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गुरुवार, 5 अगस्त 2021

IMC गौमूत्र के फायदे - IMC Herbal Gomutra Benefits

IMC गौमूत्र के फायदे | IMC Herbal Gomutra Benefits in Hindi

इंसानों के लिए गौमूत्र किसी वरदान से कम नही है यह इतना प्रभावशाली है कि यह हमारे पूरे शरीर और मस्तिष्क के रोगों को ठीक कर सकता है। गाय के मूत्र में एंटीकैंसर तत्व पाए जाते हैं। यह प्राकृतिक एंटीबायोटिक, एंटीफंगल, एंटीबैक्टीरियल, एंटी एलर्जिक की तरह काम करता है। 

आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र एक संजीवनी की तरह है और इसका उपयोग करना पूरी तरह से सुरक्षित है। लेकिन केवल भारतीय नस्ल की गायों में ये गुण पाए जाते हैं।




आयुर्वेद के अनुसार सभी रोगों का जड़ वात, पित्त और कफ दोषों के असंतुलन से होता है। गौमूत्र इन तीनो दोषों को ठीक करने में पूरी तरह सक्षम है। 


गौमूत्र में 18 प्रकार के खनिज तत्व पाए जाते हैं जैसे: आयरन, कॉपर, नाइट्रोजन, मैगनीज, क्लोरिन, कार्बोलिक एसिड, सिलिकॉन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, गोल्ड, सिट्रिक्स, एंजाइम्स, विटामिन ए, बी, सी, डी आदि पाए जाते हैं।



IMC गोमूत्र का उपयोग क्यों करें? 

जैसा की आपको पता है आईएमसी कंपनी के सभी प्रोडक्ट बेस्ट क्वालिटी के होते हैं और प्रोडक्ट की गुणवक्ता में विशेष ध्यान दिया जाता है। 

आईएमसी गोमूत्र का कोई भी बड़े आराम से पी सकता है क्योंकि इसमें इलायची और तुलसी डाली गई है जिससे यह सुगंधित हो जाता है। 

IMC में गौमूत्र कैसे बनाया जाता है?

आईएमसी के हर्बल गोमूत्र को बनाने के लिए पहले गोशाला में खड़ी गाय से सुबह, दोपहर व शाम को स्टील के बर्तन में मूत्र एकत्रित किया जाता है। स्टील टैंक में इक्कठा करने के बाद इसे डबल डिस्टिलेशन के द्वारा सभी अशुद्धियों को निकाल दिया जाता है। इस प्रक्रिया में गोमूत्र की गुणवक्ता में कोई बदलाव नही आता।  

इसके बाद शुद्ध किये गये गोमूत्र में इलाइची और तुलसी डाली जाती है।  इससे तुलसी और इलायची दोनों का भी लाभ मिलता है।

IMC गौमूत्र के फायदे 

  • यह बात पित्त और कफ को संतुलित करता है।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है
  • गोमूत्र से बढ़िया डिटॉक्सिफिकेशन कोई नहीं कर सकता। यह शरीर की सारी गंदगी को बाहर निकाल देता है।
  • यह चर्म रोग में लाभकारी है।
  • मांसपेशियों को मजबूत बनाता है।
  • पीलिया की बीमारी में लाभ मिलता है।
  • खून को साफ करता है और रक्त दोषों को दूर करता है।
  • कैंसर की बीमारी में लाभदायक है।
  • यह दर्द निवारक के रूप में भी काम करता है और यह सूजन को भी कम करता है ।
  • हृदय रोग, शुगर और माइग्रेन में लाभकारी है।
  • गोमूत्र श्वास नली फेफड़े संबंधी रोगों में विशेष तौर पर लाभकारी है।
  • सर्दी जुकाम और दमे में गोमूत्र को हल्का गर्म करके पीने से लाभ मिलता है।
  • जोड़ों के दर्द में गोमूत्र को गर्म करके मालिश करने से आराम मिलता है।
  • सुबह शाम को मूत्र से चेहरा धोने पर कील मुंहासे नष्ट हो जाते हैं।
  • पेट दर्द, कब्ज, अपच जैसे पेट सम्बन्धी रोगों को ठीक करता है।
  • शहद, नीबू और पानी के साथ गोमूत्र का रोज सेवन करने से शरीर के अनावश्यक चर्बी और मोटापा दूर हो जाता है।

IMC गौमूत्र का सेवन कैसे करें?

15 ml गोमूत्र को 50 ml पानी में मिलाकर सुबह-शाम खाली पेट पियें। शुरुआत में यदि आपको दस्त हो जाए तो घबराएं नही। यह एक उत्तम लक्षण हैं। शुरुआत कम मात्रा से करें भी 30ml लेवें या चिकित्सक की सलाह से सेवन करें।

IMC गोमुत्र का सेवन स्वस्थ व्यक्ति को भी रोजाना करना चाहिए। यदि गोमूत्र को पानी में मिलाकर नहाए तो शरीर के सभी रोगाणु खत्म हो जाते हैं।

आईएमसी गोमूत्र की कीमत क्या है?

यदि आपके पास आईएमसी की आईडी है तो आप डिस्काउंट प्राइस (DP rate) में खरीद सकते हैं। आईडी नहीं होने पर आप एमआरपी मूल्य पर इस प्रोडक्ट को खरीद सकते हैं।

IMC Herbal Gomutra (500 ml)  - MRP 395 
IMC Herbal Gomutra (1000 ml)  - MRP 725

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आईएमसी एलोवेरा जूस के फायदे - IMC Aloe Vera Juice Benefits

आईएमसी एलोवेरा जूस के फायदे - IMC Aloe Vera Juice Benefits in Hindi



एलोवेरा का उपयोग धरती पर प्राचीन काल से औषधि के रूप में हो रहा है। एलोवेरा की लगभग 300 प्रजातियाँ पायी गयी हैं लेकिन इनमे से केवल 4 प्रजातियों में 90% से 100% औषधीय गुण होते हैं और इनमे से कुछ प्रजातियाँ ऐसी भी होती हैं जो किसी काम के नही हैं।

बरबडेंसिस मिलर नाम की प्रजाति को सबसे उत्तम माना गया है इसमें 100% औषधीय गुण होते हैं। IMC की Aloe Vera Fibrous Juice में इसी प्रजाति का उपयोग किया गया है।

आईएमसी के इस प्रोडक्ट में पांच चीजें मिली होतीं हैं:
  1. एलोवेरा
  2. आंवला 
  3. तुलसी
  4. अदरक
  5. स्टीविया 
इन सभी के अपने अलग-अलग फायदे हैं और ये सारी औषधीय चीजें आपस में मिलकर इस एलोवेरा फाइबर्स जूस के प्रभाव को कई गुना बढ़ा देते हैं।

एलोवेरा में 200 से अधिक औषधीय तत्व होते हैं जिनमे 75 पोषक तत्व, कैल्सियम, आयरन, जिंक, कॉपर, पोटेशियम, सोडियम, मैग्नेशियम आदि होते हैं।

इसमें विटामिन A, B1, B2, B6, B12, C और विटामिन E पाए जाते हैं। एक स्वस्थ शरीर के लिए हमें इन सभी की जरुरत होती है लेकिन ये सभी हमारे शरीर में अपनेआप नही बनते और न ही शरीर में जमा रहते हैं इसलिए हमें एलोवेरा का उपयोग हमेशा करना चाहिए जिससे लगातार हमारे शरीर को ये पोषक तत्व मिलते रहें।

IMC Aloe Vera Fibrous Juice Benefits in Hindi

1. यह एक अति उत्तम बैक्टीरिया नाशक है।

2. एलोवेरा जूस एक बेहतरीन detoxification करने वाला पेय पदार्थ है। हमारे शरीर के अंदर हर छोटे-बड़े हिस्सों और हर नस-नाड़ियों को अंदर से साफ़ करता है और सारी गंदगियों (toxins) को बाहर निकाल देता है जिससे कई सारी बिमारियों से छुटकारा मिल जाता है।

3. यह एक बेहतरीन एंटी-बायोटिक, एंटीसेप्टिक, और एंटी ऑक्सीडेंट है।

4. यह विटामिन सी से भरपूर है जो की सर्दी-जुकाम, खांसी, फ्लु, नाक बहना जैसी बिमारियों में उपयोगी है।

5. कफ तथा पित्त दोष का नाश होता है।

6. एलोवेरा जूस को एनर्जी ड्रिंक के रूप में भी उपयोग किया जाता है। इसमें कई प्रकार के विटामिन, पोषक तत्व, और मिनरल्स पाए जाते हैं जो शरीर को ताकत प्रदान करते हैं।

7. घाव को भरने के लिए यह अति उत्तम दवा है यह दूसरी दवाओं की तुलना में 60-70% अधिक तेजी से काम करता है।

8. रोजाना सेवन से मधुमेह को भी नियंत्रित किया जा सकता है।

9. यह हाई ब्लड प्रेशर (उच्च रक्तचाप) को नियंत्रित कर सकता है।

10. ह्रदय की कार्यशक्ति को बढाता है।

11. कील-मुहासों, त्वचा की झुर्रियों को कम करता है।

12. खून से बुरे कोलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करता है और अच्छे कोलेस्ट्रोल को बढाता है।

13. एक गिलास पानी में डॉ चम्मच एलोवेरा मिलकर आँखों को धोने से आँखों की लालीपन और खुजली कम हो जाती है।

14. यह एक बेहतरीन दर्द निवारक है।

15. रोग-प्रतिरोधक क्षमता और ताकत को बढाता है।

16. चोंट लग जाने या जल जाने पर इसका उपयोग करने से दर्द और जलन में राहत मिलता है।

17. पेशाब की किसी भी समस्या के लिए एलो-वेरा अत्यंत गुणकारी है। जिनके गुर्दे निष्क्रिय हो गये हों उनके लिए भी आश्चर्यजनक रूप से गुणकारी हैं।

18. पेट के अल्सर का इलाज इससे किया जा सकता है।

19. लीवर में सूजन और इन्फेक्शन को ठीक करने में सहायक है।

20. दाद-खाज खुजली, एक्जीमा , सोरायसिस में बहुत असरदार औषधि है।

21. स्ट्रेच मार्क्स को हटाने के लिए एलो-जेल और IMC की श्री तुलसी का रोजाना उपयोग करना चाहिए।

22. दाद और एक्जिमा हो गये हों तो एलो जेल लगाकर बांध दें। संतोषजनक परिणाम होंगे।

23. प्रतिदिन 60 ml सुबह-शाम पीने से मोटापा दूर किया जा सकता है, वजन कम किया सकता है।

24. पाचन क्रिया को ठीक करता है। कब्ज को ठीक करता है।

25. मुह के छालों को दूर करने के लिए एलोवेरा जूस को मुंह में भर लेने से राहत मिलती है।

26. घुटने की सूजन को कम करके दर्द भी कम करता है।

27. एलोवेरा को स्त्रियों की सहेली कहा जाता है। महिलाओं की विविध रोगों में इससे अच्छी प्रकृतिक औषधि और कोई नही हो सकती। ध्यान रहे दूध पिलाने वाली और गर्भवती महिलाएं अपने डॉक्टर से पूछ कर इसका उपयोग करें।

28. एलो जेल से सर की मालिश करने से वहां नई कोशिकाओं का जल्दी निर्माण होता है जिससे बाल लम्बे और घने हो जाते हैं इसके अलावा रुसी से भी छुटकारा मिलता है।

29. एलोवेरा त्वचा को मुलायम करने का भी काम करती है और मृत कोशिकाओं को नष्ट करती है।

30. यह मॉइस्चराइजर का काम भी करता है शरीर का रूखापन दूर करता है।

31. स्मरण शक्ति को बढाता है और मानसिक तनाव को कम करता है।

32. 12 महीने के उपर के बच्चे भी इसका उपयोग कर सकते हैं।

33. यह मेटाबोलिक प्रक्रिया को बल देता है जिससे बच्चों को पोषक तत्व अत्यधिक मात्रा में मिलता है, रोग-प्रतिरोधक क्षमता और ताकत को बढाता है।

34. बच्चों का शरीर तंदुरुस्त बनाता है, रात में नींद अच्छी आती है, बिस्तर में पेशाब की शिकायत को कम करता है।

35. बहुत अधिक मात्रा में शराब पेट में चले जाने की दशा में यह बहुत अच्छे विषनाशक का काम करता है।

आईएमसी एलोवेरा जूस की कीमत - IMC Aloe Vera Juice Price

ProductMRP

IMC Aloevera Fibrous Juice - (500 ml)375

IMC Aloevera Fibrous Juice - (1 Ltr)725


डिस्काउंट के बारे में भी जानें

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नोट: इन जानकारियां कंपनी के द्वारा जारी किताबों और ट्रेनिंग videos आदि से ली गयी हैं। इनका उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरुर ले लेवे।

श्री तुलसी के 35 फायदे और नुकसान - IMC Shri Tulsi

श्री तुलसी के 35 फायदे और नुकसान - IMC Shri Tulsi Benefits in Hindi








200 प्रकार की बिमारियों को खत्म करने वाली IMC की श्री तुलसी विश्वभर में सबसे प्रसिद्ध और असरकारक Tulsi drop है। यह पूरी तरह से आयुर्वेदिक है और इसमें किसी भी प्रकार का केमिकल नही है। यह हरिद्वार में IMC की फैक्ट्री में बनता है।

अगर IMC (International Marketing Corporation) की बात करें तो यह एक प्रमाणित कंपनी है जो की विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), GMP, GPP, HALAL, आयुर्वेदिक विभाग और कई सारी संस्थाओं द्वारा प्रमाणित है और इसे कई सारे पुरस्कार भी मिल चुके हैं।

आज हम श्री तुलसी के बारे में निचे दिए गये कुछ बिन्दुओं पर बात करते हैं:
  • श्री तुलसी के क्या फायदे हैं?
  • श्री तुलसी के नुकसान -
  • श्री तुलसी की कीमत क्या है? कहाँ से खरीदें -

आईएमसी की श्री तुलसी में किसी प्रकार की कोई मिलावट नही की जाती, यह 100% शुद्ध होता है, इसमें एक बूँद भी पानी नही मिलाया जाता है। यह हमारे आंगन में उगने वाली तुलसी से कई गुना ज्यादा असरकारी है क्योंकि यह पांच प्रकार की तुलसियों द्वारा बना है जिनका नाम है:
  1. श्याम तुलसी (Ocimum Tenuiflorum)
  2. विष्णु तुलसी (Ocimum Sanctum)
  3. राम तुलसी (Ocimum Gratissimum)
  4. निम्बू तुलसी (Ocimum americanum) 
  5. वन तुलसी (Ocimum Basillicum)
इन पांचों प्रकार की तुलसी का विशेष विधि द्वारा सत् निकाल कर श्री तुलसी को बनाया गया है। यह तेल के रूप में होता है लेकिन इसे विशेष विधि द्वारा पानी में घुलनशील बनाया जाता है।

श्री तुलसी के क्या फायदे हैं?
आईये जानते हैं की आईएमसी की श्री तुलसी के क्या-क्या लाभ हैं और इसका कैसे उपयोग करना चाहिए।

1. यह दुनिया की एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-बायोटिक, एंटी-वायरल, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-डिसीस एवम एंटी-इफ्लेमेंट्री है।

2. अगर पीने के पानी को विषाणु और रोगाणुओं से मुक्त करना है तो आप एक गिलास पानी में श्री तुलसी की सिर्फ दो बूँद डाल देवें।

3. सर्दी-खांसी, मलेरिया, डेंगू, प्लेग, फ्लू, स्वाइन-फ्लू, चिकनगुनिया और किसी भी बुखार में यह लाभकारी है।

4. पेट दर्द, गैस्टिक, अपच, कब्ज, उल्टी, दस्त, कृमिरोग आदि में अत्यंत लाभकारी है।

5. दाद खाज, खुजली, एक्जीमा, सोरायसिस में श्री तुलसी की दो-दो बूँद सुबह-शाम पानी के साथ खाली पेट लेना चाहिए।

6. त्वचा की किसी भी समस्या में इसे निम्बू के रस के साथ लगायें।

7. मोटापा से ग्रसित लोगों के लिए भी यह लाभकारी है।

8. जोड़ों का दर्द, गठिया, सूजन में इसका उपयोग करना चाहिए।

9. मूत्र सम्बंधित किसी भी रोग में यह उपयोगी है।

10. सर दर्द में इसका एक बूँद माथे पर लगायें आराम मिलेगा।

11. ब्लड-प्रेशर, शुगर, कैंसर, ह्रदय रोग जैसी बड़ी बिमारियों में भी इसका लाभ लिया जा सकता है।

12. कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करने यह उपयोगी है इससे हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है।

13. दांत-मसूड़ों में दर्द, कीड़ा लगना, मसूड़ों में खून आना, पायरिया, नकसीर, फेफड़े में सूजन, अल्सर आदि में उपयोगी है।

14. गला दर्द, आवाज बैठना, मुह में छाले होने पर गर्म पानी में डालकर कुल्ला करें।

15. यह एक बहुत ही बढ़िया विषनाशक है यह शरीर के अंदर के विष (toxins) को बाहर निकालता है।

16. हीमोग्लोबिन (लाल रक्त कणिकाओं) को बढ़ने में सहायता करता है।

17. स्मरण-शक्ति बढ़ने के लिए यह अच्छी दवा है।

19. महिलाओं को गर्भावस्था में होने वाली उलटी को ठीक करने के लिए 4-5 बूँद लेना चाहिए।

20. किसी जहरीले कीड़े के काटने या आग से जलने पर उस स्थान पर श्री तुलसी की कुछ बूंदे डालने से आराम मिलता है।

21. सुबह-शाम अदरक के रस, शहद और तुलसी की बूंदों को मिलाकर दिन में तीन बार लेने से सर्दी-जुकाम और खांसी में आराम मिलता है।

22. मुह के दुर्गन्ध को तुरंत दूर करने के लिए इसके कुछ बूँद मुह में डालना चाहिए।

23. कान दर्द के लिए श्री तुलसी को हल्का गर्म करके एक-एक बूँद कान में टपकायें।

24. नाक में फोड़े, फुंसियाँ होने पर हल्का गर्म कर एक-एक बूँद नाक में डालें।

25. डैंड्रफ और जुओं को ख़तम करने के लिए नीबू का रस और श्री तुलसी दोनों को बराबर मात्रा में मिलाकर बालों में लगायें 3-4 बाद धोएं।

26. रात्रि को 8-10 बूँद शरीर में लगा कर सोयें इससे मच्छर नही काटेंगे।

27. कूलर के पानी में 8-10 बूँद डालें इससे घर रोगाणु और विषाणु मुक्त हो जायेगा और मक्खी-मच्छर भी भाग जायेंगे।

28. सुन्दरता पाने के लिए इसका नियमित उपयोग करें इससे खून साफ होता है और त्वचा चमकदार बनती है।

29. एलो जेल या किसी अच्छी क्रीम के साथ मिलाकर रात में चेहरे में लगायें इससे कील-मुहासे, धब्बे और झुर्रियां खत्म हो जाती हैं।

30. प्रसव के बाद पेट पर बनने वाली लाइनों (स्ट्रेच मार्क्स) को हटाने के लिए इसे एलो-जेल या किसी क्रीम के साथ मिलाकर लगायें।

31. सफ़ेद दाग को हटाने के लिए 10 ml नारियल तेल में 20 ml श्री तुलसी मिलाकर सुबह-शाम मालिश करें।

32. सफेद बाल की समस्या का इलाज भी श्री तुलसी कर सकता है इसके लिए इसे हेयर आयल के साथ मिलाकर बाल की जड़ों पर मालिश करें।

33. खाने में अरुचि, भूख न लगना जैसे समस्या में भी यह लाभकारी है।
34.कैंसर में श्री तुलसी की 8-10 बूँद एक गिलास छाछ के साथ सुबह शाम पीना चाहिए
35. यह वजन को नियंत्रित करने में सहायक है। इससे मोटे व्यक्ति का वजन कम होता है और पतले व्यक्ति का वजन सामान्य हो जाता है।

श्री तुलसी के नुकसान - Shri Tulsi Side effects in Hindi

श्री तुलसी के फायदे के मुकाबले इससे होने वाले नुकसान या साइड इफेक्ट्स बहुत ही कम हैं, लेकिन फिर भी आपको कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए जैसे:
  • "अति सर्वत्र वर्जयेत" यानि किसी भी चीज की अति सही नही है, आप किसी भी औषधि का उपयोग अत्यधिक मात्रा में न करें। यदि आप स्वस्थ हैं तो एक दिन में श्री तुलसी के 2-4 बूँद आपके लिए पर्याप्त है।
  • गर्भावस्था में विशेष ध्यान रखना होता है इसलिए इसका उपयोग न करें तो अच्छा है यदि उपयोग करना चाहते हैं तो चिकित्सकीय परामर्श अवश्य ले लेवें।
  • जिनके दूध पिने वाले छोटे बच्चे हैं उनको भी बिना चिकित्सकीय सलाह के उपयोग नही करना चाहिए।
  • दूध के साथ मिलाकर इसका उपयोग न करें।
  • दूध पिने से पहले या बाद में इसका उपयोग न करें, कम से कम आधे-एक घंटे का अन्तराल रखें।
  • नमक, प्याज, लहसुन, खट्टे फल या मांस के साथ इसका उपयोग हानिकारक है।

श्री तुलसी की कीमत क्या है? कहाँ से खरीदें - Shri Tulsi Price 

आप श्री तुलसी IMC के किसी भी स्टोर या तहसील डिस्ट्रीब्यूटर से खरीद सकते हैं। इसका प्राइस निचे दिया गया है।

Shri tulsi MRP : 195/-
Associate Price : 150/-
B.V : 55

यदि आपके पास ID (डिस्काउंट कार्ड) बनी हुई है तो आपको श्री तुलसी केवल 150 रूपये में मिल जायेगा इसके साथ ही आपको 55 B.V भी मिलेगा।

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तुलसी धरती का अमृत है - “तुलसी रस पीएं, निरोग जीएं”

 तुलसी धरती का अमृत है जानिये तुलसी कै प्रकार और स्वास्थ्य लाभ में तुलसी का प्रयोग

“तुलसी रस पीएं, निरोग जीएं”


तुलसी मुख्य रूप से पांच प्रकार की पायी जाती है ! श्याम तुलसी, राम तुलसी, श्वेत/विश्नू तुलसी, वन तुलसी, और नींबू तुलसी।

इन पांच प्रकार की तुलसी विधि द्वारा अर्क निकाल कर तुलसी का निर्माण किया गया है।

 यह संसार की एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी- वायरल , एंटी- फ्लू, एंटी- बायोटिक , एंटी-इफ्लेमेन्ट्री व एंटी–डिजीज है।

1 तुलसी अर्क के एक बून्द एक ग्लास पानी में या दो बून्द एक लीटर पानी में डाल कर पांच मिनट के बाद उस जल को पीना चाहिए। इससे पेयजल विष् और रोगाणुओं से मुक्त होकर स्वास्थवर्धक पेय हो जाता है।

2 तुलसी अर्क २०० से अधिक रोगो में लाभदायक है | जैसे के फ्लू , स्वाइन फ्लू, डेंगू , जुखाम , खासी , प्लेग, मलेरिया , जोड़ो का दर्द, मोटापा, ब्लड प्रेशर , शुगर, एलर्जी , पेट के कीड़ो , हेपेटाइटिस , जलन, मूत्र सम्बन्धी रोग, गठिया , दम, मरोड़, बवासीर , अतिसार, आँख का दर्द , दाद खाज खुजली, सर दर्द, पायरिया नकसीर, फेफड़ो सूजन, अल्सर , वीर्य की कमी, हार्ट ब्लोकेज आदि।

3 तुलसी एक बेहतरीन विष नाशक तथा शरीर हटा के विष (toxins ) को बाहर निकलती है।

4 तुलसी स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।

5 तुलसी शरीर के लाल रक्त सेल्स (Haemoglobin) को बढ़ने में अत्यंत सहायक है।

6 तुलसी भोजन के बाद एक बूँद सेवन करने से पेट सम्बन्धी बीमारिया बहोत काम लगाती है।

7 तुलसी के 4 – 5 बूँदे पीने से महिलाओ को गर्भावस्था में बार बार होने वाली उलटी के शिकायत ठीक हो जाती है।

8 आग के जलने व किसी जहरीले कीड़े के कांटने से तुलसी को लगाने से विशेष रहत मिलती है।

9 दमा व खाँसी में तुलसी के दो बुँदे थोड़े से अदरक के रास तथा शहद के साथ मिलकर सुबह–दोपहर–शाम सेवन करे।

10 यदि मुँह में से किसी प्रकार की दुर्गन्ध आती हो तो तुलसी के एक बूँद मुँह में डाल ले दुर्गन्ध तुरंत दूर हो जाएगी।

11 दांत का दर्द, दांत में कीड़ा लगना , मसूड़ों में खून आना तुलसी के 4 – 5 बूँदे पानी में डालकर कुल्ला करना चाहिए।

12 कान का दर्द, कण का बहना, तुलसी हल्का गरम करके एक -एक बूंद कान में टपकाए।

13 नाक में पिनूस रोग हट जाता है, इसके अतिरिक्त फोड़े– फुंसिया भी निकल आती है, दोनों रोगो में बहुत तकलीफ होती है , तुलसी को हल्का सा गरम करके एक–एक बूंद नाक में टपकाएं।

14 गले में दर्द, गले व मुँह में छाले , आवाज़ बैठ जाना : तुलसी के 4 – 5 बूँदे गरम पानी में डालकर कुल्ला करना चाहिए।

15 सर दर्द, बाल क्हाड्णा, बाल सफ़ेद होना व सिकरी तुलसी की 8 – 10 मि.ली। हर्बल हेयर आयल के साथ मिलाकर सर, माथे तथा कनपटियो पर लगाये।

16 तुलसी के 8 – 10 बूँदे मिलकर शरीर में मलकर रात्रि में सोये , मच्छर नहीं काटेंगे।

17 कूलर के पानी में तुलसी के 8 – 10 बूँदे डालने से सारा घर विषाणु और रोगाणु से मुक्त हो जाता है, तथा मक्खी – मच्छर भी घर से भाग जाते है।

18 जूएं व लिखे तुलसी और नीबू का रस समान मात्रा में मिलाकर सर के बालो में अच्छे तरह से लगाये , 3 – 4 घंटे तक लगा रहने दे। और फिर धोये अथवा रात्रि को लगाकर सुबह सर धोए।। जुएं व लिखे मर जाएगी।

19 त्वचा की समस्या में निम्बू रास के साथ तुलसी के 4–5 बूँदे डालकर प्रयोग करे।

20 तुलसी में सुन्दर और निरोग बनाने की शक्ति है। यह त्वचा का कायाकल्प कर देती है | यह शरीर के खून को साफ करके शरीर को चमकीला बनती है।

21 तुलसी की दो बूँदे एलो जैल क्रीम में मिलाकर चेहरे पर सुबह व रात को सोते समय लगाने पर त्वचा सुन्दर व कोमल हो जाती है तथा चेहरे से प्रत्येक प्रकार के काले धेरे, छाइयां , कील मुँहासे व झुरिया नष्ट हो जाती है।

22 सफ़ेद दाग : 10 मि.लि. तेल व नारियल के तेल में 20 बूँदें तुलसी डालकर सुबह व रात सोने से पहले अच्छी तरह से मले।

23 तुलसी के नियमित उपयोग से कोलेस्ट्रोल का स्तर कम होने लगता है, रक्त के थक्के जमने कम हो जाते है, व हार्ट अटैक और कोलैस्ट्रोल की रोकथाम हो जाती है।
24 तुलसी को किसी भी अच्छी क्रीम में मिलाकर लगाने से प्रसव के बाद पेट पर बनने वाले लाइने ( स्ट्रेच मार्क्स ) दूर हो जाते है।

भारत माता की जय 🇮🇳
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

गौरव जाजू ने बढ़ाया माहेश्वरी समाज का गौरव, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी जोधपुर ने गौरव को प्रदान की पीएचडी की उपाधि



माहेश्वरी समाज के गौरव ने बढ़ाया समाज का गौरव
 
जोधपुर के रातानाडा क्षेत्र में लड्ढा कॉलोनी में रहने वाले गौरव जाजू ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी जोधपुर से Blind Signal Modulation Recognition through Clustering Analysis of Constellation विषय पर शोध कार्य किया
इस पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी जोधपुर के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग ने 7 जुलाई 2021 को गौरव जाजू को पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई है
गौरव जाजू की इस उपलब्धि से पूरे देश में किया माहेश्वरी समाज का नाम रोशन 



 

मंगलवार, 3 अगस्त 2021

कामिका एकादशी - कल 04 अगस्त, बुधवार को एकादशी है

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🌷 *कामिका एकादशी* 🌷

💥 कल 04 अगस्त, बुधवार को एकादशी है

🙏🏻 *युधिष्ठिर ने पूछा : गोविन्द ! वासुदेव ! आपको मेरा नमस्कार है ! श्रावण  के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? कृपया उसका वर्णन कीजिये ।*
 
🙏🏻 *भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! सुनो । मैं तुम्हें एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने नारदजी के पूछने पर कहा था ।*
 
🙏🏻 *नारदजी ने प्रशन किया : हे भगवन् ! हे कमलासन ! मैं आपसे यह सुनना चाहता हूँ कि श्रवण के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसके देवता कौन हैं तथा उससे कौन सा पुण्य होता है? प्रभो ! यह सब बताइये ।*
 
🙏🏻 *ब्रह्माजी ने कहा : नारद ! सुनो । मैं सम्पूर्ण लोकों के हित की इच्छा से तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ । श्रावण मास में जो कृष्णपक्ष की एकादशी होती है, उसका नाम ‘कामिका’ है । उसके स्मरणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है । उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से भगवान का पूजन करना चाहिए ।*
 
🙏🏻 *भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से जो फल मिलता है, वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं है । सिंह राशि के बृहस्पति होने पर तथा व्यतीपात और दण्डयोग में गोदावरी स्नान से जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से भी मिलता है ।*
 
🙏🏻 *जो समुद्र और वनसहित समूची पृथ्वी का दान करता है तथा जो ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करता है, वे दोनों समान फल के भागी माने गये हैं ।*
 
🙏🏻 *जो ब्यायी हुई गाय को अन्यान्य सामग्रियोंसहित दान करता है, उस मनुष्य को जिस फल की प्राप्ति होती है, वही ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाले को मिलता है । जो नरश्रेष्ठ श्रावण मास में भगवान श्रीधर का पूजन करता है, उसके द्वारा गन्धर्वों और नागोंसहित सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है ।*
 
🙏🏻 *अत: पापभीरु मनुष्यों को यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करके ‘कामिका एकादशी’ के दिन श्रीहरि का पूजन करना चाहिए । जो पापरुपी पंक से भरे हुए संसारसमुद्र में डूब रहे हैं, उनका उद्धार करने के लिए ‘कामिका एकादशी’ का व्रत सबसे उत्तम है । अध्यात्म विधापरायण पुरुषों को जिस फल की प्राप्ति होती है, उससे बहुत अधिक फल ‘कामिका एकादशी’ व्रत का सेवन करनेवालों को मिलता है ।*

🙏🏻 *‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाला मनुष्य रात्रि में जागरण करके न तो कभी भयंकर यमदूत का दर्शन करता है और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है ।*
 
🙏🏻 *लालमणि, मोती, वैदूर्य और मूँगे आदि से पूजित होकर भी भगवान विष्णु वैसे संतुष्ट नहीं होते, जैसे तुलसीदल से पूजित होने पर होते हैं । जिसने तुलसी की मंजरियों से श्रीकेशव का पूजन कर लिया है, उसके जन्मभर का पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है ।*
 
🌷 *या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी*
*रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी ।*
*प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता*
*न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम: ॥*
 
🙏🏻 *‘जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों मे चढ़ाने पर मोक्षरुपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है ।’*
 
🙏🏻 *जो मनुष्य एकादशी को दिन रात दीपदान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते । एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं । घी या तिल के तेल से भगवान के सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह त्याग के पश्चात् करोड़ो दीपकों से पूजित हो स्वर्गलोक में जाता है ।’*
 
🙏🏻 *भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : युधिष्ठिर ! यह तुम्हारे सामने मैंने ‘कामिका एकादशी’ की महिमा का वर्णन किया है । ‘कामिका’ सब पातकों को हरनेवाली है, अत: मानवों को इसका व्रत अवश्य करना चाहिए । यह स्वर्गलोक तथा महान पुण्यफल प्रदान करनेवाली है । जो मनुष्य श्रद्धा के साथ इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में जाता है ।*
             🌞 *~ 🌞
🙏🏻🌷🌼🌸🌹🍀🌻🌺🌹
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सोमवार, 2 अगस्त 2021

गाय के गोबर की भस्म ही भरपुर गुणों की खान हैं

*गाय के गोबर की भस्म ही भरपुर गुणों की खान हैं*
अगर आप गौ-भस्म को ध्यान से पढ़ेगें तो पायेंगे कि यह गौ भस्म ( राख ) आपके लिए कितनी उपयोगी है । साधु -संत लोग संभवतः इन्ही गुणों के कारण इसे प्रसाद रूप में भी देते थे । जब गोबर से बनायीं गयी भस्म इतनी उपयोगी है तो गाय कितनी उपयोगी होगी यह आप सोच सकते है । आपको एक लीटर पानी में 10 ग्राम यानि 2 चम्मच भस्म मिलाना है , अच्छी तरह से मिक्स करना हैं उसके बाद भस्म जब पानी के तले में बैठ जाये फिर इस पानी को पीते रहना है । इससे सारे पानी की अशुद्धि दूर हो जाएगी और आपको मिलेगा इतने पोषक तत्व । यह लैबोटरी द्वारा प्रमाणित है ।
तत्व रूप / ELEMENT FORM
१. ऑक्सीजन O = 46.6 % 
२. सिलिकॉन SI = 30.12 %
३. कैल्शियम Ca = 7.71 % 
४. मैग्नीशियम Mg = 2.63 % 
५. पोटैशियम K = 2.61 %
६. क्लोरीन CL = 2.43 %
७. एल्युमीनियम Al = 2.11 %
८. फ़ास्फ़रोस P = 1.71 %
९. लोहा Fe = 1.46 %
१०. सल्फर S =1.46 %
११. सोडियम Na = 1 %
१२. टाइटेनियम Ti = 0.19 %
१३. मैग्नीज Mn =0.13 %
१४. बेरियम Ba = 0.06 % 
१५. जस्ता Zn = 0.03 %
१६. स्ट्रोंटियम Sr = 0.02 % 
१७. लेड Pb = 0.02 %
१८. तांबा Cu = 80 PPM 
१९. वेनेडियम V=72 PPM
२०. ब्रोमिन Br = 50 PPM
२१. ज़िरकोनियम Zr 38 
आक्साइड रूप :-
१. सिलिकाँन डाइऑक्साइड -
SIO2 = 64.44%
२. कैल्शियम ऑक्साइड 
CaO =10.79 %
३. मैग्नीशियम ऑक्साइड 
MgO = 4-37 %
४. एल्युमीनियम ऑक्साइड
AI2O3 = 3.99%
५. फास्फोरस पेंटाक्साइड 
P2O5 = 3.93%
६. पोटेशियम ऑक्साइड 
K2O = 3.14 %
७. सल्फर ऑक्साइड 
SO3 = 2.79% 
८. क्लोरीन CL=2.43 %
९. आयरन ऑक्साइड
Fe2O3=2.09% 
१०. सोडियम ऑक्साइड 
Na2O = 1.35 %
११. टाइटेनियम ऑक्साइड 
TiO2 = 0.32%
१२. मैंगनीज ऑक्साइड 
MnO = 0.17 %
१३. बेरियम ऑक्साइड 
BaO = 0.07 %
१४. जिंक ऑक्साइड 
ZnO = 0.03% 
१५. स्ट्रोंटियम ऑक्साइड 
SrO = 0.03%
१६. लेड ऑक्साइड 
PbO = 0.02%
१७. वेनेडियम ऑक्साइड 
V2O5 = 0.01 %
१८. कॉपर ऑक्साइड 
CuO = 0.01%
१९. जिरकोनियम ऑक्साइड 
ZrO2 =52 PPM
२०. ब्रोमिन Br = 50 PPM
२१. रुबिडियम ऑक्साइड
शायद आपको मेरी बात समझ में आ चुकी होगी कि शरीर में आक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने के लिए यह गोबर की भस्म कितनी उपयोगी है।
इसलिए अगर आपको स्वस्थ रहना हो तो अवश्य ही इसी पानी का प्रयोग करना जी। 

🙏🙏🙏

रविवार, 1 अगस्त 2021

गौमाता व भैंस में अंतर


*गौमाता व भैंस में अंतर* 

हमने बचपन में दादी और मां से एक दोहा सुना था...🤗

गाय माता गोमती बाछडियो गणेश !🙏
भैंसड़ी तो भूतनी, पाडड़ियो पगलेट !!🐃
🤗🤗😁😁 

डेयरी ने सब प्रकार के दूध को मिक्स कर दिया... 😇

*दोनों में अंतर :*

1. भैंस अपने बच्चे से पीठ फेर कर बैठती है चाहे उसके बच्चे को कुत्ते खां जायें वह नही बचायेगी, जबकि गाय के बच्चे के पास अनजान आदमी तो क्या शेर भी आ जाये तो जान दे देगी परन्तु जीते जी बच्चे पर आंच नही आने देगी। इसीलिए उसके दूध में स्नेह का गुण भरपूर होता है।

2. भैंस के दो बेटे बड़े होकर यानि  दो झोटे एक गांव में मिलकर नहीं रह सकते। आमना सामना होते ही एक दूसरे को मारेंगे, भाई भाई  का दुश्मन ! परन्तु  गाय के 10 साण्ड इकट्ठे रह सकते हैं, ये भाईचारे का प्रमाण है।

3. भैंस गन्दगी पसन्द है, कीचड़ में लथपथ रहेगी पर गाय अपने गोबर पर भी नहीं बैठेगी वह स्वच्छता प्रिय है।

4. भैंस को घर से 2 किमी दूर तालाब में छोड़कर आ जाओ वह घर नहीं आ सकती उसकी यादास्त जीरो है। गाय को घर से 5 किमी दूर छोड़ दो वह घर का रास्ता जानती है, आ जायेगी ! गाय के दूध में स्मृति तेज है।

5. दस भैंस बान्धकर 20 फुट दूर से उनके बच्चों को छोड़ दो, एक भी बच्चा अपनी मां को नही पहचान सकता जबकि गोशालाओं में दिन भर गाय व बच्चे अलग अलग शैड में रखते हैं, सायंकाल जब सबका मिलन होता है तो सभी बच्चे (हजारों की स॔ख्या में) अपनी अपनी मां को पहचान कर दूध पीते हैं, ये है गोदुग्ध की मेमरी।

6. जब भैंस का दूध निकालते हैं तो भैंस सारा दूध दे देती है परन्तु  गाय थोड़ा सा दूध ऊपर चढ़ा लेती है, और जब उसके बच्चे को छोड़ेंगे तो उस चढाये दूध को उतार देती है ! ये गुण माँ के हैं जो भैंस मे नही हैं।

7. गली में बच्चे खेल रहे हों और भैंस भागती आ जाये तो बच्चों पर पैर अवश्य रखेगी लेकिन गाय आ जाये तो कभी भी बच्चों पर पैर नही रखेगी।

8. भैंस धूप और गर्मी सहन नहीं कर सकती जबकि गाय मई जून में भी धूप में बैठ सकती है।

9. भैंस का दूध तामसिक होता है जबकि गाय का सात्विक ! भैंस का दूध आलस्य भरा होता  है, उसका बच्चा दिन भर ऐसे पड़ा रहेगा जैसेे अफीम या भांग खाकर पड़ा है, जब दूध निकालने का समय होगा तो मालिक उसे ठोकरें मारकर उठायेगा परन्तु गाय का बछड़ा इतना उछलेगा कि आप रस्सा खोल नही पायेंगे ठीक से।
*🙏जय गौमाता🙏🚩🚩*

प्राचीन सभ्यता में बृक्ष वनस्पति को पुजन , संरक्षण एवं संवर्धन का प्रचलन


Vedic science 
वृक्ष एवं वनस्पति विज्ञान ( BOTANY AND LIFE IN PLANTS )

पृथ्वी के हर प्राचीन सभ्यता में बृक्ष वनस्पति को पुजन ,  संरक्षण एवं संवर्धन का प्रचलन रहा।
आज हम अपने जीवनकाल में एक बड़े बृक्ष नही लगाते और दिल्ली जैसे बड़े शहरो में प्रदुषण के लिए सरकार पर उंगली उठाते है। परंतु प्राचीन काल में बृक्ष को महत्व दिया जाता था । वेल पीपल जैसे पौधे रोपने पर धन एवं संतान की दीर्घायु की मान्यता वांध दिया गया ताकि पर्यावरण संरक्षण हो।
ये भी सही है बृक्ष है तो ही हम है।

वैदिक काल से ही भारत वर्ष में प्रकृति के निरीक्षण, परीक्षण एवं विश्लेषण की प्रवृत्ति रही है। इसी प्रक्रिया में वनस्पति जगत का भी विश्लेषण किया गया। प्राचीन वांगमय में इसके अनेक संदर्भ ज्ञात होते हैं। अथर्ववेद में पौधों को आकृति तथा अन्य लक्षणों के आधार पर सात उपविभागों में बांटा गया, यथा- (१) वृक्ष (२) तृण (३) औषधि (४) गुल्म (५) लता (६) अवतान (७) वनस्पति।

आगे चलकर महाभारत, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, शुक्रनीति, वृहत्‌ संहिता, पाराशर, चरक, सुश्रुत, उदयन आदि द्वारा वनस्पति, उसकी उत्पत्ति, उसके अंग, क्रिया, उनके विभिन्न प्रकार, उपयोग आदि का विस्तार से वर्णन किया गया, जिसके कुछ उदाहरण हम निम्न संदर्भों में देख सकते हैं। 

पौधों में जीवन
पौधे जड़ नहीं होते अपितु उनमें जीवन होता है। वे चेतन जीव की तरह सर्दी-गर्मी के प्रति संवेदनशील रहते हैं, उन्हें भी हर्ष और शोक होता है। वे मूल से पानी पीते हैं, उन्हें भी रोग होता है इत्यादि तथ्य हजारों वर्षों से हमारे यहां ज्ञात थे तथा अनेक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।

महाभारत के शांतिपर्व के १८४वें अध्याय में महर्षि भारद्वाज व भृगु का संवाद है। उसमें महर्षि भारद्वाज पूछते हैं कि वृक्ष चूंकि न देखते हैं, न सुनते हैं, न गन्ध व रस का अनुभव करते हैं, न ही उन्हें स्पर्श का ज्ञान होता है, फिर वे पंच भौतिक व चेतन कैसे हैं? इसका उत्तर देते हुए महर्षि भृगु कहते हैं- हे मुने, यद्यपि वृक्ष ठोस जान पड़ते हैं तो भी उनमें आकाश है, इसमें संशय नहीं है, इसी से इनमें नित्य प्रति फल-फूल आदि की उत्पत्ति संभव है।

वृक्षों में जो ऊष्मा या गर्मी है, उसी से उनके पत्ते, छाल, फल, फूल कुम्हलाते हैं, मुरझाकर झड़ जाते हैं। इससे उनमें स्पर्श ज्ञान का होना भी सिद्ध है।

यह भी देखा जाता है कि वायु, अग्नि, बिजली की कड़क आदि होने पर वृक्षों के फल-फूल झड़कर गिर जाते हैं। इससे सिद्ध होता है कि वे सुनते भी हैं।

लता वृक्ष को चारों ओर से लपेट लेती है और उसके ऊपरी भाग तक चढ़ जाती है। बिना देखे किसी को अपना मार्ग नहीं मिल सकता। अत: इससे सिद्ध है कि वृक्ष देखते भी हैं।

पवित्र और अपवित्र गन्ध से तथा नाना प्रकार के धूपों की गंध से वृक्ष निरोग होकर फूलने लगते हैं। इससे सिद्ध होता है कि वृक्ष सूंघते हैं।

वृक्ष अपनी जड़ से जल पीते हैं और कोई रोग होने पर जड़ में औषधि डालकर उनकी चिकित्सा भी की जाती है। इससे सिद्ध होता है कि वृक्ष में रसनेन्द्रिय भी हैं।

जैसे मनुष्य कमल की नाल मुंह में लगाकर उसके द्वारा ऊपर को जल खींचता है, उसी प्रकार वायु की सहायता से वृक्ष जड़ों द्वारा ऊपर की ओर पानी खींचते हैं। 

सुखदु:खयोश्च ग्रहणाच्छिन्नस्य च विरोहणात्‌।
जीवं पश्यामि वृक्षाणां चैतन्यं न विद्यते॥ 

वृक्ष कट जाने पर उनमें नया अंकुर उत्पन्न हो जाता है और वे सुख, दु:ख को ग्रहण करते हैं। इससे मैं देखता हूं कि कि वृक्षों में भी जीवन है। वे अचेतन नहीं हैं।

वृक्ष अपनी जड़ से जो जल खींचता है, उसे उसके अंदर रहने वाली वायु और अग्नि पचाती है। आहार का परिपाक होने से वृक्ष में स्निग्धता आती है और वे बढ़ते हैं।

इसके अतिरिक्त महर्षि चरक तथा उदयन आचार्य ने भी वृक्षों में चेतना तथा चेतन होने वाली अनुभूतियों के संदर्भ में वर्णन किया है। 

महर्षि चरक कहते हैं- ‘तच्येतनावद्‌ चेतनञ्च‘
अर्थात्‌-प्राणियों की भांति उनमें (वृक्षों में) भी चेतना होती है।
आगे कहते हैं ‘अत्र सेंद्रियत्वेन वृक्षादीनामपि चेतनत्वम्‌ बोद्धव्यम्‌‘ 

अर्थात्‌-वृक्षों की भी इन्द्रिय है, अत: इनमें चेतना है। इसको जानना चाहिए। उसी प्रकार उदयन कहते हैं- 

‘वृक्षादय: प्रतिनियतभोक्त्रयधिष्ठिता: जीवनमरणस्वप्नजागरणरोगभेषज
प्रयोगबीजजातीयानुबन्धनुकूलोपगम प्रतिकूलापगमादिभ्य: प्रसिद्ध शरीरवत्‌।‘
(उदयन-पृथ्वीनिरुपणम्‌।) 

अर्थात्‌-वृक्षों की भी मानव शरीर के समान निम्न अनुभव निश्चित होते हैं- जीवन, मरण, स्वप्न, जागरण, रोग, औषधि प्रयोग, बीज, सजातीय अनुबन्ध, अनुकूल वस्तु स्वीकार व प्रतिकूल वस्तु का अस्वीकार।

एक अद्भुत ग्रंथ-पाराशर वृक्ष आयुर्वेद
बंगाल के प्रसिद्ध वनस्पति शास्त्री डा. गिरिजा प्रसन्न मजूमदार ने ‘हिस्ट्री ऑफ साइंस इन इंडिया‘ में वनस्पति शास्त्र से संबंधित अध्याय में महामुनि पाराशर द्वारा रचित ग्रंथ ‘वृक्ष आयुर्वेद‘ का वर्णन किया है। बंगाल के एन.एन. सरकार के पिता, जो आयुर्वेद के प्रसिद्ध विद्वान थे, ने इसकी पांडुलिपि खोजी थी। मजूमदार महोदय ने जब इस प्राचीन ग्रंथ को पढ़ा तो वे आश्चर्यचकित हो गए, क्योंकि उसमें बीज से वृक्ष बनने तक का इतना वैज्ञानिक विश्लेषण था कि वह किसी भी पाठक को अभिभूत करता था। उन्होंने इस ग्रंथ का सार अंग्रेजी में अनूदित किया। यह ग्रंथ हजारों वर्ष पूर्व की भारतीय प्रज्ञा की गौरवमयी गाथा कहता है। इसका विश्लेषण जबलपुर में १९९२ में स्वदेशी प्राण विज्ञान पर संपन्न राष्ट्रीय संगोष्ठी में पूर्व केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी ने किया। वे कहते हैं ‘मैं एक पुस्तक का उल्लेख करना चाहता हूं, वह है वृक्ष आयुर्वेद। उसके लेखक थे महामुनि पाराशर। इस ग्रंथ में जो वैज्ञानिक विवेचन है, वह विस्मयकारी है। इस पुस्तक के ६ भाग हैं- (१) बीजोत्पत्ति काण्ड (२) वानस्पत्य काण्ड (३) गुल्म काण्ड (४)वनस्पति काण्ड (५) विरुध वल्ली काण्ड (६) चिकित्सा काण्ड।

इस ग्रंथ के प्रथम भाग बीजोत्पत्ति काण्ड में आठ अध्याय हैं जिनमें बीज के वृक्ष बनने तक की गाथा का वैज्ञानिक पद्धति से विवेचन किया गया है। इसका प्रथम अध्याय है बीजोत्पत्ति सूत्राध्याय, इसमें महर्षि पाराशर कहते हैं- 

आपोहि कललं भुत्वा यत्‌ पिण्डस्थानुकं भवेत्‌।
तदेवं व्यूहमानत्वात्‌ बीजत्वमघि गच्छति॥ 

पहले पानी जेली जैसे पदार्थ को ग्रहण कर न्यूक्लियस बनता है और फिर वह धीरे-धीरे पृथ्वी से ऊर्जा और पोषक तत्व ग्रहण करता है। फिर उसका आदि बीज के रूप में विकास होता है और आगे चलकर कठोर बनकर वृक्ष का रूप धारण करता है। आदि बीज यानी प्रोटोप्लाज्म के बनने की प्रक्रिया है जिसकी अभिव्यक्ति बीजत्व अधिकरण में की गई है।

दूसरे अध्याय भूमि वर्गाध्याय में पृथ्वी का उल्लेख है। इसमें मिट्टी के प्रकार, गुण आदि का विस्तृत वर्णन है।

तीसरा अध्याय वन वर्गाध्याय का है। इसमें १४ प्रकार के वनों का उल्लेख है। चौथा अध्याय वृक्षांग सूत्राध्याय (फिजियॉलाजी) का है। इसमें प्रकाश संश्लेषण यानी फोटो सिंथेसिस की क्रिया के लिए कहा है- 

‘पत्राणि तु वातातपरञ्जकानि अभिगृहन्ति।‘
वात-क्दृ२ आतप , रंजक क्लोरोफिल। यह स्पष्ट है कि वात कार्बन डाय आक्साइड अ सूर्य प्रकाश अ क्लोरोफिल से अपना भोजन वृक्ष बनाते हैं। इसका स्पष्ट वर्णन इस ग्रंथ में है।

पांचवा पुष्पांग सूत्राध्याय है। इसमें कितने प्रकार के फूल होते हैं, उनके कितने भाग होते हैं, उनका उस आधार पर वर्गीकरण किया गया है। उनमें पराग कहां होता है, पुष्पों के हिस्से क्या हैं आदि का उल्लेख है।

फलांग सूत्राध्याय में फलों के प्रकार, फलों के गुण और रोग का वर्गीकरण किया गया है। सातवें वृक्षांग सूत्राध्याय में वृक्ष के अंगों का वर्णन करते हुए पाराशर कहते है- पत्रं (पत्ते) पुष्प (फूल) मूलं (जड़) त्वक्‌ (शिराओं सहित त्वचा) काण्डम्‌ (स्टिम्‌) सारं (कठोर तना) सारसं र्नियासा बीजं (बीज) प्ररोहम्‌ -इन सभी अंगों का परस्पर सम्बन्ध होता है। आठवें अध्याय में बीज से पेड़ के विकास का वर्णन किया गया है। बीज के बारे में जो कहा गया है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। बीज और पत्रों की प्रक्रिया में वे कितनी गहराई में गए, यह तय करना आज के वनस्पति शास्त्र के विद्वानों का दायित्व है। पाराशर कहते हैं- 

‘बीज मातृका तु बीजस्यम्‌ बीज पत्रन्तुबीजमातृकायामध्यस्थमादि‘
पत्रञ्च मातृकाछदस्तु तनुपत्रकवत्‌ मातृकाछादनञ्च कञ्चुकमित्याचक्षते॥ 

बीजन्तु प्रकृत्या द्विविधं भवति एकमातृकं द्विमातृकञ्च। तत्रैकपत्रप्ररोहानां वृक्षाणां बीजमेकमातृकं भवति। द्वि पत्र प्ररोहानान्तु द्विमातृकञ्च।

यानी मोनोकॉटिलिडेन और डायकॉटिलिडेन। यानी एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री बीजों का वर्णन है। किस प्रकार बीज धीरे-धीरे रस ग्रहण करके बढ़ते हैं और वृक्ष का रूपधारण करते हैं। कौन- सा बीज कैसे उगता है, इसका वर्गीकरण के साथ उसमें स्पष्ट वर्णन है।

यह भी वर्णन है कि बीज के विभिन्न अंगों के कार्य अंकुरण (जर्मिनेशन) के समय कैसे होते हैं- 

अंकुरनिर्विते बीजमात्रकाया रस:
संप्लवते प्ररोहांगेषु। 

यदा प्ररोह: स्वातन्त्रेन भूम्या: पार्थिवरसं गृहणाति तदा बीज मातृका प्रशोषमा पद्यमे। (वृक्ष आयुर्वेद-द्विगणीयाध्याय) 

वृक्ष के विकास की गाथा
वृक्ष रस ग्रहण करता है, बढ़ता है। आगे कहा गया है कि जड़ बन जाने के बाद बीज मात्रिका यानी बीज पत्रों की आवश्यकता नहीं रहती, वह समाप्त हो जाती है। फिर पत्तों और फलों की संरचना के बारे में कहा है कि वृक्ष का भोजन पत्तों से बनता है। पार्थिव रस जड़ में से स्यंदिनी नामक वाहिकाओं के द्वारा ऊपर आता है, यह मानो

आज के ‘एसेण्ट ऑफ सैप‘ का वर्णन है। यह रस पत्तों में पहुंच जाता है। जहां पतली-पतली शिराएं जाल की तरह फैली रहती हैं। ये शिरायें दो प्रकार की हैं- ‘उपसर्प‘ और ‘अपसर्प‘। वे रस प्रवाह को ऊपर भी ले जाती हैं और नीचे भी ले जाती हैं। दोनों रास्ते अलग-अलग हैं। गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध भी वे रस ऊपर कैसे ले जाती हैं इसके बारे में आज के विज्ञान में पूरा ज्ञान नहीं है। जब तक कैपिलरी एक्शन का ज्ञान न हो तब तक यह बताना संभव नहीं है और यह ज्ञान बहुत समय तक पश्चिमी देशों को नहीं था। कैपिलरी मोशन संबंधी भौतिकी के सिद्धांत का ज्ञान बॉटनी के ज्ञान के साथ आवश्यक है। जब पत्तों में रस प्रवाहित होता है, तब क्या होता है इसे स्पष्ट करके ग्रंथ में कहा गया है-

‘रंजकेन पश्च्यमानात‘ किसी रंग देने वाली प्रक्रिया से यह पचता है-यानी फोटो सिंथेसिस। यह बड़ा महत्वपूर्ण है। इसके पश्चात्‌ वह कहते हैं कि ‘उत्पादं- विसर्जयन्ति‘ हम सब आज जानते हैं कि पत्तियां फोटो सिंथेसिस से दिन में आक्सीजन निकालती हैं और रात में कार्बन डाय अक्साइड। दिन में कार्बन डाय आक्साइड लेकर भोजन बनाती हैं। अतिरिक्त वाष्प का विसर्जन करती हैं, जिसे ट्रांसपिरेशन कहते हैं। इस सबका वर्णन इसमें है।

आगे कहा कि जब उसमें से वाष्प का विसर्जन होता है तब उसमें ऊर्जा उत्पन्न होती है, यानी श्वसन की क्रिया का वर्णन है। संक्षेप में यह वर्णन बताता है कि किस प्रकार रस का ऊपर चढ़ना, पंक्तियों में जाना, भोजन बनाना, फिर श्वसन द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करना होता है। इस सारी क्रमिक क्रिया से पेड़ बनता है। इसके अतिरिक्त आज भी कोई दूसरी प्रक्रिया वृक्षों के बढ़ने की ज्ञात नहीं है। 

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सन्‌ १६६५ में राबर्ट हुक ने माइक्रोस्कोप के द्वारा जो वर्णन किया उससे विस्तृत वर्णन महर्षि पाराशर हजारों वर्ष पूर्व करते हैं। वे कहते हैं, कोष की रचना निम्न प्रकार है-

(१) कलावेष्टन 

(२)रंजकयुक्त रसाश्रय 

(३) सूक्ष्मपत्रक 

(४) अण्वश्च 

अब यह सेल का वर्णन तो बिना माइक्रोस्कोप के संभव नहीं है। यानी वृक्ष आयुर्वेद के लेखक को हजारों साल पहले माईक्रोस्कोप का ज्ञान रहा होगा। तब पश्चिम में इसे कोई नहीं जनता था। यह वृक्ष आयुर्वेद की वैज्ञानिक दृष्टि थी। विचार करने की विषय यह है कि अनुसंधान की परम्परा चलते रहने और अंत में इतनी गहन वैज्ञानिक दृष्टि को पाने में कितने वर्ष लगे होंगे। क्योंकि किसी और देश में वनस्पति शास्त्र का इतना प्राचीन और गहन अध्ययन नहीं हुआ है जितना कि भारत में। परन्तु हमारे वनस्पति शास्त्र के विद्वान इन सन्दभों को पाठ्य पुस्तकों में नहीं रखते, क्योंकि वे संस्कृत नहीं जानते। वे संस्कृत स्वयं पढ़ें या न पढ़ें, परन्तु यदि विज्ञान के विद्यार्थी के लिए संस्कृत का ज्ञान अनिवार्य कर दें तो इस देश के ज्ञान-विज्ञान का मार्ग स्वत: प्रशस्त हो जाएगा। जिसको संस्कृत का ज्ञान नहीं है उसे वृक्ष आयुर्वेद का ज्ञान कहां से होगा?

 वर्गीकरण, जो चरक, सुश्रुत, महर्षि पाराशर आदि ने किया है, उसका वर्णन है। वह भी वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में भारत की प्रगति को दर्शाता है। 

चरक का वर्गीकरण
चरक अपनी ‘चरक संहिता‘ में वनस्पतियों का चार प्रकार से वर्गीकरण करते हैं:-

(१) जिनमें फूल के बिना ही फलों की उत्पत्ति होती है जैसे गूलर, कटहल आदि।

(२) वानस्पत्य- जिनमें फूल के बाद फल लगते हैं जैसे आम, अमरूद आदि।

(३) औषधि-जो फल पकने के बाद स्वयं सूखकर गिर पड़ें, उन्हें औषधि कहते हैं। जैसे गेंहू, जौ, चना आदि।

(४) वीरुध- जिनके तन्तु निकलते हैं, उन्हें वीरुध कहते हैं, जैसे लताएं, बेल, गुल्म आदि।

इसी प्रकार वनस्पति के प्रयोग के अनुसार भी कुछ वर्गीकरण हैं-

(अ) मूलिनी-जिसका मूल अन्य अंगों की अपेक्षा प्रायोगिक दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण है। इनकी सोलह संख्या बताई है।

(ब) फलनी- जिनका फल प्रयोग की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसमें उन्नीस प्रकार के पौधे बताये हैं। चरक ऋषि ने मानव के आहार योग्य वनस्पतियों को सात भागों में बांटा है।

(१) शूक धान्य- जिन पर शूक (बाल) निकलते हैं जैसे गेहूं, जौ आदि

(२) शिम्बी धान्य-फली की जाति वाले, जिन पर छिलका रहता है। जैसे सेम, मटर, मूंग, उड़द, अरहर आदि।

(३) शाक वर्ग- पालक, मेथी, बथुआ आदि।

(४) फल वर्ग-विभिन्न प्रकार के फल।

(५) हरित वर्ग- विभिन्न प्रकार की तरकारी, लौकी, तोरई आदि।

(६) आहार योनि वर्ग-तिल, मसाले आदि जिनका आहार में उपयोग होता है।

(७) इक्षु वर्ग- गन्ना और उसकी जातियां।

सुश्रुत का वर्गीकरण: सुश्रुत ने शाकों को दस वर्गों में बांटा है।

(१) मूल- मूली आदि। (२) पत्र- जिनके पत्तों का उपयोग होता है। (३) करीर - जिनके अंकुर का उपयोग होता है, जैसे बास। (४) अग्र-बेंत आदि। (५) फल - सभी फलदार पौधे। (६) काण्ड - कृष्माण्ड आदि। (७) अधिरुढ़-लता आदि। (८) त्वक्‌-मातुलुंग आदि। (९) पुष्प-कचनार आदि। (१०) कवक

महर्षि पाराशर का वर्गीकरण

महर्षि पराशर ने सपुष्प वनस्पतियों को विविध परिवारों में बांटा है। जैसे शमीगणीय (फलियों वाले पौधे), पिपीलिका गणीय, स्वास्तिक गणीय, त्रिपुण्डक्‌ गणीय, मल्लिका गणीय और कूर्च गणीय। आश्चर्य की बात यह है कि जो विभाजन महर्षि पाराशर ने किया है, आधुनिक वनस्पति विज्ञान का विभाजन भी इससे मिलता-जुलता है।

उदाहरण के लिए- शमीगणीय विभाजन देखें- 

सभी तु तुण्दमण्डला विषमविदलास्मृता।
पञ्चमुक्तदलैश्चैव युक्तजालकरुर्णितै:॥
दशभि: केशरैर्विद्यात्‌ समि पुष्पस्य लक्षणम्‌।
सभी सिम्बिफला ज्ञेया पार्श्च बीजा भवेत्‌ सा॥
वक्रं विकर्णिकं पुष्पं शुकाख्य पुष्पमेव च
एतैश्च पुष्पभेदैस्तु भिद्यन्ते समिजातय:॥
वृक्षायुर्वेद-पुष्पांगसूत्राध्याय 

पराशर के अनुसार

तृण मंडल-

विषम विदल-

पंच मुक्तदल -

युक्त जालिका - 

दश प्रिकेसर - 

इसी प्रकार अन्य विभाजन भी हैं। संस्कृत भाषा में इन नामों की उपयुक्तता और अभिव्यक्ति के कारण सर विलियम जोन्स ने कहा था ‘यदि लिनियस (आधुनिक वर्गीकरण विज्ञान का जनक) ने संस्कृत सीख ली होती तो उसके द्वारा वह अपनी नामकरण पद्धति का और अधिक विकास कर पाता।‘

मूल से जल का पीना-वृक्षों द्वारा द्रव आहार लेने का ज्ञान भारतीयों को था। अत: उनका नाम पादप, जो मूल से पानी पीता है, रखा गया था। महाभारत के शांतिपर्व में वर्णन आता है। 

वक्त्रेणोत्पलनालेन यथोर्ध्वं जलमाददेत।
तथा पवनसंयुक्त: पादै: पिबति पादप:॥ जैसे कमल नाल को मुख में रखकर अवचूषण करने से पानी पिया जा सकता है, ठीक वैसे ही पौधे वायु की सहायता से मूलों के द्वारा पानी पीते हैं।

वनस्पतियों के रोग-वराह मिहिर की ‘बृहत्संहिता‘ में चार प्रकार के वनस्पतियों के रोगों का वर्णन है, आधुनिक विवरण भी उसकी पुष्टि करते हैं।

बृहत्‌ संहिता आधुनिक

(१) पाण्डु पत्रता - पर्णों की पाण्डुता

(२) प्रवाल अवृद्धि - कलियों का पतन

(३) शाखा शोष - डालियों का सूखना

(४) रस स्रुति - रस नि:स्राव

आनुवंशिकता- मेंडल से पहले ही चरक और सुश्रुत ने विवरण दिया है कि ‘फूल के फलित अंड में वनस्पति के सभी अंग सूक्ष्म रूप में विद्यमान रहते हैं, जो बाद में एक-एक करके प्रकट होते हैं।‘ 

जगदीश चन्द्र बसु का योगदान-
अर्वाचीन काल में भी वनस्पति शास्त्र के क्षेत्र में जिनका अप्रतिम योगदान रहा, उन महान विज्ञानी जगदीश चन्द्र बसु के बारे में देश कितना जानता है? वर्तमान काल में जगदीश चन्द्र बसु ने सिद्ध किया कि चेतना केवल मनुष्यों और पशुओं तक ही सीमित नहीं है, अपितु वह वृक्षों और जिन्हें निर्जीव पदार्थ माना जाता है, उनके अंदर भी समाहित है। इस प्रकार उन्होंने आधुनिक जगत के सामने जीवन के एकत्व को प्रकट किया। उन्होंने कहा कि निर्जीव व सजीव दोनों निरपेक्ष नहीं, अपितु सापेक्ष हैं। उनमें अंतर केवल इतना ही है कि धातुएं थोड़ी कम संवेदनशील होती हैं, वृक्ष कुछ अधिक संवेदनशील होते हैं, पशु कुछ और अधिक तथा मनुष्य सर्वाधिक संवेदनशील होते हैं। इनमें डिग्री का अंतर है, परन्तु चेतना सभी के अंदर है।

सन्‌ १८९५ के आस-पास जगदीश चन्द्र बसु वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे थे। उन्होंने धात्विक डिटेक्टर में तरंगे भेजीं। उसके परिणामस्वरूप डिटेक्टर पर कुछ संकेत चित्र आए। यह प्रयोग बार-बार करने पर एक अंतर उनके ध्यान में आया कि संकेत चित्र प्रारंभ में जितने स्पष्ट आ रहे थे, बार-बार प्रयोग दोहराने पर वे थोड़ा मंद होने लगे। यह देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि जो निर्जीव हैं, उनमें प्रतिसाद कम-ज्यादा नहीं होना चाहिए, वह तो यांत्रिक होने के कारण एक जैसा होना चाहिए। प्रतिसाद का कम-ज्यादा होना तो पेशियों का स्वभाव है। उनमें जब थकान आती है तो प्रतिसाद कम होता है तथा कुछ समय आराम मिला तो प्रतिसाद अधिक होता है। अत: डिटेक्टर में प्रतिसाद कम- अधिक देखकर उन्हें शंका हुई और उन्होंने डिटेक्टर को कुछ समय आराम देकर प्रयोग को पुन: दोहराया और वे आश्चर्यचकित हो गए। क्योंकि आराम मिलने के बाद संकेत चित्र पुन: वैसे ही आने लगे। वे सोचने लगे, यह क्यों है? अपने प्रयोग को कई बार दोहराकर उन्होंने जांचा-परखा तथा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि निर्जीव के अंदर भी संवेदनशीलता है। अंतर केवल इतना है कि वह निश्चेष्ट (इनर्ट) है।

जगदीश चन्द्र बसु ने जब यह सिद्ध किया, उस समय पश्चिम के वैज्ञानिकों की क्या हालत थी, इसका अनुभव निम्न प्रसंग से किया जा सकता है। रायल साइंटिफिक सोसायटी में जगदीश चन्द्र बसु का भाषण होने वाला था तो इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध बायोलाजिस्ट हारटांग को हॉब्ज नामक विद्वान ने कहा, आज जगदीश चन्द्र बसु का भाषण होने वाला है जिन्होंने यह सिद्ध किया है कि वनस्पतियों और निर्जीवों में भी जीवन रहता है। आप भाषण सुनने चलेंगे? हारटांग की प्रथम प्रतिक्रिया थी ‘मैं अभी होश में हूं, मैंने पी नहीं रखी है। आपने कैसे समझ लिया कि मैं ऐसी वाहियात बातों पर विश्वास करूंगा।‘ फिर भी मजा देखने की मानसिकता से वे भाषण

सुनने आए। और भी लोग हंसी उड़ाने की मानसिकता से वहां आए। जगदीशचन्द्र बसु ने केवल मौखिक भाषण ही नहीं दिया अपितु यंत्रों के सहारे प्रत्यक्ष प्रयोगों का प्रदर्शन करते हुए जब अपनी बात सिद्ध करना प्रारंभ किया, तो हॉल में बैठे सभी विद्वान्‌ जो प्रारंभ में उपेक्षा की नजर से देख रहे थे, १५ मिनट बीतते-बीतते तालियां बजाने लगे। सारा हाल उनकी तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। भाषण व प्रयोगों के अंत में जब सभा के अध्यक्ष ने पूछा कि किसी को कोई शंका, कोई प्रश्न हो तो वक्ता से पूछ सकते हैं। तीन बार दोहराने पर भी जब कोई नहीं बोला, तब प्रो. हॉब्ज खड़े हुए और उन्होंने कहा कि कुछ भी पूछने लायक नहीं है। बसु महोदय ने अत्यंत प्रामाणिकता से अपनी बात सिद्ध की है। उनके भाषण व प्रयोग को देखकर मन में शंका उठती थी, परन्तु अगले ही क्षण दूसरे प्रयोग को देखकर उस शंका का निरसन हो जाता था। रॉयल सोसायटी के अध्यक्ष ने भी जगदीशचन्द्र बसु के जीवन के एकीकरण को सिद्ध करने की दिशा के सफल प्रयत्न के प्रति विश्वास प्रकट किया।

आगे चलकर बसु महोदय ने वृक्षों के ऊपर बहुत गहराई से प्रयोग किए। अपने साथ पौधों को लेकर दुनिया की यात्रा की। अनेक संवेदनशील यंत्र बनाये जिनमें वृक्षों के अन्दर होने वाले सूक्ष्मतम परिवर्तन प्रत्यक्ष देखे जा सकते थे। उन्होंने क्रेस्कोग्राफ नामक यंत्र बनाया, जो संवेदनाओं को एक करोड़ गुना अधिक बड़ा कर बताता था। जब पौधों को वे यंत्र लगा दिए जाते थे, तो पौधे दिन भर में क्या-क्या अनुभूतियां उन्हें हो रही हैं, इसकी कहानी मानों वे स्वयं कहने लगते थे। इस प्रकार उन्होंने अपने प्रयोगों और अनुभवों को अपनी लेखों में अभिव्यक्त किया तथा वनस्पति में, पशुओं में, पक्षियों में, कीड़े-मकोड़ों और सारी सृष्टि में चेतना है, इस प्राचीन अवधारणा को आधुनिक युग में सिद्ध किया।

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