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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

"अशोक चिन्ह" को बाबा साहिब अंबेडकर ने क्यों अपनाया था ?

क्या आप जानते हैं ??
"अशोक चिन्ह" को बाबा साहिब अंबेडकर ने क्यों अपनाया था ?

शायद आजादी के इतने साल बाद भी किसी ने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया। इसका कारण सिर्फ इतना था कि आजादी के बाद बाबा साहिब अंबेडकर का सिर्फ एक सपना आरक्षण भी जो १० साल में पूरा होना था अब तक नहीं कर पाए, बस उसको वोट बेंक का आधार बनाकर रख दिया।
अशोक चिन्ह लेकर वे अशोक की तरह का शासन देने का सपना पाले हुए थे, जिसको हमारे नेताओ
ने पूरा करने की पहल तक नहीं की।

१. अशोक के शासन की तरह से राज्य की सड़कों के दोनों ओर फलदार पेड़ लगाये जाए (पर वृक्षारोपण में बेकार पेड़ लगाये गए जिनका प्रयोग इमारती लकड़ी में भी नहीं होता और
ना किसी प्रकार के पशुओं के चारे में इस्तेमाल होता क्यों ?)
२. अशोक ने अपने राज्य में जगह जगह पर रुकने के सराय बनवाई थी। (और हमारी सरकारों ने उस ओर क्या ध्यान दिया ? सभी को मालूम है कि सरकारी गेस्ट हॉउस किस के लिए हैं और वहां पर क्या होता है ?)
३. अशोक के राज्य में सभी कत्लगाहों को बंद कर दिया था। ( क्योंकि उसके स्थान पर पूर्ति फलो से हो जाती थी, ये तो मुगलों के आने बाद आरम्भ हुए थे जिसको ब्रिटिश के आने बाद भी चालू रखा गया था और आज भी चालू है जिसे बाबा साहिब बंद करना चाहते थे।)
४. अशोक के राज्य में जगह जगह पर शुद्ध पानी के प्याऊ लगवाये गए थे यहाँ तक प्रत्येक गाव में कुएँ खुदवाए गए थे। (आजादी के बाद कुएँ सिर्फ कागजो पर खोदे गए थे) क्यों कुछ गलत है क्या ?

अब अशोक चिन्ह राष्ट्रीय प्रतीक रखकर भारत सरकार ये काम ना करके क्या अशोक चिन्ह का अपमान नहीं कर रही है ? क्या इस चिन्ह को रखने का अधिकार है ? क्या ये हमारा अपमान नहीं है क्या ? क्या ये इस देश के संविधान के निर्माता का जो उन्होंने चिन्ह को अपनाया है उसका अपमान नहीं है ?
यह आप सबको फैसला करना है कि गलती अगर होती है तो उसका सुधार भी होता है, पर कब जब समय निकल जाये तब .....!!

[चाणक्य शर्मा]

जय हिन्द, जय भारत !
वन्दे मातरम्

भारत माता की आजादी का नायक - बालक भगत सिंह

आज से लगभग सौ वर्ष पहले लायपुर जिले के गांव वंगा में एक हिन्दू-सिख कुटुम्ब रहता था।यह कुटुम्ब अपनी देशभक्ति के लिए प्रसिद्ध था। गांव के लोग इस कुटुम्ब का बड़ा आदर करते थे।
कुटुम्ब में तीन भाई थे— सरदार किशन सिंह जी,सरदार स्वर्ण सिंह जी और सरदार अजीत सिंह जी। भारतविरोधी–हिन् दू विरोधी अंग्रेज सरकार ने तीनों भाईय़ों को देशभक्ति के अपराध में जेल भेजदिया था। इनमें से अजीत सिंह जी को काले पानी की सजा द
ी गई थी।
घर में किशन सिंह जी की मां जी और पत्नी को छोड़कर और कोई नहीं था।
1907 ई. के सितम्बर माह में किशन जी की पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया ।
बालक देखने में शुन्दर था हष्टपुष्ट था ।
बालक के जन्म लेने से घर में हर्ष और उत्साह की लहर दौड़ पड़ी। गाना-बजाना होने लगा। गांव के लोगकिशन सिंह जी की मां जी को बधाईयां देने आने लगे।
जिस समय किशन जी के घर में गाने बजाने का क्रम चल रहा था उसी समय वे जेल से छूटकर आ गये। उनके आने से हर्ष और उत्साह में पंख लग गये। किशन जी की मां की खुशी का तोकहना ही क्या था। मां तो खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी। मां जी के मुख से निकल पड़ा “ये लडका तो बड़े भागों वाला है । इसके पैदा होते ही इसके पिता जेल से छूट कर आ गये।”
किशन सिंह जी की मां ने इस बालक कानाम भगत सिंह रखा। यही बालक भगत सिंह वे अमर शहीद भगत सिंह जी हैं,जिन्होंने अपनी देशभक्ति से मातृभूमि का मस्तक ऊँचा करने के लिए सर्वोत्तम वलिदान दिया था।
भगत सिंह का लालन-पालन बड़े प्यारसे हुआ। घर में सब लोग उन्हें बहुत प्यार करते थे। ये चंचल बालकहमेशा हंसता रहता था।
भगत सिंह ज्यों-ज्यों उमर की सीढ़ियां चढ़ने लगे ,त्यों-त्यों उनकी सुन्दरता निखरने लगी, उनकी चंचलता में पंख लगने लगे। जब वे कुछ और बड़े हुए, तो संगी साथियों के साथ खेलने लगे।
बालक भगत सिंह साथियों को दो दलोंमें बाँट दिया करते थे और बीरता के खेल खेला करते थे।
भगत सिंह का कुटुम्ब बड़ा धार्मिक था। घर में भजन और कीर्तनप्राय प्रतिदिन हुआ करते था। बालक भगत सिंह बड़े प्रेम से भजन और कीर्तन सुना करते थे। उन्होंने सुन करके ही बहुत से गीतयाद कर लिए थे। वे अपने पिता जी कोबड़े प्रेम से गायत्री मन्त्र सुनाया करते थे।
एक दिन भगत सिंह के पिता जी अपने मित्र के घर गये। आनन्द किशोर जी बड़े देशभक्त थे। उन्होंने बालक भगत सिंह से पूछा “तुम कौन सा काम करते हो?”
बालक भगत सिंह ने उतर दिया “मैं बंदूकें बनाता हूं।”
आनन्द किशोर जी ने पुन: दूसरा प्रश्न किया “तुम बन्दूकें क्यों बनाते हो?”
बालक ने सहज भाव से उतर दिया “मैं बन्दूकों से भारत मां को स्वतन्त्र करूँगा”
आनन्द किशोर बालक भगत सिंह के उतर से बड़े प्रसन्न हुए।उन्होंने उनके पिता से कहा “तुम बड़े भाग्यशाली हो। तुम्हारा यह पुत्र अपने साहस और अपनी बीरता से तुम्हारे पूर्बजों का नाम उज्जल करेगा।”
आनन्द किशोर जी की कही हुई बात सत्य सिद्ध हुई। भगत सिंह ने बड़े होकर अपने साहस और वीरता से सिर्फ अपने पूर्बजों का ही नहीं वल्कि सारे देश का मुख उज्जवल किया।
दूसरी वार बालक भगत सिंह अपने पिता के साथ खेत पर गये। खेत में हल चल रहा था।
बालक भगत सिंह ने अपने पिता से पूछा, “पिता जी ,यह क्या हो रहा है?”
पिता ने उतर दिया,“खेत में हल चला रहा है। खेत की जुताई हो रही है। जुताई के बाद खेत में गेहूं के बीज बोये जायेंगे।”
बालक भगत सिंह ने सहज भाव से कहा, “पिता जी आप पिस्तौलों और बन्दूकों की खेती क्यों नहीं करते, आप गेहूं के बीज न वोकर, बन्दूकों के बीज क्यों नहीं बोते?”
पिता जी आश्चर्यचकित होकर बालक भगत सिंह के मुख की ओर देखने लगे। उन्हें क्या मालूम था कि उनका यह बालक बड़ा होने पर सचमुच बन्दूंकों की खेती करेगा।
सचमुच बन्दूकों और पिस्तौलों के बल पर आक्रमणकारी अंग्रेज लुटेरों के अन्दर दहशत पैदा कर भारत माता की आजादी का नायक बनेगा।

लड़कियां पायल क्यों पहनती हैं?

लड़कियां पायल क्यों पहनती हैं?
छम... छम... छम... पायल की ऐसी आवाज किसी के भी मन बरबस ही लुभा लेती है। जब कोई लड़की पायल पहनकर चलती है तो उससे निकलने वाला मधुर स्वर किसी संगीत से कम प्रतीत नहीं होता। सामान्यत: सभी लड़कियां पायल पहनती हैं। विवाहित महिलाओं के लिए तो यह आवश्यक होता है कि वे पायल पहनें।
महिलाओं के लिए पायल पहनना काफी महत्वपूर्ण माना गया है। इसके पीछे कई कारण मौजूद हैं।
पायल महिलाओं के
सोलह श्रंगार में अहम भूमिका निभाती है। पायल पहनने के पीछे यह वजह है कि प्राचीन काल में महिलाओं को पायल एक संकेत मात्र के लिए पहनाई जाती थी। जब घर के सभी सदस्य एक साथ बैठे होते थे तब यदि कोई पायल पहनी स्त्री वहां आती थी तो उसकी छम-छम आवाज से सभी को अंदाजा हो जाता कि कोई महिला उनकी ओर आ रही है। जिससे वे सभी व्यवस्थित रूप से आने वाली महिला का स्वागत कर सके, उसे सम्मान दे सके।
पायल की छम-छम अन्य लोगों के लिए एक इशारा ही है, इसकी आवाज से सभी को यह एहसास हो जाता है कि कोई महिला उनके आसपास है अत: वे शालीन और सभ्य व्यवहार करें। स्त्री के सामने किसी तरह की कोई अभद्रता ना हो जाए। ऐसी सारी बातों को ध्यान में रखते हुए लड़कियों के पायल पहनने की परंपरा लागू की गई। साथ ही पायल की आवाज से घर में नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव कम हो जाता है और दैवीय शक्तियों सक्रीय रहती है।
पुराने समय में विवाह के बाद पति के घर में बहु के आने के लिए पूरी स्वतंत्रता नहीं रहती थी। साथ ही वह किसी से खुलकर बात नहीं कर पाती थी। ऐसे में जब वह घर में कही आती-जाती तो बिना उसके बताए भी पायल की छम-छम से सभी सदस्य समझ जाते थे कि उनकी बहु वहां आ रही है।
पायल की धातु हमेश पैरों से रगड़ाती रहती है जो स्त्रियों की हड्डियों के लिए काफी फायदेमंद है। इससे उनके पैरों की हड्डी को मजबूती मिलती है। साथ ही पायल पहनने से स्त्रियों का आकर्षण कहीं अधिक बढ़ जाता है।

गांधी परिवार की पुरी वंशावली

आज मै आप लोगोँ को गांधी परिवार से बखुबी परिचय करवाना चाहता हुँ।
जिसके लिये मैने एक चार्ट दिया है।
इसे पढ़कर आप गांधी परिवार की पुरी वंशावली के अध्यापक हो जायेगेँ।

अब आप एक नजर इधर भी देखे।

ये नकली गाँधी परिवार अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकता है।
क्योँकि इस परिवार के लिए रिश्तों या भावनाओ की कोई कद्र नहीं होती।
ये नकली गाँधी परिवार सिर्फ पैसे को ही भगवान समझता है।
आइये कुछ तथ्यों पर नजर डाले :-
१- जवाहर लाल नेहरु की पत्नी टीवी की बीमारी से बुरी तरह प्रभावित थी। लेकिन नेहरु ने उनका कभी हाल चाल तक नहीं लिया उन्हें इलाहबाद मे मरने के लिए छोड़ कर खुद दिल्ली मे एडविना के साथ इश्क फरमाता था।
२- जब नेहरु की सगी बहन का देहांत नैतीताल मे हुआ था तो इस "पवित्र" परिवार का कोई भी सदस्य नहीं पंहुचा।
३- ये "पवित्र " परिवार ने अपने सगे दामाद फिरोज को भी दुत्कार दिया।
४- इंदिरा गाँधी राजीव और सोनिया के शादी के सख्त खिलाफ थी ..फिर राजीव और सोनिया का विवाह हरबंश रॉय बच्चन और तेजी बच्चन ने अपने घर पर करवाया तेजी बच्चन ने सोनिया का कन्यादान किया।
भारतीय संस्कृति मे कन्यादान करने वाली माँ का दर्जा जन्म देने वाली माँ से भी बड़ा माना गया है। बाद मे बच्चन परिवार की राजनितिक झुकाव कांग्रेस से हट गया।
लेकिन ये सोनिया जो अपने हर भाषण मे खुद को भारतीय बहू बताती है। ये तेजी बच्चन जी के निधन पर नहीं गयी इतना ही नहीं तेजी बच्चन दो साल तक लीलावती अस्पताल मे भर्ती रही लेकिन ये नकली गाँधी परिवार का कोई भी सदस्य कभी भी उनका हाल चाल लेने नहीं गया।
जबकि इस दौरान कई बार सोनिया राहुल और प्रियंका मुंबई गए थे।
जब तेजी बच्चन का निधन हुआ था तो बच्चन परिवार ही नहीं बल्कि पुरे देश को विश्वास था कि सोनिया गाँधी अपने उस माँ के निधन पर अवश्य जाएँगी जिसने उनका साथ बहुत ही कठिन परिस्थिति मे दिया था।
यहाँ तक कि मुंबई पुलिस भी ये मानकर कि गाँधी परिवार तेजी जी के अंतिम संस्कार मे अवश्य आएगा , अपने इंतजाम मे जुट गयी..फिर अंत मे पांच घंटे देर से उनका अंतिम संस्कार हुआ ..
फिर अमिताभ ने तेजी जी का अंतिम अरदास अमृतसर के स्वर्ण मंदिर मेरखा था ..[तेजी बच्चन सिख्ख थी ] फिर वहा भी गाँधी परिवार से कोई नहीं पंहुचा ..
५- ये खानदान कितना भारतीय है आप अंदाजा इस बात से लगा ले कि वरुण गाँधी अपनी शादी का निमत्रंण लेकर खुद १० जनपथ गए थे ..लेकिन चूँकि ये परिवार अपने आपको"पवित्र " मानता है इसलिए कोई भी नहीं गया ..
६- जवाहर लाल नेहरु के सगे भांजे अरुण नेहरु को भी १० जनपथ मे आने की मनाही है ..
७- फिरोज का परिवार आज बड़ी ही मुफलिसी मे मुंबई मे गुजारा कर रहा है ,लेकिन इस परिवार ने उन्हें भुला दिया ..
८- यहाँ तक की प्रियंका से शादी के सिर्फ एक साल मे बाद राबर्ट वढेरा ने सभी बड़े अखबारों मे ये"खास सुचना " देकर छपवाया की उसका अब उसके परिवार से कोई भी रिश्ता नहीं है ..
९- प्रियंका से शादी के दो साल केअन्दर ही राबर्ट के भाई , बहन , और पिता की रहस्यमय और संदिह्ध परिस्थिति मे मौत हों गयी।
१०- नेहरु की बहन विजय लक्ष्मी पंडित के परिवार को भी अब १० जनपथपर जाना संभव नहीं है।

मित्रों ये है इस "पवित्र " परिवार की भारतीयता और भारतीय संस्कृति से प्रेम।

साभार______________योगी
प्रेमी

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