से यात्रा करना हो तो आप अपने पुत्र का मुझे दर्शन करायें। 
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इस पर दशरथ की सेना का गुह की सेना के साथ घनघोर युद्ध प्रारम्भ हो गया।
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गुह बंदी बना लिये गये। कौतुकी भगवान् श्री राम ज्यों ही युद्ध देखने की इच्छा से गुहराज के सामने पड़े, गुह ने दण्डवत प्रणाम कर हाथ जोड़ प्रणाम् किया। 
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प्रभु के पूछने पर उसने बताया, प्रभो ! मेरे पूर्वजन्म की कथा आप सुनें.. मैं पूर्व जन्म में महर्षि वसिष्ट का पुत्र वामदेव था।
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एक बार राजा दशरथ अन्धक मुनि के पुत्र की हत्या का प्रायश्चित्त पूछने हमारे आश्रम मे पिता वसिष्ठ के पास आये, पर उस समय मेरे पिताजी आश्रम में नहीं थे। 
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तब महाराज दशरथ ने बड़े ही कातर स्वर में हत्या का प्रायश्चित्त बताने के लिये मुझसे प्रार्थना की। 
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उस समय मैंने राम नाम के प्रताप को समझते हुए तीन बार ‘राम राम राम’ इस प्रकार जपने से हत्या का प्रायश्चित्त हो जायगा परामर्श राजा को बतलाया था। 
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तब प्रसन्न होकर राजा वापस चले गये।
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पिताजी के आश्रम में आने पर मैने सारी घटना उन्हें बतला दी। मैंने सोचा था कि आज पिताजी बड़े प्रसन्न होंगे, किंतु परिणाम बिलकुल ही विपरीत हुआ। 
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पिताजी क्रुद्ध होते हुए बोले, वत्स ! तुमने यह क्या किया, लगता है तुम श्री राम नाम की महिमा को ठीक से जानते नहीं हो..
 
यदि जानते होते तो ऐसा नहीं कहते, क्योकि 'राम' इस नाम का केवल एक बार नाम लेनेमात्र से कोई पातक उप-पातकों तथा ब्रह्महत्यादि महापातको से भी मुक्ति हो जाती है.. 
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फिर तीन बार राम नाम जपने का तुमने राजा को उपदेश क्यों दिया ?
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जाओ, तुम नीच योनि में जन्म ग्रहण करोगे और जब राजा दशरथ के घर मे साक्षात् नारायण श्री राम अवतीर्ण होंगे तब उन के दर्शन से तुम्हारी मुक्ति होगी।
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प्रभो ! आज मैं, करुणासागर पतितपावन आपका दर्शन पाकर कृतार्थ हुआ। इतना कहकर गुहरांज प्रेम विह्नल हो रोने लगा। 
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तब दया के सागर श्रीराम ने उसे बन्धन मुक्त किया और अग्नि को साक्षी मानकर उससे मैत्री कर ली। 
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भगवान् के मात्र एक नाम का प्रताप कितना है यह इस प्रसंग से ज्ञात होता है।
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