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शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

जब ये दो प्रकार के भय अनुपस्थित होते हैं, तो लोग जीवन में सबसे घिनौना काम भी कर सकते हैं।

 

मनोविज्ञान के अनुसार लोगों को क्या चीज भ्रष्ट बनाती है?

मैं आपके सामने एक विश्व प्रसिद्ध प्रयोग प्रस्तुत करता हूं जो लोगों के वास्तविक स्वरूप को प्रकट करता है। इस फेसबुक पोस्ट का शीर्षक है, "यदि आपको लगता है कि आप मानवता के बारे में जानते हैं, तो आप मानवता को नहीं जानते हैं"

1974 में, यूगोस्लाविया के प्रदर्शन कलाकार मरीना अब्रामोविक ने लोगों को सोचने के तरीके को जानने के लिए एक भयानक प्रयोग करने का साहस किया।

अब्रामोविक छह घंटे तक सीधे खड़ी रहेंगी, जबकि जो लोग उन्हें देखने आए थे, उनसे आग्रह किया गया था कि वे 72 वस्तुओं जोकि मेज पर रखी हुयी थी उन में से एक का उपयोग करके उससे जो कुछ भी करना चाहते कर सकते है।

अब्रामोविक इन शब्दों वाले नोटिस बोर्ड के साथ कमरे के बीच में खड़ी थी।

निर्देश

टेबल पर 72 चीजे हैं जो कि मुझ पर अपनी इच्छा के अनुसार उपयोग कर सकते हैं।

प्रदर्शन

·         मुझे कोई आपत्ति नही है।

·         इस अवधि के दौरान कुछ भी आप करते है उसकी पूरी जिम्मेदारी मै लेती हूं।

·         अवधि: 6 घंटे (रात 8 बजे - 2 बजे)

अगले छह घंटों में जो हुआ वह भयानक था, कम से कम कहने के लिए।

किसी ने उसे घुमा दिया। कोई उसकी बाहों को हवा में उछालता है। किसी ने उसे कुछ अंतरंग रूप से छुआ।

तीसरे घंटे में, उसके सारे कपड़े ब्लेड से काट दिए गए। चौथे घंटे में, वही ब्लेड उसकी त्वचा पर फिराने लगे। उसके शरीर पर कई छोटे-छोटे यौन हमले किए गए। वह अपने वचन के प्रति इतनी प्रतिबद्ध थी की। उसने उसका विरोध नहीं किया।

अंतिम 2 घटों मे हालत और बुरी हो गई।

अब्रामोविक के साथ लोगों ने दिल दहला देने वाली हरकते की। उन्होंने याद करते हुए कहा, "मुझे बलात्कार का एहसास हुआ, उन्होंने मेरे कपड़े काट दिए, उन्होंने मेरे पेट में गुलाब के काँटे चुभाए। एक ने तो मेरे सिर पर बंदूक ही तान दी" [1]


जब छह घंटे खत्म हो गए, तो अब्रामोविक ने लोगों के बीच चलना शुरू कर दिया। वे उनके चेहरे की तरफ नहीं देख सके। अब्रामोविक ने देखा कि लोग उसके साथ किसी भी तरह का टकराव नहीं चाहते थे। उनका मानना था की उन्होंने जो भी किया उसके लिए उन्हें जवाबदेह या न्यायिक नहीं ठहराया जाना चाहिए। ऐसा लग रहा था मानो वे भूल जाना चाहते हैं कि कैसे उन्होंने उसे चोट पहुँचाया है।

इस काम से मानवता के बारे में कुछ भयानक पता चलता है।

·         यह दर्शाता है कि अनुकूल परिस्थितियों में एक व्यक्ति आपको कितनी जल्दी चोट पहुंचा सकता है (जब सजा का डर अनुपस्थित हो)

·         यह दर्शाता है कि यदि कोई मंच प्रदान किया जाता है, तो अधिकांश 'सामान्य' लोग, जाहिर तौर पर हिंसक हो सकते हैं

यह प्रयोग जो साबित करता है कि लोगों की अंतर्निहित प्रकृति बुराई ही है।[2]

यदि लोग अच्छे तरीके से व्यवहार करते हैं, तो इसका मुख्य कारण है

·         सामाजिक निंदा का भय

·         कानूनी सजा का डर

जब ये दो प्रकार के भय अनुपस्थित होते हैं, तो लोग जीवन में सबसे घिनौना काम भी कर सकते हैं।

जब समाज भ्रष्टाचारियों की निंदा नहीं करता है, और किसी व्यक्ति ने अपने जीवन में जो प्राप्त किया है, उसके आधार पर उस व्यक्ति को महत्व देने लगता है, तो लोग, समाज और इस तरह से सम्मान पाने के लिए सत्ता और धन प्राप्त करने के लिए अपना ध्यान इस ओर केंद्रित करते हैं और भ्रष्ट हो जाते है।

एक बार जब ये भ्रष्ट लोग पर्याप्त धन और शक्ति प्राप्त कर लेते हैं, तो वे न्याय वितरण प्रणाली का प्रबंधन कर सकते हैं और कानूनी सजा से बच सकते हैं।

भ्रष्टाचार की जाँच तभी की जा सकती है जब किसी समाज में कड़ी सजा और सामाजिक निंदा को सख्ती से लागू किया जा सके।

यदि ये डर अनुपस्थित हैं, तो लोग अपने वास्तविक स्वरूप को दिखाएंगे और समाज से ईमानदारी और अच्छाई की जगह भ्रष्ट और दुष्ट बन जाएंगे।

 

सेलफोन में धार्मिक रिंग टोन क्यों नहीं रखनी चाहिए ?

 

करीब 5 साल पहले की बात है

मैं दिल्ली से नासिक ट्रेन में सफर कर रहा था.

सेकंड ए.सी. स्लीपर में मेरी टिकट बुक थी और मेरी सीट साइड की लोअर बर्थ थी.

मेरे सामने वाली सीट पर एक अधेड़ लेकिन सीधे-साधे मारवाड़ी दंपत्ति बैठे थे जिसमें पति की उम्र करीब 50 वर्ष की थी…

पत्नी के हाथों में सोने के मोटे कंगन और गले में सोने का एक अच्छा खासा भारी हार पहना हुआ था

सामने की तरफ दो नौजवान लड़के अपनी सीट पर बैठे हुए थे .

बाई तरफ बैठे दंपत्ति के पति के फोन पर कान फोड़ने वाले वॉल्यूम में एक रिंगटोन बजी…

तारीफ तेरी… निकली है दिल से… आई है लब पे बनके कव्वाली…

शिर्डी वाले …

साईं बाबा …

आया है तेरे दर पर सवाली.

पतिदेव महाशय फोन पर बात करने में मशगूल हो गए…

थोड़ी देर में देखा तो ऊपर से नीचे सफेद कपड़े पहने और सर पर सफेद रुमाल बाँधे हुए एक व्यक्ति वहाँ आया और उस दंपत्ति के सामने बैठे उन दो नौजवानों से पूछा

क्या वे दोनों भी नासिक जा रहे हैं

हाँ कहने पर वह व्यक्ति उनसे सीट बदलने के लिए आग्रह करने लगा.

चूंकि सीट ज्यादा दूर नहीं थी इसलिए उन दोनों युवक सीट बदलने पर राज़ी हो गए.

कुछ ही मिनटों मेरे सामने वाली सीट पर उन दो युवकों की जगह वह सफेद रुमाल सर पर बांधे व्यक्ति और हरे रंग की बॉर्डर लगी सफेद साड़ी मेंएक स्त्री जो कि देखने में उसकी पत्नी लग रही थी ,

सामने की सीट पर विराजमान हो गए…

सीट पर बैठते ही उस सफेदरुमाल वाले व्यक्ति ने सामने बैठे दंपत्ति को उष्मा भरा अभिवादन किया…

जय साईं नाथ !!!

सामने बैठे महाशय ने भी दंपत्ति ने भी भरपूर उत्साह से जवाब दिया…

जय साईं नाथ !!!

कहाँ , शिर्डी ??? उस सफेदपोश व्यक्ति ने उत्सुकता से मुस्कुराते हुए पूछा

जी हाँ …

फिर तो हाथ मिलाओ भाई साहब आप तो हमारे गुरु भाई निकले …

बस फिर क्या था… देखते ही देखते दोनों दंपत्ति में बड़े प्यार से बातचीत चालू हो गई और 2 घंटे में तो ऐसी मित्रता हो गई कि मानो न जाने कितने वर्षों पुराने मित्र हैं.

उस सफेदपोश व्यक्ति ने उस भोले भाले दंपत्ति को सब्ज बाग दिखाने शुरू किए.

उस व्यक्ति ने उन्हें बातों ही बातों में बताया कि वह नासिक में रहता है और शिर्डी के साईं बाबा के मंदिर में उसकी कितनी "चलती" है

उस व्यक्ति ने नासिक से शिरडी तक अपनी कार में दोनों को छोड़ने का और शिर्डी के वीआईपी दर्शन मुफ्त में करवाने का प्रस्ताव भी दिया.

भोले भाले दंपत्ति खुशी से फूले नहीं समाए

जैसे ही सामने वाले महाशय के फोन में रिंग बजती…

शिरडी वाले… साईं बाबा…

आया है तेरे दर पर सवाली

सफेदपोश महाशय अपनी सीट पर बैठे बैठे हाथ उठाकर नाचने लगते…

उसके बाद तोउस सफेदपोश व्यक्ति ने साईं बाबा की भक्ति के कारण उसके जीवन में हुए चमत्कारों के किस्सों की झड़ी लगा दी…

मुझे उस व्यक्ति की बातों में चालाकी और धूर्तता साफ़ नज़र आ रही थी

मेरे दिमाग में शंका का कीड़ा कुलबुलाने लगा…

मैं इस मौके की तलाश में था किस भोले भाले दंपत्ति में से एक व्यक्ति उठकर टॉयलेट जाए तो उसको चेतावनी दे दूँ…

करीब 1 घंटे बाद वह मारवाड़ी महाशय उठे और टॉयलेट की तरफ चले…

मैं चुपके से उठ कर उनके पीछे पीछे चल दिया…

लेकिन यह क्या ???

वह सफेद रुमाल बांधे व्यक्ति मेरे पीछे पीछे आ गया , उसने यह सुनिश्चित किया कि मैं किसी भी प्रकार से उस व्यक्ति से बात ना कर लूं…

मजे की बात यह थी कि वह सफेदपोश महाशय स्वयं टॉयलेट नहीं गए और मारवाड़ी महाशय का साथ नहीं छोड़ा..

मेरी शंका अब विश्वास में बदल चुकी थी.

अब मैं उन दोनों के बीच में हो रही बातचीत और क्रियाकलाप को किसी जासूस की निगाह से देख रहा था.

उस सफेदपोश की चतुर निगाह ने भी मेरे चेहरे के हाव-भाव को पढ़ने में कोई गलती नहीं की.

अचानक उसकी बातचीत में संतुलन और सजगता दिखाई देने लगी.

मैंने इतने में कागज की एक छोटी सी पर्ची बनाई और उन मारवाड़ी महाशय के पास वाली खिड़की में झांकने के बहाने उनके हाथ में सरका दी.

उस पर्ची में सिर्फ इतना लिखा था

"इस आदमी से बच कर रहना…"

उस पर्ची को देखते ही मारवाड़ी महाशय के जिस्म में बिजली दौड़ गई…उनके चेहरे पर तनाव आ गया.

उन्होंने अपनी सीट पर कड़क पालथी़ मार ली और रीढ़ के हड्डी सीधी करके दोनों हाथ बांधकर बैठ गए और उस सफेदपोश व्यक्ति की तरफ यूं देखा कि मानो कह रहे हों…

अब तू मुझसे कोई बात करके देख !!!

कब से लगातार बतियाते उन दोनों जोड़ों के बीच में अचानक बातचीत बंद हो गई .और व्यवहार में ठंडा पन आ गया

रात को मारवाड़ी महाशय की पत्नी ने अपना टिफिन खोला लेकिन उस सफेदपोश कपल को औपचारिकता के तौर पर भी कुछ खाने के लिए नहीं पूछा.

रात को सोने से पहले उस सफेदपोश जोड़े ने अपना अंतिम अस्त्र चलाया और 4 सीटों के केबिन में लगे पर्दे को बंद करने लगे.

मैं घबराया.

अचानक उन मारवाड़ी महाशय को सद्बुद्धि आई और उन्होंने केबिन का पर्दा बंद करने से मना कर दिया…

"परदा बंद मत करना भाई जी मुझे रात को बहुत घबराहट होती है"

अचानक रात को 12:00 बजे मेरी आँख खुली…

मैंने देखा, मारवाड़ी महाशय अभी भी पद्मासन की मुद्रा में बैठे थे, उनकी पत्नी उनकी गोद में सर रखकर सो रही थीं.

लेकिन उनके सामने वाली सीट पर बैठा कपल अपनी जगह से गायब था.

मैंने कंबल अपना हाथ बाहर निकाल कर घुमाते हुए अपनी आंखों के इशारे से पूछा.

कहां गए ???

पिछले स्टेशन पर उतर गए…

सुबह उठते ही मारवाड़ी महाशय ने मुझसे कहा…

भाई जी , मन्ने तो समझ कोन्नी आरियो कि आप रो धन्यवाद कियाँ कराँ ???

भाई जी बस एक काम करो …

"आपरे फोन की रिंग टोन बदली कर दो…"

मजे की बात यह है कि उन महाशय को अभी तक समझ में नहीं आया के सारे प्रकरण का फोन की रिंगटोन से क्या संबंध है ?

धार्मिक आस्था एक व्यक्तिगत विषय है ,

इसे डायल टोन या रिंगटोन मैं बजाते हुए सार्वजनिक शौचालयों से लेकर दूसरी सार्वजनिक जगहों पर आम प्रजा पर थोपना न सिर्फ अनुचित है बल्कि आपके लिए नुकसानदेह और शर्मिंदगी का सबब भी हो सकता है.

सिर्फ धार्मिक ही नहीं फिल्मी गीतों पर आधारित रिंगटोन भी आपके व्यक्तित्व के बारे में कुछ न कुछ कह जाती हैं.

आप की डायल टोन या रिंगटोन आपका "परिचय" है.

अपना परिचय किसी को मुफ्त में क्यों देना ???

GDP का मायाजाल

GDP का मायाजाल
जब आप टूथपेस्ट खरीदते हैं तो GDP बढ़ती है परंतु किसी गरीब से दातुन खरीदते हैं तो GDP नहीं बढ़ती।
100% सच- 
जब आप किसी बड़े होस्पीटल मे जाकर 500 रुपे की दवाई खरीदते हैं तो GDP बढ़ती है परंतु आप अपने घर मे उत्पन्न गिलोय नीम या गोमूत्र से अपना इलाज करते हैं तो जीडीपी नहीं बढ़ती।
100% सच 
जब आप घर मे गाय पालकर दूध पीते हैं तो GDP नहीं बढ़ती परंतु पैकिंग का मिलावट वाला दूध पीते हैं तो GDP बढ़ती है।
100% सच 
जब आप अपने घर मे सब्जिया उगा कर खाते हैं तो GDP नहीं बढ़ती परंतु जब किसी बड़े AC माल मे जाकर 10 दिन की बासी सब्जी खरीदते हैं तो GDP बढ़ती है।
100% सच 
जब आप गाय माता की सेवा करते हैं तो GDP नहीं बढ़ती परंतु जब कसाई उसी गाय को काट कर चमड़ा मांस बेचते हैं तो GDP बढ़ती है।
रोजाना अखबार लिखा होता है कि भारत की जीडीपी 8 .7 % है कभी कहा जाता है के 9 % है ; प्रधानमंत्री कहते है की हम 12 % जीडीपी हासिल कर सकते है पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलम कहते थे की हम 14 % भी कर सकते है , रोजाना आप जीडीपी के बारे में पड़ते है और आपको लगता है की जीडीपी जितनी बड़े उतनी देश की तरक्की होगी ।
कभी किसी ने जानने की कौशिश की है कि ये जीडीपी है क्या ?
आम आदमी की भाषा में जीडीपी का क्या मतलब है ये हमें आज तक किसी ने नही समझाया । GDP actually the amount of money that exchanges hand . माने जो पैसा आप आदान प्रदान करते है लिखित में वो अगर हम जोड़ ले तो जीडीपी बनती है ।
अगर एक पेड़ खड़ा है तो जीडीपी नही बढती , लेकिन अगर आप उस पेड़ को काट देते है तो जीडीपी बढती है किउंकि पेड़ को काटने के बाद पैसा आदान प्रदान होता है , पर पेड़ अगर खड़ा है तो तो कोई इकनोमिक activity नही होती जीडीपी भी नही बढती ।
अगर भारत की सारे पेड़ काट दिया जाये तो भारत की जीडीपी 27 % हो जाएगी जो आज करीब 7 % है । आप बताइए आपको 27 % जीडीपी चाहिए या नही !
अगर नदी साफ़ बह रही है तो जीडीपी नही बढती पर अगर आप नदी को गंध करते है तो जीडीपी तीन बार बढती है । पहले नदी पास उद्योग लगाने से जीडीपी बढ गयी, फिर नदी को साफ़ करने के लिए हज़ार करोड़ का प्रोजेक्ट लेके ए जीडीपी फिर बढ गयी , फिर लोगो ने नदी के दूषित पानी का इस्तेमाल किया बीमार पड़े, डॉक्टर के पास गए डॉक्टर ने फीस ली , फिर जीडीपी बढ गयी ।
अगर आप कोई कार खरीदते है , आपने पैसा दिया किसी ने पैसा लिया तो जीडीपी बढ गयी, आपने कार को चलाने के लिए पेट्रोल ख़रीदा जीडीपी फिर बढ गयी, कार के दूषित धुआँ से आप बीमार हुए , आप डॉक्टर के पास गए , आपने फीस दी उसने फीस ली और फिर जीडीपी बढ गयी ।
जितनी कारे आयेगी देश में उतनी जीडीपी तीन बार बढ जाएगी और इस देश रोजाना 4000 ज्यदा कारे खरीदी जाती है , 25000 से ज्यादा मोटर साइकल खरीदी जाती है और सरकार भी इसकी तरफ जोर देती है क्योंकि येही एक तरीका है के देश की जीडीपी बढ़े।
हर बड़े अख़बार में कोका कोला और पेप्सी कोला का advertisement आता है और ये भी सब जानते है के ये कितने खतरनाक और जहरीला है सेहत के लिए पर फिर  भी आप कोका कोला पीते है देश की जीडीपी दो बार बढती है । पहले आप कोका कोला ख़रीदा पैसे दिया जीडीपी बढ गया , फिर पीने के बाद बीमार पड़े डॉक्टर के पास गए, डॉक्टर को फीस दिया जीडीपी बढ गयी ।
इस मायाजाल को समझे ।

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