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रविवार, 2 अगस्त 2015

भगवान महेशजी प्रसन्न जिन पर... उनके साथ होती हैं ये 3 बातें

भगवान महेशजी प्रसन्न जिन पर... उनके साथ होती हैं ये 3 बातें

धर्मशास्त्रों में भगवान महेशजी को गुणातीत कहकर भी पुकारा गया है। यानी भगवान महेशजी अनगिनत गुण व शक्तियों के स्वामी है। इन शक्तियों की महिमा भी अपार है। भगवान महेशजी का ऐसा बेजोड़ चरित्र ही भगवान महेशजी को ईश्वरों का ईश्वर (देवों का देव) यानी महेश्वर या महेश बनाता है। शास्त्रों में उजागर भगवान महेशजी के बेजोड़ चरित्र पर सांसारिक और व्यावह
ारिक नजरिए से गौर करें तो पता चलता है कि भगवान महेशजी के देवताओं में सर्वश्रेष्ठ होने के पीछे कुछ खूबियां खास अहमियत रखती हैं। जानिए, आख़िर भगवान महेशजी की ऐसी ही 3 अहम शक्तियां कौन सी हैं।

दरअसल, इंसानी जीवन की दिशा व दशा तय करने में दो बातों की अहम भूमिका होती हैं - पहली रचना, उत्पत्ति या सृजन और दूसरी आजीविका। ये दोनों ही लक्ष्य पाने और कायम रखने के लिए यहां बताए जा रहे तीन गुण अहम हैं या यूं कहें कि इनके बिना न सृजन करना, न ही जीवन को चलाना संभव है। भगवान महेशजी का चरित्र भी इन तीन बेजोड़ गुणों से संपन्न है। यहीं वजह है कि जिस भी व्यक्ति के जीवन में इन 3 गुणों से यश, धन व सुख नजर आता है, धार्मिक नजरिए से माना गया है कि ऐसा होना भगवान महेशजी की प्रसन्नता के ही संकेत हैं।

(1) पावनता व वैभव -
शुद्धता, पावनता या पवित्रता के अभाव में मानव जन्म हो या किसी वस्तु की रचना दोषपूर्ण हो जाती है। भगवान महेशजी का चरित्र व उनका निराकार स्वरूप शिवलिंग भी सृजन का ही प्रतीक होकर जीवन व व्यवहार में पावनता और संयम का संदेश देता है। भगवान महेशजी का संयम और वैराग्य दोनों ही तन-मन की पवित्रता की सीख है। यही वजह है कि अचानक दरिद्रता, तंगी, रोग या क्लेशों से घिरे महेशजी या किसी देव भक्त को इन परेशानियों से छुटकारा मिलने लगे, तो धार्मिक आस्था से इसे उस व्यक्ति के जीवन पर भगवान महेशजी कृपा का ही बड़ा संकेत माना गया है।

(2) ज्ञान -
ज्ञान या शिक्षा के अभाव में जीवनयापन संघर्ष और संकट भरा हो जाता है। ज्ञान व बुद्धि के मेलजोल से बेहतर आजीविका यानी जीवन के 4 पुरुषार्थों में एक 'अर्थ' प्राप्ति के रास्ते खुल जाते हैं। भगवान महेशजी भी जीवन के लिए जरूरी ज्ञान, कलाओं, गुण और शक्तियों के स्वामी होने से जगतगुरु भी पुकारे जाते हैं, जो धर्मशास्त्र, तंत्र-मंत्र और नृत्य के रूप में जगत को मिले है। कोई भी धर्म व ईश्वर को मानने वाला अगर ज्ञान के जरिए यश व सफलता की बुलंदियों को छूने लगे, तो धार्मिक नजरिए से यह भगवान महेशजी कृपा ही मानी गई है, जिसे कायम रखने के लिए अहंकार से परे रहकर व विवेक के साथ ज्ञान, कला या हुनर को बढ़ाने या तराशने के लिए संकल्पित हो जाना चाहिए।

(3) पुरुषार्थ -
जीवन के लक्ष्यों को पाने के लिए संकल्पों के साथ पूरी तरह डूबकर परिश्रम को अपनाना ही पुरुषार्थ का भाव है। इसे धर्म या अध्यात्म क्षेत्र में साधना या तप के रूप में जाना जाता है तो सांसारिक जगत में कर्म के रूप में भी जाना जाता है। भगवान शिव भी महायोगी, तपस्वी माने गए हैं। भगवान महेशजी का योग व तप जीवन में सुख, सफलता व शांति के लिए पुरुषार्थ की अहमियत बताता है। मन व तन के आलस्य से परे श्रम के जरिए जीवन को साधना ही भगवान महेशजी के बेजोड़ तप और योग का संदेश है।

यही वजह है कि व्यावहारिक तौर पर जब भी किसी इंसान को नौकरी, कारोबार में या जीवनयापन के लिए किसी भी रूप में की गई भरसक कोशिशों के सुफल मिलते या सफलता हाथ लगती है, तो यह धर्म के नजरिए से भगवान महेशजी कृपा ही मानी जाती है।

इस तरह भगवान महेशजी के चरित्र की ये तीन खासियत इंसानी जीवन में गहरी अहमियत रखने से भक्तों के मन में श्रद्धा और आस्था पैदा कर भगवान महेशजी की भक्ति और उपासना को सर्वोपरि बनाती है। साथ ही महादेव के महेश स्वरूप को हृदय में बसाए रखती है।

Ψ जय महेश Ψ

शिवताण्डवस्तोत्रम्


शिवताण्डवस्तोत्रम्

||श्रीगणेशाय नमः ||
जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले,
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् | 
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं,
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी,
विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि | 
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके
किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२||
धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद्
िगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि
क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३||
लता भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा
मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे
दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||
सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर
प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः |
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||५||
ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् |
सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||६||
कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके |
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक
प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||७||
नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्-
कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः |
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः
कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||८||
प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा-
वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||९||
अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी
रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||१०||
जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस –
द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् | 
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||११||
स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ
्गमौक्तिकस्रजोर्- 
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
 तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||१२||
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे
वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३||
इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं
स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा
गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||१४||

पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||१५||

इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम्
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Jai shree krishna
Thanks,
Regards,

कैलाश चन्द्र लढा(भीलवाड़ा)

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