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रविवार, 8 दिसंबर 2013

जानिए भारत चीन से पीछे क्यों ??

जानिए भारत चीन से पीछे क्यों ??

दुनिया में सबसे ज्यादा भारत को ही लुटा ज़ा रहा है, भारत और चीन की तुलना देखिये की चीन तेजी से ऊपर क्यों ज़ा रहा है .....विदेशी चीन को नहीं लूट पाते है क्योकि.....

दुनिया में सबसे ज्यादा भारत को ही लुटा ज़ा रहा है, भारत और चीन की तुलना देखिये की चीन तेजी से ऊपर क्यों ज़ा रहा है .....विदेशी चीन को नहीं लूट पाते है क्योकि.....

१-भारत में अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार है, जब की चीन में भ्रष्ट लोगो के लिए मौत की सजा का कानून है और अभी अगस्त में २ बड़े अधिकारियो को फांसी दे दी गयी है.

२-भारत की सरकार कालाधन जमा करने वालो को बचाती है, जब की चीन की सरकार ने अभी स्वामी रामदेवजी के 4जून के अनशन से प्रभावित होकर विदेश में खता रखने वालो के लिए फांसी की सजा का प्राविधान किया है.

३-भारत में एक प्रभावी लोकपाल के लिए जनता को सड़क पर उतरना पद रहा है, वही चीन में भ्रष्टो के लिए फांसी का कानून रामबाण सिद्ध हो गया है, अब तो कालाधन रखने वाले भी इसी श्रेणी में आ गए है जो की स्वामी रामदेवजी के कारन हुआ.

४-भारत में हर मंत्रालय सिर्फ आयत पर जोर देता है जिससे की कालाधन बनाया ज़ा सके, चीन की सरकार सिर्फ निर्यात पर जोर देकर अकूत विदेशी मुद्रा कम रही है.आयात को काम करते ज़ा रहे है.

५-भारत में विदेशी कंपनी आती है तो सिर्फ आफीस खोलकर बाहर से सामान आयात करके भारत को बाजार बनाते है, निर्यात नहीं करते है जिससे भारत का ही पैसा बाहर ज़ा रहा है, जब की चीन में विदेशी कंपनी आती है, कारखाना लगाती है, चीनियों को रोजगार देती है,चीन का कच्चा माल प्रयोग करती है, सारा सामान चीन से बाहर निर्यात करके अकूत विदेशी मुद्रा चीन को मिलती है.

६-भारत में देशी कंपनियों को प्रताड़ित किया जाय है और उन्हें टैक्स और कानून के शिकंजे में फंसाकर विदेशी कंपनियों को खुश किया जाता है, जब की चीन में सरकार खुद देशी कंपनियों को बताती है किस प्रकार उत्पादन बढ़ाये और निर्यात बढ़ाये, इसके लिए उन्हें विदेशी कानूनों से भी बचाया जाता है. देशी कंपनियों को दुनिया भर की रियायत दी जाती है.

७-भारत में एक ही काम के लिए बीस टैक्स और बीस कानून हैं, चीन चीजे पारदर्शी और अपरिहार्य कानून और टैक्स है जो निर्यात में मदद करते है.

८-भारत में लालफीता शाही घुसखोरी का मुख्य कारन है, चीन में घुस खोरी की सजा फांसी है. हर मर्ज की एक दवा है. सही काम तुरंत होता है, सरकार बाधा के सख्त खिलाफ है.

९-भारत सरकार के ऊपर ३४ लाख करोड़ रुपये का कर्जा है, जब की चीन सरकार अकेले अमेरिका को ही ७५० करोड़ डालर का कर्जा दे रखा है, बाकि का कोई हिसाब नहीं है,

१०-भारत का ४०० लाख करोड़ रूपये का कालाधन ७० विदेशी बैंको में जमा है जो भारत के किसी काम नहीं आ रहा है, जबकि चीन की सरकार अन्दर ही अन्दर अपना कालाधन वापस ले लिया है और प्रक्रिया जोर से चालू है. अब तो कालाधन के खातेदरों केलिए भी फांसी की सजा निर्धारित कर दिया है.

११-भारत में गोपनीयता के नाम पर सेना में भारी लुट मची है और सेना की ताकत प्रभावित हो रही है, जब की चीन में फांसी की सजा का प्राविधान होने के कारन सेना भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त है.

१२-भारत में अंग्रजी दवा बनने वाली विदेशी कंपनियों की लुट मची है, चीन में आदि काल से ही आयुर्वेदिक औषधियों को प्राथमिकता दी जाती है.विश्व में सबसे ज्यादा देशी दवाये चीन में प्रयोग की जाती है, भारत दुसरे नंबर पर है जब की चीन में करीब १३५ करोड़ लोग है, भारत में १२१ करोड़.

१३-भारत में सरकार के पास भ्रष्टाचार रोकने की इक्षाशक्ति नहीं है, जब चीन में हर मर्ज की एक दावा है-"भ्रष्टो को मौत"

१४-भारत में ४५% लोग अशिक्षित है और १% लोग अंगेजी जानते है, चीन में १००%शिक्षा चीनी भाषा में दी जाती है और उनके कम्पुटर भी अंग्रेजी में नहीं, चीनी भाषा में होते है.

१५-भारत में विदेशी घुसपैठिये को वोटर कार्ड दिया जाता है, चीन में विदेशियों को इतनी ताड़ना दी जाती है की कोई वहा गलत तरीके से जाता ही नहीं और गया तो छुप नहीं पाता है, चीन के लिए खतरा बने लोग ऊपर भेज दिए जाते है, भारत में मुक़दमा किया जाता है और बिरयानी खिलाई जाती है.

१६-भारत अपनी जमीं छोड़ देता है और पीछे हटाने को बोल दिया जाता है, जबकि चीन औसत हर साल करीब एक जिले के बराबर जमीन कही न कही कब्ज़ा करता है.

१७-भारत में सरकार ने ऐसे व्यवस्था बना दिया है की अन्तं पालन में ही पूरी उर्जा समाप्त हो जाती है और पूरा परिवार त्रस्त रहता है, जब की चीन सरकार आम जनता को दुनिया भर की छुट देती है, शिक्षा और सुरक्षा सरकार फ्री में करती है और निर्यातक निति की वजह से सबको काम दिया जाता है, माता पिता को सिर्फ एक संतान पैदा करने की अनुमति है.

१८-भारत में वोट की राजनीति होती जिसकी वजह से लोकतंत्र को लूटतंत्र में बदल दिया गया है, चीन में सिर्फ यही एक चीज नहीं है इसलिए हमें विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव मिला हुआ है. भारत में हर कदम वोट को ध्यान में रखकर उठाया जाता है.

गाय ही भारत को बचा सकती है.

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भारतीय गाय का अर्थ शास्त्र........

हर इंसान को ज़ीने के लिए कम से कम 3 चीजों की जरूरत है. हवा, पानी और खाना.

स्वच्छ हवा रही नहीं (पेट्रोल, डीज़ल),
पीने का पानी मुफ्त मिलता नहीं शुद्धता की बात तो अलग है (रासायनिक खेती, ग्लोबल वार्मिंग, गिरता पानी का स्तर),
खाने में भी जहर आ चूका है (रासायनिक खेती से भी और मिलावट करने वाले मुनाफाखोरी से भी).

भारत इन तीनों समस्या से जूझ रहा है.

भारत की कुछ प्रमुख समस्याएँ :-

1. किसानों की आत्महत्या. (कारण हर चीज बाहर से खरीदना रासायनिक खेती में, जैसे बीज, खाद, कीट नाशक, ट्रैक्टर और उपज के समय मंडी में भाव न मिलना.)

2. बढ़ती महंगाई. (कारण पेट्रोल, डीज़ल की बढ़ती कीमत, रुपये की गिरावट, अत्यधिक टैक्स)

3. गिरती अर्थव्यवस्था. (घर की जगह विदेशी से प्यार किसी भी वजह से)

4. बढ़ती गरीबी. (बढ़ती महंगाई, पेट्रोल, डीज़ल की बढ़ती कीमत, रुपये की गिरावट, अत्यधिक टैक्स)

5. बिजली की कमी.

6. पानी की कमी.

इन सबका एक मुख्य कारण है,

सब कुछ बाहर से खरीदना जैसे बीज, खाद, कीट नाशक, दवाइयां, पेट्रोल, गैस.

आप इसको इस तरह समझिये, की आपने अपने घर में खाना बनाया तो खाना कितना सस्ता पड़ता है, और जब आप रोज बाहर से खाना खरीदोगे तो खाना कितना महंगा पड़ेगा. रोज रोज बाहर से खरीदना मतलब अपनी सेहत भी खराब करना और पैसे भी लुटाना.

इसी तरह भारत सरकार अपने देश में मौजूद पशुधन का इस्तेमाल न करके, जब पेट्रोल, खाद, कीटनाशक, गैस इत्यादि बाहर से रोज रोज खरीदेगी तो देश का रुपया सुधारने से तो रहा, उल्टा गर्द में ही जायेगा.

आजादी के समय भारत का रुपया 1 अमरीकन डालर के बराबर था. 1988 में भी उदारीकरण की नीतिओ से पहले तक भारत का रुपया 1 डालर के मुकाबले 8 रुपया था. यानी 41 साल आजादी में 8 गुना गिरावट और उदारीकरण के माहौल में 25 सालों में 8 गुना गिरावट से रुपया 62 रुपये प्रति डालर रह गया. उदारीकरण माने भारत ने अपने बाजार को खोल दिया, और हर चीज विदेशी यहाँ आकर बिकने लगी. नतीजा आपके सामने है. 1917 तक भारत डालर के मुकाबले 10 गुना मजबूत था माने 1 रुपया 10 डालर के बराबर था. आजादी के इन 66 सालों में हमारी कौन सी सरकार ने किस के लिए क्या काम किया, यह सोचने का विषय है. भारत के लिए कुछ किया ऐसा कहना बिलकुल गलत होगा. अभी भी देर नहीं हुई है.

1. गैस, पेट्रोल और बिजली

मीथेन गैस का उत्पादन ही तेल के बढ़ते दामों का सही जवाब और विकल्प है. आज नहीं तो कल तेल के भण्डार खली हो ही जायेंगे, तब भी हमको मीथेन गैस के उत्पादन की तरफ ही आना पड़ेगा. मीथेन गैस बनती है जैविक कचरे से अथवा पशु के गोबर से जैसे देसी गाय का गोबर. भारत जैसे विकासशील देशों को चाहिए की वह मीथेन गैस का उत्पादन करके अपनी ऊर्जा की जरूरत को पूरा करें.

भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा पशुधन 50 करोड़ का है, जो 25 करोड़ टन का गोबर उत्पादन करता है. इसको इस्तेमाल करके हम न सिर्फ रसोई गैस, बल्कि पेट्रोल में भी आत्मनिर्भर हो सकते हैं. LPG, केरोसिन, पेट्रोल इन तीनों को पूरी तरह से मीथेन गैस से हटाया जा सकता है. मीथेन गैस से बिजली भी बनती है जो की भारत के सारे गाँवों की बिजली की जरूरत को पूरा कर सकती है. मीथेन गैस बनने के बाद जो गोबर बचेगा वह खेती के लिए एक उपयुक्त खाद का भी काम करेगा जो कि रासायनिक फर्टिलाइजर पर भारत का खर्च होने वाला विदेशी मुद्रा को भी बचाएगा.

उत्तर प्रदेश में गोबर गैस अनुसंधान स्टेशन ने स्थापित किया है की एक गाय एक साल में पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस का उत्पादन करने के लिए गोबर देती है. कैलोरी मान तालिका में एक किलो मीथेन गैस, एक किलो पेट्रोल, रसोई गैस, मिट्टी का तेल या डीज़ल के लिए बराबर ऊर्जा सामग्री में है.

रसोई गैस आम तौर पर मिट्टी का तेल ग्रामीण भारत में मुख्य ईंधन है, जबकि शहरी क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए एलपीजी प्रयोग किया जाता है. एक 15 किलो एलपीजी सिलेंडर छह लोगों के एक परिवार के लिए दो महीने तक रहता है. यही बात मिट्टी के तेल के लिए सच है. पूरे एलपीजी और मिट्टी के तेल की हमारे 121 करोड़ की आबादी की आवश्यकता को 9.2 करोड़ गायों के गोबर से उत्पादित मीथेन गैस पूरी करा सकती हैं.

सीएनजी की तरह, मीथेन गैस पेट्रोल की जगह में ऑटोमोबाइल इंजन चलाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. हमारा पेट्रोल की खपत (2003-04) में आठ लाख टन था. एक गाय पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस पैदा करता है. इस धारणा पर, हमें पेट्रोल की आठ करोड़ टन जरूरत को पूरा करने के लिए लगभग 4 करोड़ गायों की आवश्यकता होगी. अगर अब 2012-2013 में पेट्रोल की खपत 5 गुना (40 लाख टन ) भी हो गयी हो तो भी 20 करोड़ गाय ही इसके लिए काफी हैं.

बिजली एक जनरेटर 200 ग्राम पेट्रोल लेकर एक किलोवाट / घंटे (kWh) विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करता है. ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति विद्युत ऊर्जा की खपत प्रतिवर्ष 112 किलोवाट प्रति घंटा है. 74 करोड़ की हमारी ग्रामीण आबादी की विद्युत ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक और 8.5 करोड़ गायों की आवश्यकता होगी. गोबर से मीथेन गैस प्राप्त करना काफी आसान है. गोबर गैस संयंत्र 20,000 रुपये से 1,00,000 रुपये के बीच की लागत में और तीन घन मीटर से 270 क्यूबिक मीटर कैपेसिटी, और विभिन्न आकारों में उपलब्ध हैं. एक कंप्रेसर पोर्टेबल सिलेंडर में इस मीथेन गैस को निकालने और भरने के लिए चाहिए. ये मीथेन गैस सिलेंडरों से खाना पकाने के लिए, या ऑटोमोबाइल और दो पहिया वाहन में इस्तेमाल किया जा सकता है.

यानी कुल मिलकर 10 करोड़ गाय रसोई गैस, 20 करोड़ गाय पेट्रोल और 10 करोड़ गाय ग्रामीण बिजली के लिए काफी होगी. सिर्फ 50 करोड़ गाय से ही भारत स्वावलंबी बन सकता है.

2. कृषि खाद (फर्टिलाइजर) और कीटनाशक

किसानों की सारी समस्या का समाधान है सिर्फ देसी गाय.

बीज सिर्फ देसी ही ख़रीदे (पहली बार) खेती करने के लिए देसी बीज खरीदने होंगे. दूसरी बार किसान अपने बीजो से ही खेती करेगा, बीज का खर्चा बचेगा. संकर यानि हाइब्रिड बीज से बीज नहीं बनते. आजकल जी म (जेनेटिकली मॉडिफाइड) बीज बाज़ार में उपलब्ध हैं, जो की न सिर्फ सेहत के दुश्मन है, बल्कि इन बीजो से आप बीज पैदा नहीं कर सकते. इन बीजो को बनाने वाले अपनी दूकान निरंतर चलाना चाहते हैं इसलिए वह नहीं चाहते की आप अपने बीज खुद बनाये. जो ये हाइब्रिड बीज अपने खेत में डालते हैं उन्हें हर हाल में यूरिया, डी ऐ पी जैसे जेहरीले रसायन भी खरीदने पड़ेंगे नहीं तो कुछ भी पैदा नहीं होगा. सिर्फ देसी बीज ही ले. दूसरी फसल से किसान का बीज का खर्चा ख़तम.

यूरिया, डी ऐ पी की जगह डाले देसी गाय के गोबर और गोमूत्र की खाद. 1 एकड़ खेत में सिर्फ 10 किलो देसी गाय का गोबर, 5-7 लीटर गोमूत्र, 1 किलो गुड, 1 किलो आटा /बेसन, 1 मुठ्ठी पुराने पेड़ की मिटटी चाहिए. इन सबको 200 लीटर पानी में मिलाये. 48 घंटे छांव में रखें. उसके बाद सिंचन के पानी के साथ 1 एकड खेत में लगाये. यूरिया, डी ऐ पी का खर्चा पहली फसल से ही ख़तम. थोडा सा खर्चा गुड और बेसन लाने में होगा.

कीटनाशक के लिए गोमूत्र 5 लीटर 100 लीटर पानी में मिलाकर 1 एकड़ खेत में छिड़क सकते हैं. इसी तरह से अलग अलग बिमारिओ या कीटों के लिए अलग अलग देसी प्राकृतिक दवाएं हैं.

3. किसानो की आत्महत्या बंद होगी. खेती का खर्चा कम होगा, उपज कम नहीं होगी, उल्टा धीरे धीरे बढ़नी शुरू होगी.

4. जहर और केमिकल रहित खाने से लोगों का स्वस्थ्य सुधरेगा, जिससे कैंसर, ब्लड प्रेशर, सुगर और हार्ट अटैक जैसी गंभीर जानलेवा बिमारिओ से बचाव होगा. दवाइयों का खर्चा कम होगा. दवाइयों पर खर्च होने वाला भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार भी बचेगा. रूपये की अंतररास्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ेगी, जिसका सीधा फायदा महंगाई और गरीबी कम करेगा.

5. इस खेती को करने से पानी का जलस्तर बढेगा, पानी दूषित नहीं होगा.

6. हवा शुद्ध होगी क्योंकि पेट्रोल डीज़ल की जगह सब कुछ सी न जी से चेलगा.

मतलब गाय है तो भारत है और भारत है तो विश्व है...

इसलिए भारतीय समाज और संस्कृति सिर्फ और सिर्फ गाय को गौ माता का दर्जा देता है... हमको यह समझने में बहुत समय लग गया. लेकिन अगर हम आज भी प्रण ले ले की गाय को बचाना है क्योंकि गाय ही भारत को बचा सकती है.

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