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बुधवार, 9 नवंबर 2011

बैकुण्ठ चतुर्दशी........... by Shyam Sunder Chandak

बैकुण्ठ चतुर्दशी...........
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. इसे वैकुण्ठ चौदस भी कहते हैं. इस दिन श्रद्धालुजन व्रत रखते हैं. यह व्रत कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी, जो अरुणोदयव्यापिनी हो, के दिन मनाया जाता है. इस चतुर्दशी के दिन यह व्रत भगवान शिव तथा विष्णु जी की पूजा करके मनाया जाता है. जिस रात्रि में चतुर्दशी अरुणोदयव्यापिनी हो, उस रात्रि में व्रत-उपवास रखा जाता है. अगले अरुणोदय में इस व्रत की पूजा तथा पारणा की जाती है l
इस वर्ष यह व्रत 8/9 नवम्बर को रखा जाएगा. 8 नवम्बर, दिन मंगलवार, को यह चतुर्दशी अरुणोदयव्यापिनी है. इसलिए 8 नवम्बर को मंगलवार के दिन उपवास रखा जाएगा. अगले दिन 9 नवम्बर को अरुणोदयकाल में भगवान शिव तथा विष्णु की पूजा की जाएगी तथा व्रत का पारण किया जाएगा l

बैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा.......
इस दिन सुबह-सवेरे दिनचर्या से निवृत होकर स्नान आदि करें. उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान विष्णु की विधिवत रुप से पूजा - अर्चना करें. उसके बाद धूप-दीप, चन्दन तथा पुष्पों से भगवान का पूजन तथा आरती करें. इस भक्तों को भगवान विष्णु की कमल पुष्पों के साथ पूजा करनी चाहिए और भगवान विष्णु का निर्मल मन से ध्यान करना चाहिए. इस दिन विष्णु जी के मंत्र जाप तथा स्तोत्र पाठ करने से बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है l

बैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा..........
एक बार की बात है कि नारद जी पृथ्वीलोक से घूमकर बैकुण्ठ धाम पंहुचते हैं. भगवान विष्णु उन्हें आदरपूर्वक बिठाते हैं और प्रसन्न होकर उनके आने का कारण पूछते हैं. नारद जी कहते है कि - प्रभु! आपने अपना नाम कृपानिधान रखा है. इससे आपके जो प्रिय भक्त हैं वही तर पाते हैं. जो सामान्य नर-नारी है, वह वंचित रह जाते हैं. इसलिए आप मुझे कोई ऎसा सरल मार्ग बताएं, जिससे सामान्य भक्त भी आपकी भक्ति कर मुक्ति पा सकें. यह सुनकर विष्णु जी बोले - हे नारद! मेरी बात सुनो, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करेंगें और श्रद्धा - भक्ति से मेरी पूजा करेंगें, उनके लिए स्वर्ग के द्वार साक्षात खुले होगें l
इसके बाद विष्णु जी जय-विजय को बुलाते हैं और उन्हें कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं. भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा थोडा़ सा भी नाम लेकर पूजन करेगा, वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करेगा.

कार्तिक बैकुण्ठ चौदस का महत्व..........
कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी का बैकुण्ठ चौदस नाम भगवान शिव का दिया गया है. यह व्रत विष्णु जी तथा शिव जी के "ऎक्य" का प्रतीक है. प्राचीन मतानुसार एक बार विष्णु जी काशी में शिव भगवान को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प चढा़ने का संकल्प करते हैं. जब अनुष्ठान का समय आता है, तब शिव भगवान, विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर देते हैं. पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपने "कमल नयन" नाम और "पुण्डरी काक्ष" नाम को स्मरण करके अपना एक नेत्र चढा़ने को तैयार होते हैं. भगवान शिव उनकी यह भक्ति देखकर प्रकट होते हैं. वह भगवान शिव का हाथ पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि तुम्हारे स्वरुप वाली कार्तिक मास की इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी "बैकुण्ठ चौदस" के नाम से जानी जाएगी l भगवान शिव, इसी बैकुण्ठ चतुर्दशी को करोडो़ सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान करते हैं. इसी दिन शिव तथा विष्णु जी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगें. मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपना स्थान बैकुण्ठ धाम में सुनिश्चित करेगा l
इसी दिन पितामह भीष्म ने भगवान कृष्ण से वर प्राप्त किया था. इसलिए इस व्रत को भीष्म पंचमी या पंच भीखू भी कहा गया है. भीष्म पंचमी का व्रत कार्तिक शुक्ल एकादशी से आरम्भ होकर पूर्णिमा तक चलता है l
कार्तिक शुक्ल चौदस के दिन ही भगवान विष्णु ने "मत्स्य" रुप में अवतार लिया था. इसके अगले दिन कार्तिक पूर्णिमा के व्रत का फल दस यज्ञों के समान फल देने वाला माना गया है l
by Shyam Sunder Chandak

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

सर के ऊपर छत नहीं पर पढने की लगन है

सर के ऊपर छत नहीं पर पढने की लगन है प्रस्तुत तस्वीर में एक अत्यंत गरीब माँ अपनी बेटी को स्कूल जाने के लिए तैयार कर रही है ये गरीब माँ जानती है की बेटी के लिए पढ़ाई का महत्व क्या है अफ़सोस की बात है की आज भी हमारे देश में कई कई जगहों पर बेटीयो को पढने से वंचित रखा जाता है और आलम ये है की पैसेवालों के यहाँ साल की हजारो रुपे फीस खर्चा करने के बाद भी बच्चा पढने को राज़ी नहीं अगर आप रुपे- पैसो से संपन्न है तो जरूर किसी गरीब बच्चे को पढ़ाई की फीस के लिए मदद कीजिये इससे २ फायदे होंगे एक तो बच्चा पढ़कर अच्छा आदमी बनेगा और दूसरा देश को एक साक्षर नागरिक मिलेगा हमेशा याद रखिये शिक्षा दान महादान!

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रविवार, 6 नवंबर 2011

प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं —

एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”
संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”
औरत ने कहा – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”
संत बोले – “हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।”
शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया।
औरत के पति ने कहा – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”
औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा।
संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।”
“पर क्यों?” – औरत ने पूछा।
उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” – फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।”
औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला – “यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।”
लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।”
उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई और बोली – “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।”
“तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने कहा।
औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”
प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे।
औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?”
उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया है। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं —
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