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शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

भारत को सोने की चिड़िया बनाने वाला असली राजा कौन था ?


 भारत को सोने की चिड़िया बनाने वाला असली राजा कौन था ?
कौन था वह राजा जिसके राजगद्दी पर बैठने के बाद उनके श्रीमुख से देववाणी ही निकलती थी और देववाणी से ही न्याय होता था ?🤔

कौन था वह राजा जिसके राज्य में अधर्म का संपूर्ण नाश हो गया था।🤔

वह थे महान राजा महाराज विक्रमादित्य🙏

बड़े ही दुख की बात है कि महाराज विक्रमादित्य के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था और स्वर्णिम काल लाया था।


धर्म की नगरी उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन जिनकी तीन संताने थीं,सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती,उनसे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटे थे वीर विक्रमादित्य... बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर दी,जिनके एक लड़का हुआ गोपीचन्द।आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए,फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली।


आज हमारे भारत देश और यहाँ की संस्कृति केवल राजा विक्रमादित्य के कारण अस्तित्व में है।

अशोक मौर्य ने बौद्ध धर्म अपना लिया था और बौद्ध बनकर 25 साल राज किया था।
भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था, देश में बौद्ध और अन्य हो गए थे।


रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया।

विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया।महाराज विक्रमादित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास थे जिन्होंने विश्व प्रसिद्ध "अभिज्ञान शाकुन्तलम्" लिखा जिसमे भारत का इतिहास है, अन्यथा भारत का इतिहास क्या ? हम भगवान श्री कृष्ण और श्री राम को ही खो चुके थे।हम सभी हिंदुओं के लिए शर्म की बात है कि आज भी भगवान श्री कृष्ण के जन्मस्थान के निकट जो  स्थिति है वो कितनी शर्मनाक है ??

हमारे प्राचीन ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे।

उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए राज अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को दे दिया।वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से गुरू दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने लगे और आज उन्ही के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है,हमारी संस्कृति बची हुई है।

महाराज विक्रमादित्य ने केवल धर्म ही नहीं बचाया उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाया। उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है।

विक्रमादित्य के काल में भारत का कपडा,विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे।
भारत में इतना सोना आ गया था कि महाराज विक्रमादित्य काल में सोने के सिक्के चलते थे।आप गूगल इमेज कर विक्रमादित्य के सोने के सिक्के देख सकते हैं।

कैलेंडर पर जो विक्रम संवत लिखा जाता है वह भी महाराज विक्रमादित्य का स्थापित किया हुआ है।
आज जो भी ज्योतिष गणना हैं जैसे,हिन्दी सम्वंत, वार,तिथियाँ,राशि,नक्षत्र, गोचर आदि उन्हीं की रचना हैं।वे बहुत ही वीर पराक्रमी, बलशाली और बुद्धिमान राजा थे।

महाराजा विक्रमादित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे। न्याय,राज सब धर्मशास्त्र के नियमों पर चलता था। महाराज विक्रमादित्य का काल प्रभु श्रीराम के राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनी थी और धर्म पर चलने वाली थी।

बड़े दुःख की बात है कि भारत के सबसे महानतम राजा विक्रमादित्य के बारे में हमारे स्कूलों,कालेजों में कोई स्थान नहीं है।
देश को अकबर,बाबर, औरंगजेब जैसे दरिन्दों का इतिहास पढाया गया है।

इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें जिससे हमारी संस्कृति का ज्ञान हमारी पीढ़ी जान सके।

🚩 जय श्री बाबा भोलेनाथ,जय जय श्री महाकाल बाबा जी,जय हिंद। 🙏🏻
 🙏सत्य सनातन धर्म की जय हो🙏🙏✊राजा वीर विक्रमादित्य की जय हो✊🙏🚩

मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

पगड़ी रिसोर्ट में भगवान मुनिसुव्रत स्वामी की स्तुति में अद्वितीय भक्ति संध्या का आयोजन

पगड़ी रिसोर्ट, पाली में भगवान मुनिसुव्रत स्वामी की स्तुति में भक्ति संध्या का आयोजन

 


 

पाली के जोधपुर रोड स्थित पगड़ी रिसोर्ट में सोमवार सिंघवी परिवार के धनपत राज सिंघवी, कुसुम सिंघवी मनीष सिंघवी प्रियंका सिंघवी द्वारा भगवान मुनिसुव्रत स्वामी के मंदिर में सुबह  8वी ध्वजा का कार्यक्रम का आयोजन किया गया

जिसमे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रसिद्ध गायक अशोक गेमावत ने अपने भजन और मंत्रोच्चार से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया

शाम को भगवान मुनिसुव्रत स्वामी की स्तुति में भक्ति संध्या का आयोजन किया गया। जिसमें प्रसिद्ध भजन गायक अशोक गेमावत मुम्बई, व प्रिया-प्रीति सिरोही ने भगवन पार्श्वनाथ व आदेश्वर नाथ की स्तुति में एक से बढ़कर एक मनमोहक भजनों की प्रस्तुति देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।


 भजन गायक अशोक गेमावत ने ढम-ढम ढोल नगाड़ा बाजे रे…, दर-दर भटकता हूं, मुझे राह बता देना… जैसे मनमोहक भजनों की प्रस्तुतियां दी तो वहां बैठे श्रोताओं ने तालियां बजाकर उनका हौंसला बढ़ाया। इसी क्रम में सिरोही की सिंगर प्रिया-प्रीति ने भगवान पार्श्वनाथ व आदेश्वर नाथ की स्तुति में भजनों की प्रस्तुतियां देकर खूब वाह-वाही लूटी। कार्यक्रम के दौरान मंच संचालन पारस भाटी अंजाना ने किया। भक्ति संध्या का आयोजन धनपतराज, कुसुम सिंघवी, मनीष सिंघवी, प्रियंका सिंघवी  परिवार की ओर से किया गया। कार्यक्रम में पाली के कई गणमान्य अतिथि पधारे और पाली के आलावा जोधपुर, जयपुर, मुंबई, हैदराबाद, गुजरात आदि कई स्थानों से मेहमानो ने भजन संध्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई| भक्ति संध्या में चंद्रराज सिंघवी, मुकुल सिंघवी जोधपुर, ओम सोनी, श्रीपाल लोढ़ा, हरीश संचेती, सुमित्रा जैन, सुनील तलवार, सुरेश ढड्ढा, मोंटू गुलेच्छा, नेमीचंद चौपड़ा सहित कई श्रद्धालु मौजूद रहे। कार्यक्रम में पाली के कई गणमान्य अतिथि पधारे और पाली के आलावा जोधपुर, जयपुर, मुंबई, हैदराबाद, गुजरात आदि कई स्थानों से मेहमानो ने भजन संध्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराइ

सोमवार, 25 अप्रैल 2022

आधुनिक सच मियां-बीबी दोनों मिल खूब कमाते हैं तीस लाख का पैकेज दोनों ही पाते

*आधुनिक सच* 

मियां-बीबी दोनों मिल खूब कमाते हैं
 तीस लाख का पैकेज दोनों ही पाते हैं

सुबह आठ बजे नौकरियों 
 पर जाते हैं
 रात ग्यारह तक ही वापिस आते हैं

अपने परिवारिक रिश्तों से कतराते हैं
 अकेले रह कर वह कैरियर बनाते हैं

कोई कुछ मांग न ले वो मुंह छुपाते हैं
 भीड़ में रहकर भी अकेले रह जाते हैं

मोटे वेतन की नौकरी छोड़ नहीं पाते हैं
 अपने नन्हे मुन्ने को पाल नहीं पाते हैं

फुल टाइम की मेड ऐजेंसी से लाते हैं
 उसी के जिम्मे वो बच्चा छोड़ जाते हैं

परिवार को उनका बच्चा नहीं जानता है
 केवल आया'आंटी' को ही पहचानता है

दादा-दादी, नाना-नानी कौन होते है ?
अनजान है सबसे किसी को न मानता है

आया ही नहलाती है आया ही खिलाती है
 टिफिन भी रोज़ रोज़ आया ही बनाती है

यूनिफार्म पहना के स्कूल कैब में बिठाती है
 छुट्टी के बाद कैब से आया ही घर लाती है

नींद जब आती है तो आया ही सुलाती है
 जैसी भी उसको आती है लोरी सुनाती है

उसे सुलाने में अक्सर वो भी सो जाती है
 कभी जब मचलता है तो टीवी दिखाती है

जो टीचर मैम बताती है वही वो मानता है
 देसी खाना छोड कर पीजा बर्गर खाता है

वीक एन्ड पर मॉल में पिकनिक मनाता है
 संडे की छुट्टी मौम-डैड के संग बिताता है

वक्त नहीं रुकता है तेजी से गुजर जाता है
 वह स्कूल से निकल के कालेज में आता है

कान्वेन्ट में पढ़ने पर इंडिया कहाँ भाता है
 आगे पढाई करने वह विदेश चला जाता है

वहाँ नये दोस्त बनते हैं उनमें रम जाता है
 मां-बाप के पैसों से ही खर्चा चलाता है

धीरे-धीरे वहीं की संस्कृति में रंग जाता है
 मौम डैड से रिश्ता पैसों का रह जाता है

कुछ दिन में उसे काम वहीं मिल जाता है
 जीवन साथी शीघ्र ढूंढ वहीं बस जाता है

माँ बाप ने जो देखा ख्वाब वो टूट जाता है
 बेटे के दिमाग में भी कैरियर रह जाता है

बुढ़ापे में माँ-बाप अब अकेले रह जाते हैं
 जिनकी अनदेखी की उनसे आँखें चुराते हैं

क्यों इतना कमाया ये सोच के पछताते हैं
 घुट घुट कर जीते हैं खुद से भी शरमाते हैं

हाथ पैर ढीले हो जाते, चलने में दुख पाते हैं
 दाढ़-दाँत गिर जाते, मोटे चश्मे लग जाते हैं

कमर भी झुक जाती, कान नहीं सुन पाते हैं
 वृद्धाश्रम में दाखिल हो, जिंदा ही मर जाते हैं : 

सोचना की बच्चे अपने लिए पैदा कर रहे हो या विदेश की सेवा के लिए।

बेटा एडिलेड में, बेटी है न्यूयार्क।
 ब्राईट बच्चों के लिए, हुआ बुढ़ापा डार्क।

बेटा डालर में बंधा, सात समन्दर पार।
 चिता जलाने बाप की, गए पड़ोसी चार।

ऑन लाईन पर हो गए, सारे लाड़ दुलार।
 दुनियां छोटी हो गई, रिश्ते हैं बीमार।

बूढ़ा-बूढ़ी आँख में, भरते खारा नीर।
 हरिद्वार के घाट की, सिडनी में तकदीर।

तेरे डालर से भला, मेरा इक कलदार।
 रूखी-सूखी में सुखी, 
अपना घर संसार

🙏🙏

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022

महाभारत एक पूर्ण न्यायशास्त्र है, और चीर-हरण उसका केन्द्रबिन्दु! इस प्रसङ्ग के बाद की पूरी कथा इस घिनौने अपराध के अपराधियों को मिले दण्ड की कथा है।

मुझे लगता है महाभारत एक पूर्ण न्यायशास्त्र है, और चीर-हरण उसका केन्द्रबिन्दु!


इस प्रसङ्ग के बाद की पूरी कथा इस घिनौने अपराध के अपराधियों को मिले दण्ड की कथा है। वह दण्ड, जिसे निर्धारित किया भगवान श्रीकृष्ण ने और किसी को नहीं छोड़ा... किसी को भी नहीं।
    दुर्योधन ने उस अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दुशासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी। महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया।
     भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए भी देखे... भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे। जबतक सब देख नहीं लिया, तबतक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था।  
     धृतराष्ट्र का दोष था पुत्रमोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका।
     दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला। द्रौपदी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाली थी, सो उनकी रक्षा का दायित्व सबसे अधिक अर्जुन पर था। अर्जुन यदि चुपचाप उनका अपमान देखते रहे, तो सबसे कठोर दण्ड भी उन्ही को मिला। अर्जुन पितामह भीष्म को सबसे अधिक प्रेम करते थे, तो कृष्ण ने उन्ही के हाथों पितामह को निर्मम मृत्यु दिलाई। अर्जुन रोते रहे, पर तीर चलाते रहे... क्या लगता है, अपने ही हाथों अपने अभिभावकों, भाइयों की हत्या करने की ग्लानि से अर्जुन कभी मुक्त हुए होंगे क्या? नहीं... वे जीवन भर तड़पे होंगे। यही उनका दण्ड था।
    युधिष्ठिर ने स्त्री को दाव पर लगाया, तो उन्हें भी दण्ड मिला। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सत्य और धर्म का साथ नहीं छोड़ने वाले युधिष्ठिर ने युद्धभूमि में झूठ बोला, और उसी झूठ के कारण उनके गुरु की हत्या हुई। यह एक झूठ उनके सारे सत्यों पर भारी रहा... धर्मराज के लिए इससे बड़ा दण्ड क्या होगा?
     दुर्योधन को गदायुद्ध सिखाया था स्वयं बलराम ने। एक अधर्मी को गदायुद्ध की शिक्षा देने का दण्ड बलराम को भी मिला। उनके सामने उनके प्रिय दुर्योधन का वध हुआ और वे चाह कर भी कुछ न कर सके... 
     उस युग में दो योद्धा ऐसे थे जो अकेले सबको दण्ड दे सकते थे, कृष्ण और बर्बरीक। पर कृष्ण ने ऐसे कुकर्मियों के विरुद्ध शस्त्र उठाने तक से इनकार कर दिया, और बर्बरीक को युद्ध मे उतरने से ही रोक दिया। लोग पूछते हैं कि बर्बरीक का वध क्यों हुआ? यदि बर्बरीक का बध नहीं हुआ होता तो द्रौपदी के अपराधियों को यथोचित दण्ड नहीं मिल पाता। कृष्ण युद्धभूमि में विजय और पराजय तय करने के लिए नहीं उतरे थे, कृष्ण कृष्णा के अपराधियों को दण्ड दिलाने उतरे थे।
     कुछ लोगों ने कर्ण का बड़ा महिमामण्डन किया है। पर सुनिए! कर्ण कितना भी बड़ा योद्धा क्यों न रहा हो, कितना भी बड़ा दानी क्यों न रहा हो, एक स्त्री के वस्त्र-हरण में सहयोग का पाप इतना बड़ा है कि उसके समक्ष सारे पुण्य छोटे पड़ जाएंगे। द्रौपदी के अपमान में किये गए सहयोग ने यह सिद्ध कर दिया कि वह महानीच व्यक्ति था, और उसका वध ही धर्म था।
     स्त्री कोई वस्तु नहीं कि उसे दाव पर लगाया जाय। कृष्ण के युग में दो स्त्रियों को बाल से पकड़ कर घसीटा गया। देवकी का बाल पकड़ा कंस ने, और द्रौपदी का बाल पकड़ा दुशासन ने। श्रीकृष्ण ने स्वयं दोनों के अपराधियों का समूल नाश किया। किसी स्त्री के अपमान का दण्ड  अपराधी के समूल नाश से ही पूरा होता है, भले वह अपराधी विश्व का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति ही क्यों न हो... यही न्याय है, यही धर्म है। और इस धर्म को स्थापित करने वाला भारत है, सनातन है...

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