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शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

आइन्स्टीन से व्याख्यान में लोगों ने पूछा की आप ईश्वर में विश्वास क्यों करते हैं ??

आइन्स्टीन से व्याख्यान में लोगों ने पूछा की आप ईश्वर में विश्वास क्यों करते हैं ??
आइन्स्टीन : एक परमाणु के नाभिक के चारो तरफ एक हतप्रभ कर देने वाली लय और तारतम्यता से इलेक्ट्रोंन को चक्कर लगाने की घटना ने ये सोचने को मजबूर कर दिया की समस्त ब्रह्माण्ड में कैसा अनाहद नाद चल रहा है , प्रकृति की असीम ऊर्जा किस तरह से इतने शांत स्वरुप में सनातन काल से एक साम्य पर टिकी हुई है !!!!!
ऐसी अनोखी घटना बिना
किसी सर्वशक्तिशाली सत्ता के सम्भव नहीं है
अपने आदर्श हिन्दू धर्म ने शक्ति को किसी प्रमेय और प्रयोग के आधार भले ही सिद्ध किया हो या नहीं परन्तु शक्ति के स्वरुप और वैशिष्ट्य को सनातन से मानता है .......और कालांतर में यह दर्शन,श्रद्धा और विश्वास के रूप में हम में समाहित हो गया ....जो नवरात्री की पूजा के रूप में आज तक हमारे बीच मौजूद है
मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी ९ दिन शक्ति की पूजा के बाद १०वे दिन रावण को मारा ,कृष्ण के लिए योगमाया का स्वरुप शक्ति की प्रधानता ही है,
शव यानि स्थूल यानि द्रव्यमान भी शक्ति के साथ मिल कर ही “शिव” यानि कल्याण के स्वरुप की पूर्णता को प्राप्त करता है ऐसे महान संस्कृति के संवाहक होने का गर्व महसूस करते हुए आप लोगों को शक्ति पर्व की शुभकामनाएं !!!!

उपवास का महत्व

उपवास का महत्व
साभार बालमुस्कान

तरक्की और स्वास्थ्य के अचूक उपाय हैं व्रत-उपवास
हिन्दू धर्म धार्मिक रस्मों में जीवन को संयमित और अनुशासित रखने की दृष्टि से व्रत-उपवास का महत्व है। किसी न किसी वार, उत्सव या पर्व पर व्रत- उपवास रखा जाता है। किंतु आज रोजमर्रा की तेज जिंदगी और रेलमपेल में युवा और कामकाजी पीढ़ी का धार्मिक व्रत-उपवास में रुझान कम देखा जाता है या फिर वह समयाभाव के कारण व्रत से जुड़ी धा
र्मिक परंपराओं को पूरा करने में कठिनाई महसूस करने से उपवास आदि नहीं रखते।
व्यावहारिक दृष्टि से व्रत-उपवास धार्मिक नजरिए से दूर अच्छे स्वास्थ्य के लिए करना भी फायदेमंद साबित होता है। क्योंकि व्रत-उपवास का विज्ञान है कि इनके पालन से आपकी जीवनशैली और दिनचर्या में बदलाव दिखाई देता है, जो आधुनिक युग के तनाव और दबाव से पैदा हुए अनेक रोगों से बचाव और राहत भी दे सकते हैं।
यहां जानते हैं व्रत-उपवास का धार्मिक परंपराओं से हटकर व्यावहारिक तौर पर कैसे पालन किया जा सकता है और उसका लाभ कितना मिलता है -
- सबेरे जल्दी उठें। नित्यकर्म और स्नान करें।
- व्रत-उपवास यथा संभव अन्न न खाएं। चाय न पीएं। यानि गेंहू, चावल, दाल के स्थान पर फल, दूध, सूखे मेवे या कोई हल्का भोजन जैसे साबूदाना, मूंगफली और कम मात्रा में आलू का सेवन करें।
- स्वभाव के स्तर पर अपने गुस्से, आवेश, कटु बोल से बचें। वासना, उत्तेजना पैदा करने वाली सोच से दूर रहें।
- सिनेमा, टीवी जैसे बैठक के मनोरंजन के साधनों से दूर रहें। क्योंकि लंबी बैठक से शरीर में चर्बी और वजन बढऩे से शरीर में आलस्य बढ़ता है। - शांत स्थान पर कुछ देर बैठकर ध्यान करें।
- आप जिस भी देवता में आस्था और श्रद्धा रखते हों, जहां भी समय मिले उनका नाम स्मरण करें।
इस तरह व्रत-उपवास का पालन भी आपके लिए इस तरह फायदेमंद साबित हो सकता है -
- व्रत- उपवास से शरीर में स्फूर्ति और चपलता के साथ-साथ आत्मबल की बढता है।
- स्वस्थ शरीर होने पर आपका आत्मविश्वास हमेशा ऊंचा रखता है।
- इसके प्रभाव से आपकी कार्यक्षमता बढ़ेगी। जाहिर है आपकी कार्य कुशलता और मेहनत आपको तरक्की और धन लाभ देगी।
- दबाव, चिंता और परेशानियों से पैदा हुए रोगों के इलाज में होने वाले गैर-जरुरी खर्च बचेगा।
- इस तरह के व्रत-उपवास के पालन से मन और इच्छाओं पर काबू भी रखने का अभ्यास होगा। धर्म शास्त्रों में भी मन के संयम को ही सुख का सूत्र बताया गया है।
- व्रत-उपवास तन, मन को स्वस्थ रखने का अचूक उपाय है, जो आपको सामाजिक और व्यावहारिक जीवन में भी दूसरों से मेल-मिलाप में सहज बना देगा। यही आपकी तरक्की और स्वास्थ्य की राह आसान बना देगा।

जयतु संस्कृतं ! जयतु भारतं ..............अवश्य पढें................. !

अवश्य पढें................. !

कुछ समय पूर्व "SCIENCE REPORTER" नामक अंग्रेजी पत्रिका जो कि National Institute of Science communication & information resources, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई थी, उसके २००७ के अंक में श्री डी०पी०
सिहं द्वारा लिखित एक लेख "ANTIMATTER-The ultimate fuel" नाम के शीर्षक से छपा था। उसमें लेखक ने यह लिखा है कि सर्वाधिक कीमती वस्तु संसार में हीरा, यूरेनियम, प्लैटिनम, यहाँ त
क कि कोई भी पदार्थ नहीं है बल्कि अपदार्थ/या प्रतिपदार्थ अर्थात ANTIMATTER है।

वैज्ञानिकों ने लम्बे समय तक किये गये अनुसंधानों एवं सिद्धान्तो के आधार पर अब जाकर यह माना है कि ब्रह्मांड में पदार्थ के साथ-साथ अपदार्थ या प्रतिपदार्थ भी समान रूप से मौजूद है।

इस सम्बन्ध में ऋग्वेद के अन्तर्गत "नासदीय सूक्त" जो संसार में वैज्ञानिक चिंतन में उच्चतम श्रेणी का माना जाता है उसकी एक ऋचा में लिखा है किः-

तम आसीत्तमसा गू---हमग्रे----प्रकेतं सलिलं सर्वमा इदम्।

तुच्छेच्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिनाजायतैकम्।।

अर्थात् सृष्टि से पूर्व प्रलयकाल में सम्पूर्ण विश्व मायावी अज्ञान(अन्धकार) से ग्रस्त था, सभी अव्यक्त और सर्वत्र एक ही प्रवाह था, वह चारो ओर से सत्-असत्(MATTER AND ANTIMATTER) से आच्छादित था। वही एक अविनाशी तत्व तपश्चर्या के प्रभाव से उत्पन्न हुआ।

वेद की उक्त ऋचा से यह स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्मांड के प्रारम्भ में सत् के साथ-साथ असत् भी मौजूद था (सत् का अर्थ है पदार्थ) । यह कितने आश्चर्य का विषय है कि वर्तमान युग में वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान पर अनुसंधान करने के पश्चात कई दशकों में यह अनुमान लगाया गया कि विश्व में पदार्थ एवं अपदार्थ/प्रतिपदार्थ (Matter and Antimatter) समान रूप से उपलब्ध है। जबकि ऋग्वेद की एक छोटी सी ऋचा में यह वैज्ञानिक सूत्र पहले से ही अंकित है।

उक्त लेख में लेखक ने लिखा है कि Matter and Antimatter जब पूर्ण रूप से मिल जाते हैं तो पूर्ण उर्जा में बदल जाते है। वेदों में भी यही कहा गया है कि सत् और असत् का विलय होने के पश्चात केवल परमात्मा की सत्ता या चेतना बचती है जिससे कालान्तर में पुनः सृष्टि (ब्रह्मांड) का निर्माण होता है।

अगर देखा जाए तो इस प्रकार का न जाने कितना अकल्पनीय ज्ञान वेद-पुराणों में भरा पडा है, जिसके जरिए इस सृ्ष्टि ओर उसके रचनाकार से पर्दा उठाया जा सकता है। लेकिन आधुनिक विज्ञान के अंधविश्वास में जी रहे चन्द काले अंग्रेजों को शायद इस प्रकार की बातें हजम होनी मुश्किल हैं। क्योंकि उनकी तर्कबुद्धि ये मानने को तैयार ही नहीं होती कि जंगलों मे निवास करने वाले, ऋषि मुनि कहे जाने वाले ये लोग बिना किसी आधुनिक यन्त्रों और बहुमूल्य प्रयोगशालाओं के अभाव में इन निष्कर्षों तक भी पहुंच सकते थे।

हमारे ऋषि-मुनियों की प्रयोगशाला उनका मस्तिष्क था ! अलबर्ट आइन्स्टीन से पूंछा गया की आपने अपने मस्तिष्क का कितना उपयोग किया है तो उन्होंने कहा कि " केवल १ प्रतिशत ही उपयोग किया है !" फिर पूंछा गया कि ऐसा कोई है जिसने इससे ज्यादा उपयोग किया हो " हाँ भारत के ऋषि-मुनियों ने अपना दिमाग ८ से १० प्रतिशत उपयोग किया है !"


जयतु संस्कृतं ! जयतु भारतं ...

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