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गुरुवार, 6 जून 2013

पंचामृत का अर्थ

पंचामृत

पंचामृत का अर्थ है कि, पाँच तरह के अमृत का मिश्रण। यह मिश्रण दुग्ध, दही, घृत (घी), चीनी और मधु मिलाकर बनाया गया एक पेय पदार्थ होता है, जो हव्य-पूजा की सामग्री बनता है, और जिसका प्रसाद के रूप में विशिष्ट स्थान है। इसी से भगवान का अभिषेक भी किया जाता है। भारतीय सभ्यता में पंचामृत का जो महत्त्व बताया गया है, वह यह है कि, श्रृद्धापूर्वक पंचामृत का पान करने वाले व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके पान से मानव जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है तथा मोक्ष की प्राप्ति करता है।
सामग्री का महत्त्व

पंचामृत निर्माण में प्रयोग की जाने वाली सामग्री किसी न किसी रूप में आत्मोन्नति का संदेश देती है-

दूध - दूध पंचामृत का प्रथम भाग है। यह शुद्धता का प्रतीक है, अर्थात् हमारा जीवन दूध की तरह निष्कलंक होना चाहिए।
दही - यह दूध की तरह सफ़ेद होता है। लेकिन इसकी विशेषता यह है कि, यह दूसरों को अपने जैसा बनाता है। दही चढ़ाने का अर्थ यही है कि, पहले हम निष्कलंक हो सद्गुण अपनाएँ और दूसरों को भी अपने जैसा बनाएँ।
घी - स्निग्धता और स्नेह का प्रतिक घी है। स्नेह और प्रेम हमारे जीवन में स्नेह की तरह काम करता है। सभी से हमारे स्नेहयुक्त संबंध हों, यही भावना है।
शहद - शहद मीठा होने के साथ ही शक्तिशाली भी होता है। निर्बल व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता, तन और मन से शक्तिशाली व्यक्ति ही सफलता पा सकता है। शहद इसका ही प्रतीक है।
शक्कर - मिठास शक्कर का प्रमुख गुण है। शक्कर चढ़ाने का अर्थ है कि, जीवन में मिठास व्याप्त हो। मिठास प्रिय शब्द बोलने से आती है। प्रिय बोलना सभी को अच्छा लगता है, और इससे मधुर व्यवहार बनता है। हमारे जीवन में शुभ रहे, स्वयं अच्छे बनें और दूसरों को भी अच्छा बनाएँ।
पंचामृत से मिलता है देवों का आशीर्वाद
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गोरस, पुष्प रस और इक्षु रस अर्थात गाय का दूध, दही और घी; पुष्पों से निकला शहद रूपी रस तथा रसों में श्रेष्ठ इक्षु रस अर्थात गन्ने के रस से बनी शक्कर- इन पांच पदार्थों का मिश्रण पंचामृत कहलाता है। इसमें दूध की मात्र का आधा दही, दही की मात्र का आधा घी, घी की मात्र का आधा शहद और शहद की मात्र की आधी शक्कर मिला कर पंचामृत तैयार किया जाता है। ये पदार्थ हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की पूजा में आवश्यक रूप से प्रयोग में लाये जाते हैं। इससे प्रधान देवता के साथ-साथ सभी का अभिषेक किया जाता है। पंचामृत स्नान के बगैर किसी भी पूजा में आवाहित देवता का स्नान पूर्ण नहीं होता। यह सबसे अधिक मात्र में शिव के अभिषेक में प्रयोग में लाया जाता है।

वेदों में पंचामृत बनाने में प्रयोग किए गए पदार्थो का अलग-अलग महत्व है, जिससे अभिषेक करके सांसारिक प्राणियों को संतति, ज्ञान, सुख, संपत्ति व कीर्ति की प्राप्ति होती है। इसमें मिश्रित पदार्थो द्वारा अभिषेक करने से ईष्ट देव वरदान देने के लिए विवश हो जाते हैं। इसके मिश्रित दुग्ध से योग्य व धर्मात्मा पुत्र और सद्गुणशीला विदुषी पुत्री, राजसुख, सामाजिक सम्मान, पद-प्रतिष्ठा व आरोग्य की प्राप्ति होती है। दही से उत्तम स्वास्थ्य, सुंदर स्वर-वाणी, शारीरिक सौंदर्य, सुख-शान्ति, पशुधन, वाहन और भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। घी से विपुल शक्ति, पारलौकिक ज्ञान, अचल सम्पति, सफल कारोबार व कमलासन लक्ष्मी की कृपा बरसती है। शहद का प्रयोग करने से ऋ ण से छुटकारा, दारिद्रय, कारागार व अकाल मृत्यु से मुक्ति, शत्रुओं पर विजय और बेरोजगारी से मुक्ति मिलती है। शक्कर से सुंदर पति-पत्नी, विवाह में आ रही रुकावट का दूर होना, प्रखर मस्तिष्क, दिल को छू लेने वाली आवाज और खोई हुई पद-प्रतिष्ठा मिलती है।
वेदानुसार ये सभी मानव के सफल जीवन का आधार हैं। इन्हीं पांच अमृत को मिला कर पंचामृत बनता है, जो विष्णु, शिव, सूर्य, दुर्गा व गणेश आदि को प्रिय है। इसका पान कराते ही देव स्नेहवश आशीर्वाद-वरदान देने हेतु विवश हो जाते हैं, जिसके फलस्वरूप प्राणी का जीवन सुखमय-सानंद बीतता है।

गुरुवार, 30 मई 2013

पथरी का आयुर्वेद में उपचार

पथरी का आयुर्वेद में उपचार

शरीर में अम्लता बढने से लवण जमा होने लगते है और जम कर पथरी बन जाते है . शुरुवात में कई दिनों तक मूत्र में जलन आदि होती है , जिस पर ध्यान ना देने से स्थिति बिगड़ जाती है .

धूप में व तेज गर्मी में काम करने से व घूमने से उष्ण प्रकृति के पदार्थों के अति सेवन से मूत्राशय पर गर्मी का प्रभाव हो जाता है, जिससे पेशाब में जलन होती है।

कभी-कभी जोर लगाने पर पेशाब होती है, पेशाब में भारी जलन होती है, ज्यादा जोर लगाने पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पेशाब होती है। इस व्याधि को आयुर्वेद में मूत्र कृच्छ कहा जाता है। इसका उपचार है-

उपचार : कलमी शोरा, बड़ी इलायची के दाने, मलाईरहित ठंडा दूध व पानी। कलमी शोरा व बड़ी इलायची के दाने महीन पीसकर दोनों चूर्ण समान मात्रा में लाकर मिलाकर शीशी में भर लें।एक भाग दूध व एक भाग ठंडा पानी मिलाकर फेंट लें, इसकी मात्रा 300 एमएल होनी चाहिए। एक चम्मच चूर्ण फांककर यह फेंटा हुआ दूध पी लें। यह पहली खुराक हुई। दूसरी खुराक दोपहर में व तीसरी खुराक शाम को लें।दो दिन तक यह प्रयोग करने से पेशाब की जलन दूर होती है व मुँह के छाले व पित्त सुधरता है। शीतकाल में दूध में कुनकुना पानी मिलाएँ।

- गोक्षुर के फलों का चूर्ण शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम दिया जाता है । महर्षि सुश्रुत के अनुसार सात दिन तक गौदुग्ध के साथ गोक्षुर पंचांग का सेवन कराने में पथरी टूट-टूट कर शरीर से बाहर चली जाती है । मूत्र के साथ यदि रक्त स्राव भी हो तो गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ पिलाते हैं ।

- गोमूत्र के सेवन से भी पथरी टूट कर निकल जाती है .

- मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों यथा प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब का अपने आप निकलना (युरीनरी इनकाण्टीनेन्स), नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन आदि में गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250 ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारी विकृतियाँ दूर होती हैं ।

- गिलास अनन्नास का रस, १ चम्मच मिश्री डालकर भोजन से पूर्व लेने से पिशाब खुलकर आता है और पिशाब सम्बन्धी अन्य समस्याए दूर होती है|

- खूब पानी पिए .

- कपालभाती प्राणायाम करें .

- हरी सब्जियां , टमाटर , काली चाय ,चॉकलेट , अंगूर , बीन्स , नमक , एंटासिड , विटामिन डी सप्लीमेंट , मांसाहार कम ले .

- रोजाना विटामिन बी-६ (कम से कम १० मि.ग्रा. ) और मैग्नेशियम ले .

- यवक्षार ( जौ की भस्म ) का सेवन करें .

- मूली और उसकी हरी पत्तियों के साथ सब्जी का सुबह सेवन करें .

- ६ ग्राम पपीते को जड़ को पीसकर ५० ग्राम पानी मिलकर २१ दिन तक प्रातः और सायं पीने से पथरी गल जाती है।

- पतंजलि का दिव्य वृक्कदोष हर क्वाथ १० ग्राम ले कर डेढ़ ग्लास पानी में उबाले .चौथाई शेष रह जाने पर सुबह खाली पेट और दोपहर के भोजन के ५-६ घंटे बाद ले .इसके साथ अश्मरिहर रस के सेवन से लाभ होगा . जिन्हें बार बार पथरी बनाने की प्रवृत्ति है उन्हें यह कुछ समय तक लेना चाहिए .

- मेहंदी की छाल को उबाल कर पीने से पथरी घुल जाती है .

- नारियल का पानी पीने से पथरी में फायदा होता है। पथरी होने पर नारियल का पानी पीना चाहिए।

- 15 दाने बडी इलायची के एक चम्मच, खरबूजे के बीज की गिरी और दो चम्मच मिश्री, एक कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम दो बार पीने से पथरी निकल जाती है।

- पका हुआ जामुन पथरी से निजात दिलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पथरी होने पर पका हुआ जामुन खाना चाहिए।

- बथुआ की सब्जी खाए .

- आंवला भी पथरी में बहुत फायदा करता है। आंवला का चूर्ण मूली के साथ खाने से मूत्राशय की पथरी निकल जाती है।

- जीरे और चीनी को समान मात्रा में पीसकर एक-एक चम्मच ठंडे पानी से रोज तीन बार लेने से लाभ होता है और पथरी निकल जाती है।

- सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे की पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है। आम के पत्ते छांव में सुखाकर बहुत बारीक पीस लें और आठ ग्राम रोज पानी के साथ लीजिए, फायदा होगा ।

- मिश्री, सौंफ, सूखा धनिया लेकर 50-50 ग्राम मात्रा में लेकर डेढ लीटर पानी में रात को भिगोकर रख दीजिए। अगली शाम को इनको पानी से छानकर पीस लीजिए और पानी में मिलाकर एक घोल बना लीजिए, इस घोल को पी‍जिए। पथरी निकल जाएगी।

- चाय, कॉफी व अन्य पेय पदार्थ जिसमें कैफीन पाया जाता है, उन पेय पदार्थों का सेवन बिलकुल मत कीजिए।

- तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।

- जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।

- बेल पत्थर को पर जरा सा पानी मिलाकर घिस लें, इसमें एक साबुत काली मिर्च डालकर सुबह काली मिर्च खाएं। दूसरे दिन काली मिर्च दो कर दें और तीसरे दिन तीन ऐसे सात काली मिर्च तक पहुंचे।आठवें दिन से काली मिर्च की संख्या घटानी शुरू कर दें और फिर एक तक आ जाएं। दो सप्ताह के इस प्रयोग से पथरी समाप्त हो जाती है। याद रखें एक बेल पत्थर दो से तीन दिन तक चलेगा।

शरीर को निरोगी बनाती है तुलसी::

शरीर को निरोगी बनाती है तुलसी::

विदेशी चिकित्सक इन दिनों भारतीय जड़ी बूटियों पर व्यापक अनुसंधान कर रहे हैं। अमरीका के मैस्साच्युसेट्स संस्थान सहित विश्व के अनेक शोध संस्थानों में जड़ी-बूटियों पर शोध कार्य चल रहे हैं। "वल्र्ड-एड्स" के अनुसार अमरीका के नेशनल कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट में कैंसर एवं एड्स के उपचार में कारगर भारतीय जड़ी-बूटियों को व्यापक पैमाने पर परखा जा रहा है। विशेष रू प से तुलसी में एड्स निवारक तत्वों की खोज जारी है। मानस रोगों के संदर्भ में भी इन पर परीक्षण चल रहे हैं। आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों पर पूरे विश्व का रूझान इनके दुष्प्रभाव मुक्त होने की विशेषता के कारण बढ़ता जा रहा है।

कैंसर में कारगर तुलसी
एक अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो गई है कि अब तुलसी के पत्तों से तैयार किए गए पेस्ट का इस्तेमाल कैंसर से पीडित रोगियों के इलाज में किया जा सकता है। दरअसल वैज्ञानिकों को "रेडिएशन-थैरेपी" में तुलसी के पेस्ट के जरिए विकिरण के प्रभाव को कम करने में सफलता हासिल हुई है। तुलसी में विकिरण के प्रभावों को शांत करने के गुण हैं। यह निष्कर्ष पिछले दस वर्षों के दौरान भारत में ही मणिपाल स्थित कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज में चूहों पर किए गए परीक्षणों के आधार पर निकाला गया। दस वर्षो की अवधि में हजारों चूहों पर परीक्षण किए गए।

दुष्प्रभाव नहीं
कैंसर के इलाज में रेडिएशन के प्रभाव को कम करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला "एम्मी फास्टिन" महंगा तो है ही, साथ ही इसके इस्तेमाल से लो- ब्लड प्रेशर और उल्टियां होने की समस्याएं भी देखी गई हैं। जबकि तुलसी के प्रयोग से ऎसे दुष्प्रभाव सामने नहीं आते।

संक्रामक रोगों से बचाती है
डॉ. के. वसु ने तुलसी को संक्रामक-रोगों जैसे यक्ष्मा, मलेरिया, कालाजार इत्यादि की चिकित्सा में बहुत उपयोगी बताया है।

पुदीना, तुलसी का मिश्रण
चूहों पर किए गए परीक्षणों के बाद यह साबित हुआ है कि पुदीना और तुलसी के मिश्रण के लगातार सेवन से कैंसर होने की आशंका कम हो जाती है। एक विश्वविद्यालय में लगभग बीस सप्ताह तक चूहों के दो अलग समूहों पर यह प्रयोग किया गया। दोनों समूह के चूहों पर रसायन का लेप किया गया। एक समूह को तुलसी और पुदीना का मिश्रण भी पिलाया गया। जिन चूहों की त्वचा पर सिर्फ रसायन का लेप किया गया था, उनके शरीर पर बड़े-बड़े फोडे निकल आए। जिन चूहों को तुलसी और पुदीना का मिश्रण पिलाया गया, उनमें ऎसा नहीं हुआ।

मच्छर नाशक
"बुलेटिन ऑफ बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया" में प्रकाशित एक शोध के अनुसार तुलसी के रस में मलेरिया बुखार पैदा करने वाले मच्छरों को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। वनस्पति वैज्ञानिक डॉ. जी.डी. नाडकर्णी का अध्ययन बतलाता है कि तुलसी के नियमित सेवन से हमारे शरीर में विद्युतीय-शक्ति का प्रवाह नियंत्रित होता है और व्यक्ति की जीवन अवधि में वृद्धि होती है। तभी तो भारत के लगभग हर घर के चौक में सदियों से तुलसी का स्थान रहा है। कहा जाता है कि इसके आसपास मच्छर नहीं होते।

सर्दी खांसी जुकाम का ईलाज::

सर्दी खांसी जुकाम का ईलाज::

• एक अच्छी दवाई खांसी जुखाम एलर्जी सर्दी आदि के लिए जिसे आप घर पर बना सकते है इसके लिए आपको चाहिए तुलसी के पत्ते, तना और बीज तीनो का कुल वजन 50 ग्राम इसके लिए आप तुलसी के ऊपर से तोड ले इसमें बीज तना और तुलसी के पत्ते तीनो आ जाएंगे इनको एक बरतन में डाल कर 500 मिलि पानी डाल ले और इसमें 100 ग्राम अदरक और 20 ग्राम काली मिर्च दोनो को पीस कर डाले और अच्छे से उबाल कर काढे और जब पानी 100 ग्राम रह जाए तो इसे छान कर किसी कांच की बोतल में डाल कर रखे इसमे थोडा सा शहद मिला कर आप इसके दो चम्मच ले सकते है दिन में 3 बार

• जुखाम के लिए 2 चम्मच अजवायन को तवे पर हल्का भूने और फ़िर उसे एक रूमाल या कपडे में बांध ले और पोटली बना ले......उस पोटली को नाक से सूंघे और सो जाए

• खांसी के लिए रोज दिन में 3 बार हल्के गर्म पानी में आधा चम्मच सैंधा नमक डाल कर गरारे(gargles) करे सुबह उठ कर दोपहर को और फ़िर रात को सोने से पहले..............एक चम्मच शहद में थोडी सी पीसी हुई काली मिर्च का पाऊडर डाल कर मिलाए और उसे चाटे...........अगर खासी ज्यादा आ रही हो तो 2 साबुत कालीमिर्च के दाने और थोडी सी मिश्री मुंह में रख कर चूसे आराम मिलेगा

• अगर दही खाते है तो उसे बंद करदे और रात को सोते समय दूध न पिए

• तुलसी, काली मिर्च और अदरक की चाय खांसी में सबसे बढि़या रहती हैं।

• हींग, त्रिफला, मुलहठी और मिश्री को नीबू के रस में मिलाकर लेने से खांसी कम करने में मदद मिलती है।

• पीपली, काली मिर्च, सौंठ और मुलहठी का चूर्ण बनाकर चौथाई चम्मच शहद के साथ लेना अच्छा रहता है

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