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शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

सिक्किम में ऑर्गेनिक खेती से चार साल में दोगुना हुआ पर्यटन


सिक्किम में ऑर्गेनिक खेती से चार साल में दोगुना हुआ पर्यटन

चार जिलों और सवा छह लाख आबादी वाला सिक्किम इन दिनों ऑर्गेनिक खेती की वजह से चर्चा में है। वर्ष 2014 तक सालाना छह लाख पर्यटक ही सिक्किम आ रहे थे। लेकिन ऑर्गेनिक स्टेट घोषित होने के बाद इसमें तेजी से इजाफा हुआ। 2014-15 में साढ़े छह लाख पर्यटक आए। 2016 में 8.6 लाख और 2017 में 14 लाख पार हो गए। कृषि, उद्यानिकी और कैश क्रॉप डेवलपमेंट विभाग के सचिव खोरलो भूटिया कहते हैं- ऑर्गेनिक के कारण ही यह चमत्कार हुआ है। चार सालों में पर्यटकों की तादाद दोगुनी हो गई है। इस साल हम 20 लाख की उम्मीद कर रहे हैं। दो साल में नेपाल, भूटान समेत देश के सभी राज्यों से करीब 1100 प्रतिनिधिमंडल आकर देख चुके हैं कि यहां चल क्या रहा है? चार साल से रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर सख्ती से बंदिश है। दो साल पहले बाकायदा ऑर्गेनिक स्टेट घोषित के बाद लगातार कुछ न कुछ नया हो रहा है। राजधानी गंगटोक में बहुमंजिला किसान बाजार बन रहा है, जहां जैविक सब्जियों को लेकर किसान सीधे उपभोक्ताओं के बीच आ रहे हैं।  

इमारत अभी बन रही है, लेकिन बाजार शुरू हो चुका है। कुल 77 हजार हेक्टेयर जमीन में से इलायची, अदरक, हल्दी और बक व्हीट जैसी खास फसलों के लिए 14 हजार हेक्टेयर जमीन रिजर्व की गई है। इंडियन फामर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव (इफको) सिक्किम सरकार के साथ मिलकर जैविक फसलों के लिए 50 करोड़ रुपए लागत की प्रोसेसिंग यूनिट लगा रही है। एक साल के भीतर इनकी योजना इन्हीं चार प्रमुख फसलों को ऑर्गेनिक सिक्किम के ब्रांड से देश के हर मॉल तक ले जाने की है। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रांड सिक्किम दाखिल होगा।

जैविक जुनून की तीन प्रतिनिधि कहानियां-

1. थ्रीडी एनिमेशन का काम छोड़कर बेंगलुरू से आए

37 साल के शिशिर खड़का रानीपुल के रहने वाले हैं। बंंेगलुरू में तीन साल तक थ्रीडी एनिमेशन की पढ़ाई की। दो साल वहीं नौकरी की। जैविक का माहौल बना तो तीन साल पहले लौटकर आ गए। किसानों से खरीदकर इलायची, हल्दी, अदरक, बक व्हीट और कुट्‌टू के पावडर, चिप्स और नूडल्स का सुंदर सिक्किम नाम से अपना ही ब्रांड बना लिया।

 तीन साल में ही टर्न ओवर 80 लाख रुपए। 

रानीपुल में फैक्ट्री बन रही है। अब सिलीगुड़ी और कोलकाता ले जाने की तैयारी है। शिशिर कहते हैं- पैसा अपनी जगह है। बड़ी बात है कि सिक्किम के सीएम समेत इस फील्ड के कई बड़े लोग मुझे पहचानते हैं। बेंगलुरू की नौकरी में क्या यह मुमकिन था?

2. ढाई एकड़ से छह लाख रुपए सालाना कमाई…

खामदोंग गांव के 44 वर्षीय डीपी सुबेदी के पास ढाई एकड़ जमीन हैं। उनके पिता इसी जमीन पर सिर्फ भरण-पोषण लायक ही उपज ले पाते थे। सिर्फ लाख-डेढ़ लाख के अदरक और संतरे ही बाहर बिकते थे। वर्ष 2006 में सुबेदी ने काम संभाला। उन्हाेंने हर एक इंच जमीन का इस्तेमाल किया। आज वे चेरी पेपर, पपीता, अदरक, हल्दी, मिर्ची और सब्जियां उगा रहे हैं।

शहद के लिए मधुमक्खी पालन और दूध के लिए तीन गायें भीं। सालाना छह लाख की उपज बेच रहे हैं। अकेली मिर्ची ही दो लाख की। तीन गायों के गोबर और गोमूत्र से खाद खुद बनाते हैं। वे कहते हैं-ढाई एकड़ को जैविक बनाने के लिए तीन गायें काफी हैं। हम खाद नहीं खरीदते।

3. तीन साल तक उत्पादन घटा, अब बढ़ने लगा

रूमटेक गांव में 29 एकड़ के िकसान करमा डिचेन बताते हैं कि शुरू के तीन साल थोड़े कठिन थे। किसान गुस्से में थे। सरकार से नाराज भी। पहले एक हेक्टेयर में उत्पादन 20-22 क्विंटल था। लेकिन बाद में मजबूरी में जैविक हुए तो घटकर 15-16 क्विंटल पर आ गया। उन्हीं तीन सालों में जैविक खाद बनाने के ट्रेनिंग प्रोग्राम लगातार चले। शुरुआती नुकसान की भरपाई एमएसपी के जरिए सरकार ने की। खाद के लिए किसानों ने डेयरी साथ में जोड़ीं। जिनके पास गायें नहीं हैं, उन्हें सरकार जैविक खाद दे रही है। अब हम अपना उत्पादन 24-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ले आए हैं। उपज की कीमतें बेहतर मिल रही हैं। कोई खेती से दुःखी नही रहा
अब सब के चहेरे खिले खिले है... चारो तरफ तंदुरस्त फसले और कम खर्च मे विपुल आय.. 😀


गुरुवार, 3 सितंबर 2020

हल्दी की गुणवत्ता बढ़ाने का देशी फॉर्मूला

हल्दी की गुणवत्ता बढ़ाने का देशी फॉर्मूला।
मेरी दादीजी इसका प्रयोग करती है।
बाजार से दो तीन किलो साबुत हल्दी खरीदिये।
फिर इसे 6 घण्टे छाछ में भिगो दीजिए।
अब दो दिन धूप में सूखने दीजिए।
सूखने के बाद इसके टुकड़ों को मिट्टी के तवे पर हल्का भूनिये।
पूरी एक साथ नहीं भूननी है।
थोड़ी थोड़ी, यानि 4-5 गाँठें भूनिये, यहाँ अब दो व्यक्ति चाहिए।
एक भुनने वाला और दूसरा खरल या ओखली में कूटने वाला।
जैसे जैसी हल्दी भुनती जाए वैसे वैसे कूटते जाएं।
गरम गाँठें बिना आवाज के जल्दी जल्दी क्रिस्टल में बदल जाती है।
एक बार सारी हल्दी दरदरी हो जाने पर वह भीतर से लाल रंग की दिखेगी।
अब इसे ठंडा होने दीजिए।
फिर इसे कूटकर छान लें या पीस लें। 
कूटना-छानना- फिर कूटना, इस क्रम से हल्दी तैयार कर लीजिए।
यह हल्दी महक, सुगंध, गुणवत्ता और स्वाद में अद्भुत होगी।
सोते समय एक गिलास दूध में चुटकी भर डालकर  मिलाइए।
परिणाम स्वयं देखें।
www.sanwariyaa.blogspot.com

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राजस्थान के आईएएस में चयनित खींवसर के लाल " दीपक करवा" #Deepakkarwa #IAS2020

राजस्थान के आईएएस में चयनित  खींवसर के लाल " दीपक करवा" #Deepakkarwa #IAS2020

राजस्थान की छोटे से कस्बे की सैनी समाज को ऐसी कई विभूतियां दी है जिन्होंने इस कस्बे को देशभर में विशिष्ट पहचान दी है वर्तमान में समाज में युवा वर्ग को प्रशासनिक सेवा की ओर प्रेरित करना समय की प्रमुख आवश्यकता बन गया है ऐसे में खींवसर में मुंबई माहेश्वरी समाज से प्रथम आईएएस बनने का सम्मान भी इस मिट्टी के लाल दीपक करवा दिलवाने वाले हैं

 

खींवसर जिला नागौर राजस्थान के मूल निवासी व वर्तमान में मुंबई निवासी समाज सदस्य बाबूलाल करवा के सुपुत्र दीपक करवा ने वर्ष 2019 की संघ लोक सेवा आयोग प्रशासनिक सेवा परीक्षा में आईएएस के लिए चयनित होने में सफलता प्राप्त की है दीपक आगामी सितंबर 2020 से प्रारंभ होने वाली आईएएस की प्रशिक्षण बैच में शामिल होंगे कोरोना वायरस के कारण इस परीक्षा के परिणाम के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा लेकिन आखिरकार रक्षाबंधन का पर्व 4 अगस्त 2020 उनके और समाज की एक नई खुशखबरी लेकर आ ही गया

 Congratulation to Mr. Deepak Karwa
 from Kheenvsar, Rajasthan for selection in IAS 2020


इस परीक्षा में उन्हें 48 वी रैंक राष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त हुई यह उनका जुनून ही है कि वर्ष 2017 में बीएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर चयनित होकर भी उन्होंने ज्वाइन नहीं किया बस लक्ष्य था आईएएस बनने का और आखिरकार बनकर ही दम लिया

महासभा बनी करवा परिवार की प्रेरणा :
दीपक का जन्म 21 मई 1993 को खींवसर जिला नागौर राजस्थान की मूल निवासी व मुंबई की एक प्रतिष्ठित कंपनी में सेवारत समाज सदस्य बाबूलाल व वीणा देवी करवा के यहां हुआ दीपक बचपन से ही पढ़ाई में तीक्ष्ण बुद्धि के है उन्होंने JEE कठिन परीक्षा उत्तीर्ण कर IIT चेन्नई से B.Tech. किया लेकिन महासभा द्वारा भीलवाड़ा में आयोजित सम्मेलन ने प्रशासनिक सेवा के लिए प्रेरित कर दिया, बस यही प्रेरणा दीपक की पिता श्री बाबूलाल करवा कर मन में घर कर गई और इसने पारिवारिक प्रेरणा का रूप ले लिया |
श्री करवा अपने पुत्र की सफलता का श्रेय वरिष्ठ समाजसेवी पद्मश्री बंशीलाल राठी के आशीर्वाद , नवल राठी और प्रशांत बांगड के प्रोत्साहन को भी देते हैं

बड़ी बहन सोनू महेश्वरी बनी दीपक की प्रेरणा 
करवा परिवार में उत्पन्न हुए प्रशासनिक सेवा के प्रति रुझान का सर्वप्रथम प्रभाव दीपक की बड़ी बहन सोनू महेश्वरी में दिखाई दिया 
समाज व पिता की प्रेरणा  ने सोनू को संघ लोक सेवा आयोग की सिविल परीक्षा की ओर प्रेरित तो कर दिया लेकिन इस बीच उनका विवाह हो गया और पारिवारिक व्यस्तता एवं विवशता में आखिरकार उन्हें सफलता की यात्रा को मझधार में ही विराम देना पड़ा,
 बस उनके मन में दबी इच्छा अपने छोटे भाई दीपक को राह दिखाई वैसे दीपक ने B.Tech. अंतिम वर्ष 2015 में प्रथम बार अपने सहपाठियों को देखकर यह परीक्षा दे दी थी लेकिन गंभीरता से न लेने के कारण इसमें पूरी तरह असफलता हाथ लगी थी


  साँवरिया की और से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाए 

असफलता मे भी सफलता की राह :
उन्हे जो सफलता मिली वह सहज जी नही मिल गई बल्कि अंतिम छठे प्रयास मे जाकर मिली कभी परीक्षा पेटर्न मे बदलाव कभी किसी अन्य कारण से मिली असफलता से हताश होते हुए भी असफलता मिलने पर भी उन्होने हार नही मानी ओर हर असफलता के सीखते हुए ओर प्रेरणा लेते हुए उन्होने वर्ष 2019 की परीक्षा मे उत्तीर्ण होते हुए 48वीं रेंक प्राप्त की 


दीपक का सपना विकसित हो हमारे गाँव 

      माहेश्वरी समाज का नाम रोशन किया
 





























जब भी बरगद और पीपल के पेड़ को देखो तो अपने पूर्वज तो याद आएंगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था

*हमारे धर्म का रहस्य...*

क्या हमारे ऋषि मुनि पागल थे?
जो कौवों के लिए खीर बनाने को कहते थे?
और कहते थे कि कौवों को खिलाएंगे तो हमारे पूर्वजों को मिल Qजाएगा?
नहीं, हमारे ऋषि मुनि क्रांतिकारी विचारों के थे।
*यह है सही कारण।*

तुमने किसी भी दिन पीपल और बरगद के पौधे लगाए हैं?
या किसी को लगाते हुए देखा है?
क्या पीपल या बड़ के बीज मिलते हैं?
इसका जवाब है ना.. नहीं....
बरगद या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो परंतु नहीं लगेगी।
कारण प्रकृति/कुदरत ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है।
यह दोनों वृक्षों के टेटे कौवे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसीग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं। उसके पश्चात
कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं।
पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो Round-The-Clock ऑक्सीजन O2  छोड़ता है और बरगद के औषधि गुण अपरम्पार है।
देखो अगर यह दोनों वृक्षों को उगाना है तो बिना कौवे की मदद से संभव नहीं है इसलिए कौवे को बचाना पड़ेगा।
और यह होगा कैसे?
मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है। 
तो इस नयी पीढ़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है इसलिए ऋषि मुनियों ने
कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार 
की व्यवस्था कर दी।
जिससे कि कौवों की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जाये......

इसलिए दिमाग को दौड़ाए बिना श्राघ्द करना प्रकृति के रक्षण के लिए नितांत आवश्यक है।
घ्यान रखना जब भी बरगद और पीपल के पेड़ को देखो तो अपने पूर्वज तो याद आएंगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं।

🙏सनातन धर्म पे उंगली उठाने वालों, पहले सनातन धर्म को जानो फिर उस पर ऊँगली उठाओ। जब आपके विज्ञान का *वि* भी नही था हमारे सनातन धर्म को पता था कि किस बीमारी का इलाज क्या है, कौन सी चीज खाने लायक है कौन सी नहीं...? अथाह ज्ञान का भंडार है हमारा सनातन धर्म और उनके नियम, मैकाले के शिक्षा पद्धति में पढ़ के केवल अपने पूर्वजों, ऋषि मुनियों के नियमों पर ऊँगली उठाने के बजाय , उसकी गहराई को जानिये🙏

बुधवार, 2 सितंबर 2020

अपने कुल अथवा परिवार की मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध आदि कर्म करें

पितृपक्ष 2 सितम्बर से आरम्भ हो रहे है और 17 सितम्बर तक रहेंगे। आप अपने कुल अथवा पारिवार की मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध आदि कर्म करें। पितृदोष आदि से भयभीत होकर तथा पितरों की शांति हेतु  इधर उधर के उपायों या अत्यधिक पूजन-भजन आदि इस पक्षकाल में करने से बचना चाहिए। आपको अपने परिवार में चली आ रही परम्परा के अनुसार बस श्राद्ध कर्म करना है और तन मन से यथासंभव सात्विक और आध्यात्मिक रहना है। 
 #पितृ और कोई नहीं यह आपके परिवार कुल से जुड़े हुए वह सदस्य हैं जिनका वंश आप चला रहे हैं इस अनंत कोटि ब्रह्मांड में 49 प्रकार की वायु में सूक्ष्म रूप से व्याप्त उनकी दिव्य चेतना आपको आगे बढ़ता हुआ देखकर प्रसन्न होती है और उन्नति के मार्ग में सहायक भी होती है लेकिन आप से आशा भी रखती है कि आप उनके लिए उनके नाम पर कुछ न कुछ अवश्य करें। अनिवार्य नहीं कि आप को उनके बारे में जानकारी हो, लेकिन यदि जानकारी है तो बहुत ही अच्छी बात है नहीं होने पर जो प्रयोग यहां बताए जा रहे हैं वह अवश्य करें जिससे आपके पितृ  प्रसन्न होकर आपको लाभ प्रदान करें और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करें इसके साथ ही जिनके परिवार में सती मातेश्वरी का पूजन होता है वह सौभाग्य नवमी का तथा चतुर्दशी का श्राद्ध अवश्य रूप से करें व जिनको अपने पितृ की किसी भी तिथि का ध्यान नहीं है, वह सर्वपितृ अमावस्या के दिन अवश्य रूप से श्राद्ध पिंडदान तर्पण जो भी यथासंभव है अवश्य करें
 वैसे तो पितरों  जलांजलि  अर्थात जल के तर्पण से जिसमें तिल और यव मिले हुए हो साथ ही पिंडदान और विष्णु सूक्त और पितृ सूक्त के पाठ से प्रसन्न होते हैं प्रतिदिन सूर्य व चंद्र को अर्घ्य देने से भी मातृ व पितृ कुल के पितृ प्रसन्न होते हैं किंतु आज के भागम भाग वाले युग में कुछ प्रयोग जो बता रहे हैं वह करने से भी लाभ मिल जाता है।
 आप शांत और प्रसन्न  होकर एक माला (108 बार) यह मंत्र 
 'ॐ पितृ दैवतायै नम:'
 ॐ कारण शरीराय विद्महे 
 दिव्य देहाय धीमहि 
तन्नो पितृ प्रचोदयात।।
सुबह, दोपहर अथवा संध्याकाल में किसी समय इन पंद्रह दिनों में प्रतिदिन जप लेंगें इतना ही आपकी सारी बाधाओं को हर लेगा और आपकी उन्नति के मार्ग खुल जाएंगे। 

पितर को प्रसन्न करने को बस ये उपाय करें-

1. जब आप अपने कुलपरिवार  की चली आ रही धार्मिक मान्यताओं और परम्पराओं का पालन करते हैं। 

2. जब आप गाय, कौवा, कुत्ते और किसी विकलांग के लिए प्रतिदिन कुछ भोजन निकालते हैं।

3. प्रत्येक रात्रि चंद्रमा का थोड़ी देर दर्शन करते हैं और दूध तथा जल को नष्ट नहीं करते हैं। 

4. अपना सूर्य, बृहस्पति और चंद्रमा ग्रह अच्छा रखते हैं अर्थात पिता, माँ, गुरु, ज्ञानी, पुजारी, स्त्रियों  आदि को उचित मान सम्मान देते हैं। 
5.  प्रतिदिन भवन में जल पीने का स्थान जिसे परिंडा कहा जाता है वहां पर दो मटकी या कलश के पास दो बत्ती वाला दीपक लगाएं साथ ही कच्चे दूध में शहद मिलाकर पितरों के नाम पर निवेद्य स्वरूप में अर्पण करें और वह प्रसाद परिवार के लोग लेवे।
6.प्रति अमावस्या पूर्णिमा घर में  गोमूत्र गंगाजल का छिड़काव कर गूगल का धूप लगावें।
7. परिवार के प्रत्येक सदस्य से स्नेह पूर्ण व्यवहार करें चाहे बड़े हो सम वयस्क हो या छोटे हो माता-पिता पत्नी बच्चे सभी से जितना स्नेहमय व्यवहार होगा उतना लाभ अधिक मिलेगा।
8. #यह विशेष प्रयोग है - 
 एक प्लेट में कुशा रख लीजिए उसके ऊपर एक दीपक प्रज्वलित कीजिए जिसमें गोल बाती हो और साथ ही कपूर पर चलाइए अपने घर में जो भी देवस्थान है वहां से आरंभ कीजिए उन्हें दर्शन कराते हुए संध्या समय घर के प्रत्येक कमरे में उसे घुमाइए और जल पीने का जो स्थान है वहां पर ले जाकर रख दीजिए प्रतिदिन कीजिए कपूर लगातार जलता रहे उतना ले कि जब तक आप वहां रखें उसके बाद भी कुछ समय कपूर जले चमत्कारिक रूप से आपको परिणाम सामने आने लगेंगे।

शनिवार, 29 अगस्त 2020

बॉलीवुड का जिसने नंगाई और उच्श्रृंखलता के ऐसे प्रतिमान गढ़े की कमाठीपुरा की नगरवधुएं भी शर्मा जाएं।

सॉरी बाबू .....
उध्दव की सरकार खतरे मे  है, आदित्य ठाकरे की नींद उड़ी हुई है, सूरज पंचोली की सांसें उखड़ी हुई है, महेश भट्ट  की पोल खुल रही है, पूरी बॉलीवुड मुसीबत में है, मुंबई पुलिस पर शक के बादल मंडरा रहे हैं उसकी विश्वसनीयता खतरे में है, सबसे तेज चैनल की टीआरपी 60 परसेंट तक घट गई है। एक गुमनाम सी स्ट्रगलर रिया चक्रवर्ती के कारण मुंबई की शान बॉलीवुड और उसकी स्कॉटलैंडयार्ड सरीखी पुलिस दोनों की छवि तार-तार हो चुकी है।

क्या लगता है यह सिर्फ सुशांत सिंह की हत्या के कारण हो रहा है?  नहीं बाबू यह तो एक बहाना है, एक मौका है जिसकी तलाश बहुत दिनों से देश का बहुसंख्यक हिंदू समाज प्रतीक्षा कर रहा था। यह आक्रोश है पिछले दो पीढ़ियों के नैतिक और सामाजिक पतन की जिम्मेवार उस बॉलीवुड का जिसने नंगाई और उच्श्रृंखलता के ऐसे प्रतिमान गढ़े की कमाठीपुरा की नगरवधुएं भी शर्मा जाएं। कमीनगी को धर्म और बेहूदगी को ईमान बनाओगे तो  ये दिन तो देखने ही पड़ेंगे।

तुम्हारे छीछालेदारी से हम बहुत खुश हो रहे हैं और खुश भी क्यों ना हों । हॉलीवुड ने जो दोहरी मानसिकता दिखाई है उसका पाप तो तुम्हें भोगना ही था। पादरी और मौलवी को दीन का पक्का और साधु-संतों को हमेशा चोर, बेईमान और अत्याचारी दिखाना, हर मुस्लिम देशभक्त और हिंदू गद्दार, बिल्ला नo 786 से पाकिस्तगी और श्री108 से घृणा, भजन से दूरी और अली मौला से  लगाव, शंकर भगवान का अपमान और अजान से मुहब्बत.....ड्रग्स..... नारकोटिक्स,.....माफिया....मर्डर....
आतंकवाद......उफ्फ तेरी कुकर्मों की फेहरिस्त तो खत्म होने का नाम ही नही ले रही। जो बोओगे वही तो काटोगे।
सॉरी बाबू।

शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

विक्रमादित्य का काल प्रभु श्रीराम के राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है

#सोने_की_चिड़िया_वाले_देश_का_असली_राजा_कौन ?
बड़े ही शर्म की बात है कि #महाराज_विक्रमादित्य के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है, जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था, और स्वर्णिम काल लाया था ।

★उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन , जिनके तीन संताने थी , सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती , उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटा वीर विक्रमादित्य...बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर दी , जिनके एक लड़का हुआ गोपीचन्द , आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली ।
★आज ये देश और यहाँ की संस्कृति केवल विक्रमादित्य के कारण अस्तित्व में है
अशोक मौर्य ने बोद्ध धर्म अपना लिया था और बोद्ध बनकर 25 साल राज किया था
भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था, देश में बौद्ध और जैन हो गए थे ।
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★रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे, महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया
विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया
विक्रमादित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् लिखा, जिसमे भारत का इतिहास है
अन्यथा भारत का इतिहास क्या मित्रो हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके थे
हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे,
उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , राज अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को दे दिया , वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से गुरू दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने लगे और आज उन्ही के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है, हमारी संस्कृति बची हुई है ।
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★महाराज विक्रमादित्य ने केवल धर्म ही नही बचाया
उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाई, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है
विक्रमादित्य के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे
भारत में इतना सोना आ गया था की, विक्रमादित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे , आप गूगल इमेज कर विक्रमादित्य के सोने के सिक्के देख सकते हैं।
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★हिन्दू कैलंडर भी विक्रमादित्य का स्थापित किया हुआ है
आज जो भी ज्योतिष गणना है जैसे , हिन्दी सम्वंत , वार , तिथीयाँ , राशि , नक्षत्र , गोचर आदि उन्ही की रचना है , वे बहुत ही पराक्रमी , बलशाली और बुद्धिमान राजा थे ।
कई बार तो देवता भी उनसे न्याय करवाने आते थे ,
विक्रमादित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे, न्याय , राज सब धर्मशास्त्र के नियमो पर चलता था
विक्रमादित्य का काल प्रभु श्रीराम के राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनि और धर्म पर चलने वाली थी ।
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पर बड़े दुःख की बात है की भारत के सबसे महानतम राजा के बारे में कांग्रेसी और वामपंथीयों का इतिहास भारत की जनता को शून्य ज्ञान देता है ।
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                           जय जय महाकाल

भाजपा मोदी से पहले और मोदी के बाद

*read full story*
*दीपक चौरसिया जाने-माने पत्रकार ने जो कुछ कहा एवं लिखा है उसे आप लोगों से शेयर करने से बाध्य हूँ क्योंकि इसमे सच्चाई है, और मुझे बहुत पसन्द आई।*

*भाजपा मोदी से पहले और मोदी के बाद*
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जब तक भाजपा वाजपेयीजी की विचारधारा पर चलती रही, वो राम के बताये मार्ग पर चलती रही। मर्यादा, नैतिकता, शुचिता इनके लिए कड़े मापदंड तय किये गये थे। परन्तु   कभी भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सकी।

जहाँ करोड़ों रुपये के घोटाले- घपले करने के बाद भी कांग्रेस बेशर्मी से अपने लोगों का बचाव करती रही, वहीं पार्टी फण्ड के लिए मात्र एक लाख रुपये ले लेने पर भाजपा ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्षमण को हटाने में तनिक भी विलंब नहीं किया। 
परन्तु चुनावों में नतीजा??
वही ढाक के तीन पात...

झूठे ताबूत घोटाला के आरोप पर तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडिस का इस्तीफा, 
परन्तु चुनावों में नतीजा?? 
वही ढाक के तीन पात...

कर्नाटक में येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते ही येदियुरप्पा को भाजपा ने निष्कासित करने में कोई विलंब नहीं किया.....
परन्तु चुनावों में नतीजा??? 
वही ढाक के तीन पात...

खैर....
फिर  होता है नरेन्द्र मोदी का पदार्पण । मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नक्शे कदम पर चलने वाली भाजपा को वो कर्मयोगी कृष्ण की राह पर ले आते हैं।

कृष्ण अधर्मी को मारने में किसी भी प्रकार की गलती नहीं करते हैं। छल हो तो छल से, कपट हो तो कपट से, अनीति हो तो अनीति से..... अधर्मी को नष्ट करना ही उनका ध्येय होता है। 
इसीलिए वो अर्जुन को सिर्फ कर्म करने की शिक्षा देते हैं।

कुल मिलाकर सार यह है कि, 
अभी देश दुश्मनों से घिरा हुआ है, नाना प्रकार के षडयंत्र रचे जा रहे हैं। इसलिए अभी हम नैतिकता को अपने कंधे पर ढोकर नहीं चल सकते हैं। नैतिकता को रखिये ताक पर, और यदि इस देश को बचाना चाहते हैं, तो सत्ता को अपने पास ही रखना होगा। वो चाहे किसी भी प्रकार से हो, साम दाम दंड भेद किसी भी प्रकार से....

बिना सत्ता के आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं। इसलिए भाजपा के कार्यकर्ताओं को चाहिए कि,
कर्ण का अंत करते समय कर्ण के विलापों पर ध्यान ना दें । सिर्फ ये देखें कि.........
अभिमन्यु की हत्या के समय उनकी नैतिकता कहाँ चली गई थी.....

कर्ण के रथ का पहिया जब कीचड़ में धंस गया तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा, 
पार्थ देख क्या रहे हो, इसे समाप्त कर दो।
संकट में घिरे कर्ण ने कहा, यह अधर्म है.....! 
भगवान कृष्ण ने कहा, 
अभिमन्यु को घेर कर मारने वाले और द्रौपदी को भरी दरबार में वेश्या कहने वाले के मुख से आज अधर्म की बातें शोभा नहीं देती ....!! 
आज राजनीतिक गलियारा जिस तरह से संविधान की बात कर रही है तो लग रहा है जैसे हम पुनः महाभारत युग में आ गए हैं...
विश्वास रखो महाभारत का अर्जुन नहीं चूका था आज का अर्जुन भी नहीं चूकेगा

*यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः!*
*अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम !*

चुनावी जंग में अमित शाह   जो कुछ भी जीत के लिए पार्टी के लिए कर रहे हैं वह सब उचित है...

.  अटल बिहारी वाजपेयी   की तरह एक वोट का जुगाड़ न करके आत्मसमर्पण कर देना क्या एक राजनीतिक चतुराई थी....???

अटलजी ने अपनी व्यक्तिगत नैतिकता के चलते एक वोट से अपनी सरकार गिरा डाली और पूरे देश को चोर लुटेरों के हवाले कर दिया.....

साम, दाम, भेद, दण्ड राजा या क्षत्रिय द्वारा अपनायी जाने वाली नीतियाँ हैं जिन्हें उपाय-चतुष्ठय (चार उपाय) कहते हैं....

राजा को राज्य की व्यवस्था सुचारु रूप से चलाने के लिये सात नीतियाँ वर्णित हैं ,

उपाय चतुष्ठय के अलावा तीन अन्य हैं- 
माया, उपेक्षा तथा इन्द्रजाल...!!!

राजनीतिक गलियारे में ऐसा विपक्ष नहीं है जिसके साथ नैतिक - नैतिक खेल खेला जाए.... सीधा धोबी पछाड़ आवश्यक है....!!!

*जय हिन्द...*

*One more*
*-:अनजाना इतिहास:-*
बात 1955 की है। सउदी अरब के बादशाह "शाह सऊद"  प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निमंत्रण पर भारत आए थे। वे 4 दिसम्बर 1955 को दिल्ली पहुँचे जहाँ उनका पूरे शाही अन्दाज़ में स्वागात किया गया शाह सऊद दिल्ली के बाद वाराणसी भी गए। 
सरकार ने दिल्ली से वाराणसी जाने के लिए, "शाह सऊद" के लिए, एक विशष ट्रेन में विशेष कोच की व्यवस्था की। शाह सऊद, जितने दिन वाराणसी में रहे उतने दिनों तक बनारस के सभी सरकारी इमारतों पर "कलमा तैय्यबा" लिखे हुए झंडे लगाए गए थे।😡😡

वाराणसी में जिन जिन रास्तों से "शाह सऊद" को गुजरना था, उन सभी रास्तों में पड़ने वाली मंदिर और मूर्तियों को परदे से ढक दिया गया था। 

इस्लाम की तारीफ़ और हिन्दुओं का मजाक बनाते हुए शायर "नज़ीर बनारसी" ने एक शेर कहा था -👇🏻
*अदना सा ग़ुलाम उनका, गुज़रा था बनारस से॥*
*मुँह अपना छुपाते थे, काशी के सनम-खाने॥*

अब खुद सोचिये कि क्या आज मोदी और योगी के राज में किसी भी बड़े से बड़े तुर्रम खान के लिए ऐसा किया जा सकता है। आज ऐसा करना तो दूर, कोई करने की सोच भी नहीं सकता। हिन्दुओं जबाब दो तुम्हे और कैसे अच्छे दिन देखने की तमन्ना थी ?

*आज भी बड़े बड़े ताकतवर देशों के प्रमुख भारत आते हैं और उनको वाराणसी भी लाया जाता है, लेकिन अब मंदिरों या मूर्तियों को छुपाया नहीं जाता है बल्कि उन विदेशियों को गंगा जी की आरती दिखाई जाती है और उनसे पूजा कराई जाती है।* 🙏
*ये था दोगले कांग्रेसियों का हिंदुत्व दमन😡*
अपने परिचितों एवं ग्रुपों में फॉरवर्ड करें🙏
कुछ को मै जगाता हूँ- कुछ को आप जगाऐं।

         *राष्ट्रधर्म सर्वोपरि🚩*
*🇮🇳जय हिन्द-जय भारत🇮🇳*

बुधवार, 26 अगस्त 2020

सरल संस्कृत: श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र

सरल संस्कृत: श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र!

मुदा करात्त मोदकं सदा विमुक्ति साधकम् ।
कलाधरावतंसकं विलासिलोक रक्षकम् ।
अनायकैक नायकं विनाशितेभ दैत्यकम् ।
नताशुभाशु नाशकं नमामि तं विनायकम् ॥ 1 ॥

नतेतराति भीकरं नवोदितार्क भास्वरम् ।
नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्ढरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरम् ।
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ 2 ॥

समस्त लोक शङ्करं निरस्त दैत्य कुञ्जरम् ।
दरेतरोदरं वरं वरेभ वक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करम् ।
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ 3 ॥

अकिञ्चनार्ति मार्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनम् ।
पुरारि पूर्व नन्दनं सुरारि गर्व चर्वणम् ।
प्रपञ्च नाश भीषणं धनञ्जयादि भूषणम् ।
कपोल दानवारणं भजे पुराण वारणम् ॥ 4 ॥

नितान्त कान्ति दन्त कान्ति मन्त कान्ति कात्मजम् ।
अचिन्त्य रूपमन्त हीन मन्तराय कृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनाम् ।
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥ 5 ॥

महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं ।
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम् ।
समाहितायु रष्टभूति मभ्युपैति सोऽचिरात् ॥ 6 ॥

सोमवार, 24 अगस्त 2020

प्रकृति में केंचुआ, तितली, मधु मख्खी, चिड़िया, मेढ़क, गिद्ध, एवं लाभ दायक सूक्ष्म जीवों की महत्ता

*फसल सुरक्षा रसायनों के दुष्परिणामों से सबक लेकर यदि आज मनुष्य नहीं सुधरा तो मानव सभ्यता का अंत निकट है।* 

प्रकृति में केंचुआ, तितली, मधु मख्खी, चिड़िया, मेढ़क, गिद्ध, एवं लाभ दायक सूक्ष्म जीवों की महत्ता को मनुष्य ने जब से नकारा है तब से उसके जीवन मे संकट बढ़े है, फसलों की उत्पादन लागत बढ़ी है, खाद्यान्न, पानी एवं हवा में प्रदूषण बढ़ा है, कृषि योग्य भूमियों में जीवांश कार्बन बनने की प्रक्रिया बन्द हुई है, भूगर्भ जल स्तर का दोहन बढ़ा है। रसायनों के प्रयोग से प्रकृति की व्यवस्था के नाजुक हालत का यदि ईमानदारी से मूल्यांकन किया जाए तो ज्ञात होता है कि अब इस पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन की खुशियों का अंत होने वाला है।

 *यदि समय रहते इस विषय पर विचार नहीं हुआ तो मानव सभ्यता खतरे में पड़ सकती है।* 

" *केंचुआ"* 

कृषि योग्य भूमियों में प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल में लगभग 5 केंचुआ हुआ करता थे। प्रति हेक्टर इनकी संख्या लगभग 50000 होती थी। 
अनुकूल परिस्थितियों में एक केंचुआ जिसका बजन 3 ग्राम होता है प्रति दिन अपने बजन के बराबर जैव पदार्थ खाकर उसे ह्यूमस में बदल देता था। वर्षा काल के 90 दिन केंचुओं के लिए अनुकूल मौसम रहता है। खेत मे पाये जाने वाले केंचुए प्रति वर्ष खेत मे उपलब्ध जैव पदार्थ की मात्रा के अनुसार 15 से 20 कुंटल जीवांश कार्बन की मात्रा बढ़ाते थे। 
कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि नीतियां केंचुए की इस सच्चाई को जानते है तभी किसानों को वर्मी कम्पोस्टिंग के लिए अनुदान दे रही है।

" *तितलियां एवं मधु मख्खियां"* 

पर परागित फसलों में परागण की क्रिया को तितलियां एवं मधु मख्खियां ही सम्पन्न करती है। यह बात कृषि विषयों के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जाती है।
1950 से 80 के दशक के मध्य गांवों के पुराने वृक्षो में मधु मख्खी के छत्ते देखे जाते थे, उस समय हर पुष्प पर तितलियां मंडराया करती थी। परन्तु फसलों को कीटो से सुरक्षा के नाम पर प्रयोग किये गए रसायनों ने तितलियों एवं मधु मख्खियों को नष्ट कर डाला है।
आज नदी, नालों, सड़को एवं जंगलों के अतरिक्त तितलियां एवं मधु मख्खियां कहीं दिखाई नहीं देती है।
पर परागित फसलों जैसे मिर्च, टमाटर, बैगन, भिंडी, चना, मटर, मसूर, अलसी, उर्द मूंग आदि की उपज घटने का मुख्य कारण यही है।

" *मेढ़क"* 

मेढ़क एक ऐसा कीट भक्षी प्राणी था जो गांव, खलिहान एवं खेतों में रहकर मनुष्य में रोग फैलाने वाले मच्छरों पर नियंत्रण बनाये रखता था एवं फसलों में लगने वाले कीटो से फसलों को भी सुरक्षित रखता था। एक अध्ययन के अनुसार वर्षा ऋतु में प्रति हेक्टर 30 से 40 मेढ़क दिखाई दे जाते थे। गांव के प्रत्येक घर के बाहर बने पानी के गड्ढे में 10 से 20 मेढ़क मौजूद रहते थे। गांव के जलासयो में तो मेढकों की संख्या को गिना जाना मुश्किल था। परन्तु आज मेढ़क कहीं भी दिखाई नहीं देते है।
मेढ़क प्रकृति में पाये जाने वाले हानि कारक कीटों को खाकर प्रकृति में संतुलन बनाये रखता था। मेढ़क वर्षा ऋतु बहुत अधिक सक्रिय रहता था, शरद ऋतु में कम एवं ग्रीष्म ऋतु में सुसुप्ता अवस्था मे रहता था। 
परन्तु फसल सुरक्षा रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से आज मेढ़क हमारे बीच नहीं बचा है इसी लिए मच्छरों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है एवं फ़सलो मे कीटो का प्रकोप बढ़ रहा है।

" *पक्षी"* 

गौरैया, कौवा, कबूतर, तोता, मैना, बुलबुल, पडखी, सारस, हंस, गिद्ध, मोर, बगुला जैसे अनेक पक्षी बहुत अधिक संख्या में पाये जाते थे। यदि धूप में आनाज सुखाना होता था तो परिवार के एक व्यक्ति को चिड़ियों से आनाज की रखवाली के लिए बैठना पड़ता था। जब कोई पशु मर जाता था और उसे गांव के बाहर फेंक दिया जाता था तो गिद्ध उस पशु को कुछ ही घण्टो में खाकर नष्ट कर दिया करते थे।खेत की जुताई के समय अथवा खेत मे पलेवा के समय सैकड़ो बगुला पक्षी फसलों में क्षति पहुंचाने वाले कीटों को खाकर हमारी फसलों की सुरक्षा करते थे। 
परन्तु आज फसल सुरक्षा रसायनो के बढ़ते प्रयोग से हमारे इनमें से बीच कोई पक्षी नहीं बचा है।
चीनी गोरिया को मारा और इस किसान ने कीट प्रबंधन के लिए गौरैया को अपने घर में पालना शुरू किया देखिए वीडियो
https://youtu.be/Dq7UqlgurDo

" *भूमि के लाभ दायक सूक्ष्म जीव"* 

भूमि की उर्वरता को बढ़ाने में एवं अघुलनशील पोषक तत्वों को घुलनशील बनाने में तथा नाना प्रकार की बीमारियों से फसलों को बचाने मे लाभ दायक सूक्ष्म जीवणुओ की उपयोगिता आज देश के समस्त कृषि वैज्ञानिक सहमत है तभी तो विभिन्य प्रकार के बायो फर्टिलाइजर के प्रयोग की सलाह किसानों को दी जाती है। 
आज से चालीस वर्ष पूर्व जब लोग खेतों में शौच क्रिया के लिए जाते थे तब मानव मल एक दो दिन में ही ह्यूमस में बदल जाता था क्योंकि तब हमारी भूमियों में लाभदायक जीव केंचुए एवं अन्य सूक्ष्म जीव पर्याप्त संख्या में थे। सभी को यवद है कि फसलों में  बीमारियां बहुत कम लगती थी क्योंकि फसलों में लगने वाली बीमारियों पर प्रकृति के लाभ दायक जीव नियंत्रण बनाये रखते थे।
परन्तु विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के इस युग मे पढ़े लिखे मनुष्य ने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए मानवीय मूल्यों को एवं प्रकृति की व्यवस्था को नजरंदाज कर दिया है। 
और देश के किसानों को यह समझाने में सफल रहा है कि बिना रसायनों के खेती सम्भव नहीं है। स्वार्थी एवं लालची मनुष्य दीमक को दुश्मन बताता है केंचुआ को मित्र बताता है। तितली एवं मधु मख्खी को मित्र बताता है और इल्ली एवं माहू को दुश्मन बताता है।
आज हमारी अज्ञानता ने हमारे जीवन मे काम आने वाले अनेकों जीव जंतुओं को प्रकृति से समाप्त कर दिया है। 
आज देश मे बिकने वाले प्रत्येक कीट नाशक रसायन पर प्रतिबंध है किंतु प्रतिबंध लगाने में जिस चतुराई को अपनाया गया है उससे प्रतिबंध के बावजूद भी सभी रसायन धड़ल्ले से बिक रहे है।
वास्तव में कीट नाशक रसायन के नाम पर हम प्रकृति को नष्ट करते जा रहे है जिसका परिणाम यह हो रहा है कि मनुष्य के जीवन की खुशियां नष्ट होती जा रही है।
यदि फसल सुरक्षा रसायनों के प्रयोग को बन्द करने में देर कि गयी तो मानव सभ्यता खतरे में पड़नी तय है।



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