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बुधवार, 30 सितंबर 2015

श्राद्ध कर्म करते समय ध्यान देने योग्य बातें

28 सितम्बर – महालय श्राद्ध आरम्भ
28 सितम्बर से 12 अक्टुम्बर तक
 
श्राद्ध के आरम्भ व अंत में निम्न मंत्र का तीन बार उच्चारण करने से श्राद्ध की त्रुटियाँ क्षम्य हो जाती हैं, पितर प्रसन्न होते हैं तथा आसुरी शक्तियाँ भाग जाती हैं ।

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ।
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः ।।

देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा और स्वाहा को मेरा सर्वदा नमस्कार है, नमस्कार है ।
(अग्नि पुराण – 117.22)

श्राद्ध से संबंधित विस्तृत जानकारी हेतु संत श्रीआशारामजी आश्रम की पुस्तक श्राद्ध महिमा पढ़ें

श्राद्ध के मुख्य अंश

श्राद्ध पक्ष मे पितर अपने-अपने कुल मे जाते हैं, तृप्त होते हैं और घर में उच्च कोटि की संतान आने का आशीर्वाद देते हैं जो श्राद्ध नही करते उनके पितर अतृप्त रहते हैं |

श्राद्ध करने की समता, शक्ति, रुपया पैसा नहीं हैं तो दिन में ११.२४ से १२.२० से बीच के समय गाय को चारा खिला दे

अगर चारा खिलाने के भी पैसे नहीं हैं तो दिन में ११.२४ से १२.२० के बीच सूर्य नारायण का ध्यान करके दोनों हाथ उपर करके, कहे-
हमारे पिता को, दादा आदि को आप तृप्त करे मैं असमर्थ हूँ, उन्हें आप सुख दे, आप समर्थ हैं, मेरे पास धन- दौलत, विधि-सामग्री नहीं है, घर में कोई करने-कराने वाला नहीं है लेकिन आपके लिए मेरा सद्भाव है, श्रद्धा हैं आप मेरे सद्भाव और श्रद्धा से तृप्त हो सकते हैं |

पितर पितृलोक में हैं तो श्राद्ध करने से वहाँ उन्हें रस मिलेगा, देवलोक में हैं तो वहाँ उन्हें सुख मिलेगा या जहाँ भी जिस योनी में होते हैं उन्हें वहाँ सुख मिल जाता हैं

चांदी के बर्तन में श्राद्ध की सामग्री या खिलाने का सामर्थ्य नहीं है तो चांदी का दर्शन और सुमिरन करके भी कर सकते हैं, लोहे के बर्तन कभी न प्रयोग करें , बुद्धि का नाश होता है और पितर पलायन हो जाते हैं |

पूजा के समय गंध रहित धूप प्रयोग करे और बिल्व फल प्रयोग न करें और केवल घी का धुवां भी न करे

कुटुंब में बड़ा पुत्र श्राद्ध करे अगर पुत्र नहीं हैं तो पत्नी या कोई और कर सकता है, पत्नी नहीं है तो जमाई या बेटी का बेटा कर सकता है
सफ़ेद पुष्प, लीपा हुआ गाय के गोबर से सात्विक घर, तथा दक्षिण दिशा नीची हो तो उपयुक्त मानी जाती है

श्राद्ध के समय अन्न की प्रशंसा न करे और निंदा भी न करें मौन रहकर, संकेत से लें और दें
श्राद्ध के दिन सुपारी न चबाये, मंजन, मालिश, उपवास और स्त्री भोग भी न करें औषध न ले तो अच्छा, दूसरे का अन्न न खाये
श्राद्ध करने वाले का जन्म दिवस हो तो उस दिन वह श्राद्ध न करे
ब्राह्मण को एक दिन पहले न्योता दे दे ताकि वह संयमी रहे
यह मंत्र तीन बार बोलने से श्राद्ध फलित होता हैं-

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च |
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत ||

1) श्राद्ध के दिन भगवदगीता के सातवें अध्याय का माहात्मय पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए एवं उसका फल मृतक आत्मा को अर्पण करना चाहिए।

2) श्राद्ध के आरम्भ और अंत में तीन बार निम्न मंत्र का जप करें l
मंत्र ध्यान से पढ़े :

  देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव भवन्त्युत ll
समस्त देवताओं, पितरों, महयोगियों, स्वधा एवं स्वाहा सबको हम नमस्कार करते हैं l ये सब शाश्वत फल प्रदान करने वाले हैं
3) “श्राद्ध में एक विशेष मंत्र उच्चारण करने से, पितरों को संतुष्टि होती है और संतुष्ट पितर आप के कुल खानदान को आशीर्वाद देते हैं

मंत्र ध्यान से पढ़े
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा
 
4) जिसका कोई पुत्र न हो, उसका श्राद्ध उसके दौहिक (पुत्री के पुत्र) कर सकते हैं l कोई भी न हो तो पत्नी ही अपने पति का बिना मंत्रोच्चारण के श्राद्ध कर सकती है l

5) पूजा के समय गंध रहित धूप प्रयोग करे और बिल्व फल प्रयोग न करें और केवल घी का धुआं भी न करे

6) अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें :

“हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दे) को आप संतुष्ट/सुखी रखें । इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन करता हूँ ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगायें
7) श्राद्ध पक्ष में १ माला रोज द्वादश मंत्र ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” की करनी चाहिए और उस माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए 
श्राद्ध कर्म करते समय ध्यान देने योग्य बातें
– श्राद्ध कर्म करते समय जो श्राद्ध का भोजन कराया जाता है, तो ११.३६ से १२.२४ तक उत्तम काल होता है l- गया, पुष्कर, प्रयाग और हरिद्वार में श्राद्ध करना श्रेष्ठ माना गया है
– गौशाला में, देवालय में और नदी तट पर श्राद्ध करना श्रेष्ठ माना गया है l
– सोना, चांदी, तांबा और कांसे के बर्तन में अथवा पलाश के पत्तल में भोजन करना-कराना अति उत्तम माना गया है l लोहा, मिटटी आदि के बर्तन काम में नहीं लाने चाहिए l
– श्राद्ध के समय अक्रोध रहना, जल्दबाजी न करना और बड़े लोगों को या बहुत लोगों को श्राद्ध में सम्मिलित नहीं करना चाहिए, नहीं तो इधर-उधर ध्यान बंट जायेगा, तो जिनके प्रति श्राद्ध सद्भावना और सत उद्देश्य से जो श्राद्ध करना चाहिए, वो फिर दिखावे के उद्देश्य में सामान्य कर्म हो जाता है l

– अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी व अष्टमी, रविवार, श्राद्ध और व्रत के दिन स्त्री- सहवास एवं तिल का तेल खाना व लगाना निषिद्ध है | (ब्रम्हवैवर्त पुराण, ब्रम्ह खंड : २७.३७-३८)
– सफ़ेद सुगन्धित पुष्प श्राद्ध कर्म में काम में लाने चाहिए l लाल, काले फूलों का त्याग करना चाहिए l अति मादक गंध वाले फूल अथवा सुगंध हीन फूल श्राद्ध कर्म में काम में नहीं लाये जाते हैं l

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