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शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

श्री राधा नाम की महिमा

एक व्यक्ति था एक बार एक संत उसके नगर में आये वह उनके दर्शन करने गया और संत से बोला- स्वामी जी! मेरा एक बेटा है, वो न तो भगवान को मानता है, न ही पूजा-पाठ करता है, जब उससे कहो तो कहता है मै किसी संत को नहीं मानता, अब आप ही उसे समझाइये.स्वामी
जी ने कहा-ठीक है मैं तुम्हारे घर आऊँगा.

एक दिन वे उसके घर गए और उसके बेटे से बोले - बेटा एक बार कहो राधा, बेटा बोला मै क्यों कहूँ, स्वामीजी ने बहुत बार कहा, अं

त में वह बोला मै ‘राधा’ क्यों कहूँ,स्वामी जी ने कहा- जब तुम मर जाओ तो मरने पर यमराज से पूँछना कि एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है इतना कहकर वे चले गए.

एक दिन वह मर गया यमराज के पास पहुँच गया तब उसने पूँछा आप मुझे बताये की एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है?

यमराज ने कहा- मुझे नहीं पता कि क्या महिमा है, शायद इन्द्र को पता होगा चलो उससे पूछते है जब उसने देखा की यमराज तो कुछ ढीले पड़ रहे है तो बोला- मै ऐसे नहीं जाऊँगा, पालकी मँगाओ तुरंत पालकी आ गयी कहार से बोला- आप हटो यमराज जी आप इसकी जगह लग जाओ, यमराज लग गए, इंद्र के पास गए,

इंद्र ने पूछा – ये कोई खास है क्या? यमराज जी ने कहा- ये पृथ्वीसे आया है और एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है पूँछ रहा है आप बताइये, इंद्र ने कहा -महिमा तो बहुत है पर क्या है ये नहीं पता,ये तो ब्रह्मा जी ही बता सकते है.

व्यक्ति बोला - तुम भी पालकी में लग जाओ,अब उसकी पालकी में एक ओर यमराज दूसरी ओर इंद्र लग गए, ब्रह्मा जी के पास पहुँचे ब्रह्मा जी ने कहा- ये कोई महान व्यक्ति लगता है जिसे ये पालकी में लेकर आ रहे है ब्रह्मा जी ने पूँछा ये कौन है? तो यमराज जी ने कहा- ये पृथ्वी से आया है और एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है पूँछ रहा है.आप को तो पता ही होगा.

ब्रह्मा जी ने कहा – महिमा तो अनंत है पर ठीक-ठीक तो मुझे भी नहीं पता, शंकर जी ही बता सकते है. व्यक्ति ने कहा-तीसरी जगह पालकी में आप लग जाइये ब्रह्मा जी भी लग गए पालकी लेकर शंकरजी के पास गए .शंकर जी ने कहा ये कोई खास लगता है जिसकी पालकी को यमराज, इंद्र, ब्रह्मा जी, लेकर आ रहे है, पूँछा तो ब्रह्मा जी ने कहा ये पृथ्वी से आया है और एक बार राधा नाम लेने की महिमा पूँछ रहा है हमें तो पता नहीं आप को तो जरुर पता होगा आप तो समाधी में सदा उनका ही ध्यान करते है शंकर जी ने कहा- हाँ, पर ठीक प्रकार से तो मुझे भी नहीं पता, विष्णु जी ही बता सकते है.

व्यक्ति ने कहा –आप भी चौथी जगह लग जाइये अब शंकर जी भी पालकी में लग गए अब चारो विष्णु जी के पास गए और पूँछा कि एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है भगवान ने कहा राधा नाम की यही महिमा है कि इसकी पालकी आप जैसे देव उठा रहे है ये अब मेरी गोद में बैठने का अधिकारी हो गया है.
“ जय जय श्री राधे
”परम प्रिय श्री राधा नाम की महिमा का स्वयं श्री कृष्ण ने इस प्रकार गान किया है-"जिस समय मैं किसी के मुख से ’रा’ अक्षर सुन लेता हूँ, उसी समय उसे अपना उत्तम भक्ति-प्रेम प्रदान कर देता हूँ और ’धा’ शब्द का उच्चारण करने पर तो मैं प्रियतमा श्री राधा का नाम सुनने के लोभ से उसके पीछे-पीछे चल देता हूँ" ब्रज के रसिक संत श्री किशोरी अली जी ने इस भाव को प्रकट किया है.
"आधौ नाम तारिहै राधा
'र' के कहत रोग सब मिटिहैं, 'ध ' के कहत मिटै सब बाधा
राधा राधा नाम की महिमा, गावत वेद पुराण अगाधा
अलि किशोरी रटौ निरंतर, वेगहि लग जाय भाव समाधा"

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

दुर्वा की खास बातें जानेंगे तो आप भी मानेंगे ये है चमत्कारी:

दुर्वा की खास बातें जानेंगे तो आप भी मानेंगे ये है चमत्कारी:-------
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क्या आप जानते हैं श्रीगणेश को एक विशेष प्रकार की घास अर्पित की जाती है जिसे दुर्वा कहते हैं। दुर्वा के कई चमत्कारी प्रभाव हैं। यहां जानिए दुर्वा से जुड़ी खास बातें-
गणपति अथर्वशीर्ष में उल्लेख है-
यो दूर्वांकरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।
अर्थात- जो दुर्वा की कोपलों से (गणपति की) उपासना करते हैं उन्हें कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती है।

प्रकृति द्वारा प्रदान की गई वस्तुओं से भगवान की पूजा करने की परंपरा बहुत प्राचीन है। जल, फल, पुष्प यहां तक कि कुश और दुर्वा की घास द्वारा अपनी प्रार्थना ईश्वर तक पहुंचाने की सुविधा हमारे धर्मशास्त्रों में दी गई है। दुर्वा चढ़ाने से श्रीगणेश की कृपा भक्त को प्राप्त होती है और उसके सभी कष्ट-क्लेश समाप्त हो जाते हैं।

हमारे जीवन में दुर्वा के कई उपयोग हैं। दुर्वा को शीतल और रेचक माना जाता है। दुर्वा के कोमल अंकुरों के रस में जीवनदायिनी शक्ति होती है। पशु आहार के रूप में यह पुष्टिïकारक एवं दुग्धवर्धक होती है। प्रात:काल सूर्योदय से पहले दूब पर जमी ओंस की बूंदों पर नंगे पैर घूमने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।

पंचदेव उपासना में दुर्वा का महत्वपूर्ण स्थान है। यह गणपति और दुर्गा दोनों को अतिप्रिय है। पुराणों में कथा है कि पृथ्वी पर अनलासुर राक्षस के उत्पात से त्रस्त ऋषि-मुनियों ने इंद्र से रक्षा की प्रार्थना की। इंद्र भी उसे परास्त न कर सके। देवतागण शिव के पास गए। शिव ने कहा इसका नाश सिर्फ गणेश ही कर सकते हैं। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर श्रीगणेश ने अनलासुर को निगल लिया। जब उनके पेट में जलन होने लगी तब ऋषि कश्यप ने 21 दुर्वा की गांठ उन्हें खिलाई और इससे उनकी पेट की ज्वाला शांत हुई।

दुर्वा जिसे आम भाषा में दूब भी कहते हैं एक प्रकार ही घास है। इसकी विशेषता है कि इसकी जड़ें जमीन में बहुत गहरे (लगभग 6 फीट तक) उतर जाती हैं। विपरीत परिस्थिति में यह अपना अस्तित्व बखूबी से बचाए रखती है। दुर्वा गहनता और पवित्रता की प्रतीक है। इसे देखते ही मन में ताजगी और प्रफुल्लता का अनुभव होता है। शाक्तपूजा में भी भगवती को दुर्वा अर्पित की जाती है।

पांच दुर्वा के साथ भक्त अपने पंचभूत-पंचप्राण अस्तित्व को गुणातीत गणेश को अर्पित करते हैं। इस प्रकार तृण के माध्यम से मानव अपनी चेतना को परमतत्व में विलीन कर देता है।

श्रीगणेश पूजा में दो, तीन या पांच दुर्वा अर्पण करने का विधान तंत्र शास्त्र में मिलता है। इसके गूढ़ अर्थ हैं। संख्याशास्त्र के अनुसार दुर्वा का अर्थ जीव होता है जो सुख और दु:ख ये दो भोग भोगता है। जिस प्रकार जीव पाप-पुण्य के अनुरूप जन्म लेता है। उसी प्रकार दुर्वा अपने कई जड़ों से जन्म लेती है। दो दुर्वा के माध्यम से मनुष्य सुख-दु:ख के द्वंद्व को परमात्मा को समर्पित करता है। तीन दुर्वा का प्रयोग यज्ञ में होता है। ये आणव (भौतिक), कार्मण (कर्मजनित) और मायिक (माया से प्रभावित) रूपी अवगुणों का भस्म करने का प्रतीक है।

हाइब्लडप्रेशर के मरीजों के लिए वरदान है पालक

ये फायदे जानेंगे तो आप भी रोज खाना चाहेंगे पालक
लोग कहते हैं कि पालक खाने वाला कभी बीमार नहीं पड़ता है। डॉक्टरों के मुताबिक पालक में शरीर के लिए आवश्यक अनेक अमीनो अम्ल, विटामिन ए, फोलिक अम्ल, प्रोटीन और लौह तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। पालक 100 ग्राम पालक में 26 किलो कैलोरी उर्जा ,प्रोटीन 2 .0 त्न ,कार्बोहाइड्रेट 2 .9 ,नमी 92 वसा 0 .7 , रेशा 0 .6 त्न ,खनिज लवन 0 .7 और रेशा 0 .6 होता हैं .पालक में खनिज लवन जैसे कैल्सियम ,लौह, तथा विटामिन ए ,बी ,सी आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं. इसी गुण के कारण इसे लाइफ प्रोटेक्टिव फ़ूड कहा जाता हैं

पालक में विटामिन ए,बी,सी,लोहा और कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है। कच्चा पालक गुणकारी होता है। पूरे पाचन-तंत्र की प्रणाली को ठीक करता है। खांसी या फेफड़ों में सूजन हो तो पालक के रस के कुल्ले करने से लाभ होता है। पालक का रस पीने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। ताजे पालक का रस रोज पीने से आपकी मैमोरी बढ़ सकती है। इसमें आयोडीन होने की वजह से यह दिमागी थकान से भी छुटकारा दिलाता है।

हरी पत्तेदार सब्जियों से हमें आयरन तब तक नहीं मिलता, जब तक कि हम इन्हें विटामिन सी के साथ नहीं लेते, मसलन टमाटर, नींबू आदि के साथ। इसलिए पालक जैसी हरी पत्तेदार सब्जियों को आप टमाटर के साथ खाएं।लेकिन पालक को पनीर जैसे मिल्क प्रोडक्ट के साथ नहीं बनाना चाहिए। पालक आंतों को क्रियाशील बनाता है, यही वजह है कि लीवर से संबंधित रोगों में भी यह फायदेमंद है।
अगर आप अपनी रूखी त्वचा से परेशान हैं तो पालक खाएं क्योंकि इसमें पानी की मात्रा ज्यादा होती है, जो आपकी त्वचा को नर्म और मुलायम बनाने में मदद करता है।पालक हमारे शरीर में उन जरूरी तत्वों को संचित करता है। इसके माध्यम से न सिर्फ शरीर का विकास होता है बल्कि यह रक्त नलिकाओं को खोलता है। यही कारण है कि हाइब्लडप्रेशर के मरीजों के लिए वरदान है।

भगवान के सामने दीपक क्यों प्रज्वालित किया जाता है ?

भगवान के सामने दीपक क्यों प्रज्वालित किया जाता है ?

हर हिंदू के घर में भगवान के सामने दीपक प्रज्वालित किया जाता है. हर घर में आपको सुबह, या शाम को या फिर दोनों समय दीपक प्रज्वालित किया जाता है. कई जगह तो अविरल या अखंड ज्योत भी की जाती है. किसी भी पूजा में दीपक पूजा शुरू होने के पूर्ण होने तक दीपक को प्रज्वालित कर के रखते है.
प्रकाश ज्ञान का घोतक है और अँधेरा अज्ञान का. प्रभु ज्ञान के सागर और सोत्र है इसलिए दीपक प्रज्वालित कर प्रभु की अराधना की जाती है. ज्ञान अज्ञान का नाश करता है और उजाला अंधेरे का. ज्ञान वो आंतरिक उजाला है जिससे बाहरी अंधेरे पर विजय प्राप्त की जा सकती है. अत दीपक प्रज्वालित कर हम ज्ञान के उस सागर के सामने नतमस्तक होते है.

कुछ तार्किक लोग प्रश्न कर सकते है कि प्रकाश तो बिजली से भी हो सकता है फिर दीपक की क्या आवश्यकता ? तो भाई ऐसा है की दीपक का एक महत्त्व ये भी है कि दीपक के अन्दर जो घी या तेल जो होता है वो हमारी वासनाएं, हमारे अंहकार का प्रतीक है और दीपक की लौ के द्वारा हम अपने वासनाओं और अंहकार को जला कर ज्ञान का प्रकाश फैलाते है. दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि दीपक की लौ हमेशा ऊपर की तरफ़ उठती है जो ये दर्शाती है कि हमें अपने जीवन को ज्ञान के द्वारा को उच्च आदर्शो की और बढ़ाना चाहिए. अंत में आइये दीप देव को नमस्कार करे :
शुभम करोति कलयाणम् आरोग्यम् धन सम्पदा, शत्रुबुध्दि विनाशाय दीपज्योति नमस्तुते ।।
सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले हे दीप, शत्रु की बुद्धि के विनाश के लिए हम तुम्हें नमस्कार करते.......

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