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शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

गाय को माता क्यों कहा जाता है

गाय " जिसे हमारे धर्म (हिन्दू) में माता का दर्जा प्राप्त है। अब माता क्यों कहा जाता है ये सबको पता है।
भारत कि गौरवशाली परंपरा में गाय का स्थान सबसे ऊँचा और अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा है। गाय माता की महिमा पर महाभारत में एक कथा आती है। यह कथा रघुकुल के राजा नहुष और महर्षि च्यवन
की है, जिसे भीष्म पितामह मे महाराजा युधिष्ठिर को सुनाया था।

महर्षि च्यवन जलकल्प करनें के लिए जल में समाधि लगाये बैठे थे। एक दिंन मछुआरों ने उसी स्थान पर मछलियाँ पकड़ने के लिए जाल फेंका। जाल में मछलियों के साथ महर्षि च्यवन भी समाधि लगाये खिंचे चले आयें, उनको देखकर मछुआरों ने उनसे माफी मांगी। और उन्होने कहा की ये सब गलती से हो गया। तब महर्षि च्यवन ने कहा " यदि ये मछलियाँ जिएँगी तो मै भी जीवन धारण करुँगा अन्यथा नहीं। तब ये बात वहाँ के राजा नहुष के पास पहुची, राजा नहुष वहा अपने मंत्रीमण्डल के साथ तत्काल पहुचे और कहा

" अर्धं राज्यं च मूल्यं नाहार्मि पार्थिव।
सदृशं दीयतां मूल्यमृषिभिः सह चिंत्यताम।।

अनर्घेया महाराजा द्विजा वर्णेषु चित्तमाः ।
गावश्चय पुरुषव्याघ्र गौर्मूल्यं परिकल्प्यतम्।।

हे पार्थिव आपका आधा या संपूर्ण राज्य भी मेरा मूल्य नहीं दे सकता। अतः आप
ऋषियो से विचार कर मेरा उचित मूल्य दीजिए। तब राजा नहुष ने ऋषियो से पुछा तब ऋषियों ने राजा बताया कि गौ माता का कोई मूल्य नहीं है अतः आप गौदान करके महर्षि को खुश कर दीजिए। राजा ने ऐसा ही किया और तब महर्षि च्यवन ने कहा

" उत्तिष्ठाम्येष राजेंद्र सम्यक् क्रीतोSस्मि तेSनघ।
गोभिस्तुल्यं न पश्यामि धनं किंचिदिहाच्युत। ।

हे राजन अब मैं उठता हूँ। आपने ने मेरा उचित मूल्य देकर मुझे खरीद लिया है। क्योंकि इस संसार मे गाय से बढ़कर कोई और धन नहीं है। भारत में वैदिक काल से ही गाय को माता के समान समझा जाता रहा। गाय कि रक्षा करना, पोषण करना एवं पुजा करना भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा । वेदो मे कहा गया है कि पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों का आधार भी गाय को माना जाता है।


टेग व सेयर करना याद रहे,,,

दहेज़ की लालसा - स्वाति (सरू )जैसलमेरिया


दहेज़ के दानव का तांडव नर्तन आज चारों और हुंकार भरता सा नज़र आ रहा है. समाचार पत्रों के पृष्ठ नित्य बहुओं के जलाकर मारने, कुएँ में धकेले जाने, कमरे में पंखे से लटककर मरने व मारने, विष का प्रयोग कर मारने आदि समाचार लगभग आम से बनते चले जा रहे हैं. कई बार मन-मस्तिष्क में एक प्रश्न कौंधता है - क्या नारी होना इतना बड़ा अपराध है? हमारी भारतीय संस्कृति में सर्वत्र यह उद्घोष किया गया है, कि "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता रमते हैं. तो फिर ऐसा क्यों हो रहा है? कई बार सोचना पड़ता है कि क्या इस देश में किसी कन्या को जन्म लेने का अधिकार नही? क्या उसे दहेज़ के दानव के मुख का ग्रास बारबार बनना पड़ेगा? विवाह के मंडप में बैठनेवाली हर कन्या की धन के अभाव से बिलखती माँ हर भारतीय नवयुवक और उनके माता-पिता से सिर्फ और सिर्फ यही प्रश्न कर रही है कि क्या किसी गरीब माता-पिता की बेटी कभी सुख से न जी पायेगी? क्या उसे नित्य दहेज़ के कारण घुट-घुट कर जीना पड़ेगा? क्या हमारे यहाँ नवदुर्गा पूजन, माँ सरस्वती आरा
धन, माँ लक्ष्मी पूजन, मंदिरों में पूजन, मस्जिदों में अजान इबादत, गिरिजाघरों में उपासना आदि मात्र दिखावा बनकर रह जायेंगें? आज भारतवर्ष के हर कोने से यही प्रश्न प्रत्येक धर्मं और जाति के धन के अभाव से त्रस्त गरीब माता-पिता हर धर्म, हर जाति के संपन्न परिवारों से पूछ रहे हैं. दहेज़ के पीछे कई बार यह कारण भी दीखता है कि शायद नवयुवकों में आत्म सम्मान की भावना समाप्त हो चली है कि मै किसी के घर भिखारी बनकर नही, बल्कि वर बनकर क्यों न जाऊं, कन्या को भीख में नही बल्कि अपनी सहधर्मिणी बनाकर क्यों न लाऊं ? अगर इस देश में रहनेवाला हर नवयुवक यह प्रण कर ले कि मुझे भिखारी बनकर दहेज़ का लोभी नही बनना है बल्कि आत्म सम्मानी बनकर हीं विवाह की वेदी पर बैठना है, हर नवयुवती भी यह प्रण कर ले कि दहेज़ मांगने वाले भिखारी के साथ विवाह हीं नही करना है, समाज के हर व्यक्ति शपथ लें लें कि दहेज़ लेने वाले का सामाजिक जातिगत और धर्मगत बहिष्कार किया जाएगा तो यह समस्या शीघ्र हीं समाप्त हो सकती है. मात्र कानून या कुछ श्रीमंत लोगों के भरोसे यह समस्या कभी नही सुलझ सकती. विद्यालयों, विश्वविद्यालयों में दहेज़ विरोधी पाठ अनिवार्य रूप से पढ़ाएं जाएँ. दहेज़ लेने वालों को चुनाव लड़ने, सरकारी नौकरियां पाने, कारपारेट जगत की नौकरियां पाने आदि आर्थिक लाभों से वंचित कर दिया जाए, व्यापार जगत में ऐसे लोगों से लेन-देन न किया जाए तो यह समस्या त्वरित गति से सुलझ सकती है. हर समस्या का चिंतन अगर समाज के हर वर्ग, हर जाति, हर धर्म के लोग विस्तार से करें और उसे कड़े क़दमों से दूर करने का प्रयास करें तो दहेज़ की दानव रूपी समस्या भी एक दिन निश्चित रूप से दम तोडती नज़र आयेगी. इसके लिए चाहिए सिर्फ और सिर्फ " एक सार्थक चिंतन और पूरे भारत के लोगों का एक सुद्रढ़ प्रयास"

लेखिका - स्वाति (सरू )जैसलमेरिया

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