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शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

अगस्त्य संहिता में विद्युत के बारे में सटीक जानकारी

 

निश्चित ही बिजली का आविष्कार बेंजामिन फ्रेंक्लिन ने किया लेकिन बेंजामिन फ्रेंक्लिन अपनी एक किताब में लिखते हैं कि एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस वचन का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे मदद मिली।

[1]

महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ऋषि थे। इनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है। ऋषि अगस्त्य ने 'अगस्त्य संहिता' नामक ग्रंथ की रचना की। आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं-

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे
ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन
चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥

- अगस्त्य संहिता

अर्थात : एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगाएं, ऊपर पारा (mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होगा।

अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबे या सोने या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।

जैसे कि आप जानते है सन 1800 में पहला बैट्री आविष्कार किये Alessandro Volta ने।

पर क्या आप जानते है उससे भी पहले के लोग भी बैट्री के प्रयोग करते थे। क्या आप पारसी बैट्री या बागदादी बैट्री का नाम सुने है?

पारसी यज़ीदी लोगो ने बनाया था.

[2]

वहा पारसीया एवं शासनिया वंश का राज था। ये लोग अग्नि के उपासना करते थे और ऋषि अंगिरा(जिन्होंने वेद अनुसार अग्नि का आविष्कार किया) के वंशज थे।

प्राचीन ईराक और इरान में जितने फायर टेम्पल (अग्निदेव मंदिर) था वो सब अरब के इस्लामिक आक्रामक द्वारा या तो तोड़ दिया गया या फिर मस्जिद बना दिया गया ।

पारसी राजा द्वितीय खुसरु को बार बार धमकी भरा खत लिखकर हजरत मोहम्मद ने इस्लाम कुबूल करने को कहा ।उसके बाद बहुतो युद्ध हुया बिश्वके ईतिहास में बड़े युद्ध में इसे भी शामिल किया गया ।

अब अधिकतर यज़ीदी मुस्लिम बन चुके है।

[3]

जो मुस्लिम नही बने वो मुस्लिमो द्वारा कष्ट पंहुचाये जाते है।

इजराइल,इरान और ईराक में थोड़ा वहुत यज़ीदी लोग ही बस टीके हुये है इस लड़ाई में अपनी संस्कृति को वचाने के लिए और इधर भारत भी लड़ाई कर रहा है अपनी संस्कृति को वचाने के लिए।

धन्यवाद।

फुटनोट

[1] VEDIC Science

वैज्ञानिक ऋषि मुनि‬ - जानिए कल्पना को हकीकत बनाने वाले उनके आविष्कार !

वैज्ञानिक ऋषि मुनि‬

जानिए कल्पना को हकीकत बनाने वाले उनके आविष्कार !

उज्जैन - भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से अटी पड़ी है। सनातन धर्म वेदों को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेदों में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले ही कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किए व युक्तियां बताईं। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है। कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।
‪#‎भास्कराचार्य‬ -आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
‪#‎आचार्य_कणाद‬ –कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं। उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।
‪#‎ऋषि_विश्वामित्र‬ -ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी। ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।
‪#‎ऋषि_भरद्वाज‬ -आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भरद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भरद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।
‪#‎गर्गमुनि‬ -गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के के बारे नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे। महर्षि सुश्रुत -ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे।
‪#‎महर्षि‬ सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन १२५ से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और ३०० तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है। जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।
‪#‎आचार्य_चरक‬ -‘चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी।
‪#‎पतंजलि‬ -आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
‪#‎बौद्धयन‬ -भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।
‪#‎महर्षि_दधीचि‬ -महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान कर महर्षि दधीचि पूजनीय व स्मरणीय हैं। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं को विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप, त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे। ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए अस्थियों का वज्र बनाने का उपाय बताकर देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए उनकी अस्थियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।
‪#‎महर्षि_अगस्त्य‬ -वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।
‪#‎कपिल_मुनि‬ -भगवान विष्णु के २४ अवतारों में से एक अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र की चाहत की। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाता है। इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर ने द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया।
‪#‎शौनक_ऋषि‬- वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।
‪#‎ऋषि_वशिष्ठ‬ -वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।
‪#‎कण्व‬ ऋषि –प्राचीन ऋषियों-मुनियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।
llजय श्री रामll

कमाई हुई संपति मरने से पहले अधूरी ख्वाहिशों को पूर्ण करने में और आनंद प्राप्त करने में खर्च कर लो और आनन्द के साथ बुढ़ापे की जिंदगी जियो

65 वर्ष की उम्र में एकांकी जीवन जीने वाला एक बुजुर्ग अवसाद (डिप्रेशन) की बीमारी से पीड़ित हो गये . उनको इलाज के


लिए मनोचिकित्सक डॉक्टर के पास ले जाया गया ….

डॉक्टर : आपके बच्चे क्या करते हैं ?

 बुजुर्ग : मैने उनकी शादी कर दी , और वो अच्छा कमाते हुए सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं . अब मैं पारिवारिक जिम्मेदारियों से पूर्णतया मुक्त हूँ . मेरी पत्नी गुजर चुकी है , और मेरे जीवन में कोई खुशी या आनन्द नहीं है .  डॉक्टर : आपकी ऐसी कोई इच्छा जो पूरी नहीं हुई हो .  बुजुर्ग : जवानी में मेरी बड़ी ख्वाहिश थी कि मैं एक दिन फाइव स्टार होटल में रहूँ . लेकिन ये इच्छा जिम्मेदारियों के कारण अधूरी ही रह गयी !  डॉक्टर : आपके लगभग कुल पास संपति कितनी है ?

बुजुर्ग : मैं अभी एक फ्लैट में रह रहा हूँ , और एक हजार मीटर का एक प्लॉट है . जिसकी कीमत आज तकरीबन चार करोड़ रुपया है !

डॉक्टर : क्या आपको कभी ऐसा नहीं लगता है कि ये संपति बेचकर मैं मजे की जिंदगी जीऊँ ? अगर मेरी राय मानो तो ये प्लॉट चार करोड़ में बेच कर दो करोड़ की दूसरी संपति खरीद लो , और बाकी के दो करोड़ खर्च करो !  एक फाइव स्टार होटल में , जिसका रोज का भाड़ा सात-आठ  हजार  रुपया हो उसमें रहने लगो . उसमें आपको स्विमिंग पूल , जिम , विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन मिलेंगे , और रोज नए नए लोगों से मुलाकात होगी सो अलग ….हर महीने शहर बदल बदल कर रहो . जितना ज्यादा हो सके , जिंदगी का आनन्द उठाओ . आपको अपने जीवन के प्रति प्रेम पैदा होगा और आप अवसाद (डिप्रेशन) से बाहर आ जाओगे .

बुजुर्ग डॉक्टर की नसीहत मान कर एक फाइव स्टार होटल में आठ हजार रुपए के भाड़े वाला कमरा लिया , और आनन्द से रहने लगे . अब उनकी खुशी का कोई पार न था ! !!  73 वें साल की उम्र में उनका निधन हो गया . तब तक उनकी दो करोड़ वाली संपति की कीमत बढ़ कर चार करोड़ हो गई , जो बच्चों के लिए थी . और जीवन के अंतिम वर्षों में खुल कर खर्च करने के बाद भी उनके पास पचास लाख बचे रह गए . कहने की जरूरत नहीं है कि उनको अवसाद से पूर्णतया मुक्ति मिल गई और साथ में जीने के अनेक बहाने भी मिलते गए .


 

शिक्षा:-अगर हम जिम्मेदारियों से मुक्त हैं तो कमाई हुई संपति मरने से पहले अधूरी ख्वाहिशों को पूर्ण करने में और आनंद प्राप्त करने में खर्च कर लो और आनन्द के साथ बुढ़ापे की जिंदगी जियो …अगर हम भी कमाए हुए धन का अपने लिए जीते जी उपयोग नहीं करते तो हमारा कमा कमाकर जोड़ना बेकार है ! हमारी द्वारा इच्छाओं को मारकर बचाया गया धन आपके बच्चे जल्दी ही समाप्त कर देंगे , क्यों कि उन्होंने उस धन को कमाने में कोई परिश्रम नहीं किया है ! !! अपना धन जो भोगे वही भाग्यशाली..!! 

जय श्रीराम

ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने नहीं दिया यह बात बताने वाले महान इतिहासकार हमें यह नहीं बताते कि सन 1835 तक भारत में 700000 गुरुकुल थे इसका पूरा डॉक्यूमेंट Indian house में मिलेगा

5000 साल पहले ब्राह्मणों ने हमारा बहुत शोषण किया ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने से रोका। यह बात बताने वाले महान इतिहासकार यह नहीं बताते कि 500 साल पहले मुगलों ने हमारे साथ क्या किया। 100 साल पहले अंग्रेजो ने हमारे साथ क्या किया।


हमारे देश में शिक्षा नहीं थी लेकिन 1897 में शिवकर बापूजी तलपडे ने हवाई जहाज बनाकर उड़ाया था मुंबई में जिसको देखने के लिए उस टाइम के हाई कोर्ट के जज महा गोविंद रानाडे और मुंबई के एक राजा महाराज गायकवाड के साथ-साथ हजारों लोग मौजूद थे जहाज देखने के लिए।


उसके बाद एक डेली ब्रदर नाम की इंग्लैंड की कंपनी ने शिवकर बापूजी तलपडे के साथ समझौता किया और बाद में बापू जी की मृत्यु हो गई यह मृत्यु भी एक षड्यंत्र है हत्या कर दी गई और फिर बाद में 1903 में राइट बंधु ने जहाज बनाया।

आप लोगों को बताते चलें कि आज से हजारों साल पहले की किताब है महर्षि भारद्वाज की विमान शास्त्र जिसमें 500 जहाज 500 प्रकार से बनाने की विधि है उसी को पढ़कर शिवकर बापूजी तलपडे ने जहाज बनाई थी।

लेकिन यह तथाकथित नास्तिक लंपट ईसाइयों के दलाल जो है तो हम सबके ही बीच से लेकिन हमें बताते हैं कि भारत में तो कोई शिक्षा ही नहीं था कोई रोजगार नहीं था।

अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन 14 दिसंबर 1799 को आये थे। सर्दी और बुखार की वजह से उनके पास बुखार की दवा नहीं थी। उस टाइम भारत में प्लास्टिक सर्जरी होती थी और अंग्रेज प्लास्टिक सर्जरी सीख रहे थे हमारे गुरुकुल में अब कुछ वामपंथी लंपट बोलेंगे यह सरासर झूठ है।

तो वामपंथी लंपट गिरोह कर सकते है ऑस्ट्रेलियन कॉलेज ऑफ सर्जन मेलबर्न में ऋषि सुश्रुत ऋषि की प्रतिमा "फादर ऑफ सर्जरी" टाइटल के साथ स्थापित है।


महर्षि सुश्रुत: ये शल्य चिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।


जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद पथरी हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।


भास्कराचार्य: आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।

आचार्य कणाद: कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।


उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।


गर्गमुनि: गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।

आचार्य चरक: ‘चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीर विज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी।


पतंजलि: आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।


बोधायन: भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बोधायन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बोधायन ने आसान बनाया।

15 साल साल पहले का 2000 साल पहले का मंदिर मिलते हैं जिसको आज के वैज्ञानिक और इंजीनियर देखकर हैरान में हो जाते हैं कि मंदिर बना कैसे होगा अब हमें इन वामपंथी लंपट लोगो से हमें पूछना चाहिए कि मंदिर बनाया किसने 


ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने नहीं दिया यह बात बताने वाले महान इतिहासकार हमें यह नहीं बताते कि सन 1835 तक भारत में 700000 गुरुकुल थे इसका पूरा डॉक्यूमेंट Indian house में मिलेगा।


भारत गरीब देश था चाहे है तो फिर दुनिया के तमाम आक्रमणकारी भारत ही क्यों आए हमें अमीर बनाने के लिए।

भारत में कोई रोजगार नहीं था। भारत में पिछड़े दलितों को गुलाम बनाकर रखा जाता था लेकिन वामपंथी लंपट आपसे यह नहीं बताएंगे कि हम 1750 में पूरे दुनिया के व्यापार में भारत का हिस्सा 24 परसेंट था और सन उन्नीस सौ में एक परसेंट पर आ गया आखिर कारण क्या था।


अगर हमारे देश में उतना ही छुआछूत थे हमारे देश में रोजगार नहीं था तो फिर पूरे दुनिया के व्यापार में हमारा 24 परसेंट का व्यापार कैसे था।

यह वामपंथी लंपट यह नहीं बताएंगे कि कैसे अंग्रेजों के नीतियों के कारण भारत में लोग एक ही साथ 3000000 लोग भूख से मर गए कुछ दिन के अंतराल में 

एक बेहद खास बात वामपंथी लंपट या अंग्रेज दलाल कहते हैं इतना ही भारत समप्रीत था इतना ही सनातन संस्कृति समृद्ध थी तो सभी अविष्कार अंग्रेजों ने ही क्यों किए हैं भारत के लोगों ने कोई भी अविष्कार क्यों नहीं किया।


उन वामपंथी लंपट लोगों को बताते चलें कि किया तो सब आविष्कार भारत में ही लेकिन उन लोगों ने चुरा करके अपने नाम से पेटेंट कराया नहीं तो एक बात बताओ भारत आने से पहले अंग्रेजों ने कोई एक अविष्कार किया हो तो उसका नाम बताओ और थोड़ा अपना दिमाग लगाओ कि भारत आने के बाद ही यह लोग आविष्कार कैसे करने लगे उससे पहले क्यों नहीं करते थे।

साभार सोशल मीडिया।
आदरणीय अरुण कुमार उपाध्याय जी ने पुराणों के आधार पर राजवंशों पर लिखा है, किन्तु उससे पूर्व आनन्द कुमार जी की पोस्ट से भूमिका स्पष्ट कर रहा हूँ, कल की पोस्ट के बाद बहुत से मित्रों के कई प्रश्न आए हैं, तो उनका समाधान भी आवश्यक है- 

गुजरात में गिरनार की पहाड़ियों के पास जूनागढ़ है, जहाँ से गिर वन शुरू होते हैं वहां से थोड़ा ही दूर है | यहाँ अशोक का एक शिलालेख है | इसमें बताया गाय है की चन्द्रगुप्त मौर्य के एक सामंत पुष्यगुप्त ने यहाँ एक झील बनवाई थी, अशोक के समय तुशास्पा (जो की शायद ग्रीक था) उसने इस झील का काम पूरा करवाया | इसके नीचे शक (Scythian) राजा रूद्रदमन का लेख जोड़ा गया है | रूद्रदमन ने अपने शिलालेख में लिखवाया है की 72 वें साल ( शायद 150 AD) में एक बाढ़ और तूफ़ान से झील के नष्ट हो जाने के बाद उन्होंने इसका पुनः निर्माण करवाया | रुद्रदमन बड़े गर्व से बताते हैं की इसके लिए उन्होंने अतिरिक्त कर या जबरन किसी से मजदूरी नहीं करवाई | कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती | इसके नीचे तीन सौ साल बाद गुप्त वंश के स्कंदगुप्त लिखवाते हैं कि 455-56 AD के दौरान इस झील को फिर से ठीक करवाने का काम उन्होंने करवाया |

दरअसल जूनागढ़ का शाब्दिक अर्थ ही पुराना किला होता है | माना जाता है की कृष्ण की सेना ने यहाँ किला बनवाया था | बाद में शक, राजपूत, मुस्लिम कई राजाओं ने यहाँ राज किया | 1947 में भारत की आजादी के समय भी जूनागढ़ के अनोखे किस्से हैं | उन्हें कभी बाद में देखेंगे |

यहाँ सबसे मजेदार होता है अशोक का शिलालेख | अपने किसी भी शिलालेख में अशोक अपना नाम अशोक नहीं लिखवाते थे | उनका नाम प्रियदर्शी लिखा होता है | लगभग सारे ही उस काल के शिलालेख पाली में लिखे होते हैं | अब इतिहासकारों के लिए बड़ी समस्या हुई | प्रियदर्शी नाम समझ आये, पाली लिपि से मौर्य वंश का काल भी समझ आता था | मगर ये राजा कौन सा था ये पता नहीं चल पाता था | रोमिला थापर ने कई शिलालेखों का अनुवाद तो किया मगर अब भी अशोक को स्थापित करने में दिक्कत थी | नाम और वंशावली तो कहीं लिखी ही नहीं थी | ऐसे में पुराण काम आये |

जी हाँ वही हिन्दुओं वाले धर्मग्रन्थ पुराण | मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण और वायु पुराण में मौर्य वंश की पूरी वंशावली ही लिखी थी | तो उनके जरिये ये पक्का किया जा सका की ये जो प्रियदर्शी है वही अशोक है |

अच्छा हाँ, पुराण जो हैं वो मिथक हैं, इतिहास नहीं है???
✍🏻आनन्द कुमार 

नेपाल राजवंश-
यह पूर्ण रूप में उपलब्ध है क्योंकि नेपाल स्वाधीन रहा है। यह गुह्यक स्थान था जहां विक्रमादित्य ने तपस्या की थी। नेमिनाथ (युधिष्ठिर का संन्यास नाम) का शिष्य बनने पर यह नेपाल बना। यह इण्डियन ऐण्टिकुअरी, खण्ड १३ में प्रकाशित हुई थी जिसके आधार पर पं. कोटा वेंकटाचलम ने नेपाल कालक्रम (अंग्रेजी, १९५३) लिखा। 
गोपाल वंश- १. भुक्तमानगत गुप्त (४१५९-४०७१ ई.पू.), २. जय गुप्त (४०७१-३९९९), ३. परम गुप्त (३९९९-३९१९), ४. हर्षगुप्त (३०१०-३८२५), ५. भीमगुप्त (३८२६-३७८८), ६. मणिगुप्त (३७८८-३७५१), ७. विष्णुगुप्त (३७५१-३७०९), ८. यक्षगुप्त (निस्सन्तान, भारत से अहीर वंश बुलाया)-(३७०९-३६३७)
अहीर वंश-३राजा २०० वर्ष तक (३६३७-३४३७ ई.पू.)-९. वरसिंह, १०. जयमतसिंह, ११. भुवनसिंह।
किरात वंश-७ राजा महाभारत काल तक ३०० वर्ष (३४३७-३१३७ ई.पू.), उसके बाद २२ राजा ८१८ वर्ष (३१३८-२३१९ ई.पू.) 
१२. यलम्बर, १३. पवि, १४. स्कन्दर, १५. वलम्ब, १६. हृति, १७. हुमति-पाण्डवों के साथ वन गया।, १८. जितेदास्ति-महाभारत में पाण्डव पक्ष से युद्ध कर मारा गया। १९. गलि (महाभारत के बाद ३६३७ ई.पू. में राजा), २०. पुष्क, २१. सुयर्म, २२. पर्भ, २३. ठूंक, २४. स्वानन्द, २५. स्तुंक, २६. घिघ्री, २७. नाने, २८. लूक, २९. थोर, ३०. ठोको, ३१. वर्मा, ३२. गुज, ३३. पुष्कर, ३४. केसु, ३५. सूंस, ३६. सम्मु, ३७. गुणन, ३८. किम्बू, ३९. पटुक, ४०. गस्ती।
सोमवंश-१२ राजा ६०७ वर्ष (२३१९-१७२ ई.पू.)-४१. निमिष, ४२. मानाक्ष, ४३. काकवर्मन्, ४४-४८-लुप्त नाम, ४९. पशुप्रेक्षदेव-१८६७ ई.पू. में इसने भारत से कुछ व्यक्ति बुलाये। पशुअतिनाथ मन्दिर का पुनः निर्माण। (महावीर, सिद्धार्थ बुद्ध का काल)-४१-४९, ये ९ राजा ४६४ वर्ष (२३१९-१८५५ ई.पू.) ५०-५१. अज्ञात, ५२. भास्करवर्मन् (३ राजा १८५५-१७१२ ई.पू.)-इसने भारत को जीता। निस्सन्तान होने के कारण सूर्यवंशी राजा भूमिवर्मन को गोद लिया।
सूर्यवंश-३१ राजा १६१२ वर्ष (१७१२-१०० ई.पू.)-५३. भूमिवर्मन (१७१२-१६४५ ई.पू.), ५४. चन्द्रवर्मन (१६४५-१५८४), ५५. जयवर्मन (१५८४-१५०२), ५६. वर्षवर्मन (१५०४-१४४१), ५७. सर्ववर्मन (१४४१-१३६३), ५८. पृथ्वीवर्मन (१३६३-१२८७), ५९. ज्येष्ठवर्मन (१२८७-१२१२), ६०. हरिवर्मन (१२१२-११३६), ६१. कुबेरवर्मन (११३६-१०४८), ६२. सिद्धिवर्मन (१०४८-९८७), ६३. हरिदत्तवर्मन (९८७-९०६), ६४. वसुदत्तवर्मन (९०६-८४३),६५. पतिवर्मन (८४३-७९०), ६६. शिववृद्धिवर्मन (७९०-७३६), ६७. वसन्तवर्मन (७३६-६७५), ६८. शिववर्मन (६७५-६१३), ६९. रुद्रवर्मन (६१३-५४७), ७०. वृषदेववर्मन (५४७-४८६)-इस कालमें (४८७ ई.पू.) शंकराचार्य यहां आये थे तथा १२ बोधिसत्त्वों को शास्त्रार्थ में पराजित किया। नेपाल राजा को पुरी राजा के समान राजा रूप में श्रीजगन्नाथ पूजा का अधिकार। अपने पुत्र का नाम शंकराचार्य के नाम पर शंकर रखा। ७१. शंकरदेव (४८६-४६१), ७२. धर्मदेव (४६१-४३७), ७३. मानदेव (४३७-४१७), ७४. महिदेव (४१७-३९७), ७५. वसन्तदेव (३९७-३८२), ७६. उदयदेव वर्मन (३८२-३७७), ७७. मानदेव वर्मन (३७७-३४७), ७८. गुणकामदेव वर्मन (३४७-३३७), ७९. शिवदेव वर्मन (३३७-२७६), ८०. नरेन्द्रदेव वर्मन (२७६-२३४), ८१. भीमदेव वर्मन (२३४-१९८), ८२. विष्णुदेव वर्मन (१९८-१५१), ८३. विश्वदेव वर्मन (१५१-१०१)-इसका पुत्र नहीं था। अपनी पुत्री का विवाह ठाकुरी वंश के अंशुवर्मन से कर उसको राजा बनाया।
ठाकुरी वंश-२१ राजा ८९९ वर्ष (१०१ ई.पू. से ७९८ ई. तक)-८४. अंशुवर्मन (१०१-३३ ई.पू.)-इनकी व्याकरण की पुस्तक विख्यात थी जिसका उल्लेख चीनी यात्री हुएनसांग (६४२ ई.) ने किया है। इस काल में उज्जैन के परमार राजा विक्रमादित्य यहां आये तथा ५७ ई.पू. में पशुपतिनाथ में चैत्र शुक्ल से विक्रम संवत् आरम्भ किया। अंशुवर्मन के कई दानपत्र चाहमानशक में, विक्रमादित्य के आने पर विक्रम सम्वत् में हैं। इनके पुत्र जिष्णुगुप्त कुछ काल तक राजा रहने के बाद विक्रमादित्य राज्य में ज्योतिष का अध्ययन करते थे, वराहमिहिर के समकालीन। इनके पुत्र ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त के लेखक ब्रह्मगुप्त जिष्णुसुत के रूप में विख्यात।
८५. कृतवर्मन् (३३ ई.पू.-५४ ई.), ८६. भीमार्जुन (५४-१४७ ई.), ८७. नन्ददेव (१४७-१७२), ८८-अज्ञात (१७२-२३२), ८९-अज्ञात (२३२-२९९), ९०. वीरदेव (२९९-३९४), ९१. चन्द्रकेतुदेव (३९४-४६०), ९२. नरेन्द्रदेव (४६०-५१६), ९३. वरदेव (५१६-५७०)-इनके शासन में एक शंकराचार्य तथा अवलोकितेश्वर ५२२ ई. में आये थे। ९४. नरमुदि (५७०-६१५), ९५. शंकरदेव (६१५-६२७), ९६. वर्धमानदेव (६२७-६४०), ९७. बलिदेव (६४०-६५३), ९८. जयदेव (६५३-६६८), ९९. बलार्जुनदेव (६६८-६८५), १००. विक्रमदेव (६८५-६९७), १०१. गुणकामदेव (६९७-७४८), १०२. भोजदेव (७४८-७५६), १०३. लक्ष्मीकामदेव (७५६-७७८), १०४. जयकामदेव (७७८-७९८)
नवकोट ठाकुरी वंश-१.भास्करदेव, २. बलदेव, ३. पद्मदेव, ४. नागार्जुनदेव, ५. शंकरदेव-इनके राज्य में २४५ सम्वत् में प्रज्ञा पारमिता पुस्तक स्वर्ण अक्षरों में लिखी गयी थी। इनकी मृत्यु के बाद अंशुवर्मन परिवार के एक वंशज वामदेव ने द्वितीय ठाकुरी वंश का शासन आरम्भ किया।
द्वितीय ठाकुरी वंश-अंशुवर्मन् के वंशज (७२०-९४५ ई.)-१. वामदेव, २. हर्षदेव, ३. सदाशिवदेव ने ७५० ई. में पशुपतिनाथ मन्दिर के लिये सोने की छत दी तथा उसके दक्षिण-पश्चिम में कीर्तिपुर बनाया। उनके लौह-ताम्र सिक्के हैं जिन पर सिंह चिह्न है। ४. मानदेव (१० वर्ष)-चक्रविहार में सन्यासी हो गया। ५. नरसिंहदेव (२२ वर्ष), ६. नन्ददेव (२१ वर्ष), ७. रुद्रदेव (१९ वर्ष)-बौद्ध सन्यासी, ८. मित्रदेव (२१ वर्ष), ९. अत्रिदेव (२२ वर्ष), १०. अभयमल्ल, ११. जयदेवमल्ल(१० वर्ष), १२. आनदमल्ल (२५ वर्ष)-भक्तपुर आदि ७ नगर बनाये।
कर्नाटक वंश-१. नान्यदेव- नेपाल सम्वत् ९ या शालिवाहन शक ८११, श्रावन सुदी ७ को कर्नाटक के नान्यदेव नेपाल के राजा बने, भाटगाम में ५० वर्ष शासन। मिथिला पर भी शासन। २. गंगदेव (४१ वर्ष), ३. नरसिंहदेव (३१ वर्ष), ४. शक्तिदेव (३९ वर्ष), ५. रामसिंहदेव (५८ वर्ष), ६. हरिदेव (४१ वर्ष)
✍🏻अरुण कुमार उपाध्याय

Time to Time Update & Upgrade "समय के साथ चलिये और सफलता पाईये ।

समय के साथ चलिए वरना ?

1998 में Kodak में 1,70,000 कर्मचारी काम करते थे और वो दुनिया का 85% फ़ोटो पेपर बेचते थे..चंद सालों में ही Digital photography ने उनको बाज़ार से बाहर कर दिया.. Kodak दिवालिया हो गयी और उनके सब कर्मचारी सड़क पे आ गए।


HMT (घडी)
BAJAJ (स्कूटर)
DYNORA (टीवी)
MURPHY (रेडियो)
NOKIA (मोबाइल)
RAJDOOT (बाईक)
AMBASDOR (कार)

मित्रों,
इन सभी की गुणवक्ता में कोई कमी नहीं थी फिर भी बाजार से बाहर हो गए!!
कारण???
उन्होंने समय के साथ बदलाव नहीं किया.!!

आपको अंदाजा है कि आने वाले 10 सालों में दुनिया पूरी तरह बदल जायेगी और आज चलने वाले 70 से 90% उद्योग बंद हो जायेंगे।

चौथी औद्योगिक क्रान्ति में आपका स्वागत है...

Uber सिर्फ एक software है। उनकी अपनी खुद की एक भी Car नहीं इसके बावजूद वो दुनिया की सबसे बड़ी Taxi Company है।

Airbnb दुनिया की सबसे बड़ी Hotel Company है, जब कि उनके पास अपना खुद का एक भी होटल नहीं है।

Paytm, ola cabs , oyo rooms जैसे अनेक उदाहरण हैं।


US में अब युवा वकीलों के लिए कोई काम नहीं बचा है, क्यों कि IBM Watson नामक Software पल भर में ज़्यादा बेहतर Legal Advice दे देता है। अगले 10 साल में US के 90% वकील बेरोजगार हो जायेंगे... जो 10% बचेंगे... वो Super Specialists होंगे।


Watson नामक Software मनुष्य की तुलना में Cancer का Diagnosis 4 गुना ज़्यादा Accuracy से करता है। 2030 तक Computer मनुष्य से ज़्यादा Intelligent हो जाएगा।

अगले 10 सालों में दुनिया भर की सड़कों से 90% cars गायब हो जायेंगी... जो बचेंगी वो या तो Electric Cars होंगी या फिर Hybrid...सडकें खाली होंगी,Petrol की खपत 90% घट जायेगी,सारे अरब देश दिवालिया हो जायेंगे।


आप Uber जैसे एक Software से Car मंगाएंगे और कुछ ही क्षणों में एक Driverless कार आपके दरवाज़े पे खड़ी होगी...उसे यदि आप किसी के साथ शेयर कर लेंगे तो वो ride आपकी Bike से भी सस्ती पड़ेगी।

Cars के Driverless होने के कारण 99% Accidents होने बंद हो जायेंगे.. इस से Car Insurance नामक धन्धा बंद हो जाएगा।

ड्राईवर जैसा कोई रोज़गार धरती पे नहीं बचेगा। जब शहरों और सड़कों से 90% Cars गायब हो जायेंगी, तो Traffic और Parking जैसी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जायेंगी... क्योंकि एक कार आज की 20 Cars के बराबर होगी।

आज से 5 या 10 साल पहले ऐसी कोई ऐसी जगह नहीं होती थी जहां PCO न हो। फिर जब सब की जेब में मोबाइल फोन आ गया, तो PCO बंद होने लगे.. फिर उन सब PCO वालों ने फोन का recharge बेचना शुरू कर दिया। अब तो रिचार्ज भी ऑन लाइन होने लगा है।

आपने कभी ध्यान दिया है..?

आजकल बाज़ार में हर तीसरी दुकान आजकल मोबाइल फोन की है।
sale, service, recharge , accessories, repair, maintenance की।

अब सब Paytm से हो जाता है.. अब तो लोग रेल का टिकट भी अपने फोन से ही बुक कराने लगे हैं.. अब पैसे का लेनदेन भी बदल रहा है.. Currency Note की जगह पहले Plastic Money ने ली और अब Digital हो गया है लेनदेन।


दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है.. आँख कान नाक खुले रखिये वरना आप पीछे छूट जायेंगे..।

समय के साथ बदलने की तैयारी करें।

इसलिए...
व्यक्ति को समयानुसार अपने व्यापार एवं अपने स्वभाव में भी बदलाव करते रहना चाहिये।
 
"Time to Time Update & Upgrade"
समय के साथ चलिये और सफलता पाईये ।```

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मंगलवार, 17 जनवरी 2023

अब तक के कुछ सबसे चतुर आविष्कार

 

कुछ अविश्वसनीय नवीन विचार जो जीवन में बहुत उपयोगी हैं:

  • इयरफोन जो उलझेंगे नहीं।
  • 360-डिग्री इस्तेमाल करने योग्य वॉल आउटलेट।
  • कप जो बूँद को टपकने नहीं देता।
  • इस बेंच की सीट अगर गीली हो जाए तो घुमाकर सूखा हिस्सा ऊपर आ जाता है।
  • यूएसबी चार्जर के साथ वॉल आउटलेट।
  • वॉल आउटलेट जिससे तार को लंबा किया जा सके।
  • एक बाइक हेलमेट जो फोल्ड हो जाता है।
  • स्कूल बैग के साथ टोपी।
  • सौर ऊर्जा से चलने वाला चार्जर।
  • पैकिंग टेप जिसे खोलना बेहद आसान है।
  • चुंबकीय स्विच कवर।
  • बैटरी सेल जो यूएसबी से चार्ज हो जाते हैं।
  • साइकिल लॉक करने के लिए रैक जो जगह नहीं घेरते।

राजस्थान की सांसी जनजाति में कूकडी रस्म क्या है?

 

आज हम उस रस्म या कुप्रथा से रूबरू होंगे, जिसको शायद हमनें कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा।

● सांसी जनजाति भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक है। आज हम इस जनजाति में प्रचलित एक रस्म या कुप्रथा 'कूकड़ी' के बारे में जानेंगे।

• जनजातियों की भाँति हमारे समाज में भी अनेक कुप्रथाओं का प्रचलन आज भी हैं, जिन्हें रीति-रिवाज, परम्परा एवं संस्कारों का नाम देकर बढ़ावा दिया जाता है। जिससे कहीं-न-कहीं महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचती है। ऐसी ही एक रस्म है-'कूकड़ी प्रथा', जो सामान्यतः 'सांसी जनजाति' में प्रचलित है।

क्या है कूकड़ी रस्म ?

(प्रतीकात्मक चित्र- न्यूज इंडिया)

एक लड़की अपने परिवार को छोड़कर शादी करके ससुराल जाती है। वहाँ पर सुहागरात की रात उसका पति हाथों में सफेद धागों का गुच्छा लिए उसके कमरे में प्रवेश करता है। यह देखकर वह लड़की डर के मारे घबरा जाती है। उसके ज़हन में वे बातें सहसा याद आ जाती हैं, जो अपने घर व आस-पड़ोस की औरतों से हमेशा से सुनती आई है। पति यह जाँच करने वाला है कि उसकी पत्नी वर्जिन है या नहीं ?

• यह सोचकर उसके पूरे शरीर में शिहरन दौड़ जाती है, क्योंकि वो नहीं जानती है कि उसके साथ अब आगे क्या होने वाला है। यह सोचकर वह रोने लग जाती है। उस पलंग पर सफेद चादर बिछी हुई है एवं पति द्वारा लाई गई उस कुकड़ी को बिस्तर पर रखा जाता है। ततपश्चात पति उस लड़की के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाता है।

• सुबह उस बिस्तर पर बिछी चादर व कुकड़े को देखा जाता है। उसका पति वो गुच्छा लेकर कमरे से बाहर जाता है और वह चिल्ला-चिल्लाकर यह कहता है कि 'अरे! वो ख़राब है।'

• इतना सुनते ही लड़के के घर वाले अब उस नई दुल्हन से उसके मित्र का नाम पूछते हैं। लड़की रो-रोकर यही कहती जाती है कि उसने कभी ऐसा कुछ नहीं किया है। जब बिस्तर पर खून के निशान नहीं मिलते हैं, तब परिवार वाले उस लड़की के साथ मारपीट एवं पशुवत व्यवहार करते हैं।

• ससुराल वाले उसको खूब पीटते हैं और यह कहते हैं, कि पंचायत के सामने वो झूठा ही मान ले कि उसके जीजा के साथ शारीरिक सम्बन्ध थे।

• अगर उसकी पत्नी वर्जिन निकलती है, (बिस्तर पर खून के निशान मिलने पर भी) तब भी उसे झूठ बोलने पर मजबूर किया जाता है और पीहर पक्ष वालों से ज्यादा दहेज के लिए बाध्य किया जाता है।

Note:- (माफ कीजिएगा यह एक सत्य वर्णन है, जिसकी सत्यता के लिए मुझे थोड़े भद्दे शब्द लिखने पड़ रहे हैं, लेकिन यह सत्य है। मुझे यह लिखने के लिए मेरा कर्तव्य मजबूर कर रहा है, क्योंकि ऐसी कुप्रथाएँ महिलाओं की मान-मर्यादाओं एवं उनके आत्मसम्मान को तार-तार कर देती है। बहुत सारी महिलाओं को इसके लिए जान भी गंवानी पड़ती है।)

• यहीं उसकी चारित्रिक परीक्षा पूर्ण नहीं होती। आगे जाकर उसे इससे भी भयंकर अग्नि परीक्षा से होकर गुजरना पड़ता है।

• जिसके तहत उसे पानी में नाक पकड़कर 2–3 मिनट तक अंदर रहने को मजबूर किया जाता है। उसके बाद भी अगर लड़की के द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है, तो उसको हाथों में पीपल के पत्तों के ऊपर गर्म लौहे को जलते अंगारों पर रखकर खड़ा रहना होता है।

• हमारे इतना सोचने भर से ही हम पसीने से तरबतर हो जाते हैं, हमारी देह कम्पायमान हो जाती है, रूह में मानो जैसे लौहे की शूलें चुभो दी हो, तो सोचिए हमारे इतना सोचने भर से ही हम पिछले जन्म तक की बातें याद करने लग जाते हैं। तो जरा पल भर सोचिए, जिनको इन घिनौनी परीक्षाओं से होकर गुजरना पड़ता है, उनकी क्या दशा होती होगी, उन पर क्या गुजरती होगी, यह उनके कौनसे जन्म की सजा है ?

यह एक सोचनीय विषय है।

◆ मेरी राय में यह एक रस्म ना होकर महिलाओं के खिलाफ क्रूर एवं भयानक अत्याचार की एक घृणित कुप्रथा है।

° आप इसे किस नजरिए से देखते हैं ? यह आपके लिए एक सवाल है।

• ऐसी अनेकों कुप्रथाएँ आज भी हमारे समाज में प्रचलित है, जिनसे महिलाओं के प्रति क्रूर और आपराधिक कृत्य किया जाता है। समाज में महिलाओं की स्थिति इन प्रथाओं के कारण बहुत दयनीय हो गई है। उनके आत्मसम्मान का जरा सा भी खयाल नहीं रखा जाता है।

• वर्तमान समय में इन कुप्रथाओं को समाप्त करने की जरूरत है, जिसके लिए समाज एवं सरकार द्वारा सामूहिक रूप से आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है। यही वह समय है जब मानव के अंदर छुपी हुई मानवीयता को जगाना होगा।

• कूकड़ी रस्म:- सांसी जनजाति की वह रस्म जिसमें विवाह के समय लड़की की चारित्रिक परीक्षा ली जाती है, उसे कूकड़ी रस्म कहा जाता है।

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