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मंगलवार, 20 मार्च 2018

नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन

नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन
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नवरात्र में कन्या पूजन का बडा महत्व है । लेकिन हम मे से बहुत कम लोगो को ही कन्या पूजन से जुड़ी विशेष बाते पता होगी जैसे की कन्या पूजन विधि क्यों करते हैं ? कन्या पूजन विधि का लाभ और महत्व क्या हैं ? कन्या पूजन विधि के दौरान क्या सावधानियॉ रखने की खास आवश्यकता होती हैं और सबसे मत्वपूर्ण चीज की कन्या पूजन की विधि क्या हैं ? आइये इन सारी बातो को एक-एक करके विश्तार पूर्वक जाने-*

ऐसी मान्यता है कि जप और दान से देवी इतनी खुश नहीं होतीं, जितनी कन्या पूजन से । शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छ: की पूजा से छ: प्रकार की सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।*

*🌹देवी पुराण के अनुसार, इन्द्र ने जब ब्रह्मा जी से भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने की विधि पूछी तो उन्होंने सर्वोत्तम विधि के रूप में कन्या पूजन ही बताया और कहा कि माता दुर्गा जप, ध्यान, पूजन और हवन से भी उतनी प्रसन्न नहीं होती जितना सिर्फ कन्या पूजन से हो जाती हैं |*

*🌹दूसरी मान्यता है कि माता के भक्त पंडित श्रीधर के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने नवरात्र के बाद नौ कन्याओं को पूजन के लिए घर पर बुलवाया। मां दुर्गा उन्हीं कन्याओं के बीच बालरूप धारण कर बैठ गई। बालरूप में आईं मां श्रीधर से बोलीं सभी को भंडारे का निमंत्रण दे दो। श्रीधर से बालरूप कन्या की बात मानकर आसपास के गांवों में भंडारे का निमंत्रण दे दिया। इसके बाद उन्हें संतान सुख मिला।*

*🌹नवरात्रि में सामान्यतः तीन प्रकार से कन्या पूजन का विधान शास्त्रोक्त है –🌹*

*🌹1)प्रथम प्रकार- प्रतिदिन एक कन्या का पूजन अर्थात नौ दिनों में नौ कन्याओं का पूजन – इस पूजन को करने से कल्याण और सौभाग्य प्राप्ति होती है |*

*🌹2)दूसरा प्रकार- प्रतिदिन दिवस के अनुसार संख्या अर्थात प्रथम दिन एक, द्वितीय दिन दो, तृतीया – तीन नवमी – नौ कन्या (बढ़ते क्रम में ) अर्थात नौ दिनों में 45 कन्याओ का पूजन – इस प्रकार से पूजन करने पर सुख, सुविधा और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है |*

*🌹3) तीसरा प्रकार – नौ कन्या का नौ दिनों तक पूजन अर्थात नौ दिनों में नौ X नौ = 81 कन्याओं का पूजन– इस प्रकार से पूजन करने पर पद, प्रतिष्ठा और भूमि की प्राप्ति होती है |*

*🌹💁‍♀कन्याओ की उम्र व अवस्था ?शास्त्रों के अनुसार कन्या की अवस्था…🌹*

*🌹एक वर्ष की कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए*

*🌹दो वर्ष – कुमारी –  दुःख-दरिद्रता और शत्रु नाश*

*🌹तीन वर्ष – त्रिमूर्ति – धर्म-काम की प्राप्ति, आयु वृद्धि*

*🌹चार वर्ष– कल्याणी – धन-धान्य और सुखों की वृद्धि*

*🌹पांच वर्ष – रोहिणी – आरोग्यता-सम्मान प्राप्ति*

*🌹छह वर्ष – कालिका – विद्या व प्रतियोगिता में सफलता*

*🌹सात वर्ष – चण्डिका – मुकदमा और शत्रु पर विजय*

*🌹आठ वर्ष – शाम्भवी – राज्य व राजकीय सुख प्राप्ति*

*🌹नौ वर्ष – दुर्गा – शत्रुओं पर विजय, दुर्भाग्य नाश*

*🌹दस वर्ष – सुभद्रा – सौभाग्य व मनोकामना पूर्ति*

*🌹किस दिन करें  वैसे तो प्रायः लोग सप्‍तमी से कन्‍या पूजन शुरू कर देते हैं लेकिन जो लोग पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वह तिथि के अनुसार अथवा नवमी और दशमी को कन्‍या पूजन करते हैं । शास्‍त्रों के अनुसार कन्‍या पूजन के लिए दुर्गाष्‍टमी के दिन को सबसे ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण और शुभ माना गया है.*

*🌹सर्वप्रथम व्यक्ति को प्रातः स्नान करना चाहिए। उसके पश्चात् कन्याओं के लिए भोजन अर्थात पूरी, हलवा, खीर, चने आदि को तैयार कर लेना चाहिए । कन्याओं के पूजन के साथ बटुक पूजन का भी महत्त्व है, दो बालकों को भी साथ में पूजना चाहिए एक गणेश जी के निमित्य और दूसरे बटुक भैरो के निमित्य कहीं कहीं पर तीन बटुकों का भी पूजन लोग करते हैं और तीसरा स्वरुप हनुमान जी का मानते हैं | एक-दो-तीन कितने भी बटुक पूजें पर कन्या पूजन बिना बटुक पूजन के अधूरी होती है |*

*🌹कन्याओं को माता का स्वरुप समझ कर पूरी भक्ति-भाव से कन्याओं के हाथ पैर धुला कर उनको साफ़ सुथरे स्थान पर बैठाएं | ऊँ कुमार्यै नम: मंत्र से कन्याओं का पंचोपचार पूजन करें । सभी कन्याओं के मस्तक पर तिलक लगाएं, लाल पुष्प चढ़ाएं, माला पहनाएं, चुनरी अर्पित करें तत्पश्चात भोजन करवाएं | भोजन में मीठा अवश्य हो, इस बात का ध्यान रखें।*

*🌹भोजन के बाद कन्याओं के  विधिवत कुंकुम से तिलक करें तथा दक्षिणा देकर हाथ में पुष्प लेकर यह प्रार्थना करें-*

*🌹मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।*

*नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।।*

*जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि।*

*पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।🌹*

*तब वह पुष्प कुमारी के चरणों में अर्पण कर उन्हें ससम्मान विदा करें।*

*🌹नवरात्रि में कन्या पूजन विधि में सावधानियॉ ? कन्याओ की आयु दो वर्ष से कम न हो और दस वर्ष से ज्यादा भी न हो।*

*🌹💁‍♀एक वर्ष या उससे छोटी कन्याओं की पूजा नहीं करनी चाहिए। कन्या पूजन में ध्यान रखें कि कोई कन्या हीनांगी, अधिकांगी, अंधी, काणी, कूबड़ी, रोगी अथवा दुष्ट स्वाभाव की नहीं होनी चाहिए |एक-दो-तीन कितने भी बटुक पूजें पर कन्या पूजन बिना बटुक पूजन के न करे।*

*🌺माताजी  आपका और आपके पुरे परिवार का कल्याण करे🌺*

हनुमानजी के 5 सगे भाई थे,


पुराणों में ऐसी कई बातें ल‍िखी हुई हैं, जिसे जानकर लोग हैरत में पड़ जाएं. वैसे तो रामभक्त हनुमान की कीर्ति रामचरितमानस में भरपूर गाई गई है. पर पुराण में उनके बारे में एक बेहद गूढ़ जानकारी मिलती है. पुराण में कहा गया है कि हनुमानजी के 5 सगे भाई थे, जो विवाहित थे.

'ब्रह्मांडपुराण' में वानरों की वंशावली के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. इसी में हनुमानजी के सगे भाइयों के बारे में जिक्र मिलता है. अपने भाइयों के बीच हनुमानजी सबसे बड़े थे. उनके अन्य भाइयों के नाम हैं- मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान. उनके अन्य सभी भाई विवाहित थे और सभी संतान से युक्त थे.

'ब्रह्मांडपुराण' में ल‍िखा है कि केसरी ने कुंजर की पुत्री अंजना को पत्नी के रूप में स्वीकार किया. अंजना रूपवती थीं. इन्हीं के गर्भ से प्राणस्वरूप वायु के अंश से हनुमान का जन्म हुआ. इसी प्रसंग में हनुमान के अन्य भाइयों के बारे में बताया गया है.

ब्रह्मचारी हनुमान

इसके अलावा जिन हनुमान जी को ब्रह्मचारी कहा जाता है, उनकी शादी भी हुई थी। उनके पुत्र का नाम मकरध्वज है। लेकिन इसके अलावा उनके पांच भाई भी थे, क्या आप जानते हैं?

हनुमान जी के पांच सगे भाई

जी हां... हनुमान जी के पांच सगे भाई थे और वो पांचों ही विवाहित थे। यह कोई कहानी या मात्र मनोरंजन का साधन बनाने के लिए हवा में बताई गई बात नहीं है, बल्कि सच्चाई है। हनुमान जी के पांच सगे भाई थे, इस बात का उल्लेख 'ब्रह्मांडपुराण' में मिलता है।

ब्रह्मांडपुराण के अनुसार

इस पुराण में भगवान हनुमान के पिता केसरी एवं उनके वंश का वर्णन शामिल है। बड़ी बात यह है कि पांचों भाइयों में बजरंगबली सबसे बड़े थे। यानी हनुमानजी को शामिल करने पर वानर राज केसरी के 6 पुत्र थे।

सबसे बड़े थे बजरंगबली

बजरंगबली के बाद क्रमशः मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे। इन सभी के संतान भी थीं, जिससे इनका वंश वर्षों तक चला। हनुमानजी के बारे जानकारी वैसे तो रामायण, श्रीरामचरितमानस, महाभारत और भी कई हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलती है। लेकिन उनके बारे में कुछ ऐसी भी बातें हैं जो बहुत कम धर्म ग्रंथों में उपलब्ध है 'ब्रह्मांडपुराण' उन्हीं में से एक है।



नवरात्रि के व्रत में खाए जाने वाली चीज़े और इनके फायदे ।।

🙏🏻🌺जय माता दी🌺हर हर महादेव🌺🙏🏻
🙏🏻🌺।। नवरात्रि के व्रत में खाए जाने वाली चीज़े और इनके फायदे ।।🌺🙏🏻

1 - पपीता - व्रत के दौरान इससे पेट साफ होता है , और रोग प्रति रोधक श्रमता बढ़ती है ।

2 - मौसमी - व्रत के इस मौसम में संक्रमण रोग हावी रहते है ऐसे में विटामिन - सी  से भरपूर मौसमी सक्रमण से बचाती है ।

3 - केला - यह एनर्जी बूस्टर का काम करता है और व्रत की थकान होने से बचाता है ।

4 - सिंघाड़ा - इसे खाने से आलस व् अकड़न दूर होती है और हड्डियो को केल्सियम मिलता है ।

5 - छाछ - पानी की कमी न होने देता ।

6- आलू - उभला या भुना आलू पोटेशियम का प्रभावी स्त्रोत है शरीर में श्ररो की मात्रा बढ़ाने या बराबर रखने में मददगार होता है आलू शरीर में एसिडिटी भी नहीं होने देता है , जो लोग ब्लड प्रेशर या केंसर से ग्रसित है उनके लिए यह फायदे मंद है , आलू में सोडा , पोटाश , और विटामिनA और D भी होता है आलू का सबसे पोस्टिक तत्व विटामीन C होता है ।

7- साबुन दाना -  साबुन दाना शरीर में जमा अतिरिक्त पानी को निकलने का काम करता है यह किडनी की सफाई का भी काम करता है ।

8 - नारियल पानी - यह शरीर में व्रत के दौरान हुए इलेक्टो लाइट असंतुलन को कम करने का काम करता है ।

9 - कुट्टू - इसका आटा , हलवा , दलिया , या खीर आशानि पय जाता है व् व्रत में भी पाचन तंत्र को दुरुस्त रहता है लेकिन इन्हें पकाने के लिए घी आदि का प्रयोग न करे वर्ना सेहत को नुकसान  होगा ।

10 - सेंधा नमक - सेंधा नमक वात , कफ , और पित को दूर करता है पाचन में सहायता होता है सेंधा नमक में पोटेशियम और मैग्नीशियम होता है ह्रदय रोग नही होता है ।

11 - दही - दही में भरपूर मात्रा में  केल्शियम और पोटेशियम होता है दही खाने से पाचन ठीक रहता है मन को शांत करता है लेकिन रात को दही ना खाये खाये तो चोक कर खाये ।

12 - मूँगफली - मूँगफली में आयरन , नियासिन , फोलेट , केल्शियम और जिंक होता है मूँगफली में 426 केलोरिज , 5 ग्राम कार्बो हैड्रेडट होता है 17 ग्राम प्रोटीन और 35 ग्राम फेट होता है थोड़े से मूँगफली में विटामिन e , k , भी और b6 भी भरपूर मात्रा में होता है त्वचा में चमक आती है मूँगफली खाने से कब्जी की समस्या नहीं होती है गैस और एसिडिटी की समस्या से भी राहत मिलती है मूंगफली में आमेगा - 6 फेट भी भरपूर मात्रा में मिलता है ।

     

13 - मखाना - मखाना खाने से तुरंत एनर्जी देता है जल्दी पय जाता है तनाव कम होता है और नींद अछि आती है रात में सोते समय दूध के साथ मखाने खाने ने नींद अछि आती है मखाने को घी में भूनकर चाय के साथ ले सकते है मखाने की खीर भी खाये ।🌺🙏🏻जय माता दी🌺🙏🏻

सारे जम्बूद्वीप का राजा

बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी में गंधर्वसेन नाम का एक राजा राज करते थे। उसके चार रानियाँ थीं। उनके छ: लड़के थे जो सब-के-सब बड़े ही चतुर और बलवान थे। संयोग से एक दिन राजा की मृत्यु हो गई और उनकी जगह उनका बड़ा बेटा शंख गद्दी पर बैठा। उसने कुछ दिन राज किया, लेकिन छोटे भाई विक्रम ने उसे मार डाला और स्वयं राजा बन बैठा। उसका राज्य दिनोंदिन बढ़ता गया और वह सारे जम्बूद्वीप का राजा बन बैठा। एक दिन उसके मन में आया कि उसे घूमकर सैर करनी चाहिए और जिन देशों के नाम उसने सुने हैं, उन्हें देखना चाहिए। सो वह गद्दी अपने छोटे भाई भर्तृहरि को सौंपकर, योगी बन कर, राज्य से निकल पड़ा।

उस नगर में एक ब्राह्मण तपस्या करता था। एक दिन देवता ने प्रसन्न होकर उसे एक फल दिया और कहा कि इसे जो भी खायेगा, वह अमर हो जायेगा। ब्रह्मण ने वह फल लाकर अपनी पत्नी को दिया और देवता की बात भी बता दी। ब्राह्मणी बोली, “हम अमर होकर क्या करेंगे? हमेशा भीख माँगते रहेंगें। इससे तो मरना ही अच्छा है। तुम इस फल को ले जाकर राजा को दे आओ और बदले में कुछ धन ले आओ।”

यह सुनकर ब्राह्मण फल लेकर राजा भर्तृहरि के पास गया और सारा हाल कह सुनाया। भर्तृहरि ने फल ले लिया और ब्राह्मण को एक लाख रुपये देकर विदा कर दिया। भर्तृहरि अपनी एक रानी को बहुत चाहता था। उसने महल में जाकर वह फल उसी को दे दिया। रानी की मित्रता शहर-कोतवाल से थी। उसने वह फल कोतवाल को दे दिया। कोतवाल एक वेश्या के पास जाया करता था। वह उस फल को उस वेश्या को दे आया। वेश्या ने सोचा कि यह फल तो राजा को खाना चाहिए। वह उसे लेकर राजा भर्तृहरि के पास गई और उसे दे दिया। भर्तृहरि ने उसे बहुत-सा धन दिया; लेकिन जब उसने फल को अच्छी तरह से देखा तो पहचान लिया। उसे बड़ी चोट लगी, पर उसने किसी से कुछ कहा नहीं। उसने महल में जाकर रानी से पूछा कि तुमने उस फल का क्या किया। रानी ने कहा, “मैंने उसे खा लिया।” राजा ने वह फल निकालकर दिखा दिया। रानी घबरा गयी और उसने सारी बात सच-सच कह दी। भर्तृहरि ने पता लगाया तो उसे पूरी बात ठीक-ठीक मालूम हो गयी। वह बहुत दु:खी हुआ। उसने सोचा, यह दुनिया माया-जाल है। इसमें अपना कोई नहीं। वह फल लेकर बाहर आया और उसे धुलवाकर स्वयं खा लिया। फिर राजपाट छोड, योगी का भेस बना, जंगल में तपस्या करने चला गया।

भर्तृहरि के जंगल में चले जाने से विक्रम की गद्दी सूनी हो गयी। जब राजा इन्द्र को यह समाचार मिला तो उन्होंने एक देव को धारा नगरी की रखवाली के लिए भेज दिया। वह रात-दिन वहीं रहने लगा।

भर्तृहरि के राजपाट छोड़कर वन में चले जाने की बात विक्रम को मालूम हुई तो वह लौटकर अपने देश में आया। आधी रात का समय था। जब वह नगर में घुसने लगा तो देव ने उसे रोका। राजा ने कहा, “मैं विक्रम हूँ। यह मेरा राज है। तुम रोकने वाले कौन होते होते?”

देव बोला, “मुझे राजा इन्द्र ने इस नगर की चौकसी के लिए भेजा है। तुम सच्चे राजा विक्रम हो तो आओ, पहले मुझसे लड़ो।”\n\n

दोनों में लड़ाई हुई। राजा ने ज़रा-सी देर में देव को पछाड़ दिया। तब देव बोला, “हे राजन्! तुमने मुझे हरा दिया। मैं तुम्हें जीवन-दान देता हूँ।”

इसके बाद देव ने कहा, “राजन्, एक नगर और एक नक्षत्र में तुम तीन आदमी पैदा हुए थे। तुमने राजा के घर में जन्म लिया, दूसरे ने तेली के और तीसरे ने कुम्हार के। तुम यहाँ का राज करते हो, तेली पाताल का राज करता था। कुम्हार ने योग साधकर तेली को मारकर शम्शान में पिशाच बना सिरस के पेड़ से लटका दिया है। अब वह तुम्हें मारने की फिराक में है। उससे सावधान रहना।”

इतना कहकर देव चला गया और राजा महल में आ गया। राजा को वापस आया देख सबको बड़ी खुशी हुई। नगर में आनन्द मनाया गया। राजा फिर राज करने लगा।

एक दिन की बात है कि शान्तिशील नाम का एक योगी राजा के पास दरबार में आया और उसे एक फल देकर चला गया। राजा को आशंका हुई कि देव ने जिस आदमी को बताया था, कहीं यह वही तो नहीं है! यह सोच उसने फल नहीं खाया, भण्डारी को दे दिया। योगी आता और राजा को एक फल दे जाता।

संयोग से एक दिन राजा अपना अस्तबल देखने गया था। योगी वहीं पहुँच और फल राजा के हाथ में दे दिया। राजा ने उसे उछाला तो वह हाथ से छूटकर धरती पर गिर पड़ा। उसी समय एक बन्दर ने झपटकर उसे उठा लिया और तोड़ डाला। उसमें से एक लाल निकला, जिसकी चमक से सबकी आँखें चौंधिया गयीं। राजा को बड़ा अचरज हुआ। उसने योगी से पूछा, “आप यह लाल मुझे रोज़ क्यों दे जाते हैं?”

योगी ने जवाब दिया, “महाराज! राजा, गुरु, ज्योतिषी, वैद्य और बेटी, इनके घर कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।”

राजा ने भण्डारी को बुलाकर पीछे के सब फल मँगवाये। तुड़वाने पर सबमें से एक-एक लाल निकला। इतने लाल देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ। उसने जौहरी को बुलवाकर उनका मूल्य पूछा। जौहरी बोला, “महाराज, ये लाल इतने कीमती हैं कि इनका मोल करोड़ों रुपयों में भी नहीं आँका जा सकता। एक-एक लाल एक-एक राज्य के बराबर है।”

यह सुनकर राजा योगी का हाथ पकड़कर गद्दी पर ले गया। बोला, “योगीराज, आप सुनी हुई बुरी बातें, दूसरों के सामने नहीं कही जातीं।”

राजा उसे अकेले में ले गया। वहाँ जाकर योगी ने कहा, “महाराज, बात यह है कि गोदावरी नदी के किनारे मसान में मैं एक मंत्र सिद्ध कर रहा हूँ। उसके सिद्ध हो जाने पर मेरा मनोरथ पूरा हो जायेगा। तुम एक रात मेरे पास रहोगे तो मंत्र सिद्ध हो जायेगा। एक दिन रात को हथियार बाँधकर तुम अकेले मेरे पास आ जाना।”

राजा ने कहा “अच्छी बात है।”

इसके उपरान्त योगी दिन और समय बताकर अपने मठ में चला गया।

वह दिन आने पर राजा अकेला वहाँ पहुँचा। योगी ने उसे अपने पास बिठा लिया। थोड़ी देर बैठकर राजा ने पूछा, “महाराज, मेरे लिए क्या आज्ञा है?”

योगी ने कहा, “राजन्, “यहाँ से दक्षिण दिशा में दो कोस की दूरी पर मसान में एक सिरस के पेड़ पर एक मुर्दा लटका है। उसे मेरे पास ले आओ, तब तक मैं यहाँ पूजा करता हूँ।”

यह सुनकर राजा वहाँ से चल दिया। बड़ी भयंकर रात थी। चारों ओर अँधेरा फैला था। पानी बरस रहा था। भूत-प्रेत शोर मचा रहे थे। साँप आ-आकर पैरों में लिपटते थे। लेकिन राजा हिम्मत से आगे बढ़ता गया। जब वह मसान में पहुँचा तो देखता क्या है कि शेर दहाड़ रहे हैं, हाथी चिंघाड़ रहे हैं, भूत-प्रेत आदमियों को मार रहे हैं। राजा बेधड़क चलता गया और सिरस के पेड़ के पास पहुँच गया। पेड़ जड़ से फुनगी तक आग से दहक रहा था। राजा ने सोचा, हो-न-हो, यह वही योगी है, जिसकी बात देव ने बतायी थी। पेड़ पर रस्सी से बँधा मुर्दा लटक रहा था। राजा पेड़ पर चढ़ गया और तलवार से रस्सी काट दी। मुर्दा नीचे किर पड़ा और दहाड़ मार-मार कर रोने लगा।

राजा ने नीचे आकर पूछा, “तू कौन है?”

राजा का इतना कहना था कि वह मुर्दा खिलखिकर हँस पड़ा। राजा को बड़ा अचरज हुआ। तभी वह मुर्दा फिर पेड़ पर जा लटका। राजा फिर चढ़कर ऊपर गया और रस्सी काट, मुर्दे का बगल में दबा, नीचे आया। बोला, “बता, तू कौन है?”

मुर्दा चुप रहा।

तब राजा ने उसे एक चादर में बाँधा और योगी के पास ले चला। रास्ते में वह मुर्दा बोला, “मैं बेताल हूँ। तू कौन है और मुझे कहाँ ले जा रहा है?”

राजा ने कहा, “मेरा नाम विक्रम है। मैं धारा नगरी का राजा हूँ। मैं तुझे योगी के पास ले जा रहा हूँ।”

बेताल बोला, “मैं एक शर्त पर चलूँगा। अगर तू रास्ते में बोलेगा तो मैं लौटकर पेड़ पर जा लटकूँगा।”

राजा ने उसकी बात मान ली। फिर बेताल बोला, “ पण्डित, चतुर और ज्ञानी, इनके दिन अच्छी-अच्छी बातों में बीतते हैं, जबकि मूर्खों के दिन कलह और नींद में। अच्छा होगा कि हमारी राह भली बातों की चर्चा में बीत जाये। मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूँ। ले, सुन।

श्री राधा रानी 300 सीढ़ी उतरकर मुझे खीर खिलाने आई।

*((((( किशोरी जी की कृपा ))))))*

बरसाना में श्री रुप गोस्वामी चेतन्य महाप्रभु के छः शिष्यो में से एक।
एक बार भ्रमण करते करते अपने चेले जीव गोस्वामी जी के यहाँ बरसाना आए।
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जीव गोस्वामी जी ठहरे फक्कड़ साधू..
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फक्कड़ साधू को जो मिल जाये वो ही खाले जो मिल जाये वो ही पी ले।
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आज उनके गुरु आए तो उनके मन भाव आया की में रोज सूखी रोटी, पानी में भिगो कर खा लेता हूं।
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मेरे गुरु आये हैं क्या खिलाऊँ..
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एक बार अपनी कुटिया में देखा किंचित तीन दिन पुरानी रोटी बिल्कुल कठोर हो चुकी थी।
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मैं साधू पानी में गला गला खा लूं।
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यद्यपि मेरे गुरु साधुता की परम स्थिति को प्राप्त कर चुके है फिर भी मेरे मन के आनन्द के लिए। कैसे मेरा मन संतुष्ट होगा।
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एक क्षण के भक्त के मन में सँकल्प आया की अगर समय होता तो किसी बृजवासी के घर चला जाता।
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दूध मांग लेता, चावल मांग लाता।
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मेरे गुरु पधारे जो देह के सम्बंध में मेरे चाचा भी लगते हैं। लेकिन भाव साम्रज्य में प्रवेश कराने वाले मेरे गुरु भी तो हैं।
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उनको खीर खिला देता...
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रूप गोस्वामी ने आकर कहा जीव भूख लगी है तो जीव गोस्वामी उन सूखी रोटीयो को अपने गुरु को दे रहा है।
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अँधेरा हो रहा है। जीव गोस्वामी की आँखों में अश्रु आ रहे हैं और रुप गोस्वामी जी ने कहा तू क्यों रो रहा है हम तो साधू हैं ना।
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जो मिल जाय वही खा लेते हैं। नहीं में खा लूंगा।
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जीव ने कहा, नहीं बाबा मेरा मन नहीं मान रहा।
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आप की यदि कोई पूर्व सूचना होती तो मेरे मन में कुछ था।
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यह चर्चा हो ही रही थी की कोई अर्द्धरात्रि में दरवाजा खटखटाता है। ज्यो ही दरवाजा खटखटाया है। जीव गोस्वामी जी ने दरवाजा खोला।
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एक किशोरी खड़ी हुई है 8 -10 वर्ष की हाथ में कटोरा है।
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कहा, बाबा मेरी माँ ने खीर बनाई है और कहा जाओ बाबा को दे आओ।
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जीव गोस्वामी ने उस खीर के कटोरे को ले जाकर रुप गोस्वामी जी के पास रख दिया। बोले बाबा पाओ...
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ज्यों ही रूप गोस्वामी जी ने उस खीर को स्पर्श किया... उनका हाथ कांपने लगा।
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जीव गोस्वामी को लगा बाबा का हाथ कांप रहा है।
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पूछा बाबा कोई अपराध बन गया है।
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रूप गोस्वामी जी ने पूछा, जीव आधी रात को यह खीर कौन लाया...??
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बाबा पड़ोस में एक कन्या है मैं जानता हूं उसे। वो लेके आई है।
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नहीं जीव इस खीर को मैने जैसे ही चख के देखा और मेरे में ऐसे रोमांच हो गया।
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नहीं जीव् तू पता कर यह कन्या मुझे मेरे किशोरी जी के होने अहसास दिला रही है।
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नहीं बाबा वह कन्या पास की है, मैं जानता हूं उसको।
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अर्ध रात्रि में दोनों गए है उस के घर और दरवाजा खटखटाया। अंदर से उस कन्या की माँ निकल कर बाहर आई।
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जीव गोस्वामी जी ने पूछा आपको कष्ट दिया, परन्तु आपकी लड़की कहां है।
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उस महिला ने कहा, का बात है गई बाबा..
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आपकी लड़की है कहाँ...??
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वो तो उसके ननिहाल गई है गोवेर्धन , 15 दिन हो गए हैं।
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रूप गोस्वामी जी तो मूर्छित हो गए।
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जीव गोस्वामी जी ने पैर पकडे और जैसे तेसे श्रीजी के मंदिर की सीढ़िया चढ़ने लगे। जैसे एक क्षण में चढ़ जायें। लंबे लंबे पग भरते हुए मंदिर पहुचे।
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वहां श्री गोसाई जी से कहा, बाबा एक बात बताओ आज क्या भोग लगाया था श्रीजी श्यामा प्यारी को।
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गोसांई जी जानते थे श्री जीव गोस्वामी को।
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कहा क्या बात है गई बाबा...
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कहा क्या भोग लगाया था... गोसाई जी ने कहा, आज श्रीजी को खीर का भोग लगाया था।
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रूप गोस्वामी तो श्री राधे श्री राधे कहने लगे।
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उन्होंने गोसाई जी से कहा बाबा एक निवेदन और है आप से।
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यद्दपि यह मंदिर की परंपरा के विरुद्ध है कि एक बार जब श्री जी को शयन करा दिया जाये तो उनकी लीला में जाना अपराध है।
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प्रिया प्रियतम जब विराज रहे हों तो नित्य लीला है उनकी।
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अपराध है फिर भी आप एक बार यह बता दीजिये की जिस पात्र में भोग लगाया था वह पात्र रखो है के नहीं रखो है...
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गोसाई जी मंदिर के पट खोलते हैं और देखते हैं की वह पात्र नहीं है वहां पर। .
गोसांई जी बाहर आते हैं और कहते हैं बाबा वह पात्र नहीं है वहां पर ! न जाने का बात है गई है...
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रूप गोस्वामी जी ने अपना दुप्पटा हटाया और वह चाँदी का पात्र दिखाया,
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बाबा यह पात्र तो नहीं है गोसांई जी ने कहा हां बाबा यही पात्र तो है...
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रूप गोस्वामी जी ने कहा, श्री राधा रानी 300 सीढ़ी उतरकर मुझे खीर खिलाने आई।
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किशोरी पधारी थी, राधारानी आई थी।
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उस खीर को मुख पर रगड़ लिया सब साधु संतो को बांटते हुए श्री राधे श्री राधे करते हुऐ फिर कई वर्षो तक श्री रूप गोस्वामी जी बरसाना में ही रहे।।
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*हे करुणा निधान ! इस अधम, पतित -दासी को ऐसी पात्रता और ऐसी उत्कंठा अवश्य दे देना कि, इन रसिकों के गहन चरित का आस्वादन कर अपने को कृतार्थ कर सकूँ। इनकी पद धूलि की एक कनिका प्राप्त कर सकूँ।*
                          
*🍃💞जय श्री राधे💞🍃*

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