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शुक्रवार, 15 जून 2018

क्यों है जरूरी-टर्म इंश्योरेंस

टर्म इंश्योरेंस आखिर क्यों है जरूरी, 
 
इन दिनों टेलिवजन पर एक एड तेजी से पॉपुलर हो रहा है। इस एड में बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार यमराज बनकर टर्म इंश्योरेंस के फायदे गिनाते नजर आते हैं। आमतौर पर लोग सामान्य इंश्योरेंस को ही टर्म इंश्योरेंस मानने की गलती कर बैठते हैं, लेकिन इन दोनों में बुनियादी अंतर होता है। हम अपनी इस खबर के माध्यम से आपको विस्तार से जानकारी दे रहे हैं कि आखिर टर्म इंश्योरेंस होता क्या है और इसके फायदे क्या हैं।
सबसे पहले जानिए कि आखिर लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के कितने प्रकार होते हैं..
क्या होती है टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी?
जैसा कि हमने ऊपर बताया है कि टर्म प्लान इंश्योरेंस पॉलिसी का सबसे विशुद्ध स्वरूप होता है। जीवन बीमा लेने का सबसे सरल तरीका टर्म इंश्योरेंस ही होता है। इसमें बीमा लेने वाला व्यक्ति एक निश्चित समय तक प्रीमियम का भुगतान करता रहता है। यदि निश्चित अवधि के दौरान बीमाधारक की मृत्यु हो जाती है तो सम एश्योर्ड या एक मुश्त राशि उसके परिवार या नॉमिनी को दे दी जाती है। टर्म प्लान में हर साल मामूली प्रीमियम देने के बाद आपको कुछ विशेष सालों के लिए कवर उपलब्ध करवाया जाता है। आमतौर पर टर्म पॉलिसी 10 साल,15 साल, 20 साल, 25 साल और 30 सालों के लिए ली जाती हैं।
उदाहरण से समझिए:
अगर आपने 15 साल की समय अवधि के लिए 55 लाख रुपए का टर्म इंश्योरेंस खरीदा है। इसके लिए आपको हर साल 4 हजार रुपए का प्रीमियम भुगतान बीमा कंपनी को करना है। वहीं अगर इस पॉलिसी की मैच्योरिटी के दौरान बीमाधारक मृत्यु हो जाती है तो आपके परिवार को यह 55 लाख रुपए की राशि दे दी जाएगी। लेकिन अगर 15 वर्षों तक आप स्वस्थ रहते हैं तो भुगतान किए गए प्रीमियम के बदले में आपको कुछ भी नहीं मिलेगा।
टर्म इंश्योरेंस प्लान के दो बड़े फायदे:
क्यों जरूरी होता है टर्म इंश्योरेंस?
टर्म इंश्योरेंस परिवार के मुखिया की मृत्यु हो जाने के बाद भी परिवार को वित्तीय संकट से सुरक्षित रखता है। घर का मुखिया परिवार में आय का मुख्य स्रोत होता है। उस व्यक्ति की मृत्यु या गंभीर बीमारी से उसके अक्षम हो जाने के बाद अक्सर परिवार में अन्य सदस्यों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अगर पर्याप्त राशि का टर्म इंश्योरेंस लिया गया है परिवार की आर्थिक सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है। साथ ही उन्हें नियमित आय का सहारा रहता है। टर्म इंश्योरेंस के अंतर्गत गंभीर बीमारी, अकस्मात मृत्यु, स्थायी बीमारी जैसी चीजें आती हैं। कई कंपनियां परिवार के सदस्यों को टर्म इंश्योरेंस में नियमित आय का भी विकल्प देती हैं।
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असाध्य रोगों का काल है -ज्वारों का रस

300 से ज्यादा असाध्य रोगों का काल है

●जीवन और मरण के बीच जूझते रोगियों को प्रतिदिन चार बड़े गिलास भरकर ज्वारों का रस दिया जाता है।●जीवन की आशा ही जिन रोगियों ने छोड़ दी उन रोगियों को भी तीन दिन या उससे भी कम समय में चमत्कारिक लाभ होता देखा गया है।
●ज्वारे के रस से रोगी को जब इतना लाभ होता है, तब नीरोगी व्यक्ति ले तो कितना अधिक लाभ होगा?
🙏🏼तो अगर आप अपने जीवन को निरोगी बनाना चाहते है तो हमारी पोस्ट ओर जानकारी को ध्यान पूर्वक पढ़े और शरीर आपका है तो आज से ही नीचे लिखे प्रयोग को काम में लाये।

🌾कैंसर में गेहूँ के ज्वारे का उपयोग🌾

●गेहूँ के दाने बोने पर जो एक ही पत्ता उगकर ऊपर आता है उसे ज्वारा कहा जाता है। नवरात्रि आदि उत्सवों में यह घर-घर में छोटे-छोटे मिट्टी के पात्रों में मिट्टी डालकर बोया जाता है। ये गेहूँ के ज्वारे का रस, प्रकृति के गर्भ में छिपी औषधियों के अक्षय भंडार में से मानव को प्राप्त एक अनुपम भेंट है।
●शरीर के आरोग्यार्थ यह रस इतना अधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है कि विदेशी जीववैज्ञानिकों ने इसे ‘हरा लहू’ (Green Blood) कहकर सम्मानित किया है। डॉ. एन. विगमोर नामक एक विदेशी महिला ने गेहूँ के कोमल ज्वारों के रस से अनेक असाध्य रोगों को मिटाने के सफल प्रयोग किये हैं।
●उपरोक्त ज्वारों के रस द्वारा उपचार से 300 से अधिक रोग मिटाने के आश्चर्यजनक परिणाम देखने में आये हैं। जीव-वनस्पति शास्त्र में यह प्रयोग बहुत मूल्यवान है।
●गेहूँ के ज्वारों के रस में रोगों के उन्मूलन की एक विचित्र शक्ति विद्यमान है। शरीर के लिए यह एक शक्तिशाली टॉनिक है।
●इसमें प्राकृतिक रूप से कार्बोहाईड्रेट आदि सभी विटामिन, क्षार एवं श्रेष्ठ प्रोटीन उपस्थित हैं। इसके सेवन से असंख्य लोगों को विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति मिली है।
●कैन्सर, मूत्राशय की पथरी, हृदयरोग, लीवर, डायबिटीज, पायरिया एवं दाँत के अन्य रोग, पीलिया, लकवा, दमा, पेट दुखना, पाचन क्रिया की दुर्बलता, अपच, गैस, विटामिन ए, बी आदि के अभावोत्पन्न रोग, जोड़ों में सूजन, गठिया, संधिशोथ, त्वचासंवेदनशीलता (स्किन एलर्जी) सम्बन्धी बारह वर्ष पुराने रोग, आँखों का दौर्बल्य, केशों का श्वेत होकर झड़ जाना, चोट लगे घाव तथा जली त्वचा सम्बन्धी सभी रोग।हजारों रोगियों एवं निरोगियों ने भी अपनी दैनिक खुराकों में बिना किसी प्रकार के हेर-फेर किये गेहूँ के ज्वारों के रस से बहुत थोड़े समय में चमत्कारिक लाभ प्राप्त किये हैं।
●ये अपना अनुभव बताते हैं कि ज्वारों के रस से आँख, दाँत और केशों को बहुत लाभ पहुँचता है। कब्जी मिट जाती है, अत्यधिक कार्यशक्ति आती है और थकान नहीं होती।

🌾गेहूँ के ज्वारे उगाने की विधि :🌾

■आप मिट्टी के नये खप्पर, कुंडे या सकोरे लें। उनमें खाद मिली मिट्टी लें। रासायनिक खाद का उपयोग बिलकुल न करें। पहले दिन एक कुंडे की सारी मिट्टी ढँक जाये इतने गेहूँ बोयें। पानी डालकर कुंडों को छाया में रखें। सूर्य की धूप कुंडों को अधिक या सीधी न लग पाये इसका ध्यान रखें।
■इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा कुंडा या मिट्टी का खप्पर बोयें और प्रतिदिन एक बढ़ाते हुए नौवें दिन नौवां कुंडा बोयें। सभी कुंडों को प्रतिदिन पानी दें। नौवें दिन पहले कुंडे में उगे गेहूँ काटकर उपयोग में लें। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ उगा दें। इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा, तीसरे दिन तीसरा करते चक्र चलाते जायें। इस प्रक्रिया में भूलकर भी 🤜🏼प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग कदापि न करें❌।
■प्रत्येक कुटुम्ब अपने लिए सदैव के उपयोगार्थ 10, 20, 30 अथवा इससे भी अधिक कुंडे रख सकता है। प्रतिदिन व्यक्ति के उपयोग अनुसार एक, दो या अधिक कुंडे में गेहूँ बोते रहें। मध्याह्न के सूर्य की सख्त धूप न लगे परन्तु प्रातः अथवा सायंकाल का मंद ताप लगे ऐसे स्थान में कुंडों को रखें।
■सामान्यतया आठ-दस दिन नें गेहूँ के ज्वारे पाँच से सात इंच तक ऊँचे हो जायेंगे। ऐसे ज्वारों में अधिक से अधिक गुण होते हैं। ❌ज्यो-ज्यों ज्वारे सात इंच से अधिक बड़े होते जायेंगे त्यों-त्यों उनके गुण कम होते जायेंगे।❌ अतः उनका पूरा-पूरा लाभ लेने के लिए ✅सात इंच तक बड़े होते ही उनका उपयोग कर लेना चाहिए।✅
■ज्वारों की मिट्टी के धरातल से कैंची द्वारा काट लें अथवा उन्हें समूल खींचकर उपयोग में ले सकते हैं। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ बो दीजिये। इस प्रकार प्रत्येक दिन गेहूँ बोना चालू रखें।

🌾ज्वारों का रस बनाने की विधि :🌾

◆जब समय अनुकूल हो तभी ज्वारे काटें। काटते ही तुरन्त धो डालें। धोते ही उन्हें कूटें। कूटते ही उन्हें कपड़े से छान लें। इसी प्रकार उसी ज्वारे को तीन बार कूट-कूट कर रस निकालने से अधिकाधिक रस प्राप्त होगा।
◆चटनी बनाने अथवा रस निकालने की मशीनों आदि से भी रस निकाला जा सकता है। रस को निकालने के बाद विलम्ब किये बिना तुरन्त ही उसे धीरे-धीरें पियें।
◆किसी 🙏🏼✅🙏🏼सशक्त अनिवार्य कारण के अतिररिक्त एक क्षण भी उसको पड़ा न रहने दें, कारण कि उसका गुण प्रतिक्षण घटने लगता है और तीन घंटे में तो उसमें से पोषक तत्व ही नष्ट हो जाता है। प्रातःकाल खाली पेट यह रस पीने से अधिक लाभ होता है।🙏🏼✅🙏🏼
◆दिन में किसी भी समय ज्वारों का रस पिया जा सकता है। परन्तु रस लेने के आधा घंटा पहले और लेने के आधे घंटे बाद तक कुछ भी खाना-पीना न चाहिए।
◆❌आरंभ में कइयों को यह रस पीने के बाद उबकाई आती है, उलटी हो जाती है अथवा सर्दी हो जाती है। परंतु इससे घबराना न चाहिए।❌
◆शरीर में कितने ही विष एकत्रित हो चुके हैं यह प्रतिक्रिया इसकी निशानी है। सर्दी, दस्त अथवा उलटी होने से शरीर में एकत्रित हुए वे विष निकल जायेंगे।ज्वारों का रस निकालते समय मधु, अदरक, नागरबेल के पान (खाने के पान) भी डाले जा सकते हैं।
◆इससे स्वाद और गुण का वर्धन होगा और उबकाई नहीं आयेगी। विशेषतया यह बात ध्यान में रख लें कि ज्वारों के रस में नमक अथवा नींबू का रस तो कदापि न डालें।
◆रस निकालने की सुविधा न हो तो ज्वारे चबाकर भी खाये जा सकते हैं। इससे दाँत मसूढ़े मजबूत होंगे। मुख से यदि दुर्गन्ध आती हो तो दिन में तीन बार थोड़े-थोड़े ज्वारे चबाने से दूर हो जाती है। दिन में दो या तीन बार ज्वारों का रस लीजिये।

🌾सस्ता और सर्वोत्तम ज्वारों का रस 🌾
■ज्वारों का रस दूध, दही और मांस से अनेक गुना अधिक गुणकारी है। दूध और मांस में भी जो नहीं है उससे अधिक इस ज्वारे के रस में है।
■इसके बावजूद दूध, दही और मांस से बहुत सस्ता है। घर में उगाने पर सदैव सुलभ है। गरीब से गरीब व्यक्ति भी इस रस का उपयोग करके अपना खोया स्वास्थ्य फिर से प्राप्त कर सकता है।गरीबों के लिए यह ईश्वरीय आशीर्वाद है।
◆नवजात शिशु से लेकर घर के छोटे-बड़े, अबालवृद्ध सभी ज्वारे के रस का सेवन कर सकते हैं।
◆ नवजात शिशु को प्रतिदिन पाँच बूँद दी जा सकती है।
◆ज्वारे के रस में लगभग समस्त क्षार और विटामिन उपलब्ध हैं। इसी कारण से शरीर मे जो कुछ भी अभाव हो उसकी पूर्ति ज्वारे के रस द्वारा आश्चर्यजनक रूप से हो जाती है।
■इसके द्वारा प्रत्येक ऋतु में नियमित रूप से प्राणवायु, खनिज, विटामिन, क्षार और शरीरविज्ञान में बताये गये कोषों को जीवित रखने से लिए आवश्यक सभी तत्त्व प्राप्त किये जा सकते हैं।
◆डॉक्टर की सहायता के बिना गेहूँ के ज्वारों का प्रयोग आरंभ करो और खोखले हो चुके शरीर को मात्र तीन सप्ताह में ही ताजा, स्फूर्तिशील एवं तरावटदार बना दो।
◆ज्वारों के रस के सेवन के प्रयोग किये गये हैं। कैंसर जैसे असाध्य रोग मिटे हैं। शरीर ताम्रवर्णी और पुष्ट होते पाये गये हैं।

बुधवार, 23 मई 2018

गर्मियों में लाभदायक है बेल फल - रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है

बिल्व, बेल या बेलपत्थर, भारत में होने वाला एक फल का पेड़ है। इसे रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है। इसके अन्य नाम हैं-शाण्डिल्रू (पीड़ा निवारक), श्री फल, सदाफल इत्यादि। इसका गूदा या मज्जा बल्वकर्कटी कहलाता है तथा सूखा गूदा बेलगिरी। बेल के वृक्ष सारे भारत में, विशेषतः हिमालय की तराई में, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में ४००० फीट की ऊँचाई तक पाये जाते हैं।मध्य व दक्षिण भारत में बेल जंगल के रूप में फैला पाया जाता है। इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसके अलाव इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्वीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में की जाती है।

धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है। हिन्दू धर्म में इसे भगवान शिव का रूप ही माना जाता है व मान्यता है कि इसके मूल यानि जड़ में महादेव का वास है तथा इनके तीन पत्तों को जो एक साथ होते हैं उन्हे त्रिदेव का स्वरूप मानते हैं परंतु पाँच पत्तों के समूह वाले को अधिक शुभ माना जाता है, अतः पूज्य होता है। धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। इसके वृक्ष १५-३० फीट ऊँचे कँटीले एवं मौसम में फलों से लदे रहते हैं। इसके पत्ते संयुक्त विपत्रक व गंध युक्त होते हैं तथा स्वाद में तीखे होते हैं। गर्मियों में पत्ते गिर जाते हैं तथा मई में नए पुष्प आ जाते हैं। फल मार्च से मई के बीच आ जाते हैं। बेल के फूल हरी आभा लिए सफेद रंग के होते हैं व इनकी सुगंध भीनी व मनभावनी होती है।

उष्ण कटिबंधीय फल बेल के वृक्ष हिमालय की तराई, मध्य एवं दक्षिण भारत बिहार, तथा बंगाल में घने जंगलों में अधिकता से पाए जाते हैं। चूर्ण आदि औषधीय प्रयोग में बेल का कच्चा फल, मुरब्बे के लिए अधपक्का फल और शर्बत के लिए पका फल काम में लाया जाता है।

गर्मी एवं पेट के रोगों से मुक्ति प्रदान करने वाला, संस्कृत में 'बिल्व' और हिन्दी में 'बेल' नाम से प्रसिद्ध यह फल महाराष्ट्र और बंगाल में 'बेल', कोंकण में 'लोहगासी', गुजरात में 'बीली', पंजाब में 'वेल' और 'सीफल' संथाल में 'सिंजो', कठियावाड़ में 'थिलकथ' नाम से जाना जाता है। इसके गीले गूदे को 'बिल्वपेशिका' या 'बिल्वकर्कटी' तथा सूखे गूदे 'बेल सोंठ' या 'बेल गिरी' कहा जाता है।

बेल का वृक्ष १५ से ३० फुट ऊँचा और पत्तियाँ तीन और कभी-कभी पाँच पत्रयुक्त होती है। तीखी स्वाद वाली इन पत्तियों को मसलने पर विशिष्ट गंध निकलती है। गर्मियों में पत्ते गिरने पर मई में पुष्प लगते हैं, जिनमें अगले वर्ष मार्च-मई तक फल तैयार हो जाते हैं। इसका कड़ा और चिकना फलकवच कच्ची अवस्था में हरे रंग और पकने पर सुनहरे पीले रंग का हो जाता है। कवच तोड़ने पर पीले रंग का सुगन्धित मीठा गूदा निकलता है जो खाने और शर्बत बनाने के काम आता है। 'जंगली बेल' के वृक्ष में काँटे अधिक और फल छोटा होता है।

बेल के फलों में 'बिल्वीन' नाम या 'मार्मेसोलिन' नामक तत्व एक प्रधान सक्रिय घटक होता है। इसके अतिरिक्त गूदे में लबाब, पेक्टिन, शर्करा, कषायिन एवं उत्पत तेल पाए जाते हैं। ताज़े पत्तों से प्राप्त पीताभ-हरे रंग का उत्पत तेल स्वाद में तीखा और सुगन्धित होता है। इसका कच्चा फल उद्दीपक-पाचक ग्राही, रक्त स्तंभक- पक्का फल कषाण, मधुर और मृदु रेचक तथा पत्तों का रस घाव ठीक करने, वेदना दूर करने, ज्वर नष्ट करने, जुकाम और श्वास रोग मिटाने तथा मूत्र में शर्करा कम करने वाला होता है। इसकी छाल और जड़ घाव, कफ, ज्वर, गर्भाशय का घाव, नाड़ी अनियमितता, हृदयरोग आदि दूर करने में सहायक होती है।

बिल्वादि चूर्ण, बिल्व तेल, बिल्वादि घृत, बृहद गंगाधर चूर्ण, बिल्व पंचक क्वाथ आदि औषधियों में प्रयुक्त होने वाले बेल के फलों का अधिक सेवन अर्श (बवासीर) के रोगियों के लिए अहितकर होता है। इसके अतिरिक्त गूदे में बीज दोहरी झिल्ली के बीच होते हैं, जिसमें लेसदार द्रव होता है। इसे झिल्ली और बीजों सहित न निकालने पर मुख में छाले होने की संभावना रहती है। जठराग्नि मन्द हो जाने पर भूख मर जाती है। खाया-पिया हजम नहीं होता। ऐसे में बेल के पके गूदे में, पचास ग्राम पानी में फूली इमली और पचास ग्राम दही में थोड़ा बूरा मिला मिक्सी में घोंट लें। यह पेय स्वादिष्ट, पचने में आसान, भूख बढ़ाने वाला, चुस्ती देने वाला शर्बत है। कुछ दिन नियमित लें।  


कैसे आया बेल वृक्ष

बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में ‘स्कंदपुराण’ में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत (mandaar mountain) पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं।

यह एक रामबाण दवा भी है धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों (mandir/temple) के पास लगाया जाता है। बिल्व वृक्ष की तासीर बहुत शीतल होती है। गर्मी की तपिश से बचने के लिए इसके फल का शर्बत बड़ा ही लाभकारी (helpful) होता है। यह शर्बत कुपचन, आंखों की रोशनी (eye sight) में कमी, पेट में कीड़े और लू लगने जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए उत्तम है। औषधीय गुणों से परिपूर्ण बिल्व की पत्तियों मे टैनिन, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नेशियम (magnesium) जैसे रसायन (chemical) पाए जाते हैं।

बेल पत्र इसी बेल नामक फल की पत्तियाँ हैं जिनका प्रयोग पूजा में किया जाता है।

आयुर्वेद में बेल को अत्यन्त गुणकारी फल माना जाता है।

यह एक ऐसा फल है जिसके पत्ते, जड़ और छाल भी उपयोगी हैं।

खाने या शर्बत बनाने के लिए खेतों-बागों में उगाए बेल तथा दवा बनाने में जंगली बेल का प्रयोग होता है।

इसके कुछ घरेलू इलाज निम्न लिखित हैं किन्तु इनका सेवन करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श कर लेना उचित है।

गर्मियों में लाभदायक है बेल फल

गर्मी के मौसम में गर्मी से राहत देने वाले फलों में बेल का फल प्रकृति मां द्वारा दी गई किसी सौगात से कम नहीं है | कहा गया है- 'रोगान बिलत्ति-भिनत्ति इति बिल्व ।' अर्थात् रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है ।बेल सुनहरे पीले रंग का, कठोर छिलके वाला एक लाभदायक फल है। गर्मियों में इसका सेवन विशेष रूप से लाभ पहुंचाता है। शाण्डिल्य, श्रीफल, सदाफल आदि इसी के नाम हैं। इसके गीले गूदे को बिल्व कर्कटी तथा सूखे गूदे को बेलगिरी कहते हैं।स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग जहाँ इस फल के शरबत का सेवन कर गर्मी से राहत पा अपने आप को स्वस्थ्य बनाए रखते है वहीँ भक्तगण इस फल को अपने आराध्य भगवान शिव को अर्पित कर संतुष्ट होते है |
औषधीय प्रयोगों के लिए बेल का गूदा, बेलगिरी पत्ते, जड़ एवं छाल का चूर्ण आदि प्रयोग किया जाता है। चूर्ण बनाने के लिए कच्चे फल का प्रयोग किया जाता है वहीं अधपके फल का प्रयोग मुरब्बा तो पके फल का प्रयोग शरबत बनाकर किया जाता है।

बेल व बिल्व पत्र के नाम से जाने जाना वाला यह स्वास्थ्यवर्धक फल उत्तम वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है। ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं। इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं। चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है।
बिल्वपत्र ज्वरनाशक, वेदनाहर, कृमिनाशक, संग्राही (मल को बाँधकर लाने वाले) व सूजन उतारने वाले हैं। ये मूत्र के प्रमाण व मूत्रगत शर्करा को कम करते हैं। शरीर के सूक्ष्म मल का शोषण कर उसे मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देते हैं। इससे शरीर की आभ्यंतर शुद्धि हो जाती है। बिल्वपत्र हृदय व मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं। शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते हैं। इनके सेवन से मन में सात्त्विकता आती है।

यह एक रामबाण दवा भी है

वनस्पति में बेल का अत्यधिक महत्व है। यह मूलतः शक्ति का प्रतीक माना गया है। किसी-किसी पेड़ पर पांच से साढ़े सात किलो वजन वाले चिकित्सा विज्ञान में बेल का विशेष महत्व है। आजकल कई व्यक्ति इसकी खेती करने लगे हैं। इसके फल से शरबत, अचार और मुरब्बा आदि बनाए जाते हैं। यह हृदय रोगियों (heart patients) और उदर विकार से ग्रस्त लोगों के लिए रामबाण औषधि (medicine) है।

*ये पेय गर्मियों में जहां आपको राहत देते हैं, वहीं इनका सेवन शरीर के लिए लाभप्रद भी है। बेल में शरीर को ताकतवर रखने के गुणकारी तत्व विद्यमान हैं। इसके सेवन से कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि यह रोगों को दूर भगा कर नई स्फूर्ति प्रदान करता है।

अजीर्ण में बेल की पत्तियों के दस ग्राम रस में, एक-एक ग्राम काली मिर्च और सेंधानमक मिलाकर पिलाने से आराम मिल सकता है।

अतिसार के पतले दस्तों में ठंडे पानी से लिया ५-१० ग्राम बिल्व चूर्ण आराम पहुँचाता है। कच्चे बेल की कचरियों को धूप में अच्छी तरह सुखा लें या पंसारी से साफ़ छाँट ले आएँ। इन्हें बारीक पीस कपड़ाछान करके शीशी में भर लें। यही बिल्व चूर्ण है। छोटे बच्चों के दाँत निकलते समय दस्तों में भी यह चुटकी भर चटा दें।

आँखें दुखने पर पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो बूँद आँखों में टपकाएँ। दुखती आँखों की पीड़ा, चुभन, शूल ठीक होकर, नेत्र ज्योति बढ़ेगी।

जल जाने पर बिल्व चूर्ण, गरम किए तेल को ठंडा करके पेस्ट बना लें। जले अंग पर लेप करने से फौरन आराम आएगा। चूर्ण न होने पर बेल का पक्का गूदा साफ़ करके भी लेपा जा सकता है।

पाचन तंत्र में खराबी के कारण आंव आने लगती है, जो कुछ ही समय में रोगी को दुर्बल-असक्त बना देती है। ऐसे में बेलगिरी और आम की गुठली की गिरी बराबर मात्रा में कूट-छान लें। आधा ग्राम चूर्ण सुबह चावल की माड के साथ सेवन करें। आधा ग्राम यह चूर्ण पहले दिन दो-दो घंटे बाद चार बार, दूसरे दिन सुबह-दोपहर और तीसरे दिन सिर्फ़ सुबह लें। आंव बन्द हो जाने पर चूर्ण न लें।

कब्ज से पेट-सीने में जलन रहने पर पचास ग्रामा गूदे में, पच्चीस ग्राम पिसी हुई मिश्री और ढ़ाई सौ ग्राम जल मिलाकर शर्बत बना लें। रोज़ पीने से कब्ज़ नष्ट होकर, चेहरे पर ओज आएगा।

छाती में जमे कफ से तेज़ खाँसी उठती है। रोगी रातभर सो नहीं पाता। इसमें सौ ग्राम बेल गूदा आधा किलो पानी में हल्की आँच में पकायें। तीन सौ ग्राम रह जाने पर उतार कर छान लें। एक किलो मिश्री की एक तार चासनी बनाकर इसमें मिलाएँ। एक रती भर केसर और थोड़ी जावित्री डालकर इसे सुगंधित और पुष्टिकर बना लें। गुनगुना घूँट-घूँट कर पिएँ। सर्दियों में इस्तेमाल करने से कफ इकठ्ठा नहीं होगा।

दमा में कफ निकालने के लिए बेल की पत्तियों का काढ़ा दस-दस ग्राम सुबह-शाम शहद मिला कर पिएँ। अथवा पाँच ग्राम रस में पाँच ग्राम सरसों का शुद्ध तेल मिला कर पिलाएँ।

पचास ग्राम सूखे बेल पत्तों का चूर्ण, तीन ग्राम मात्रा में एक चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम देने अथवा पक्के गूदे में थोड़ी मलाई मिलाकर खाने से मूत्र और वीर्य दोष नष्ट होते हैं।

ल्युकोरिया में बेलगिरी रसौत और नागकेसर समान मात्रा में कूट-पीस कर कपड़े से छान लें पाँच ग्राम चूर्ण, चावल के मांड के साथ दिन में दो या तीन बार दें।

पीलिया में बेल की कोंपलों का पचास ग्राम रस, एक ग्राम पिसी काली मिर्च मिलाकर सुबह-शाम पिलाएँ। शरीर में सूजन भी हो तो पत्र रस तेल की तरह मलिए।

सौ ग्राम पानी में थोड़ा गूदा उबालें, ठंडा होने पर कुल्ले करने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।

रक्त शुद्धि के लिए बेलवृक्ष की पचास ग्राम जड़, बीस ग्राम गोखरू के साथ पीस-छान लें। सुबह एक छोटा चम्मच चूर्ण आधा कप खौलते पानी में घोंलें। मिश्री या शहद मिला कर गरमा-गरम घूँट भरें। कुछ ही दिनों में लाभ दिखाई देने लगेगा।

सिर दर्द में बेल पत्र के रस से भीगी पट्टी माथे पर रखें। पुराना सर दर्द होने पर ग्यारह पत्तों का रस निकाल कर पी जाएँ। गर्मियों में इसमें थोड़ा पानी मिला ले। कितना ही पुराना सर दर्द ठीक हो जाएगा।

मोच अथवा अन्दरूनी चोट में बेल पत्रों को पीस कर थोड़े गुड़ में पकाइए। इसे थोड़ा गर्म पुल्टिस बन पीडित अंग पर बाँध दें। दिन में तीन-चार बार पुल्टिस बदलने पर आराम आ जाएगा।


*गर्मियों में लू लगने पर इस फल का शर्बत पीने से शीघ्र आराम मिलता है तथा तपते शरीर की गर्मी भी दूर होती है।

*पुराने से पुराने आँव रोग से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन अधकच्चे बेलफल का सेवन करें।

*पके बेल में चिपचिपापन होता है इसलिए यह डायरिया रोग में काफी लाभप्रद है। यह फल पाचक होने के साथ-साथ बलवर्द्धक भी है।

*पके फल के सेवन से वात-कफ का शमन होता है।

*आँख में दर्द होने पर बेल के पत्त्तों की लुगदी आँख पर बाँधने से काफी आराम मिलता है।

*कई मर्तबा गर्मियों में आँखें लाल-लाल हो जाती हैं तथा जलने लगती हैं। ऐसी स्थिति में बेल के पत्तों का रस एक-एक बूँद आँख में डालना चाहिए। लाली व जलन शीघ्र दूर हो जाएगी।

*बच्चों के पेट में कीड़े हों तो इस फल के पत्तों का अर्क निकालकर पिलाना चाहिए।

*बेल की छाल का काढ़ा पीने से अतिसार रोग में राहत मिलती है।

*इसके पके फल को शहद व मिश्री के साथ चाटने से शरीर के खून का रंग साफ होता है, खून में भी वृद्धि होती है।

*बेल के गूदे को खांड के साथ खाने से संग्रहणी रोग में राहत मिलती है।

*पके बेल का शर्बत पीने से पेट साफ रहता है।

*बेल का मुरब्बा शरीर की शक्ति बढ़ाता है तथा सभी उदर विकारों से छुटकारा भी दिलाता है।

*गर्मियों में गर्भवती स्त्रियों का जी मिचलाने लगे तो बेल और सौंठ का काढ़ा दो चम्मच पिलाना चाहिए।

*पके बेल के गूदे में काली मिर्च, सेंधा नमक मिलाकर खाने से आवाज भी सुरीली होती है।

*छोटे बच्चों को प्रतिदिन एक चम्मच पका बेल खिलाने से शरीर की हड्डियाँ मजबूत होती हैं।

सोमवार, 30 अप्रैल 2018

अपनी सुंदरता को पहचानिए

पतला होना ही स्वास्थ्य की निशानी नही है क्योंकि बहुत से मोटे लोग उम्र पूरी करके जाते हैं और पतले लोग समय से पहले !

अपने को बढ़ती उम्र के साथ स्वीकारना एक तनावमुक्त जीवन देता है। हर उम्र एक अलग तरह की खूबसूरती लेकर आती है उसका आनंद लीजिये।

बाल रंगने है तो रंगिये,
वज़न कम रखना है तो रखिये,
मनचाहे कपड़े पहनने है तो पहनिए,
बच्चों की तरह खिलखिलाइये,
अच्छा सोचिये,
अच्छा माहौल रखिये,
शीशे में दिखते हुए अपने अस्तित्व को स्वीकारिये।

कोई भी क्रीम आपको गोरा नही बनाती,
कोई शैम्पू बाल झड़ने नही रोकता,
कोई तेल बाल नही उगाता,
कोई साबुन आपको बच्चों जैसी स्किन नही देता।
चाहे वो प्रॉक्टर गैम्बल हो या पतंजलि .....सब सामान बेचने के लिए झूठ बोलते हैं।

ये सब कुदरती होता है।
उम्र बढ़ने पर त्वचा से लेकर बॉलों तक मे बदलाव आता है।
पुरानी मशीन को maintain करके बढ़िया चला तो सकते हैं, पर उसे नई नही कर सकते।

ना किसी टूथपेस्ट में नमक होता है ना किसी मे नीम।
किसी क्रीम में केसर नही होती, क्योंकि 2 ग्राम केसर भी 500 रुपए से कम की नही होती !

जो आपकी पॉकेट allow करती है वो प्रसाधन खरीदिये, क्योंकि केमिकल्स सब में हैं।

lux की बनियान साधारण बनियान से इसलिये महंगी है क्योंकी उसमे विज्ञापन के लिए सनी देओल और अक्षय कुमार होते हैं
...और वो लक्स नही, calvin cline या पियरे कार्डिन पहनते हैं।
करीना कपूर कभी लक्स साबुन से नही नहाती
और अमिताभ बच्चन लाल तेल नही लगाता !

कोई बात नही अगर आपकी नाक मोटी है तो,
कोई बात नही आपकी आंखें छोटी हैं तो,
कोई बात नही अगर आप गोरे नही हैं
या आपके होंठों की shape perfect नही हैं....

फिर भी हम सुंदर हैं,
अपनी सुंदरता को पहचानिए।

दूसरों से कमेंट या वाह वाही लूटने के लिए सुंदर दिखने से ज्यादा ज़रूरी है, अपनी सुंदरता को महसूस करना।

हर बच्चा सुंदर इसलिये दिखता है कि वो छल कपट से परे मासूम होता है और बडे होने पर जब हम छल व कपट से जीवन जीने लगते है तो वो मासूमियत खो देते हैं
...और उस सुंदरता को पैसे खर्च करके खरीदने का प्रयास करते हैं।

मन की खूबसूरती पर ध्यान दो।

यह कर्तव्य हो कि अपने परिवार में अपनी पत्नी, बेटी, बहन को ये अहसास दिलायें कि वो प्राकृतिक रूप से सुंदर हैं,
वरना वो केमिकल्स का सहारा लेकर अपना स्वास्थ्य खराब कर लेंगी।

आजकल युवा लड़के बॉडी बनाने की धुन में पागल रहते हैं
ये असर है उन फ़िल्म स्टारों और मॉडल्स का जिससे ये युवा सोचते हैं कि वो अपने चहेते हीरो जैसी बॉडी बना कर हीरो जैसे दिखेंगे।

आपको शायद पता नही कि एक भी हीरो naturally बॉडी नही बनाता।
इनके पीछे बहुत सी प्लास्टिक सर्जरी,  steroids implants, lyposuctions, body contouring  का हाथ होता है।

आपरेशन से 6 pack बनवाते हैँ,
चेहरे पर सर्जरी करवाते हैं,
बाल उगवाते हैं,
मांसपेशियों में सिलिकॉन भरवाते हैं
...और ये सब वो इसलिते करते हैं,
क्योंकि उन्हें इन सबका पैसा मिलता है।
स्क्रीन पर सुंदर दिखना उनके धंधे की मजबूरी है उसके लिये वो शरीर से भी खेलते हैं वरना उन्हें कोई काम नही देगा।

लेकिन आम जीवन मे हमे बॉडी दिखाने के पैसे नही मिलते, काम करने के पैसे मिलते हैं तो हम हीरो जैसे दिखने से अच्छा है अपने काम मे हुनर दिखायें ।
हमारी तरक्की तो उसी से होगी।

पेट निकल गया तो कोई बात नही उसके लिए शर्माना ज़रूरी नही ।
आपका शरीर आपकी उम्र के साथ बदलता है तो वज़न भी उसी हिसाब से घटता बढ़ता है उसे समझिये।

सारा इंटरनेट और सोशल मीडिया तरह तरह के उपदेशों से भरा रहता है,
यह खाओ,वो मत खाओ
ठंडा खाओ , गर्म पीओ,
कपाल भाती करो, 
सवेरे नीम्बू पीओ ,
रात को दूध पीओ
ज़ोर से सांस लो, लंबी सांस लो
दाहिने से सोइये ,
बाहिने से उठिए,
हरी सब्जी खाओ,
दाल में प्रोटीन है,
दाल से क्रिएटिनिन बढ़ जायेगा।

अगर पूरे एक दिन सारे उपदेशों को पढ़ने लगें तो पता चलेगा
ये ज़िन्दगी बेकार है ना कुछ खाने को बचेगा ना कुछ जीने को !!
आप डिप्रेस्ड हो जायेंगे।

ये सारा ऑर्गेनिक ,एलोवेरा, करेला, मेथी ,पतंजलि में फंसकर दिमाग का दही हो जाता है।
स्वस्थ होना तो दूर स्ट्रेस हो जाता है।

अरे! अपन मरने के लिये जन्म लेते हैं,
कभी ना कभी तो मरना है अभी तक बाज़ार में अमृत बिकना शुरू नही हुआ।

हर चीज़ सही मात्रा में खाइये,
हर वो चीज़ थोड़ी थोड़ी जो आपको अच्छी लगती है।

भोजन का संबंध मन से होता है
और मन अच्छे भोजन से ही खुश रहता है।
मन को मारकर खुश नही रहा जा सकता।
थोड़ा बहुत शारीरिक कार्य करते रहिए,
टहलने जाइये,
लाइट कसरत करिये 
व्यस्त रहिये, 
खुश रहिये ,
शरीर से ज्यादा मन को सुंदर रखिये।

अगर पैसे से सुंदरता व जीवन खरीद लिया जाता तो कोई बड़ा आदमी इस दुनिया से ना जाता और हर अमीर आदमी सुंदर होता।

Live life Naturally!! 

Your body is a gift of God,
Just love your body, but dont be obsessed with it.
🙏🏻🤓💐
🚩🇮🇳🚩

रविवार, 29 अप्रैल 2018

प्राइवेट जाब में छुट्टी ले कर शादीयो मे पहुंचना उतना ही मुश्किल है जितना

प्राइवेट जाब में छुट्टी ले कर शादीयो मे पहुंचना उतना ही मुश्किल है
जितना

पुरानी फिल्मों में गवाह का कोर्ट पहुंचना होता था
😀😀😀😀😀😀😀😀®🅿

असली धन्यबाद करना ही है तो..

मैंने उसका कोई कार्य कर दिया..
बदले में उसने ..

      धन्यबाद कहा..

    मैंने कहा

   असली धन्यबाद करना ही है तो..

5 व्यक्ति जो काँग्रेसी हों
  उन्हें  कांग्रेस को वोट ना देने को राजी करो... ..

कन्या दान के बाद अधिकार जमाना अनुचित है

सास बहू संबंध

कन्या दान के बाद अधिकार जमाना अनुचित है

अस कहि पग परि पेम अति सिय हित बिनय सुनाइ।
सिय समेत सियमातु तब चली सुआयसु पाइ।।

जरा विचार करें कि जिनकी सुकोमल पुत्री एक राजकुमार से विवाह के बाद वन - वन भटक रही है, कंद -मूल-फल भोजन कर रही है लेकिन कोई आपत्ति नहीं है।
विदेह राज जनक जी दहेज कम दिए थे कि उनकी पुत्री अयोग्य थी???
किसी से सुंदरता कम था क्या???
क्या सीता जी से भी ज्यादा कोई कष्ट करेंगी??
लेकिन उनके माता पिता कोई आपत्ति करते हैं??
अधिकार जमाते हैं????
किसी को दोष देते हैं????
अपनी प्रिय पुत्री के पति, सास, ससुर के प्रति गलत व्यवहार है???=
उनकी प्रिय पुत्री चित्रकूट में कुटिया में हैं लेकिन जब सुनयना जी को पुत्री सीता जी को अपने संग कुछ घड़ी के लिए अपने शिविर में ले जाना है तो वे पुत्री के सासु माँ से आदेश लेती हैं।
वे यह मान रही हैं कि कन्या दान के बाद अधिकार जमाना दान के महत्ता कम करना है।
मेरी प्यारी पुत्री अब जिनकी बहू है उनसे आदेश लेकर ही पुत्री को ले जाना उचित है।
वे अपनी प्रिय पुत्री के सासु माँ को चरण वंदन करती हैं और विनती करती हैं कि - सीता को अपने बचपन के सखियों , माताओं, स्वजनों से मिलने के लिए मेरे साथ जाने की आज्ञा दें। इसे स्वजनों से मिलने के बाद आपके सेवा में उपस्थित करूँगी।
वहाँ जाने पर कोई सीता जी के ससुराल को दोष नहीं देते बल्कि पिता को अपनी प्रिय पुत्री के आचरण पर गर्व होता है...
कोई आधुनिक युग जैसे ये कहने वाला नहीं है कि दहेज व्यर्थ गया
बड़े नालायक के यहाँ विवाह किए....आदि आदि
पिता गर्व से कहते हैं-
पुत्री! पवित्र किए कुल दोऊ। सुजस धवल जगु कह सब कोऊ।।
मेरी प्यारी बिटिया! मुझे तुम पर गर्व है।
तुमने ससुर कुल के साथ साथ पिता कुल भी गौरवान्वित कर दी। केवल मैं ही नहीं बल्कि सभी तुम्हारी प्रशंसा कर रहे हैं।
तुम जैसी महान बिटिया के पिता होने का मुझे गर्व है।
जिति सुरसरि कीरति सरि तोरी। गवनु कीन्ह बिधि अंड करोरी।।
गंगा जी  जो त्रपथगामिनी हैं तो भूलोक के कुछ क्षेत्र में ही गमन की हैं । मात्र तीन लोक को पवित्र करने की  क्षमता है लेकिन तुम्हारे कीर्ति रूपी निर्मल गंगा करोड़ों ब्रह्मांड में गमन कर पवित्र कर रही है।
मैं तुम्हारे पिता बन कर परम धन्य हूँ सीते ! मैं परम धन्य हूँ!!!!
वे अपनी प्रिय पुत्री के ससुराल का आदर करते हैं।
पुत्री के सास ससुर पर दोषारोपण नहीं करते।
उन्हें पुत्री के पति से भी कोई शिकायत नहीं है
बस यही कारण है कि...महान त्यागी विदेह वंश की कन्या महान आदर्श प्रस्तुत कर सकीं...
सती सिरोमनि सिय गुन गाथा।सोइ गुन अमल अनूपम पाथा।।

सीता जैसी महान बिटिया के माता पिता को शत् शत् नमन
सीताराम जय सीताराम
सीताराम जय सीताराम

जो तुम्हारे और तुम्हारे परिवार का भविष्य सुधार देगा

बाप मरणासन्न अवस्था में पलंग पर पड़ा था।

दो भाई, ऐक बहन अंतिम समय अपने पिता के पास बैठे थे।

पिता ने तीनो से कहा- में तुम्हें कुछ सपने तुम्हारी आने वाली पीढियों के लिए कुछ देना चाहता था ,

तीनों संताने एक साथ बोली .............
पिता जी आपने सब तो दे दिया अब कुछ नही चाहिये........

पिताजी बोले - नही मुझे पता था की समय आने के पहले ही मेरे प्राण निकल जाएगे
इस लिए मेने पूजा घर मे मूर्ति के नीचे लिख कर रखा है, जो तुम्हारे और तुम्हारे परिवार का भविष्य सुधार देगा।।

इतना बोल पिताजी चिर निद्रा मैं लीन हो गये................

क्रिया कर्म के बाद याद आने पर बेटी पूजा घर में रखा कागज ला कर पढने लगी......

आखो में आसूं थे................

भाई ने पूछा क्या लिखा है बता....................

*पर्ची पर लिखा हुआ था*
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*"अब की बार मोदी सरकार"*🚩🚩

सफलतम प्रबंधक है."एक आम गृहिणी"

कई साल पहले एक बड़े कॉर्पोरेट हाउस ने बेंगलोर में *मैनेजमेंट गुरुओं* का एक सम्मेलन कराया था।

उसमे एक सवाल पूछा गया था।

*आप सफलतम मैनेजर किसे मानते हैं?*

विशेषज्ञों ने...

रोनाल्ड रीगन से नेल्सन मंडेला तक,

चर्चिल से गांधी तक,

टाटा से हेनरी फोर्ड तक,

चाणक्य से बिस्मार्क तक,

और न जाने कितने और नाम सुझाये।

पर ज्यूरी ने *कुछ और ही सोच* रखा था।

*सही उत्तर था* सफलतम प्रबंधक है...

*"एक आम गृहिणी ।"*

एक गृहिणी परिवार से किसी का *ट्रांसफर* नहीं कर सकती।

किसी को *सस्पेंड* नहीं कर सकती।

किसी को *टर्मिनेट* नहीं कर सकती।

और,

किसी को *अपॉइंट* भी नहीं कर सकती।

परन्तु फिर भी *सबसे काम करवाने की क्षमता* रखती है।

*किससे*, *क्या* और *कैसे* कराना है...

कब *प्रेम के राग* में *हौले से काम पिरोना* है...

और कब *राग सप्तक* पर *उच्च स्वर* में *भैरवी सुना क*र जरूरी कामों को अंजाम तक पहुंचाना है...

उसे पता होता है।

मानव संसाधन प्रबंधन का इससे बेहतर क्या उदहारण हो सकता है?

बड़े बड़े उद्योगों में भी कभी कभी इसलिए काम रुक जाता है क्योंकि *जरूरी फ्यूल* नहीं था या कोई *स्पेयर पार्ट* उपलब्ध नहीं था या कोई *रॉ मटेरियल* कम पड़ गया।

पर किसी गरीब से गरीब घर मे भी *नमक* _कम नहीं पड़ता_।

शायद बहुत याद करने पर भी आप को *वह दिन याद न आ पाए* जिस दिन *मां आपको खाने में* सिर्फ इसलिए कुछ नहीं दे पाई कि *बनाने को कुछ नही था* या *गैस खत्म* हो गई थी या *कुकर का रिंग* खराब हो गया था।

हर कमोबेशी और हर समस्या का *विकल्प* एक गृहिणी रखती है।

वो भी *बिल्कुल खामोशी* से।

*सामग्री प्रबंधन* एवं *संचालन*, संधारण प्रबंधन का इससे बेहतर उदाहरण क्या हो सकता है ?

काम वाली बाई का बच्चा दुर्घटना का शिकार हो जाता है।

डॉक्टर बड़ा खर्च बता देता है, बाकी सब बगलें झांकने लगते हैं।

लेकिन वो फटाफट पुराने संदूको में छुपा कर रखे बचत के पैसे निकालती है।

कुछ गहने गिरवी रखती है।

कुछ घरों से सिर्फ साख के आधार पर उधार लेती है।

पर *पैसे का इंतजाम* कर ही लाती है।

*संकटकालीन अर्थ प्रबंध* का इससे बेहतर क्या उदाहरण हो सकता है?

निचले इलाकों में बेमौसम बारिश में घर मे पानी भरने लगे या *बिना खबर* अचानक चार मेहमान आ जाएं।

सब के लिए *आपदा प्रबंधन* की योजना रहती है उसके पास।

और...

सारे प्रबंधन के लिए पास में है बस कुछ आंसू और कुछ मुस्कान।

लेकिन...

जो सबसे बड़ी चीज होती है...

वो है...

जिजीविषा*, *समर्पण* और *प्रेम*।

सफल गृहिणी का *सबसे बड़ा संबल* होता है *सब्र*।

वही सब्र...

जिसके बारे में किसी ने बहुत सटीक कहा है...

*सब्र का घूंट दूसरों को पिलाना*
*कितना आसान लगता है*।

*ख़ुद पियो तो*,
*क़तरा क़तरा ज़हर लगता है*।

🙏

सफलतम प्रबंधक है."एक आम गृहिणी"

कई साल पहले एक बड़े कॉर्पोरेट हाउस ने बेंगलोर में *मैनेजमेंट गुरुओं* का एक सम्मेलन कराया था।

उसमे एक सवाल पूछा गया था।

*आप सफलतम मैनेजर किसे मानते हैं?*

विशेषज्ञों ने...

रोनाल्ड रीगन से नेल्सन मंडेला तक,

चर्चिल से गांधी तक,

टाटा से हेनरी फोर्ड तक,

चाणक्य से बिस्मार्क तक,

और न जाने कितने और नाम सुझाये।

पर ज्यूरी ने *कुछ और ही सोच* रखा था।

*सही उत्तर था* सफलतम प्रबंधक है...

*"एक आम गृहिणी ।"*

एक गृहिणी परिवार से किसी का *ट्रांसफर* नहीं कर सकती।

किसी को *सस्पेंड* नहीं कर सकती।

किसी को *टर्मिनेट* नहीं कर सकती।

और,

किसी को *अपॉइंट* भी नहीं कर सकती।

परन्तु फिर भी *सबसे काम करवाने की क्षमता* रखती है।

*किससे*, *क्या* और *कैसे* कराना है...

कब *प्रेम के राग* में *हौले से काम पिरोना* है...

और कब *राग सप्तक* पर *उच्च स्वर* में *भैरवी सुना क*र जरूरी कामों को अंजाम तक पहुंचाना है...

उसे पता होता है।

मानव संसाधन प्रबंधन का इससे बेहतर क्या उदहारण हो सकता है?

बड़े बड़े उद्योगों में भी कभी कभी इसलिए काम रुक जाता है क्योंकि *जरूरी फ्यूल* नहीं था या कोई *स्पेयर पार्ट* उपलब्ध नहीं था या कोई *रॉ मटेरियल* कम पड़ गया।

पर किसी गरीब से गरीब घर मे भी *नमक* _कम नहीं पड़ता_।

शायद बहुत याद करने पर भी आप को *वह दिन याद न आ पाए* जिस दिन *मां आपको खाने में* सिर्फ इसलिए कुछ नहीं दे पाई कि *बनाने को कुछ नही था* या *गैस खत्म* हो गई थी या *कुकर का रिंग* खराब हो गया था।

हर कमोबेशी और हर समस्या का *विकल्प* एक गृहिणी रखती है।

वो भी *बिल्कुल खामोशी* से।

*सामग्री प्रबंधन* एवं *संचालन*, संधारण प्रबंधन का इससे बेहतर उदाहरण क्या हो सकता है ?

काम वाली बाई का बच्चा दुर्घटना का शिकार हो जाता है।

डॉक्टर बड़ा खर्च बता देता है, बाकी सब बगलें झांकने लगते हैं।

लेकिन वो फटाफट पुराने संदूको में छुपा कर रखे बचत के पैसे निकालती है।

कुछ गहने गिरवी रखती है।

कुछ घरों से सिर्फ साख के आधार पर उधार लेती है।

पर *पैसे का इंतजाम* कर ही लाती है।

*संकटकालीन अर्थ प्रबंध* का इससे बेहतर क्या उदाहरण हो सकता है?

निचले इलाकों में बेमौसम बारिश में घर मे पानी भरने लगे या *बिना खबर* अचानक चार मेहमान आ जाएं।

सब के लिए *आपदा प्रबंधन* की योजना रहती है उसके पास।

और...

सारे प्रबंधन के लिए पास में है बस कुछ आंसू और कुछ मुस्कान।

लेकिन...

जो सबसे बड़ी चीज होती है...

वो है...

जिजीविषा*, *समर्पण* और *प्रेम*।

सफल गृहिणी का *सबसे बड़ा संबल* होता है *सब्र*।

वही सब्र...

जिसके बारे में किसी ने बहुत सटीक कहा है...

*सब्र का घूंट दूसरों को पिलाना*
*कितना आसान लगता है*।

*ख़ुद पियो तो*,
*क़तरा क़तरा ज़हर लगता है*।

🙏

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