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रविवार, 6 नवंबर 2011

इस समय की यही सब से बडी देश सेवा है -Sharad Harikisanji Panpaliya

हमारा सौभाग्य है कि भारत के हर नागरिक के पास भारत को सुधारने के ऐक नहीं अनेक रेडीमेड नुस्खे हैं। दुर्भाग्य यह है कि वह नुस्खे दूसरों को बता देते हैं परन्तु ना तो स्वयं उन्हें अपनाते हैं ना ही दूसरे उन्हें स्वीकार करते हैं। इस लिये कोल्हू के बैल की तरह हम वहीं के वहीं चकर लगा रहै हैं।

अधिकतर सुझाव सरकार को ही लागू करने होते हैं , लेकिन सरकार हमारी मरजी पर नहीं चलती। हमें जब अपनी मरजी पर चलने वाली सरकार बनाने को मौका मिलता है तो हम या तो वोट ही नहीं डालते या फिर जो सामने आता है उसे ही डाल कर अपना वोट गंवा देते हैं। नतीजा फिर हम पिछले चौंसठ वर्षों से वहीं के वहीं खडे हैं और हमारी हालत प्रति दिन असुरक्षित होती जा रही है।

अगर हम सरकार का काम सरकार को ही करने दें तो कुछ हो सकता है। लेकिन उस के लिये जरूरी है हम अपनी मरजी की सरकार चुने । 2014 में या इस से पहले भी वह सुनहरी मौका आ सकता है उस वक्त यह काम जरूर करे – भारत में ऐक बार हिन्दू समर्थक सरकार बनने से आधे सा ज्यादा काम आसान हो जायेंगे।

तब तक हम भारत के ऐक नागरिक को ऐक ऐक काम हर हफ्ते या ऐक महीने में कर के सुधार सकते हैं । वह नागरिक आप स्वयं है और काम इस तरह के हैं जिन में आप को किसी से आज्ञा सहायता और सहयोग कुछ नहीं चाहिये। आप को अपने आप ही सहयोगियों और विरोधियों की पहचान भी हो जायेगी जिस का प्रभाव आप को चोंका देगा।

1. हिन्दी को अपनायें और उसे अपने दैनिक कामों में इस्तेमाल कर के राष्ट्रभाषा बनाने में अपना योग्दान करें। आरम्भ फेसबुक से ही कर लें। कोई दूसरा नहीं करता तो भी कोई बात नहीं आप सिर्फ अपने आप को सुधार रहै है और देश की सेवा कर रहै हैं। आप की देखादेखी दूसरे भी अंग्रेजी की मानसिक गुलामी से बाहर आ जायें गे।

2. अपनी पहचान धर्म निर्पेक्ष की नहीं बल्कि साकारात्मिक और क्रियात्मिक हिन्दू की बनाये जो आप के पूर्वजों की पहचान है और उन से जोडती है।

यह दोनो काम हम अपने आप कर सकते हैं। इस समय की यही सब से बडी देश सेवा है।
-Sharad Harikisanji Panpaliya
नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

भारत की राजभाषा हिन्दी आज भी तीसरी पंक्ति में खडी है - Sharad Harikisanji Panpaliya

भारत में उच्च शिक्षा के सभी संस्थान, पब्लिक स्कूल पहले ही मिशनरियों के संरक्षण में थे। उन संस्थानों के स्नातक आज भारत सरकार के तन्त्र में उच्च पदों पर आसीन हैं। अतः शिक्षा के संस्थान भी अंग्रेजों की पुरानी नीतियों के अनुसार चलते रहै हैं। उन्हों ने अपना स्वार्थ सुदृढ रखने कि लिये अंग्रेजी भाषा, अंग्रेज़ी मानसिक्ता तथा अंग्रेज़ी सोच का प्रभुत्व बनाये रखा है और भारतीय शिक्षा, भाषा तथा बुद्धिजीवियों को पिछली पंक्ति में ही रख छोडा है। उन्हीं कारणों से भारत की राजभाषा हिन्दी आज भी तीसरी पंक्ति में खडी है। भारत के अधिकाँश युवा अंग्रेजी ना जानने के कारण से उच्च शिक्षा तथा पदों से वँचित हो जाते हैं। अंग्रेज़ी मानसिक्ता वाले देशद्रोही बुद्धिजीवियों की सोच इस प्रकार हैः-

अंग्रेजी शिक्षा प्रगतिशील है। भारतीय विचारधारा दकियानूसी हैं। वैदिक विचारों को नकारना ही बुद्धिमता और प्रगतिशीलता की पहचान है। हिन्दू पद्धति से पढे बुद्धिजीवियों को पाश्चात्य व्यवस्थाओं पर टिप्णी करने का कोई अधिकार नहीं।

भारत में बसने वाले सभी अल्पसंख्यक शान्तिप्रिय और उदार वादी हैं। वह हिन्दूओं के कारण त्रास्तियों का शिकार हो रहै हैं। हिन्दू आर्यों की तरह उग्रवादी और महत्वकाँक्षी हैं जो देश को भगवाकरण के मार्ग पर ले जा रहै हैं। अतः देश को सब से बडा खतरा अब हिन्दू विचारधारा वाले संगठनो से है।
- Sharad Harikisanji Panpaliya
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कोई दूसरा हमें बना कर नहीं देगा - Sharad Harikisanji Panpaliya

फेसबुक पर भी कुछ लोगों का सोचना है कि हिन्दी पढ कर भारत के युवा केवल कलर्क ही बन सकेंगे। इस प्रकार की सोच नकारात्मिक गुलामी भरी सोच का प्रतीक है क्यों कि आज अधिकांश युवा अंग्रजी पढ कर काल सेन्टर में ही नौकरी कर रहै हैं जो वास्तव में कर्लक या टेलीफोन आप्रेटर के बराबर है। उन में से कई ईनजिनियरिंग और अन्य विषयों में ऐम बी ऐ इत्यादी ङी हैं लेकिन उन्हें विदेशों में बैठे मालिकों के आदेशों को भारत में पुनः प्रसारित करना होता है जिस के लिये उन्हें अमेरिका के हिसाब से न्यूनतम वेतन मिलता है। अमेरिका की आर्थिक क्षमता के अनुपात से तो वह वेतन भारत के वेतन से पचास गुणा बडा होना चाहिये लेकिन मालिक विदेशी हैं इस लिये वह वेतन 10 गुणा भी नहीं होता।

अगर हम हिन्दी को उच्च शिक्षा का माध्यम बनाते हैं तो हिन्दी मीडियम से पढा ऐक ग्रामीण विद्यार्थी भी डाक्टर, इंजीनियर और आफिसर बन सकता है और उसे यहां काल सैंटरों की जरूरत नहीं पडे गी। वह स्वाधीन होगा। हमारे युवा स्वाभिमान से देश में ही अपने देशवासियों के लिये काम करें गे। इस व्यवस्था से विकसित देशों को आर्थिक नुकसान होगा इस लिये वह इन बातों के विरोध में भ्रामिकतायें फैलाते रहते हैं।

यह कहना भी गल्त है कि हिन्दी में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये टेकनीकल और सुविधायें नहीं है – वह अब प्रयाप्त मात्रा में है – और जो कुछ अगर नहीं भी है तो वह हमारे अपने टेकनीकल बुद्धिजीवियों को विकसित करना है। कोई दूसरा हमें बना कर नहीं दे गा। अगर हम शुरआत ही नहीं करें गे तो चाहे टुग बीत जायें हम वहीं के वहीं खडे रहैं गे और अपनी बेबसी पर दूसरों को कोसते रहैं गे।

गुजरात में अधिकांश युवा गुजराती माध्यम से वकालत, इन्जिनियरिंग और मेडिकल करते हैं और यूनिवर्सिटी की डिग्री प्राप्त करते हैं। वह अपना काम सक्षमता से चला रहै हैं। अंग्रेजी केवल वही सीखते हैं जिन्हें विदेश जाने की चाहत होती है क्यों कि नदी के तट का दूसरा किनारा देखे बिना सुहावना लगता है।
-Sharad Harikisanji Panpaliya

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हम अपने देश को विदेशियों पर निर्भर रहने का पाठ पढा रहै हैं। -Sharad Harikisanji Panpaliya

विज्ञान के क्षेत्र में सब से पहले संसार में मौलिक ज्ञान भारत में ही विकसित हुआ था। उस के बाद मिस्त्र, चीन, मेसोपोटेमियां और यूनान की प्राचीन सभ्यतायें पनपी थीं मगर आज वह देश विज्ञान के क्षेत्र में पीछे रह चुके हैं। उसी प्राचीन विज्ञान को रिनेसां के बाद इंगलैणड वासियों ने अपने टेकनिकल विकास और मेहनत के बल पर अंग्रेजी भाषा में अपनाया और विश्व पर राज किया। अंग्रेजी भाषा के कारण ही उन का प्रभुत्व आज भी कायम है कियों कि उन्हों ने अंग्रैजी के गुलामों की जनसंख्या सभी देशों में पैदा करी थी। भारत में वह संख्या आज भी बढ ही रही है क्यों कि हमारे नेताओं में देश के लिये स्वाभिमान नहीं के बराबर है।

क्या हम ने कभी यह भी सोचा है कि हम बाहर से युद्ध का आधुनिक साजो - सामान, कम्पयूटर के उपकरण और साफ्टवेयर ले कर अपने देश को विकसित करने की अन्धा धुन्ध होड में तो लगे हुये हैं लेकिन अगर टेकनोलोजी देने वाले देश उन उपकरणों को ही बदल डालें या उन में कोई विशेष तबदीली कर दें जो हमारी समझ से बाहर हो तो हम क्या करें गे। जिस शाख पर बैठ कर हम गर्व से फूले नहीं समा रहै अगर उन देशों ने वह शाख ही काट दी तो हम ऐक ही झटके में नीचे गिर जाये गे। इस तरह के खतरे को दूर करने के लिये टेकनोलोजी में आत्म निर्भरता होनी नितान्त आवश्यक है – हम सिर्फ दूसरों की टेकनोलोजी की नकल करते हैं वह भी उन्हीं से सीख कर। हम अपने देश को विदेशियों पर निर्भर रहने का पाठ पढा रहै हैं।

हम टेकलोलोजी में तब तक आत्म निर्भर नहीं हो सकते जब तक हम अपनी भाषा और अपनी मौलिक जानकारी को आधार बना कर उसे विकसित नहीं करें गे । आधार बनाने के लिये आज भी संस्कृत में हमारे पास ज्ञान विज्ञान के खजाने भरे पडे हैं जिन्हें हमारे युवाओं और मैकाले परिशिक्षत बुद्धिजीवी बुद्धुओं ने देखा भी नहीं। आज हमारे संस्कृत ग्रंथों की मांग विदेशों में बढ रही है लेकिन भारत में कांग्रेसी सरकार संस्कृत के बदले उर्दू के प्रसार पर करोडों रुपये खर्च कर रही है जिस से हिन्दी का विकास और भी रुक जाये गा । आप के विकास का रास्ता अंग्रेजी से नहीं हिन्दी और संस्कृत को अपनाने से हो कर ही जाये गा। यह फैसला आप खुद करें और सरकार को भी वैसा करने के लिये मजबूर करें। यह मत भूलें कि काँग्रेस की सरकार विदेशियों की सरकार विदेशियों के लिये ही सोचती है।
-Sharad Harikisanji Panpaliya
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माँ

माँ

१. ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आश्मां कहते हैं, जहाँ में जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं.......
२. बचपन में गोद देने वाली को बुढापे में दगा देने वाले मत बनना.......
३. जिन बेटों के जन्म पर माँ-बाप ने हंसी-खुशी पड़े बांटे..... वही बेटे जवान होकर कानाफूसी से माँ-बाप को बांटे...हाय ये केसी करुणता है!
४. माँ! पहले आंसू आते थे और तू याद आती थी. आज तू याद आती है और आंसू आते हैं.
५.माँ! कैसी हो...?" इतना ही पुच उसे मिल गया सब कुछ.....
६.मंगलसूत्र बेच कर भी तुम्हें बड़ा करने वाले माँ-बाप को ही घर से निकालने वाले ऐ नौजवान! तुम अपने जीवन में अमंगाल्सुत्र शुरू कर रहे हो....
७. माँ, तूने तीर्थंकरों को जना है, संसार तेरे ही दम से बना है, तू मेरी पूजा है, मन्नत है मेरी, तेरे ही क़दमों में जन्नत है मेरी.....
८. बटवारे के समय घर की हर चीज पाने के लिए झगडा करने वाले बेटे, दो चीजों के लिए उदार बनते हैं, जिनका नाम है माँ-बाप....
९. माता-पिता क्रोधी हैं, पख्य्पाती हैं, शंकाशील हैं ये साड़ी बातें बाद की हैं. पहली बात तो ये है की....वो माता-पिता हैं.
१०. घर में वृद्ध माँ-बाप से बोले नहीं, उनको संभाले नहीं और वृधाश्रम में दान करे, जीवदय में धन प्रदान करे उसे दयालु कहना....वो दया का अपमान है.
११. जो मस्ती आँखों में है मदिरालय में नहीं, अमीरी दिल की कोई महालय में नहीं, शीतलता पाने के लिए कहाँ भटकता है मानव! जो माँ की गोद में है, वह हिमालय में नहीं....!
१२. बचपन के आठ साल तुझे अंगुली पकड़ कर जो माँ-बाप स्कूल ले जाते थे, उन माँ-बाप को बुढ़ापे के आठ साल सहारा बन कर मंदिर ले जाना... शायद थोडा-सा तेरा क़र्ज़ थोडा-सा तेरा फ़र्ज़ पूरा होगा.
१३.माँ-बाप को सोने से ना मडो, तो चलेगा. हीरे से ना जड़ो, तो चलेगा. पर उनका जिगर जले और अन्दर आँसूं बहाए, यह कैसे चलेगा?
१४. जब छोटा था, तब माँ की शय्या गीली रखता था, अब बड़ा हुआ, तो माँ की आँखें गीली रखता है. हे पुत्र! तुझे माँ को गीलेपन में रखने की आदत हो गयी है...
१५. माँ-बाप की आँखों में दो बार आँसूं आते हैं, लड़की घर छोड़े तब....लड़का मुह मोड़े तब....
१६. माँ और माफ़ी दोनों एक हैं क्योंकि माफ़ करने में दोनों नेक हैं....
१७. कबूतर को दाना डालने वाला बेटा अगर माँ-बाप को दबाये तो...उसके दाने में कोई दम नहीं....
१८. माँ-बाप की सच्ची विरासत पैसा और प्रसाद नहीं, प्रमाणिकता और पवित्रता है....
१९. बचपन में जिसने तुम्हें पाला, बुढ़ापे में उसको तुमने नहीं संभाला तो याद रखो...तुम्हारे भाग्य में भड़केगी ज्वाला
२०. माँ-बाप को वृधाश्रम में रखने वाले ऐ नौजवान! तनिक सोच कि, उन्होंने तुम्हें अनाथश्रम में नहीं रखा, उस भूल की सजा तो नहीं दे रहा है ना.....
२१. ४ वर्ष का तेरा लाडला यदि तेरे प्रेम की प्यास रखे तो पचास वर्ष के तेरे माँ-बाप तेरे प्रेम की आस क्यों ना रखें...
२२. घर में माँ को रुलाये और मंदिर में माँ को चुंदरी ओधए... याद रख... मंदिर की माँ तुझ पर खुश तो नहीं...शायद khapha jarur hogi.....!!!!

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