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रविवार, 6 नवंबर 2011

भारत की नई पहचान - Sharad Harikisanji Panpaliya

पन्द्रहवीं शाताब्दी में अरबों की मार्फत योरुप पहुँचे भारतीय ज्ञान विज्ञान ने जब पाश्चात्य देशों में जागृति की चमक पैदा करी तो पुर्तगाल, ब्रिटेन, फ्राँस, स्पेन, होलैण्ड तथा अन्य कई योरुपीय देशों की व्यवसायिक कम्पनियाँ आपसी प्रतिस्पर्धा में दौलत कमाने के लिये भारत की ओर निकल पडीं थीं। उन की कल्पना में भारत के साथ उच्च कोटि की दार्शनिक्ता, धन, वैभव, व्यापार, तथा ज्ञान के भण्डार जुडे थे लेकिन इस्लामी शासकों ने भारत को नष्ट कर के जिस हाल में छोडा था वह अत्यन्त निराशाजनक था। उस समय का हिन्दुस्तान योरूप वासियों की आपेक्षाओं के उलट निकला। योरुपीय जागृति के तुलना में भारत के हर क्षेत्र में अन्धकार, घोर निराशा, अन्ध-विशवास, बीमारी, भुखमरी, तथा आपसी षटयन्त्रों का वातावरण था जिस के कारण भारत की नई पहचान चापलूसों, चाटूकारों, सपेरों, लुटेरों और अन्धविशवासियों की बन गयी।

वह पहचान आज भी लगभग वैसी ही चल रही है जिस के लिये जिम्मेदार हमारे स्वार्थी नेता, उन के काले खाते और कारनामें, कुछ स्वार्थी धर्म गुरु, मानव अधिकारों की दुहाई देने वाले कुछ विदेशियों के तनखाहिये, कानवेन्ट परिशिक्षित सेक्यूलरिस्ट और चर्च पालित मीडिया वाले हैं जिन्हों ने हमारे युवाओं को अंग्रेजी चमक दमक और उदारीकरण के बहानों से गुमराह कर रखा है। अब जरूरत है कि हम आक्रामिक विरोध का सामना अटल हो कर करें और भारतीयता को पुनर्स्थापित करें। इस सब के लिये हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्तान की पहचान प्रथम पादान है जिसे फिर से युवाओं को ही स्थापित करनी है। आप अंग्रेजी से कुछ सीमा तक अपनी व्यक्तिगत उन्नति कर सकते हैं परन्तु देश की उन्नति नहीं कर सकते।
 - Sharad Harikisanji Panpaliya

नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

शनिवार, 5 नवंबर 2011

लक्ष्मी-नारायण को प्रिय है तुलसी - By Shyam Sunder Chandak (Bikaner)



देवउठनी ग्यारस (एकादशी) का दिन मूलतः तुलसी के विवाह का पर्व है। पुराणों के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन ही भगवान श्री हरि पाताल लोक के राजा बलि के राज्य से चातुर्मास का विश्राम पूरा कर बैकुंठ लौटे थे। भारतीय समाज में तुलसी के पौधे को देवतुल्य मान ऊंचा स्थान दिया गया है। यह औषधि भी है तो मोक्ष प्रदायिनी भी है। हर घर परिवार के आंगन में तुलसी को स्थान मिला हुआ है जहां नित उसे पूजा जाता है। कहा गया है कि जहां तुलसी होती है वहां साक्षात्‌ लक्ष्मी का निवास भी होता है। स्वयं भगवान नारायण श्री हरि तुलसी को अपने मस्तक पर धारण करते हैं। यह मोक्ष कारक है तो भगवान की भक्ति भी प्रदान करती है। क्योंकि ईश्वर की उपासना, पूजा व भोग में तुलसी के पत्तों का होना अनिवार्य माना गया है। तुलसी को भारतीय जनमानस में बड़ा पवित्र स्थान दिया गया है। यह लक्ष्मी व नारायण दोनों को समान रूप से प्रिय है। इसे हरिप्रिया भी कहा गया है। बिना तुलसी के यज्ञ, हवन, पूजन, कर्मकांड, साधना व उपासना पूरे नहीं होते। यहां तक कि श्राद्ध, तर्पण, दान, संकल्प के साथ ही चरणामृत, प्रसाद व भगवान के भोग में तुलसी का होना अनिवार्य माना गया है।

तुलसी विवाह की कथा : तुलसी विवाह का प्रचलन........

श्रीमद्भगवत पुराण के अनुसार वर्णित कथा के अनुसार तुलसी को पूर्व जन्म में जालंधर नामक दैत्य की पत्नी बताया गया है। जालंधर नामक दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर भगवान विष्णु ने अपनी योगमाया से जालंधर का वध किया था। पति जालंधर की मृत्यु से पीड़ित तुलसी पति के वियोग में तड़पती हुई सती हो गई। इसके भस्म से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ। तुलसी की पतिव्रता एवं त्याग से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तुलसी को अपनी पत्नी के रूप में अंगीकार किया और वरदान भी दिया जो भी तुम्हारा विवाह मेरे साथ करवाएगा वह परमधाम को प्राप्त करेगा। इसलिए देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए तुलसी विवाह का प्रचलन है।
पौराणिक कथानुसार एक बार सृष्टि के कल्याण के उद्येश्य से भगवान विष्णु ने राजा जालंधर की पत्नी वृंदा के सतीत्व को भंग कर दिया l इस पर सती वृंदा ने उन्हें श्राप दे दिया और भगवान विष्णु पत्थर बन गए, जिस कारणवश प्रभु को शालिग्राम भी कहा जाता है और भक्तगण इस रूप में भी उनकी पूजा करते हैं l इसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु को अपने शालिग्राम स्वरुप में तुलसी से विवाह करना पड़ा था और उसी समय से तुलसी विवाह का यह अनूठा रस्म प्रत्येक साल मनाया जाता है l तुलसी विवाह के सुअवसर पर व्रत रखने का बड़ा ही महत्व है. आस्थावान भक्तों के अनुसार इस दिन श्रद्धा-भक्ति और विधिपूर्वक व्रत करने से व्रती के इस जन्म के साथ-साथ पूर्वजन्म के भी सारे पाप मिट जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है l
By Shyam Sunder Chandak (Bikaner)

" हे भगवान! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद - By Shyam Sunder Chandak (Bikaner)

एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था, एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी. उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा. दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजा खोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उसने पानी का एक गिलास पानी माँगा. लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वह एक...... बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया. " कितने पैसे दूं?" लड़के ने पूछा. " पैसे किस बात के?" लड़की ने जवाव में कहा." माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए." " तो फिर मैं आपको दिल से धन्यबाद देता हूँ." जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकी थी , बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था. सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी. लोकल डॉक्टर ने उसे शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया. विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया. जैसे ही उसने लड़की के कस्वे का नाम सुना, उसकी आँखों में चमक आ गयी. वह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया. उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देगा. उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी. डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज का बिल लिया. उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया. लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरा गयी, उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बच गयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान ले लेगी. फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पेन से लिखे नोट पर गयी, जहाँ लिखा था," एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका है." नीचे डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे. ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालों पर आंसू अपक पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर कहा," हे भगवान! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है." अब आपके दो में से एक चुनाव करना है. या तो आप इसे शेयर करके इस सन्देश को हर जगह पहुंचाएं या इसे व्यर्थ मान अपने आप को समझा लें कि इस कहानी ने आपका दिल नहीं छूआ.--

by
Sharad Harikisanji Panpaliya

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

करणी माता मंदिर, देशनोक, बीकानेर.. - By Shyam Sunder Chandak (Bikaner)

करणी माता मंदिर, देशनोक, बीकानेर से 30 किमी स्थित है l मंदिर एक प्रारंभिक 15 रहस्यवादी सदी के लिए समर्पित है, देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है l भूरे और सफ़ेद रंग के चूहे निडर होकर मंदिर परिसर के आसपास चल रहे है, चूहों की एक बड़ी संख्या के लिए यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है l यह माना जाता है कि मृत की आत्माओं (माता के भक्तों), इन चूहों में रहते हैं l एक सफेद चूहे को देखना या जब एक चूहा आरती के समय अपने पैरो पर चलाता है, यह बहुत भाग्यशाली माना जाता है l इन चूहों के लिए दूध, मिठाई, अनाज, आदि की पेशकश की जाती है l चूहों का मंदिर है, जो स्वतंत्र रूप से बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों की उपस्थिति के बावजूद भी किसी प्लेग की कोई घटना नहीं होती l इसे एक चमत्कार के रूप में समझे l पूरी दुनिया में यह एक अद्वितीय मंदिर है, जहां चूहे आज़ादी से बाहर कदम रखते है, इन चूहों को 'काबा' कहा जाता है l
बीकानेर के शासक गंगा सिंह ने पूरा मंदिर संगमरमर में बनाया था, महाराजा ने संगमरमर और चांदी श्रंगार के साथ करणी माता मंदिर का निर्माण किया l मंदिर के गुंबदों चांदी और सोने के बने हैं l माता की मूर्ति एक फुट तीन इंच चौड़ी और ढाई फुट लम्बी है l एक अन्य कथा के अनुसार, बीकानेर के महाराजा को एक दृष्टि करणी माता दिखाई दिये l मुख्य मंदिर चक्करदार पथ के साथ और बाहरी दीवारों को लाल पत्थर से बनाया गया है, लेकिन मुख्य द्वार भव्य और उच्च है और यह संगमरमर से बना हैl जिस पर सुंदर नक्काशी का काम किया गया है l भीतरी मंदिर में संगमरमर इस्तेमाल किया गया है l मंदिर का पूरा फर्श संगमरमर का है l भीतरी मंदिर के अंदर छोटे मंदिर है, जो खुद करनी माता ने 600 साल पहले बनाया, कहा जाता है, मौजूद है l
By Shyam Sunder Chandak (Bikaner)

गौ वंश वध पर गुजरात में प्रतिबन्ध.....

जय श्री राधे कृष्णा...............सु-प्रभात !!!!!

गौ वंश वध पर गुजरात में प्रतिबन्ध.....
24.10.2011 धनतेरस से गुजरात में गौ-वंश वध तथा इस पशुधन के अवैध्य हेराफेरी सम्बंधित नया कानून (एनीमल प्रिजर्वेशन एमण्डमेन्ट बिल) प्रभावी हो गया है l इसमें गोवंश की कत्ल, गोवंश मांस बिक्री व संग्रहण को भी प्रतिबन्धितकिया गया है । गुजरात पशु संरछन संशोधन अधिनियम - 2011 को 19 सितम्बर को गुजरात विधानसभा ने पारित किया l राज्यपाल ने हाल ही में इस पर मुहर लगा दी है l इस कानून में दोषी पाए जाने पर एक से सात साल तक की कैद, 10 से 50 हजार रूपये के जुर्माने जैसे सख्त प्रावधान है l साथ ही गोवंश को बूचड़खाने ले जाने, गोवंश मांस की बिक्री, संग्रहण व लाने ले जाने वाले हेराफेरी के मामले में पकड़े जाने वाले वाहनों को 6 महीनो से तीन साल तक की सजा व 25 हजार रूपए का अर्थ दण्ड की सजा का सामना करना पड़ सकता है अथवा केश का अदालत में निपटारा होने तक वाहन जब्त किया जा सकेगा l अभी तक गुजरात में मुंबई पशु-संरछन अधिनियम - 1954 प्रभावी था l माननीय नरेन्द्र मोदी जी को इस नेक कार्य के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद........ जय हिन्द, जय हिंदुस्तान l

आज 'गोपष्टमी' पर्व पर हमें भी ये संकल्प लेना चाहिए, इसके लिए सभी भाइयों से प्रार्थना है क़ि इस पेज को 'लाइक' करके ज्यादा से ज्यादा समर्थन जुटावें l
"Gaay Mata ki JAY ho - गऊ हत्या बन्द हो"

आज आंवला नवमी : - By Shyam Sunder Chandak (Bikaner)

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है. आँवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहते हैं. आँवला नवमी के दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्नदान करने का बहुत महत्व होता है. इस दिन किया गया जप, तप, दान इत्यादि व्यक्ति को सभी पापों से मुक्त करता है तथा सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला होता है. मान्यता है कि सतयुग का आरंभ भी इसी दिन हुआ था. इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के वृक्ष में सभी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को भी अति प्रिय है l

आँवला नवमी पूजा.......
प्रात:काल स्नान कर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है. पूजा करने के लिए आँवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर शोड्षोपचार पूजन करना चाहिए. दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करें. आंवले की जड़ में दूध चढा़एं, कर्पूर वर्तिका से आरती करते हुए वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें. आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा दान आदि दें तथा कथा का श्रवण करें. घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे में या गमले में आंवले का पौधा लगा कर यह कार्य सम्पन्न करना चाहिए l

आँवला नवमी महत्व.......
कार्तिक शुक्ल पक्ष की आंवला नवमी का धार्मिक महत्व बहुत माना गया है. आंवला नवमी की तिथि को पवित्र तिथि माना गया है. इस दिन किया गया गौ, स्वर्ण तथा वस्त्र का दान अमोघ फलदायक होता है. इन वस्तुओं का दान देने से ब्राह्मण हत्या, गौ हत्या जैसे महापापों से बचा जा सकता है. चरक संहिता में इसके महत्व को व्यक्त किया गया है. जिसके अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन ही महर्षि च्यवन को आंवला के सेवन से पुनर्नवा होने का वरदान प्राप्त हुआ था l

आंवला नवमी कथा..........
प्राचीन समय की बात है, काशी नगरी में एक वैश्य रहता था. वह बहुत ही धर्म कर्म को मानने वाला धर्मात्मा पुरूष था. किंतु उसके कोई संतान न थी. इस कारण उस वणिक की पत्नी बहुत दुखी रहती थी. एक बार किसी ने उसकी पत्नी को कहा कि यदि वह किसी बच्चे की बलि भैरव बाबा के नाम पर चढा़ए तो उसे अवश्य पुत्र की प्राप्ति होगी. स्त्री ने यह बात अपने पति से कही परंतु वणिक ने ऐसा कार्य करने से मना कर दिया. किंतु उसकी पत्नी के मन में यह बात घर कर गई तथा संतान प्राप्ति की इच्छा के लिए उसने किसी बच्चे की बली दे दी, परंतु इस पाप का परिणाम अच्छा कैसे हो सकता था अत: उस स्त्री के शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया और मृत बच्चे की आत्मा उसे सताने लगी l
उस स्त्री ने यह बात अपने पति को बताई. पहले तो पति ने उसे खूब दुत्कारा लेकिन फिर उसकी दशा पर उसे दया भी आई. वह अपनी पत्नी को गंगा स्नान एवं पूजन के लिए कहता है. तब उसकी पत्नी गंगा के किनारे जा कर गंगा जी की पूजा करने लगती है. एक दिन माँ गंगा वृद्ध स्त्री का वेश धारण किए उस स्त्री के समक्ष आती है और उस सेठ की पत्नी को कहती है कि यदि वह मथुरा में जाकर कार्तिक नवमी का व्रत एवं पूजन करे तो उसके सभी पाप समाप्त हो जाएंगे. ऎसा सुनकर वणिक की पत्नी मथुरा में जाकर विधि विधान के साथ नवमी का पूजन करती है और भगवान की कृपा से उसके सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा उसका शरीर पहले की भाँति स्वस्थ हो जाता है, उसे संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है l

रविवार, 23 अक्तूबर 2011

धनतेरस : धन्वंतरि पूजन का महत्व

कल धनतेरस : धन्वंतरि पूजन का महत्व.............

कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस कहते हैं l पाँच दिवसीय दीपावली पर्व का आरंभ धन त्रयोदशी से होता है। इस दिन सायंकाल घर के मुख्य द्वार पर यमराज के निमित्त एक अन्न से भरे पात्र में दक्षिण मुख करके दीपक रखने एवं उसका पूजन करके प्रज्वलित करने एवं यमराज से प्रार्थना करने पर असामयिक मृत्यु से बचा जा सकता है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। समुद्र मंथन के समय इसी दिन धन्वंतरि सभी रोगों के लिए औषधि कलश में लेकर प्रकट हुए थे। अतः इस दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन श्रद्धापूर्वक करना चाहिए, जिससे दीर्घ जीवन एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है। धनतेरस के दिन अपनी शक्ति अनुसार बर्तन क्रय करके घर लाना चाहिए एवं उसका पूजन करके प्रथम उपयोग भगवान के लिए करने से धन-धान्य की कमी वर्ष पर्यन्त नहीं रहती है।
धन्वंतरि देवताओं के वैद्य और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोककथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या?
दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें। परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेम के पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।

धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है, इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बडा़ धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ, सुखी है और वही सबसे बड़ा धनवान है। भगवान धन्वंतरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं और उनसे धन व सेहत की कामना जब करें तो याद रखें संतोष ही धन है और संतोष से ही सेहत बनती है।

रूप चोदुस, नरक चतुर्दशी एवं हनुमान जयंती २५.१०.२०११ को........

इसे छोटी दीपावली भी कहते है l इस दिन रूप और सोंदर्य प्रदान करने वाले देवता श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए पूजा की जाती है, इसी दिन भगवान श्री कृष्णा ने नरकासुर नमक राछस का वध किया था और राछस बारासुर द्वारा बंदी बनायीं गयी सोलह हजार एक सौ कन्याओ को मुक्ति दिलाई थी, अत: नरक चतुर्दशी मनाई जाती है l अर्थार्थ गंदगी है उसका अंत जरुरी है l इस दिन अपने घर की सफाई अवस्य करें l रूप और सोंदर्य प्राप्ति हेतू इस दिन शरीर पर उबटन लगा कर स्नान करें l
अंजली पुत्र बजरंग का जन्म कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में हुवा था अत: हनुमान जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है l सांयकाल उनका पूजन एवं सुन्दरकाण्ड का पाठ अवश्य करें l

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

रंगोली डिजाईन











































आज की दुनिया बहुत ADVANCE है

आज की दुनिया बहुत ADVANCE है 
इस ADVANCE दुनिया की ADVANCE TECHNOLOGY में
आपके इस ADVANCE दोस्त की तरफ से आपको  ADVANCE “दिल से
ADVANCE में  सभी मित्रों को "सांवरिया" की तरफ से दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाये
Mastermind wishing you Happy Diwali in Advance


गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

एक दिन की बात है,

एक दिन की बात है, पूर्णचंद्र की चाँदनी से मणिमय आँगन धुल गया था, यशोदा मैया के साथ गोपियों की गोष्ठी जुड रही थी, वही खेलते-खेलते कृष्णचन्द्र की द्रष्टि चन्द्रमा पर पडी. उन्होंने पीछे से आकर यशोदा मैया का घूँघट उतार दिया. और अपने कोमल करों से उनकी चोटी खोलकर खीचने लगे और बार-बार पीठ थपथपाने लगे. ‘मै लूँगा, मै लूँगा – तोतली बोली से इतना ही कहते, जब मैया की समझ में बात नहीं आयी.

तब एक गोपी अपने पास श्रीकृष्ण को ले आयी और बोली – लाला! तुम क्या चाहते हो, दूध!’

श्रीकृष्ण –‘ना’. ‘क्या बढ़िया दही? ‘ना’.

‘क्या खुरचन? ‘ना’.

‘मलाई? ‘ना’.ताजा माखन? ना’

फिर क्या ?

श्रीकृष्ण ने धीरे से कहा- अँगुली उठाकर चन्द्रमा की ओर संकेत कर दिया.

गोपी बोली- ‘ओं मेरे बाप!, यह कोई माखन का लौदा थोड़े ही है? हाय! हाय! हम यह कैसे देगी?

कृष्ण ने कहा- मै तो इसे ही चाहता हूँ शीघ्रता करो पार जाने के पूर्व ही मुझे ला दो’. अब और भी मचल गये धरती पर पाँव पीट-पीट कर रोने लगे अभी दो, अभी दो, ‘जब बहुत रोने लगे, तब यशोदा माता ने गोद में उठा लिया और प्यार करके बोली- यह माखन तुम्हे देने योग्य नहीं है देखो इसमें वह काला काला विष लगा हुआ है

बात बदल गयी मैया ने गोद में लेकर मधुर-मधुर स्वर से कथा सुनना प्रारंभ किया .

यशोदा-‘लाला ! एक क्षीर सागर है,

श्रीकृष्ण- ‘मैया ! वह कैसा है’.

यशोदा- ‘बेटा ! यह जो तुम दूध देख रहे हो इसी का एक समुद्र है.’

श्रीकृष्ण- ‘मैया ! कितनी गायों ने दूध दिया होगा जब समुद्र बना होगा.

यशोदा- ‘कन्हैया ! वह गाय का दूध नही है .

श्रीकृष्ण- ‘अरी मैया! तू मुझे बहला रही है भला बिना गाय के दूध कैसा?’

यशोदा- बेटा ! जिसने गायों में दूध बनाया वह गाय के बिना भी दूध बना सकता है’.

श्रीकृष्ण- वह कौन है?

यशोदा- ‘वह भगवान है,’एक बार देवता और दैत्यों में लड़ाई हुई असुरों को मिहित करने के लिए भगवान ने क्षीर सागर को मथा,मंदराचल की रई बनी,वासुकि नाग की रस्सी.

श्रीकृष्ण- ‘जैसे गोपियाँ दही मथती है, क्यों मैया?

यशोदा- ‘हाँ बेटा! उसी से विष पैदा हुआ,जब शंकर भगवान ने वही विष पी लिया तब उसकी जो फुइयाँ धरती पर गिरी, उन्हें पीकर साँप विषधर हो गये. चंद्रमा की ओर इशारा करते हुए, यह माखन भी उसी से निकला है.इसलिए थोडा-सा विष इसमें भी लग गया.सो मेरे प्राण !तुम घर का ही माखन खाओ.’कथा सुनते-सुनते श्यामसुन्दर की आँखों में नीद आ गयी ओर मैया ने उन्हें पलग पर सुला दिया.

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