सनातन
धर्म में हर रोज गाय को ग्रास (यानी भोजन से पहले उसका कुछ हिस्सा गाय को)
खिलाना एक जरूरी धार्मिक परंपरा है। क्योंकि गाय पवित्र और देव प्राणी के
रूप में पूजनीय है। समुद्र मंथन से निकली कामधेनु की महिमा व गाय में
करोड़ों देवी-देवताओं का वास होने की धार्मिक मान्यता भी इस परंपरा से
जुड़ी हैं।
शास्त्रों के मुताबिक भूतयज्ञ के अंतर्गत गाय को भोजन देना घर-परिवार के सारे दोष दूर करने वाला माना गया है। खासतौर पर हिन्दू धर्म में पितृऋण व दोष से मुक्ति के विशेष काल श्राद्धपक्ष में ऐसा करना खुशहाल बनाने वाला माना गया है। इसलिए यह यह परंपरा संस्कार, मर्यादाओं और भावनाओं और जीवन मूल्यों से ओतप्रोत है। यही वजह है कि हर रोज खासतौर पर श्राद्धपक्ष में गाय को ग्रास देना सिर्फ धार्मिक परंपरा ही नहीं है, बल्कि इसके जरिए व्यक्ति, परिवार और समाज के लिए एक कई अहम जीवन सूत्र है।
दरअसल, व्यावहारिक व वैज्ञानिक रूप से भी गाय के दूध से लेकर मूत्र तक शरीर को निरोगी रखने वाले साबित हुए हैं। गौर करें तो पावनता ही गाय का सबसे विशेष गुण है। इस तहर गोग्रास भी गाय की तरह कर्म, स्वभाव, चरित्र और आचरण की पवित्रता का अहम सबक देता है। यही नहीं, गाय स्वभाव से अहिंसक प्राणी है। इससे सीख मिलती है कि स्वभाव से भद्र बने। भद्र यानी विनम्र, निडर, खुले और सीधी सोच का इंसान, जिसकी संगति हर कोई पसंद करता है। इस तरह सार यही है कि गोग्रास से चरित्र और स्वभाव की पावनता का सूत्र अपनाएं। इससे मिला यशस्वी और सफल जीवन आपके साथ पूर्वजों का मान-सम्मान भी बरकरार रखेगा और अगली पुश्तों को भी प्रेरणा देगा। वैसे ही जैसे गाय और उसकी देह का हर अंश अपेक्षित और पूजनीय है।.......................
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.