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रविवार, 4 अक्तूबर 2015

नीब करौली बाबा - कैंची धाम मंदिर

नीब करौली बाबा बनने से पहले वो लक्ष्मी नारायण शर्मा हुआ करते थे. नीब करौली बाबा का जन्म यू.पी.के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गांव में एक ब्राह्मण जमींदार घराने में हुआ था साल 1964 की बात है जब आगरा के पास फिरोजाबाद के गांव अकबरपुर में जन्मे लक्ष्मी नारायण शर्मा नीब करौली गांव में तपस्या करने पहुंचे थे.

यहीं पर उन्होंने कैंची धाम मंदिर की स्थापना की. आज भी हर साल 15 जून यानि स्थापना के अवसर पर मेला आयोजित किया जाता है. मेले में लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं.

नैनीताल में कैंचीधाम आश्रम के अलावा देश भर में नीब करौली बाबा के करीब 48 मंदिर बनवाए गए हैं. नैनीताल, ऋषिकेश, गुजरात, वृन्दावन, लखनऊ, शिमला और दिल्ली में भी बाबा का मंदिर है.

ये तो हुई देश की बात अब जरा विदेश के बारे में जान लीजिए. अमेरिका और जर्मनी समेत कई जगह बाबा के मंदिर बनवाए गए हैं.

नीब करौली बाबा का नाम सुना है आपने. जिन्होंने इनका नाम नहीं सुना वो ये सुनकर जरूर हैरान होंगे कि नीब करौली बाबा ने दुनिया को बेहतरीन आई फोन देने वाली कंपनी एपल के स्टीव जॉब्स और फेसबुक बनाने वाले मार्क जुकरबर्ग को आशीर्वाद दिया था. दावा ये है कि नीब करौली बाबा के आशीर्वाद से दोनों की दुनिया बदल गई थी. और इस बात का जिक्र जुकरबर्ग ने खुद पीएम मोदी जी से किया था.

उत्तराखंड के नैनीताल से करीब 18 किलोमीटर दूर है बाबा नीब करौली का आश्रम. देव भूमि कहा जाने वाला उत्तराखंड मंदिरों और आश्रमों से भरा पड़ा है लेकिन नीब करौली बाबा का आश्रम कुछ ऐसी कहानियों की वजह से चर्चा में आ गया है जो शायद पहले नहीं सुनी गई थीं. ऐसी ही एक कहानी स्टीव जॉब्स की है.

48 लाख करोड़ की दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी एपल के फाउंडर स्टीव जॉब्स नीब करौली बाबा से आशीर्वाद लेने उनके आश्रम कैंचीधाम आए थे. और स्टीव जॉब्स की सलाह पर दुनिया को फेसबुक से जोड़ने वाले मार्क जुकरबर्ग ने भी यहां माथा टेका था. मार्क जुकबर्ग जब अमेरिका से करीब साढ़े आठ हजार किमी का सफर करके उत्तराखंड के कैंचीधाम पहुंचे थे तब उनका फेसबुक 17.44 लाख करोड़ का नहीं था और जुकरबर्ग संघर्ष के दौर से गुजर रहे थे. ये बात दुनिया के सामने तब आई जब प्रधानमंत्री मोदी फेसबुक के दफ्तर पहुंचे थे और मार्क ने खुद ये बात मोदी को बताई थी.

जुकरबर्ग ने अपनी बातचीत में मंदिर का नाम नहीं बताया था लेकिन ये नैनीताल के पास कैंचीधाम का आश्रम था जहां स्टीव के कहने पर जुकरबर्ग पहुंचे थे और इस आश्रम में दो दिन बिताए थे.

स्टीव जॉब्स साल 1974 में इस आश्रम में आए थे चौंकाने वाली बात ये है कि स्टीव जॉब्स की नीब करौली बाबा से मुलाकात नहीं हो पाई थी क्योंकि 11 सितंबर 1973 को ही उनकी मौत हो गई थी. लेकिन दावा है कि इस आश्रम से लौटन के बाद स्टीव जॉब्स की दुनिया बदल गई थी.

बेरोजगार युवा स्टीव जॉब्स अपने मित्र डैन कोटके के साथ बाबा नीब करोरी के दर्शन करने आए थे. नीब करौली बाबा को मानने वालों में मशहूर हॉलीवुड अभिनेत्री जुलिया रॉबर्ट्स का नाम भी शामिल है. जुलिया ना तो आश्रम आईं और ना ही बाबा से मिली वो तो बस एक फोटो देखकर उनकी भक्त हो गई थीं.

जुलिया रॉबर्ट्स की तरह ही एक नाम है अमेरिका के कृष्णा दास का जो कभी Jeffrey Kagel हुआ करते थे. 1970 में कृष्णा दास डिप्रेशन और ड्रग्स के शिकार हो चुके थे वो अपना रॉक बैंड छोड़कर न्यूयॉर्क से भारत आ गए. यहां उनकी मुलाकात नीब करौली बाबा से हुई और फिर दुनिया बदल गई. वो कीर्तन गाने वालों में बड़ा नाम बन चुके हैं ग्रैमी अवार्ड्स के लिए नॉमिनेट हुए थे. 1996 से लेकर अब तक उनके 8 एलबम रिलीज हो चुके हैं.

आखिर कौन हैं नीब करौली वाले बाबा जिनके आशीर्वाद और आश्रम के चर्चे सिर्फ भारत में नहीं बल्कि अमेरिका और जर्मनी तक फैले हुए हैं.

करीब 42 साल पहले नीब करौली बाबा ने दुनिया को अलविदा कह दिया था लेकिन उनके भक्तों की संख्या में कभी कमी नहीं हुई. नीब करौली बाबा को हनुमान जी का अवतार बताया जाता है. उनकी वेबसाइट कलर और ब्लैक एंड व्हाइट दोनों मिलाकर करीब 1300 तस्वीरें मौजूद हैं और लगभग हर तस्वीर नीब करौली बाबा कंबल ओढ़े हुए ही नजर आते हैं. कहा तो ये जाता है कि 17 साल की उम्र में ही बाबा को ज्ञान प्राप्त हो गया था.

कंबल के पीछे की क्या कहानी ये तो नहीं पता लेकिन भक्त आश्रम में बाबा को भेंट में कंबल ही चढ़ाते थे.


नीब करौली बाबा के वीडियो बहुत ज्यादा नहीं हैं लेकिन एक ये तस्वीर सामने आई जिसमें वो अपने शिष्य को थपथपाते हुए राम राम का उच्चारण करते हुए आशीर्वाद दे रहे हैं.

नीब करौली बाबा और नीब करौरी दोनों ही नाम से बाबा को जाना जाता है. कहा जाता है कि साल 1930 में बाबा नीब करौरी नाम के गांव में ठहरे हुए थे इसके बाद ही उन्हें नीब करौरी बाबा कहा जाने लगा था. उन्हें उनके भक्त महाराजा जी के नाम से भी बुलाते हैं. उत्तर भारत में नीब करौली बाबा चमत्कारी बाबा के नाम से भी मशहूर हैं.

और उनके एक नहीं चमत्कार के कई किस्से मौजूद हैं. जैसे एक ही वक्त पर दो जगह मौजूद होना. पानी से पूरे पहाड़ पर घी के दिए जलवा देना. चमत्कार के एक ऐसे ही किस्से का जिक्र वेबसाइट पर किया गया है.

बहुत साल पहले जब नीब करौली बाबा 20-22 साल के थे. वो साधु के भेष में एक ट्रेन में चढ़ गए. तब देश आजाद नहीं हुआ था. उन्होंने कई दिन से खाना नहीं खाया था. जब ट्रेन में टीटीई ने बाबा से टिकट मांगा तो पता चला कि बाबा बिना टिकट के फर्स्ट क्लास कोच में सफर कर रहे हैं. उन्हें ट्रेन से उतार दिया गया. ट्रेन नीब करौली गांव के पास ही रुकी जहां बाबा रहते थे. दावा कुछ ऐसा है कि बाबा को ट्रेन से उतारने के बाद लाख कोशिशों के बाद भी ट्रेन दोबारा नहीं चल पाई. तब तक जब तक नीब करौरी बाबा को खाना खिलाकर उन्हें वापस ट्रेन में नहीं बिठाया गया.

नीब करौली बाबा के चमत्कारों पर मिरैकिल ऑफ़ लाइफ, दा डिवाइन रिएलिटी, अनन्त कथामृत जैसी किताबें भी लिखी जा चुकी हैं. नीब करौली बाबा के चमत्कारों की कहानी अमेरिका के बाबा राम दास सुनाते हैं जो कभी Richard Alpert हुआ करते थे. रिचर्ड भारत आए और नीब करौली बाबा से मिले थे और करौली बाबा को अपना गुरु बना लिया. नीब करौली बाबा ने ही रिचर्ड को राम दास नाम दिया मतलब भगवान राम का सेवक.चौंकाने वाली बात ये है कि पहली मुलाकात में रिचर्ड नीब करौली बाबा के पैर नहीं छूना चाहते थे लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि उनकी सोच भी बदल गई औऱ नाम भी.
हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट भी बाबा के परम भक्तों में से एक हैं. जूलिया का कहना है की हिन्दू धर्म में ऐसा कुछ तो है जो में उसकी मुरीद भी होगी और आज हिन्दू धर्म का पालन भी कर रहीं हूँ। कैथलिक माँ और बैपटिष्ट पिता की संतान जूलिया रॉबर्ट कहती है की पुरे परिवार के साथ मंदिर जाती है ,मंत्र पढ़ती है ,प्रार्थान करती है।
बाबाके बड़ो भक्तों में देश के बड़े राजनयिकों जवाहरलाल नेहरूं + हिमाचल प्रदेश के पूर्व राजयपाल स्व, राजा भद्री + केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद + उत्तराखंड सरकार के सचिव मंजुल कुमार जोशी + गुरु रामदास के नाम से प्रसिद्द हुवे हार्वड विश्व विद्यालय के बोस्टन के डॉ रिचार्ड एल्पर्ट [ बी हियर नाउ के लेखक ] + योगी भगवान दास + संगीतकार जय उत्त्पल + कृष्णा दास + लामा सुर्यदास + मानवधिकारवादी डॉ लेरी ब्रिलिएंट + आदि बाबा के भक्त है।

आज भी नीब करौली बाबा के आश्रम में विदेशी सैलानियों का तांता लगा रहता है. हस साल अमेरिका, फ्रांस, लंदन जैसे देशों से भक्त यहां पहुंचते हैं.

बुधवार, 30 सितंबर 2015

श्राद्ध करने का विधान

श्राद्ध पर विचार
धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।
पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।
श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।
श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-
1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।
2- श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।
3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।
4- ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें।
5- जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पहने से वह पितरों को नहीं पहुंचता।
6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है।
7- श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं।
8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है।
9- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।
10- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।
11- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।
12- शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग)में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है। अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए।
13- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं। श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है।
14- रात्रि को राक्षसी समय माना गया है। अत: रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है।
15- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, जौ,सफ़ेद पुष्प, कुश और तिल। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।
16- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।
17- रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।
18- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।
19- भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
1- नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9- कर्मांग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्टयर्थ
20- श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं-
तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।
भोजन व पिण्ड दान- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं।
वस्त्रदान- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।
दक्षिणा दान- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।
21 - श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।
22- पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।
23- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें। इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।
24- कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।
25- ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।
26- पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडों
( एक ही परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए। एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है।
27. नित्य तर्पण करने से पितृ संतुष्ट होते है और उस घर में धन-धान्य व वंश की वृद्धि करते है व् पितृ दोष नही रहता है।
पित्रृस्तोत्र
मार्कण्डेय उवाच
एवं तु स्तुवतस्तस्य तेजसो राशिरुच्छ्रितः ।
प्रादुर्बभूव सहसा गगनव्याप्तिकारकः ॥ ३७ ॥
तद् दृष्ट्वा सुमहत्तेजः समाच्छाद्य स्थितं जगत् ।
जानुभ्यामवनीं गत्वा रुचिः स्तोत्रमिदं जगौ ॥ ३८ ॥
रुचिरुवाच
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ॥ १ ॥
इद्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान्नमस्यामि कामदान् ॥ २ ॥
मन्वादीनां च नेतारः सूर्याचन्द्रमसोस्तथा ।
तान्नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ॥ ३ ॥
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्दावापृथिव्योश्र्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥ ४ ॥
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्र्वरेभ्यश्र्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥ ५ ॥
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वायम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ॥ ६ ॥
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥ ७ ॥
अग्निरुपांस्तथैवान्यात्रमस्यामि पितृनहम् ।
अग्निसोममयं विश्र्वं यत एतदशेषतः ॥ ८ ॥
ये च तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः ।
जगत्स्वरुपिणश्र्चैव तथा ब्रह्मस्वरुपिणः ॥ ९ ॥
तेभ्योsखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः ।
नमो नमो नमस्तेsतु प्रसीदन्तु स्वधाभुजः ॥ १० ॥
मार्कण्डेय उवाच
एवं स्तुतास्ततस्तेन तेजसो मुनिसत्तमाः ।
निश्र्चक्रमुस्ते पितरो भासयन्तो दिशो दश ॥ ११ ॥
निवेदनं च यत्तेन पुष्पगन्धानुलेपनम् ।
तद्भूषितानथ स तान् ददृशे पुरतः स्थितान् ॥ १२ ॥
प्रणिपत्य रुचिर्भक्त्या पुनरेव कृताञ्जलिः ।
नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यमित्याह पृथगादृतः ॥ १३ ॥
॥ इति श्री गरुड पुराणे रुचिकृतं पित्रृस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

श्राद्ध कर्म करते समय ध्यान देने योग्य बातें

28 सितम्बर – महालय श्राद्ध आरम्भ
28 सितम्बर से 12 अक्टुम्बर तक
 
श्राद्ध के आरम्भ व अंत में निम्न मंत्र का तीन बार उच्चारण करने से श्राद्ध की त्रुटियाँ क्षम्य हो जाती हैं, पितर प्रसन्न होते हैं तथा आसुरी शक्तियाँ भाग जाती हैं ।

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ।
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः ।।

देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा और स्वाहा को मेरा सर्वदा नमस्कार है, नमस्कार है ।
(अग्नि पुराण – 117.22)

श्राद्ध से संबंधित विस्तृत जानकारी हेतु संत श्रीआशारामजी आश्रम की पुस्तक श्राद्ध महिमा पढ़ें

श्राद्ध के मुख्य अंश

श्राद्ध पक्ष मे पितर अपने-अपने कुल मे जाते हैं, तृप्त होते हैं और घर में उच्च कोटि की संतान आने का आशीर्वाद देते हैं जो श्राद्ध नही करते उनके पितर अतृप्त रहते हैं |

श्राद्ध करने की समता, शक्ति, रुपया पैसा नहीं हैं तो दिन में ११.२४ से १२.२० से बीच के समय गाय को चारा खिला दे

अगर चारा खिलाने के भी पैसे नहीं हैं तो दिन में ११.२४ से १२.२० के बीच सूर्य नारायण का ध्यान करके दोनों हाथ उपर करके, कहे-
हमारे पिता को, दादा आदि को आप तृप्त करे मैं असमर्थ हूँ, उन्हें आप सुख दे, आप समर्थ हैं, मेरे पास धन- दौलत, विधि-सामग्री नहीं है, घर में कोई करने-कराने वाला नहीं है लेकिन आपके लिए मेरा सद्भाव है, श्रद्धा हैं आप मेरे सद्भाव और श्रद्धा से तृप्त हो सकते हैं |

पितर पितृलोक में हैं तो श्राद्ध करने से वहाँ उन्हें रस मिलेगा, देवलोक में हैं तो वहाँ उन्हें सुख मिलेगा या जहाँ भी जिस योनी में होते हैं उन्हें वहाँ सुख मिल जाता हैं

चांदी के बर्तन में श्राद्ध की सामग्री या खिलाने का सामर्थ्य नहीं है तो चांदी का दर्शन और सुमिरन करके भी कर सकते हैं, लोहे के बर्तन कभी न प्रयोग करें , बुद्धि का नाश होता है और पितर पलायन हो जाते हैं |

पूजा के समय गंध रहित धूप प्रयोग करे और बिल्व फल प्रयोग न करें और केवल घी का धुवां भी न करे

कुटुंब में बड़ा पुत्र श्राद्ध करे अगर पुत्र नहीं हैं तो पत्नी या कोई और कर सकता है, पत्नी नहीं है तो जमाई या बेटी का बेटा कर सकता है
सफ़ेद पुष्प, लीपा हुआ गाय के गोबर से सात्विक घर, तथा दक्षिण दिशा नीची हो तो उपयुक्त मानी जाती है

श्राद्ध के समय अन्न की प्रशंसा न करे और निंदा भी न करें मौन रहकर, संकेत से लें और दें
श्राद्ध के दिन सुपारी न चबाये, मंजन, मालिश, उपवास और स्त्री भोग भी न करें औषध न ले तो अच्छा, दूसरे का अन्न न खाये
श्राद्ध करने वाले का जन्म दिवस हो तो उस दिन वह श्राद्ध न करे
ब्राह्मण को एक दिन पहले न्योता दे दे ताकि वह संयमी रहे
यह मंत्र तीन बार बोलने से श्राद्ध फलित होता हैं-

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च |
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत ||

1) श्राद्ध के दिन भगवदगीता के सातवें अध्याय का माहात्मय पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए एवं उसका फल मृतक आत्मा को अर्पण करना चाहिए।

2) श्राद्ध के आरम्भ और अंत में तीन बार निम्न मंत्र का जप करें l
मंत्र ध्यान से पढ़े :

  देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव भवन्त्युत ll
समस्त देवताओं, पितरों, महयोगियों, स्वधा एवं स्वाहा सबको हम नमस्कार करते हैं l ये सब शाश्वत फल प्रदान करने वाले हैं
3) “श्राद्ध में एक विशेष मंत्र उच्चारण करने से, पितरों को संतुष्टि होती है और संतुष्ट पितर आप के कुल खानदान को आशीर्वाद देते हैं

मंत्र ध्यान से पढ़े
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा
 
4) जिसका कोई पुत्र न हो, उसका श्राद्ध उसके दौहिक (पुत्री के पुत्र) कर सकते हैं l कोई भी न हो तो पत्नी ही अपने पति का बिना मंत्रोच्चारण के श्राद्ध कर सकती है l

5) पूजा के समय गंध रहित धूप प्रयोग करे और बिल्व फल प्रयोग न करें और केवल घी का धुआं भी न करे

6) अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें :

“हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दे) को आप संतुष्ट/सुखी रखें । इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन करता हूँ ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगायें
7) श्राद्ध पक्ष में १ माला रोज द्वादश मंत्र ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” की करनी चाहिए और उस माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए 
श्राद्ध कर्म करते समय ध्यान देने योग्य बातें
– श्राद्ध कर्म करते समय जो श्राद्ध का भोजन कराया जाता है, तो ११.३६ से १२.२४ तक उत्तम काल होता है l- गया, पुष्कर, प्रयाग और हरिद्वार में श्राद्ध करना श्रेष्ठ माना गया है
– गौशाला में, देवालय में और नदी तट पर श्राद्ध करना श्रेष्ठ माना गया है l
– सोना, चांदी, तांबा और कांसे के बर्तन में अथवा पलाश के पत्तल में भोजन करना-कराना अति उत्तम माना गया है l लोहा, मिटटी आदि के बर्तन काम में नहीं लाने चाहिए l
– श्राद्ध के समय अक्रोध रहना, जल्दबाजी न करना और बड़े लोगों को या बहुत लोगों को श्राद्ध में सम्मिलित नहीं करना चाहिए, नहीं तो इधर-उधर ध्यान बंट जायेगा, तो जिनके प्रति श्राद्ध सद्भावना और सत उद्देश्य से जो श्राद्ध करना चाहिए, वो फिर दिखावे के उद्देश्य में सामान्य कर्म हो जाता है l

– अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी व अष्टमी, रविवार, श्राद्ध और व्रत के दिन स्त्री- सहवास एवं तिल का तेल खाना व लगाना निषिद्ध है | (ब्रम्हवैवर्त पुराण, ब्रम्ह खंड : २७.३७-३८)
– सफ़ेद सुगन्धित पुष्प श्राद्ध कर्म में काम में लाने चाहिए l लाल, काले फूलों का त्याग करना चाहिए l अति मादक गंध वाले फूल अथवा सुगंध हीन फूल श्राद्ध कर्म में काम में नहीं लाये जाते हैं l

क्यों जरूरी है श्राद्ध

 श्राद्ध कर्म
पितृ पक्ष का महत्त्व (Importance of Pitru Paksha)
 
हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है। मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती और वह भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है।
ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।
पितृ पक्ष श्राद्ध 2015 (Pitru Paksha 2015 Dates)
वर्ष 2015 में पितृ पक्ष श्राद्ध की तिथियां निम्न हैं:
तिथि दिन श्राद्ध तिथियाँ
27 सितंबर रविवार पूर्णिमा श्राद्ध
28 सितंबर सोमवार प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध
29 सितंबर मंगलवार द्वितीया तिथि का श्राद्ध
30 सितंबर बुधवार तृतीया तिथि का श्राद्ध
1 अक्तूबर बृहस्पतिवार चतुर्थी तिथि का श्राद्ध
2 अक्तूबर शुक्रवार पंचमी तिथि का श्राद्ध
3 अक्तूबर शनिवार षष्ठी तिथि का श्राद्ध
4 अक्तूबर रविवार सप्तमी तिथि का श्राद्ध
5 अक्तूबर सोमवार अष्टमी तिथि का श्राद्ध
6 अक्तूबर मंगलवार नवमी तिथि का श्राद्ध
7 अक्तूबर बुधवार दशमी तिथि का श्राद्ध
8 अक्तूबर बृहस्पतिवार एकादशी तिथि का श्राद्ध
9 अक्तूबर शुक्रवार द्वादशी व संन्यासियों का श्राद्ध
10 अक्तूबर शनिवार त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध
11 अक्तूबर रविवार चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध
12 अक्तूबर सोमवार अमावस्या व सर्वपितृ श्राद्ध (सभी के लिए )
श्राद्ध क्या है? (What is Shraddh) ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।
क्यों जरूरी है श्राद्ध देना?
मान्यता है कि अगर पितर रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
क्या दिया जाता है श्राद्ध में? (Facts of Shraddha) श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।
श्राद्ध में कौओं का महत्त्व
कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।
किस तारीख में करना चाहिए श्राद्ध?
सरल शब्दों में समझा जाए तो श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाना है। अगर किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है। इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है। इस विषय में कुछ विशेष मान्यता भी है जो निम्न हैं:
 पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाता है। जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई जो यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन किया जाता है। जिन पितरों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। इस दिन को सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता है।
श्राद्ध कर्म 

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