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रविवार, 29 जुलाई 2012
आखिर क्या कारण थे कि गोडसे जी ने तथाकित राष्ट्रपिता को मारा, जोकि कोर्ट ने तो सुना लेकिन यह व्क्तवय कभी भी सार्वजनिक न हो पाया|
आखिर क्या कारण थे कि गोडसे जी ने तथाकित राष्ट्रपिता को मारा, जोकि कोर्ट ने तो सुना लेकिन यह व्क्तवय कभी भी सार्वजनिक न हो पाया|
आइये जानिये और योगदान दे गोदसे के विचारो को फैलाने मे…….
गाँधी-वध के मुकद्दमें के दौरान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना
वक्तव्य स्वयं पढ़ कर सुनाने की अनुमति माँगी थी और उसे यह अनुमति मिली थी।
नाथूराम गोडसे का यह न्यायालयीन वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर
दिया गया था। इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध नाथूराम गोडसे के भाई तथा गाँधी-वध
के सह-अभियुक्त गोपाल गोडसे ने ६० वर्षों तक वैधानिक लडाई लड़ी और उसके
फलस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रतिबन्ध को हटा लिया तथा उस वक्तव्य के
प्रकाशन की अनुमति दी। नाथूराम गोडसे ने न्यायालय के समक्ष गाँधी-वध के जो
१५० कारण बताये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं: -
1.
अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से समस्त देशवासी आक्रोश में
थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाये।
गाँधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से स्पष्ठ मना कर दिया।
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध
था व गाँधी की ओर देख रहा था, कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु
से बचायें, किन्तु गाँधी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए
जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया।
3. ६ मई १९४६ को
समाजवादी कार्यकर्ताओं को दिये गये अपने सम्बोधन में गाँधी ने मुस्लिम लीग
की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
4. मोहम्मद अली
जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए १९२१
में गाँधी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के
मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग १५००
हिन्दू मारे गये व २००० से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गाँधी ने इस
हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप
में वर्णन किया।
5. १९२६ में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि
आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने
हत्या कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गाँधी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह
कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल
राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये अहितकारी घोषित किया।
6. गाँधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
7. गाँधी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह को कश्मीर मुस्लिम
बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया,
वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दू बहुल हैदराबाद में
समर्थन किया।
8. यह गाँधी ही थे जिन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
9. कांग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिये बनी समिति (१९३१) ने सर्वसम्मति से
चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी की जिद के कारण उसे
तिरंगा कर दिया गया।
10. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी
सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गाँधी
पट्टाभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध
व असहयोग के कारण प�� त्याग दिया।
11. लाहौर कांग्रेस में
वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गाँधी की जिद के कारण
यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
12. १४-१५ १९४७ जून को दिल्ली
में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का
प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गाँधी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव
का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का
विभाजन उनकी लाश पर होगा।
13. जवाहरलाल की अध्यक्षता में
मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव
पारित किया, किन्तु गाँधी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे; ने
सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और १३ जनवरी
१९४८ को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी
खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
14. पाकिस्तान से
आये विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली
तो गाँधी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे
मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
15. २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे
पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपये की
राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के
दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गाँधी ने उसी समय यह
राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह
राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
16.
जिन्ना की मांग थी कि पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत
समय लगता है और हवाई जहाज से जाने की सभी की औकात नहीं| तो हमको बिलकुल
बीच भारत से एक कोरिडोर बना कर दिया जाए…. जो लाहौर से ढाका जाता हो,
दिल्ली के पास से जाता हो….. जिसकी चौड़ाई कम से कम १६ किलोमीटर हो….४. १०
मील के दोनों और सिर्फ मुस्लिम बस्तियां ही बने
जाने क्यूँ लिखना चाहता है! ये दिल कुछ कहना चाहता है!
जाने क्यूँ लिखना चाहता है!
ये दिल कुछ कहना चाहता है!
जाने क्यूँ ये दर्द समझकर,
आंसू बन बहना चाहता है!
...
जन्म से इस दिल में न कोई, नफरत के लक्षण होते हैं!
हमी लोग इस दिल में देखो, लालच के अंकुर बोते हैं!
"बेटा तुम्हारा फ़ोन बज रहा है" पापा की आवाज ने मुझे फोन की बजती घंटी का
अहसास कराया. फोन पर किसी की याचना भरी आवाज थी, "मैडम उन्होंने लड़की को
जला के मार डाला, लड़की के गरीब मा बाप की कोई नहीं सुन रहा, आप प्लीज
थानेदार साहेब को फोन कर दीजिये"| बड़ा बुरा लगा कोई किसी की जान कैसे ले
सकता है, थानेदार से बात की तो उन्होंने मदद का पूरा पूरा आशवासन दिया| इस
बात को कुछ महीने बीत गए| फिर कोई फोन नहीं आया और मै ये सोच कर की
कार्यवाही हो गयी होगी, इस बात को भूल गयी|
जैसे ही मीटिंग ख़त्म
हुयी किसी जानी पहचानी आवाज ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा , "नीलम जी", अगर
समय हो तो एक शादी में शामिल हो जाईये| आपको बड़े प्यार से बुलाया है|
"ठीक है चलते है" बोल के मै उठ खड़ी हुयी| एक कच्ची झोपड़ी के घर के सामने
हमारी यात्रा का अंत हुआ| गरीब होते हुए भी प्यार और मान में कोई कमी नहीं
थी| बूंदी, भुजिया, आलू की सब्जी, पूरी से भरी थाली सामने आई और हमने खाना
शुरू किया| तभी परिवार के मुखिया ने बोला "मैडम आपने निमंत्रण का मान रखा,
उसके लिए धन्यवाद|" " आपने इतने आग्रह से बुलाया था तो आना ही था" मैंने
उन्हें विनम्रतापूर्वक जवाब दिया| " अरे बुलाते कैसे नहीं आपकी वजह से ही
तो हमारी बेटी का केस सुलझा पाए है"| "कौन सा केस?" मैंने पूछा| " वही जिसे
उसके ससुराल वालों ने जला के मार डाला था" जवाब मिला| "तो उन्हें सजा हो
गयी" बोलते हुए मुझे इन्साफ मिलने के सकून का अहसास हुआ| " नहीं मैडम| आपके
प्रयास से पुलिस सक्रीय हुयी तो ससुराल वालों पे दवाब पड़ा और समझौता हो
पाया"| " समझोता???????? कैसा समझौता????" मैंने आश्चर्य से पूछा| " मैडम
बेटी के छोटे छोटे दो बच्चे थे| अगर उसके पति, ससुर और सास को सजा हो जाती
उनको कौन पालता| इसलिए हम अपनी छोटी बेटी की शादी उसके साथ कर रहे है| आज
उसी की शादी है"| सुनकर मेरी आश्चर्य की सीमा नहीं रही| "आप अपनी ही बेटी
के कातिल से अपनी दूसरी बेटी की शादी कैसे कर सकते है?" मै लगभग चिल्ला ही
पड़ी| " मैडम हम गरीब लोग है| व्यवहारिक होना पड़ता है| जो बेटी चली गयी वो
तो वापस नहीं आएगी, पर उसके बच्चों की पूरी जिंदगी पड़ी है. हम जब तक
जिन्दा हैं तब तक उनका ख्याल रख भी ले पर हम बूढ़े लोगों का कोई भरोसा है,
हमारे बाद उनका क्या भविष्य होगा| जो इस दुनिया में नहीं है उसके बारे में
सोच कर, जो इस दुनियां में है उनकी जिंदगी तो ख़राब नहीं कर सकते......."
वो बोलते जारहे थे और मै यह सोच के हैरान परेशां थी, कि क्या गरीबी इन्सान
को इतना मजबूर कर देती है कि इंसान अपने ही बच्चे की लाश पर समझौता करने पर
मजबूर हो जाता है| हर निवाला निगला हुआ लग रहा था जैसे कलेजे में कुछ अटक
रहा है.....
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