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शनिवार, 7 सितंबर 2013

क्यों पहनते थे खड़ाऊ ?

क्यों पहनते थे खड़ाऊ ?

पुरातन समय में हमारे पूर्वज पैरों में लकड़ी के खड़ाऊ (चप्पल) पहनते थे। पैरों में लकड़ी के खड़ाऊ पहनने के पीछे भी हमारे पूर्वजों की सोच पूर्णत: वैज्ञानिक थी। गुरुत्वाकर्षण का जो सिद्धांत वैज्ञानिकों ने बाद में प्रतिपादित किया उसे हमारे ऋषि-मुनियों ने काफी पहले ही समझ लिया था।
उस सिद्धांत के अनुसार शरीर में प्रवाहित हो रही विद्युत तरंगे गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं । यह प्रक्रिया अगर निरंतर चले तो शरीर की जैविक शक्ति(वाइटल्टी फोर्स) समाप्त हो जाती है। इसी जैविक शक्ति को बचाने के लिए हमारे पूर्वजों ने पैरों में खड़ाऊ पहनने की प्रथा प्रारंभ की ताकि शरीर की विद्युत तंरगों का पृथ्वी की अवशोषण शक्ति के साथ संपर्क न हो सके।
इसी सिद्धांत के आधार पर खड़ाऊ पहनी जाने लगी।
उस समय चमड़े का जूता कई धार्मिक, सामाजिक कारणों से समाज के एक बड़े वर्ग को मान्य न था और कपड़े के जूते का प्रयोग हर कहीं सफल नहीं हो पाया। जबकि लकड़ी के खड़ाऊ पहनने से किसी धर्म व समाज के लोगों के आपत्ति नहीं थी इसीलिए यह अधिक प्रचलन में आए। कालांतर में यही खड़ाऊ ऋषि-मुनियों के स्वरूप के साथ जुड़ गए ।
खड़ाऊ के सिद्धांत का एक और सरलीकृत स्वरूप हमारे जीवन का अंग बना वह है पाटा। डाइनिंग टेबल ने हमारे भारतीय समाज में बहुत बाद में स्थान पाया है। पहले भोजन लकड़ी की चौकी पर रखकर तथा लकड़ी के पाटे पर बैठकर ग्रहण किया जाता था। भोजन करते समय हमारे शरीर में सबसे अधिक रासायनिक क्रियाएं होती हैं। इन परिस्थिति में शरीरिक ऊर्जा के संरक्षण का सबसे उत्तम उपाय है चौकियों पर बैठकर भोजन करना।

शनिवार, 17 अगस्त 2013

योग से डिमेंशिया रोग का इलाज::

योग से डिमेंशिया रोग का इलाज::

डिमेंशिया ऐसा रोग है जिसमें व्यक्ति की याददाशत कमजोर होने लगती है। उसे कुछ याद नहीं रहता है। हाल ही की कोई बात याद करने के लिए भी उसे दिमाग पर बहुत जोर डालना पड़ता है। यह रोग तब गंभीर माना जाता है जबकि आपकी याददाश्त बिल्कुल ही खत्म हो गई हो। इस रोग से बचने के लिए हमेशा से ही अपनी स्मरण शक्ति को बढ़ाने के उपाय करते रहने चाहिए।

क्या है डिमेंशिया
डिमेंशिया में इंसान के लिए कुछ भी याद रखना मुश्किल हो जाता है। वह थोड़ी देर पहले हुई बातों को भूलने लगता है। इतना ही नहीं डिमेंशिया से ग्रस्त लोग के लिए बातों को समझ पाना , संप्रेषित कर पाना भी बेहद मुश्किल हो जाता है। इस बीमारी में कुछ समय के बाद उसे अपनी भी सुध-बुध नहीं रहती। ।

डिमेंशिया के कारण
डिमेंशिया का शिकार होने के दो कारण है पहला है मस्तिष्क की कोशिकाओं का नष्ट हो जाना और दूसरा उम्र के साथ मस्तिष्क की कोशिकाओं का कमजोर होना। यह तब होता है जब सिर पर कोई गंभीर चोट लगी हो या कोई रोग जैसे ब्रेन ट्यूमर, अल्जाइमर आदि जिससे कोशिकाएं नष्ट हो सकती है।

योगा से समाधान
यूं तो योगा आपकी सेहत के लिए काफी फायदेमंद है लेकिन क्या आप जानते हैं अपनी याददाश्त दुरुस्तद रखने के लिए भी योग का सहारा लिया जा सकता है।

प्राणायाम और ध्यान
प्राणायाम शरीर को स्वस्थ रखने के साथ आपके मस्तिष्क के लिए सर्वश्रेष्ठ दवा है। किसी समतल स्थान पर दरी या कंबल बिछाकर सुखासन की अवस्था में बैठकर नियमित रुप से रोज सुबह अनुलोम-विलोम करें और उसके बाद 10 मिनट तक ध्यान करें।

उष्ट्रासन
उष्ट्रासन से रीढ़ में से गुजरने वाली स्त्रायु कोशिकाओं में तनाव पैदा होता है। इसके चलते उनमें रक्त-संचार बढ़ जाता है। इससे याददाश्त तेज होती है। अगर आप रोज तीन मिनट भी इस आसन को करते हैं तो इससे आपको बहुत फायदा होता है।

चक्रासन
चक्रासन मस्तिष्क की कोशिकाओं में खून का प्रवाह बढ़ाने का काम करता है। इससे खून मस्तिष्क की उन कोशिकाओं में भी पहुंचना शुरू हो जाता है, जहां यह पहले नहीं पहुंच पाता था। निस्तेज कोशिकाओं में खून का प्रवाह होते ही मस्तिष्क की पीयूष ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन दिमाग की कार्यक्षमता को बढ़ाता है। इसका नियमित अभ्यास आंख, मस्तिष्क आदि में फायदेमंद होता है।

त्राटक
पलक झपकाए बिना एकटक किसी भी बिंदु पर अपनी आंखें गड़ाए रखना त्राटक कहलाता है। त्राटक से मस्तिष्क के सुप्त केंद्र जाग्रत होने लगते हैं,जिससे याददाश्त में बढ़ोत्तरी होती है। याददाश्त का सीधा संबंध मन और उसकी एकाग्रता से है। मन की एकाग्रता में ही बुद्धि का पैनापन और याददाश्तर की मजबूती छुपी हुई होती है। त्राटक का नियमित अभ्यास एकाग्रता बढ़ाता है।

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