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शुक्रवार, 14 मार्च 2014

स्वस्थ काया के साथ माया देते हैं शंख


स्वस्थ काया के साथ माया देते हैं शंख
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धार्मिक ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से एक शंख को सुख-समृद्धि और निरोगी काया का प्रतीक माना जाता है। इस मंगलचिह्न को घर के पूजा स्थल में रखने से जहां अरिष्टों और अनिष्टों का नाश होता है, सौभाग्य वृद्धि भी होती है।

आध्यात्मिक ग्रंथों, पौराणिक मतों के अनुसार देवता और दानवों ने अमृत की खोज के लिए मंदराचल पर्वत की मथानी से क्षीरसागर मंथन किया, उससे 14 प्रकार के रत्न प्राप्त हुए। आठवें रत्न के रूप में शंखों का जन्म हुआ जिसमें मुख्य दक्षिणावर्ती शंख, गोमुखी शंख तथा अन्य कई प्रकार के शंख प्राप्त हुए।

प्रतिदिन घर में शंखनाद करने से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है। शंख ध्वनि से सूक्ष्म जीवाणुओं का नाश होता है। शंख में पंच तत्वों का संतुलन बराबर बनाए रखने की प्रचुर क्षमता होती है।

श्री गणेश शंख : इस शंख की आकृति भगवान श्री गणेश की तरह ही होती है। यह शंख दरिद्रता नाशक और धन प्राप्ति का कारक है।

अन्नपूर्णा शंख : अन्नपूर्णा शंख का उपयोग घर में सुख-शान्ति और श्री समृद्धि के लिए अत्यन्त उपयोगी है। गृहस्थ जीवन यापन करने वालों को प्रतिदिन इसके दर्शन करने चाहिए।

कामधेनु शंख : कामधेनु शंख का उपयोग तर्क शक्ति को और प्रबल करने के लिए किया जाता है। इस शंख की पूजा-अर्चना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

मोती शंख : इस शंख का उपयोग घर में सुख और शांति के लिए किया जाता है। मोती शंख हृदय रोग नाशक भी है। मोती शंख की स्थापना पूजा घर में सफेद कपड़े पर करें और प्रतिदिन पूजन करें, लाभ मिलेगा।

ऐरावत शंख : ऐरावत शंख का उपयोग मनचाही साधना सिद्ध को पूर्ण करने के लिए, शरीर की सही बनावट देने तथा रूप रंग को और निखारने के लिए किया जाता है। प्रतिदिन इस शंख में जल डाल कर उसे ग्रहण करना चाहिए। शंख में जल प्रतिदिन 24 - 28 घण्टे तक रहे और फिर उस जल को ग्रहण करें, तो चेहरा कांतिमय होने लगता है।

विष्णु शंख : इस शंख का उपयोग लगातार प्रगति के लिए और असाध्य रोगों में शिथिलता के लिए किया जाता है। इसे घर में रखने भर से घर रोगमुक्त हो जाता है।

पौण्ड्र शंख : पौण्ड्र शंख का उपयोग मनोबल बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग विद्यार्थियों के लिए उत्तम है। इसे विद्यार्थियों को अध्ययन कक्ष में पूर्व की ओर रखना चाहिए।

मणि पुष्पक शंख : मणि पुष्पक शंख की पूजा-अर्चना से यश कीर्ति, मान-सम्मान प्राप्त होता है। उच्च पद की प्राप्ति के लिए भी इसका पूजन उत्तम है।

देवदत्त शंख : इसका उपयोग दुर्भाग्य नाशक माना गया है। इस शंख का उपयोग न्याय क्षेत्र में विजय दिलवाता है। इस शंख को शक्ति का प्रतीक माना गया है। न्यायिक क्षेत्र से जुड़े लोग इसकी पूजा कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

श्रेष्ठ है दक्षिणावर्ती शंख
इस शंख को देव स्वरूप माना गया है। शंख के मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा, अग्रभाग में गंगा का निवास है। दक्षिणावर्ती शंख के पूजन से खुशहाली आती है और लक्ष्मी प्राप्ति के साथ-साथ सम्पत्ति भी बढ़ती है। जहां शंखनाद और शंख पूजन होता है वहां लक्ष्मी स्थायी रूप से निवास करती हैं।

दक्षिणावर्ती शंख दो प्रकार के होते हैं नर और मादा। जिसकी परत मोटी हो और भारी हो वह नर और जिसकी परत पतली हो और हल्का हो, वह मादा शंख होता है। दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना यज्ञोपवीत पर करनी चाहिए। शंख का पूजन केसर युक्त चंदन से करें। प्रतिदिन नित्य क्रिया से निवृत्त होकर शंख की धूप-दीप-नैवेद्य-पुष्प से पूजा करें और तुलसी दल चढ़ाएं।

दक्षिणावर्ती शंख की पूजा और फल
प्रथम प्रहर में पूजन करने से मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। द्वितीय प्रहर में पूजन करने से धन- सम्पत्ति में वृद्धि होती है। तृतीय प्रहर में पूजन करने से यश व कीर्ति में वृद्धि होती है। चतुर्थ प्रहर में पूजन करने से संतान प्राप्ति होती है। प्रतिदिन पूजन के बाद 108 बार या श्रद्धा के अनुसार मंत्र का जप करें। ॐ हृीं क्लीं ब्लूं सुदक्षिणां वर्त शंख स्वाय नम:। यह शंख बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रभावी है। इस शंख की उत्पत्ति भी माता लक्ष्मी की तरह समुद्र मंथन से हुई है। इसलिए माता लक्ष्मी इसे सहोदर मानती हैं। यह शंख श्रीहरि विष्णु को भी अतिप्रिय है, अत: इसे विधि-विधान से घर में प्रतिष्ठित किया जाए तो घर के वास्तुदोष भी समाप्त होते हैं।

इस शंख को दक्षिणावर्ती इसलिए कहा जाता है क्योंकि जहां सभी शंखों का पेट बाईं ओर खुलता है वहीं इसका पेट विपरीत दार्इं और खुलता है। इस शंख की उपस्थिति ही कई रोगों का नाश कर देती है। दक्षिणावर्ती शंख पेट के रोग में भी बहुत लाभदायक है।

पेट मेें दर्द रहता हो, आंतों में सूजन हो अल्सर या घाव हो तो दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं।

नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है। यही नहीं, कालसर्प योग में भी यह रामबाण का काम करता है। दक्षिणावर्ती शंख से शिवजी का अभिषेक करने से शीघ्र लाभ प्राप्त होता है। विशेष कार्य में जाने से पहले दक्षिणावर्ती शंख के दर्शन करने भर से उस काम के सफल होने की संभावना बढ़ जाती है

जानें, क्यों 'रुद्राक्ष' पहनने से हो जाते हैं सारे काम

 
जानें, क्यों 'रुद्राक्ष' पहनने से हो जाते हैं सारे काम ...
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रुद्राक्ष यानि रुद्र+अक्ष, रुद्र अर्थात भगवान शंकर व अक्ष अर्थात आंसू। भगवान शिव के नेत्रों से जल की कुछ बूंदें भूमि पर गिरने से महान रुद्राक्ष अवतरित हुआ। भगवान शिव की आज्ञा पाकर वृक्षों पर रुद्राक्ष फलों के रूप में प्रकट हो गए। मान्यता है रुद्राक्ष अड़तीस प्रकार के हैं जिनमें कत्थई वाले बारह प्रकार के रुद्राक्षों की उत्पत्ति सूर्य के नेत्रों से, श्वेतवर्ण के सोलह प्रकार के रुद्राक्षों की उत्पत्ति चन्द्रमा के नेत्रों से तथा कृष्ण वर्ण वाले दस प्रकार के रुद्राक्षों की उत्पत्ति अग्नि के नेत्रों से होती है। आइए जानें रुद्राक्षों के दिव्य तेज से आप कैसे दुखों से मुक्ति पा कर सुखमय जीवन जीते हुए शिव कृपा पा सकते हैं

यथा च दृश्यते लोके रुद्राक्ष: फलद: शुभ:।
न तथा दृश्यते अन्या च मालिका परमेश्वरि:।।

अर्थात संसार में रुद्राक्ष की माला की तरह अन्य कोई दूसरी माला फलदायक और शुभ नहीं है।

श्रीमद्- देवीभागवत में लिखा है :
रुद्राक्षधारणाद्य श्रेष्ठं न किञ्चिदपि विद्यते।

अर्थात संसार में रुद्राक्ष धारण से बढ़कर श्रेष्ठ कोई दूसरी वस्तु नहीं है।

रुद्राक्ष की दो जातियां होती हैं- रुद्राक्ष एवं भद्राक्ष

रुद्राक्ष के मध्य में भद्राक्ष धारण करना महान फलदायक होता है।

भिन्न-भिन्न संख्या में पहनी जाने वाली रुद्राक्ष की माला निम्न प्रकार से फल प्रदान करने में सहायक होती है जो इस प्रकार है

1 रुद्राक्ष के सौ मनकों की माला धारण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

2 रुद्राक्ष के एक सौ आठ मनकों को धारण करने से समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। इस माला को धारण करने वाला अपनी पीढ़ियों का उद्घार करता है।

3 रुद्राक्ष के एक सौ चालीस मनकों की माला धारण करने से साहस, पराक्रम और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

4 रुद्राक्ष के बत्तीस दानों की माला धारण करने से धन, संपत्ति एवं आयु में वृद्धि होती है।

5 रुद्राक्ष के 26 मनकों की माला को सर पर धारण करना चाहिए।

6 रुद्राक्ष के 50 दानों की माला कंठ में धारण करना शुभ होता है।

7 रुद्राक्ष के पंद्रह मनकों की माला मंत्र जप तंत्र सिद्धि जैसे कार्यों के लिए उपयोगी होती है।

8 रुद्राक्ष के सोलह मनकों की माला को हाथों में धारण करना चाहिए।

9 रुद्राक्ष के बारह दानों को मणि बंध में धारण करना शुभदायक होता है।

10 रुद्राक्ष के 108, 50 और 27 दानों की माला धारण करने या जाप करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

रुद्राक्ष माला को धारण करने के नियम
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1 जिस रुद्राक्ष माला से जाप किया जाता है उसे धारण नहीं करना चाहिए। उसी प्रकार जिस माला को धारण किया जाता है उससे जाप नहीं करना चाहिए।

2 किसी अन्य के उपयोग में आया रुद्राक्ष अथवा रुद्राक्ष माला को उपयोग नहीं करना चाहिए।

3 रुद्राक्ष की प्राण-प्रतिष्ठा करवाने के पश्चात उसे शुभ मुहूर्त में ही धारण करें।

4 रुद्राक्ष धारण करने वाले जातक को मांस, मदिरा, लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।

5 रुद्राक्ष को अंगूठी में जड़वाकर धारण नहीं करना चाहिए।

6 स्त्रियों को मासिक धर्म के समय रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए।

7 रुद्राक्ष धारण कर रात को शयन नहीं करना चाहिए।

जो व्यक्ति पवित्र और शुद्ध मन से भगवान शंकर की आराधना करके रुद्राक्ष धारण करता है, उसका सभी कष्ट दूर हो जाता है। यहां तक मानना है कि इसके दर्शन मात्र से ही पापों का क्षय हो जाता है। जिस घर में रुद्राक्ष की पूजा की जाती है, वहां लक्ष्मी जी का वास रहता है। रुद्राक्ष भगवान शंकर की एक अमूल्य और अद्भुद देन है। यह शंकर जी की अतीव प्रिय वस्तु है। इसके स्पर्श तथा इसके द्वारा जप करने से ही समस्त पाप से निवृत्त हो जाते है और लौकिक-परलौकिक एवं भौतिक सुख की प्राप्ति होती है।

होली के रंग : हर रंग कुछ कहता है...-----होली विशेष

 
होली के रंग : हर रंग कुछ कहता है...-----होली विशेष
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होली आ गई है। धरती से सुनहरी आभा आ रही है। आकाश में नीले, लाल बादल अठखेलियां कर रहे हैं, सूरज के साथ लुका-छिपी खेल रहे हैं। पेड़ों पर नन्‍हीं कोंपले आ रही हैं और पीले-लाल फूल अपनी खुशबू बिखेर रहे हैं। हर तरफ इंद्रधनुषी रंगों की छटा है और रंगों के इस कोलाज को देखकर मन मोहक हो जाता है।

रंग का पर्याय ऊर्जा से है, उत्‍साह से है और उमंग से है। रंगो का त्‍योहार होली का ख्‍याल आते ही मस्‍ती सूझने लगती है। होली आती भी है, नए जोश और जज्‍बे का संदेश लेकर। इस संदेश में अलग-अलग रंग आपको भरपूर मजा लेकर खुलकर जीने का आमंत्रण देते हैं और बताते हैं कि उनकी तरह ही सबमें एक विशेषता है।
लाल :
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होली के मौके पर सबसे ज्‍यादा चाव से जिस रंग का प्रयोग किया जाता है, वह है लाल रंग। लाल रंग उल्‍लास और शुद्धता का प्रतीक है। लाल रंग का प्रयोग हर शुभ अवसर पर किया जाता है। दरअसल लाल रंग अग्नि का द्योतक है और ऊर्जा, गर्मी और जोश का प्रतिनिधित्‍व करता है, इस लिहाज से होली के दौरान होलिका दहन, मौसम में गर्मी का आगमन, त्‍योहार मनाने में जोश का संचार तो होता ही है, साथ ही त्‍योहार के साथ हर वर्ग के लोगों में ऊर्जा का प्रवाह होता है, जो उन्‍हें पूरे वर्ष काम करने के लिए उत्‍साहित करता है।
पीला :
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पीला रंग पवित्रता का प्रतीक है। होली के दौरान वातावरण में पीले रंग की अधिकता होती है। यह रंग सुनहले रंग के समीप होता है। मिट्टी का रंग भी पीला होता है और इस मौसम में खिलने वाले फूल भी अमूमन पीले होते हैं। यह रंग समृद्धि और यश को इंगित करता है।
हरा :
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हरा रंग जीवन का द्योतक है। इसके साथ ही यह प्रकृति का सबसे प्‍यारा रंग है। होली के दौरान वातावरण में चहुंओर हरे रंग की आभा आने वाली होती है, जो नए जीवन के शुरुआत का संकेत देती है और इस बात की प्रेरणा देती है कि बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध लेहि। यानी होली का हरा रंग हर व्‍यक्ति को एक बार फिर अपने में नए जीवन के संचार की प्रेरणा देता है।
नीला :
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नीला रंग शांति, गंभीर और स्‍थिरता का संकेतक है। हालांकि होली में नीला रंग कम प्रयोग में आता है। लेकिन कभी-कभी नीले गुलाल और अबीर देखे जाते हैं। जल और वायु का रंग नीला माना गया है, इस लिहाज से यह रंग प्राण और प्रकृति से संबंधित है। नीला रंग पूर्णता को इंगित करता है।
काला :
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कुछ लोगों को होली में काला रंग लगाने में सबसे ज्‍यादा मजा आता है। काला रंग अंतरिक्ष का प्रतीक है। यह रंग प्रभुत्‍व का भी प्रतीक है क्‍योंकि सभी रंग अपना अस्‍तित्‍व खोकर इसमें समाहित हो जाते हैं।
सफेद :
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सफेद रंग बच्‍चों का पसंदीदा रंग है। यह सभी रंगों का जनक माना जाता है। प्रकृति के सभी रंगों को एक समान मिलने पर सफेद रंग बनता है। इसलिए इसमें सभी रंगों के गुण मौजूद होते हैं।

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