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शुक्रवार, 5 मई 2023

शिकार होते रहिए.. फिल्म बनवाते रहिए अपनी पीड़ा पर, कश्मीर फाइल्स,केरला स्टोरी,अजमेर फाइल्स, बंगाल फाइल्स,और अंत में द भारत स्टोरी?


#सेल्फी_इन_हिजाब
कानपुर के एक कॉन्वेंट स्कूल के बाहर स्कूल ड्रेस पर हिजाब पहनी सकीना मास्क लगा कर,प्रिया और राधिका के साथ सेल्फी लेती है,सेल्फी लेने से पहले प्रिया और राधिका को हिजाब पहनाती है,जो उसकी अम्मी ने खास प्रिया और राधिका के लिए दुबई से मंगवाया है,जहां सकीना के अब्बा अरबियों के गुसलखाने साफ़ करते हैं,सकीना उस तस्वीर को राधिका और प्रिया को व्हाट्सएप करने के साथ साथ,अपने इस्लामिक ग्रुप में शेयर करती है,जहां सकीना के मामा,चाचा,चाचा के लड़के,भाई और अब्बा भी मौजूद हैं,अब्बू वो तस्वीर अपने अरबी बॉस को दिखाता है,और अरबी बॉस सकीना के अब्बा के अकाउंट में 10000 दीनार यानी मोटा मोटी भारतीय रुपयों में 26 लाख 70,000 ट्रांसफर कर देता है।

उधर राधिका अपनी इंस्टाग्राम पोस्ट पर हैशटैग हिजाब फैशन,हैशटैग हिजाब स्टाइल,हैशटैग हिजाबी,हैशटैग इस्लाम इज लव इमोजी हार्ट हार्ट,हैशटैग सकीना बीएफएफ (बेस्ट फ्रेंड फॉरेवर)लिखकर अपनी और प्रिया की फोटो मास्क लगाई सकीना के साथ पोस्ट कर देती है।प्रिया के मम्मी उसे सोशल मीडिया से दूर रखती हैं,तो वो ऐसी कोई पोस्ट नहीं कर सकती।

राधिका के एक रात में इंस्टाग्राम पर डेढ़ हज़ार फॉलोअर बढ़ जाते हैं,और सारे मुस्लिम लड़के,उसकी तारीफ़ पर तारीफ़ करने लगते हैं,साथ ही साथ उसकी स्कूल की बाकी हिंदू लड़कियां उसको सुंदरता के लिए अंग्रेज़ी में जितने शब्द हैं,उनसे नवाज़ देती हैं,और स्कूल में अगले दिन हिजाब पहन कर,सेल्फी पोस्ट करने का ट्रेंड शुरू हो जाता है।

राधिका खुशी से फूली नहीं समा रही है,उसकी कभी किसी लड़के ने तारीफ करी ही नहीं,और आज इतने सारे लड़के,लड़कियां उसे खूबसूरत कह रहे हैं,बस इसलिए क्योंकि उसने हिजाब पहना..

राधिका के पापा लखनऊ में प्रिंसिपल हैं,भाई दिल्ली में इंजीनियर है,और मां कानपुर के लाल बंगले के कॉन्वेंट स्कूल में टीचर,घर में सब कुछ है,जो एक उच्च मध्यमवर्गीय घर में होना चाहिए,पर किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है,कौन क्या कर रहा है,किसी को उससे कोई मतलब नहीं है,राधिका अभी 14 साल की है,इस साल उसका 10 th है,पर पढ़ाई से ज्यादा समय उसका इंस्टाग्राम की रील देखने में,
और अपनी फोटो पोस्ट करने में जाता है।

रात को 11 बजे,इंस्टा पर एक मैसेज आता है,और जिसका ये मैसेज है,राधिका उसे बचपन से जानती है,ये है सकीना का सगा बड़ा भाई,फरहान जो रोज़ सकीना को स्कूल छोड़ने अपनी काली अपाचे आरटीआर 200  से आता है,जिसमें दोनों तरफ़ हरे झंडे लगे हुए हैं और कुछ लिखा हुआ है उर्दू में,वो रोज़ काली टोपी लगाए कुर्ते पजामे में इत्र लगाए सकीना को छोड़ने और वापस ले जाने आता है,वो क्या करता है,ये राधिका को पता नहीं,पर उसे वो अच्छा लगता है,क्योंकि फरहान के बाल उसके फेवरेट कोरियन बैंड बीटीएस के जंगकूक से मिलते हैं,जिसका पोस्टर उसके कमरे में लगा हुआ है,
सकीना राधिका और प्रिया की हर पसंद नापसंद से वाकिफ है,उसने बहुत अच्छी रिसर्च करी है इन दोनों पर,और उसकी पूरी रिपोर्ट वो अपनी अम्मी अब्बू और भाई फरहान को रोज़ देती है।

फरहान के मैसेज का वो तुरंत रिप्लाई कर देती है,और फरहान उसे कहता है कि वो बहुत खूबसूरत और ज़हीन लग रही थी कल हिजाब में,राधिका को ज़हीन का मतलब पता नहीं है,पर वो खुश हो जाती है, कि जिस लड़के को वो सिक्रेटली पसंद करती थी,वो लड़का उसकी आज इतने साल बाद तारीफ कर रहा सामने से,कारण हिजाब.!

कहानी में आगे क्या हुआ होगा,ये पता सबको है..

पर शुरुआत यहीं से होती है,स्कूल से ही आपकी बेटियां,आपकी बहनें,आपकी पोतियां,नतिनी,भांजी,भतीजी सब टारगेट पर आ जाती हैं,वो उनका शिकार करते हैं,और शिकार करने के लिए एक जाल बिछाया जाता है,एक शिकारी मेमना बन उसे जाल के पास लाने का काम करती है,शिकार खुद ब खुद शिकारी की गिरफ्त में फंसता चला जाता है,और जब तक उसे पता चलता है,बहुत देर हो चुकी होती है, अंत हो जाता है उसका और अंत दुबई में होता है,या कार्डबोर्ड के डब्बे से लेकर,फ्रिज में,या सूटकेस में,ये कहना मुश्किल है,क्योंकि वो तरीका बदलता रहता है..

और एक आप हैं..
जो बदलना चाहते ही नहीं,
सतर्क होना चाहते ही नहीं
पता नहीं कैसा सम्मोहन है
जो बार बार जाल में फंसते चले जाते हैं
और जाल में फंसते रहने देते हैं अपने बच्चों को

शिकार होते रहिए..
फिल्म बनवाते रहिए अपनी पीड़ा पर,
कश्मीर फाइल्स,केरला स्टोरी,अजमेर फाइल्स,
बंगाल फाइल्स,और अंत में द भारत स्टोरी?

क्या चाहते हैं?
आप पर हुई त्रासदियों के ऊपर बस फिल्म बनती रहें?
और वो आपकी बेटियां बहनों की फिल्म बना दुबई में अपने आकाओं को भेजते रहें?पता भी नहीं चलेगा कि कब आपकी राधिका रज़िया बेगम बन गई और कब उसे मुंबई के रास्ते दुबई और दुबई से न जाने कहां कहां भेज दिया गया,सकीना तो राधिका के बाद प्रिया,प्रिया के बाद तान्या,आकृति,अदिति,आद्या,पूजा,
नेहा,समृद्धि,सीमा,तृप्ति,लतिका etc etc सबके साथ फोटो डालेगी,और एक एक करके,फरहान और उसके अन्य भाई अलग अलग तरीकों से,एक एक कर सबको ट्रैप करेंगे,और लड़की 18 की होते ही इस्लाम कुबूल कर,निकाह कर लेगी,क्योंकि उसे इस तरह ब्रेनवॉश किया जाएगा कि इस्लाम से सुंदर कुछ नहीं है संसार में,वो इसलिए क्योंकि आपके पास उसे अपने धर्म के बारे में न बताने के लिए टाइम है,ना आपको खुद पता है कि आपको उसे बताना क्या है,आप सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसा कमाने में लगे हुए हैं,और वो पैसे के साथ साथ अपने पंथ को बढ़ाने के लिए हर तरीका आजमाने में लगे हुए हैं,और इसमें उनके साथ उनकी बीवियां भी हैं,और उनके बेटे और बेटियां भी..

यूएनओ में राणा आयूब जा कर,क्या बोलती है अतीक को पता है? लॉ मेकर(शास्त्रकार)एक लॉ मेकर की
 कैमरे के सामने हत्या हो गई।

एक लॉ ब्रेकर माफिया को,
वो अपना लॉ मेकर बताते हैं दुनिया भर में..

और आप क्या करते हैं बॉस?
जातियों के आधार पर,वोट देने में लगे रहते हैं,चाहे वो किसी भी विचारधारा का क्यों न हो,आपकी जाति का होना चाहिए,बस भईया अपना काम बनता भाड़ में जाए सनातन विचारधारा और सनातन विचारधारों के लिए लड़ने मरने वाली जनता,हमको अपने फ्री बिजली और फ्री पानी वाले नेता के साथ सेल्फी खिंचानी है,खींचते रहिए सेल्फियां,फिर चाहे वो माफियाओं के दिन क्यों न लौट कर आएं कि कोई आपके बच्चे की खाल बीच चौराहे खींच कर उसका खून से लथपथ निर्जीव शरीर फेंक दे और पुलिस तथा सिस्टम फिर उसकी हजूरी में लगी रहे,क्योंकि वो चुना हुआ नेता है, उस कौम द्वारा जो सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी आबादी बढ़ाने और आपकी आबादी को अपने में मिलाने और मिटाने में लगी हुई है,और आप बस फेसबुक व्हाट्सएप की डीपी बदल लड़ाई जीतने के ख्वाब देखते रहते हैं...

ख्वाब टूट जाते हैं बॉस..

इसलिए लक्ष्य निर्धारित करना आरंभ करिए🙏🏻
और कुछ करिए ठोस उसके लिए🙏🏻

कौनसा लक्ष्य?

अखंड हिंदू राष्ट्र का लक्ष्य..
उससे कम कुछ भी नहीं.!

अरे वो तो धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री कर ही रहे हैं..
योगी जी भी कर ही रहे हैं..

हमें किस बात की चिंता?
हमें तो पैसा कमाना है,
और अपने बच्चों की सरकारी नौकरी लगवानी है..

भईया,
ज़रा ये बताइए वो दिल्ली में जिसकी लाश नाले से निकाली गई थी,जिसे चाकुओं से गोद दिया था वो सनातनी लड़का,इंटेलिजेंस ब्यूरो में कांस्टेबल पद पर तैनात था न?सरकारी नौकरी तो उसकी भी थी?सेट था उसका भविष्य न?

फिर क्यों हुआ उसके साथ वो सब?
वो तो समझाने गया था..शायद

और उसे खींच लिया..अंदर..
अल्लाह हू अकबर के नारे लगे..
और फिर एक दिन नाले से लाश निकली हाथ में रस्सी बांध कर निकाली गई उसकी लाश..

सरकारी नौकरी..सेट भविष्य..
सब खत्म!

बताइए हाथ जोड़ें आपके या पैर पड़ें?
कैसे समझेंगे आप?

बॉस अपनी अगली पीढ़ी और उसकी अगली पीढ़ी को तैयार करिए,नहीं तो आपका कमाया सब कुछ,उनके कब्जे में होगा और आप पर बस फिल्म बनती रहेगी और आप किसी रिफ्यूजी कैंप में पड़े रहेंगे और अपने गुमशुदा बच्चों की सेल्फी देख रोते रहेंगे.!

और अभी भी नहीं समझे तो..खैर जाने दीजिए..

समय सब समझा देगा,
अच्छे से समझा देगा.!

कभी कभी लगता है,
कुछ नया बनने से पहले
पुराना टूटना आवश्यक होता है..

समझाने से जो नहीं समझते,उनके लिए समय द्वारा पीड़ा से भरा सबक मिलना ज़्यादा बेहतर होता है.!

✒️ तत्वज्ञ देवस्य 
{#कॉपीराइट_रिजर्व्ड©}

#चित्र_सौजन्य: #TheKeralaStory

पूर्णिमा पर क्यों सुनी जाती है सत्‍यनारायण व्रत कथा...?

*श्री सत्यनारायण व्रत विशेष*




पूर्णिमा पर क्यों सुनी जाती है सत्‍यनारायण व्रत कथा...?
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आमतौर पर देखा जाता है किसी शुभ काम से पहले या मनोकामनाएं पूरी होने पर सत्यनारायण व्रत की कथा सुनने का विधान है। सनातन धर्म से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने श्रीसत्यनारायण कथा का नाम न सुना हो। इस कथा को सुनने का फल हजारों सालों तक किए गये यज्ञ के बराबर माना जाता है । शास्त्रों के मुताबिक ऐसा माना गया है कि इस कथा को सुनने वाला व्यक्ति अगर व्रत रखता है तो उसेके जीवन के दुखों को श्री हरि विष्णु खुद ही हर लेते हैं । स्कन्द पुराण के मुताबिक भगवान  सत्यनारायण श्री हरि विष्णु का ही दूसरा रूप हैं । इस कथा की महिमा को भगवान सत्यनारायण ने अपने मुख से देवर्षि नारद को बताया है । पूर्णिमा के दिन इस कथा को सुनने का विशेष महत्व है । कलयुग में इस व्रत कथा को सुनना बहुत प्रभावशाली माना गया है । 
जो लोग पूर्णिमा के दिन कथा नहीं सुन पाते हैं , वे कम से कम भगवान सत्यनारायण का मन में ध्यान कर लें । विशेष लाभ होगा । पुराणों में ऐसा भी बताया गया है कि जिस स्थान पर भी श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा होती है, वहां गौरी-गणेश, नवग्रह और समस्त दिक्पाल आ जाते हैं। केले के पेड़ के नीचे अथवा घर के ब्रह्म स्थान पर पूजा करना उत्तम फल देता है। भोग में पंजीरी, पंचामृत, केला और तुलसी दल विशेष रूप से शामिल करें। 

सिर्फ पूर्णिमा को ही नहीं परिस्थितियों के मुताबिक किसी भी दिन कथा सुनी जा सकती है, बृहस्पतिवार को कथा सुनना विशेष लाभकारी होता है, भगवान तो बस भाव के भूखे हैं । मन में उनके प्रति अगर सच्चा प्रेम है तो कोई भी दिन हो प्रभु की कृपा बरसती रहेगी । इस कथा के प्रभाव से खुशहाल जीवन, दाम्पत्य सुख, मनचाहे वर-वधु, संतान, स्वास्थ्य जैसी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है । अगर पैसों से जुड़ी कोई समस्या है तो ये कथा किसी संजीवनी से कम नहीं है । तो जब भी मौका मिले भगवान की कथा सुने और सुनाएं ।

श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पूरा सन्दर्भ 
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पुराकालमें शौनकादिऋषि नैमिषारण्य स्थित महर्षि सूत के आश्रम पर पहुंचे। ऋषिगण महर्षि सूत से प्रश्न करते हैं कि लौकिक कष्टमुक्ति, सांसारिक सुख समृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य की सिद्धि के लिए सरल उपाय क्या है? महर्षि सूत शौनकादिऋषियों को बताते हैं कि ऐसा ही प्रश्न नारद जी ने भगवान विष्णु से किया था। भगवान विष्णु ने नारद जी को बताया कि लौकिक क्लेशमुक्ति, सांसारिक सुखसमृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य सिद्धि के लिए एक ही राजमार्ग है, वह है सत्यनारायण व्रत। सत्यनारायण का अर्थ है सत्याचरण, सत्याग्रह, सत्यनिष्ठा। संसार में सुखसमृद्धि की प्राप्ति सत्याचरणद्वारा ही संभव है। सत्य ही ईश्वर है। सत्याचरणका अर्थ है ईश्वराराधन, भगवत्पूजा।
सत्यनारायण व्रत कथा के पात्र दो कोटि में आते हैं, निष्ठावान सत्यव्रतीएवं स्वार्थबद्धसत्यव्रती। शतानन्द, काष्ठ-विक्रेता भील एवं राजा उल्कामुखनिष्ठावान सत्यव्रतीथे। इन पात्रों ने सत्याचरणएवं सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकरके लौकिक एवं पारलौकिक सुखोंकी प्राप्ति की। शतानन्दअति दीन ब्राह्मण थे। भिक्षावृत्तिअपनाकर वे अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। अपनी तीव्र सत्यनिष्ठा के कारण उन्होंने सत्याचरणका व्रत लिया। भगवान सत्यनारायण की विधिवत् पूजा अर्चना की। 

वे इहलोकेसुखंभुक्त्वाचान्तंसत्यपुरंययौ 

(इस लोक में सुखभोग एवं अन्त में सत्यपुर में प्रवेश) की स्थिति में आए। काष्ठ-विक्रेता भील भी अति निर्धन था। किसी तरह लकडी बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। उसने भी सम्पूर्ण निष्ठा के साथ सत्याचरण किया; सत्यनारायण भगवान की पूजार्चा की। राजा उल्कामुख भी निष्ठावान सत्यव्रती थे। वे नियमित रूप से भद्रशीलानदी के किनारे सपत्नीक सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना करते थे। सत्याचरण ही उनके जीवन का मूल मन्त्र था। दूसरी तरफ साधु वणिक एवं राजा तुंगध्वजस्वार्थबद्धकोटि के सत्यव्रती थे। स्वार्थ साधन हेतु बाध्य होकर इन दोनों पात्रों ने सत्याचरण किया ; सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना की। साधु वणिक की सत्यनारायण भगवान में निष्ठा नहीं थी। सत्यनारायण पूजार्चाका संकल्प लेने के उपरान्त उसके परिवार में कलावती नामक कन्या-रत्न का जन्म हुआ। कन्याजन्म के पश्चात उसने अपने संकल्प को भुला दिया और सत्यनारायण भगवान की पूजार्चानहीं की। उसने पूजा कन्या के विवाह तक के लिए टाल दी। कन्या के विवाह-अवसर पर भी उसने सत्याचरणएवं पूजार्चाना से मुंह मोड लिया और दामाद के साथ व्यापार-यात्रा पर चल पडा। दैवयोग से रत्नसारपुर में श्वसुर-दामाद के ऊपर चोरी का आरोप लगा। यहां उन्हें राजा चंद्रकेतु के कारागार में रहना पडा। श्वसुर और दामाद कारागार से मुक्त हुए तो श्वसुर (साधु वाणिक) ने एक दण्डीस्वामी से

झूठ बोल दिया कि उसकी नौका में रत्नादिनहीं, मात्र लता-पत्र है। इस मिथ्यावादन के कारण उसे संपत्ति-विनाश का कष्ट भोगना पडा। अन्तत:बाध्य होकर उसने सत्यनारायण भगवान का व्रत किया। साधु वाणिक के मिथ्याचार के कारण उसके घर पर भी भयंकर चोरी हो गई। पत्नी-पुत्र दाने-दाने  को मुहताज। इसी बीच उन्हें साधु वाणिक के सकुशल घर लौटने की सूचना मिली। उस समय कलावती अपनी माता लीलावती के साथ सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकर रही थी। समाचार सुनते ही कलावती अपने पिता और पति से मिलने के लिए दौडी। इसी हडबडी में वह भगवान का प्रसाद ग्रहण करना भूल गई। प्रसाद न ग्रहण करने के कारण साधु वाणिक और उसके दामाद नाव सहित समुद्र में डूब गए। फिर अचानक कलावती को अपनी भूल की याद आई। वह दौडी-दौडी घर आई और भगवान का प्रसाद लिया। इसके बाद सब कुछ ठीक हो गया। लगभग यही स्थिति राजा तुंगध्वज की भी थी। एक स्थान पर गोपबन्धु भगवान सत्यनारायण की पूजा कर रहे थे। राजसत्तामदांध तुंगध्वज तो पूजास्थल पर गए और न ही गोपबंधुओं द्वारा प्रदत्त भगवान का प्रसाद ग्रहण किया। इसीलिए उन्हें कष्ट भोगना पडा। अंतत:बाध्य होकर उन्होंने सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाना की और सत्याचरण का व्रत लिया। सत्यनारायण व्रतकथा के उपर्युक्त पांचों पात्र मात्र कथापा त्रही नहीं, वे मानव मन की दो प्रवृत्तियों के प्रतीक हैं। ये प्रवृत्तियां हैं, सत्याग्रह एवं मिथ्याग्रह। लोक में सर्वदाइन दोनों प्रवृत्तियों के धारक रहते हैं। इन पात्रों के माध्यम से स्कंद पुराण यह संदेश देना चाहता है कि निर्धन एवं सत्ताहीन व्यक्ति भी सत्याग्रही, सत्यव्रती, सत्यनिष्ठ हो सकता है और धन तथा सत्तासंपन्न व्यक्ति मिथ्याग्रही हो सकता है। शतानन्द और काष्ठ-विक्रेता भील निर्धन और सत्ताहीन थे। फिर भी इनमें तीव्र सत्याग्रहवृत्ति थी। इसके विपरीत साधु वाणिकनएवं राजा तुंगध्वज धन सम्पन्न एवं सत्तासम्पन्न थे। पर उनकी वृत्ति मिथ्याग्रही थी। सत्ता एवं धन सम्पन्न व्यक्ति में सत्याग्रह हो, ऐसी घटना विरल होती है। सत्यनारायण व्रतकथा के पात्र राजा उल्कामुख ऐसी ही विरल कोटि के व्यक्ति थे। पूरी सत्यनारायण व्रत कथा का निहितार्थ यह है कि लौकिक एवं परलौकिक हितों की साधना के लिए मनुष्य को सत्याचरण का व्रत लेना चाहिए। सत्य ही भगवान है। सत्य ही विष्णु है। लोक में सारी बुराइयों, सारे क्लेशों, सारे संघर्षो का मूल कारण है सत्याचरण का अभाव। सत्यनारायण व्रत कथा पुस्तिका में इस संबंध में श्लोक इस प्रकार है :

यत्कृत्वासर्वदु:खेभ्योमुक्तोभवतिमानव:। विशेषत:कलियुगेसत्यपूजाफलप्रदा।
केचित् कालंवदिष्यन्तिसत्यमीशंतमेवच। सत्यनारायणंकेचित् सत्यदेवंतथाऽपरे।
नाना रूपधरोभूत्वासर्वेषामीप्सितप्रद:। भविष्यतिकलौविष्णु: सत्यरूपीसनातन:।

अर्थात् सत्यनारायण व्रत का अनुष्ठान करके मनुष्य सभी दु:खों से मुक्त हो जाता है। कलिकाल में सत्य की पूजा विशेष रूप से फलदायी होती है। सत्य के अनेक नाम हैं, यथा-सत्यनारायण, सत्यदेव। सनातन सत्यरूपीविष्णु भगवान कलियुग में अनेक रूप धारण करके लोगों को मनोवांछित फल देंगे।

भगवान सत्यनारायण पूजा सामग्री
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भगवन सत्यनारायण की मूर्ति या फ़ोटो
1 चौकी या पटला तथा उस पर बिछाने के लिए एक मीटर पीला या सफ़ेद कपडा
अबीर
गुलाल
कुमकुम (रोली)
सिंदूर
हल्दी
मोली
धुप
अगरबत्ती
10 ग्राम लौंग
10 ग्राम इलायची
32 सुपारी
चन्दन
500 ग्राम चावल
250 गेहूँ
50 ग्राम कपूर
इत्र
कापूस
गंगाजल
गुलाबजल
गोमूत्र
पञ्च मेवा
5 जनेऊ
1 नारियल
भगवन के वस्त्र
250 ग्राम घी
10 ग्राम पीली राई
5 पान के पत्ते
5 आम के पत्ते
हार फूल तुलसी पत्र
4 केले के खम्बे
250 ग्राम मिठाई
1 लीटर दूध
250 ग्राम दही
100 ग्राम चीनी
50 ग्राम शहद
भगवन के भोग के लिये चूरमा, पंजीरी या हलुआ इत्यादि

हवन प्रकरण (यदि हवन करना हो तो )
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हवन सामग्री
तिल
चावल
जौ
चीनी
घी
नव ग्रह समिधा 2 बण्डल
1 किलो आम की लकड़ी

पूजा के पूर्व की तैयारी
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जिस दिन पूजा करनी हो एक या दो दिन पूर्व ही यतन अनुसार पूजा की सभी सामग्री बाजार से ला कर उसे चेक कर ले ताकि पूजा के समय असुविधा न हो।

पूजन विधि
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श्री सत्यनारायण का पूजन महीने में एक बार पूर्णिमा या संक्रांति को या किसी भी दिन या समयानुसार किया जा सकता है। सत्यनारायण का पूजन जीवन में सत्य के महत्तव को बतलाता है। इस दिन स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें। माथे पर तिलक लगाएं। अब भगवान गणेश का नाम लेकर पूजन शुरु करें।

पूजन का मंडप तैयार करना
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पूर्वाभिमुख हो कर एक चोकी पर पीला कपडा बिछा कर केले के खम्बे को लगा दे उस के बाद चित्रानुसार भगवन श्री सत्यनाराण गणेश नवग्रह कलश षोडश मातृकाएँ वास्तुदेवता की स्थापना करें अष्टदल या स्वस्तिक बनाएं। बीच में चावल रखें। पान सुपारी से भगवान गणेश की स्थापना करें। अब भगवान सत्यनारायण की तस्वीर रखें। श्री कृष्ण या नारायण की प्रतिमा की भी स्थापना करें।
सत्यनारायण के दाहिनी ओर शंख की स्थापना करें। जल से भरा एक कलश भी दाहिनी ओर रखें। कलश पर शक्कर या चावल से भरी कटोरी रखें। कटोरी पर नारियल भी रखा जा सकता है। अब बायी ओर दीपक रखें। केले के पत्तों से पाटे के दोनो ओर सजावट करें।
अब पाटे के आगे एक सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर नौ जगह चावल की ढेरी रखें तथा नवग्रह मंडल बनाएं पूजन के समय इनमें नवग्रहों का पूजन किया जाना है। और उस के साथ ही गेहूँ की सोलह ढेरी रखें तथा षोडशमातृका मंडल तैयार करने के बाद पूजन शुरु करें।
प्रसाद के लिए पंचामृत, गेहूं के आटे को सेंककर तैयार की गई पंजीरी या शक्कर का बूरा, फल, नारियल इन सबको सवाया मात्रा में इकठ्ठा कर लें। या जितना शक्ति हो उस अनुसार इकठ्ठा कर लें। भगवान की तस्वीर के आगे ये सभी पदार्थ रख दें।

सकंल्प ;
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संकल्प करने से पहले हाथों मेे जल, फूल व चावल लें। सकंल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष, उस वार, तिथि उस जगह और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोले। अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर छोड़ दें।

पवित्रकरण ;
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बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः।।
पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं ।

आसन शुद्धि
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निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-

पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्।

ग्रंथि बंधन
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यदि यजमान या पूजा करने वाले भक्त सपत्नीक बैठ रहे हों तो निम्न मंत्र के पाठ से ग्रंथि बंधन या गठजोड़ा करें-

यदाबध्नन दाक्षायणा हिरण्य(गुं)शतानीकाय सुमनस्यमानाः ।
तन्म आ बन्धामि शत शारदायायुष्यंजरदष्टियर्थासम्।

आचमन करें
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इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें व तीन बार कहें-
ऊँ केशवाय नमः
ऊँ नारायणाय नमः
ऊँ माधवाय नमः
यह मंत्र बोलकर हाथ धोएं
ऊँ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।

स्वस्तिवाचन मंत्र
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सबसे पहले स्वस्तिवाचन किया जाना चाहिए।
स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्र्षयो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।
द्यौः शांतिः अंतरिक्षगुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः
शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः
शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा
मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु।
अब सभी देवी-देवताओं को प्रणाम करें-
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः ।
उमा महेश्वराभ्यां नमः ।
वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नमः ।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः ।
मातृ-पितृचरणकमलेभ्यो नमः ।
इष्टदेवताभ्यो नमः ।
कुलदेवताभ्यो नमः ।
ग्रामदेवताभ्यो नमः ।
वास्तुदेवताभ्यो नमः ।
स्थानदेवताभ्यो नमः ।
सर्वेभ्योदेवेभ्यो नमः ।
सर्वेभ्यो ब्राह्मणोभ्यो नमः।
सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्यहा गणाधिपतये नमः।

भगवान गणेश को स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। जनेऊ अर्पित करें। गंध, पुष्प, अक्षत अर्पित करें। भगवान नारायण को स्नान कराएं। जनेऊ अर्पित करें। गधं, पुष्प,अक्षत अर्पित करें। अब दीपक प्रज्वलित करें। धूप, दीप करें। भगवान गणेश और सत्यनारायण धूप-दीप अर्पित करें। ‘‘ऊँ सत्यनारायण नमः’’ कहते हुए सत्यनारायण का पूजन करें।
अब चावल की ढेरी में नवग्रहों का पूजन करें। अष्टगंध, पुष्प को नवग्रहों को अर्पित करें।

नवग्रहों का पूजन का मंत्र
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ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः शांतिकरा भवन्तु।
इस मंत्र से नवग्रहों का पूजन करें।
अब कलश में वरुण देव का पूजन करें। दीपक में अग्नि देव का पूजन करें।

कलश पूजन
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कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।
ऊँ अपां पतये वरुणाय नमः। इस मंत्र के साथ कलश में वरुण देवता का पूजन करें।

दीपक
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दीपक प्रज्वलित करें एवं हाथ धोकर दीपक का पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-
भो दीप देवरुपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविन्घकृत ।
यावत्कर्मसमाप्तिः स्यात तावत्वं सुस्थिर भवः।

कथा-वाचन और आरती
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पूजन के बाद सत्यनारायण की कथा का पाठ करें अथवा सुनें। कथा पूरी होने पर भगवान की आरती करें। प्रदक्षिणा करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। फल, मिठाई, शक्कर का बूरा जो भी पदार्थ सवाया इकठ्ठा करा हो। उन सभी पदार्थों का भगवान को भोग अर्पित करें। भगवान का प्रसाद सभी भक्तों को बांटे।

श्रीस्कन्दपुराण के अन्तर्गत रेवाखण्ड में 
श्रीसत्यनारायणव्रत कथा 
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पहला अध्याय ,,एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है? तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ ! कोई ऎसा तप बताइए जिससे थोड़े समय में ही पुण्य मिलें और मनवांछित फल भी मिल जाए. इस प्रकार की कथा सुनने की हम इच्छा रखते हैं. सर्व शास्त्रों के ज्ञाता सूत जी बोले – हे वैष्णवों में पूज्य ! आप सभी ने प्राणियों के हित की बात पूछी है इसलिए मैं एक ऎसे श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों को बताऊँगा जिसे नारद जी ने लक्ष्मीनारायण जी से पूछा था और लक्ष्मीपति ने मनिश्रेष्ठ नारद जी से कहा था. आप सब इसे ध्यान से सुनिए –
एक समय की बात है, योगीराज नारद जी दूसरों के हित की इच्छा लिए अनेकों लोको में घूमते हुए मृत्युलोक में आ पहुंचे. यहाँ उन्होंने अनेक योनियों में जन्मे प्राय: सभी मनुष्यों को अपने कर्मों द्वारा अनेकों दुखों से पीड़ित देखा. उनका दुख देख नारद जी सोचने लगे कि कैसा यत्न किया जाए जिसके करने से निश्चित रुप से मानव के दुखों का अंत हो जाए. इसी विचार पर मनन करते हुए वह विष्णुलोक में गए. वहाँ वह देवों के ईश नारायण की स्तुति करने लगे जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे, गले में वरमाला पहने हुए थे.
स्तुति करते हुए नारद जी बोले – हे भगवान! आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती हैं. आपका आदि, मध्य तथा अंत नहीं है. निर्गुण स्वरुप सृष्टि के कारण भक्तों के दुख को दूर करने वाले है, आपको मेरा नमस्कार है. नारद जी की स्तुति सुन विष्णु भगवान बोले – हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या बात है? आप किस काम के लिए पधारे हैं? उसे नि:संकोच कहो. इस पर नारद मुनि बोले कि मृत्युलोक में अनेक योनियों में जन्मे मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा अनेको दुख से दुखी हो रहे हैं. हे नाथ! आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइए कि वो मनुष्य थोड़े प्रयास से ही अपने दुखों से कैसे छुटकारा पा सकते है।

श्रीहरि बोले – हे नारद! मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है. जिसके करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह बात मैं कहता हूँ उसे सुनो. स्वर्ग लोक व मृत्युलोक दोनों में एक दुर्लभ उत्तम व्रत है जो पुण्य़ देने वाला है. आज प्रेमवश होकर मैं उसे तुमसे कहता हूँ।

श्रीसत्यनारायण भगवान का यह व्रत अच्छी तरह विधानपूर्वक करके मनुष्य तुरंत ही यहाँ सुख भोग कर, मरने पर मोक्ष पाता है.
श्रीहरि के वचन सुन नारद जी बोले कि उस व्रत का फल क्या है? और उसका विधान क्या है? यह व्रत किसने किया था? इस व्रत को किस दिन करना चाहिए? सभी कुछ विस्तार से बताएँ.  नारद की बात सुनकर श्रीहरि बोले – दुख व शोक को दूर करने वाला यह सभी स्थानों पर विजय दिलाने वाला है. मानव को भक्ति व श्रद्धा के साथ शाम को श्रीसत्यनारायण की पूजा धर्म परायण होकर ब्राह्मणों व बंधुओं के साथ करनी चाहिए. भक्ति भाव से ही नैवेद्य, केले का फल, घी, दूध और गेहूँ का आटा सवाया लें. गेहूँ के स्थान पर साठी का आटा, शक्कर तथा गुड़ लेकर व सभी भक्षण योग्य पदार्थो को मिलाकर भगवान का भोग लगाएँ। ब्राह्मणों सहित बंधु-बाँधवों को भी भोजन कराएँ, उसके बाद स्वयं भोजन करें. भजन, कीर्तन के साथ भगवान की भक्ति में लीन हो जाएं. इस तरह से सत्य नारायण भगवान का यह व्रत करने पर मनुष्य की सारी इच्छाएँ निश्चित रुप से पूरी होती हैं. इस कलि काल अर्थात कलियुग में मृत्युलोक में मोक्ष का यही एक सरल उपाय बताया गया है.

।। इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय संपूर्ण।।  
श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।

दूसरा अध्याय
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सूत जी बोले ,, हे ऋषियों ! जिसने पहले समय में इस व्रत को किया था उसका इतिहास कहता हूँ, ध्यान से सुनो! सुंदर काशीपुरी नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था. भूख प्यास से परेशान वह धरती पर घूमता रहता था. ब्राह्मणों से प्रेम से प्रेम करने वाले भगवान ने एक दिन ब्राह्मण का वेश धारण कर उसके पास जाकर पूछा ,, हे विप्र! नित्य दुखी होकर तुम पृथ्वी पर क्यूँ घूमते हो? दीन ब्राह्मण बोला ,, मैं निर्धन ब्राह्मण हूँ. भिक्षा के लिए धरती पर घूमता हूँ. हे भगवान ! यदि आप इसका कोई उपाय जानते हो तो बताइए. वृद्ध ब्राह्मण कहता है कि सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं इसलिए तुम उनका पूजन करो.

इसे करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है.
वृद्ध ब्राह्मण बनकर आए सत्यनारायण भगवान उस निर्धन ब्राह्मण को व्रत का सारा विधान बताकर अन्तर्धान हो गए. ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा कि जिस व्रत को वृद्ध ब्राह्मण करने को कह गया है मैं उसे जरुर करूँगा. यह निश्चय करने के बाद उसे रात में नीँद नहीं आई. वह सवेरे उठकर सत्यनारायण भगवान के व्रत का निश्चय कर भिक्षा के लिए चला गया. उस दिन निर्धन ब्राह्मण को भिक्षा में बहुत धन मिला. जिससे उसने बंधु-बाँधवों के साथ मिलकर श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत संपन्न किया।
भगवान सत्यनारायण का व्रत संपन्न करने के बाद वह निर्धन ब्राह्मण सभी दुखों से छूट गया और अनेक प्रकार की संपत्तियों से युक्त हो गया. उसी समय से यह ब्राह्मण हर माह इस व्रत को करने लगा. इस तरह से सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो मनुष्य करेगा वह सभी प्रकार के पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होगा. जो मनुष्य इस व्रत को करेगा वह भी सभी दुखों से मुक्त हो जाएगा।
सूत जी बोले कि इस तरह से नारद जी से नारायण जी का कहा हुआ श्रीसत्यनारायण व्रत को मैने तुमसे कहा. हे विप्रो ! मैं अब और क्या कहूँ? ऋषि बोले – हे मुनिवर ! संसार में उस विप्र से सुनकर और किस-किस ने इस व्रत को किया, हम सब इस बात को सुनना चाहते हैं. इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा का भाव है.
सूत जी बोले – हे मुनियों! जिस-जिस ने इस व्रत को किया है, वह सब सुनो ! एक समय वही विप्र धन व ऎश्वर्य के अनुसार अपने बंधु-बाँधवों के साथ इस व्रत को करने को तैयार हुआ. उसी समय एक एक लकड़ी बेचने वाला बूढ़ा आदमी आया और लकड़ियाँ बाहर रखकर अंदर ब्राह्मण के घर में गया. प्यास से दुखी वह लकड़हारा उनको व्रत करते देख विप्र को नमस्कार कर पूछने लगा कि आप यह क्या कर रहे हैं तथा इसे करने से क्या फल मिलेगा? कृपया मुझे भी बताएँ. ब्राह्मण ने कहा कि सब मनोकामनाओं को पूरा करने वाला यह सत्यनारायण भगवान का व्रत है. इनकी कृपा से ही मेरे घर में धन धान्य आदि की वृद्धि हुई है।

विप्र से सत्यनारायण व्रत के बारे में जानकर लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ. चरणामृत लेकर व प्रसाद खाने के बाद वह अपने घर गया. लकड़हारे ने अपने मन में संकल्प किया कि आज लकड़ी बेचने से जो धन मिलेगा उसी से श्रीसत्यनारायण भगवान का उत्तम व्रत करूँगा. मन में इस विचार को ले बूढ़ा आदमी सिर पर लकड़ियाँ रख उस नगर में बेचने गया जहाँ धनी लोग ज्यादा रहते थे. उस नगर में उसे अपनी लकड़ियों का दाम पहले से चार गुना अधिक मिलता है।

बूढ़ा प्रसन्नता के साथ दाम लेकर केले, शक्कर, घी, दूध, दही और गेहूँ का आटा ले और सत्यनारायण भगवान के व्रत की अन्य सामग्रियाँ लेकर अपने घर गया. वहाँ उसने अपने बंधु-बाँधवों को बुलाकर विधि विधान से सत्यनारायण भगवान का पूजन और व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन पुत्र आदि से युक्त होकर संसार के समस्त सुख भोग अंत काल में बैकुंठ धाम चला गया.

।।इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का द्वितीय अध्याय संपूर्ण।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।

तीसरा अध्याय 
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सूतजी बोले ,, हे श्रेष्ठ मुनियों, अब आगे की कथा कहता हूँ. पहले समय में उल्कामुख नाम का एक बुद्धिमान राजा था. वह सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय था. प्रतिदिन देव स्थानों पर जाता और निर्धनों को धन देकर उनके कष्ट दूर करता था. उसकी पत्नी कमल के समान मुख वाली तथा सती साध्वी थी. भद्रशीला नदी के तट पर उन दोनो ने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत किया. उसी समय साधु नाम का एक वैश्य आया. उसके पास व्यापार करने के लिए बहुत सा धन भी था. राजा को व्रत करते देखकर वह विनय के साथ पूछने लगा – हे राजन ! भक्तिभाव से पूर्ण होकर आप यह क्या कर रहे हैं? मैं सुनने की इच्छा रखता हूँ तो आप मुझे बताएँ।
राजा बोला – हे साधु! अपने बंधु-बाँधवों के साथ पुत्रादि की प्राप्ति के लिए एक महाशक्तिमान श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत व पूजन कर रहा हूँ. राजा के वचन सुन साधु आदर से बोला – हे राजन ! मुझे इस व्रत का सारा विधान कहिए. आपके कथनानुसार मैं भी इस व्रत को करुँगा. मेरी भी संतान नहीं है और इस व्रत को करने से निश्चित रुप से मुझे संतान की प्राप्ति होगी. राजा से व्रत का सारा विधान सुन, व्यापार से निवृत हो वह अपने घर गया।
साधु वैश्य ने अपनी पत्नी को संतान देने वाले इस व्रत का वर्णन कह सुनाया और कहा कि जब मेरी संतान होगी तब मैं इस व्रत को करुँगा. साधु ने इस तरह के वचन अपनी पत्नी लीलावती से कहे. एक दिन लीलावती पति के साथ आनन्दित हो सांसारिक धर्म में प्रवृत होकर सत्यनारायण भगवान की कृपा से गर्भवती हो गई. दसवें महीने में उसके गर्भ से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया. दिनोंदिन वह ऎसे बढ़ने लगी जैसे कि शुक्ल पक्ष का चंद्रमा बढ़ता है. माता-पिता ने अपनी कन्या का नाम कलावती रखा।

एक दिन लीलावती ने मीठे शब्दों में अपने पति को याद दिलाया कि आपने सत्यनारायण भगवान के जिस व्रत को करने का संकल्प किया था उसे करने का समय आ गया है, आप इस व्रत को करिये. साधु बोला कि हे प्रिये! इस व्रत को मैं उसके विवाह पर करुँगा. इस प्रकार अपनी पत्नी को आश्वासन देकर वह नगर को चला गया. कलावती पिता के घर में रह वृद्धि को प्राप्त हो गई. साधु ने एक बार नगर में अपनी कन्या को सखियों के साथ देखा तो तुरंत ही दूत को बुलाया और कहा कि मेरी कन्या के योग्य वर देख कर आओ. साधु की बात सुनकर दूत कंचन नगर में पहुंचा और वहाँ देखभाल कर लड़की के सुयोग्य वाणिक पुत्र को ले आया. सुयोग्य लड़के को देख साधु ने बंधु-बाँधवों को बुलाकर अपनी पुत्री का विवाह कर दिया लेकिन दुर्भाग्य की बात ये कि साधु ने अभी भी श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत नहीं किया।
इस पर श्री भगवान क्रोधित हो गए और श्राप दिया कि साधु को अत्यधिक दुख मिले. अपने कार्य में कुशल साधु बनिया जमाई को लेकर समुद्र के पास स्थित होकर रत्नासारपुर नगर में गया. वहाँ जाकर दामाद-ससुर दोनों मिलकर चन्द्रकेतु राजा के नगर में व्यापार करने लगे. एक दिन भगवान सत्यनारायण की माया से एक चोर राजा का धन चुराकर भाग रहा था. उसने राजा के सिपाहियों को अपना पीछा करते देख चुराया हुआ धन वहाँ रख दिया जहाँ साधु अपने जमाई के साथ ठहरा हुआ था. राजा के सिपाहियों ने साधु वैश्य के पास राजा का धन पड़ा देखा तो वह ससुर-जमाई दोनों को बाँधकर प्रसन्नता से राजा के पास ले गए और कहा कि उन दोनों चोरों हम पकड़ लाएं हैं, आप आगे की कार्यवाही की आज्ञा दें.
राजा की आज्ञा से उन दोनों को कठिन कारावास में डाल दिया गया और उनका सारा धन भी उनसे छीन लिया गया. श्रीसत्यनारायण भगवान से श्राप से साधु की पत्नी भी बहुत दुखी हुई. घर में जो धन रखा था उसे चोर चुरा ले गए. शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा व भूख प्यास से अति दुखी हो अन्न की चिन्ता में कलावती के ब्राह्मण के घर गई. वहाँ उसने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत होते देखा फिर कथा भी सुनी वह प्रसाद ग्रहण कर वह रात को घर वापिस आई. माता के कलावती से पूछा कि हे पुत्री अब तक तुम कहाँ थी़? तेरे मन में क्या है?
कलावती ने अपनी माता से कहा – हे माता ! मैंने एक ब्राह्मण के घर में श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत देखा है. कन्या के वचन सुन लीलावती भगवान के पूजन की तैयारी करने लगी. लीलावती ने परिवार व बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन किया और उनसे वर माँगा कि मेरे पति तथा जमाई शीघ्र घर आ जाएँ. साथ ही यह भी प्रार्थना की कि हम सब का अपराध क्षमा करें. श्रीसत्यनारायण भगवान इस व्रत से संतुष्ट हो गए और राजा चन्द्रकेतु को सपने में दर्शन दे कहा कि – हे राजन ! तुम उन दोनो वैश्यों को छोड़ दो और तुमने उनका जो धन लिया है उसे वापिस कर दो. अगर ऎसा नहीं किया तो मैं तुम्हारा धन राज्य व संतान सभी को नष्ट कर दूँगा. राजा को यह सब कहकर वह अन्तर्धान हो गए। प्रात:काल सभा में राजा ने अपना सपना सुनाया फिर बोले कि बणिक पुत्रों को कैद से मुक्त कर सभा में लाओ. दोनो ने आते ही राजा को प्रणाम किया. राजा मीठी वाणी में बोला – हे महानुभावों ! भाग्यवश ऎसा कठिन दुख तुम्हें प्राप्त हुआ है लेकिन अब तुम्हें कोई भय नहीं है. ऎसा कह राजा ने उन दोनों को नए वस्त्राभूषण भी पहनाए और जितना धन उनका लिया था उससे दुगुना धन वापिस कर दिया. दोनो वैश्य अपने घर को चल दिए।

।।इति श्रीसत्यनारायण भगवान व्रत कथा का तृतीय अध्याय संपूर्ण ।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।

चतुर्थ अध्याय
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सूतजी बोले ,, वैश्य ने मंगलाचार कर अपनी यात्रा आरंभ की और अपने नगर की ओर चल दिए. उनके थोड़ी दूर जाने पर एक दण्डी वेशधारी श्रीसत्यनारायण ने उनसे पूछा – हे साधु तेरी नाव में क्या है? अभिवाणी वणिक हंसता हुआ बोला – हे दण्डी ! आप क्यों पूछते हो? क्या धन लेने की इच्छा है? मेरी नाव में तो बेल व पत्ते भरे हुए हैं. वैश्य के कठोर वचन सुन भगवान बोले – तुम्हारा वचन सत्य हो! दण्डी ऎसे वचन कह वहाँ से दूर चले गए. कुछ दूर जाकर समुद्र के किनारे बैठ गए. दण्डी के जाने के बाद साधु वैश्य ने नित्य क्रिया के पश्चात नाव को ऊँची उठते देखकर अचंभा माना और नाव में बेल-पत्ते आदि देख वह मूर्छित हो जमीन पर गिर पड़ा।
मूर्छा खुलने पर वह अत्यंत शोक में डूब गया तब उसका दामाद बोला कि आप शोक ना मनाएँ, यह दण्डी का शाप है इसलिए हमें उनकी शरण में जाना चाहिए तभी हमारी मनोकामना पूरी होगी. दामाद की बात सुनकर वह दण्डी के पास पहुँचा और अत्यंत भक्तिभाव नमस्कार कर के बोला – मैंने आपसे जो जो असत्य वचन कहे थे उनके लिए मुझे क्षमा दें, ऎसा कह कहकर महान शोकातुर हो रोने लगा तब दण्डी भगवान बोले – हे वणिक पुत्र ! मेरी आज्ञा से बार-बार तुम्हें दुख प्राप्त हुआ है. तू मेरी पूजा से विमुख हुआ.

साधु बोला – हे भगवान ! आपकी माया से ब्रह्मा आदि देवता भी आपके रूप को नहीं जानते तब मैं अज्ञानी कैसे जान सकता हूँ. आप प्रसन्न होइए, अब मैं सामर्थ्य के अनुसार आपकी पूजा करूँगा. मेरी रक्षा करो और पहले के समान नौका में धन भर दो।
साधु वैश्य के भक्तिपूर्वक वचन सुनकर भगवान प्रसन्न हो गए और उसकी इच्छानुसार वरदान देकर अन्तर्धान हो गए. ससुर-जमाई जब नाव पर आए तो नाव धन से भरी हुई थी फिर वहीं अपने अन्य साथियों के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपने नगर को चल दिए. जब नगर के नजदीक पहुँचे तो दूत को घर पर खबर करने के लिए भेज दिया. दूत साधु की पत्नी को प्रणाम कर कहता है कि मालिक अपने दामाद सहित नगर के निकट आ गए हैं।
दूत की बात सुन साधु की पत्नी लीलावती ने बड़े हर्ष के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपनी पुत्री कलावती से कहा कि मैं अपने पति के दर्शन को जाती हूँ तू कार्य पूर्ण कर शीघ्र आ जा! माता के ऎसे वचन सुन कलावती जल्दी में प्रसाद छोड़ अपने पति के पास चली गई. प्रसाद की अवज्ञा के कारण श्रीसत्यनारायण भगवान रुष्ट हो गए और नाव सहित उसके पति को पानी में डुबो दिया. कलावती अपने पति को वहाँ ना पाकर रोती हुई जमीन पर गिर गई. नौका को डूबा हुआ देख व कन्या को रोता देख साधु दुखी होकर बोला कि हे प्रभु ! मुझसे तथा मेरे परिवार से जो भूल हुई है उसे क्षमा करें.
साधु के दीन वचन सुनकर श्रीसत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए और आकाशवाणी हुई – हे साधु! तेरी कन्या मेरे प्रसाद को छोड़कर आई है इसलिए उसका पति अदृश्य हो गया है. यदि वह घर जाकर प्रसाद खाकर लौटती है तो इसे इसका पति अवश्य मिलेगा. ऎसी आकाशवाणी सुन कलावती घर पहुंचकर प्रसाद खाती है और फिर आकर अपने पति के दर्शन करती है. उसके बाद साधु अपने बंधु-बाँधवों सहित श्रीसत्यनारायण भगवान का विधि-विधान से पूजन करता है. इस लोक का सुख भोग वह अंत में स्वर्ग जाता है।

।।इति श्री सत्यनारायण भगवान व्रत कथा का चतुर्थ अध्याय संपूर्ण ।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।

पाँचवां अध्याय
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सूतजी बोले ,, हे ऋषियों ! मैं और भी एक कथा सुनाता हूँ, उसे भी ध्यानपूर्वक सुनो! प्रजापालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था. उसने भी भगवान का प्रसाद त्याग कर बहुत ही दुख सान किया. एक बार वन में जाकर वन्य पशुओं को मारकर वह बड़ के पेड़ के नीचे आया. वहाँ उसने ग्वालों को भक्ति-भाव से अपने बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा. अभिमानवश राजा ने उन्हें देखकर भी पूजा स्थान में नहीं गया और ना ही उसने भगवान को नमस्कार किया. ग्वालों ने राजा को प्रसाद दिया लेकिन उसने वह प्रसाद नहीं खाया और प्रसाद को वहीं छोड़ वह अपने नगर को चला गया.
जब वह नगर में पहुंचा तो वहाँ सबकुछ तहस-नहस हुआ पाया तो वह शीघ्र ही समझ गया कि यह सब भगवान ने ही किया है. वह दुबारा ग्वालों के पास पहुंचा और विधि पूर्वक पूजा कर के प्रसाद खाया तो श्रीसत्यनारायण भगवान की कृपा से सब कुछ पहले जैसा हो गया. दीर्घकाल तक सुख भोगने के बाद मरणोपरांत उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।

जो मनुष्य परम दुर्लभ इस व्रत को करेगा तो भगवान सत्यनारायण की अनुकंपा से उसे धन-धान्य की प्राप्ति होगी. निर्धन धनी हो जाता है और भयमुक्त हो जीवन जीता है. संतान हीन मनुष्य को संतान सुख मिलता है और सारे मनोरथ पूर्ण होने पर मानव अंतकाल में बैकुंठधाम को जाता है.
सूतजी बोले – जिन्होंने पहले इस व्रत को किया है अब उनके दूसरे जन्म की कथा  कहता हूँ. वृद्ध शतानन्द ब्राह्मण ने सुदामा का जन्म लेकर मोक्ष की प्राप्ति की. लकड़हारे ने अगले जन्म में निषाद बनकर मोक्ष प्राप्त किया. उल्कामुख नाम का राजा दशरथ होकर बैकुंठ को गए. साधु नाम के वैश्य ने मोरध्वज बनकर अपने पुत्र को आरे से चीरकर मोक्ष पाया. महाराज तुंगध्वज ने स्वयंभू होकर भगवान में भक्तियुक्त हो कर्म कर मोक्ष पाया.

।।इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पंचम अध्याय संपूर्ण ।।

श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।

कथा श्रवण के बाद श्री सत्यनारायणजी की आरती करें और अंत मे 3 बार प्रदक्षिणा कर आटे की पंजीरी में विविध फल और दही लस्सी का चरणामृत बना कर सभी लोगो प्रसाद स्वरूप बांटे और स्वयं भी ग्रहण करें।

श्री सत्यनारायणजी की आरती 
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जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा ॥ जय लक्ष्मी... ॥
रत्न जड़ित सिंहासन, अद्भुत छवि राजे ।
नारद करत नीराजन, घंटा वन बाजे ॥ जय लक्ष्मी... ॥
प्रकट भए कलि कारण, द्विज को दरस दियो ।
बूढ़ो ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो ॥ जय लक्ष्मी... ॥

दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी ।
चंद्रचूड़ एक राजा, तिनकी बिपति हरी ॥ जय लक्ष्मी... ॥
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्हीं ।
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति किन्हीं ॥ जय लक्ष्मी... ॥

भाव-भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धर्‌यो ।
श्रद्धा धारण किन्ही, तिनको काज सरो ॥ जय लक्ष्मी... ॥
ग्वाल-बाल संग राजा, बन में भक्ति करी ।
मनवांछित फल दीन्हों, दीन दयालु हरि ॥ जय लक्ष्मी... ॥
चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा ।
धूप-दीप-तुलसी से, राजी सत्यदेवा ॥ जय लक्ष्मी... ॥
सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे ।
तन-मन-सुख-संपति मनवांछित फल पावै॥ जय लक्ष्मी... ॥

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मंगलवार, 2 मई 2023

“केदारनाथ धाम” में ये सब ? क्या हिंदू फिर से बड़ी तबाही को निमंत्रण दे रहे हैं ?

 किसी ने सच ही कहा है कि अगर कभी पृथ्वी का सर्वनाश हुआ तो उस पर एक वाक्य जरूर लिखा होगा कि इस ग्रह पर रहने वाले प्राणियों ने ही इस ग्रह को खत्म किया है।

यह बात सत्य सिद्ध होती प्रतीत हो रहे हैं हिंदुओं के विश्वविख्यात तीर्थ श्री केदारनाथ धाम में। यह सारा क्षेत्र चार धाम नाम से प्रसिद्ध है। बताने की आवश्यकता नहीं है कि साल 2013 में 16 और 17 जून को आई आपदा ने केदारनाथ घाटी को पूरी तरह बर्बाद कर दिया था। भगवान भोलेनाथ की शरण में पहुंचे और यहां रहने वाले हजारों लोगों ने अपनी जान इसमें गवाई थीं। ये त्रासदी रौंगटे खड़े कर देने वाली थी।
इस आपदा ने केदारनाथ धाम में ऐसा तांडव मचाया था कि यहां मौजूद घर तिनके की तरह बह गए थे। हजारों लोगों ने अपनों को खोया और आज भी वे उस पल को याद करते हुए डर जाते हैं। रिपोर्ट्स में बताया जाता है कि लंबे समय तक आपदा का प्रभाव देखने को मिला था। यहां मलबे में लोगों के कंकाल मिलते रहे। कहते हैं कि इस त्रासदी में गांव के हर परिवार ने किसी न किसी अपने को खोया था। कोई इसे प्राकृतिक आपदा कह सकता है तो कोई इसे प्राकृतिक हलचल, किंतु सत्य तो यह है कि इस तीर्थ में हिंदुओं ने धर्म मर्यादा का पालन करना पूरी तरह से बंद कर दिया था।

यह धाम अपने आप में अध्यात्म शक्तियों से भरा हुआ है, किंतु यहां पर बड़े-बड़े होटल बन गए थे, जहां पर दर्शनार्थी कम और हनीमून मनाने वाले लोग ज्यादा पहुंचने लग गए थे। इस पवित्र धाम की मर्यादा को पूरी तरह से खंडित कर दिया था वहां पर जाने वाले अधिकांश यात्रियों ने। जिसका बहुत भारी खामियाजा लोगों को चुकाना पड़ा था। उस समय धाम तक जाने वाला सारा मार्ग बाढ़ में बह गया था, जिसे पुनः ठीक करने में सरकार को लगभग 2700 करोड़ रुपए खर्च करने पढ़े थे।

तब यहां एक बात चमत्कारिक रूप से सामने आई थी जिसे सारे विश्व ने देखा था। पवित्र मंदिर के पीछे से तबाही फैलाता पानी उस समय मंदिर के दाएं बाएं से होकर निकल गया था जब कहीं से मंदिर के आकार की ही एक विशाल शिला मंदिर के ठीक पीछे आके रुक गई थी, जिससे मंदिर को कोई क्षति नहीं पहुंची थी। इतना सब कुछ देखने और भोगने के बावजूद भी लगता है हिंदुओं ने कोई सबक नहीं सीखा है। अब एक बार फिर से लोग एक भयानक तबाही को निमंत्रण देते हुए नजर आ रहे हैं।

अब फिर से कुछ ऐसे लोग इस धाम पर जाने लगे हैं जो वहां पर धर्म की मर्यादाओं को तार-तार करने में लगे हुए हैं। फिर से वही पिकनिक, फिर से वही मनोरंजन और फिर से वही गंदगी इस पवित्र धाम में फैलाई जाने लगी है जिससे कुपित हुए भगवान भोलेनाथ के कोप को सारी दुनिया देख चुकी है। यह एक बहुत चिंता का विषय है।

वहां पर पहुंचने वाले लोगों को अब धर्म की मर्यादाओं का पालन करना ही होगा, अन्यथा संभव है की एक बार फिर से प्रकृति रुष्ट होकर अपना रौद्र रूप ना दिखा दे, और आटे के साथ साथ घुन भी पिस जाए।

मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए

 मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए



एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए। द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर श्री हरि खुद शिव से मिलने अंदर चले गए। तब कैलाश की प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी। चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।

उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की दृष्टि से देखा। गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएँगे।

गरूड़ को दया आ गई। इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद वापिस कैलाश पर आ गया। आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी नजर से क्यों देखा था।

यम देव बोले "गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी। मैं सोच रहा था कि वो इतनी जल्दी इतनी दूर कैसे जाएगी, पर अब जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी होगी।"

गरुड़ समझ गये "मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए।"
इस लिए श्री कृष्ण कहते है- करता तू वह है, जो तू चाहता है
परन्तु होता वह है, जो में चाहता हूँ
कर तू वह, जो में चाहता हूँ
फिर होगा वो, जो तू चाहेगा ।

जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है ? राम की पूजा क्यों नही ?

*🛕🙏🏼 जय सियाराम आर्य श्रेष्ठ सनातनी बंधुओं...*

बात उन दिनों की है जब हम कॉलेज में प्रथम वर्ष के छात्र थे. दशहरा बीत चुका था दीपावली समीप थी तभी एक दिन कुछ युवक युवतियों की ngo टाइप टोली हमारे कॉलेज में आई.

उन्होंने स्टूडेंट्स से कुछ प्रश्न पूछे किन्तु एक प्रश्न पर कॉलेज में सन्नाटा छा गया.

उन्होंने पूछा जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है ? राम की पूजा क्यों नही ?

प्रश्न पर सन्नाटा छा गया क्योंकि उसवक्त कोई सोशल मीडिया तो था नही, स्मार्टफोन भी नही थे किसी को कुछ नही पता. तब सन्नाटा चीरते हुए  हममें से ही एक हाथ प्रश्न का उत्तर देने हेतु ऊपर उठा 

हमनें बताया क्योंकि दीपावली उत्सव दो युग सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है. सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मी पूजन होता है. भगवान राम भी त्रेता युग मे इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए इसका नाम दीपावली है. इसलिए इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है दूजा दीपावली जो त्रेता युग प्रभु राम और दीपो से जुड़ा है.

हमारे उत्तर के बाद थोड़ी देर तक सन्नाटा छाया रहा क्योंकि किसी को भी उत्तर नही पता था यहां तक कि प्रश्न पूछ रही टोली को भी नही. खैर सबने खूब तालियां बजाई. उसके बाद एक अखबार ने हमारा इंटरव्यू भी लिया. उस समय अखबार का इंटरव्यू लेना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी.

बाद में पता चला कि वो टोली आज की शब्दावली अनुसार लिबरर्ल्स की थी जो हर कॉलेज में जाकर युवाओं के मस्तिष्क में यह डाल रही थी कि लक्ष्मी पूजन का औचित्य क्या जब दीपावली राम से जुड़ी है. कुल मिलाकर वह छात्रों का ब्रेनवॉश कर रही थी. लेकिन हमारे उत्तर के बाद वह टोली गायब हो गई.

*प्रश्न है*
लक्ष्मी गणेश का आपस में क्या रिश्ता है
और दीवाली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है

*सही उत्तर है*


लक्ष्मी जी जब सागरमन्थन में मिलीं और भगवान विष्णु से विवाह किया तो उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया तो उन्होंने धन को बाँटने के लिए मैनेजर कुबेर को बनाया। कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते नहीं थे, खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। 
माता लक्ष्मी परेशान हो गई, उनकी सन्तान को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने उन्हें कहा कि तुम मैनेजर बदल लो, माँ लक्ष्मी बोली, यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा।
तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की  विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी। 
माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को धन का डिस्ट्रीब्यूटर बनने को कहा, गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान, वे बोले, माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊंगा, उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी !
अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न/ रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे।
कुबेर भंडारी रह गए, गणेश पैसा सैंक्शन करवाने वाले बन गए।
 
गणेश जी की दरियादिली देख माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें।
दीवाली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिन, तो वे सँग ले आती हैं गणेश जी को, इसलिए दीवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है।
🙏🌹🙏
(यह कैसी विडंबना है कि देश और हिंदुओ के सबसे बड़े त्यौहार का पाठ्यक्रम में कोई विस्तृत वर्णन नही है औऱ जो वर्णन है वह अधूरा है)
इस लेख को पढ़ कर स्वयं भी लाभान्वित हों, अपनी अगली पीढ़ी को बतायें और अपनों के साथ साझा करें🙏🏼😊

मैडम विनेश फोगाट"...जो कहती हैं.... हम मैडल ल्याए है मैड्डल.....!ये मैडल हम देश के लिए ल्याए है.

..."मैडम विनेश फोगाट"...जो कहती हैं.... 
हम मैडल ल्याए है मैड्डल.....!
ये मैडल हम देश के लिए ल्याए है.....!!


अरे...ये तो बताओ कि कितने मेडल ल्याई हो....?
और चलो मान लिया कि ल्याई हो, तो क्या घर से निकल कर सीधे मेडल ही उठा लाई हो क्या....? 

स्पोर्ट्स अथाॅरिटी आफ इंडिया, और WFI ने करोड़ों खर्चे है तुम पर....पर्सनल कोच, विदेशों में ट्रैनिंग, विश्व स्तरीय सुविधाऐं, आधी दुनियां का टूर, पुलिस में DSP का पद, स्पाॅन्सर जुटाना, ट्रैनिंग, साजो सामान और सरकारी खर्चे पर मौज मस्ती करने के लिए और करोड़ों रूपये दिलवाये हैं।

और सुनो मैडम विनेश फौगाट...….
दो ओलम्पिक खेलकर भी तुम आज तक कोई ओलम्पिक पदक नहीं ला पाई, कभी भी क्वार्टर फाईनल तक नहीं पहुँची तुम, टोक्यो में तो पहले ही राउंड में बाहर और नखरे तेरे सुपरस्टारों वाले थे।

पहले पर्सनल फीजिओ की माँग, फिर फेडरेशन की मर्जी के खिलाफ हंगरी में पति-पत्नि कोच के साथ अकेले ट्रैनिंग फिर भारतीय कुश्ती दल के साथ रूकने से इंकार, भारत सरकार की आॅफीशियल किट पहने से इंकार।
और पहले ही राउंड में धूल चाट गई, किसी दूसरे देश में ऐसे नखरे। अगर स्टारडम दिखाने की कोशिश भी की होती तो आजीवन प्रतिबंध लग जाता।

बड़े मैड्डल ल्याए है.....
भूखों मरता फोगाट परिवार, आज करोडों का मालिक है....ये दिया है देश ने तुम्हें।
मुफ्त में मैड्डल ले आई क्या.....?

इतनी भी उपलब्धियां नहीं है कि तुम इतना इतरा सको....भारत में कितने राज्य हैं जो महिला कुश्ती लड़ते हैं....?

एक दो लड़की यूपी से, दो से पाँच लड़कियां महाराष्ट्र से और बाकी सारा हरियाणा ही हरियाणा है।

काॅमनवैल्थ खेलों में जहाँ ना रशियन फेडरेशन की पहलवान आती हैं ना ईरानी, और ना जापानी.....वहाँ एक आध मेडल लेकर फुदकने वालियों को पता होना चाहिये कि "रेसलिंग वर्ल्ड चैम्पियनशिप" में भारत की रैंकिंग 43 वीं है।

वो भी विश्व स्तरीय सुविधाओं, स्पेशल डाईट, पर्सनल फीजिओ, विदेशी कोच, विदेशों में ट्रैनिंग लेकर भी तुम पहले राऊंड में चित्त हुई हो।

हम तो मैड्डल ल्याए हैं जी......
भारत सरकार, स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री, WFI की मेहनत, पैसा और उतना ही प्रयास लगता है उनका भी।
अगर वो हाथ खींच लें तो बीस बीस रूपये में गाँव के दंगल लड़ने की औकात पर वापस आ जाओगी।

मैडम,
ये विदेशी सैर सपाटा, करोड़ों का खर्च, सरकारी पैसे पर हनीमून ये सब मिलता है तब आवे हैं मैड्डल।

भारत की सबसे नकचढी, बदतमीज और अनुशासनहीन खिलाड़ी हो तुम और ये बात भारत का हर खिलाडी भली भाँति जानता है ।

पीटी ऊषा, मैरीकाॅम और योगेश्वर दत्त के सामने क्या उपलब्धियां है तुम्हारी.....?

वो लोग है, अनुशासित खिलाड़ी...आज तक एक विवाद नहीं, कोई फालतू का नखरा, स्टारडम, टीका, टिप्पणी कुछ नहीं।
हर जगह तुमसे ज्यादा ही सम्मान पाया है उन्होंने।

उनका एक बयान दिखा दो, कि हम मैड्डल ल्याए हैं मैड्डल ।

उसके विपरीत तेरी गज भर लंबी जुबान, अनुशासनहीनता, नखरे, नौटंकी, स्टारडम और खुद को तोपखान और दूसरों को तुच्छ मानने की सनक से तंग आ चुके हैं लोग।

और हाँ..… 
देश जानता है कि पाँच फोगाट बहनों के पास, कुश्ती में एक भी ओलम्पिक मेडल नहीं है।

हम तो मैड्डल ल्याए है जी मैड्डल।

पहलवानों के धरने के पीछे जॉर्ज सोरस... मोदी को हटाने के लिए विदेशी खेला शुरू...

पहलवानों के धरने के पीछे जॉर्ज सोरस... मोदी को हटाने के लिए विदेशी खेला शुरू...


आज से दो महीने पहले जब अमेरिका के पूंजीपति जॉर्ज सोरस ने बिलखते हुए कहा था कि अदानी के मुद्दे पर मोदी ने जवाब नहीं दिया, मोदी को संसद में जवाब देना होगा। 

उस वक्त जॉर्ज सोरस ने मोदी को तानाशाह बताते हुए ये कहा था कि वो मोदी को हराकर भारत के अंदर दोबारा लोकतंत्र को बहाल करेगा। 

जॉर्ज सोरस के अंदर राष्ट्रवादियों के प्रति काफी घृणा है। जॉर्ज सोरस ने अमेरिका में ऐलान करके ट्रंप को हराने के लिए अपना खजाना खोल दिया था। 

जॉर्ज बुश की अगुवाई वाली रिपब्लिकन पार्टी को भी जॉर्ज सोरस ने ऐलानिया हराया था। 

जॉर्ज सोरस एंटी मोदी एनजीओ और संगठनों को खूब पैसा दे रहा है। मोदी विरोधी वकीलों को भी फंडिंग हो रही है और इसका असर अब दिखना शुरू हो गया है।

कर्नाटक में 10 मई को वोट पड़ने वाले हैं और जंतर मंतर पर मोदी विरोध का नया मंच तैयार हो गया है। जिस पर अब तक प्रियंका गांधी, सत्यपाल मलिक, पप्पू यादव और केजरीवाल भी आ चुके हैं । मोदी तेरी कब्र खुदेगी आज नहीं तो कल खुदेगी, ये नारे भी जंतर मंतर पर खिलाड़ियों में मौजूदगी में लगे हैं। 

सोचिए खेल के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने क्या कुछ नहीं किया । मेडल जीतने से पहले भी हौसला बढाने के लिए बात की और मेडल जीतने के बाद भी सबको हमेशा मिलने के लिए बुलाया और खेल की बेहतरी के लिए प्रयास किए । जब से मोदी जी प्रधानमंत्री बने, मेडल की टैली में भी भारत की स्थिति में सुधार आया । लेकिन इसका सिला मोदी जी को ये मिला कि उनकी मौत की दुआ मांगी जा रही है ।

सबसे बड़ा सवाल ये है कि अब जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर, बृ़जभूषण शरण सिंह जी के खिलाफ FIR दर्ज कर ली गई है तो जंतर मंतर पर धरने को आगे बढ़ाने की क्या जरूरत है ? 

लेकिन धरने को इसलिए वापस नहीं लिया जा रहा है क्योंकि कर्नाटक में चुनाव है और वोटिंग होने वाली है । जिस लड़की के साथ बुरा होता है क्या वो जंतर मंतर पर धरना करती है या फिर सीधे पुलिस थाने जाती है ?

किसानों के नाम पर यूपी के अंदर जाटों को उकसाने की कोशिश की गई थी । लेकिन जब यूपी का चुनाव योगी जी जीत गए तो सत्य हिंदी डॉट कॉम पर एक चर्चा में योगेंद्र यादव ने कहा कि हमने पिच अच्छी तैयार की थी, रोलर भी चलाया था लेकिन अखिलेश यादव अच्छी बॉलिंग करके योगी और मोदी को आउट नहीं कर सके । 

ठीक इसी तरह अब जंतर मंतर पर भी मोदी विरोध का अखाड़ा तैयार किया जा रहा है ताकी वेस्ट यूपी और हरियाणा में जाटों को बीजेपी के खिलाफ भड़काने का काम किया जा सके ।

अजीत अंजुम जंतर मंतर पर रिपोर्टिंग करने गए थे तब एक पहलवान बोली कि वो अजीत अंजुम की बहुत बड़ी फैन है । एकदम साफ है कि ये लोग मोदी विरोधी प्यादे हैं जिनका इस्तेमाल कांग्रेस कर रही है और इसका नुकसान देश को हो रहा है । 

पीटी ऊषा ने कहा कि ये महिला पहलवान देश को बदनाम कर रही हैं । मैरीकॉम भी पीटी ऊषा के साथ हैं । सवाल ये है कि क्या मैरिकॉम और पीटी ऊषा के मेडल की कोई कीमत नहीं है वो भी तो मेडल विजेता हैं ।

सिर्फ आरोप लगाने से कोई बात सही नहीं होती है । सबूत भी होने चाहिए और अगर महिला पहलवान का दावा है कि 1000 लड़कियों के साथ बृ़जभूषण ने यौन कदाचार किया तो फिर उनको सबूत दिखाने चाहिए । 

एक विशेष परिवार जो कुश्ती पर कब्जा चाहता है वो आखिर नेशनल क्यों नहीं खेलना चाहता है ? सीधे ओलंपिक ही क्यों खेलना चाहता है ? 

ये तमाम सवाल हैं जो पहलवानों के धरने को टूल किट प्रायोजित साबित कर रहे हैं ।

तुम महाभारत का क्या अर्थ जानते हो?"

 शास्त्र कहते हैं कि अठारह दिनों के महाभारत युद्ध में उस समय की पुरुष जनसंख्या का 80% सफाया हो गया था। युद्ध के अंत में एक दिन संजय कुरुक्षेत्र के उस स्थान पर गए जहां संसार का सबसे महानतम युद्ध हुआ था।




तभी एक वृद्ध व्यक्ति ने वहां आकर धीमे और शांत स्वर में कहा, "अब आप उस बारे में सच्चाई कभी नहीं जान पाएंगे, क्योंकि वह अब इतिहास हो चुका है"।

संजय ने धूल के बड़े से गुबार के बीच दिखाई देने वाले भगवा वस्त्रधारी एक वृद्ध व्यक्ति को देखने के लिए उस ओर सिर को घुमाया।

"मुझे पता है कि आप कुरुक्षेत्र युद्ध के बारे में पता लगाने के लिए यहां हैं, लेकिन आप उस युद्ध के बारे में तब तक नहीं जान सकते, जब तक आप ये नहीं जान लेते हैं कि असली युद्ध है क्या?" बूढ़े आदमी ने रहस्यमय ढंग से कहा।


"तुम महाभारत का क्या अर्थ जानते हो?" तब संजय ने उस रहस्यमय व्यक्ति से पूछा।

वह कहने लगा, "महाभारत एक महाकाव्य है, एक गाथा है, एक वास्तविकता भी है, लेकिन निश्चित रूप से एक दर्शन भी है।"


वृद्ध व्यक्ति संजय को और अधिक सवालों के चक्कर में फंसा कर मुस्कुरा रहा था।

"क्या आप मुझे बता सकते हैं कि दर्शन क्या है?" संजय ने निवेदन किया।

अवश्य जानता हूं, बूढ़े आदमी ने कहना शुरू किया। "पांडव कुछ और नहीं, बल्कि आपकी पाँच इंद्रियाँ हैं - दृष्टि, गंध, स्वाद, स्पर्श और श्रवण... और क्या आप जानते हैं कि कौरव क्या हैं? उसने अपनी आँखें संकीर्ण करते हुए पूछा।


कौरव ऐसे सौ तरह के विकार हैं, जो आपकी इंद्रियों पर प्रतिदिन हमला करते हैं लेकिन आप उनसे लड़ सकते हैं और जीत भी सकते है। पर क्या आप जानते हैं कैसे?


संजय ने फिर से न में सर हिला दिया।

"जब कृष्ण आपके रथ की सवारी करते हैं!" यह कह वह वृद्ध व्यक्ति मुस्कुराया।

"कृष्ण आपकी आंतरिक आवाज, आपकी आत्मा, आपका मार्गदर्शक प्रकाश हैं और यदि आप अपने जीवन को उनके हाथों में सौप देते हैं तो आपको फिर चिंता करने की कोई आवश्कता नहीं है।" उस वृद्ध व्यक्ति ने कहा।

संजय अब तक लगभग चेतन अवस्था में पहुंच गया था, लेकिन जल्दी से एक और सवाल लेकर आया।

फिर कौरवों के लिए द्रोणाचार्य और भीष्म क्यों लड़ रहे हैं?

भीष्म हमारे अहंकार का प्रतीक हैं, अश्वत्थामा हमारी वासनाएं, जो कि जल्दी नहीं मरतीं। दुर्योधन हमारी सांसारिक वासनाओं, इच्छाओं का प्रतीक है। द्रोणाचार्य हमारे संस्कार हैं। जयद्रथ हमारे शरीर के प्रति राग का प्रतीक है कि 'मैं ये देह हूं' का भाव। द्रुपद वैराग्य का प्रतीक हैं। अर्जुन मेरी आत्मा है, मैं ही अर्जुन हूं और  स्वनियंत्रित भी हूं। कृष्ण हमारे परमात्मा हैं। पांच पांडव पांच नीचे वाले चक्र भी हैं, मूलाधार से विशुद्ध चक्र तक। द्रौपदी कुंडलिनी शक्ति है, वह जागृत शक्ति है, जिसके 5 पति 5 चक्र हैं। ओम् शब्द ही कृष्ण का पांचजन्य शंखनाद है, जो मुझ और आप आत्मा को ढ़ाढ़स बंधाता है कि चिंता मत कर मैं तेरे साथ हूं, अपनी बुराइयों पर विजय पा, अपने निम्न विचारों, निम्न इच्छाओं, सांसारिक इच्छाओं, अपने आंतरिक शत्रुओं यानि कौरवों से लड़ाई कर , अर्थात अपनी मेटेरियलिस्टिक वासनाओं को त्याग कर और चैतन्य  पाठ पर आरूढ़ हो जा, विकार रूपी कौरव अधर्मी एवं दुष्ट प्रकृति के हैं।


श्री कृष्ण का साथ होते ही 72000 नाड़ियों में भगवान की चैतन्य शक्ति भर जाती है, और हमें पता चल जाता है कि मैं चैतन्यता, आत्मा, जागृति हूं, मैं अन्न से बना शरीर नहीं हूं, इसलिए उठो जागो और अपने आपको, अपनी आत्मा को, अपने स्वयं सच को जानो, भगवान को पाओ, यही भगवद प्राप्ति या आत्म साक्षात्कार है, यही इस मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।


ये शरीर ही धर्म क्षेत्र, कुरुक्षेत्र है। धृतराष्ट्र अज्ञान से अंधा हुआ मन है। अर्जुन आप हो, और श्रीकृष्ण आपके सारथी हैं।

वृद्ध आदमी ने दुःखी भाव के साथ सिर हिलाया और कहा, "जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, अपने बड़ों के प्रति आपकी धारणा बदल जाती है। जिन बुजुर्गों के बारे में आपने सोचा था कि आपके बढ़ते वर्षों में वे संपूर्ण थे, अब आपको लगता है वे सभी परिपूर्ण नहीं हैं। उनमें दोष हैं। और एक दिन आपको यह तय करना होगा कि उनका व्यवहार आपके लिए अच्छा या बुरा है। तब आपको यह भी अहसास हो सकता है कि आपको अपनी भलाई के लिए उनका विरोध करना या लड़ना भी पड़ सकता है। यह बड़ा होने का सबसे कठिन हिस्सा है और यही कारण है कि गीता महत्वपूर्ण है।"


संजय धरती पर बैठ गया, इसलिए नहीं कि वह थक गया था, बल्कि इसलिए कि वह जो समझ लेकर यहां आया था, वो एक-एक कर धराशाई हो रही थी। लेकिन फिर भी उसने लगभग फुसफुसाते हुए एक और प्रश्न पूछा, तब कर्ण के बारे में आपका क्या कहना है?


"आह!" वृद्ध ने कहा, आपने अंत के लिए सबसे अच्छा प्रश्न बचाकर रखा हुआ है।

"कर्ण आपकी इंद्रियों का भाई है। वह इच्छा है। वह सांसारिक सुख के प्रति आपके राग का प्रतीक है। वह आप का ही एक हिस्सा है, लेकिन वह अपने प्रति अन्याय महसूस करता है और आपके विरोधी विकारों के साथ खड़ा दिखता है। और हर समय विकारों के विचारों के साथ खड़े रहने के कोई न कोई कारण और बहाना बनाता रहता है।"


"क्या आपकी इच्छा; आपको विकारों के वशीभूत होकर उनमें बह जाने या अपनाने के लिए प्रेरित नहीं करती रहती है?" वृद्ध ने संजय से पूछा।


संजय ने स्वीकार में सिर हिलाया और भूमि की तरफ सिर करके सारी विचार श्रंखलाओं को क्रमबद्ध कर मस्तिष्क में बैठाने का प्रयास करने लगा, और जब उसने अपने सिर को ऊपर उठाया, वह वृद्ध व्यक्ति धूल के गुबारों के मध्य कहीं विलीन  चुका था। लेकिन जाने से पहले वह जीवन की वो दिशा एवं दर्शन दे गया था, जिसे आत्मसात करने के अतिरिक्त संजय के सामने अब कोई अन्य मार्ग नहीं बचा था।


साभार जय श्रीकृष्ण 🌺🙏🕉️

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