यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 8 दिसंबर 2013

अंग्रेजों ने जो लूट का कानून बनाया था वो आज़ादी के 65 साल बाद भी चल रहा है, Indian Income Tax के नाम से्

औरंगजेब ने जजिया कर लगाया था जो साल मे एक ही बार देना पड़ता था, आमदनी पर उसने भी कोई कर नही लगाया था | लेकिन अंग्रेजों ने भारत की लोगों की आमदनी पर कर लगाया वो भी 97%, माने 100 रूपए अगर किसी की आमदनी हो तो 97 रूपए अंग्रेजों को देना पड़ता था सिर्फ 3 रूपए उसके पास बचता था | ऐसी व्यवस्था अंग्रेजों ने बनाई थी जिससे सारा पैसा भारतीय से लूट लेना ताकि भारतीय के हाथ मे कुछ न बचे, ताकि वे क्रांतिकारियों को दान न दे सके, इसके लिए इनकम टैक्स का कानून इस देश मे आया था |

बड़ी दुःख बात यह है कि अंग्रेजों ने जो लूट का कानून बनाया था वो आज़ादी के 65 साल बाद भी चल रहा है, Indian Income Tax के नाम से् ही चल रहा है, और आज भी भारतवासियों से धन लूटा जा रहा है | बस अंतर इतना है पहले गोर अंग्रेजों ने लूटा था और उस धन को लन्दन मे जमा किया था, अब काले अंग्रेज उस कानून के आधार पर धन लूट रहे है और स्विटजरलैंड और अन्य देशों मे ले जाकर उस धन को जमा कर रहें है; व्यवस्था वैसे के वैसे चल रही है कानून वो ही चल रहे है |

अंग्रेजों ने Central Excise Act बनाया – कोई भी भारतवासी किसी वस्तु का उत्पादन करे तो उसपर 350% excise duty, अंग्रेजों ने sales tax लगाया, अंग्रेजों ने road tax लगाया, toll tax लगाया, municipal corporation tax लगाया और ऐसे 23 तरह के टैक्स कानून लगाकर इस देश के नागरिकों को जमकर लूटा, लहभग 190 वर्षों तक |

अब अंग्रेजों ने यह सब कानून बनाये थे लूटने के लिए, तो आज़ादी के बाद होना ये चाहिए था कि ये सारे कानून ख़तम किये जाये Income Tax ख़तम किये जाये, Central Excise ख़तम किये जाये, Road Tax ख़तम किये जाये, Toll Tax ख़तम किये जाये, Municipal Corporation Tax ख़तम किये जाये | माने, अंग्रेजों के लगाये हुए 23 तरह के सारे टैक्स ख़तम किया जाये | लेकिन हमारे काले अंग्रेजों ने इसका उल्टा किया, अंग्रेजों के जाने के 65 साल के बाद काले अंग्रेजों ने इस देश पर अब 64 तरह के टैक्स लगा रखे है, और देश को लूट रहे है, अंग्रेजों ने भी जितना नही लूटा होगा उससे कई गुना जादा काले अंग्रेज, भ्रष्टाचारी नेता, और भ्रष्टाचारी अधिकारी इस देश को लूट रहें है और इसी लूट के दम पर 100 लाख करोड़ रूपए से ज्यादा इन्होने विदेशी बैंकों मे जमा करके रखा हुआ है |

ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें : http://www.youtube.com/watch?v=-a57QePSnPQ

वन्दे मातरम् !

क्या आप जानते हैं किस देश की राष्ट्र भाषा थी संस्कृत ?

क्या आप जानते हैं किस देश की राष्ट्र भाषा थी संस्कृत ?

कंबुज देश(कम्बोडिया) की 6 वी शताब्दी से लेकर 12 वी शताब्दी तक राष्ट्र भाषा थी। शोधकर्ता भक्तिन कौन्तेया अपनी उपर्युक्त शीर्षक वाल ऐतिहासिक रूपरेखा में संक्षेप में निम्न प्रकार लिखते हैं कि प्राचीन काल में कम्बोडिया को कंबुज देश कहा जाता था। 9 वी से 13 वी शती तक अङ्कोर साम्राज्य पनपता रहा। राजधानी यशोधरपुर सम्राट यशोवर्मन ने बसायी थी । अङ्कोर राज्य उस समय आज के कंबोडिया, थायलॅण्ड, वियेतनाम और लाओस सभी को आवृत्त करता हुआ विशाल राज्य था। संस्कृत से जुडी भव्य संस्कृति के प्रमाण इन अग्निकोणीय एशिया के देशों में आज भी प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं।
कंबुज शिलालेख जो खोजे गए हैं वे कंबुज, लाओस, थायलैंड, वियेतनाम इत्यादि विस्तृत प्रदेशों में पाए गए हैं। कुछ ही शिला लेख पुरानी मेर में मिलते हैं जबकि बहुसंख्य लेख संस्कृत भाषा में ही मिलते हैं। संस्कृत उस समय की: संस्कृत उस समय की दक्षिण पूर्वअग्निकोणीय देशों की सांस्कृतिक भाषा थी। कंबुज, मेर ने अपनी भाषा लिखने के लिए भारतीय लिपि अपनायी थी। आधुनिक मेर भारत से ही स्वीकार की हुयी लिपि में लिखी जाती है। वास्तव में ग्रंथ ब्राह्मीश ही आधुनिक मेर की मातृ.लिपि है। कंबुज देश ने देवनागरी और पल्लव ग्रंथ लिपि के आधार पर अपनी लिपि बनाई है।
आज कल की कंबुज भाषा में 70 प्रतिशत शब्द सीधे संस्कृत से लिए गए हैं, यह कहते है कौंतेय ।
मेर कंबुज भाषा ऑस्ट्रो.एशियाई परिवार की भाषा है और संस्कृत भारोपीय परिवार की भाषा है, और चमत्कार देखिए कि भक्तिन कौंतेया अपने लघु लेख में कहते हैं कि 70 प्रतिशत संस्कृत के शब्द मेर में पाए जाते हैं, पर बहुत शब्दों के उच्चारण बदल चुके हैं। यह एक ऐसा अपवादात्मक उदाहरण है जो संस्कृत के चमत्कार से कम नहीं। कंबुज मेर भाषा अपने ऑस्ट्रो.एशियाई परिवार से नहीं पर भारोपीय भारत.युरोपीय परिवार की भाषा संस्कृत से शब्द ग्रहण करती है। संस्कृत की उपयोगिता का इससे बडा प्रमाण और क्या हो सकता है। भारत इस से कुछ सीखे।
सिद्धान्त:संसार की सारी भाषाओं की शब्द विषयक समस्याओं का हल हमारी संस्कृत के पास है, तो फि र हम अंग्रेज़ी से भीख क्यों माँगें?
कुछ शब्दों के उदाहरण:कंबोजी भाषी शब्दों के कुछ उदाहरण देखने पर उस भाषा पर संस्कृत का प्रभाव स्पष्ट हो जाएगा।
कंबोजी महीनों के नाम
चेत-चैत्र, बिसाक-वैशाख, जेस-ज्येष्ठ आसाठ-आषाढ, श्राप-श्रावण-सावन, फ्यैत्रबोत-भाद्रपद, गुण् भादरवो-आसोज-आश्विन-गुजराती आसोण कातिक-कार्तिक, कार्तक मिगस-मार्गशीर्ष गुजराती मागसर, बौह-पौष, माघ-माह, फागुन-फाल्गुन फागण।
कुछ आधुनिक शब्दावली:धनागार बँक, भासा-भाषा, टेलिफोन के लिए दूरसब्द दूर शब्द तार के लिए दूरलेख टाईप.राइटर को अंगुलिलेख तथा टायपिस्ट को अंगुलिलेखक कहते हैं।
सुन्दर, कार्यालय, मुख, मेघ, चन्द्र, मनुष्य, आकाश, माता पिता, भिक्षु आदि अनेक शब्द दैनिक प्रयोग में आते हैं। उच्चारण में अवश्य अंतर है। कई शब्द साधारण दैनिक जीवन में प्रयुक्त न होकर काव्य और साहित्य में प्रयुक्त होते हैं। ऐसी परम्परा भारतीय भाषाओं में भी मानी जाती है। शाला के लिए साला, कॉलेज के लिए अनुविद्यालय, विमेन्स कॉलेज के लिए अनुविद्यालय.नारी, युनिवर्सिटी के लिए महाविद्यालय, डिग्री या प्रमाण पत्र के लिए सञ्ञा.पत्र साइकिल के लिए द्विचक्रयान, रिक्षा के लिए त्रिचक्रयान ऐसे उदाहरण दिए जा सकते हैं।
राष्ट्र भाषा संस्कृत: वास्तव में संस्कृत ही न्यायालयीन भाषा थी, एक सहस्रों वर्षों से भी अधिक समय तक के लिए उसका चलन था।सारे शासकीय आदेश संस्कृत में होते थे। भूमि के या खेती के क्रय.विक्रय पत्र संस्कृत में ही होते थे। मंदिरों का प्रबंधन भी संस्कृत में ही सुरक्षित रखा जाता था। प्राय: 1250 शिलालेख उस में से बहुसंख्य संस्कृत में लिखे पाए जाते हैं इस प्राचीन अङ्कोर साम्राज्य में। 1250 में से दो शिला लेख उदाहरणार्थ प्रस्तुत।
श्रीमतां कम्बुजेन्द्राणामधीशोऽभूद्यशस्विनाम।
श्रीयशोवम्र्मराजेन्द्रो महेन्द्रो मरुतामिव॥10॥
श्री यशोवर्मन महाराजा हुए भव्य कंबुज देश के जैसे इन्द्र महाराज हुए थे मरुत देश के।
श्रीकम्बुभूभृतो भान्ति विक्रमाक्रान्तविष्टपा:।
विषकण्टकजेतारो दोद्र्दण्डा इव चक्रिण:॥9॥
श्री कंबु देश के राजा विश्व में अपने शौर्य और पराक्रम से चमकते हैं और शत्रुओं को उखाड फेंकते है जैसे विष्णु भगवान विषैले काँटो जैसे शत्रुओं को उखाड़ फेंकते थे।

डॉ. मधुसूदन उवाच

function disabled

Old Post from Sanwariya