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बुधवार, 15 अगस्त 2012

'चूहे वाला मंदिर':श्रीकांत चौहान



राजस्थान भारत का एक ऐसा राज्य जो जितना खूबसूरत है उतना ही विचित्र भी। कहीं रेत के बड़े-बड़े अस्थायी पहाड़ हैं तो कहीं तालाब की सुंदरता। शौर्य और परंपरा की गाथाओं से सजती शाम जहाँ है तो वहीं आराधना का जलसा दिखते आठों पहर भी रेत की तरह ही फैले हैं। ऐसी ही तिलिस्मी दुनिया से दिखते इस मरूस्थल में आश्चर्य और कौतूहल का विषय लिए बसा देशनोक कस्बा।

सुनहरी रेत के बीच अपनी आभा लिए दमक रहा यह स्थान वैसे तो छोटा ही है पर इसकी महत्ता व ख्याति विदेश तक फैली हुई है। रेत के दामन में सुनहरे संगमरमर से गढ़ा एक मंदिर जिसकी नक्काशी यदि ऊपरी दिखावे से आकर्षित करने की बात को चरितार्थ करती है तो भीतर की अलौकिकता अच्छी सीरत का उदाहरण पेश करती है।

दैवीय शक्ति को समर्पित इस स्थान के कुछ रहस्य आज भी बरकरार हैं जो किसी के लिए श्रद्धा तो किसी के लिए खोज का विषय बने हुए हैं। लोग इस मंदिर में आते तो 'करणी माता के दर्शन के लिए हैं पर साथ ही नजरें खोजती हैं सफेद चूहे को। 'चूहे वाला मंदिर' के नाम से भी प्रसिद्ध यह मंदिर बीकानेर से कुछ ही दूरी पर देशनोक नामक स्थान पर बना हुआ है। आस्था व विज्ञान का तिलिस्मी तालमेल लिए अपने सीने में राज छुपाए बैठे इस मंदिर की यह पहली विशेषता है।

इस मंदिर में भक्तों से ज्यादा काले चूहे नजर आते हैं और इनकी खासी तादाद में अगर कहीं सफेद चूहा दिख जाए तो समझें कि मनोकामना पूरी हो जाएगी। यही यहाँ की मान्यता भी है। वैसे यहाँ चूहों को काबा कहा जाता है और इन काबाओं को बाकायदा दूध, लड्डू आदि भक्तों के द्वारा परोसा भी जाता है। असंख्य चूहों से पटे इस मंदिर से बाहर कदम रखते ही एक भी चूहा नजर नहीं आता और न ही मंदिर के भीतर कभी बिल्ली प्रवेश करती है। कहा तो यह भी जाता है कि जब प्लेग जैसी बीमारी ने अपना आतंक दिखाया था तब भी यह मंदिर ही नहीं बल्कि पूरा देशनोक इस बीमारी से महफूज था।

बीकानेर से करीब 30 किमी दूर बने इस मंदिर को 15 वीं शताब्दी में राजपूत राजाओं ने बनवाया था। माना जाता है कि देवी दुर्गा ने राजस्थान में चारण जाति के परिवार में एक कन्या के रूप में जन्म लिया और फिर अपनी शक्तियों से सभी का हित करते हुए जोधपुर और बीकानेर पर शासन करने वाले राठौड़ राजाओं की आराध्य बनी। 1387 में जोधपुर के एक गाँव में जन्मी इस कन्या का नाम वैसे तो रिघुबाई था पर जनकल्याण के कार्यों के कारण करणी माता के नाम से इन्हें पूजा जाने लगा। और यह नाम इन्हें मात्र 6 साल की उम्र में ही उनके चमत्कारों व जनहित में किए कार्यों से प्रभावित होकर ग्रामीणों ने दिया था।

वैसे तो यहाँ साल भर श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है पर साल में दो बार यानी नवरात्रि में यहाँ विशेष मेला भी लगता है जिसमें देश भर के भक्त देवी दर्शन के लिए आते हैं। वैसे यह मंदिर करणी माता के अंतर्ध्यान होने के बाद बनवाया गया था। किंवदंती के अनुसार करणी माता के सौतेले पुत्र की कुएँ में गिरने से मृत्यु होने पर उन्होंने यमराज से बेटे को जीवित करने की माँग की। यमराज ने करणी माता के आग्रह पर उनके पुत्र को जीवित तो कर दिया पर चूहे के रूप में। तब से ही यह माना जाता है कि करणी माता के वंशज मृत्युपर्यंत चूहे बनकर जन्म लेते हैं और देशनोक के इस मंदिर में स्थान पाते हैं।

यह तो बात हुई मान्यताओं की पर इतिहास पर नजर दौड़ाएँ तो भी करणीमाता का अपना स्थान राजस्थान की गाथाओं में मिलता है। करणी माता ने अपने जीवनकाल में कई राजपूत राजाओं के हित की बात की। इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो देशनोक का करणी माता मंदिर बीकानेर के राजा गंगासिंह ने बनवाया था। संगमरमर पर की गई नक्काशी और आकर्षित करती आकृतियों के अलावा चाँदी के दरवाजे मंदिर की शोभा और भी बढ़ा देते हैं। वैसे बीकानेर के बसने से पहले भी करणी माता को इतिहास ने अपने पन्नों पर स्थान दिया है।

1453 में राव जोधा ने अजमेर, मेड़ता और मंडोर पर चढ़ाई करने से पूर्व करणी माता से आशीर्वाद लेने की बात सामने आती है। इसके बाद 1457 में राव जोधा ने जोधपुर के एक किले की नींव भी करणी माता से ही रखवाई थी। बात यहीं नहीं खत्म होती राजनीति और एकता की बात भी करणी माता की कथाओं के माध्यम से जानने को मिलती है। उन दिनों भाटी और राठौड़ राजवंशों के संबंध कुछ ठीक नहीं थे। ऐसे में राव जोधा के पाँचवें पुत्र राव बीका का विवाह पुंगल के भाटी राजा राव शेखा की पुत्री रंगकंवर से करवाकर करणी माता ने दो राज्यों को मित्र बना दिया। पश्चात 1485 में राव बीका के आग्रह पर बीकानेर के किले की नींव भी करणी माता ने ही रखी।

इसके अलावा इतिहास के किसी खजाने में यह जानकारी भी मिलती है कि जैसलमेर के राजा ने भी करणी माता को अपने महल में आदर दिया था। बात चाहे जो भी हो, किंवदंती चाहे कुछ भी कहे, इतिहास की पंक्तियों में जो भी जानकारी मिले यह तो साफ जाहिर है कि इस शक्ति को राजस्थान ही नहीं बल्कि हर आस्थावान व्यक्ति नमन करता है।

हिन्दू धर्म की पांच प्रमुख सतियां"

हिन्दू धर्म की पांच प्रमुख सतियां"

-इतिहास में अमिट रहेंगी पांच पत्नियां-


स्त्री का पतिव्रता होना आज के युग में दुर्लभ हो चला है। एक ही पति या पत्नी धर्म का पालन करना हिन्दू धर्म के कर्तव्यों में शामिल है। यूं तो भारत में हजारों ऐसी महिलाएं हुई हैं जिनकी पतिव्रता पालन की मिसाल दी जाती है, लेकिन उनमें से भी कुछ ऐसी हैं जो इतिहास का अमिट हिस्सा बन चुकी हैं।

हिंदू इतिहास अनुसार इस संसार में पांच सती हुई है, जो क्रमश: इस प्रकार है 1.अनुसूया (ऋषि अत्रि की पत्नी), 2.द्रौपदी (पांडवों की पत्नी), 3.सुलक्षणा (रावण पुत्र मेघनाद की पत्नी), 4.सावित्री (जिन्होंने यमराज से अपना पति वापस ले लिया था), 5.मंदोदरी (रावण की पत्नी)।

1. अनुसूया : पतिव्रता देवियों में अनुसूया का स्थान सबसे ऊंचा है। वे अत्रि-ऋषि की पत्‍‌नी थीं। एक बार सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा में यह विवाद छिड़ा कि सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता कौन है? अंत में तय यही हुआ कि अत्रि पत्‍‌नी अनुसूया ही सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता हैं। इस बात की परीक्षा लेने के लिए अत्रि जब बहार गए थे तब त्रिदेव अनुसूया के आश्रम में ब्राह्मण के भेष में भिक्षा मांगने लगे और अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे। तब अनुसूया ने अपने सतीत्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था।

2. द्रौपदी : द्रौपदी को कौन नहीं जानता। पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी को सती के साथ ही पांच कुवांरी कन्याओं में भी शामिल किया जाता है। द्रौपदी के पिता पांचाल नरेश राजा ध्रुपद थे। एक प्रतियोगिता के दौरान अर्जुन ने द्रौपदी को जीत लिया था।

पांडव द्रौपदी को साथ लेकर माता कुंती के पास पहुंचे और द्वार से ही अर्जुन ने पुकार कर अपनी माता से कहा, 'माते! आज हम लोग आपके लिए एक अद्भुत भिक्षा लेकर आए हैं।' इस पर कुंती ने भीतर से ही कहा, 'पुत्रों! तुम लोग आपस में मिल-बांट उसका उपभोग कर लो।' बाद में यह ज्ञात होने पर कि भिक्षा वधू के रूप में हैं, कुंती को अत्यन्त दुख हुआ किन्तु माता के वचनों को सत्य सिद्ध करने के लिए द्रौपदी ने पांचों पांडवों को पति के रूप में स्वीकार कर लिया।

3.सुलक्षणा : रावण के पुत्र मेघनाद (इंद्रजीत) की पत्नी सुलक्षणा को पंच सती में शामिल किया गया है।

4.सावित्री : महाभारत अनुसार सावित्री राजर्षि अश्वपति की पुत्री थी। उनके पति का नाम सत्यवान था जो वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे। सावित्री के पति सत्यवान की असमय मृत्यु के बाद, सावित्री ने अपनी तपस्या के बल पर सत्यवान को पुनर्जीवित कर लिया था। इनके नाम से वट सावित्री नामक व्रत प्रचलित है जो महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं। यह व्रत गृहस्थ जीवन के मुख्य आधार पति-पत्नी को दीर्घायु, पुत्र, सौभाग्य, धन समृद्धि से भरता है।

5. मंदोदरी : मंदोदरी रामायण के पात्र, लंकापति रावण की पत्नी थी। हेमा अप्सरा से उत्पन्न रावण की पटरानी जो मेघनाद की माता तथा मयासुर की कन्या थी। रावण को सदा अच्छी सलाह देती थी और कहा जाता है कि अपने पति के मनोरंजनार्थ इसी ने शतरंज के खेल का प्रारंभ किया था। इसकी गणना भी पंचकन्याओं में है। सिंघलदीप की राजकन्या और एक मातृका का भी नाम मंदोदरी था।

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