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बुधवार, 23 जनवरी 2013

रखैल व्यवस्था का आधुनिक रूप "Live in Relationship"

रखैल व्यवस्था का आधुनिक रूप "Live in Relationship"
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दोस्तों,
 हो सकता है की "Live in Relationship" के बारे में आप लोगों के विचार अलग-अलग हो किन्तु मेरी मने तो ये "रखैल व्यवस्था" का ही आधुनिक रूप है.
आज कल के युवा पीढ़ी इस गैर सामाजिक संबंधों के प्रति अत्याधिक आकर्षित दिखाई दे रही है. उनका तर्क होता है कि विवाह के बंधन में बंधने से पहले एक-दूसरे को अच्छी तरह से समझ लिया जाए तो वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बैठा पाना आसान हो जाता है. समाज द्वारा महिला और पुरुष को विवाह से पहले साथ रहने की इजाजत न होने के बावजूद युवा लिव इन में जाने से बिलकुल नहीं हिचकिचाते.कुछ लोग मानना है कि यह प्रथा भारतीय समाज में प्राचीन समय से "रखैल" के स्वरूप में व्याप्त है किन्तु वो यह भूल जाते हैं, कि दोनों मे कितना अन्तर है। साधारण भाषा में रखैल को रक्खा जाता था जिसमे पुरुष की इच्छा सर्वोपरि होती थी स्त्री मजबूरी बस या जर्बजस्ती मे रहती थी । उसे पत्नी की हैंसियत भी नही मिलती थी। स्त्री स्वेच्छा से किसी की रखैल बनना स्वीकार नही करती थी। दूसरे तरफ "लिव इन" मे स्त्री स्वेच्छा से रहना स्वीकार करती है और उसे वो विचारों की आधुनिकता और स्वतन्त्रता कहती है। युवा पीढी भट्क गयी है, या नही ये तो हम नही कह सकते परन्तु जो भी इन सम्बन्धों को सहमति देता है, उसकी सोच अवश्य भारतीय संस्कृत के विपरीत है।
आप " लिव इन रिलेशनशिप " की वकालत करने वालों से यह प्रश्न पुछ सकतें है की:

१. क्या "लिव इन रिलेशनशिप " विवाह की गारंटी लेता है?
आज कल लिव इन के टूटने और प्रेमी के धोखा देने के बाद सुसाइड जैसी घटनाये दिन प्रतिदिन बढती जा रही है, लिव इन के टूटने के बाद दुनियां के तानों से बचने के लिए स्त्री के पास "आत्महत्या" के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता.
भारतीय संस्कृति की गरिमा दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है, जिस भारत में लोग रिश्ते निभाने एवंम मूल्यों को मानने में अपने स्वार्थ की बलि दे देते हैं। जहां नदियों को माँ माना जाता हो, जहां पति को परमेश्वर का दर्जा दिया जाता हो,उसी भारत मे आज विवाह जैसी संस्था को हमारी युवा पीढी अस्वीकार करने लगी है, और लिव इन जैसी रिश्ते को स्वीकार करने लगी है ।उसके पीछे तर्क ये है, कि इसमे कोई बन्धन नही है । जब तक मन मिले तब तक रहो वरना अपना-अपना रास्ता नापो।आज हम अधिकार तो चाहते हैं। लेकिन कर्त्तव्य नही निभाना चाहते हैं। रिश्ते तो चाहते हैं।
परतुं जिम्मेदारियाँ नहीं चाहते इसलिए हम पश्चिमीसभ्यता के अधांनुकरण के फलस्वरूप लिव इन जैसे रिश्ते को स्वीकारने लगे हैं।"लिव इन रिलेशनशिप" की आड़ में वासनात्रप्ती की खुले आम स्वीकारोक्ती है। पति-पत्नी के रिश्ते से विभिन्न रिश्तों का स्रृजन होता है, वहीं लिव इन रिश्ते अपना ही स्थायित्व नही जानते।
यह कहना कदापि गलत नहीं होगा कि महिलाओं के शोषण का नया दौर शुरू चुका है और अपनी आंखों पर आधुनिकता की पट्टी बांधे युवक/युवतियां इस बात को सोचना तो दूर, सुनना भी पसंद नहीं करते, और इस प्रकार के अमर्यादित रिश्तों को बेहिच अपना रहे है।

क्या भुख ना लगे ऐसी कोई दवाई आती है?

एक श्रीमान जी के घर पर खाने का प्रोग्राम चल रहा था.

कोई खास बडा प्रोग्राम नही था, बस नजदीक के रिश्तेदारो और दोस्तो को बुलाया हुआ था.

होगेँ लगभग चालीस-पचास महमान.

यजमान सबको आग्रह करके खाना परोस रहे थे और महमान भी अपनी-अपनी थाली पकवानो से छला-छल कर रहे थे.

उसी समय यजमान का ध्यान एक औरत पर गया,
वह अपने बच्चे को धीमी आवाज मेँ धमका रही थी.

यजमान उस औरत के पास जाकर कारण पुछा, तो उस औरत ने कहा,
‘देखो ना भाईसाहब ! यह कुछ खाता ही नही.

रोज ऐसा ही करता है.
मैँ तो इसको खिलाने से तंग आ गई हु.

अब आप ही बताओ, इसको धमकाऊ नही तो क्या करु ?’
‘अरे ! इसमेँ धमकाने की कौनसी बात? यजमान नेँ उस औरत को बोला !’.

फिर सामने खडे एक महमान की तरफ इशारा करके बोले,

‘वह मेरे दोस्त डाक्टर मेहता है, और वह आपको ऐसी दवाई देगेँ कि आपका लडका तुरंत खाना खाने लग जाएगा.

मेरा लडका भी पहले ऐसा ही करता था.
Dr. मेहता साहब की दवाई के बाद वो अब टाईम पर खाना खा लेता है.

वह औरत डाक्टर मेहता के पास जाकर बोली: ‘इस जगह आपको पुछने की माफी माँगती हु,

डाकटर साहब ! क्या मेँ मेरे लडके को आपके क्लिनिक पर ला सकती हु ? इसको बिल्कुल भुख नही लगती !’

डा. मेहता :‘ जरुर ला सकती है आप !

मैँ खाना खाने के बाद आपको मेरा कार्ड आपको दुंगा.

कार्ड पर लिखे नम्बर पर आप फोन करके जरुर आ सकते हो.’

उसी समय एक दस साल की एक कामवाली लकडी,जो सब के ग्लास मेँ पानी भर रही थी, वह यह बात ध्यान से सुन रही थी.

डाक्टर खाना खाकर पेन्ट्री मेँ हाथ धोने गये तब जग मेँ पानी भरने के बहाने वो लडकी भी डाक्टर के पास चली गई.

डाक्टर को अकेला देखकर उनको बोला : ‘डाक्टर साहब ! मैँ आपके साथ एक बात कर सकती हु ?’

‘बोल ना बेटा ! तु क्यो बात नही कर सकती? एक क्या दो बाते कर ना !’ एकदम भावनात्मक रुप से डाक्टर ने जवाब दिया.

लडकी : ‘डाक्टर साहब ! मेरा एक छोटा भाई है.
मैँ, मेरी माँ और मेरा भाई हम तीन ही लोग है घर मेँ.

मेरे बापु गुजर गये है.
माँ रोज बीमार ही रहती है.
मैँ काम करती हु लेकिन इस से हमारा गुजारा नही चल पाता.

इसिलिए मैँ यह बात करना चाहती हु कि क्या भुख ना लगे ऐसी कोई दवाई आती है?
 
अगर ऐसी दवाई आती है तो मुझे खरीदनी है !’

डाक्टर यह बात सुनकर स्तब्ध रह गये.

दोस्तो, इस वार्ता को पढकर सिर्फ एक ही ख्याल आता है कि कितने लोग भुखे पेट सोते है.. :(

दोस्तो कही भी कभी भी कोई भी का भुखा मिले तो उसको पैसे देने के बजाय कुछ खाने की चीज जरुर दे..

"पैसे कि कीमत तो कोई भी लगा सकता है लेकिन किसी की भुख की नही

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