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बुधवार, 23 जनवरी 2013

लाइफबॉय - मतलब जानवरों को नहलाने का साबुन

राजीव दीक्षित Rajiv Dixit
निचे दिए गए लिंक पे जाके विडियो देखे :
http://www.youtube.com/watch?v=V0uuhUvq6f8
दुनिया में तीन तरह के साबुन होते हैं | एक होते हैं- बाथ सोप-मतलब नहाने का साबुन, दुसरे होते हैं-टॉयलेट सोप - मतलब हाथ धोने का साबुन और एक होता है - कार्बोलिक सोप - मतलब जानवरों को नहलाने का साबुन | और ये लाइफबॉय साबुन, कार्बोलिक साबुन है, ये कंपनी वाले कहते हैं, मैं नहीं कह रहा हूँ | और यूरोप के देशों में जिस लाइफबॉय से कुत्ते नहाते हैं, बिल्लियाँ नहाती हैं, घोड़े नहाते हैं उसी लाइफ बॉय से भारत के लोग रगड़-रगड़ के नहाते हैं | प्रचार देख के ऐसा हमारा दिमाग ख़राब हुआ है कि अकेले भारत में ये लाइफबॉय साबुन एक साल में 7 करोड़ बिक जाता है और तो और कुछ दिन पहले तक लाइफबॉय साबुन बिक रहा था "Family Doctors Welfare Association of India द्वारा प्रमाणित" के नाम से | ये कौन सा एसोसिएसन है ? ये कब बना ? और कब इन्होने लाइफबॉय को प्रमाण-पत्र दे दिया थे ? लेकिन रोज इनका विज्ञापन था ये और हम सब ख़ामोशी के साथ बैठे हुए इसको देख रहे हैं कि कैसे देश के साथ भयंकर गद्दारी और बेईमानी का काम चल रहा है |

और लाइफबॉय के प्रचार पर ध्यान दीजियेगा, उनका कहना है कि "ये मैल में छिपे कीटाणुओं को धो डालता है" ध्यान दीजियेगा, मैल को धोता है, कीटाणुओं को नहीं धोता और कीटाणुओं को धोता है, मारता नहीं | सबसे घटिया साबुन भारत के बाजार में बिक रहा है और हम इस्तेमाल कर रहे हैं | इसके घटिया होने का प्रमाण क्या है ? साबुन में केमिकल जितना ज्यादा, साबुन उतना ही घटिया | मैं आपको इसका प्रमाण देता हूँ, आप लाइफबॉय से नहाइए, नहाने के बाद जब शरीर सुख जाये तो नाख़ून से शरीर पर लाइन खिचिये, सफ़ेद रंग की लाइन खिंच जाएगी, ये लाइन कैसे खिंची ? लाइफबॉय के केमिकल कचरे ने आपके त्वचा के प्राकृतिक तेल को पू री तरह से सुखा दिया, तो त्वचा एकदम रुखी-सुखी हो गयी और बार-बार जब आप इस प्रयो ग को करेंगे तो एक दिन आपको एक् जीमा होना ही है, सोरैसिस होना ही है, अन्य चमड़े के रोग होने ही वाले हैं | एक दिन मैंने इस कंपनी के बैलेंस शीट में से इस लाइफबॉय का लागत खर्च (Cost of Production) निकाला तो वो है 2 रुपया और भारत के बाजार में बिकता है 18 -20 रुपया में, अब आप इसका लाभ प्रतिशत निकाल लीजिये |
राजीव दीक्षित Rajiv Dixit

रखैल व्यवस्था का आधुनिक रूप "Live in Relationship"

रखैल व्यवस्था का आधुनिक रूप "Live in Relationship"
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दोस्तों,
 हो सकता है की "Live in Relationship" के बारे में आप लोगों के विचार अलग-अलग हो किन्तु मेरी मने तो ये "रखैल व्यवस्था" का ही आधुनिक रूप है.
आज कल के युवा पीढ़ी इस गैर सामाजिक संबंधों के प्रति अत्याधिक आकर्षित दिखाई दे रही है. उनका तर्क होता है कि विवाह के बंधन में बंधने से पहले एक-दूसरे को अच्छी तरह से समझ लिया जाए तो वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बैठा पाना आसान हो जाता है. समाज द्वारा महिला और पुरुष को विवाह से पहले साथ रहने की इजाजत न होने के बावजूद युवा लिव इन में जाने से बिलकुल नहीं हिचकिचाते.कुछ लोग मानना है कि यह प्रथा भारतीय समाज में प्राचीन समय से "रखैल" के स्वरूप में व्याप्त है किन्तु वो यह भूल जाते हैं, कि दोनों मे कितना अन्तर है। साधारण भाषा में रखैल को रक्खा जाता था जिसमे पुरुष की इच्छा सर्वोपरि होती थी स्त्री मजबूरी बस या जर्बजस्ती मे रहती थी । उसे पत्नी की हैंसियत भी नही मिलती थी। स्त्री स्वेच्छा से किसी की रखैल बनना स्वीकार नही करती थी। दूसरे तरफ "लिव इन" मे स्त्री स्वेच्छा से रहना स्वीकार करती है और उसे वो विचारों की आधुनिकता और स्वतन्त्रता कहती है। युवा पीढी भट्क गयी है, या नही ये तो हम नही कह सकते परन्तु जो भी इन सम्बन्धों को सहमति देता है, उसकी सोच अवश्य भारतीय संस्कृत के विपरीत है।
आप " लिव इन रिलेशनशिप " की वकालत करने वालों से यह प्रश्न पुछ सकतें है की:

१. क्या "लिव इन रिलेशनशिप " विवाह की गारंटी लेता है?
आज कल लिव इन के टूटने और प्रेमी के धोखा देने के बाद सुसाइड जैसी घटनाये दिन प्रतिदिन बढती जा रही है, लिव इन के टूटने के बाद दुनियां के तानों से बचने के लिए स्त्री के पास "आत्महत्या" के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता.
भारतीय संस्कृति की गरिमा दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है, जिस भारत में लोग रिश्ते निभाने एवंम मूल्यों को मानने में अपने स्वार्थ की बलि दे देते हैं। जहां नदियों को माँ माना जाता हो, जहां पति को परमेश्वर का दर्जा दिया जाता हो,उसी भारत मे आज विवाह जैसी संस्था को हमारी युवा पीढी अस्वीकार करने लगी है, और लिव इन जैसी रिश्ते को स्वीकार करने लगी है ।उसके पीछे तर्क ये है, कि इसमे कोई बन्धन नही है । जब तक मन मिले तब तक रहो वरना अपना-अपना रास्ता नापो।आज हम अधिकार तो चाहते हैं। लेकिन कर्त्तव्य नही निभाना चाहते हैं। रिश्ते तो चाहते हैं।
परतुं जिम्मेदारियाँ नहीं चाहते इसलिए हम पश्चिमीसभ्यता के अधांनुकरण के फलस्वरूप लिव इन जैसे रिश्ते को स्वीकारने लगे हैं।"लिव इन रिलेशनशिप" की आड़ में वासनात्रप्ती की खुले आम स्वीकारोक्ती है। पति-पत्नी के रिश्ते से विभिन्न रिश्तों का स्रृजन होता है, वहीं लिव इन रिश्ते अपना ही स्थायित्व नही जानते।
यह कहना कदापि गलत नहीं होगा कि महिलाओं के शोषण का नया दौर शुरू चुका है और अपनी आंखों पर आधुनिकता की पट्टी बांधे युवक/युवतियां इस बात को सोचना तो दूर, सुनना भी पसंद नहीं करते, और इस प्रकार के अमर्यादित रिश्तों को बेहिच अपना रहे है।

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