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शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

नवरात्री में कैसे करे माँ दुर्गा को प्रसन्न

नवरात्री में कैसे करे माँ दुर्गा को प्रसन्न

संपूर्ण ब्रह्मण्ड का संचालन करने वाली जो शक्ति है। उस शक्ति को शात्रो ने आद्या शक्ति की संज्ञा दी है। देवी सुक्त के अनुसार-
या देवी सर्व भूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।।
अर्थात जो देवी अग्नि,पृथ्वी,वायु,जल,आकाश और समस्त प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित है, उस शक्ति को नमस्कार, नमस्कार, बारबार मेरा नमस्कार है। इस शक्ति को प्रसन्न करने के लिए नवरात्र काल का अपना विशेष महत्व है। मां दुर्गा को प्रसन्न करने हेतु नवरात्र में निम्न बातो का विशेष ध्यान रखना चाहिए। नवरात्र में साधक को व्रत रखकर माता दुर्गा की उपासना करनी चाहिए। माता दुर्गाकी उपासना से सभी सांसारिक कष्टो से मुक्ति सहज ही हो जाती है।
नवरात्रि में घट स्थापना के बाद संकल्प लेकर पुजा स्थान को गोबर से लेप लीपकर वहां एक बाजट पर लाल कपडा बिछाकर उस पर माता दुर्गा की प्रतिमा या चित्र को स्थापित कर पंचोपचार पुजा कर धुप-दीप एवं अगरबती जलाए। फिर आसन पर बैठकर रूद्राक्ष की माला सें किसी एक मंत्र का यथासंभव जाप करे। पुजन काल एवं नवरात्रि में विशेष ध्यान रखने योग्य बाते-
1- दुर्गा पुजन में लाल रंग के फुलो का उपयोग अवश्य करे। कभी भी तुलसी,आंवला,आक एवं मदार के फुलों का प्रयोग नही करे। दुर्वा भी नही चढाए।
2- पुजन काल में लाल रंग के आसन का प्रयोग करे। यदि लाल रंग का उनी आसन मिल जाए तो उतम अन्यथा लाल रंग काल कंबल प्रयोग कर सकते है।
3- पुजा करते समय लाल रंग के वस्त्र पहने एवं कुंकुंम का तिलक लगाए।
4- नवरात्र काल में दुर्गा के नाम की ज्योति अवश्य जलाए। अखण्ड ज्योत जला सकते है तो उतम है। अन्यथा सुबह शाम ज्योत अवश्य जलाए।
5- नवरात्र काल में नौ दिन व्रत कर सके तो उतम अन्यथा प्रथम नवरात्र चतुर्थ नवरात्र एवं होमाष्टमी के दिन उपवास अवश्य करे।
6- नवरात्र काल में नव कन्याओं को अन्तिम नवरात्र को भोजन अवश्य कराए। नव कन्याओं को नव दुर्गा को मान कर पुजन करे।
7- नवरात्र काल में दुर्गा सप्तशती का एक बार पाठ पुर्ण मनोयोग से अवश्य करना चाहिए।
नवरात्री में जाप करने हेतु विशेष मंत्र-
1 ओम दुं दुर्गायै नमः
2 ऐं ह्मीं क्लीं चामुंडाये विच्चै
3 ह्मीं श्रीं क्लीं दुं दुर्गायै नमः
4 ह्मीं दुं दुर्गायै नमः
5 ग्रह दोष निवारण हेतु नवदुर्गा के भिन्न भिन्न रूपों की पुजा करने से अलग-अलग ग्रहों के दोष का निवारण होता है। कोई ग्रह जब दोष कारक हो तो-
सूर्य दोष कारक होने पर नवदुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पुजा करनी चाहिए। दस महा विधाओं में से मातंगी महाविधा की उपासना लाभदायक करनी है।
चंद्र दोष कारक होने पर नवदुर्गा के कुष्मांडा के स्वरूप की पुजा करनी चाहिए।दश महाविधाओं में भुवनेश्वरी की उपासना चंद्रकृत दोषो को दुर करत़ी ळें
मंगलदोष कारक होने पर नवदुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पुजा करनी चाहिए। दश महाविधाओं में बगलामुखी की उपासना मंगलकृत दोषों को दुर करती है।
बुध दोष कारक होने पर नवदुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पुजा करनी चाहिए। दश महाविधाओं में षोडशी की उपासना बुध की शांति करती है।
वृहस्पति दोष कारक होने पर नवदुर्गा के महागौरी स्वरूप की उपासना करनी चाहिए। दश महाविधाओं में तारा महाविद्या की उपासना गुरू ग्रह के दोषो को दुर करती है।
शुक्र दोष कारक होने पर नवदुर्गा के सिद्धीदात्री स्वरूप की पुजा करनी चाहिए। दश महाविद्याओं में कमला महाविद्या की उपासना शुक्र दोषो को कम करती है।
शनि दोषकारक होने पर नवदुर्गा के कालरात्रि स्वरूप पुजा करनी चाहिए। दश महाविद्याओं में काली महाविद्या की उपासना शनि दोष का शमन करती है।
राहु दोषकारक होने पर नवदुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप पुजा करनी चाहिए। दश महाविद्याओं में छिन्नमस्ता की उपासना लाभदायक रहती है।
केतु दोष कारक होने पर नवदुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पुजा करने से दोष दुर होता है। दश महाविद्याओं में धुमावती की उपासना केतु दोष नाशक है।
इस प्रकार आप नवरात्र में दुर्गा पुजा, उसके स्वरूप की पुजा कर सुख, शांति एवं समृद्धि प्राप्त कर
सकते है

रोज गाय को ग्रास (यानी भोजन से पहले उसका कुछ हिस्सा गाय को) खिलाना एक जरूरी धार्मिक परंपरा है।

सनातन धर्म में हर रोज गाय को ग्रास (यानी भोजन से पहले उसका कुछ हिस्सा गाय को) खिलाना एक जरूरी धार्मिक परंपरा है। क्योंकि गाय पवित्र और देव प्राणी के रूप में पूजनीय है। समुद्र मंथन से निकली कामधेनु की महिमा व गाय में करोड़ों देवी-देवताओं का वास होने की धार्मिक मान्यता भी इस परंपरा से जुड़ी हैं।

शास्त्रों के मुताबिक भूतयज्ञ के अंतर्गत गाय को भोजन देना घर-परिवार के सारे दोष दूर करने वाला माना गया है। खासतौर पर हिन्दू धर्म में पितृऋण व दोष से मुक्ति के विशेष काल श्राद्धपक्ष में ऐसा करना खुशहाल बनाने वाला माना गया है। इसलिए यह यह परंपरा संस्कार, मर्यादाओं और भावनाओं और जीवन मूल्यों से ओतप्रोत है। यही वजह है कि हर रोज खासतौर पर श्राद्धपक्ष में गाय को ग्रास देना सिर्फ धार्मिक परंपरा ही नहीं है, बल्कि इसके जरिए व्यक्ति, परिवार और समाज के लिए एक कई अहम जीवन सूत्र है।

दरअसल, व्यावहारिक व वैज्ञानिक रूप से भी गाय के दूध से लेकर मूत्र तक शरीर को निरोगी रखने वाले साबित हुए हैं। गौर करें तो पावनता ही गाय का सबसे विशेष गुण है। इस तहर गोग्रास भी गाय की तरह कर्म, स्वभाव, चरित्र और आचरण की पवित्रता का अहम सबक देता है। यही नहीं, गाय स्वभाव से अहिंसक प्राणी है। इससे सीख मिलती है कि स्वभाव से भद्र बने। भद्र यानी विनम्र, निडर, खुले और सीधी सोच का इंसान, जिसकी संगति हर कोई पसंद करता है। इस तरह सार यही है कि गोग्रास से चरित्र और स्वभाव की पावनता का सूत्र अपनाएं। इससे मिला यशस्वी और सफल जीवन आपके साथ पूर्वजों का मान-सम्मान भी बरकरार रखेगा और अगली पुश्तों को भी प्रेरणा देगा। वैसे ही जैसे गाय और उसकी देह का हर अंश अपेक्षित और पूजनीय है।.....................................................

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