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शुक्रवार, 10 जून 2022
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गुरुवार, 9 जून 2022
अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखते हुए मोदी जी ने पारिजात का पौधा लगाया है
श्रीराम के जीवन मे पारिजात एवं कल्पवृक्ष का बड़ा महत्व है जिसके पीछे एक विचित्र कथा है।
ये बात तब की है जब लंका युद्ध समाप्त हो गया था और श्रीराम सुखपूर्वक अयोध्या पर राज्य कर रहे थे। महर्षि दुर्वासा महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के पुत्र थे जो भगवान शिव के अंश से जन्मे थे। ये बहुत क्रोधी थे और श्राप तो जैसे इनकी जिह्वा की नोक पर रखा रहता था। इन्होंने एक बार श्रीराम की परीक्षा लेने की ठानी। उन्हें पता था कि श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं किन्तु फिर भी वे श्रीराम की परीक्षा लेने अपने 60000 शिष्यों के साथ अयोध्या पहुँचे।
जब श्रीराम को पता चला कि महर्षि दुर्वासा अयोध्या पधारे हैं तो वे स्वयं अपने भाइयों के साथ द्वार पर उन्हें लिवाने चले आये। उन्होंने महर्षि दुर्वासा की अभ्यर्थना की और उनके चरण प्रक्षालन कर उन्हें ऊँचे आसन पर बिठाया। फिर उन्हें अर्ध्यपान देने के बाद उन्होंने कहा - 'हे महर्षि! आप अपने तेजस्वी शिष्यों के साथ अयोध्या पधारे ये हमारे लिए बहुत सम्मान की बात है। मुझे वनवास समय में अपनी पत्नी और भाई के साथ आपके माता-पिता महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। आज आपके भी दर्शन प्राप्त कर मैं अपने आपको धन्य मान रहा हूँ। कृपया कहें कि मेरे लिए क्या आज्ञा है।"
तब महर्षि दुर्वासा ने कहा - 'हे कौशल्यानंदन! मुझे भी तुम्हारे दर्शन कर बड़ा हर्ष हो रहा है। मैं पिछले १०० वर्षों से उपवास पर था और आज ही मेरा उपवास पूर्ण हुआ है। इसी कारण भोजन करने की इच्छा से मैं अपने शिष्यों सहित तुम्हारे द्वार पर आया हूँ।' तब श्रीराम ने प्रसन्नता से कहा - 'हे भगवन! मेरे लिए इससे प्रसन्नता की और क्या बात होगी कि आपको भोजन कराने के सौभाग्य मुझे प्राप्त होगा।' तब महर्षि दुर्वासा ने आगे कहा - 'हे राम! किन्तु मेरा संकल्प है कि तुम मुझे ऐसा भोजन कराओ जो जल, धेनु या अग्नि की सहायता से ना पका हो। इसके अतिरिक्त भोजन करने से पूर्व मेरी शिव पूजा के लिए तुम मुझे ऐसे अद्भुत पुष्प मँगवा दो जैसे आज तक किसी ने ना देखे हों। इस सब के लिए मैं तुम्हे केवल एक प्रहर का समय देता हूँ। अगर ये तुमसे ना हो सके तो मुझे स्पष्ट कह दो ताकि मैं यहाँ से चला जाऊँ।'
तब महर्षि की इस बात को सुनकर श्रीराम ने मुस्कराते हुए नम्रता से कहा - 'भगवान् ! मुझे आपकी यह सब आज्ञा स्वीकार है।' ये सुनकर महर्षि दुर्वासा प्रसन्न होकर बोले - 'ठीक है। मैं अपने शिष्यों के साथ सरयू में स्नान करके आता हूँ। तब तक हमारे लिए सभी सामग्रियों की व्यवस्था कर दो।' ये कह कर महर्षि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ स्नान करने को चले गए। उनके जाने के बाद देवी सीता, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगे कि किस प्रकार श्रीराम केवल एक प्रहर ऐसी दुर्लभ चीजों को प्राप्त कर पाएंगे। तब श्रीराम ने लक्ष्मण से एक पत्र लिखने को कहा और फिर उसे अपने बाण पर बांध कर स्वर्गलोक की ओर छोड़ दिया। वह बाण वायु वेग से उड़कर अमरावती में इन्द्र की सुधर्मा नामक सभा में जाकर उनके सामने गिर पड़ा। उस बाण को देखते ही देवराज इंद्र पहचान गए कि ये श्रीराम का बाण है।
उन्होंने तुरंत उसपर बंधे पत्र को खोलकर पढ़ा तो उसमे लिखा था - 'हे देवराज! आप सुखी रहें। मैं सदैव आपका स्मरण करता हूँ किन्तु आज आपकी एक सहायता के लिए आपको पत्र लिख रहा हूँ। अयोध्या में इस समय महर्षि दुर्वासा अपने 60000 शिष्यों के साथ उपस्थित हैं और वो ऐसा भोजन चाहते हैं, जो गऊ, जल अथवा अग्नि के द्वारा सिद्ध न किया हो। साथ ही उन्होंने शिव पूजन के लिए ऐसे पुष्प माँगे हैं जिन्हें कि अब तक मनुष्यों ने न देखा हो। अतः आप अतिशीघ्र कल्पवृक्ष और पारिजात, जो क्षीरसागर से निकले हैं, मेरे पास भेज दें। इसके लिए रावण के संहारक मेरे बाणों की प्रतीक्षा मत कीजियेगा।'
वो पत्र मिलते ही इंद्रदेव उठे और कल्पवृक्ष तथा पारिजात को साथ ले देवताओं सहित विमान में बैठकर अयोध्या में आ पहुँचे। वहाँ श्रीराम ने इंद्र का स्वागत किया उधर सरयू तट पर महर्षि दुर्वासा ने अपने एक शिष्य से कहा कि वे भवन जाकर देख आएं कि वहाँ का क्या हाल है। जब वो शिष्य राजभवन पहुँचा तो इन्द्रादि देवताओं से घिरे श्रीराम को देखा। उसने वापस आकर महर्षि को सारा हाल सुनाया। ये सुनकर महर्षि आश्चर्य करते हुए श्रीराम के पास पहुँचे। उन्हें आया देख कर श्रीराम ने देवताओं सहित उठकर उन्हें प्रणाम किया और फिर उन्होंने महर्षि को किसी के द्वारा ना देखे गए पारिजात के पुष्प शिव पूजा के लिए अर्पण किये। महर्षि दुर्वासा ने प्रसन्नतापूर्वक उन अद्भुत पुष्पों द्वारा श्रीराम और देवताओं सहित भगवान महाकाल की पूजा की।
पूजा समाप्त होने के बाद श्रीराम ने देवी सीता को भोजन परोसने के लिए कहा। तब सीता ने कल्पवृक्ष के नीचे असंख्य पात्रों को रखवा कर प्राथना की - 'हे कपलवृक्ष! आप सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं। कृपया महर्षि दुर्वासा और उनके सभी शिष्यों को संतुष्ट करें।' देवी सीता के ऐसा कहते ही वो सारे पात्र कल्पवृक्ष द्वारा ऐसे व्यंजनों से भर गए जो अग्नि, दूध अथवा जल से नहीं बने थे। ये देख कर महर्षि दुर्वासा ने श्रीराम की भूरि-भूरि प्रशंसा की और आकंठ भोजन कर वहाँ से प्रस्थान किया।
यही कारण है कि श्रीराम मंदिर में पारिजात वृक्ष लगाया जा रहा है। ये बहुत शुभ संकेत है।
जय श्रीराम। 🚩
#ब्लड कैंसर का यही एकमात्र उपचार है - संजीवनी बूटी है यह पेड़ और फल
#संजीवनी बूटी है यह,,,
हाँ सही समझे,, लेकिन सबके लिए नहीं सिर्फ ब्लड कैंसर वालों के लिए,,,
#चकोतरा नाम है इसका,,हरिद्वार, #रुड़की में बहुत होता है,, रोड़ पर खूब बिकता मिलेगा कई किलोमीटर तक,,आप इसे एक बड़ा संतरा मान सकते हैं,,,
एक बार हमारे गुरुकुल के कुछ ब्रह्मचारी भाइयों का ग्रुप #कर्नाटक घूमने गया था,,जिसमें मैं भी शामिल था,,वहाँ घने जंगल हैं जिन्हें BR Hills कहते हैं,,, उन्हीं जंगलों में घूमते घूमते एक साधु मिले थे,,
तब बातचीत के दौरान उन्होंने सामने पेड़ की तरफ हाथ करके कहा था--देख रहे हो ब्रह्मचारी यह पेड़ और फल,,,#ब्लड कैंसर का यही एकमात्र उपचार है,,मैंने पूछा कैसे??
तब उसने कहा कि #एक महीने तक रोगी को और कुछ नहीं खाना है,, भूख लगे तो इसी फल को खाओ,, प्यास लगे तो इसी का जूस पीओ,, इसी का सलाद खाओ,, मतलब यह है कि जो कुछ भी करना है इसी से करो,, पूरे एक महीने तक,,,ब्लड कैंसर ठीक हो जाएगा,,,
उसने यह बात इतने आत्मविश्वास से बताई थी कि ना करने का सवाल ही नहीं था,,, आज एक बहन Rakhi Mishra ने अपने पति की नाज़ुक हालत के बारे में लिखा तो मुझे यह बात सबको बताने की आवश्यकता हुई,,,,,
इस पोस्ट पर तर्क वितर्क के लिए जगह नहीं है,,, मुझे कैंसर है नहीं वरना मैं टेस्ट करके देखता,,, जीवन कीमती है,, ईलाज कराते कराते पहले वह सबकुछ लूट जाएगा जो आपने खून पसीने से कमाया है,, और फिर जिंदगी भी हाथ से जाएगी जोकि आज नहीं कल जानी ही है,,,
विश्वास कीजिए,,, ब्लड कैंसर वाले के लिए वैसे भी खोने को कुछ नहीं है लेकिन पाने को बहुत कुछ है,,, एक लंबा रोग रहित पवित्र जीवन,,, अपने परिवार के साथ,,
ॐ श्री परमात्मने नमः,,,
अगर रास्ते में आते जाते वक्त भूत प्रेतों का डर लगता हो तो क्या करना चाहिए?
मैं आपको एक छोटा सा उपाय बताने जा रहा हूँ जिसको करने से आप किसी भी तरीके के भूत प्रेत से दूर रहेंगे, किसी भी तरीके की आत्मा से दूर रहेंगे। ये उपाय खासकर उन लोगों के लिए है जो लोग ट्रेवल करते हैं। जो लोग ज्यादा से ज्यादा घर से बाहर रहते हैं। जिनका एक जगह पर रह कर काम करने का ऑक्यूपेशन नहीं है। मैंने पहले भी एक उत्तर लिखा था जिसमें मैंने पाँच गलतियों का वर्णन किया है, जिनको करने से आप पर भूत चिपक सकता है
अगर आपको लगता है कि आप किसी भी ऐसे स्थान पर जाते हैं या फिर किसी भी ऐसी जर्नी में जाते हैं जो सेफ नहीं है या फिर आपको ऐसा अंदेशा होता है कि वहाँ पर कोई चीज है जो आप पर अटैक कर सकती है तो ये उपाय आपको काफी मदद करेगा।
मुझे उस उत्तर में भी बहुत लोगों ने पूँछा था कि ये पाँच गलतियाँ अक्सर लोग करते हैं तो आप कोई इसकी रेमेडी बताएं जिससे हम आगे अगर कभी भी कहीं पर ट्रेवल करते हैं तो हमें इस तरीके की दिक्कत का सामना न करना पड़े, न ही कोई ऐसा अंदेशा हो कि हमने ऐसी गलती कर दी है।
ये बहुत छोटा है और बहुत ज्यादा कारगर है। आप इसको अपनाइए और आप खुद देखेंगे कि आप हर तरीके से अच्छा फील करेंगे। ये उपाय में आपको बस करना क्या है आपको एक छोटा सा कालीमिर्च का दाना लेना है और जब भी आप घर से बाहर निकलें तो कालीमिर्च का दाना मुंह में डाल लें और उसको चबा लें। ऐसा करने से किसी भी तरीके की नकारात्मकता, किसी भी तरीके की निगेटिव एनर्जी आप पर अटैक नहीं करेगी। इसका मेन रीजन ये है कि जो कालीमिर्च है, नमक है, ये ऐसी चीजें होती हैं जो निगेटिविटी को दूर करते हैं, निगेटिविटी की काट हैं ये।
नमक का पोंछा घर में लगाना चाहिए। वो इसीलिए बताया गया था क्योंकि नमक का एक बहुत ही कमाल का रोल है निगेटिव एनर्जी को दूर भगाने में और कालीमिर्च भी उसी फैमिली से आती है जिस फैमिली से नमक और रॉक सॉल्ट वगैरह आते हैं, वही श्रेणी है, वही गुण हैं किसी भी तरीके की नकारात्मकता को दूर करने के।
आप ऐसा भी कर सकते हैं कि आप थोड़ी सी साबुत कालीमिर्च हमेशा अपने पास रखें। अगर आप दस ग्राम भी कालीमिर्च अपने साथ रखें तो कहीं भी आप ट्रेवल करके जा रहे हैं, बीच में रास्ते में कोई भी सुनसान एरिया आता है तो आप कालीमिर्च मुंह में डाल कर चबा लें। इससे हाजमा तो होगा ही होगा, आपको इस तरीके के कोई भी बुरे अंदेशे नहीं रहेंगे।
चित्र स्त्रोत : Google
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