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रविवार, 17 मार्च 2013

हकलाने की आयुर्वेदिक चिकित्सा

हकलाने की आयुर्वेदिक चिकित्सा

हकलाकर बोलना और अटक-अटक कर बोलना, दोनों का मतलब एक ही है - वाक् शक्ति में गड़बड़ी, जिसमे बोलनेवाला, बोले हुए शब्दों को दोहराता है या उन्हें लंबा करके बोलता है। हकलाने वाला या अटक कर बोलने वाला, बोलते-बोलते रुक सकता है या कुछेक शब्दांशों की कुछ आवाज़ ही नहीं निकाल पाता।

हकलाने और अटककर बोलने की बीमारी अधिकतर बच्चों में पाई जाती है और हकलाने वाले बच्चों के माता पिता को बच्चों की यह बीमारी असीमित परेशानी में डाल देती है, और बच्चों को निराशा से भर देती है और फिर, आजकल के मशीनी युग में बच्चों में यह बीमारी इतनी गहन भावनाएं पैदा करती है, कि विचारों और अनुभवों को शब्दों में परवर्तित करना मुश्किल हो जाता है।

हकलाने के लक्षण और संकेत
• किसी शब्द, वाक्य, पंक्ति को शुरू करने में समस्या, कुछ शब्दों को बोलने से पहले हिचकिचाहट महसूस करना, किसी शब्द, आवाज़ या शब्दांश को दोहराना, वाक्य तेज़ गति से निकलना इत्यादि।
• बोलते समय तेज़ गति से आँखें भीचना, होठों में कंपकंपाहट, पैरों को ज़मीन पर थपथपाना, जबड़े का हिलना इत्यादि।
• कुछ आवाज़ निकालने से पहले 'उहं' जैसा विस्मयबोधक शब्द का बार बार इस्तेमाल करना।

हकलाहट के आयुर्वेदिक उपचार

• गुनगुने ब्राह्मी तेल से सिर पर 30 से 40 मिनट तक मालिश करें। उसके बाद गुनगुने पानी से नहा लें। इससे स्मरण शक्ति में सुधार होता है और अटककर और हकला कर बोलने का दोष मिट जाता है ।
• एक चम्मच सारस्वत चूर्ण और 1/2 चम्मच ब्राह्मी किरुथम शहद में मिला दें। इस मिश्रण को चावल के गोलों में मिलाकर मुँह में रखकर अच्छी तरह से चबाने से हकलाहट में लाभ मिलता है। बेहतर होगा अगर आप इसका सेवन नाश्ते के रूप में चटनी जैसा करें।नाश्ते के बाद 30 मिलीलीटर सारस्वतारिष्ट लेने से हकलाहट में लाभ मिलेगा।
• गाय का घी हकलाहट को दूर करने का एक उम्दा उपचार माना जाता है।
• कुछ कोथमीर के बीज और पाम कैंडी वल्लाराई के पत्तों में रखकर चबाने से हकलाहट दूर हो जाती है। वल्लाराई के पत्तों को धूप में सुखाकर पाउडर बना लें और इस पाउडर का नियमित रूप से सेवन करने से भी हकलाहट दूर हो जाती है।
• नियमित रूप से एक आँवले का सेवन करने से हकलाहट कम होती है । सुबह सवेरे एक चम्मच सूखे आँवले का पाउडर और एक चम्मच देसी घी का सेवन करने से भी हकलाहट में लाभ मिलता है।
• 12 बादाम पूरी रात पानी में सोख कर रखें, और सुबह उनके छिलके उतार कर पीस लें, और उन्हें 30 ग्राम मक्खन के साथ सेवन करने से भी हकलाहट में लाभ मिलता है।
• हकलाहट दूर करने के लिए 10 बादाम और 10 काली मिर्च मिश्री के साथ पीस कर दस दिन तक सेवन करें।
• सोने से पहले छुआरों का सेवन करें पर कम से कम 2 घंटों तक पानी न पीयें। इससे आवाज़ भी साफ़ हो जायेगी और हकलाहट भी दूर हो जायेगी।
• सूर्य की तरफ पीठ करके एक आइना पकड़कर और मुँह खोलकर ऐसी स्थिति में बैठें ताकि सूर्य की रोशनी आईने से प्रतिम्बिबित होकर आपके खुले मुँह में प्रवेश करे। गहरी साँस लें और धीरे धीरे अपना मुँह खोलें, और आईने को अपनी जीभ पर प्रतिम्बिबित करें। जीभ आपके मुँह के निचले भाग की तरफ होनी चाहिए अगर आपने सही तरह से निर्देशों का पालन किया है। अपनी जीभ को ढीला छोड़ दें, उसे कभी भी कड़ा न करें, क्योंकि ऐसा करने से हकलाहट बनी रहेगी। स्पष्ट रूप से 'क्या हो' शब्द का बार बार उच्चारण करें। आपकी जीभ को सुचारू रूप से कार्यशील करने के लिए यह एक उत्तम उपाय माना जाता है।

अगर आपके बच्चे की हकलाने की आदत 6 महीने से ज़्यादा और 5 वर्ष की उम्र से ज़्यादा तक जारी रहती है तो तुरंत किसी विशेषज्ञ की सलाह लें।

Appendicitis (आंत्रपुच्छ प्रदाह ) अपेंडिक्स चिकित्सा में आयुर्वेद

Appendicitis (आंत्रपुच्छ प्रदाह ) अपेंडिक्स चिकित्सा में आयुर्वेद

इसके मुख्य कारण होता है लम्बे समय तक कब्ज़ का रहना , पेट में पलने वाला परजीवी व आँतों के रोग इत्यादि से अपेंडिक्स की नाली में रुकावट आ जाता है |

भोजन में रेशे का न होना या कमी भी इस समस्या के लिए जिम्मेदार होता है |यदि भोजन का कोई अंश आंत के शुरू के हिस्से में अटक कर सतह में पहुंच जाता है, तो वह अपेंडिक्स के वाल्व को बंद कर देता है। इसका परिणाम यह होता है कि सामान्यतः अपेंडिक्स से जो एक विशेष प्रकार का स्राव होता है, उसके निकलने का मार्ग अवरुद्ध होने से वह बाहर नहीं निकल पाता और अंदर ही सड़ने लगता है, जिसके कारण अपेंडिक्स में सूजन आ जाती है। इस तरह जब अपेंडिक्स संक्रमण ग्रस्त हो जाता है,तो अपेंडिसाइटिस रोग कहलाता है। अपेंडिसाइटिस का यह रोग शाकाहारियों की अपेक्षा मांसाहारियों को अधिक होता है और उन पर उसका असर भी अधिक तीव्र और भयंकर होता है। अमरूद, नींबू, संतरा आदि फलों के बीज, या किसी अन्य बाहरी वस्तु का अपेंडिक्स में फंस या रुक जाना, संक्रमण पैदा करने वाले जीवाणुओं का उस जगह पर पहुंच जाना, अपेंडिक्स में कठोरता पैदा हो जाना, क्षय रोग में जीवाणुओं द्वारा अपेंडिक्स का संक्रमित हो कर उसमें ट्यूबर सृदश आकृतियां बन जाना, अपेंडिक्स में कैंसर या अन्य प्रकार की रसौली उत्पन्न हो जाना, अपेंडिक्स के स्थान पर चोट आदि लग जाना, पुराना कब्ज संकोचक, गरिष्ठ और दोषयुक्त आहार का सेवन करना, अपेंडिक्स सिकुड़ जाना, उसमें रुकावट उत्पन्न हो जाना अपेंडिसाइटस के कारण होते हैं।

पेट के दायें भाग में नाभि से हटकर लगभग 6 सेमी की दूरी तक दर्द होता है। यह दर्द कभी कम तो कभी तेज होने लगता है यहां तक कि हिलने डुलने से दर्द और तेज हो जाता है।

आंत्रपुच्छ यानी अपेंडिक्स की चिकित्सा आयुर्वेद में औषधी द्वारा भी की जा सकती है। मगर आपातकालीन में तो शल्य (सर्जिकल) चिकित्सा ही सही है।

भोजन तथा परहेज :

पथ्य : पूरा आराम करना, फलों का रस, पर्लवाली, साबूदाना और दूसरे तरल पदार्थ खायें। रोटी न खायें, दस्त की दवा लेना, खटाई, ज्यादा तेल से बने चटपटे मसालेदार चीजें न खायें।

बनतुलसी :बनतुलसी को पीसकर लुगदी बना लें किसी लोहे की करछुल पर गर्म करें (भूनना नहीं है) उस पर थोड़ा-सा नमक छिड़क दें और दर्द वाले स्थान पर इस लुगदी की टिकिया बनाकर 48 घंटे में 3 बार बदल कर बांधें। रोगी को इस अवधि में बिस्तर पर आराम करना चाहिए। इस चिकित्सा से 48 घंटे में रोग दूर हो जाता है। इसके पत्ते दर्द कम करते हैं। सूजन कम करते हैं। सूजन व दर्द वाले स्थान पर इसका लेप करने से फायदा होता है।

गाजर :आंत्रपुच्छ प्रदाह में गाजर का रस पीना फायदेमंद है। काली गाजर सबसे ज्यादा फायदेमंद है।

दूध :दूध को एक बार उबालकर ठंडा कर पीने से लाभ होता है।

टमाटर :लाल टमाटर में सेंधानमक और अदरक डालकर भोजन के पहले खाने से फायदा होता है।

इमली :इमली के बीजों का अन्दरूनी सफेद गर्भ (गिरी) को निकालकर पीस लें। बने लेप को मलने और लगाने से सूजन में और पेट फूलने में आराम आता है।

गुग्गुल :गुग्गुल लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से 1 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम गुड़ के साथ खाने से फायदा होता है।

सिनुआर :सिनुआर के पत्तों का रस 10 से 20 ग्राम सुबह-शाम खाने से आंतों का दर्द दूर होता है। साथ ही सिनुआर, करंज, नीम और धतूरे के पत्तों को एक साथ पीसकर हल्का गर्म-गर्म जहां दर्द हो वहां बांधने से लाभ होता है।

नागदन्ती :नागदन्ती की जड़ की छाल 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम निर्गुण्डी (सिनुआर) और करंज के साथ लेने से आंतों के दर्द में लाभ होता है। यह आंत में तेज दर्द हो या बाहर से दर्द हो हर जगह प्रयोग किया जा सकता है। यह न्यूमोनिया, फेफड़े का दर्द, अंडकोष की सूजन, यकृत की सूजन तथा फोड़ा आदि में फायदेमंद है।

रानीकूल (मुनियारा) :रानीकूल की जड़ का चूर्ण 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम लेने से लाभ होता है। इससे आंत से सम्बन्धी दूसरे रोगों में भी फायदा होता है। इसका पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती का चूर्ण) फेफड़े की जलन में भी फायदेमंद होता है।

हुरहुर :पेट में जिस स्थान पर दर्द महसूस हो उस स्थान पर पीले फूलों वाली हुरहुर के सिर्फ पत्तों को पीसकर लेप करने से दर्द मिट जाता है।

राई :पेट के निचले भाग में दायीं ओर राई पीसकर लेप करने से दर्द दूर होता है। मगर ध्यान रहे कि एक घंटे से ज्यादा देर तक लेप लगा नहीं रहना चाहिए। वरना छाले भी पड़ सकते हैं.

पालक का साग :आंत से सम्बन्धित रोगों में पालक का साग खाना फायदेमंद है।

चौलाई :चौलाई का साग लेकर पीस लें और उसका लेप करें। इससे शांति मिलेगी और पीड़ा दूर होगी।

बड़ी लोणा :बड़ी लोणा का साग पीसकर आंत की सूजन वाले स्थान पर लेप लगायें या उसे बांधें। इससे दर्द कम होता है और सूजन दूर होती है।

चांगेरी :चांगेरी के साग को पीसकर लेप बना लें और उसे पेट के दर्द वाले हिस्से में बांधें। इससे लाभ होगा।

चूका साग :चूका साग सिर्फ खाने और दर्द वाले स्थान पर ऊपर से लेप करने व बांधने से ही बहुत लाभ होता है।

एलो वेरा आधारित जड़ी बूटी के माध्यम से रोगी का इलाज संभव है जो की निचे दी जा रही है :-

1 Aloevera Gel - भोजन के कणों को हटता है और निर्वाशिकरण करके शरीर के पाचन प्रणाली व पौष्टिकता प्रदान करता है .

2 Pomesteen Power -सुजन विरोधी, पीड़ा निवारक है .

3 Bee Propolis - प्राकृतिक एंटी बायोटिक
4 Garlic Thyme - एंटी-बायोटिक, मांसपेशी को राहत पहुंचाती है |

अनेक रोगों का मूल कारण: विरुद्ध आहार

अनेक रोगों का मूल कारण: विरुद्ध आहार

जो पदार्थ रस-रक्तादी धातुओं के विरुद्ध गुणधर्मवाले व वात-पित्त-कफ इन त्रिदोषों को प्रकुपित करनेवाले हैं, उनके सेवन से रोगों की उत्पत्ति होती है | इन पदार्थों में कुछ परस्पर गुणविरुद्ध, कुछ संयोगविरुद्ध, कुछ संस्कारविरुद्ध और कुछ देश, काल, मात्रा, स्वभाव आदि से विरुद्ध होते हैं | जैसे-दूध के साथ मूँग, उड़द, चना आदि सभी दालें, सभी प्रकार के खट्टे व मीठे फल, गाजर, शककंद, आलू, मूली जैसे कंदमूल, तेल, गुड़, शहद, दही, नारियल, लहसुन, कमलनाल, सभी नमकयुक्त व अम्लीय प्रदार्थ संयोगविरुध हैं | दूध व इनका सेवन एक साथ नहीं करना चाहिए | इनके बीच कम-से-कम २ घंटे का अंतर अवश्य रखें | ऐसे ही दही के साथ उड़द, गुड़, काली मिर्च, केला व शहद; शहद के साथ गुड़; घी के साथ तेल नहीं खाना चाहिए |
शहद, घी, तेल व पानी इन चार द्रव्यों में से दो अथवा तीन द्रव्यों को समभाग मिलाकर खाना हानिकारक हैं | गर्म व ठंडे पदार्थों को एक साथ खाने से जठराग्नि व पाचनक्रिया मंद हो जाती है | दही व शहद को गर्म करने से वे विकृत बन जाते हैं |
दूध को विकृत कर बनाया गया छेना, पनीर आदि व खमीरीकृत प्रदार्थ (जैसे-डोसा, इडली, खमण) स्वभाव से ही विरुद्ध हैं अर्थात इनके सेवन से लाभ की जगह हानि ही होती है | रासायनिक खाद व इंजेकशन द्वारा उगाये गये आनाज व सब्जियाँ तथा रसायनों द्वारा पकाये गये फल भी स्वभावविरुद्ध हैं |
हेमंत व शिशिर इन शीत ऋतुओं में ठंडे, रुखे-सूखे, वातवर्धक पदार्थों का सेवन, अल्प आहार तथा वसंत-ग्रीष्म-शरद इन उषण ऋतुओं में उषण पदार्थं व दही का सेवन कालविरुद्ध है | मरुभूमि में रुक्ष, उषण, तीक्षण पदार्थों (अधिक मिर्च, गर्म मसाले आदि) व समुद्रतटीय प्रदेशों में चिकने-ठंडे पदार्थों का सेवन, क्षारयुक्त भूमि के जल का सेवन देशविरुद्ध है |
अधिक परिश्रम करनेवाले व्यक्तियों के लिए रुखे-सूखे, वातवर्धक पदार्थ व कम भोजन तथा बैठे-बैठे काम करनेवाले व्यक्तियों के लिए चिकने, मीठे, कफवर्धक पदार्थ व अधिक भोजन अवस्थाविरुद्ध है |
अधकच्चा, अधिक पका हुआ, जला हुआ, बार-बार गर्म किया गया, उच्च तापमान पर पकाया गया (जैसे-ओवन में बना व फास्टफूड), अति शीत तापमान में रखा गया (जैसे-फिर्ज में रखे पदार्थ) भोजन पाकविरुद्ध है |
मल, मूत्र का त्याग किये बिना, भूख के बिना अथवा बहुत अधिक भूख लगने पर भोजन करना क्रमविरुद्ध है |
जो आहार मनोनुकूल न हो वह ह्रदयविरुद्ध है क्योंकि अग्नि प्रदीप्त होने पर भी आहार मनोनुकूल न हो तो सम्यक पाचन नहीं होता |
इस प्रकार के विरोधी आहार के सेवन से बल, बुद्धि, वीर्य व आयु का नाश, नपुंसकता, अंधत्व, पागलपन, भगंदर, त्वचाविकार, पेट के रोग, सूजन, बवासीर, अम्लपित्त (एसीडिटी), सफेद दाग, ज्ञानेन्द्रियों में विकृति व अषटोमहागद अथार्त आठ प्रकार की असाध्य व्याधियाँ उत्पन होती हैं | विरुद्ध अन्न का सेवन मृत्यु का भी कारण हो सकता है |
अत: देश, काल, उम्र, प्रकृति, संस्कार, मात्रा आदि का विचार तथा पथ्य-अपथ्य का विवेक करके नित्य पथ्यकर पदार्थों का ही सेवन करें | अज्ञानवश विरुद्ध आहार के सेवन से हानि हो गयी हो तो वमन-विरेचनादी पंचकर्म से शारीर की शुद्धी एंव अन्य शास्त्रोक्त उपचार करने चाहिए | आपरेशन व अंग्रेजी दवाएँ रोगों को जड़-मूल से नहीं निकालते | अपना संयम और नि:सवार्थ एंव जानकार वैध की देख-रेख में किया गया पंचकर्म विशेष लाभ देता है | इससे रोग तो मिटते ही हैं, १०-१४ वर्ष आयुष्य भी बढ़ सकता है |
सबका हित चाहनेवाले पूज्य बापूजी हमें सावधान करते हैं: " नासमझी के कारण कुछ लोग दूध में सोडा या कोल्डड्रिंक डालकर पीते हैं | यह स्वाद की गुलामी आगे चलकर उन्हें कितनी भारी पड़ती है, इसका वर्णन करके विस्तार करने की जगह यहाँ नहीं है | विरुद्ध आहार कितनी बिमारियों का जनक है, उन्हें पता नहीं |
खीर के साथ नमकवाला भोजन, खिचड़ी के साथ आइसक्रीम, मिल्कशेक - ये सब विरुद्ध आहार हैं | इनसे पाशचात्य जगत के बाल, युवा, वृद्ध सभी बहुत सारी बिमारियों के शिकार बन रहे हैं | अत: हे बुद्धिमानो ! खट्टे-खारे के साथ भूलकर भी दूध की चीज न खायें- न खिलायें | "

ऋतु-परिवर्तन विशेष
शीत व उष्ण ऋतुओं के बीच में आनेवाली वसंत ऋतु में न अति शीत, न अति उष्ण पदार्थों का सेवन करना चाहिए | सर्दियों के मेवे, पाक, दही, खजूर, नारियल, गुड आदि छोड़कर अब ज्वार की धानी, भुने चने, पुराने जों, मूँग, तिल का तेल, परवल, सूरन, सहिजन, सूआ, बथुआ, मेथी, कोमल बैंगन, ताजी नरम मूली तथा अदरक का सेवन करना चाहिए |
सुबह अनुकूल हो ऐसी किसी प्रकार का व्यायाम जरुर करें | वसंत में प्रकुपित होनेवाला कफ इससे पिघलता है | प्रणायाम विशेषत: सूर्यभेदी प्रणायाम (बायाँ नथुना बंद करके दाहिने से गहरा श्वास लेकर एक मिनट रोक दें फिर बायें से छोडें) व सूर्यनमस्कार कफ के शमन का उत्तम उपाय है | इन दिनों दिन में सोना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है |
कफजन्य रोगों में कफ सुखाने के लिए दवाइयों का उपयोग न करें | खानपान में उचित परिवर्तन, प्रणायाम, उपवास, तुलसी-पत्र व गोमूत्र के सेवन एवं सूर्येस्नान से कफ का शमन होता है |

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