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मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

संतान प्राप्ति के सरल उपाय :-पंडित कौशल पाण्डेय

संतान प्राप्ति के सरल उपाय :-पंडित कौशल पाण्डेय

हमारे ऋषि महर्षियों ने हजारो साल पहले ही संतान प्राप्ति के कुछ नियम और सयम बताये है ,संसार की उत्पत्ति पालन और विनाश का क्रम पृथ्वी पर हमेशा से चलता रहा है,और आगे भी चलता रहेगा। इस क्रम के अन्दर पहले जड चेतन का जन्म होता है,फ़िर उसका पालन होता है और समयानुसार उसका विनास होता है।
मनुष्य जन्म के बाद उसके लिये चार पुरुषार्थ सामने आते है,पहले धर्म उसके बाद अर्थ फ़िर काम और अन्त में मोक्ष, धर्म का मतलब पूजा पाठ और अन्य धार्मिक क्रियाओं से पूरी तरह से नही पोतना चाहिये,धर्म का मतलब मर्यादा में चलने से होता है,माता को माता समझना पिता को पिता का आदर देना अन्य परिवार और समाज को यथा स्थिति आदर सत्कार और सबके प्रति आस्था रखना ही धर्म कहा गया है,अर्थ से अपने और परिवार के जीवन यापन और समाज में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने का कारण माना जाता है,काम का मतलब अपने द्वारा आगे की संतति को पैदा करने के लिये स्त्री को पति और पुरुष को पत्नी की कामना करनी पडती है,पत्नी का कार्य धरती की तरह से है और पुरुष का कार्य हवा की तरह या आसमान की तरह से है,गर्भाधान भी स्त्री को ही करना पडता है,वह बात अलग है कि पादपों में अमर बेल या दूसरे हवा में पलने वाले पादपों की तरह से कोई पुरुष भी गर्भाधान करले। धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा,इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये। जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा…

कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।

यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।मासिक धर्म शुरू होने के प्रथम चार दिवसों में संभोग से पुरूष रुग्णता को प्राप्त होता है. पांचवी रात्रि से संतान उत्पन्न करने की विधि करनी चाहिए .

ज्योतिष के अनुसार गर्भाधान के समय केंद्र एवम त्रिकोण मे शुभ ग्रह हों, तीसरे छठे ग्यारहवें घरों में पाप ग्रह हों, लग्न पर मंगल गुरू इत्यादि शुभ कारक ग्रहों की दॄष्टि हो, विषम चंद्रमा नवमांश कुंडली में हो और मासिक धर्म से सम रात्रि हो, उस समय सात्विक विचार पूर्वक योग्य पुत्र की कामना से यदि रति की जाये तो निश्चित ही योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है.

इस समय में पुरूष का दायां एवम स्त्री का बांया स्वर ही चलना चाहिये, यह अत्यंत अनुभूत और अचूक उपाय है जो खाली नही जाता. इसमे ध्यान देने वाली बात यह है कि पुरुष का जब दाहिना स्वर चलता है तब उसका दाहिना अंडकोशः अधिक मात्रा में शुक्राणुओं का विसर्जन करता है जिससे कि अधिक मात्रा में पुल्लिग शुक्राणु निकलते हैं. अत: पुत्र ही उत्पन्न होता है.

यदि पति पत्नि संतान प्राप्ति के इच्छुक ना हों और सहवास करना ही चाहें तो मासिक धर्म के अठारहवें दिन से पुन: मासिक धर्म आने तक के समय में सहवास कर सकते हैं, इस काल में गर्भादान की संभावना नही के बराबर होती है.
चार मास का गर्भ हो जाने के पश्चात दंपति को सहवास नही करना चाहिये. अगर इसके बाद भी संभोग रत होते हैं तो भावी संतान अपंग और रोगी पैदा होने का खतरा बना रहता है. इस काल के बाद माता को पवित्र और सुख शांति के साथ देव आराधन और वीरोचित साहित्य के पठन पाठन में मन लगाना चाहिये. इसका गर्भस्थ शिशि पर अत्यंत प्रभावकारी असर पदता है,

अगर दंपति की जन्मकुंडली के दोषों से संतान प्राप्त होने में दिक्कत आरही हो तो बाधा दूर करने के लिये संतान गोपाल के सवा लाख जप करने चाहिये. यदि संतान मे सूर्य बाधा कारक बन रहा हो तो हरिवंश पुराण का श्रवण करें, राहु बाधक हो तो क्न्यादान से, केतु बाधक हो तो गोदान से, शनि या अमंगल बाधक बन रहे हों तो रूद्राभिषेक से संतान प्राप्ति में आने वाली बाधायें दूर की जा सकती हैं.
मासिक स्राव रुकने से अंतिम दिन (ऋतुकाल) के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
१- चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
२- पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
३- छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
४- सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
५- आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
६- नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
७- दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
८- ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
९- बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
१०- तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
११- चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
१२- पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
१३- सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।

सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए, एमदम से नहीं उठना चाहिए।

पति-पत्नी दोनों सुबह स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ इस मंत्र का जप तुलसी की माला से करें।
संतान गोपाल मंत्र का जप करें -

देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।

- मंत्र जप के बाद भगवान से समर्पित भाव से निरोग, दीर्घजीवी, अच्छे चरित्रवाला, सेहतमंद पुत्र की कामना करें।

कई बार प्रायः देखने में आया है की विवाह के वर्षो बाद भी गर्भ धारण नहीं हो पाता या बार-बार गर्भपात हो जाता है, ज्योतिष में इस समस्या या दोष का एक प्रमुख कारण पति या पत्नी की कुंडली में संतान दोष अथवा पितृ दोष हो सकता है या घर का वास्तुदोष भी होता है, जिसके कारण गर्भ धारण नहीं हो पाता या बार-बार गर्भपात हो जाता है

ज्योतिष- वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसे प्रमुख दोष बताये गए है जिनके कारण संतान की प्राप्ति नहीं होती या वंश वृद्धि रुक जाती है | इस समस्या के पीछे की वास्तविकता..क्या है इसका शास्त्रीय और ज्योतिषीय आधार क्या है ये आप अपनी जन्म कुंडली के द्वारा जानकारी प्राप्त कर सकते है ...
इसके लिए आप हरिवंश पुराण का पाठ या संतान गोपाल मंत्र का जाप करे या किसी अछे विद्वान से कराये .अधिक जानकारी के लिए जन्म पत्रिका के साथ मिले या संपर्क करे :- पंडित कौशल पाण्डेय

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

क्या हम भारतीय है ?

जय श्री कृष्णा,
क्या हम भारतीय है ?
कोई कहता है मैं ब्राह्मण, मैं पंजाबी, मैं बंगाली, मैं मराठी, पर क्या आज तक किसी ने ये कहा मे भारतीय हूँ
सबको अपनी पड़ी है अंग्रेज़ो द्वारा थोपे गये नाम इंडियन को आज तक ढो रहे है अंग्रेज़ो ने भारत के हर क्षेत्र मे अंदर और बाहर अपनी छाप लगा रखी है जिसे हम लोग किसी ना किसी रूप मे प्रत्यक्ष ओर अप्रत्यक्ष रूप से इस्तेमाल कर रहे है
हमे अब इस मानसिक गुलामी को छोड़ना होगा,
१. जैसे टाई का जो की अंग्रेज़ो की क्रॉस का प्रतीक है आज तक बिना सोचे समझे लगा रहे है ओर आज वो क्रॉस हमारी भारतीय मुद्रा मे भी सिक्को के पीछे दिखाई दे रहा है ,
२. लोवेस्ट जीन्स - जो की बहुत ही घटिया मानसिकता के कामुक वहशी संस्क्रती की उपज है जो आज युवा पीढ़ी बिना इसका इतिहास जाने अपनाने लगी है
३. धर्मांतरण - लोग बिना सोचे समझे फेशन के चक्कर मे अपनी परंपराओं की वैज्ञानिकता को बिना समझे आधुनिकता की आड़ मे मॉर्डन बनने के साथ ही अपने धर्म से विमुख हो रहे है
४. अंग्रेज़ो द्वारा थोपा गया शब्द इंडिया(गुलाम) आज तक हर जगह प्रयोग कर रहे है अँग्रेज़ी बोलना अपनी शान समझते है
क्या हमे इस तरह की गुलामी से बाहर नही निकलना चाहिए, सरकार ओर उसमे बैठे स्वार्थी लोगो को इन सब बातों से कोई मतलब नही, उनकी जेब भरने के लिए यदि जनता को मौत के मूह मे भी भेजना पड़े तो उन्हे कोई फ़र्क नही पड़ता | इसलिए आज देश को खोखला करने वाली इतनी बाहरी कंपनिया भारत मे अपना अस्तित्व बना चुकी है
महँगाई ओर भ्रष्टाचार से आज सिर्फ़ ओर सिर्फ़ ग़रीब ओर निम्न वर्ग ही त्रस्त है क्योंकि
उच्च वर्ग को कोई फ़र्क नही पड़ता
मध्यम वर्ग के पास समय नही है
ओर निम्न वर्ग कुछ कर नही सकता
तो समस्या ज्यों की त्यों है

क्यों ना इस समस्या का एक एक करके समाधान किया जाए
सबसे पहले हमे अपने नाम के साथ थोपे गये इंडियन शब्द से छुटकारा पाना होगा
इसके लिए आज से ही सभी अपनी हर सोशियल वेबसाइट की प्रोफाइल मे ओर जहाँ भी पता लिखे वहाँ इंडिया की जगह भारत लिखना शुरू कीजिए
जेसे भीलवाड़ा, (राजस्थान) भारत
इससे आने वाले समय मे इस कलंक से तो मुक्ति मिल जाएगी
बाकी की समस्याओं के लिए आप लोग इस बारे मे अपनी राय दीजिए ताकि एक ठोस समाधान सामने आएगा
आपका सहयोग इस आंदोलन मे एक एक इंट का काम करेगा
धन्यवाद
कैलाशचंद्र (साँवरिया)

रविवार, 9 दिसंबर 2012

एक एकड़ भूमि की घास में इतनी शक्ति होती है कि उससे संसार की सारी मोटरों का संचालन किया जा सकता है।

एक लड़का सदा अपनी मेज़ पर 'पी' लिख कर रखता था। वह अपनी किताबों और कॉपियों पर भी सदा 'पी' लिख दिया करता था। घर पर भी उसने जगह- जगह पर 'पी' लिख छोड़ा था। लोग हैरान होते थे, पर वह किसी को कुछ नहीं बताता था। धीरे-धीरे लोगों ने पूछना छोड़ दिया। हाई स्कूल केबाद वह कॉलेज में दाखिल हुआ। वहांभी 'पी' लिखने का उसका वह क्रम चालू रहा। कुछ दिनों तक लड़के आपस में चर्चा भी करते रहे, पर कोई उसके रहस्य को नहीं समझ सका। आखिर में सहपाठियों ने मज़ाक में उसका नाम ही 'पी साहब' रख दिया। पर वह क़तई परेशान नहीं हुआ। पढ़ाई में वह खूब मन लगाता था, अत: एमए में फर्स्ट डिविज़न पास हुआ, और उसे अपने ही स्कूल में प्रिंसिपल की नौकरी मिल गई। प्रिंसिपल बनकर जब वह पहले दिन स्कूल में आया तो छात्रों को अपने'पी' लिखने का रहस्य बताया, बचपन से ही मेरी कामना थी कि अपने स्कूल का प्रिंसिपल बनूं। इसी को याद रखने के लिए सदा अपने सामने 'पी' लिखा हुआ रखता था। आज मेरा वह सपना पूरा हो गया।

क्या आपने कोलंबस का नाम सुना है? कैसे वह अपने छोटे से जहाज़ 'पिल्टा' कोलेकर अथाह सागर में नई दुनिया की खोज में निकल पड़ा था? उसका संकल्प बहुत प्रबल था। जब उसका जहाज़ महासागर की लहरों से टक्कर ले रहा था, ऊपर आकाश और नीचे अनंत जलराशि थी -ऐसे विकट समय में जहाज़ का एक मस्तूल खराब हो गया। पर कोलंबस को कौन विचलित कर सकता था? उसने नाविकों को धन का प्रलोभन दिया। नाविक आगेचले, पर केनरीज़ द्वीप के दो सौ मील पश्चिम में उसके कुतुबनुमा की सुई खराब हो गई। अब तो मल्लाहों का रहा-सहा साहस भी टूट गया। इस प्रकार समुद्र में अज्ञात दिशा की ओर बढ़ना मृत्यु से खेलना था। पर कोलंबस अपने निश्चय पर अड़ा रहा। अंतत: उसके संकल्प की विजय हुई और नाविक आगे चलने को तैयार हो गए। और  12 अक्टूबर, 1492 को उनका जहाज़ नई दुनिया- अमेरिका के तट पर जाकर लग गया। यदि कोलंबस अपने निश्चय पर दृढ़ नहीं रहता और बाधाओं से घबराकर अपना निश्चय बदल देता, तो वह कभी इस नई दुनिया की खोज नहीं कर पाता। हर व्यक्ति में उतनी ही शक्ति छिपी हुई है, जितनी कोलंबस में थी। पर कोई बिरला ही उसे समझ कर उसका उपयोग करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक एकड़ भूमि की घास में इतनी शक्ति होती है कि उससे
संसारकी सारी मोटरों का संचालन किया जासकता है। परंतु वह बिखरी हुई
अवस्था में है। केवल उस शक्ति को इंजन के पिस्टन रॉड पर केंद्रित करने
की आवश्यकता है। इसी तरह से ऐसे हज़ारों व्यक्ति हैं जो ज्ञानी हैं, जिनमें
शक्ति भरी पड़ी है, परंतु वे उसे इकट्ठा करके किसी निश्चित स्थान पर लाने में असमर्थ हैं। इसी कारण उन्हें विफल होना पड़ता है। शक्ति को बिखेर देने
से उसका अपव्यय ही नहीं होता, बल्कि काम करने का उत्साह भी नष्ट
हो जाता है। भारत की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी ने देश को एक
नारा दिया था, 'करो या मरो।' इसके पीछे आशय यही था कि हमें यदि आज़ादी प्राप्त करनी है तो उसके लिए दृढ़ता से जुटना होगा। सारा देश दृढ़ता से उनकी बात पर अड़ गया। इसी का परिणाम था कि भारत बिना किसी रक्तपात के विदेशी शासन से मुक्त हो गया। इसीलिए सभी धर्मों में प्रतिज्ञा और संकल्प का बहुत महत्व है। इसका मूल उद्देश्य मनुष्य को मन से दृढ़ बनाना है। जब हम एक क्षेत्र में अपनी संकल्पशक्ति को विकसित कर लेते हैं, तो दूसरे क्षेत्रों में भी हम उसी प्रकार से सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

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