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बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

भोजन की सही विधि

भोजन विधि::

अधिकांश लोग भोजन की सही विधि नहीं जानते। गलत विधि से गलत मात्रा में अर्थात् आवश्यकता से अधिक या बहुत कम भोजन करने से या अहितकर भोजन करने से जठराग्नि मंद पड़ जाती है, जिससे कब्ज रहने लगता है। तब आँतों में रूका हुआ मल सड़कर दूषित रस बनाने लगता है। यह दूषित रस ही सारे शरीर में फैलकर विविध प्रकार के रोग उत्पन्न करता है। उपनिषदों में भी कहा गया हैः आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः। शुद्ध आहार से मन शुद्ध रहता है। साधारणतः सभी व्यक्तियों के लिए आहार के कुछ नियमों को जानना अत्यंत आवश्यक है। जैसे-

आलस तथा बेचैनी न रहें, मल, मूत्र तथा वायु का निकास य़ोग्य ढंग से होता रहे, शरीर में उत्साह उत्पन्न हो एवं हलकापन महसूस हो, भोजन के प्रति रूचि हो तब समझना चाहिए की भोजन पच गया है। बिना भूख के खाना रोगों को आमंत्रित करता है। कोई कितना भी आग्रह करे या आतिथ्यवश खिलाना चाहे पर आप सावधान रहें।

सही भूख को पहचानने वाले मानव बहुत कम हैं। इससे भूख न लगी हो फिर भी भोजन करने से रोगों की संख्या बढ़ती जाती है। एक बार किया हुआ भोजन जब तक पूरी तरह पच न जाय एवं खुलकर भूख न लगे तब तक दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए। अतः एक बार आहार ग्रहण करने के बाद दूसरी बार आहार ग्रहण करने के बीच कम-से-कम छः घंटों का अंतर अवश्य रखना चाहिए क्योंकि इस छः घंटों की अवधि में आहार की पाचन-क्रिया सम्पन्न होती है। यदि दूसरा आहार इसी बीच ग्रहण करें तो पूर्वकृत आहार का कच्चा रस(आम) इसके साथ मिलकर दोष उत्पन्न कर देगा। दोनों समय के भोजनों के बीच में बार-बार चाय पीने, नाश्ता, तामस पदार्थों का सेवन आदि करने से पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है, ऐसा व्यवहार में मालूम पड़ता है।

रात्रि में आहार के पाचन के समय अधिक लगता है इसीलिए रात्रि के समय प्रथम पहर में ही भोजन कर लेना चाहिए। शीत ऋतु में रातें लम्बी होने के कारण सुबह जल्दी भोजन कर लेना चाहिए और गर्मियों में दिन लम्बे होने के कारण सायंकाल का भोजन जल्दी कर लेना उचित है।

अपनी प्रकृति के अनुसार उचित मात्रा में भोजन करना चाहिए। आहार की मात्रा व्यक्ति की पाचकाग्नि और शारीरिक बल के अनुसार निर्धारित होती है। स्वभाव से हलके पदार्थ जैसे कि चचावल, मूँग, दूध अधिक मात्रा में ग्रहण करने सम्भव हैं परन्तु उड़द, चना तथा पिट्ठी से बने पदार्थ स्वभावतः भारी होते हैं, जिन्हें कम मात्रा में लेना ही उपयुक्त रहता है।

भोजन के पहले अदरक और सेंधा नमक का सेवन सदा हितकारी होता है। यह जठराग्नि को प्रदीप्त करता है, भोजन के प्रति रूचि पैदा करता है तथा जीभ एवं कण्ठ की शुद्धि भी करता है।

भोजन गरम और स्निग्ध होना चाहिए। गरम भोजन स्वादिष्ट लगता है, पाचकाग्नि को तेज करता है और शीघ्र पच जाता है। ऐसा भोजन अतिरिक्त वायु और कफ को निकाल देता है। ठंडा या सूखा भोजन देर से पचता है। अत्यंत गरम अन्न बल का ह्रास करता है। स्निग्ध भोजन शरीर को मजबूत बनाता है, उसका बल बढ़ाता है और वर्ण में भी निखार लाता है।

चलते हुए, बोलते हुए अथवा हँसते हुए भोजन नहीं करना चाहिए।

दूध के झाग बहुत लाभदायक होते हैं। इसलिए दूध खूब उलट-पुलटकर, बिलोकर, झाग पैदा करके ही पियें। झागों का स्वाद लेकर चूसें। दूध में जितने ज्यादा झाग होंगे, उतना ही वह लाभदायक होगा।

चाय या कॉफी प्रातः खाली पेट कभी न पियें, दुश्मन को भी न पिलायें।

एक सप्ताह से अधिक पुराने आटे का उपयोग स्वास्थ्य के लिए लाभदायक नहीं है।

भोजन कम से कम 20-25 मिनट तक खूब चबा-चबाकर एवं उत्तर या पूर्व की ओर मुख करके करें। अच्छी तरह चबाये बिना जल्दी-जल्दी भोजन करने वाले चिड़चिड़े व क्रोधी स्वभाव के हो जाते हैं। भोजन अत्यन्त धीमी गति से भी नहीं करना चाहिए।

भोजन सात्त्विक हो और पकने के बाद 3-4 घंटे के अंदर ही कर लेना चाहिए।

स्वादिष्ट अन्न मन को प्रसन्न करता है, बल व उत्साह बढ़ाता है तथा आयुष्य की वृद्धि करता है, जबकि स्वादहीन अन्न इसके विपरीत असर करता है।

सुबह-सुबह भरपेट भोजन न करके हलका-फुलका नाश्ता ही करें।

भोजन करते समय भोजन पर माता, पिता, मित्र, वैद्य, रसोइये, हंस, मोर, सारस या चकोर पक्षी की दृष्टि पड़ना उत्तम माना जाता है। किंतु भूखे, पापी, पाखंडी या रोगी मनुष्य, मुर्गे और कुत्ते की नज़र पड़ना अच्छा नहीं माना जाता।

भोजन करते समय चित्त को एकाग्र रखकर सबसे पहले मधुर, बीच में खट्टे और नमकीन तथा अंत में तीखे, कड़वे और कसैले पदार्थ खाने चाहिए। अनार आदि फल तथा गन्ना भी पहले लेना चाहिए। भोजन के बाद आटे के भारी पदार्थ, नये चावल या चिवड़ा नहीं खाना चाहिए।

पहले घी के साथ कठिन पदार्थ, फिर कोमल व्यंजन और अंत में प्रवाही पदार्थ खाने चाहिए।

माप से अधिक खाने से पेट फूलता है और पेट में से आवाज आती है। आलस आता है, शरीर भारी होता है। माप से कम अन्न खाने से शरीर दुबला होता है और शक्ति का क्षय होता है।

बिना समय के भोजन करने से शक्ति का क्षय होता है, शरीर अशक्त बनता है। सिरदर्द और अजीर्ण के भिन्न-भिन्न रोग होते हैं। समय बीत जाने पर भोजन करने से वायु से अग्नि कमजोर हो जाती है। जिससे खाया हुआ अन्न शायद ही पचता है और दुबारा भोजन करने की इच्छा नहीं होती।

जितनी भूख हो उससे आधा भाग अन्न से, पाव भाग जल से भरना चाहिए और पाव भाग वायु के आने जाने के लिए खाली रखना चाहिए। भोजन से पूर्व पानी पीने से पाचनशक्ति कमजोर होती है, शरीर दुर्बल होता है। भोजन के बाद तुरंत पानी पीने से आलस्य बढ़ता है और भोजन नहीं पचता। बीच में थोड़ा-थोड़ा पानी पीना हितकर है। भोजन के बाद छाछ पीना आरोग्यदायी है। इससे मनुष्य कभी बलहीन और रोगी नहीं होता।

प्यासे व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए। प्यासा व्यक्ति अगर भोजन करता है तो उसे आँतों के भिन्न-भिन्न रोग होते हैं। भूखे व्यक्ति को पानी नहीं पीना चाहिए। अन्नसेवन से ही भूख को शांत करना चाहिए।

भोजन के बाद गीले हाथों से आँखों का स्पर्श करना चाहिए। हथेली में पानी भरकर बारी-बारी से दोनों आँखों को उसमें डुबोने से आँखों की शक्ति बढ़ती है।

भोजन के बाद पेशाब करने से आयुष्य की वृद्धि होती है। खाया हुआ पचाने के लिए भोजन के बाद पद्धतिपूर्वक वज्रासन करना तथा 10-15 मिनट बायीं करवट लेटना चाहिए(सोयें नहीं), क्योंकि जीवों की नाभि के ऊपर बायीं ओर अग्नितत्त्व रहता है।

भोजन के बाद बैठे रहने वाले के शरीर में आलस्य भर जाता है। बायीं करवट लेकर लेटने से शरीर पुष्ट होता है। सौ कदम चलने वाले की उम्र बढ़ती है तथा दौड़ने वाले की मृत्यु उसके पीछे ही दौड़ती है।

रात्रि को भोजन के तुरंत बाद शयन न करें, 2 घंटे के बाद ही शयन करें।

किसी भी प्रकार के रोग में मौन रहना लाभदायक है। इससे स्वास्थ्य के सुधार में मदद मिलती है। औषधि सेवन के साथ मौन का अवलम्बन हितकारी है।

कुछ उपयोगी बातें-

घी, दूध, मूँग, गेहूँ, लाल साठी चावल, आँवले, हरड़े, शुद्ध शहद, अनार, अंगूर, परवल – ये सभी के लिए हितकर हैं।

अजीर्ण एवं बुखार में उपवास हितकर है।

दही, पनीर, खटाई, अचार, कटहल, कुन्द, मावे की मिठाइयाँ – से सभी के लिए हानिकारक हैं।

अजीर्ण में भोजन एवं नये बुखार में दूध विषतुल्य है। उत्तर भारत में अदरक के साथ गुड़ खाना अच्छा है।

मालवा प्रदेश में सूरन(जमिकंद) को उबालकर काली मिर्च के साथ खाना लाभदायक है।

अत्यंत सूखे प्रदेश जैसे की कच्छ, सौराष्ट्र आदि में भोजन के बाद पतली छाछ पीना हितकर है।

मुंबई, गुजरात में अदरक, नींबू एवं सेंधा नमक का सेवन हितकर है।

दक्षिण गुजरात वाले पुनर्नवा(विषखपरा) की सब्जी का सेवन करें अथवा उसका रस पियें तो अच्छा है।

दही की लस्सी पूर्णतया हानिकारक है। दहीं एवं मावे की मिठाई खाने की आदतवाले पुनर्नवा का सेवन करें एवं नमक की जगह सेंधा नमक का उपयोग करें तो लाभप्रद हैं।

शराब पीने की आदवाले अंगूर एवं अनार खायें तो हितकर है।

आँव होने पर सोंठ का सेवन, लंघन (उपवास) अथवा पतली खिचड़ी और पतली छाछ का सेवन लाभप्रद है।

अत्यंत पतले दस्त में सोंठ एवं अनार का रस लाभदायक है।

आँख के रोगी के लिए घी, दूध, मूँग एवं अंगूर का आहार लाभकारी है।

व्यायाम तथा अति परिश्रम करने वाले के लिए घी और इलायची के साथ केला खाना अच्छा है।

सूजन के रोगी के लिए नमक, खटाई, दही, फल, गरिष्ठ आहार, मिठाई अहितकर है।

यकृत (लीवर) के रोगी के लिए दूध अमृत के समान है एवं नमक, खटाई, दही एवं गरिष्ठ आहार विष के समान हैं।

वात के रोगी के लिए गरम जल, अदरक का रस, लहसुन का सेवन हितकर है। लेकिन आलू, मूँग के सिवाय की दालें एवं वरिष्ठ आहार विषवत् हैं।

कफ के रोगी के लिए सोंठ एवं गुड़ हितकर हैं परंतु दही, फल, मिठाई विषवत् हैं।

पित्त के रोगी के लिए दूध, घी, मिश्री हितकर हैं परंतु मिर्च-मसालेवाले तथा तले हुए पदार्थ एवं खटाई विषवत् हैं।

अन्न, जल और हवा से हमारा शरीर जीवनशक्ति बनाता है। स्वादिष्ट अन्न व स्वादिष्ट व्यंजनों की अपेक्षा साधारण भोजन स्वास्थ्यप्रद होता है। खूब चबा-चबाकर खाने से यह अधिक पुष्टि देता है, व्यक्ति निरोगी व दीर्घजीवी होता है। वैज्ञानिक बताते हैं कि प्राकृतिक पानी में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के सिवाय जीवनशक्ति भी है। एक प्रयोग के अनुसार हाइड्रोजन व ऑक्सीजन से कृत्रिम पानी बनाया गया जिसमें खास स्वाद न था तथा मछली व जलीय प्राणी उसमें जीवित न रह सके।

बोतलों में रखे हुए पानी की जीवनशक्ति क्षीण हो जाती है। अगर उसे उपयोग में लाना हो तो 8-10 बार एक बर्तन से दूसरे बर्तन में उड़ेलना (फेटना) चाहिए। इससे उसमें स्वाद और जीवनशक्ति दोनों आ जाते हैं। बोतलों में या फ्रिज में रखा हुआ पानी स्वास्थ्य का शत्रु है। पानी जल्दी-जल्दी नहीं पीना चाहिए। चुसकी लेते हुए एक-एक घूँट करके पीना चाहिए जिससे पोषक तत्त्व मिलें।

वायु में भी जीवनशक्ति है। रोज सुबह-शाम खाली पेट, शुद्ध हवा में खड़े होकर या बैठकर लम्बे श्वास लेने चाहिए। श्वास को करीब आधा मिनट रोकें, फिर धीरे-धीरे छोड़ें। कुछ देर बाहर रोकें, फिर लें। इस प्रकार तीन प्राणायाम से शुरुआत करके धीरे-धीरे पंद्रह तक पहुँचे। इससे जीवनशक्ति बढ़ेगी, स्वास्थ्य-लाभ होगा, प्रसन्नता बढ़ेगी।

पूज्य बापू जी सार बात बताते हैं, विस्तार नहीं करते। 93 वर्ष तक स्वस्थ जीवन जीने वाले स्वयं उनके गुरुदेव तथा ऋषि-मुनियों के अनुभवसिद्ध ये प्रयोग अवश्य करने चाहिए।

स्वास्थ्य और शुद्धिः

उदय, अस्त, ग्रहण और मध्याह्न के समय सूर्य की ओर कभी न देखें, जल में भी उसकी परछाई न देखें।

दृष्टि की शुद्धि के लिए सूर्य का दर्शन करें।

उदय और अस्त होते चन्द्र की ओर न देखें।

संध्या के समय जप, ध्यान, प्राणायाम के सिवाय कुछ भी न करें।

साधारण शुद्धि के लिए जल से तीन आचमन करें।

अपवित्र अवस्था में और जूठे मुँह स्वाध्याय, जप न करें।

सूर्य, चन्द्र की ओर मुख करके कुल्ला, पेशाब आदि न करें।

मनुष्य जब तक मल-मूत्र के वेगों को रोक कर रखता है तब तक अशुद्ध रहता है।

सिर पर तेल लगाने के बाद हाथ धो लें।

ध्यानयोगी ठंडे जल से स्नान न करे। —

बूरा शकर के लाभ - -

बूरा शकर के लाभ - -
इतिहास में एक समय ऐसा भी रहा है जब याचक के पानी मांगने पर उसे मिश्री मिश्रित दूध दिया जाता था। किसी के पानी मांगने पर उसे पहले गुड़ की डली भेंट की जाती थी और बाद में पानी। हमारा कोई पर्व या उत्सव ऐसा नहीं होता जिस पर हम अपने बंधु-बांधवों और इष्ट-मित्रों का मुंह मीठा नहीं कराते। मांगलिक अवसरों पर लड्डू, बताशे, गुड़ आदि बांटकर अपनी प्रसन्नता को मिल-बांट लेने की परम्परा तो हमारे देश में लम्बे समय से रही है। सच तो यह है कि मीठे की सबसे अधिक खपत हमारे देश में ही है। आयुर्वेद के ग्रन्थों में मधुर रस के पदार्थों से भोजन का श्रीगणेश करने का परामर्श दिया गया है। "ब्रह्मांड पुराण" में भोजन का समापन भी मीठे पदार्थों से ही करने का सुझाव है। एक ग्रन्थ में तो भोजन में मूंग की दाल, शहद, घी और शक्कर का शामिल रहना अनिवार्य कहा गया है।
मेगास्थनीज़ ने लिखा है कि भारतीय लोग मधुमक्खियों के बिना ही डंडों के पौधों पर शहद उगाते हैं। स्पष्ट है कि यहाँ पर लेखक गन्ने की बात कर रहा है। चूंकि उसके उन्नत देश को मीठे के लिए शहद से बेहतर किसी पदार्थ का ज्ञान नहीं था, शक्कर को शहद समझने में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कहते हैं कि यह शक्कर सिकंदर के सैनिकों के साथ ही भारत से बाहर गयी।
हिन्दी/फारसी/उर्दू का शक्कर बना है संस्कृत के मूल शब्द शर्करा से। मराठी का साखर और अन्य भारतीय भाषाओं के मिलते-जुलते शब्दों का मूल भी समान ही है। इरान से आगे पहुँचकर हमारी मिठास अरब में सुक्कर और यूरोप में सक्कैरम हो गयी। इस प्रकार अंग्रेजी के शब्द शुगर व सैकरीन दोनों ही संस्कृत शर्करा से जन्मे।
बनाई हुई शर्करा के टुकडों को खंड (टुकड़े - pieces) कहा जाता था जिससे खांड और अन्य सम्बंधित शब्द जैसे खंडसाल आदि बने हैं। फारसी में पहुँचते-पहुँचते खंड बदल गया कन्द में और यूरोप तक जाते-जाते यह कैंडी में तब्दील हो गया।
दीपावली पर मुख्य रूप से धान और उससे बने पदार्थ खील आदि नये गन्ने क़े रस से बने गुड खांड ,शक्कर आदि क़े बने बताशे -खिलौने आदि हवन में शामिल करने का विधान था .इनके सेवन से आगे सर्दियों में कफ़ आदि से बचाव हो जाता है .
जिस देश में शकर बनी आज उसी देश को मधुमेह का गढ़ कहा जाता है और शकर खाना बंद कर दिया जाता है।इसके पीछे यूरोप में तैयार , रसायनों के प्रयोग से अति रिफाइंड सफ़ेद चीनी है।दुसरा कारण है शुद्ध तेल और घी का प्रयोग ना करना है। जिन्हें खुजली हो चीनी व चीनी से बनी चीजें जैसे टॉफी, मिठाइयाँ नहीं खाएँ। खुजली ठीक हो जाएगी। दानेदार चीनी को प्राकृतिक चिकित्सा में सफेद विष कहा गया है। इसे खाने से क्षय, गठिया, रक्तचाप और मदिरा सेवन की इच्छा होती है। इसके स्थान पर मीठे फल, गुड़, गुड़िया शकर, देशी बूरा,खांड , मिश्री उपयोगी हैं। चीनी खाने से व्यवहार में अपराधवृत्ति आती है। चिड़चिड़ापन और क्रोध अधिक आता है। इसके सेवन से शरीर में विद्यमान विटामिन और कैल्शियम नष्ट हो जाते हैं। अति हर जगह वर्जित है अत: शकर का उपयोग अपनी सेहत को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए।
गन्ने के रस को उबालने से राब मिलता है। इसे और उबालनेऔर गुमाने वाले यंत्र से साफ़ करने से से खांड शकर या खांडसारी मिलती है। इसे और उबालने से बुरा शकर मिलती है।आज खांडसारी उद्योग करीब करीब मृतप्राय है। इसलिए बुरा शकर सफ़ेद चीनी से ही बना लेते है।
देशी बूरा बनाने के लिए चीनी की तीन तार की चाशनी बना कर उसे ठंडा कर लें फिर उसे पीस लें ।यह चीनी से कम नुकसान करती है।
- चक्कर आना -दो चम्मच शकर और दो चम्मच सूखा धनिया मिलाकर चबाने से लाभ होता है।
- जलना - जले हुए अंगों पर चीनी को पानी में घोल कर लेप करें। पानी कम मात्रा में मिलाएँ जिससे घोल गाढ़ा तैयार हो। इससे जलन बंद हो जाती है।
- गर्मी के मौसम के रोग - दही में चीनी डाल कर गर्मी के मौसम में नित्य खाएँ। इससे अधिक प्यास लगना, लू लगना और दाह दूर हो जाता है। सर्दी-जुकाम ठीक होता है। वीर्य की वृद्धि होती है।
- शक्तिवर्धक - दो चम्मच चीनी और दो चम्मच घी में दस पिसी हुई काली मिर्च मिलाकर नित्य भूखे पेट चाटें। इससे मस्तिष्क में तरावट आती है, कमजोरी का सिर दर्द ठीक हो जाता है।
- आँखें दुखने पर- आँखें दुखने पर देशी शकर (बूरा) या बताशे के साथ रोटी खाने से लाभ होता है।
- खाँसी - खाँसी बार-बार चलती हो तो मिश्री का टुकड़ा मुँह में रखें।
- पथरी- 15 दाने बड़ी इलायची के, एक चम्मच खरबूजे के बीजों की मींगी, दो चम्मच मिश्री इन सबको पीस कर एक कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम दो बार नित्य पीते रहें। इससे गुर्दे की पथरी गल जाती है। कोलेस्ट्रोल चीनी खाने से बढ़ता है।
- रुका हुआ जुकाम- जलते हुए कोयलों पर शकर डालकर नाक में धुआँ अंदर खींचने से रुका हुआ जुकाम ठीक हो जाता है।
- शीघ्रता से प्रसव- प्रसवकाल के अंतिम भाग में जबकि कोई यांत्रिक अवरोध न रहे, जरायु की क्रियाहीनता के कारण विलम्ब होता हो, उस हालत में शीघ्रता से प्रसव कराने के लिए चीनी का प्रयोग उपयुक्त होता है। 25 ग्राम चीनी जल में गलाकर आधा घंटे के अंतर से कई बार देना चाहिए।
- दस्त- दस्त होने पर शीघ्रता से शरीर में पानी, नमक व शक्ति की कमी अनुभव होती है। दस्तों के उपचार के लिए रोगी को पानी एवं नमक का सेवन कराइए। पानी को उबालकर ठंडा करके एक गिलास भर लें। इसमें जरा सा नमक और स्वाद के अनुसार चीनी मिलाकर घोल लें। इसे बार-बार पिलाएँ। रोगी को कुछ न कुछ पिलाते रहें तथा नियमित भोजन करने को कहें, जिससे कि शारीरिक कमजोरी न होने पाए।
- आधे सिर में दर्द - यदि सिर दर्द सूर्य उदय होने के साथ बढ़े और सूर्य ढलने के साथ कम होता जाए तो ऐसे सिर दर्द में सूर्य उदय होते समय सूर्य के सामने खड़े हो जाएँ और 150 ग्राम पानी में 60 ग्राम शकर मिलाकर धीरे-धीरे पिएँ। आधे सिर का दर्द ठीक हो जाएगा।
- अरुचि - खाने-पीने की इच्छा न होने पर एक कप पानी में स्वादानुसार शकर, इमली तथा बारीक पिसी हुई चौथाई चम्मच काली मिर्च मिलाकर छानकर नित्य चार बार पिलाने से खान-पान के प्रति रुचि उत्पन्न हो जाती है।
- सौंफ में लौंग डालकर पानी में उबालकर काढ़ा बनाए इसे छानकर देशी बूरा या खांड मिलकर पीने से जुकाम शीघ्र ही ठीक हो जाता है।
- सेंधानमक और बूरा को बराबर मात्रा में मिलाकर 1 चम्मच सुबह और शाम पानी के साथ सेवन करने से मोच में लाभ मिलता है।

सिर के जुओं की आयुर्वेदिक चिकित्सा - -

सिर के जुओं की आयुर्वेदिक चिकित्सा - -

समस्या ज़्यादातर 3 से 12 वर्ष के बच्चों में पाई जाती है। लेकिन यह समस्या किसी को भी परेशान कर सकती है।

जुओं का आहार और खान पान मनुष्य का रक्त होता है। वह जिसके सिर में रहती हैं उसका रक्त पीकर जीती हैं।

जुएँ क्या होती हैं?

जुएँ बहुत ही महीन, पंख रहित कीड़े होते हैं जो सिर में आसानी से नज़र नहीं आते। वे भूरे और स्लेटी रंग की होती हैं और हर जूँ की लम्बाई चौड़ाई एक तिल से ज़्यादा नहीं होती। सिर की जुएँ, माता पिता, बच्चों, स्कूल और स्वास्थ्य की देखभाल करनेवालों की सहायता से नियंत्रण में की जा सकती हैं।

जुएँ कैसे फैलती हैं

सिर की जुएँ एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में सीधे संपर्क में आने के कारण स्थानांतरित होती हैं। संदूषित कंघियाँ और हेयर ब्रश इस्तेमाल करने से, या संदूषित चद्दरें, तौलिये या शावर कैप बाँट कर इस्तेमाल करने से भी सिर की जुएँ फैलती हैं।

सिर में जुएँ होने के लक्षण
• बालों में किसी चीज़ के चलने का एहसास।
• जुओं के काटने के कारण सिर में खुजली का एहसास।
• जुओं के काटने से सिर में घाव, जो कभी कभी संक्रमित हो सकते हैं।

सिर के जुओं का घरेलू और आयुर्वेदिक उपचार

1. अमरुद के पत्तों को पीसकर हल्दी के साथ मिलाकर मिश्रण बना लें और नहाने से दो घंटे पहले सिर पर मल दें। इससे आपको जुओं से छुटकारा मिल जायेगी।
2. नीम के पत्तों को पीसकर नहाने से 2 घंटे पहले सिर पर लगाने से भी जुओं से छुटकारा मिलता है।
3. निबौली, सरसों या माजूफल का तेल लगाने से या अरिठे का फेन लगाने से जूँ और लीखें मर जाती हैं।
4. तुलसी के पत्ते पीसकर सिर पर लगा लें, उसके बाद सिर पर कपड़ा बांध लें। सारी जुएँ मरकर कपडे से चिपक जायेंगी, और ऐसा दो तीन बार करने से पूर्ण रूप से जुएँ साफ़ हो जायेंगी।
5. आधा चम्मच काली मिर्च का पाउडर और एक कप दही दो चम्मच नींबू के रस के साथ मिलाकर, नहाने से 20 मिनट पहले सिर पर लगाने से सिर की जुओं का पूर्ण रूप से खात्मा होता है। पर एक बात याद रखें कि नहाते वक़्त अपनी आँखें बंद रखें वर्ना काली मिर्च का पाउडर आपकी आँखों को जलन से परेशान कर सकता है।
6. नींबू के टुकड़े को सिर पर रगड़ने से या नींबू का रस नारियल के तेल के साथ मिलाकर सिर पर लगाने से भी जुएँ पूर्ण रूप से नष्ट हो जाती हैं।
7. नीम के पत्ते और तुलसी के पत्ते तकिये के नीचे रखने से जुओं की समस्या काफी हद तक ख़तम हो जाती है।
8. लहसून का कसैला स्वाद भी जुओं को मारने में सहायक सिद्ध होता है। नहाने से पहले लहसून की लेई नींबू के रस के साथ मिलाकर सिर पर लगाने से भी जुओं को नष्ट करने में मदद मिलती है।
9. सिर के से बालों को धोने से भी 2 दिन के अंदर जुएँ नष्ट हो जाती हैं।
10. तीन चम्मच नींबू रस को एक चम्मच मक्खन में मिलाकर अपने बालों में 15 मिनट के लिये लगाकर रखें। उसके बाद बालों को धो दें। यह जुओं के लिये बहुत ही आसान उपचार है।

बचाव

घर की साफ़ सफाई बनाये रखें। बालों की कंघियों और हेयर ब्रश की नियमित रूप से सफाई करें। जुओं से ग्रस्त व्यक्ति के द्वारा इस्तेमाल की गयी चद्दरें, तकियों के आवरण वगैरह गर्म पानी से वॉशिंग मशीन में अच्छी तरह धोएं। हो सके तो घर की सफाई वैक्यूम क्लीनर से करें।

सिर के जुओं का इलाज जल्द से जल्द करना चाहिये क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो यह बालों की जड़ों को कमज़ोर कर सकती हैं, जिससे खुजली और बालों के झड़ने की संभावना हो सकती है।

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