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रविवार, 9 दिसंबर 2012

जब ये बुराई से बाज़ नहीं आता तो मैं अच्छाई से क्यूँ बाज़ आऊं!!!

एक बार दयानंद स्वामी अपने कुछ
दोस्तों के साथ दरिया के किनारे बेठे थे,
उनकी नज़र एक बिच्छू पर पड़ी जो पानी में
डूब रहा था. दयानंद स्वामी ने उसे डूबने से
बचाने के लिए पकड़ा तो उसने डंक मार
दिया. कुछ देर बाद वो दोबारा पानी में
जा गिरा , इस बार फिर दयानंद
स्वामी उसे बचने के लिए आगे बढे, पर उसने
फिर डंक मार दिया . चार बार
ऐसा ही हुआ, तब एक दोस्त से रहा न
गया तो उसने पूछा दयानंद आपका ये काम
हमारी समझ के बाहर है, ये डंक मार रहा है
और आप इसे बचने से बाज़ नहीं आते. उन्होंने
बहुत तकलीफ में मुस्कुराते हुए कहा कि जब ये
बुराई से बाज़ नहीं आता तो मैं अच्छाई से
क्यूँ बाज़ आऊं!!!

मनुष्य का कर्म ही है की प्राणीयोँ के साथ प्रेम से रहे।

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

VICKS नाम की दवा अमेरिका में बनाना और बेचना दोनों जुर्म है!

VICKS नाम की दवा अमेरिका में बनाना और बेचना दोनों जुर्म है! अगर किसी डॉक्टर ने किसी को VICKS की prescription लिख दी तो उस डॉक्टर को 14 साल की जेल हो जाती है, उसकी डिग्री छीन ली जाती है | क्यूंकि विक्स जहर है, एवं ये आपको दमा, अस्थमा, ब्रोंकिअल अस्थमा कर सकता है | इसीलिए दुनिया भर में WHO और वैज्ञानिकों ने इसे जहर घोषित किया | और ये जहर भारत में सबसे ज्यादा बिकता है विज्ञापनों की मदद से | लेकिन कानून के हिसाब से किसी दवा का विज्ञापन टीवी पे नही दिया जा सकता! लेकिन पैसे के ताकत से, घूसखोरी से ये सब होता है | राजीव भाई आगे बताते है कि विक्स बहुत ज्यादा महंगी मिलती है उदहारण के तौर पे 25 ग्राम 40 रुपिया की, मतलब 1 किलो विक्स की कीमत 1600 रुपिया है | विक्स पेट्रोलियम जेल्ली से बनता है जिसकी कीमत 60 -70 रुपिया किलो है और विक्स की बिक्री में प्रोक्टर एंड गम्ब्ले कंपनी को 20000 % से ज्यादा का मुनाफा है | ये मुनाफा आप की जेब से लूटा जा रहा है और सरकार इस घोटाले में शामिल है | सरकार ने लाइसेन्स दे रखा है, आँखे बंद कर रखी है और कंपनी देश को लूट रही है!
मेरा आप सब से अनुरोध है कि इस दवा को ना खरीदें और इसके बारे में दुसरो को भी बताएं! मैं आपका आभारी रहूँगा!
जय हिंद-जय भारत !!!

क्या यह सच नहीं है?....... महात्मा गांधी ने कहा था “हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए।

क्या यह सच नहीं है?.......


महात्मा गांधी ने कहा था “हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए।” भगतसिंह को फांसी की सजा सुनाये जाने पर कहा “भगतसिंह की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो रही है, वहीं इसका परिणाम गुण्डागर्दी का पतन है । फांसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 31 मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आये” ।
शहीद जतिनदास के पार्थिव शरीर पर आगरा में गांधी जी ने फूल चढ़ाने से मना कर दिया था । पण्डित नेहरू ने चन्द्रशेखर आजाद से वार्तालाप के समय क्रान्तिकारियों को फासिस्ट कहा था । याद रहे पं० नेहरू ने डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (राष्ट्रपति) को सरदार पटेल के दाह संस्कार में जाने से रोका था लेकिन वे नहीं माने और वहां गए । परन्तु पं० नेहरू उनके दाह संस्कार पर नहीं गए । यह थी पं० नेहरू की मानवता या दुष्टता । जबकि पटेल हमारे देश के गृहमन्त्री ही नहीं, बल्कि उपप्रधानमन्त्री भी थे । (इण्डिया टुडे अप्रैल 2008) अर्थात् क्रांतिकारियों को फांसी देना गांधी जी की नजरों में हिंसा नहीं थी । सन् 1937 में नेता जी के मुकाबले कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए लड़ रहे पट्टाभि सीतारमैया के लिए गांधी जी ने कहा - यदि वे हार जायेंगे तो वह राजनीति छोड़ देंगे। और वे हारे। क्या गांधी जी ने राजनीति छोड़ी ? दूसरे विश्वयुद्ध में गांधी जी ने अंग्रेजों का बिना किसी शर्त के साथ देने का वचन दिया तो क्या युद्ध में हिंसा हो रही थी या मिठाइयां बंट रही थीं ? क्या महात्मा जी वास्तव में अहिंसावादी तथा सत्यवादी थे ? क्या गांधी जी ने अपने असहयोग के हथियार का प्रयोग सन् 1937 में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में नहीं अपने कांग्रेस अध्यक्ष नेता जी के विरुद्ध किया और उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया ? शहीद उधमसिंह द्वारा माईकल उडवायर की हत्या करने पर गांधी जी ने इन्हें पागल कहा । नीरद चौधरी ने उचित लिखा है - मोहनदास कर्मचन्द गांधी दुनिया का सबसे बड़ा सफल पाखण्डी था । ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली ने कहा था “भारत के नेताओं के साथ समझौता हो चुका है कि जब कभी सुभाषचन्द्र गिरफ्तार होंगे, उन्हें ब्रिटेन को सौंपना होगा ।” (पंडित नेहरू द्वारा लिखे गये अंग्रेजी के मूलपत्र की नकल उपलब्ध है) । पंजाब केसरी - भारत के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश मनोज मुखर्जी ने बयान दिया कि “प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इंग्लैंड के प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था कि आपका युद्ध अपराधी सुभाषचन्द्र बोस रूस में शरण लिए है, आप उचित कार्रवाई करें।” क्या यह भी सच नहीं है कि स्वामी ज्योर्तिदेव जो वास्तव में नेता जी सुभाष ही थे, की निर्मम हत्या श्रीमती गांधी ने मध्यप्रदेश के श्योपुर गाँव में दिनांक 21 मई 1977 को गुप्त तरीके से वहाँ के कांग्रेसियों के हाथों नहीं करवाई? (पाठकों को चौकने की आवश्यकता नहीं, ऐसी एक लिखित रिपोर्ट उपलब्ध है) गांधी जी की शिक्षा थी कि यदि कोई एक गाल पर मारे तो उसे दूसरा गाल आगे कर देना चाहिए । तो क्या पाकिस्तान ने जब कारगिल पर आक्रमण किया तो हमें लेह क्षेत्र को पाकिस्तान के सामने कर देना चाहिए था ? क्या बम्बई हमले (26 नवम्बर 2008) के संदर्भ में हमें इसी नीति का पालन करना चाहिए ? ‘यदि कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा भी आगे कर देना चाहिए।’ ऐसी नीति से न कभी कोई आजादी प्राप्त कर सकता है और न ही आजादी की रक्षा हो सकती है । यह हमने 1962 में चीन के साथ देख लिया था । आज हम बात तो गांधीगिरी की करते हैं लेकिन फिर क्यों सेना व अर्धसैनिक बलों पर देश का आधा बजट खर्च कर रहे हैं ? ऐसी दोगली बातें कोई दोगला व्यक्ति ही कर सकता है । गांधी जी को गांधी इसलिए कहा गया कि इनके पूर्वज इत्र का व्यापार करते थे । जिसे गुजरात में गंध कहा जाता है । इसी गंध से इनका उपनाम गांधी पड़ा । गांधी ने धोती-गाती में नंगा रहने की आदत बिहार के लोगों को देखकर सीखी थी।

गांधी ने पं० टैगोर को गुरुदेव की उपाधि दी तो बदले में टैगोर ने गांधी को महात्मा की उपाधि दे डाली और इसी प्रकार गांधी ने नेहरू को देश का प्रधानमन्त्री बनाया तो नेहरू ने गांधी को देश का बापू ही बना डाला अर्थात् बणिये ने ब्राह्मण को पूरी दक्षिणा प्रदान कर दी । श्री एल. आर. बाली उचित लिखते हैं, “खिलाफत आन्दोलन के गांधी के केवल दो ही उद्देश्य थे, पहला ब्राह्मण बनिया एकता, दूसरा कांग्रेस पर कब्जा।” और यह सत्य प्रमाणित हुआ । चौ० छोटूराम ऐसी तीव्र बुद्धि जाट थे जिसने गांधी के उद्देश्यों को तुरन्त भांप लिया और खिलाफल आन्दोलन के विरोध में सन् 1920 में कांग्रेस से त्याग पत्र दे दिया । पुस्तक ‘क्या गांधी महात्मा थे’ में उचित लिखा है कि गांधी को जीवित रखने में अंग्रेजों को अधिक फायदा था, इसलिए दिखावे के लिए उन्हें अंग्रेज जेल भेज देते थे और जेल में उन्हें दूध, फल, किताबें, समाचार पत्र, टाईपिस्ट व चिकित्सक, यहां तक कि शहद और सचिव तक उपलब्ध करवाया जाता था । जबकि आज देश के आजाद होने के इतने वर्षों बाद भी एक मध्यम वर्गीय व्यक्ति को अपने घर में भी ये चीजें उपलब्ध नहीं हैं । गरीब और जेल की बात तो छोड़ो । सरोजिनी नायडू ने ठीक कहा था, “गांधी जी को गरीब बनाये रखने के लिए कांग्रेस को अधिक धन खर्च करना पड़ता था क्योंकि बिरला हाऊस के पास कालोनियों में नकली भंगी बनाकर रखने पड़ते थे तथा यात्रा के समय रेल के डिब्बों में भी उनके साथ बनावटी भंगी बैठाने पड़ते थे जो बहुत खर्चीला था ।” प्रसिद्ध इतिहासकार अर्नल्ड ताईबी लिखते हैं - गांधी अपने देश से अधिक अंग्रेजों के लिए हितकर था । इतिहासकार आर.सी. मजूमदार अपने इतिहास “हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमैंट इन इण्डिया” में लिखते हैं - भारत की स्वतन्त्रता का सेहरा गांधी के सिर पर बांधना सच्चाई से मजाक होगा । यह कहना कि उसने सत्याग्रह व चरखे से आजादी प्राप्त की, मूर्खता होगी। गांधी कट्टर ब्राह्मणवादी सनातनी हिन्दू बनिया था । इस बारे में सोवियत इनसाईक्लापेडिया में लिखा है गांधी प्रतिक्रियावादी है जो बणिया जाति से सम्बन्ध रखता है । उसने जनता से विश्वासघात किया और साम्राज्यवादियों की मदद की । साधु-संन्यासियों की नकल की । उसने नेतागिरी के तौर पर भारत की आजादी और अंग्रेजों से शत्रुता का दिखावा किया । धार्मिक पक्षपातों को खूब इस्तेमाल किया । गांधी जी ब्राह्मण और हिन्दूवाद को मानवता का सुन्दर फूल मानते थे । इसलिए वे जात-पांत के पक्षधर थे । लेकिन उसी के कट्टर ब्राह्मणवाद व हिन्दुत्व (आर.एस.एस.) ने उसकी हत्या की और मिठाइयां बांटी । गांधी ने कांग्रेस पर कब्जा होने पर सच्चे और ईमानदार लोगों जैसे कि नेता जी सुभाष, राम मनोहर लोहिया तथा जयप्रकाश नारायण आदि को कांग्रेस से बाहर कर दिया । 15 राज्यों में से 12 राज्यों की कांग्रेस कमेटियों के समर्थन के बावजूद गांधी ने पटेल को प्रधानमन्त्री पद से दूर रखा, वरना यही गांधी जी सुभाष को ‘अपना बेटा’, जयप्रकाश नारायण को ‘लेनिन’, डॉ० लोहिया को ‘बुद्धिमान राजनीतिज्ञ’ तथा पटेल को ‘अपना दायां हाथ’ कहा करते थे । विख्यात पत्रकार जे.एन. साहनी लिखते हैं - नेहरू ने 1952 के लोकसभा चुनाव में अपनी पसंद के उम्मीदवार चुने थे और उनको वफादार कुत्ते कहा करते थे ।
डॉ. लोहिया नेहरू के चरित्र का सटीक नक्शा पेश करते हैं -
नेहरू बहुरूपिया है । उसे रईसों और औरतों के बहकावे में आने की बुरी लत है । देखने में वे आकर्षक और उदार प्रतीत होते हैं । लेकिन अपने रिश्तेदारों, दोस्तों व अपने लोगों (ब्राह्मण) की स्वार्थसिद्धि के जितने तरीके उन्हें मालूम हैं, उतने इस देश में किसी को मालूम नहीं । वे अपने दुश्मन को बर्बाद करने के लिए किसी हद तक पीछा करते हैं । वह अपने लालच और अपनी कलह को दुर्बोध करने के लिए ऐसा जाल फैंकते हैं कि दूसरा उनको छू तक नहीं सकता ।
इस आदमी ने जाट कौम का इतना बड़ा नुकसान किया कि जाट समुदाय शायद ही कभी समझ पाए । हालांकि जाटों को मूर्ख बनाने के लिए उन्होंने कहा - दिल्ली और उसके चारों तरफ ऐसी बहादुर जाट कौम बसती है जो जब चाहे दिल्ली पर कब्जा कर सकती है । हम जाट खुश हो गए और उसने ऐसा कहकर दूसरों को चेता दिया तथा ऐसा बन्दोबस्त कर दिया कि दिल्ली पर जाटों का कभी दखल ही न हो पाए । जाट कौम कृपया विचार करे कि इसी नीति के तहत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों को सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश के साथ बांध कर शोषण किया जा रहा है ताकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों का आधिपत्य बना रहे । इसलिए आज तक उत्तर प्रदेश का विभाजन नहीं होने दिया । बनारस के ब्राह्मणवाद की दादागिरी देखिए कि एक बार नेता जी सुभाष को वहां के एक कुएं से नीचे उतार दिया गया और ऊपर से खाना और पानी दिया । (इसी प्रकार एक बार भगवान देव आचार्य उर्फ स्वामी ओमानन्द को जाट होने के कारण बनारस में एक मन्दिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया था) लेकिन गांधी ने इन बातों पर कभी कोई टिप्पणी नहीं की । इसी प्रकार स्वामी दयानन्द भी उस समय के महान् समाज सुधारक होते हुए भी गांधी जी ने उनकी प्रशंसा में कभी भी एक शब्द तक नहीं कहा । स्वयं गांधी के पौत्र राजमोहन ने कहा - देश का विभाजन ब्राह्मण प्रधानता के कारण हुआ । यदि गांधी ब्राह्मण होते तो उनकी हत्या कभी नहीं होती । नहेरू के चरित्र के बारे में अधिक जानना है तो इन्हीं के निजी सचिव रहे श्री ओ. एम. मथैई की पुस्तक को पढ़ना चाहिए जिसमें उनका पूरा भण्डा फोड़ किया है । इसी प्रकार गांधी जी के बारे में जानने के लिए उन्हीं के निजी सचिव रहे श्री निर्मल कुमार बोस की पुस्तक माई डेज विद गांधी तथा विद्वान् वेद महता की पुस्तक महात्मा गांधी और उसके भगत पढ़ना अनिवार्य है । संक्षेप में इतना ही लिखना काफी होगा कि ये लोग (ब्राह्मण बनिये) एक ही थैली के चट्टे-बट्टे थे जो राष्ट्रवादी कम और जातिवादी अधिक थे । इसलिए लंडन के शीर्ष अखबार ‘ट्रुथ’ ने लिखा था - गांधी पूंजीपतियों, राजा-महाराजाओं के संत हैं लेकिन पवित्र आत्मा होने का ढोंग करते हैं । यह सच है क्योंकि बिड़ला, बजाज तथा सिंघानिया आदि सभी पूंजीपति उनके मित्र थे जिन्हें वे बड़ी चतुराई से ट्रस्टी कहते थे । बोस ने नेहरू के बारे में कहा - नहेरू अवसरवादी है, वह दूसरों का बाद में सोचते हैं, पहले अपना हित निश्चित करते हैं । गांधी ने नहेरू के बारे में कहा कहा था - नेहरू मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है । कौन किसकी कमजोरी थी, पाठक विचार करें ।

क्या यह सच नहीं है कि थलसेना के पूर्व अध्यक्ष जनरल वी.पी. मलिक (हिन्दू पंजाबी खत्री) ने अपनी पुस्तक From Surprise to Victory में कारगिल युद्ध का दोष पं० वाजपेयी में ढूंढा है और दिनांक 28-3-07 को गृह मंत्रालय के उपसचिव एस.के. मल्होत्रा जी कह रहे हैं कि मंत्रालय के पास नेता जी सुभाष का देश की आजादी के संघर्ष से सम्बन्धित कोई रिकार्ड नहीं ? लगता है सरकार ने ऐसा काफी रिकार्ड/फाइलें जला दी हैं ? मेरा जाटों व सभी किसानों से अनुरोध है कि वे दिल्ली में अपनी जमीन का रिकार्ड संभालकर रखें चाहे वह जमीन अब उन्हीं के अधिकार में न रही हो, क्योंकि ये लोग इस रिकार्ड को समाप्त कर देंगे और एक दिन कहेंगे कि यह जमीन इन जाटों व किसानों की नहीं थी । इस बात का अर्थ समझें, क्योंकि यह सभी जगह जो सरकार व कम्पनियों आदि ने खरीद ली है एक न एक दिन हमारी लीज पर होनी हैं । जैसे कि दिल्ली में इण्डिया गेट । हमारे राष्ट्रपिता गांधी जी तथा पं० नेहरू जी के प्रति हमारे देशवासियों में कितनी लोकप्रियता है और हम कितने भारतवासी उनको हृदय से चाहते हैं ? इस लोकप्रियता को जानने के लिए देश की प्रसिद्ध मासिक अंग्रेजी पत्रिका इण्डिया टुडे ने देश में एक सर्वे करवाया जिसके नतीजे अप्रैल 2008 के अंक में छपे हैं, जो इस प्रकार हैं ।

(किसको कितने प्रतिशत वोट मिले)
1. शहीद भगत सिंह - 37 प्रतिशत
2. नेता जी सुभाष चन्द्र बोस - 27 प्रतिशत
3. महात्मा गांधी - 13 प्रतिशत
4. सरदार पटेल - 8 प्रतिशत
5. पण्डित नेहरू - 2 प्रतिशत
इसलिए आज आवश्यक हो गया है कि गांधी जी की जगह भगतसिंह को राष्ट्रपिता घोषित किया जाए और नोटों पर गांधी की जगह भगतसिंह के फोटो छपें । जब प्रजातन्त्र में पांच साल बाद राष्ट्रपति बदला जा सकता है तो 50 साल बाद राष्ट्रपिता क्यों नहीं ? पुस्तक - देशनायक, लेखक - ब्रह्मप्रकाश, भारतीय इतिहास - एक अध्ययन, हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ काश्मीर, हिस्ट्री ऑफ सिक्ख- हिन्दुईज्म, पंचायती इतिहास, लोहपुरुष सरदार पटेल, क्या गांधी महात्मा थे ? आदि-आदि)

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